Thursday, 26 August 2021

26-08-2021 (परेशानी वाला सफर)











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परेशानी वाला सफर
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दिनेश कुकरेती
छुट्टी बिताने के बाद कोटद्वार से देहरादून लौटते हुए हमेशा परेशानी ही होती है। मैं लौटते हुए टैक्सी से ही देहरादून आता हूं। दरअसल, बस से पहुंचने में विलंब हो जाता है, इसलिए मैं टैक्सी को ही प्राथमिकता देता हूं।बस धीमे चलने के साथ ही हरिद्वार बस अड्डे में भी रुकती है, जिससे देहरादून पहुंचने में लगभग चार घंटे लग जाते हैं। वैसे रुकती तो हरिद्वार से पहले कांगडी़ के पास टैक्सी भी है। यहां पर चालक व सवारियां चाय वगैरह लेते हैं। बावजूद इसके तीन घंटे में टैक्सी देहरादून पहुंचा देती है। इससे मुझे भी सुस्ताने के लिए लगभग एक घंटे का वक्त मिल जाता है।

आज भी मैं सुबह सवा नौ बजे घर से निकला पडा़ था और साढे़ नौ बजे स्टेशन रोड वाले पेट्रोल पंप में पहुंच गया। नजीबाबाद रोड चौक के अलावा यहां से भी देहरादून के लिए टैक्सी चलती हैं। मुझसे सबसे बडी़ गलती यही हुई कि नजीबाबाद रोड चौक स्थित टैक्सी स्टैंड जाने के बजाय मैं पेट्रोल पंप पर ही रुक गया। दरअसल, यहां टैक्सी चालक "देहरादून-देहरादून" की पुकार लागा रहा था, जिससे मेरे कदम भी यहीं ठिठक गए। हालांकि, टैक्सी समय पर रवाना होगी, इसे लेकर मन बराबर आशंकित था, फिर भी सोचा, क्यों न आज आजमा ही लिया जाए।

आखिरकार वही हुआ, जिसकी आशंका थी। टैक्सी ठीक एक घंटा पैंतालीस मिनट बाद सवा ग्यारह बजे देहरादून के लिए रवाना हुई। लेकिन, यहां सवारी भरने के चक्कर में चालक भी गलती कर बैठा। हुआ यूं कि एक सवारी चालक से पांच मिनट में आने की बात कहकर किसी काम से आसपास ही कहीं चली गई। इसी बीच दो सवारी और आ गईं, जिससे चालक को लगा कि वह सवारी लौट आई है और उसने टैक्सी आगे बढा़ दी। हालांकि, मेरे संज्ञान में यह बात थी, लेकिन मैं कुछ बोला नहीं। अब इसका खामियाजा तो भुगतना था ही। जबकि, बगल वाली सवारी भी बार-बार कह रही थी कि एक सवारी छूट गई, लेकिन उसकी बात को किसी ने कान नहीं दिया।

टैक्सी पुलिस कौडि़या चौकी पार कर 50-60 मीटर ही आगे बढी़ होगी कि तभी चालक के लिए पेट्रोल पंप से अन्य चालक का फोन आ गया, "तुम एक सवारी छोड़कर चले गए हो, जबकि उसका बैग तुम्हारी टैक्सी में ही है।" यह सुनकर चालक ने वहीं से टैक्सी वापस मोड़ दी। कहने लगा, "बैग से कुछ गायब मिला तो खामखां इल्जा़म उस पर आएगा। इसलिए सवारी को लेने के लिए जाने में ही भलाई है।" इससे अपने तो 15-20 मिनट खराब हो ही गए थे। टैक्सी नहर के रास्ते ही आई, फिर भी हरिद्वार पहुंचने में एक बज गए। वहां से देहरादून आईएसबीटी पहुंचने में एक घंटा लगा।

आईएसबीटी से मंडी तक मैं विक्रम (आटो) से आया। तब दोपहर के दो बजकर बीस मिनट हो रहे थे। मंडी से रूम तक का सफर पैदल तय करना था। गर्मी काफी थी और बैग भी भारी था। उस पर आफिस भी समय से पहुंचना था। हालांकि, देर में पहुंचने पर भी कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था, लेकिन मुझे टाइम पर पहुंचना ही पसंद है। इसलिए मेरा चिंतित होना स्वाभाविक था। यही वजह रही कि भारी गर्मी के बावजूद मैं बीस मिनट में रूम में पहुंच गया। 

पौने तीन बज चुके थे, लिहाजा रूम में मैं महज पांच मिनट रुका, जबकि कोटद्वार से लौटने पर अमूमन मैं आधा घंटा तो आराम करता ही हूं। घर से फ्रूट्स लाए होते हैं, इसलिए हल्की-फुल्की पेट पूजा भी हो जाती है। आज भी बिस्कुट, केला और सेब मेरे बैग में थे, लेकिन उन्हें भी बैग से बाहर नहीं निकाल पाया। अब रात को लौटने के बाद फुर्सत से निकालूंगा। रजनी ने रात के लिए रोटी-सब्जी भी पैक कर दी थी। इसलिए आज भोजन बनाने का टेंशन भी नहीं है। आफिस आने से पहले मैंने सब्जी को बैग से बाहर निकाल दिया था। रोटी बैग में ही हैं।

सुबह के लिए भी मैंने मंडी से टमाटर, भिंडी और प्याज ले लिया है। अब रूम में लौटकर सबसे पहले पीने और नहाने के लिए पानी भरना है। थोडा़-बहुत बर्तनों की सफाई भी करूंगा। पांच-छह दिन की छुट्टी में बर्तनों पर धूल जम ही जाती है। सोते हुए मैं हमेशा आयुर्वेदिक चाय पीता हूं, जाहिर है आज भी पिऊंगा। फिलहाल तो आफिस में हूं। आज सुबह से कुछ नहीं खाया है, इसलिए भूख लगना लाजिमी है। खैर! जीवन में यह सब तो चलता रहता है और इसमें आनंद भी आता है। आप क्या सोचते हैं, मैं नहीं जानता, लेकिन यकीन जानिए मुझे तो संघर्ष में ही सुकून मिलता है।

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Troublesome journey

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Dinesh Kukreti

There is always a problem while returning from Kotdwar to Dehradun after a holiday.  I return to Dehradun by taxi only.  Actually, there is a delay in reaching by bus, so I prefer taxi.  The bus travels slowly and stops at Haridwar bus stand, which takes about four hours to reach Dehradun.  By the way, Kangri also has a taxi before Haridwar.  Here the driver and passengers take tea etc.  Despite this, the taxi reaches Dehradun in three hours.  This also gives me about an hour to relax.

