google.com, pub-1212002365839162, DIRECT, f08c47fec0942fa0परेशानी वाला सफर----------------------दिनेश कुकरेतीछुट्टी बिताने के बाद कोटद्वार से देहरादून लौटते हुए हमेशा परेशानी ही होती है। मैं लौटते हुए टैक्सी से ही देहरादून आता हूं। दरअसल, बस से पहुंचने में विलंब हो जाता है, इसलिए मैं टैक्सी को ही प्राथमिकता देता हूं।बस धीमे चलने के साथ ही हरिद्वार बस अड्डे में भी रुकती है, जिससे देहरादून पहुंचने में लगभग चार घंटे लग जाते हैं। वैसे रुकती तो हरिद्वार से पहले कांगडी़ के पास टैक्सी भी है। यहां पर चालक व सवारियां चाय वगैरह लेते हैं। बावजूद इसके तीन घंटे में टैक्सी देहरादून पहुंचा देती है। इससे मुझे भी सुस्ताने के लिए लगभग एक घंटे का वक्त मिल जाता है।
आज भी मैं सुबह सवा नौ बजे घर से निकला पडा़ था और साढे़ नौ बजे स्टेशन रोड वाले पेट्रोल पंप में पहुंच गया। नजीबाबाद रोड चौक के अलावा यहां से भी देहरादून के लिए टैक्सी चलती हैं। मुझसे सबसे बडी़ गलती यही हुई कि नजीबाबाद रोड चौक स्थित टैक्सी स्टैंड जाने के बजाय मैं पेट्रोल पंप पर ही रुक गया। दरअसल, यहां टैक्सी चालक "देहरादून-देहरादून" की पुकार लागा रहा था, जिससे मेरे कदम भी यहीं ठिठक गए। हालांकि, टैक्सी समय पर रवाना होगी, इसे लेकर मन बराबर आशंकित था, फिर भी सोचा, क्यों न आज आजमा ही लिया जाए।
आखिरकार वही हुआ, जिसकी आशंका थी। टैक्सी ठीक एक घंटा पैंतालीस मिनट बाद सवा ग्यारह बजे देहरादून के लिए रवाना हुई। लेकिन, यहां सवारी भरने के चक्कर में चालक भी गलती कर बैठा। हुआ यूं कि एक सवारी चालक से पांच मिनट में आने की बात कहकर किसी काम से आसपास ही कहीं चली गई। इसी बीच दो सवारी और आ गईं, जिससे चालक को लगा कि वह सवारी लौट आई है और उसने टैक्सी आगे बढा़ दी। हालांकि, मेरे संज्ञान में यह बात थी, लेकिन मैं कुछ बोला नहीं। अब इसका खामियाजा तो भुगतना था ही। जबकि, बगल वाली सवारी भी बार-बार कह रही थी कि एक सवारी छूट गई, लेकिन उसकी बात को किसी ने कान नहीं दिया।
टैक्सी पुलिस कौडि़या चौकी पार कर 50-60 मीटर ही आगे बढी़ होगी कि तभी चालक के लिए पेट्रोल पंप से अन्य चालक का फोन आ गया, "तुम एक सवारी छोड़कर चले गए हो, जबकि उसका बैग तुम्हारी टैक्सी में ही है।" यह सुनकर चालक ने वहीं से टैक्सी वापस मोड़ दी। कहने लगा, "बैग से कुछ गायब मिला तो खामखां इल्जा़म उस पर आएगा। इसलिए सवारी को लेने के लिए जाने में ही भलाई है।" इससे अपने तो 15-20 मिनट खराब हो ही गए थे। टैक्सी नहर के रास्ते ही आई, फिर भी हरिद्वार पहुंचने में एक बज गए। वहां से देहरादून आईएसबीटी पहुंचने में एक घंटा लगा।
आईएसबीटी से मंडी तक मैं विक्रम (आटो) से आया। तब दोपहर के दो बजकर बीस मिनट हो रहे थे। मंडी से रूम तक का सफर पैदल तय करना था। गर्मी काफी थी और बैग भी भारी था। उस पर आफिस भी समय से पहुंचना था। हालांकि, देर में पहुंचने पर भी कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था, लेकिन मुझे टाइम पर पहुंचना ही पसंद है। इसलिए मेरा चिंतित होना स्वाभाविक था। यही वजह रही कि भारी गर्मी के बावजूद मैं बीस मिनट में रूम में पहुंच गया।
पौने तीन बज चुके थे, लिहाजा रूम में मैं महज पांच मिनट रुका, जबकि कोटद्वार से लौटने पर अमूमन मैं आधा घंटा तो आराम करता ही हूं। घर से फ्रूट्स लाए होते हैं, इसलिए हल्की-फुल्की पेट पूजा भी हो जाती है। आज भी बिस्कुट, केला और सेब मेरे बैग में थे, लेकिन उन्हें भी बैग से बाहर नहीं निकाल पाया। अब रात को लौटने के बाद फुर्सत से निकालूंगा। रजनी ने रात के लिए रोटी-सब्जी भी पैक कर दी थी। इसलिए आज भोजन बनाने का टेंशन भी नहीं है। आफिस आने से पहले मैंने सब्जी को बैग से बाहर निकाल दिया था। रोटी बैग में ही हैं।
सुबह के लिए भी मैंने मंडी से टमाटर, भिंडी और प्याज ले लिया है। अब रूम में लौटकर सबसे पहले पीने और नहाने के लिए पानी भरना है। थोडा़-बहुत बर्तनों की सफाई भी करूंगा। पांच-छह दिन की छुट्टी में बर्तनों पर धूल जम ही जाती है। सोते हुए मैं हमेशा आयुर्वेदिक चाय पीता हूं, जाहिर है आज भी पिऊंगा। फिलहाल तो आफिस में हूं। आज सुबह से कुछ नहीं खाया है, इसलिए भूख लगना लाजिमी है। खैर! जीवन में यह सब तो चलता रहता है और इसमें आनंद भी आता है। आप क्या सोचते हैं, मैं नहीं जानता, लेकिन यकीन जानिए मुझे तो संघर्ष में ही सुकून मिलता है।
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Dinesh Kukreti
