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Wednesday, 29 September 2021

29-09-2021 (जन्मदिन का केक)










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जन्मदिन का केक
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दिनेश कुकरेती

जीवन की आधी सदी गुजर चुकी है, लेकिन आज तक जन्मदिन पर मैंने कभी केक नहीं काटा। सच कहूं तो कभी ऐसा अवसर नसीब ही नहीं हुआ। घर में भी कभी ऐसा माहौल नहीं रहा और आज भी नहीं है। यह सिर्फ मेरी ही कहानी नहीं है, रजनी को भी कभी ऐसा मौका नहीं मिल पाया। हां! बच्चे जब छोटे थे, तब जरूर उनके जन्मदिन पर केक कटा करता था, लेकिन घर के माहौल ने उनकी भी राह रोक दी।

अब तो जन्मदिन पर उनकी मनपसंद डिश व ड्रेस ले आते हैं बस। रही बात मेरे और रजनी के जन्मदिन की, तो इस मौके पर रजनी अगर पकौड़ी न बनाए तो मालूम ही न पडे़ कि हम कभी पैदा भी हुए थे। लेकिन, आज तो गज़ब हो गया। रजनी के जन्मदिन पर पकौडी़ भी बनीं और केक भी कटा, पर मुझे तो इस पर अभी भी यकीन नहीं हो पा रहा है।










इस केक की भी अपनी अलग ही कहानी है, जिसके बारे में शाम साढे़ सात बजे तक मुझे भी कोई जानकारी नहीं थी। रजनी ने कल शाम ही तय कर लिया था कि ससुरजी (उसके पिताजी) आज दोपहर का भोजन हमारे साथ ही करेंगे। घर का माहौल देख बाकी किसी को बुलाना उसने उचित नहीं समझा। क्योंकि, चार लोग आएंगे तो शोर-शराबा होना स्वाभाविक है और यह स्वाभाविकता मेरे घर वालों को पसंद नहीं। इसीलिए मुझे भी उनसे कभी अच्छे की उम्मीद नहीं रहती और न आज ही थी। पर, यहां तो ऐसा दर्शाया जा रहा था, जैसे किसी को रजनी के जन्मदिन की जानकारी ही नहीं। तब भी, जब देख लिया कि दोपहर में ससुरजी भी हमारे साथ भोजन कर रहे हैं। फिर दाल की पकौडी़ भी तो ऐसे ही मौकों पर बनती हैं, लेकिन छोडि़ए! जिसकी जैसी सोच। अब तो हम इन बातों की परवाह भी नहीं करते।

खैर! दोपहर का भोजन करने के बाद मैं टीवी देखने बैठ गया और रजनी आराम करने लगी। बच्चे भी अपने-अपने कार्य में व्यस्त हो गए। बल्कि, छोटी बिटिया तो कुछ देर बाद खर्राटे भरने लगी। इसी बीच रजनी ने मुझसे पूछा- "शाम को क्या बनाया जाए। दिन का राजमा-चावल भी बचा है, क्या उसे भी खा लोगे।"

मैंने कहा- "उसे ही खाऊंगा, मेरे लिए रोटी मत बनाना।"

इस पर रजनी बोली- "फिर ठीक है, बच्चों के लिए भी उनकी पसंद का कुछ हल्का-फुल्का बना लेंगे। मैं भी दूध के साथ एकाध रोटी खा लूंगी।"

थोडी़ देर में रजनी कुछ फ्रूट्स (सेब-केला आदि) भी ले आई, जो बीते दो दिन से फ्रिज में रखे हुए थे, लेकिन खाने का मौका नहीं मिल पा रहा था। हमें फ्रूट्स खिलाने के बाद रजनी मोहल्ले में ही अपनी किसी दोस्त से मिलने चली गई।.........

शाम साढे़ सात या पौने आठ बजे का वक्त रहा होगा, रजनी कमरे में मेरे पास आकर बोली- "आपके लिए दाल गरम कर दूं क्या?"

मैंने कहा- "नहीं! मुझे दिन का बचा दाल-भात ठंडा ही अच्छा लगता है।"

रजनी ने फिर पूछा- "...तो अभी लगा दूं क्या?" मेरे "हां" में जवाब देने पर उसने खाना लगा दिया।

खाना खाते हुए मुझे दस मिनट ही हुए होंगे कि तभी छोटी बिटिया साक्षी ने कमरे में प्रवेश किया। उसके एक हाथ में बैग और दूसरे हाथ में फैंटा की दो लीटर वाली बोतल थी। यह देख हमारा आश्चर्यचकित होना स्वाभाविक था। हम कुछ पूछते कि तभी उसने बैग से एक गत्ते का बाक्स बाहर निकाला। उस बाक्स में केक था। इसके अलावा एक थैली में कबाब और दो छोटी-छोटी थैलियों में चटनी थी। कुल मिलाकर सब सामान छह सौ रुपये का तो रहा ही होगा।










रजनी ने बिटिया से इस बारे पूछा तो उसने यह कहकर उसका मुंह बंद करा दिया कि, "तुम्हें इससे क्या, कोई चोरी के पैसों का थोडे़ है। मैं अपने पैसों से लाई हूं।" काफी कुरेदने पर भी उसने कुछ नहीं बताया। हालांकि, मुझे मालूम था कि उसने मम्मी का जन्मदिन मनाने की पहले से तैयारी की हुई थी। लेकिन, ऐसे सरप्राइज की तो किसी को भी उम्मीद नहीं थी। खैर! बच्चों की खुशी में हिस्सेदार बनने का आनंद ही कुछ और है, फिर हम भला इस मौके को कैसे चूकते। सो, हमने स्टूल पर केक को सजा लिया। रजनी ने केक काटा और फिर हम चारों ने तसल्ली से उसका आनंद लिया। कबाब खाने के बाद तो और कुछ खाने की जरूरत ही नहीं रही। लेकिन, फैंटा भी तो पीना था और बचाना भी नहीं था।

अब बिटिया भी समझ गई थी कि हम उसके सरप्राइज से खुश हैं। उसे लगा कि अब बताने में कोई हर्ज नहीं है कि उसने कैसे यह सरप्राइज प्लान किया। कहने लगी, इस महीने की सारी पाकेट मनी उसने सरप्राइज के लिए बचाई थी। अब मेरी समझ में भी बिटिया की सुबह कही बात आ गई थी। हमारे बार-बार उकसाने पर उसने कहा था कि मैं मम्मी को जो भी गिफ्ट दूंगी, तुम्हें पता चल जाएगा। बस! देखते रहो। बडी़ बिटिया सृष्टि ने भी मम्मी के लिए आनलाइन कोई गिफ्ट आर्डर किया हुआ है, लेकिन छोटी बिटिया का सरप्राइज गिफ्ट उसे भी यह सोचने को मजबूर कर रहा था कि इसका कोई मुकाबला नहीं हो सकता।