Even today, I had left the house at 9.15 in the morning and reached the petrol pump on Station Road at 9.30.  Apart from Najibabad Road Chowk, taxis also run from here to Dehradun.  The biggest mistake I made was that instead of going to the taxi stand at Najibabad Road Chowk, I stopped at the petrol pump.  Actually, here the taxi driver was calling "Dehradun-Dehradun", due to which my steps also stopped here.  Although the mind was equally apprehensive about the taxi leaving on time, still thought, why not try it today.

In the end, what was expected happened.  The taxi left for Dehradun exactly one hour and forty-five minutes later at 11:15.  But, in the process of filling the ride here, the driver also made a mistake.  It happened that a passenger went somewhere near for some work after asking the driver to come in five minutes.  Meanwhile, two more rides came, due to which the driver thought that the ride had returned and he pushed the taxi forward.  Although this was in my knowledge, but I did not say anything.  Now he had to bear the consequences.  Whereas, the adjacent ride was also repeatedly saying that a ride was missed, but no one listened to his words.

The taxi police must have crossed the Kaudia post and moved only 50-60 meters when the other driver got a call from the petrol pump for the driver, "You have left a ride, while his bag is in your taxi."  Hearing this, the driver diverted the taxi from there.  He said, "If anything is found missing from the bag, then the blame will come on him. So it is better to go to get the ride."  It had ruined my 15-20 minutes.  The taxi came only via the canal, yet it took one o'clock to reach Haridwar.  From there it took an hour to reach Dehradun ISBT.

From ISBT to Mandi I came by Vikram (auto).  It was then twenty minutes past two in the afternoon.  The journey from Mandi to Room had to be covered on foot.  It was hot and the bag was too heavy.  He also had to reach the office on time.  Although arriving late was not going to make any difference, but I like to reach on time.  So it was natural for me to be worried.  This was the reason that despite the heavy heat, I reached the room in twenty minutes.  

It was quarter past three, so I stayed in the room for only five minutes, whereas on returning from Kotdwar I usually rest for half an hour.  Fruits are brought from home, so a light stomach worship is also done.  Even today biscuits, banana and apple were in my bag, but I could not get them out of the bag.  Now after returning at night, I will take it out at leisure.  Rajni had also packed roti and vegetables for the night.  So today there is no tension to prepare food.  I had taken the vegetable out of the bag before coming to the office.  The bread is in the bag itself.

For morning also I have taken tomato, okra and onion from the market.  Now after returning to the room, the first thing to do is to fill water for drinking and bathing.  I will also clean the utensils a few times.  Dust accumulates on the utensils during the leave of five-six days.  I always drink ayurvedic tea while sleeping, obviously will still drink it today.  At the moment I am in the office.  Haven't eaten anything since this morning, so feeling hungry is bound to happen.  So!  All this goes on in life and there is joy in it.  I don't know what you think, but know for sure, I find peace in struggle only.


Monday, 23 August 2021

23-08-2021 (आत्मीय मित्र से मुलाकात)


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आत्मीय मित्र से मुलाकात

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दिनेश कुकरेती

ज पूर्वाह्न मैं पत्रकार मित्र अजय खंतवाल से मिलने उसके आफिस पहुंचा तो संयोग से वहां पत्रकारिता के शुरुआती दौर के साथी गणेश काला भी मौजूद थे। कालाजी से मैं लंबे अर्से बाद मिल रहा था। पहले कोरोना काल के आखिरी दौर में उनसे देहरादून में मुलाकात हुई थी। उसके बाद अब मिलना हो रहा था। कालाजी से मेरा परिचय संभवतः 1994-95 से है। बाद में कई साल हमने साथ-साथ एक ही अखबार में काम किया। अब भी बीते आठ-नौ साल से हम एक ही अखबार से जुडे़ हैं। बस! फर्क इतना है कि मैं पूर्णकालिक पत्रकार हूं और कालाजी पार्ट टाइम। वे बडे़ मिलनसार एवं आत्मीय व्यक्ति हैं। बनाव-दिखाव से हमेशा दूर रहने वाले, इसलिए सबसे सरलता एवं सहजतापूर्वक घुल-मिल जाते हैं।

मेरी दोस्ती भी कालाजी से उनकी इन्हीं खूबियों के कारण है। खुशकिस्मती से बहुत हद तक हममें वैचारिक समानता भी है, जिस कारण जनपक्ष से हमारा हमेशा जुडा़व रहा है। इसका एक फायदा यह भी है कि हमारी मुलाकात जब भी होती है, उत्साहवर्धक ही रहती है। आज भी यही उत्साह हमारे मनोभाव में था। खास बात यह कि कालाजी अब हीलर बन गए हैं। उन्होंने डिस्टेंस हीलिंग में विशेषज्ञता हासिल की है और बीते दो-तीन साल से इसके जरिये लोगों का उपचार कर रहे हैं। उपचार की यह  आध्यात्मिक पद्धति है और इसके जरिये शरीर के सात चक्रों (ऊर्जा के सात केंद्रों) को सक्रिय किया जाता है। डिस्टेंस हीलिंग से दूर बैठकर ही बीमार व्यक्ति का उपचार किया जा सकता है। बस! इसमें बीमार व्यक्ति को हीलर और स्वयं पर अटूट विश्वास होना चाहिए। जापान में तो उपचार संबंधी यह चिकित्सा पद्धति खासी प्रचलित है। इसे वहां रेकी कहा जाता है।

कालाजी ने कांसखेत-पौडी़ मार्ग पर अदवाणी कस्बे में घने जंगल के किनारे अपना हीलिंग सेंटर भी बनाया हुआ है। वहां विदेशी लोग भी हीलिंग के लिए आते हैं। यह ऐसा मनमोहक एवं खूबसूरत स्थान है, जहां प्रकृति का सानिध्य पाकर छोटी-मोटी बीमारी तो वैसे ही कट जाती है। कालाजी ने बताया कि अब वे गढ़वाल के प्रवेशद्वार कोटद्वार में भी संपर्क केंद्र शुरू कर रहे हैं। फिलहाल वे अपने दुर्गापुर स्थित आवास पर भी हीलिंग करते हैं। वहां सुबह से ही लोगों का तांता लगा रहता है। उनका कहना था कि मैं भी हीलिंग सीख सकता हूं, क्योंकि मेरी अध्यात्म पर पकड़ भी है।












उन्होंने यह निष्कर्ष कैसे निकाला, यह तो मुझे नहीं मालूम, लेकिन इतना सच है कि अध्यात्म और दर्शन हमेशा ही मेरे प्रिय विषय रहे हैं। हालांकि, यह भी सच है कि मैं किसी भी कार्य को विज्ञान की कसौटी पर तौलकर ही करता हूं और दर्शन व अध्यात्म भी योग-प्राणायाम की तरह विज्ञान का ही एक रूप हैं। बहरहाल! मुझे कालाजी का सुझाव पसंद आया। मैं अभी दो-तीन दिन और कोटद्वार में ही हूं, इसलिए कालाजी ने कल-परसों पूर्वाह्न में एक-एक घंटा देने को कहा है। वे चाहते हैं कि मैं डिस्टेंस हीलिंग के मूल को समझ जाऊं, फिर आगे समझने में आसानी रहेगी।