There is always a problem while returning from Kotdwar to Dehradun after a holiday. I return to Dehradun by taxi only. Actually, there is a delay in reaching by bus, so I prefer taxi. The bus travels slowly and stops at Haridwar bus stand, which takes about four hours to reach Dehradun. By the way, Kangri also has a taxi before Haridwar. Here the driver and passengers take tea etc. Despite this, the taxi reaches Dehradun in three hours. This also gives me about an hour to relax.
Even today, I had left the house at 9.15 in the morning and reached the petrol pump on Station Road at 9.30. Apart from Najibabad Road Chowk, taxis also run from here to Dehradun. The biggest mistake I made was that instead of going to the taxi stand at Najibabad Road Chowk, I stopped at the petrol pump. Actually, here the taxi driver was calling "Dehradun-Dehradun", due to which my steps also stopped here. Although the mind was equally apprehensive about the taxi leaving on time, still thought, why not try it today.
In the end, what was expected happened. The taxi left for Dehradun exactly one hour and forty-five minutes later at 11:15. But, in the process of filling the ride here, the driver also made a mistake. It happened that a passenger went somewhere near for some work after asking the driver to come in five minutes. Meanwhile, two more rides came, due to which the driver thought that the ride had returned and he pushed the taxi forward. Although this was in my knowledge, but I did not say anything. Now he had to bear the consequences. Whereas, the adjacent ride was also repeatedly saying that a ride was missed, but no one listened to his words.
The taxi police must have crossed the Kaudia post and moved only 50-60 meters when the other driver got a call from the petrol pump for the driver, "You have left a ride, while his bag is in your taxi." Hearing this, the driver diverted the taxi from there. He said, "If anything is found missing from the bag, then the blame will come on him. So it is better to go to get the ride." It had ruined my 15-20 minutes. The taxi came only via the canal, yet it took one o'clock to reach Haridwar. From there it took an hour to reach Dehradun ISBT.
From ISBT to Mandi I came by Vikram (auto). It was then twenty minutes past two in the afternoon. The journey from Mandi to Room had to be covered on foot. It was hot and the bag was too heavy. He also had to reach the office on time. Although arriving late was not going to make any difference, but I like to reach on time. So it was natural for me to be worried. This was the reason that despite the heavy heat, I reached the room in twenty minutes.
It was quarter past three, so I stayed in the room for only five minutes, whereas on returning from Kotdwar I usually rest for half an hour. Fruits are brought from home, so a light stomach worship is also done. Even today biscuits, banana and apple were in my bag, but I could not get them out of the bag. Now after returning at night, I will take it out at leisure. Rajni had also packed roti and vegetables for the night. So today there is no tension to prepare food. I had taken the vegetable out of the bag before coming to the office. The bread is in the bag itself.
For morning also I have taken tomato, okra and onion from the market. Now after returning to the room, the first thing to do is to fill water for drinking and bathing. I will also clean the utensils a few times. Dust accumulates on the utensils during the leave of five-six days. I always drink ayurvedic tea while sleeping, obviously will still drink it today. At the moment I am in the office. Haven't eaten anything since this morning, so feeling hungry is bound to happen. So! All this goes on in life and there is joy in it. I don't know what you think, but know for sure, I find peace in struggle only.