खास बात यह कि केक, फैंटा व कबाब का पेमेंट उसने दिन में ही कर दिया था, ताकि दुकानदार भूलें ना। इस समय रात के बारह बज रहे हैं, लेकिन मेरी आंखों के आगे अब भी केक ही तैर रहा है। रजनी भी प्रफुल्लित है कि बच्चों ने उसके जन्मदिन को खास बना दिया। मैं सोच रहा हूं, काश! घर का माहौल ठीक होता तो इस खुशी के मौके को सब मिल-जुलकर सेलिब्रेट करते। पर, समय की बलिहारी है। जिसका मतिहरण हो चुका हो, उसका और उसके लिए कुछ नहीं किया जा सकता। बहरहाल! हमारी खुशियां तो हमारे हाथ में हैं और बच्चों को इन्हें बांटने से कोई नहीं रोक सकता।

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Birthday Cake

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Dinesh Kukreti

Half a century of my life has passed, but till date I have never cut a cake on my birthday.  To be honest, I have never had such an opportunity.  There has never been such an atmosphere in the house and it is not even today.  It is not only my story, Rajni also never got such an opportunity.  Yes!  When the children were young, they used to cut cakes on their birthdays, but the atmosphere of the house also stopped them.

Now, on his birthday, he just brings his favorite dish and dress.  As for me and Rajni's birthday, if Rajni had not made dumplings on this occasion, then it would not have been known that we were ever born.  But today it was amazing.  Dumplings were also made on Rajni's birthday and cake was also cut, but I still cannot believe it.

This cake also has its own story, about which I was not even aware till 7.30 pm.  Rajni had decided last evening itself that father-in-law (her father) would have lunch with us today.  Seeing the atmosphere of the house, he did not consider it appropriate to call anyone else.  Because, when four people come, it is natural to be noisy and my family members do not like this naturalness.  That's why I never expected anything good from him and neither was it today.  But, here it was being shown as if no one knew about Rajni's birthday.  Even then, when I saw that in the afternoon father-in-law is also having dinner with us.  Then dal dumplings are also made on similar occasions, but leave it!  Whose thinking  Now we don't even care about these things.







So!  After having lunch I sat down to watch TV and Rajni started taking rest.  The children also got busy with their work.  Rather, the little girl started snoring after some time.  Meanwhile, Rajni asked me- "What should be prepared in the evening. Rajma and rice are also left for the day, will you eat that too."

I said- "I will eat it only, don't make bread for me."

On this Rajni said- "Okay then, we will make something light for the children of their choice. I will also eat a couple of rotis with milk."

After a while Rajni also brought some fruits (apple-banana etc.), which were kept in the fridge for the last two days, but could not get a chance to eat.  After feeding us fruits, Rajni went to meet a friend in the locality itself.

It must have been seven o'clock in the evening or eight o'clock in the evening, Rajni came to me in the room and said - "Should I heat the lentils for you?"

I said - "No! I like only cold lentils and rice for the rest of the day."

Rajni again asked- "...then should I put it now? On answering my "yes" he started eating.

It must have been ten minutes for me while eating food that only then little daughter Sakshi entered the room.  He had a bag in one hand and a two-liter bottle of Fanta in the other.  It was natural for us to be surprised to see this.  We would ask something when he took out a cardboard box from the bag.  There was a cake in that box.  Apart from this, there was kebab in one bag and chutney in two small bags.  In all, all the goods must have been worth six hundred rupees.

When Rajni asked the daughter about this, she shut her mouth by saying, "What do you do with this, someone has a little bit of stolen money. I have brought it with my own money."  He didn't say anything even after scratching a lot.  However, I knew that he had already made preparations to celebrate Mom's birthday.  But, no one expected such a surprise.  So!  The joy of being a part of the happiness of children is something else, then how could we miss this opportunity.  So, we decorated the cake on the stool.  Rajni cut the cake and then the four of us enjoyed it calmly.  After eating kebabs, there was no need to eat anything else.  But, even Fanta was to be drunk and not even saved.

Now the daughter also understood that we are happy with her surprise.  He felt that now there is no harm in telling how he planned this surprise.  She started saying, she had saved all the pocket money of this month for the surprise.  Now my understanding had come in the morning of the daughter.  On our repeated provocation, she said that whatever gift I will give to mom, you will know.  Just!  Keep watching.  The elder daughter Srishti has also ordered a gift online for her mother, but the surprise gift of the younger daughter was forcing her to think that there can be no match for it.










The special thing is that he had paid for the cake, fanta and kebab in the day itself, so that the shopkeepers would not forget.  It is now twelve o'clock in the night, but the cake is still floating before my eyes.  Rajni is also elated that the kids made her birthday special.  I'm thinking, wish!  Had the atmosphere of the house been right, everyone would have celebrated this happy occasion together.  But, time is a waste.  Nothing can be done for the one who has died.  However!  Our happiness is in our hands and no one can stop the children from sharing them.

Monday, 20 September 2021

11-09-2021 (महादेवी पर परिचर्चा के बहाने)

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महादेवी पर परिचर्चा के बहाने

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दिनेश कुकरेती

सुबह स्नान करके जैसे ही मैं कमरे में आया फोन की घंटी घनघना उठी। मैकेनिक का फोन था। बोला, "बाइक ठीक हो गई है, लेने कब आओगे।" मैंने थोडी़ देर में आने को कहा और फिर योगासन करने बैठ गया। स्नान के बाद मैं एक से सवा घंटे योग-प्राणायाम अवश्य करता हूं, इसलिए आज भी इस क्रम को बाधित नहीं करना चाहता था। मैकेनिक के पास मैं साढे़ ग्यारह बजे के आसपास पहुंचा। आशंका थी कि खर्चा ठीक-ठाक ही हुआ होगा, लेकिन मामला 1200 रुपये में निपट गया। इससे राहत तो महसूस होनी ही थी।


बारह बजे के आसपास मैं बाइक लेकर घर पहुंचा। आज दूरदर्शन पर "साहित्यिकी" के अंतर्गत सुप्रसिद्ध छायावादी कवयित्री पर परिचर्चा का प्रसारण भी होना था। इस परिचर्चा को हमने नौ सितंबर का रिकार्ड किया था। लेकिन, प्रसारण के टाइम की जानकारी मुझे नहीं थी और दूरदर्शन की और से भी कुछ नहीं बताया गया था। हालांकि, साहित्यकार मित्र मुकेश नौटियाल ने परिचर्चा का यू-ट्यूब लिंक भेजने की बात कही थी। प्रसारण के बारे में मैंने घर में रजनी को भी बता रखा था, लेकिन कब होगा, इस बारे में नहीं बता पाया। मेरे पास तो खैर टीवी है ही नहीं।