फिलहाल तो सोने का वक्त हो गया है, लेकिन इतना तय है कि कल से कालाजी के सुझाव पर अमल अवश्य करूंगा। इस भौतिकवादी दुनिया में शांति से जीवन जीने का यही सबसे बेहतर तरीका है। भविष्य में मुझे स्वतंत्र रूप से लेखन कार्य करना है, तब निश्चित रूप से यह ज्ञान बहुत काम आएगा। सोच रहा हूं कि कालाजी कोटद्वार में केंद्र शुरू कर दें तो उनसे विधिवत हीलिंग सीखना शुरू कर दूंगा। ...तो चलिए! कल मिलते हैं, नई ऊर्जा के साथ, एक नई सुबह के स्वागत को।

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Meeting a close friend

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Dinesh Kukreti

This morning, when I reached the office of journalist friend Ajay Khantwal, incidentally Ganesh Kala, an early journalist friend, was also present there.  I was meeting Kalaji after a long time.  He first met him in Dehradun during the last phase of the Corona period.  After that it was happening now.  My acquaintance with Kalaji is probably from 1994-95.  After many years we worked together in the same newspaper.  Even now, for the last eight-nine years, we are associated with the same newspaper.  Just!  The difference is that I am a full time journalist and Kalaji part time.  He is a very friendly and kind person.  Those who are always away from the pretentiousness, therefore get along with the most easily and effortlessly.

My friendship with Kalaji is also because of his qualities.  Fortunately, we also have ideological similarity to a great extent, due to which we have always been associated with the people's side.  One advantage of this is that whenever we meet, it remains encouraging.  Even today the same enthusiasm was in our mood.  The special thing is that Kalaji has now become a healer.  He has specialized in Distance Healing and has been treating people through it for the last two-three years.  This is a spiritual method of healing and through this the seven chakras (seven centers of energy) of the body are activated.  A sick person can be treated only by sitting away from distance healing.  Just!  In this the sick person should have unwavering faith in the healer and himself.  In Japan, this healing method is very popular.  It's called Reiki there.

Kalaji has also built his own healing center on the edge of a dense forest in Advani town on the Kanskhet-Pauri road.  Foreign people also come there for healing.  This is such a charming and beautiful place, where minor diseases get cut just by getting the company of nature.  Kalaji told that now they are starting a contact center at Kotdwar, the gateway of Garhwal.  At present, he also does healing at his Durgapur residence.  There is an influx of people since morning.  He said that I can also learn healing, because I also have a hold on spirituality.

How he came to this conclusion, I do not know, but it is so true that spirituality and philosophy have always been my favorite subjects.  However, it is also true that I do any work by weighing it on the basis of science and philosophy and spirituality are also a form of science like yoga-pranayama.  However!  I liked Kalaji's suggestion.  I am only in Kotdwar for two-three days now, so Kalaji has asked to give one hour each tomorrow morning.  They want me to understand the basics of distance healing, then it will be easier to understand further.













For the time being it is time to sleep, but it is certain that from tomorrow onwards, I will definitely implement Kalaji's suggestion.  This is the best way to live peacefully in this materialistic world.  In future I have to do writing work independently, then surely this knowledge will be very useful.  I am thinking that if Kalaji starts a center in Kotdwar, then I will start learning healing from them.  ...then let's go!  See you tomorrow, with new energy, to welcome a new dawn.

Sunday, 22 August 2021

22-08-2021 (रक्षाबंधन)

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क्षाबं
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दिनेश कुकरेती
त्योहार कोई भी हो, वह उल्लास का ही पूरक होता है। इस दौरान वातावरण भी स्वाभाविक रूप से उल्लासित हो जाता है और साकार हो उठती हैं परंपराएं। रक्षाबंधन पर्व होने के कारण आज ऐसा ही दिन है। हम सभी अपने-अपने स्तर से इसकी तैयारियों में जुटे हैं। रजनी सुबह से ही किचन में है। स्वयं के साथ मेहमानों के लिए भी खाना बनाना है। उस पर पकौड़ी बनाने की जिम्मेदारी अलग से है। प्रभा, मीनू व रीनू को घर के लिए तो देनी ही हैं, मेरे ससुराल भी ले जानी हैं। रजनी के हाथ की बनी पकौडी़ वहां भी सबको पसंद हैं। 
अन्य दिनों की अपेक्षा आज नाश्ता भी जल्दी हो गया। त्योहार होने के कारण बच्चों पर पढा़ई का दबाव भी नहीं है, इसलिए वे काफी खुश हैं। इसकी एक वजह यह भी है कि आज उनकी पसंदीदा डिश चाऊमीन भी बननी है। अपन को तो साधारण और हल्का भोजन ही पसंद है, पर बच्चों की पसंद का ध्यान तो रखना ही पड़ता है। खैर! इसी गहमा-गहमी के बीच प्रभा व दोनों बच्चे भी पहुंच गए और कुछ ही देर में मीनू व रीनू भी। भोजन भी तैयार हो चुका है, पर बच्चों की प्राथमिकता तो चाऊमीन है। इसके लिए वे कुछ देर के लिए भूख पर भी लगाम लगा सकते हैं और ऐसा ही उन्होंने किया भी।

रजनी ने मुझे भी चाऊमीन देनी चाही, लेकिन मैं दाल-भात की कीमत पर चाऊमीन नहीं खाना चाहता। बच्चों के साथ थोडा़-बहुत मिठाई पहले ही ले ली है, इसलिए पकौडी़ खाने का भी मन नहीं हो रहा। खैर! धीरे-धीरे सभी भोजन कर चुके हैं और अब चाय की चुस्कियां ली जा रही हैं। प्रभा, मीनू व रीनू को भी अब अपने-अपने घर लौटना है। इसके बाद ही रजनी अपने मायके जा पाएगी। वहां भी सभी इंतजार कर रहे होंगे। आज शाम का भोजन हमारा वहीं होना है। सामान्य दिनों में भी जब हम सपरिवार वहां जाते हैं तो रात को भोजन करके ही घर लौटते हैं।

मेरी ससुराल यानी रजनी का मायका मेरे घर से लगभग एक किमी के फासले पर खोह नदी के पार रतनपुर में है। वहां पहुंचने में हमें बामुश्किल 15 मिनट का समय लगता है। इसलिए वहां जाने के लिए हमें कोई विशेष प्लान नहीं बनाना पड़ता। रजनी का तो बीच-बीच में जाना होता रहता है। मेरे ससुराल में कोई भी काम हो, रजनी की सलाह जरूर ली जाती है। खैर! कामकाज से अब जाकर फुर्सत मिल पाई रजनी को। प्रभा, मीनू व रीनू भी जा चुकी हैं और अब हम भी रतनपुर जाने की तैयारी में हैं। 

इस समय अपराह्न के तीन बजे हैं। दस मिनट पहले भी हमारे कदम मेरे ससुराल में पडे़। छोटी साली का परिवार तो हमसे काफी पहले पहुंच गया था। हालांकि, वो बडी़ बिटिया को लेकर नहीं आई। पल्लवी भी घर पर ही है। भीड़ में बच्चे भी खुश हैं। चाय की चुस्कियों के साथ पकौडि़यों का भी आनंद लिया जा रहा है। हालांकि, मेरी इच्छा अब भी नहीं हो रही। औरों को देखकर ही पेट भर गया। चलिए, थोडा़ आराम ही कर लिया जाए। इसी बीच, ससुरजी ने रजनी से पूछा कि क्या त्योहार के दिन चिकन खाया जा सकता है। रजनी ने यही बात मुझसे पूछी तो मैंने कहा, इसमें कोई दिक्कत नहीं। अब तो सावन भी विदा हो चुका है।

मेरा जवाब सुनते ही ससुरजी बिना विलंब के चिकन लेने चले गए, मानो उन्हें मेरे मुंह से हां सुनने का ही इंतजार था। दरअसल, जब भी मैं ससुराल में होता हूं, चिकन या मटन आवश्य बनता है। कभी-कभार मछली भी बन जाती है। मेरे कोटद्वार पहुंचते ही ससुरजी निमंत्रण दे देते हैं कि फलां दिन भोजन ससुराल में ही होगा। छोटी बिटिया को चिकन, मटन, मछली खूब पसंद है, खासकर चिकन। उसे तो इंतजार ही रहता है कि नानाजी कब खाने के लिए बुलाएंगे। इसके विपरीत बडी़ बिटिया को नानवेज बिल्कुल पसंद नहीं। वह तो अंडे भी नहीं खाती। 

















रही मेरी बात, तो मेरा किसी चीज से परहेज नहीं है और न मैं किसी व्यंजन विशेष के लिए लालायित रहता। जो मिल जाए, उसी में खुश। बहरहाल! खाना लग चुका है, लेकिन मुझे आज भूख नहीं है। फिर भी भोजन का निरादर नहीं किया जाना चाहिए। खासकर तब, जब कोई प्रेम से खिला रहा हो। बावजूद इसके मैं तीन रोटी से ज्यादा नहीं खा पाया। चिकन भी थोडा़ बच गया। खाने में जबर्दस्ती करना स्वास्थ्य के लिए लाभकारी नहीं है, इसलिए मैंने छोड़ देने में ही भलाई समझी।

भोजन करने के दसेक मिनट बैठने के बाद हम भी घर के लिए निकल पडे़। साली साहिबा तो परिवार सहित पहले ही चली गई थी, बिना भोजन किए। उसके घर में किसी के जन्मदिन की पार्टी थी। अन्यथा उन्होंने भी भोजन करके ही जाना था। खैर! टहलते-टहलते बीस-पच्चीस मिनट में हम भी घर पहुंच गए। सच कहूं तो यादगार रही आज की शाम। इस दौरान सभी ने फोटो भी खिंचवाए। हंसी-ठिठोली भी होती रही। मेरी तो कामना है कि सबके जीवन में हमेशा ऐसे ही हंसी-खुशी का माहौल रहे। आमीन!
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Raksha Bandhan
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Dinesh Kukreti
Whatever be the festival, it complements the gaiety.  During this, the atmosphere also naturally becomes cheerful and traditions come true.  Today is such a day as it is the festival of Rakshabandhan.  We are all busy preparing for it from our own level.  Rajni has been in the kitchen since morning.  Have to cook food for yourself as well as for the guests.  The responsibility of making dumplings is on him separately.  Prabha, Meenu and Reenu have to be given for the house, they have to be taken to my in-laws' house too.  Everyone likes Rajni's hand made dumplings there too.
Breakfast was also early today as compared to other days.  Due to the festival, there is no pressure of studies on the children, so they are very happy.  One of the reasons for this is that today his favorite dish Chowmein also has to be made.  I like simple and light food, but one has to take care of the children's preferences.  So!  In the midst of this hustle and bustle, Prabha and both the children also reached and in no time Meenu and Reenu too.  Food has also been prepared, but the children's priority is chowmein.  For this they can also control hunger for some time and so did they.

Rajni also wanted to give me chowmein, but I do not want to eat chowmein at the cost of dal and rice.  I have already taken some sweets with the children, so I do not even feel like eating dumplings.  So!  Slowly everyone has had their food and now sips of tea are being taken.  Prabha, Meenu and Reenu also have to return to their respective homes.  Only then will Rajni be able to go to her maternal home.  Everyone will be waiting there too.  We have to have our dinner there tonight.  Even on normal days, when we go there with family, we return home after having dinner at night.

My Sasuraal i.e. Rajni's mayka is in Ratanpur, across the Khoh river, at a distance of about one kilometer from my house.  It hardly takes us 15 minutes to reach there.  So we don't have to make any special plan to go there.  Rajni keeps on visiting every now and then.  Whatever work is done in my in-laws' house, Rajni's advice is definitely taken.  So!  Rajni was able to get free time after going from work.  Prabha, Meenu and Reenu have also gone and now we are also preparing to go to Ratanpur.
It is currently three o'clock in the afternoon.  Even ten minutes ago our feet fell at my in-laws' house.  The younger sister-in-law's family had arrived long before us.  However, she did not bring the elder daughter.  Pallavi is also at home.  Children are also happy in the crowd.  Dumplings are also being enjoyed with sips of tea.  However, my wish is still not happening.  Seeing others, my stomach was full.  Come on, let's just get some rest.  Meanwhile, the father-in-law asks Rajni if ​​chicken can be eaten on the festival day.  When Rajni asked me the same thing, I said, there is no problem in it.  Now Savan has also gone.

On hearing my answer, father-in-law went to get the chicken without delay.  Actually, whenever I am at in-laws' house, chicken or mutton is a must.  Sometimes it turns into a fish.  As soon as I reach Kotdwar, my father-in-law gives an invitation that the food will be served in the in-laws' house for such a day.  The little girl loves chicken, mutton, fish, especially chicken.  He just waits that when Nanaji will call for dinner.  On the contrary, the elder daughter does not like non-veg at all.  She doesn't even eat eggs.