ढाई बजे के आसपास मैं आफिस के लिए निकल पडा़। बाइक में तेल नहीं था, इसलिए पेट्रोल पंप भी जाना था। फिर मैंने पेट्रोल पंप बदलने की भी ठान रखी थी। कारगी रोड पर ही आफिस से आधा किमी के फासले पर नया पंप खुला है, वहीं जाने का मेरा इरादा था। नया पंप होने के कारण उसके पेट्रोल टैंक में भी नमी आने की गुंजाइश नहीं है। सो, आज से मैंने इसी पंप से पेट्रोल भरवाने की शुरुआत कर दी। तीन बजे मैं आफिस में था। आफिस पहुंचने के बाद लगभग चार बजे तक मैं लाइब्रेरी में बैठता हूं। थोडा़ आराम हो जाता है। इसी के बाद काम की शुरुआत होती है।

पांच बजे के आसपास मुझे मुकेश भाई ने परिचर्चा का यू-ट्यूब लिंक भेज दिया। मैंने यह लिंक रजनी को भेजा तो उसने पहले ही यू-ट्यूब पर परिचर्चा देख लेने की बात कही। मुकेश भाई ने टीवी से परिचर्चा के कुछ शाट भी ले लिए थे, वो भी उन्होंने मुझे भेज दिए। हालांकि, मैंने परिचर्चा आफिस से घर लौटने के बाद रात को ही देखी। इससे मुझे पता चला कि अभी मैं  टीवी के लिए परफैक्ट नहीं हूं। काफी सुधार की गुंजाइश है। मेरी दिली ख्वाहिश है कि जितना बेहतर लिख पाता हूं, उतना ही बेहतर बोल भी सकूं। खैर! प्रयास जारी है, सफलता भी मिलेगी ही।

लेकिन...मेरी चिंता फिलहाल यह है कि पढ़ने के लिए बिल्कुल भी समय नहीं निकाल पा रहा हूं। नेमिचंद्र शास्त्री की पुस्तक "भारतीय ज्योतिष" को पढ़ना शुरू किया था, लेकिन शुरुआत में ही अटका हुआ हूं। कुणाल नारायण उनियाल का उपन्यास "तीसरी दुनिया के रहस्य" को भी पढ़ना शुरू किया हुआ है। यहां भी अभी आठ-दस पेज से आगे नहीं बढ़ सका। इसका मुझे हमेशा अफसोस रहता है कि पुस्तकों की पर्याप्त उपलब्धता के बावजूद जीवन के इस सबसे बडे़ शौक को पूरा नहीं कर पा रहा। वैसे इतना तो तय है कि एक बार नियमित रूप से पढ़ने का सिलसिलि शुरू हो गया तो फिर किसी भी सूरत में रुकने वाला नहीं है।
आजकल तो लिखने का क्रम भी ढीला पडा़ हुआ है। 26 अगस्त को कोटद्वार से लौटने के बाद से अब तक मैं महज छह पोस्ट ही लिख पाया। यह सातवीं पोस्ट है। जबकि, तय किया था कि रोजाना एक पोस्ट लिखूंगा। पता नहीं क्यों दिलो-दिमाग पर सुस्ती घर बना लेती है। कोशिश रहेगी कि आगे ऐसा न हो। पाठकों को भी तो नित नई पोस्ट का इंतजार रहता है। चलिए! फिलहाल तो रात काफी हो गई है, बल्कि यह कहना ज्यादा प्रासंगिक रहेगा कि आधी बीत गई है। नींद भी धीरे-धीरे अपना असर दिखा रही है। ...तो क्यों न अब नींद को गले लगा लिया जाए। खुदा हाफिज!!
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On the pretext of discussion on Mahadevi
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Dinesh Kukreti
As soon as I entered the room after taking bath in the morning, the phone rang.  The mechanic was on the phone.  Said, "The bike is fine, when will you come to get it."  I asked to come after a while and then sat down to do yoga.  After bathing, I do Yoga-Pranayama for one to one and a half hours, so I did not want to disturb this sequence even today.  I reached the mechanic around 11:30.  There was an apprehension that the expenditure would have been well, but the matter was settled in 1200 rupees.  It was a relief to be felt.

Around twelve o'clock I reached home with my bike.  Today, under "Sahityiki" on Doordarshan, a discussion on the famous Chhayavadi poetess was also to be telecast.  We had recorded this discussion on September 9.  But, I was not aware of the timing of the broadcast and nothing was told from Doordarshan either.  However, literary friend Mukesh Nautiyal had said to send the YouTube link of the discussion.  I had also told Rajni in the house about the broadcast, but could not tell when it would happen.  I don't even have TV.

Around 2.30 am I left for the office.  There was no oil in the bike, so had to go to the petrol pump.  Then I was also determined to change the petrol pump.  On Kargi road itself, a new pump is open at a distance of half a kilometer from the office, where I intended to go.  Due to the new pump, there is no room for moisture in its petrol tank.  So, from today I started filling petrol from this pump.  I was in the office at three o'clock.  After reaching the office, I sit in the library till about four o'clock.  Gets some rest.  After this the work begins.

Around five o'clock, Mukesh Bhai sent me the YouTube link of the discussion.  When I sent this link to Rajni, she already told me to watch the discussion on YouTube.  Mukesh Bhai had also taken some shots of the discussion from TV, he also sent them to me.  However, I saw the discussion only at night after returning home from the office.  From this I came to know that I am not perfect for TV right now.  There is much scope for improvement.  I wish that the better I can write, the better I can speak.  So!  Efforts are on, success will also come.
But...my concern at the moment is that I am not able to find any time to study at all.  Started reading Nemichandra Shastri's book "Indian Astrology" but am stuck in the beginning itself.  Kunal Narayan Uniyal's novel "Secrets of the Third World".  Here too, it could not go beyond eight or ten pages.  I always regret that in spite of sufficient availability of books, I am not able to fulfill this biggest hobby of life.  By the way, it is certain that once the process of reading regularly starts, then it is not going to stop in any way.

Nowadays the order of writing is also loose.  Since my return from Kotdwar on 26th August, I have been able to write only six posts.  This is the seventh post.  Whereas, it was decided that I would write a post daily.  I don't know why lethargy builds a home in the heart and mind.  Will try not to do this in future.  Readers are also always waiting for new posts.  Let go!  For the time being it is enough night, but it would be more relevant to say that half has passed.  Sleep is also slowly showing its effect.  ...so why not embrace sleep now.  Khuda Hafiz!!