My point is, I am not averse to anything nor do I crave for any particular dish.  He is happy with whatever he gets.  However!  Food has been served, but I am not hungry today.  Yet food should not be disrespected.  Especially when one is feeding with love.  Despite this, I could not eat more than three rotis.  The chicken also survived a little.  Forcing me to eat is not good for my health, so I thought it better to give up.
After sitting for ten minutes after eating, we also left for home.  Sister-in-law Sahiba had already left with the family, without taking food.  Someone had a birthday party at his house.  Otherwise he too had to go after eating.  So!  We also reached home in twenty-five minutes while walking.  To be honest, it was a memorable evening.  During this, everyone also took photos.  There was laughter and laughter too.  I wish that there should always be such an atmosphere of laughter and happiness in life.  Amen!

Saturday, 21 August 2021

21-08-2021 (रक्षा बंधन को लेकर उत्साह)

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रक्षा बंधन को लेकर उत्साह

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दिनेश कुकरेती

क्षा बंधन के पर्व को लेकर हर ओर उत्साह का माहौल है। हालांकि, समय के साथ अन्य पर्व-त्योहारों की तरह रक्षा बंधन के पर्व पर भी बाजार का मुलम्मा चढ़ चुका है, बावजूद इसके मेरी कोशिश हमेशा यही रही है कि आत्मीय परांपराओं को बचाकर रखा जाए। इसके लिए जितना बन पड़ता है, अपनी ओर से मैं कोशिश करता भी हूं। रक्षा बंधन हमेशा मेरा पसंदीदा पर्व रहा है। कारण, इस दिन एक नया माहौल मिलता है, आत्मीयजनों से मेल-मिलाप होता है और इस सबसे बढ़कर सब एक साथ बैठकर भोजन करते हैं। यह रिश्तों की मजबूती का भी पर्व है। हालांकि, समय के साथ इससे तरह-तरह के उपहार आदि भी जुड़ गए हैं, लेकिन स्नेह और आत्मीयता अब भी इसके केंद्र में हैं।

बीते वर्ष मैं रक्षा बंधन पर घर नहीं आ पाया था। कोरोना के चलते सख्त लाकडाउन और क्वारंटीन रहने की बंदिशों ने घर की राह भी अवरुद्ध कर दी थी। मैं चाहता था कि रक्षा बंधन पर परिवार के बीच रहूं, लेकिन तब सार्वजनिक वाहन बंद थे और निजी वाहन से भी कोई इधर-उधर जा रहा था तो आस-पडो़स के लोग उसे क्वारंटीन करने के लिए उसके परिवार वालों पर दबाव बना रहे थे। ऐसे माहौल में बेहतर यही था कि हम जहां हैं, वहीं रहें और स्वास्थ्य का पूरा ख्याल रखें। इसी बात को ध्यान में रखकर मैं रक्षा बंधन पर घर नहीं आया। लेकिन, इस बार स्थितियां ऐसी नहीं थी, इसलिए मैं दो दिन पूर्व यानी 20 अगस्त को ही कोटद्वार पहुंच गया।

सोचा था रक्षा बंधन से एक दिन पहले बाजार जाकर कुछ खरीदारी कर लेंगे, लेकिन बारिश ने कदम देहरी से बाहर नहीं रखने दिए। ऐसे में रजनी पास की दुकान से ही बेसन समेत अन्य जरूरी सामान ले आई। रक्षा बंधन के दिन रजनी पकौडी़ जरूर बनाती है। असल में प्रभा, मीनू व रीनू की ओर से पकौडी़ की खास डिमांड रहती है। खासकर मीनू व रीनू कहती हैं कि उन्हें भाभी के हाथ की पकौडी़ बेहद पसंद हैं। मेरे ससुराल में भी सभी को रजनी के हाथ की पकौडि़यों का इंतजार रहता है। ऐसे में जरूरी है कि सारा सामान पहले से ही तैयार रखा जाए।

रक्षा बंधन के दिन काम का काफी बोझ रहता है रजनी पर। सारी तैयारियां उसे अकेले ही करनी हैं, इसलिए सुबह से व्यवस्थाओं में जुट जाना पड़ता है। घर का माहौल ही ऐसा है। खैर! इस पर किसी और दिन बात करूंगा। ढाई-तीन बजे तक घर के सारे काम निपटाकर फिर उसे भी भाइयों को राखी बांधने के लिए मायके जाना है। खास बात यह कि रजनी अकेले मायके नहीं जाती, बल्कि मैं और बच्चे भी उसके साथ होते हैं। इस मौके पर मेरी छोटी साली भी आई होती है। सो, सभी से मुलाकात हो जाती है।

बच्चे तो ऐसे विशेष दिन पर नाना-नानी के घर जाने के लिए खासे उत्सुक रहते हैं। रहेंगे भी क्यों नहीं, उनकी खूब आवाभगत जो हो जाती है। इसलिए ऐसे मौकों पर रात को भोजन करने के बाद ही हम घर लौटते हैं। संयोग से मेरी ससुराल घर के नजदीक ही है, इसलिए रजनी का वहां अक्सर जाना होता रहता है। जबकि, मुझे यह मौका छुट्टी आने पर ही मिलता है। उस दिन भोजन में कुछ-न-कुछ नानवेज अवश्य बनता है। कल भी निश्चित रूप से बनेगा। हालांकि, मौसम इन दिनों अनुकूल नहीं है, लेकिन इससे हमारे उत्साह पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। जरूरी होगा तो छतरी लेकर चल पडे़ंगे।

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Enthusiasm for raksha bandhan

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Dinesh Kukreti

There is an atmosphere of enthusiasm everywhere regarding the festival of Raksha Bandhan.  However, with the passage of time, like other festivals, the festival of Raksha Bandhan has also become a market place, yet it has always been my endeavor to preserve the soulful traditions.  As much as I can for this, I try my best.  Raksha Bandhan has always been my favorite festival.  Because, on this day a new atmosphere is found, there is reconciliation with relatives and above all, everyone sits together and eats.  It is also a festival of strengthening relationships.  Although, with time, various gifts etc. have also been added to it, but affection and intimacy are still at its center.













Last year I could not come home on Raksha Bandhan.  The strict lockdown and quarantine restrictions due to Corona had also blocked the way home.  I wanted to stay with the family on Raksha Bandhan, but then public vehicles were closed and if someone was going here and there by private vehicle also, the neighbors were pressurizing his family members to quarantine him.  In such an environment, it was better to stay where we are and take full care of our health.  Keeping this in mind, I did not come home on Raksha Bandhan.  But, this time the conditions were not like this, so I reached Kotdwar two days ago i.e. on 20th August.