Thursday, 16 September 2021

10-09-2021 (चुनौती पर चुनौती)


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चुनौती पर चुनौती

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दिनेश कुकरेती

समान ने घटाओं की काली चादर ओढी़ हुई है। ऐसा प्रतीत होता है कि घंटे-दो घंटे में बदरा जमकर बरसेंगे। लेकिन, मुझे तो आज हर हाल में बाइक को सर्विस कराने के लिए मैकेनिक के पास ले जाना है। यह चिंता सुबह से ही मुझे खाये जा रही थी। इसलिए स्नान के बाद सबसे पहला काम मैंनै मैकेनिक को फोन करने का ही किया। तब शायद पौने दस बजे का वक्त रहा होगा। हालांकि, मन आशंकित था कि अगर बाइक स्टार्ट न हुई तो...? लेकिन, सुकून वाली बात यह रही कि जैसे-तैसे कर न सिर्फ बाइक स्टार्ट हो गई, बल्कि गैराज तक भी पहुंच गई।

मैं बाइक की टंकी में पानी आने की समस्या का स्थायी समाधान चाहता हूं। इसलिए इस मसले पर काफी देर मेरी मैकेनिक से चर्चा भी हुई। उसका कहना था कि टंकी के ढक्कन पर चमडे़ का कवर लगाने से बारिश का पानी उसमें नहीं घुसेगा। हां! अगर पंप से पेट्रोल के साथ ही पानी आ रहा होगा तो कुछ नहीं किया जा सकता।

"चलिए, कवर को भी आजमा लेते हैं, याद करके चढा़ देना। वैसे मैं आज से ही पेट्रोल पंप को बदल रहा हूं, हो सकता है फिर यह समस्या ही न आए"- मैंने कहा। इसके बाद जब मैंनै पूछा कि "क्या ढाई बजे तक बाइक ठीक हो जाएगी" तो मैकेनिक का सवाल था, "आप आफिस कितने बजे जाते हैं।"

मैंने कहा, "पौने तीन-तीन बजे।"

"भैया कोशिश करता हूं कि तब तक ठीक हो जाए। पहले आपकी गाडी़ ही लगा रहा हूं"- मैकेनिक बोला।

"ठीक है फिर, मैं ढाई बजे के आसपास आपसे फोन करके पूछ लूंगा। देख लेना, अगर नहीं हो पाएगी तो फिर कल ही आऊंगा"- मैंने कहा।













इसके बाद मैं घर लौट आया। हालांकि, मैं जानता था कि आज गाडी़ समय पर ठीक नहीं हो पाएगी और मुझे आफिस पैदल ही जाना पडे़गा। फिर भी मैकेनिक से पूछने में कोई बुराई नहीं है। हुआ भी ऐसा ही। मैकेनिक ढाई बजे तक बाइक को ठीक नही कर पाया और मुझे छतरी के साथ पैदल ही आफिस की राह पकड़नी पडी़। बारिश का कोई भरोसा नहीं है, इसलिए अपने पास वाहन न हो तो छतरी साथ में रखना बेहद जरूरी है। फिर कल रात बारिश ने क्या हाल किया, इसे कैसे भुलाया जा सकता है। तकरीबन आधा घंटा लगा होगा मुझे आफिस पहुंचने में।

पूर्व में भी कई बार ऐसी स्थिति आ चुकी है, जब में पैदल हुआ हूं। लेकिन, तब मनमोहन भाई मुझे घर तक छोड़ने आए हैं, मेरे इन्कार करने के बावजूद। अब मनमोहन भाई के पास भी टाइम नहीं है और मुझे खुद भी ऐसा अच्छा नहीं लगता।

इसी बात को ध्यान में रख आज मैंने ठान लिया था कि चाहे कल की ही तरह बारिश क्यों न हो रही हो, मैं घर आने के लिए किसी की मदद नहीं लूंगा। लाचार-बेबस बने रहना किसी भी हिसाब से उचित नहीं है। अच्छी बात यह कि आज मौसम की भी कृपा दृष्टि बनी रही। बारिश होने का माहौल तो रहा, लेकिन बारिश हुई नहीं। घर लौटने के लिए रात साढे़ दस बजे के आसपास सतीजी और मैं आफिस से साथ ही निकलते हैं। ग्राउंड फ्लोर पर आकर वे मुख्य द्वार से आफिस के बाहर खडी़ अपनी कार की ओर बढ़ जाते हैं और मैं बाइक लेने बेसमैंट में स्थित पार्किंग की ओर। आज मेरे पास बाइक नहीं थी, फिर भी मैं सीधे पार्किंग की ओर ही गया, ताकि सतीजी हकीकत न जान पाएं। वहां से जब मैं सड़क में आया तो सतीजी कार स्टार्ट ही कर रहे थे।

ऐसे में मैं गेट से बाहर निकलकर तेजी से मुख्य सड़क की ओर बढ़ गया। संयोग से स्ट्रीट लाइट बंद थी, इसलिए सतीजी की मुझ पर नजर भी नहीं पडी़। अन्यथा उन्होंने कहना था कि वह मुझे कार से छोड़ आएंगे, पर ऐसे तो मेरा संकल्प बेकार हो जाता। मुख्य सड़क से उन्हें कारगी की तरफ मुड़ना था और मुझे लालपुल की ओर, इसलिए वहां से मैं बेफिक्री से आगे बढा़। आगे से मैंने बिंदाल नदी के किनारे वाला रास्ता पकड़ लिया, जो अंदर ही अंदर जीएमएस रोड पर खुलता है। यह रास्ता मंडी चौक वाले मुख्य मार्ग से थोडा़ शार्टकट भी है। 













...और इस तरह पूरा हुआ मेरा संकल्प। इस समय मैं लाइट आफ करके तकिया के सहारे बिस्तर पर लेटा हुआ हूं और डायरी लिखने में तल्लीन हूं। कल तो बाइक मिल ही जाएगी। लगता है कोई बडी़ खराबी नहीं थी, अन्यथा मैकेनिक का फोन आ चुका होता। ...तो फिर कल मिलते हैं। खुदा हाफिज!!

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Challenge upon challenge

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Dinesh Kukreti

The sky has covered the black sheet of clouds.  It seems that Badra will rain heavily in an hour or two.  But, today I have to take the bike to a mechanic for service.  This worry was eating me since morning.  So the first thing I did after bath was to call the mechanic.  Then it must have been half past ten o'clock.  However, the mind was apprehensive that if the bike does not start then...?  But, the comforting thing was that not only did the bike start, but it also reached the garage.














I want a permanent solution to the problem of getting water in the bike tank.  So this issue was discussed with my mechanic for a long time.  He said that by putting a leather cover on the lid of the tank, rain water would not enter it.  Yes!  If water is coming from the pump along with petrol, then nothing can be done.

"Come on, let's try the cover also, remember to put it on. Well, I am changing the petrol pump from today itself, maybe this problem will not come again" - I said.  After this, when I asked "Will the bike be fixed by 2:30" the mechanic's question was, "What time do you go to the office."

I said, "At half past three."

"Brother, I will try to get well by then. I am putting your car first" - said the mechanic.

"Okay then, I'll call you around 2:30 and ask. Let's see, if I can't, I'll come again tomorrow" - I said.

After that I returned home.  However, I knew that today the train would not be able to recover on time and I would have to walk to the office.  Still there's no harm in asking a mechanic.  It happened exactly the same.  The mechanic could not fix the bike till 2.30 pm and I had to walk to the office with an umbrella.  There is no hope of rain, so if you do not have a vehicle, it is very important to have an umbrella with you.  Then how can one forget what the rain did last night.  It would have taken about half an hour for me to reach the office.












There have been many such situations in the past, when I have walked on foot.  But then Manmohan bhai has come to drop me even at home, despite my refusal.  Now Manmohan bhai also does not have time and I myself do not like it.

Keeping this in mind, today I was determined that even if it is raining like yesterday, I will not take anyone's help to come home.  Being helpless and helpless is not right in any way.  The good thing is that today the weather remained kind.  It was raining, but it did not rain.  Satiji and I leave the office together around 10.30 pm to return home.  Coming to the ground floor, he proceeds from the main gate towards his car parked outside the office and towards the parking lot in the basement to pick up my bike.  Today I did not have a bike, yet I went straight to the parking lot, so that Satiji would not know the reality.  When I came on the road from there, Satiji was just starting the car.

In such a situation, I got out of the gate and moved quickly towards the main road.  Incidentally, the street lights were off, so Satiji did not even notice me.  Otherwise he had said that he would drop me by car, but my resolve would have been in vain.  From the main road they had to turn towards Kargi and me towards Lalpul, so from there I proceeded without any hesitation.  From the front, I took the road on the banks of the river Bindal, which opens inside to GMS Road.  This road is also a little short cut from the main road of Mandi Chowk.  

...And thus fulfilled my resolution.  At this time I am lying on the bed with the help of pillow with the lights off and am engrossed in writing my diary.  Will get the bike tomorrow.  Looks like there wasn't a major problem, otherwise the mechanic's call would have come.  ...then see you tomorrow.  Khuda Hafiz!!

Thursday, 9 September 2021

09-09-2021 (महादेवी पर परिचर्चा में मितरों के साथ)


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महादेवी पर परिचर्चा में मितरों के साथ
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दिनेश कुकरेती
ज नींद अन्य दिनों की अपेक्षा आधा घंटा पहले खुल गई। इस समय का उपयोग मैंने प्रसिद्ध कवियत्री महादेवी वर्मा के साहित्य को जानने में किया। दोपहर साढे़ बारह बजे दूरदर्शन भी जाना है। आज नौ सितंबर है और दूरदर्शन के "साहित्यिकी" कार्यक्रम में महादेवी जी पर परिचर्चा की रिकार्डिंग होनी है। 11 सितंबर को उनकी पुण्यतिथि पर इसका प्रसारण होगा। लेकिन, मेरी चिंता यह कार्यक्रम न होकर बाइक है। दरअसल मेरी बाइक के पेट्रोल टैंक में फिर पानी आ गया है, जिससे उसे स्टार्ट करने में तो दिक्कत आ ही रही है, वह बार-बार रुक भी जा रही है। खासकर, लंबी दूरी तय करने पर। उस पर, लगातार हो रही बारिश ने बुरा हाल किया हुआ है। बावजूद इस सबके दूरदर्शन केंद्र मुझे हर हाल में पहुंचना है, अन्यथा मितरों की नजर में विश्वसनीयता संदिग्ध हो जाएगी।

जल्दी निकलने की उधेड़बुन में आज मैंने दोपहर का भोजन भी नहीं बनाया। सोचा दूरदर्शन की कैंटीन में कर लूंगा या फिर लाइब्रेरियन मित्र दिनेश खत्री से कह दूंगा कि आफिस के कैंटीन वाले से मेरे लिए भी भोजन रखवा देना। हालांकि, बिस्कुट, फल व दलिया का हल्का-फुल्का नाश्ता मैंने कर लिया है। इसी बीच साहित्यकार मित्र मुकेश नौटियाल का फोन आ गया कि रिकार्डिंग के कार्यक्रम में थोडा़ बदलाव किया गया है। हिमालय दिवस की रिकार्डिंग के कारण यह बदलाव हुआ। हमें इस रिकार्डिंग के बाद ही स्टूडियो मिल पाएगा। अब मेरे पास दोपहर एक बजे तक आराम करने के सिवा और कोई विकल्प नहीं है। ठीक एक बजे मैं दूरदर्शन केंद्र के लिए रवाना हुआ। जानता हूं कि बाइक ने बार-बार परेशान करना है, इसलिए पहुंचने में आधा घंटा लगना तय है। हुआ भी ऐसे ही। डेढ़ बज गए दूरदर्शन केंद्र पहुंचते-पहुंचते।















वहां पार्किंग में बाइक खडी़ कर मैं गेट पर रिशेप्सन में आ गया। यहां रजिस्टर में इंट्री करने के बाद मैंने मुकेश भाई को फोन लगाया तो वह बोले, "भाई साहब! 30 सेकेंड में गेट पर पहुंच जाऊगा।" मुकेश भाई के पहुंचने के बाद ही हमने केंद्र की देहरी पार की। अभी परिचर्चा के तीसरे प्रतिभागी सोमवारी लाल उनियाल "प्रदीप" जी नहीं पहुंचे हैं, इसलिए हम वीईपी कक्ष में बैठकर उनका इंतजार करने लगे। पौनै दो बजे के आसपास उनियाल जी दूरदर्शन केंद्र पहुंचे और ठीक दो बजे से रिकार्डिंग शुरू हुई। ढाई बजे जैसे ही हम रिकार्डिंग करके उठे, केंद्र के कार्यक्रम प्रमुख शिवराम सिंह रावत भी स्टूडियो में पहुंच गए। उनसे मेरी वर्ष 2005 के बाद मुलाकात हो रही है। तब वे आकाशवाणी नजीबाबाद में तैनात थे।

रावतजी आत्मीय व्यक्ति हैं, इसलिए अपने स्वभाव के अनुरूप उन्होंने हमसे चाय पीने का आग्रह किया और हम उनके आफिस की ओर चल पडे़। तीन बजने वाले हैं और मुझे आफिस भी पहुंचना है। मुकेश भाई को भी जाने की जल्दी है और चाय आने में अभी देर लगेगी। इसलिए हमने चाय न पी पाने के लिए क्षमा याचना करते हुए रावतजी से जाने की अनुमति मांगी। इस बीच मुकेश भाई ने आग्रह किया कि मैं उन्हें आंचल डेयरी तक छोड़ दूं। वह एलआईसी मुख्यालय में कार्यरत हैं, जो आंचल डेयरी के पास ही है। मैंने जैसे-तैसे बाइक स्टार्ट की और चल पडा़ उन्हें छोड़ने। वहां से मैं धर्मपुर होते हुए जाने के बजाय वापस रिस्पना पुल चौक होते हुए ही पटेल नगर पहुंचा। हालांकि, यह रास्ता बेहद खस्ताहाल है। खासकर कारगी चौक से पटेल नगर तक तो यह मालूम ही नहीं पड़ता कि सड़क पर गड्ढे हैं या गड्ढों में सड़क। 