It was thought that a day before Raksha Bandhan, we would go to the market and do some shopping, but the rain did not allow the steps to be kept out of the door.  In such a situation, Rajni brought other essential items including gram flour from a nearby shop.  Rajini definitely makes dumplings on the day of Raksha Bandhan.  In fact, there is a special demand for dumplings from Prabha, Meenu and Reenu.  Especially Meenu and Reenu say that they love bhabhi's hand dumplings.  Even in my in-laws' house, everyone is waiting for the dumplings of Rajni's hand.  In such a situation, it is necessary that all the goods should be kept ready in advance.















There is a lot of work load on Rajni on the day of Raksha Bandhan.  He has to do all the preparations alone, so he has to get involved in the arrangements since morning.  Such is the atmosphere at home.  So!  I'll talk about this some other day.  After completing all the household chores till two and a half to three o'clock, then he too has to go to his maternal home to tie rakhi to his brothers.  The special thing is that Rajni does not go to her maternal home alone, but I and children are also with her.  My younger sister-in-law also used to come on this occasion.  So, everyone gets to meet.

Children are very eager to go to maternal grandparents' house on such a special day.  Even if they stay, why not, they get a lot of hospitality.  That's why on such occasions, we return home only after having dinner.  Incidentally, my in-laws' house is close to home, so Rajni visits there frequently.  Whereas, I get this opportunity only when the holiday comes.  Some non-veg is definitely made in the food on that day.  Tomorrow will definitely happen.  Though the weather is not favorable these days, but that is not going to affect our enthusiasm.  If necessary, I will walk with an umbrella.

Friday, 20 August 2021

20-08-2021 (All day rain/पूरे दिन की बारिश)

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पूरे दिन की बारिश

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दिनेश कुकरेती

रात के ग्यारह बज चुके हैं, लेकिन बारिश थमने का नाम नहीं ले रही। बीती रात से यही हाल है। मेरे आफिस से घर लौटने के बाद रात एक बजे के आसपास बारिश शुरू हो गई थी, तब से यह सिलसिला बदस्तूर चल रहा है। मुझे उम्मीद थी कि सुबह पांच बजे तक बारिश थम जाएगी और मैं सुकून से आईएसबीटी पहुंच जाऊंगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। बल्कि, सुबह के वक्त तो बारिश और भी तेज हो गई। ऐसे में मुझे छतरी की ओट लेकर मंडी पहुंचना पडा़। अच्छी बात यह रही कि पांच मिनट के अंतराल में मुझे आईएसबीटी के लिए विक्रम (आटो) भी मिल गया।

सुबह पांच बजकर 35 मिनट पर जब मैं आईएसबीटी परिसर पहुंचा, तब बारिश काफी तेज हो गई थी। बस अड्डे की छत भी जगह-जगह से टपक रही थी। चालक-परिचालक पुकार लगाकर विभिन्न स्थानों के लिए सवारियों को बुला रहे थे। कोटद्वार-लैंसडौन और कोटद्वार-धुमाकोट रूट वाली बसें भी अभी स्टैंड पर नजर नहीं आ रही थीं। लेकिन, इसी बीच पास ही से  "कोटद्वार-कोटद्वार" की पुकार सुनाई दी। इसके मायने यह थे कि अगल-बगल कहीं कोटद्वार वाली बस खडी़ है। मैंने पास जाकर पुकार लगाने वाले व्यक्ति से पूछा तो वह दायीं ओर खडी़ एक बस की ओर इशारा करते हुए बोला, "उसकी आड़ में कोटद्वार वाली बस खडी़ है, बस! थोडी़ देर में चलते हैं।" इसके बाद में उस बस में जा बैठा।















उम्मीद थी कि बस जल्द रवाना होगी, लेकिन यहां तो ठीक आधे घंटे बाद चालक के दर्शन हो पाए। पुकार लगाने वाला ही चालक था। इसके बाद बस ने धीरे-धीरे शहर को छोड़ दिया। अब सवारियां भी ठीक-ठाक हो गई थीं। जबकि,  आईएसबीटी से निकलते हुए बस में दस के आसपास ही सवारियां रही होंगी। खैर! मैं इस सबसे बेखबर बारिश में भीगती प्रकृति के सौंदर्य को निहार रहा था। बस रफ़्तार पकड़ चुकी थी और इसी के साथ बोझिल होने लगी थी आंखें। फिर तो कब हरिद्वार आ गया, मुझे पता ही नहीं चला। जब मेरी आंखें खुली, तब बस हरिद्वार बस अड्डे के गेट पर पहुंच चुकी थी। बामुश्किल पांच-सात मिनट ही बस वहां रुकी और फिर कोटद्वार के लिए चल पडी़।

चंडी पुल में भी दो-एक सवारियां बस में चढी़ं। इस स्थान से गंगा के विराट रूप के दर्शन होते हैं। खासकर इन दिनों ठीक सामने वाले छोर पर नीलधारा की मटमैली आभा तो देखते ही बनती है। वर्षाऋतु होने के कारण नील पर्वत भी हरियाली से लकदक है। इसी पर्वत के शिखर पर देवी चंडी विराजमान हैं। यहां स्थित देवी चंडी का मंदिर हरिद्वार के भीतर स्थित पंच तीर्थ में से एक है। अब बस हरिद्वार छोड़कर आगे बढ़ चुकी थी। फुहारें अब भी पड़ रही थीं। इससे सारे नदी-नाले उफान पर हैं और ज्यादातर वाहन नहर वाले रास्ते से ही नजीबाबाद पहुंच रहे हैं। मेरी बस भी यहीं से नजीबाबाद पहुंची।













नहर वाला यह रास्ता नजीबाबाद से लगभग पांच किमी पहले कोटद्वार की ओर हाइवे से मिलता है। ऐसे में नजीबाबाद बस अड्डा जाने के लिए वापस पांच किमी का सफर तय करना पड़ता है। यानी कोटद्वार पहुंचने में लगभग बीस मिनट का विलंब। मेरी बस में भी बस अड्डे की सवारियां थी, सो चालक को बस, अड्डे पर ले जानी पडी़। वहां से कोटद्वार पहुंचने में पौन घंटा लगा। दस बजे बस कोटद्वार पहुंच चुकी थी। मैं नजीबाबाद रोड चौक पर ही उतर गया। तब बारिश के साथ तेज हवाएं भी चल रही थीं। मेरे पास छतरी थी, लेकिन इस हवा में उसके उलट जाने का डर सता रहा था। खैर! जैसे-तैसे छतरी को संभालते हुए मैंने घर की राह पकड़ ली और लगभग बीस मिनट बाद मैं अपने घर के बरामदे में था। सफर ने काफी थका दिया था, इसलिए दसेक मिनट सुस्ताने के बाद मैंने स्नान करने से पहले चाय पीना ही उचित समझा। रजनी ने लगे हाथ चार-छह बिस्कुट भी दे दिए। इसके लगभग आधे घंटे बाद मैंने स्नान किया। फिर बच्चों के साथ गप्पों में कुछ वक्त गुजारा और कुछ देर टीवी देखता रहा। बारिश जारी थी, इसलिए बाजार भी नहीं जाया जा सकता था। 