अभी अपराह्न के सवा तीन बज रहे हैं और मैं आफिस पहुंच चुका हूं। अब मैंने ठान लिया है कि कल सुबह हर हाल में टंकी साफ कराने के लिए बाइक को मैकेनिक के पास ले जाऊंगा। लगे हाथ सर्विस भी हो जाएगी। लेकिन, यहां तो मुश्किलें शाम ढलने का इंतजार कर रही हैं। खैर! आज लंबे अर्से बाद चाय पीने का मन हो रहा है, इसलिए खत्रीजी और मैं आफिस की कैंटीन में आ गए। चाय खत्रीजी ने ही बनाई है, बाकायदा अदरक डालकर। लेकिन, कैंटीन संचालक समीर ने चाय के पैसे नहीं लिए, काफी आग्रह के बावजूद। अब मैं मीटिंग में हूं। इस समय शाम के साढे़ चार बज रहे हैं और बारिश शुरू हो चुकी है। मैं मन ही मन स्वयं को समझा रहा हूं, कोई बात नहीं। एकाध घंटे में तो थम ही जाएगी। मेरे कानों में आवाज गूंज रही है- आमीन!!


























नदी-सी सड़कें, लाचार-सा मैं
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अरे! यह क्या? जैसे-जैसे अंधेरा घिर रहा है बारिश तेज होती जा रही है। बादल सहमा देने वाली गर्जना कर रहे हैं। इतनी तेज बारिश मैंने इस पूरी बरसात नहीं देखी। सड़कें बरसाती नालों का रूप ले चुकी हैं, उस पर बिजली भी गुल है। हालांकि, उम्मीद है कि मेरे आफिस छोड़ने तक थम जाएगी। लेकिन, इस मूसलाधार बारिश ने तो आफिस छोड़ने का टाइम भी बढा़ दिया। रात ठीक सवा ग्यारह बजे मैं घर लौटने का साहस जुटा पाया। जैसे-तैसे बाइक स्टार्ट की और पकड़ ली बारिश में ही घर की राह। मंडी चौक में सड़क पर नदी-सी उफना रही है और मैं सहमा-सा आगे बढ़ रहा हूं। रिलांयस स्टोर के पास अचानक बाइक बंद हो गई। मैं बार-बार स्टार्ट कर रहा हूं और वह हर बार बंद हो जा रही है। अब उसे घर तक धकेल कर ले जाने के सिवा मेरे पास कोई चारा नहीं है। 

सड़क पर घुटनों से ऊपर पानी बह रहा है। बिजली गुल होने के कारण कुछ दिखाई भी नहीं दे रहा। बस! मैं अंदाज से ही आगे बढ़ रहा हूं। बरसाती पहनी हुई है और हेलमेट भी सिर पर ही है, जिससे तन पसीना-पसीना हुआ जा रहा है। पानी में आधा डूबी बाइक को खींचते-खींचते सांसें उखड़-सी रही हैं, लेकिन कुछ किया भी नहीं जा सकता। मैं इजीनियरिंग एनक्लेव के मुहाने पर पहुंच चुका हूं। यहां सड़क का नजारा देख किसी की भी रूह कांप जाए। पानी इतनी फोर्स से बह रहा है कि जरा-सी चूक संकट में डाल सकती है। विपरीत दिशा से छतरी ओढे़ एक व्यक्ति आ रहा है, जो मेरी हालत देख पसीजते हुए बोला, आगे दूसरे मोड़ तक यही हाल है। मैंने "हां" कहा और आगे बढ़ गया। 

अब हर कदम बोझिल लगने लगा है। विपरीत दिशा से फोर्स के साथ आ रहा पानी कदमों को आगे बढ़ने से रोक रहा है। बारिश भी थमने का नाम नहीं ले रही। मैं थककर चूर हो चुका हूं। बस! घर पहुंच जाऊं तो समझूंगा जंग जीत ली। आखिरकार इस नदी को पार कर मैं उस स्थान पर आ पहुंचा हूं, जहां से उतराई शुरू होती है। सो, बाइक को धकेलने के बजाय मैंने उस पर सवार होकर उतरना ही बेहतर समझा। फिर जैसे-तैसे बाइक को घर के आंगन तक पहुंचाया। अब मुझे पानी भी भरना है। बारह बजने में दस मिनट बाकी हैं, इसलिए पानी अभी आ रहा है। 

अब भी दिमाग में बाइक ही घूम रही है। सोच रहा हूं कल अगर ठीक न हुई तो जेब पर अच्छी-खासी चपत लगना तय है। रोटी बनाने का अब वक्त नहीं है, इसलिए क्यों न शार्टकट राह चुनी जाए। भारतीय अंदाज में प्याज-टमाटर व हरी मिर्च के साथ मैगी ज्यादा बेहतर रहेगी। इस सब के बावजूद भोजन करते-करते रात के एक तो बज ही गए। लगता है थकान की वजह से आज नींद अच्छी आएगी। खैर! कल मिलते हैं। शुभ रात्रि!!
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With friends in discussion on Mahadevi
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Dinesh Kukreti
Today sleep woke up half an hour earlier than other days.  I used this time to know the literature of the famous poet Mahadevi Varma.  Doordarshan also has to go at 12.30 in the afternoon.  Today is September 9 and the discussion on Mahadevi ji is to be recorded in Doordarshan's "Sahityiki" program.  It will air on his death anniversary on September 11.  But, my concern is the bike, not the program.  Actually, water has come again in the petrol tank of my bike, due to which it is not only difficult to start it, it is also stopping again and again.  Especially, when traveling long distances.  On top of that, the incessant rain has made things worse.  Despite all this, I have to reach Doordarshan Kendra at any cost, otherwise my credibility will be doubtful in the eyes of my friends.

In the hustle and bustle of leaving early, I didn't even cook lunch today.  Thought I would do it in Doordarshan's canteen or I would ask librarian friend Dinesh Khatri to get food from the office canteen for me too.  However, I have had a light breakfast of biscuits, fruits and porridge.  Meanwhile, literary friend Mukesh Nautiyal got a call that a slight change has been made in the recording program.  This change happened due to the recording of Himalaya Day.  We will get the studio only after this recording.  Now I have no option but to take rest till one o'clock in the afternoon.  At exactly one o'clock I left for Doordarshan Kendra.  I know the bike has caused trouble again and again, so it is bound to take half an hour to reach.  The same thing happened.  It was half past one o'clock while reaching Doordarshan Kendra.