जो सबसे महत्वपूर्ण बात है, वह यह कि घर आने पर मेरा सारा शेड्यूल बदल जाता है। देहरादून में मैं रात का भोजन आफिस से लौटने के बाद बारह बजे के आसपास करता हूं, जबकि कोटद्वार में आठ बजे तक भोजन हो जाता है। भई, परिवार के साथ तो परिवार के हिसाब से ही चलता पड़ता है और मुझे इस व्यवस्था में किसी तरह का व्यवधान करना भी पसंद नहीं है। इसके बाद लगभग तीन घंटे टीवी देखने, पढ़ने व परिवार के साथ बातचीत करने के हैं। इस समय भी मैं डायरी लिखने के साथ टीवी ही देख रहा हूं। बच्चे पढ़ रहे हैं और रजनी अपनी सहेली से फोन पर बात कर रही है। सो, फिलहाल आज के लिए इतना ही...।

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All day rain
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Dinesh Kukreti

It is eleven o'clock in the night, but the rain is not taking its name to stop.  This has been the case since last night.  After returning home from my office, it started raining around one o'clock in the night, since then this process has been going on unabated.  I had hoped that by 5 o'clock in the morning the rain would stop and I would reach ISBT comfortably, but it did not happen.  Rather, in the morning the rain intensified even more.  In such a situation, I had to reach Mandi with the umbrella of an umbrella.  The good thing is that within a span of five minutes I also got Vikram (auto) for ISBT.

When I reached the ISBT campus at 5:35 am, it was raining heavily.  The roof of the bus stand was also dripping from places.  Drivers and operators were calling the passengers for different places by calling.  Buses on the Kotdwar-Lansdowne and Kotdwar-Dhumakote routes were also not visible at the stand.  But, in the meantime, the call of "Kotdwar-Kotdwar" was heard from nearby.  This meant that a bus to Kotdwar was parked nearby.  When I went near and asked the person calling, he said, pointing to a bus parked on the right, "Kotdwar bus is standing under his guise, bus! Let's go in a while."  After that he sat in that bus.

It was expected that the bus would leave soon, but here the driver could be seen after exactly half an hour.  The one who called was the driver.  After this the bus slowly left the city.  Now the passengers were also fine.  Whereas, leaving the ISBT, there must have been only around ten passengers in the bus.  So!  I was admiring the beauty of nature drenched in this most oblivious rain.  The bus had picked up speed and with this the eyes were getting cumbersome.  Then when I came to Haridwar, I did not even know.  When my eyes opened, the bus had reached the Haridwar bus stand gate.  The bus stopped there for barely five-seven minutes and then left for Kotdwar.

In Chandi bridge also two passengers boarded the bus.  The vast form of Ganga is visible from this place.  Especially these days, on the right front end, the earthy aura of Neeldhara is created on sight.  Due to the rainy season, Neel Parvat is also covered with greenery.  Goddess Chandi is seated on the summit of this mountain.  The temple of Goddess Chandi located here is one of the Panch Tirthas located within Haridwar.  Now the bus had left Haridwar and moved ahead.  The showers were still falling.  Due to this, all the rivers and streams are in spate and most of the vehicles are reaching Najibabad through the canal route.  My bus also reached Najibabad from here.

This canal route meets the highway towards Kotdwar, about five km before Najibabad.  In such a situation, to reach Najibabad bus stand, one has to travel 5 km back.  That is, there is a delay of about twenty minutes in reaching Kotdwar.  My bus also had passengers from the bus stand, so the driver had to take the bus to the station.  From there it took five and a half hours to reach Kotdwar.  The bus had reached Kotdwar at ten o'clock.  I got down at Najibabad Road Chowk.  At that time strong winds were also blowing along with the rain.  I had an umbrella, but the fear of it turning upside down in this wind was nagging.  So!  Somehow, holding the umbrella, I made my way home and after about twenty minutes I was on the porch of my house.  The journey was tiring, so after resting for ten minutes, I thought it appropriate to drink tea before taking a bath.  Rajni also gave four-six biscuits with her hands.  After about half an hour I took a shower.  Then spent some time in gossip with the children and kept watching TV for some time.  It was raining, so could not even go to the market.

The most important thing is that my whole schedule changes when I come home.  In Dehradun, I eat dinner around 12 o'clock after returning from the office, while in Kotdwar it is done by 8 o'clock.  Brother, with the family, it has to be done according to the family and I do not like to interfere in any way in this system.  This is followed by about three hours of watching TV, reading and interacting with family.  Even at this time I am watching TV along with writing a diary.  The children are studying and Rajni is talking to her friend on the phone.  So, that's all for today...

   

Tuesday, 17 August 2021

16-08-2021 (कोरवा से दून) (भाग-चार)

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(भाग-चार)

कोरवा से दून
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दिनेश कुकरेती

मने कल शाम ही तय कर लिया था कि सुबह सात बजे हर हाल में देहरादून के लिए निकल पडे़ंगे, इसलिए आज नींद तड़के चार बजे ही खुल गई। इसकी एक वजह यह भी रही कि मैंने मोबाइल पर अलार्म लगाया हुआ था, जो हर पांच मिनट के अंतराल में बज रहा था। ऐसे में नींद भला कैसे अपने आगोश में लेने की गुस्ताखी करती। हालांकि, साथी चंदराम राजगुरु और सुमन सेमवाल पर अलार्म का कोई असर नहीं हुआ। मेरा तो नियम है कि सफर में समय का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। इससे दूसरों को भी दिक्कत नहीं होती।

सुबह उठकर मैं स्नान अवश्य करता हूं और वह भी ठंडे पानी से। फिर चाहे बर्फ वाले इलाके में ही क्यों न होऊं। कोरवा में भी आजकल सुबह-शाम तो काफी ठंड है, लेकिन मुझे इससे क्या फर्क पड़ना था। सो, बिना विलंब किए मैं नहा-धोकर फारिग हो गया। तब पांच बजे का वक्त रहा होगा। अन्य वरिष्ठ-कनिष्ठ साथी तो गर्म पानी से नहाते हैं और फिर वे अभी उठे भी नहीं थे। स्नान के बाद मैंने पैकिंग वगैरह की और फिर तैयार होकर काटेज के बाहर आ गया। बाहर काफी पाला गिरा हुआ था, इसलिए मैं पोर्च में लगी बेंच पर ही पद्मासन लगाकर बैठ गया।