After parking the bike in the parking lot, I came to the reception at the gate.  After entering the register here, I called up Mukesh Bhai and he said, "Brother! I will reach the gate in 30 seconds."  We crossed the threshold of the center only after Mukesh Bhai arrived.  Right now the third participant of the discussion, Somwari Lal Uniyal "Pradeep" ji has not arrived, so we sat in the VEP room and waited for him.  Uniyal ji reached Doordarshan Kendra around 2 o'clock and the recording started at 2 o'clock.  As soon as we got up after recording at 2.30 pm, the program head of the center Shivram Singh Rawat also reached the studio.  I have been meeting him since 2005.  Then he was posted in Akashvani Najibabad.

Rawatji is a kind person, so according to his nature he requested us to have tea and we headed towards his office.  It's three o'clock and I have to reach the office too.  Mukesh bhai is also in a hurry to leave and it will take a while for the tea to arrive.  So we apologized for not being able to drink tea and asked Rawatji for permission to go.  Meanwhile Mukesh Bhai requested that I leave him till Aanchal Dairy.  He is working in LIC Headquarters, which is near Aanchal Dairy.  As soon as I started the bike and started leaving them.  From there, instead of going via Dharampur, I went back to Patel Nagar via Rispana Pul Chowk.  However, this road is very rough.  Especially from Kargi Chowk to Patel Nagar, it is not known whether there are potholes on the road or the road in the potholes.

It is now three o'clock in the afternoon and I have reached the office.  Now I have decided that tomorrow morning I will take the bike to the mechanic to get the tank cleaned.  Service will also be done with your hands.  But, here the difficulties await for the evening.  So!  Today, after a long time, I feel like drinking tea, so Khatriji and I came to the office canteen.  Khatriji has made the tea, by adding ginger properly.  But, the canteen operator Sameer did not take the money for the tea, despite many requests.  Now I am in the meeting.  It is now half past four in the evening and it has started raining.  I am explaining myself in my mind, it doesn't matter.  It will be over in an hour or so.  A voice is ringing in my ears - Amen!!

River-like roads, helpless me
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Hey!  What is this?  As darkness falls, the rain is getting stronger.  The clouds are making a rumbling roar.  I have never seen such heavy rain in this entire rain.  The roads have taken the form of rain drains, there is no electricity on it.  However, hopefully it will be over by the time I leave the office.  But, this torrential rain also extended the time to leave the office.  I was able to muster up the courage to return home at exactly eleven o'clock in the night.  As soon as I started the bike and caught my way home in the rain.  In Mandi Chowk, the road is overflowing like a river and I am moving forward in shock.  The bike suddenly stopped near the Reliance store.  I am starting again and again and it is stopping every time.  Now I have no choice but to push him home.
Water is flowing above the knees on the road.  Can't see anything because of power outage.  Just!  I'm just moving ahead.  The raincoat is worn and the helmet is also on the head, due to which the body is sweating.  While dragging the bike half submerged in the water, the breath is out of breath, but nothing can be done.  I have reached the edge of the engineering enclave.  Seeing the view of the road here, one's soul should tremble.  The water is flowing with such force that the slightest mistake can put you in trouble.  A person wearing an umbrella is coming from the opposite direction, who exasperated seeing my condition and said, This is the situation till the second turn.  I said "yes" and moved on.

Now every step seems to be cumbersome.  The water coming with force from opposite direction is stopping the steps from moving forward.  Even the rain is not taking its name to stop.  I am tired and exhausted.  Just!  When I reach home, I will understand that the battle has been won.  Finally after crossing this river I have come to the place from where the descent begins.  So, instead of pushing the bike, I thought it better to land on it.  Then somehow the bike was taken to the courtyard of the house.  Now I have to fill water too.  There are ten minutes left until twelve o'clock, so the water is coming now.

Even now the bike is spinning in the mind.  I am thinking that if tomorrow does not go well, then there is bound to be a big hit on the pocket.  Now is not the time to make roti, so why not choose the shortcut path.  In Indian style, Maggi will be better with onion-tomato and green chillies.  Despite all this, while having food, it was only one o'clock in the night.  It seems that due to fatigue, sleep will be good today.  So!  See you tomorrow  Good night!!

Tuesday, 7 September 2021

07-09-2021 (साहित्यकार मितरों से मिलने का मौका)











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साहित्यकार मितरों से मिलने का मौका

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दिनेश कुकरेती

मैं दोपहर का भोजन बना रहा था कि इसी बीच फोन की घंटी घनघना उठी। फोन को देखा तो स्क्रीन पर साहित्यिक मित्र मुकेश नौटियाल का नाम डिस्प्ले हो रहा था। हाथ गीले आटे से सने थे, इसलिए फोन उठाया नहीं। सोचा, भोजन करने के बाद वापस काल करूंगा। हालांकि, भोजन करने के बाद यह बात मेरी स्मृति से ओझल हो गई और दसेक मिनट आराम करने की चाह में मैं बिस्तर पर लेट गया। बाहर हल्की बूंदाबांदी चाल रही थी। लग रहा था कि कुछ ही देर में मोटी बारिश आने वाली है। बावजूद इसके उमस बेहाल किए दे रही थी। हालांकि, पंखे की हवा में कुछ क्षण बाद ही मेरी आंख लग गई।

लेटे हुए मुझे बामुश्किल पांच मिनट हुए होंगे कि फोन की घंटी फिर बजने लगी। मुकेश भाई का नाम ही डिस्प्ले हो रहा था। अबकी फोन उठाने में मैंने कोई विलंब नहीं किया। दुआ-सलाम के बाद मुकेश भाई सीधे विषय पर आते हुए बोले- "भाई साहब! नौ तारीख आपको थोडा़ वक्त निकालना है, परिचर्चा के लिए। आपको तो पता ही है कि महादेवी वर्मा का उत्तराखंड से गहरा नाता रहा है। लंबा अर्सा उन्होंने रामगढ़ में गुजारा और साहित्य को नई ऊंचाइयां दीं।"

"बिल्कुल। महादेवी को मैं तो उत्तराखंड की ही कवियत्री मानता हूं"- मैंने कहा।

"इसीलिए तो मैं चाहता हूं कि उनके बहाने हम भी उत्तराखंड में महादेवी की साहित्यिक यात्रा पर कुछ देर चर्चा कर लें। सोमवारी लाल उनियाल जी भी आ रहे हैं, उनसे बात हो गई है। परसों ही रिकार्डिंग भी हो जाएगी"- मुकेश भाई बोले ।

"रिकार्डिंग कहां"- मैंने सवाल किया।

"दूरदर्शन में। 11 सितंबर को महादेवी की पुण्य तिथि है। उसी दिन इसका प्रसारण भी हो जाएगा"- मुकेश भाई ने कहा।

मैंने परिचर्चा का समय पूछा तो मुकेश भाई बोले- "दिन में दो बजे बैठ जाएंगे। आप आफिस किस समय जाते हैं?"

"तीन बजे के आसपास। क्या हम एक बजे से नहीं बैठ सकते। वैसे अगर दस तारीख को बैठते तो ज्यादा बेहतर रहता"- मैंने कहा।

"भाई साहब! दस को तो स्टूडियो खाली नहीं मिल पाएगा, दिन के वक्त। इसलिए नौ तारीख ही रिकार्डिंग के लिए बेहतर रहेगी"- मुकेश भाई ने कहा।

"फिर ठीक है, नौ तारीख को ही बैठ लेते हैं। वैसे थोडा़ टाइम मिल जाता तो परिचर्चा में गंभीरता आ जाती"- मैंने कहा।

"क्या बात कर रहे हो भाई साहब! आप तो जो भी कहेंगे, वह प्रासंगिक ही होगा। बाकी महादेवी और महादेवी सृजन पीठ के बारे में आपको जानकारी है ही। ...तो मैं पक्का समझूं ना। आप दोपहार साढे़ बारह बजे दूरदर्शन पहुंच जाना, वहीं मुलाकात होती है फिर। थोडी़ देर में मैं आपको प्रश्नोत्तरी भी वाट्सएप कर दूंगा"- मुकेश भाई बोले।

इसके बाद हमने एक-दूसरे से विदा ली। अब में आफिस जाने की तैयारी करने लगा। मुकेश भाई ने बडी़ जिम्मेदारी सौंपी थी, इसलिए हल्का-फुल्का तनाव होना स्वाभाविक था। अच्छा भी लग रहा था कि कुछ तो ज्ञानवर्धन होगा और पुराने मितरों से मुलाकात के साथ कुछ नए मित्र भी मिल जाएंगे। इस बीच वाट्सएप पर मुकेश भाई की भेजी प्रश्नोत्तरी भी आ गई। देखकर कुछ संतोष हुआ। सोचा, आफिस जाकर नेट से महादेवी के बारे में जानकारी डाउनलोड कर उसका अध्ययन कर लूंगा। इसी बहाने कुछ ज्ञान भी बढ़ जाएगा।

इस समय मैं महादेवी के बारे में ही अध्ययन कर रहा हूं। सचमुच कितना विराट फलक है उनके साहित्य का। मैं आज तक रामगढ़ तो नहीं गया, लेकिन महादेवी को पढ़कर नैनीताल से 25 किमी दूर रामगढ़ के उमागढ़ नामक गांव की जो तस्वीर मेरे मानस पटल पर उभर रही है, वह इतनी आकर्षक है कि वर्णन करने के लिए शब्द नहीं मिल रहे। रामगढ़ कार्बेट टाइगर रिजर्व से लगा हुआ इलाका है। अधिकांश पर्यटक यहीं से पार्क में प्रवेश करते हैं।

फिर यहां स्थित महादेवी का आवास "मीरा कुटीर" तो साहित्यकारों का तीर्थ है। वर्तमान में इसे "महादेवी सृजन पीठ" के नाम से जाना जाता है। यहां हर वर्ष देशभर के साहित्यकार जुटते हैं और साहित्य की समृद्धि के लिए मंथन करते हैं। खैर! फिलहाल रात काफी हो गई है, इसलिए आगे की चर्चा कल करेंगे। शुभ रात्रि!!

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Opportunity to meet literary friends

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Dinesh Kukreti

I was preparing lunch when the phone rang in the meantime.  When I looked at the phone, the name of literary friend Mukesh Nautiyal was being displayed on the screen.  Hands were covered with wet dough, so did not pick up the phone.  Thought I would call back after having food.  However, after having my meal, this thing disappeared from my memory and I lay on the bed, wanting to rest for ten minutes.  It was raining lightly outside.  It looked like a heavy rain was going to come soon.  Despite this, the heat was making it miserable.  However, after a few moments in the air of the fan, my eye caught.













It must have been barely five minutes when I was lying down that the phone started ringing again.  Only Mukesh Bhai's name was being displayed.  I didn't take any delay in picking up the phone now.  After the blessings, Mukesh Bhai came straight to the subject and said - "Brother! You have to take some time out for discussion on the ninth day. You know that Mahadevi Verma has a deep connection with Uttarakhand. For a long time, he had worked in Ramgarh.  I lived and gave new heights to literature."

"Absolutely. I consider Mahadevi to be a poetess of Uttarakhand"- I said.

"That's why I want us to discuss Mahadevi's literary journey in Uttarakhand on her pretext for sometime.  .

"Where's the recording?" I asked.












"In Doordarshan. September 11 is the death anniversary of Mahadevi. It will also be telecast on the same day"- Mukesh Bhai said.

When I asked the time of discussion, Mukesh Bhai said - "Will sit down at two o'clock in the day. What time do you go to the office?"

"Around three o'clock. Can't we sit from one o'clock. Well, it would have been better if we had sat on the tenth"- I said.

"Bhai sahab! Dus ko toh studio will not be able to get empty, during the day time. So only 9th would be better for recording"- said Mukesh Bhai.

"Okay then, let's sit down on the 9th only. By the way, if we had got some time, the discussion would have become serious" - I said.

"What are you talking about, brother! Whatever you say, it will be relevant. You have information about the rest of Mahadevi and Mahadevi Srijan Peeth. ... So I am sure I am not sure. You reach Doordarshan at 12.30 in the afternoon.  Go, there we meet again. In a while I will also WhatsApp you the quiz"- Mukesh Bhai said.

After that we bid farewell to each other.  Now I started preparing to go to the office.  Mukesh Bhai had entrusted a huge responsibility, so it was natural to have slight tension.  It was also felt that there would be some enlightenment and along with meeting old friends, some new friends would also be found.  Meanwhile, the quiz sent by Mukesh Bhai also arrived on WhatsApp.  There was some satisfaction to see.  Thought I would go to the office and study it after downloading information about Mahadevi from the net.  Some knowledge will also increase on this pretext.

At present I am studying only about Mahadevi.  Really, what a huge pane of his literature.  I have not visited Ramgarh till today, but after reading Mahadevi, the picture of Ramgarh emerging on my mind is so fascinating that words cannot be found to describe it.  Ramgarh is an area adjacent to the Corbett Tiger Reserve.  Most tourists enter the park from here.

Then Mahadevi's residence "Mira Kutir" located here is a pilgrimage for litterateurs.  Presently it is known as "Mahadevi Srijan Peeth".  Every year litterateurs from all over the country gather here and churn for the prosperity of literature.  So!  It has been enough night for the time being, so we will discuss further tomorrow.  Good night!!