तकरीबन पौन घंटे अनुलोम-विलोम और कपालभाति प्राणायाम करने के बाद तन में स्फूर्ति का एहसास होने लगा। तब तक अन्य साथी भी जाग चुके थे। साढे़ सात बजे नाश्ते के लिए बुलावा आ गया और सभी भोजनगृह की ओर चल पडे़। नाश्ते में पूरी और आलू का झोल़ (आलू उबालकर बनाई गई रसदार सब्जी) बना हुआ था। साथ में अचार की भी व्यवस्था थी। वैसे तय हुआ था कि दो-दो पूरी खाएंगे, लेकिन मुझे तो भूख लगी थी। फिर देहरादून लौटकर खाना बनाने की चिंता भी थी, क्योंकि तीन बजे ड्यूटी पर पहुंचना था। इसलिए मैंने पेट भरकर नाश्ता करना ही बेहतर समझा, ताकि खाना बनाने के झंझट से निजात मिल जाए। इसके बाद हमने कैंपस में ग्रुप फोटो खिंचवाई और फिर चल पडे़ अपनी कारों की ओर।

कोरवा से ठीक सामने वाली पहाडी़ की चोटी पर चकराता छावनी साफ नजर आती है। परिंदों के लिए तो यह महज एक किमी का फासला है। लेकिन, सड़क मार्ग से चकराता ठीक दस किमी दूर है। छावनी के दाहिने ओर की पहाडी़ पर फायरिंग की आवाज गूंज रही थी। साथी राजगुरु ने बताया कि यह टूटू बटालियन अभ्यास कर रही है। चारों ओर की ऊंची-ऊंची पहाडि़यों से धूप अब नीचे उतरने लगी थी, जो  वातावरण में गर्माहट का एहसास करा रही थी। लोग अपने रोजमर्रा के कार्यों में जुट गए थे। हम भी अब कोरवा को अलविदा कहते हुए देहारादून की ओर प्रस्थान कर गए।

शीतल मंद पवन के झोकों के बीच कोरवा से नीचे उतरते हुए हम कलसी कब पहुंच गए मालूम ही नहीं पडा़। जबकि, कल ऊपर चढ़ते हुए ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो हम मीलों दूर आ चुके हैं। कालसी के बाद मौसम में गर्माहट आने लगी थी। खैर! मुझे इससे फर्क नहीं पड़ता। मौसम के हर रूप का अपना अलग आकर्षण है। नंदा की चौकी से कुछ पहले हाइवे के किनारे हमने अनानास का जूस पिया और फिर सीधे आफिस पहुंचकर ही रुके। वहां से मैंने बाइक उठाई और सीधे कमरे में आ गया। भोजन करने की इच्छा नहीं हो रही थी, इसलिए पानी भरने के बाद मैं कुछ देर आराम करने के लिए लेट लगा। इसी दौरान पंद्रह मिनट फोन पर रजनी से भी बात की। साथ ही दसेक मिनट झपकी भी ले ली।

आज रात का भोजन भी दलिया का हुआ। दलिया पौष्टिक, पाचक और बेहद सरलता से पक जाने वाला भोजन है। सफर से लौटने पर मैं आक्सर दलिया ही बनाता हूं। झाझरा और कोरवा में काफी भारी भोजन हुआ, इसलिए आज हल्का भोजन जरूरी था। फिलहाल मैं यू-ट्यूब पर अपने पसंद के धारावाहिक देख रहा हूं। लेकिन, आंखें भारी हो रही हैं, इसलिए ज्यादा देर जागा नहीं रहूंगा। ...तो ठीक है, बाकी बातें  कल होती हैं। शुभरात्रि!

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(Part-4)

Korwa to Doon

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Dinesh Kukreti

We had decided only yesterday evening that we would leave for Dehradun at 7 in the morning, so today we woke up at four in the morning.  One reason for this was also that I had set an alarm on my mobile, which was ringing every five minutes.  In such a situation, how would sleep have been fooled to take it in its lap.  However, the alarm went to no effect on accomplices Chandram Rajguru and Suman Semwal.  My rule is that special care should be taken of time in the journey.  It doesn't bother others either.

Waking up in the morning, I must take a bath and that too with cold water.  Even if I am in a snowy area.  Even in Korwa, it is very cold in the morning and evening, but what difference did I have to make.  So, without delay, I took a bath and left.  It must have been five o'clock then.  The other senior-junior mates take a hot bath and then they didn't even get up.  After the bath I did the packing etc. and then got ready and came out of the cottage.  There was a lot of frost outside, so I sat on the bench in the porch with Padmasana.

After doing anulom-vilom and kapalbhati pranayama for about half an hour, there was a feeling of energy in the body.  By then the other companions had also woken up.  At 7:30, the call came for breakfast and everyone started walking towards the dining hall.  Poori and aloo ka jhol (juicy vegetable cooked by boiling potatoes) were made for breakfast.  Along with this there was also a system of pickles.  Although it was decided that I would eat two puris, but I was hungry.  Then there was also the worry of returning to Dehradun to prepare food, because he had to reach duty at three o'clock.  That's why I thought it better to have breakfast full of stomach, so that I can get rid of the hassle of cooking.  After this we posed for a group photo on the campus and then headed towards our cars.

The Chakrata Cantonment is clearly visible on the top of the hill just opposite Korwa.  For birds, it is only a distance of one kilometer.  But, Chakrata is exactly ten km away by road.  The sound of firing was echoing on the hill on the right side of the camp.  Fellow Rajguru told that this Tutu battalion is doing exercises.  The sun was starting to come down from the high hills all around, which was giving a feeling of warmth in the atmosphere.  People were busy with their daily activities.  We also left for Dehradun now saying goodbye to Korwa.

It was not known when we reached Kalsi while descending from Korwa amidst gusts of cool, gentle wind.  Whereas, as we climbed up yesterday, it seemed as if we had come miles away.  After Kalsi, the weather started getting hot.  So!  It doesn't matter to me.  Each form of the season has its own charm.  Before Nanda's post, we drank pineapple juice on the side of the highway and then stopped straight after reaching the office.  From there I picked up the bike and went straight to the room.  There was no desire to eat, so after filling the water, I lay down to rest for some time.  During this, he also spoke to Rajni on the phone for fifteen minutes.  Also took a ten minute nap.

Tonight's meal was also of porridge.  Dalia is nutritious, digestible and very easy to cook food.  I usually make porridge when I return from the journey.  Very heavy meals took place in Jhajhra and Korwa, so a light meal was necessary today.  Currently I am watching my favorite serials on YouTube.  But, my eyes are getting heavy, so I will not stay awake for long.  ... well then, the rest of the things happen tomorrow.  good night!

13-11-2024 (खुशनुमा जलवायु के बीच सीढ़ियों पर बसा एक खूबसूरत पहाड़ी शहर)

खुशनुमा जलवायु के बीच सीढ़ियों पर बसा पहाड़ी शहर ------------------------------------------------ ------------- भागीरथी व भिलंगना नदी के संग...