किताबों की दुनिया
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दिनेश कुकरेती
दुनिया-जहान को जानने की जिज्ञासा मुझमें हमेशा रही है और हमेशा ही किताबों ने इसे शांत किया। किताब के लिए मैं भोजन तक छोड़ने को तैयार रहता था। यह आदत आज भी है। नई-नई किताबों को देखकर तो मन ललचा जाता है। ऐसा होना स्वाभाविक है। किताबों से सृष्टि को जानने-समझने की दृष्टि जो मिलती है। कई बार मैं सोचता हूं, काश! दुनिया की सारी भाषाएं पढ़ पाता, तो दुनिया मेरे और मैं दुनिया के कितने करीब हो जाते। एक बात और, इन किताबों ने ही मुझे लोक से एकाकार कराया है। मुझे लोक से अगाध अनुराग है तो इसकी वजह भी बहुत हद तक पुस्तकें ही हैं, खासकर लोक की बोली-भाषा में ही लिखी पुस्तकें।
इस पुस्तक प्रेम के कारण ही साहित्यकार और साहित्य प्रेमी बडी़ तादाद में मेरे मित्र एवं शुभचिंतक हैं। इनमें कई तो देश के लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं। इसके अलावा साहित्यकार मित्रों में लोकभाषा (गढ़वाली-कुमाऊंनी) के साहित्यकारों की भी अच्छी-खासी तादाद है। इसलिए जब भी शहर में कोई साहित्यिक आयोजन होता है, वे मुझे उसमें आमंत्रित करना नहीं भूलते। खासकर, कथाकर जितेन ठाकुर, सुभाष पंत, हेमचंद्र सकलानी, डा.मुनिराम सकलानी, लोकेश नवानी, शांति प्रसाद 'जिज्ञासु', मुकेश नौटियाल, बीना बेंजवाल, सुनीता चौहान, गणेश खुगशाल 'गणि', नरेंद्र कठैत, संदीप रावत, डा.कुटज भारती, मदन डुकलान आदि। इनकी कोई भी पुस्तक प्रकाशित होती है तो किसी न किसी तरह मेरे पास अवश्य पहुंच जाती है।
आज (27 फरवरी को) साहित्यकार हेमचंद्र सकलानी की पुस्तक का विमोचन हुआ। कार्यक्रम उत्तरांचल प्रेस क्लब सभागार में दोपहर 12 बजे से रखा गया था। इसके लिए एक सप्ताह पूर्व से सकलानी जी मुझे याद दिला रहे थे कि मैंने जरूर पहुंचना है। सो मैं 11 बजे ही प्रेस क्लब पहुंच गया। लंबे अर्से बाद तमाम साहित्यकार मित्रों से एक ही जगह पर मिलना हो गया। कार्यक्रम शुरू होने में अभी समय था, इसलिए कई साहित्यकार व साहित्यप्रेमी क्लब परिसर में ही अलग-अलग स्थानों पर ग्रुप बनाकर चर्चा में मशगूल थे। एक कोने में कुछ पत्रकार साथियों के साथ लोक साहित्यकार रमाकांत बेंजवाल बैठे धूप सेंक रहे थे। मैं सकलानी जी से मिलकर सीधे उनके पास पहुंच गया। हालांकि, मास्क लगे होने के कारण मैंने उन्हें पहचाना नहीं। लेकिन, मुझे देखकर वे तुरंत अभिवादन के लिए खडे़ हो गए और बोले, 'कुकरेती जी शायद आपने पहचाना नहीं।' मैंने कहा, 'अरे भाई साहब! क्या बात करते हो', क्योंकि उनके खडे़ होने के अंदाज से मैं तब तक उन्हें पहचान चुका था।
लगभग 20 मिनट साहित्य-संस्कृति जैसे विषयों पर हमारी बात होती रही। इसी बीच वे अचानक उठे और बोले, 'आपको कुछ किताबें देनी थी, लेकिन लंबे अर्से से मुलाकात नहीं पाई। चलिए! गाडी़ में रखी हैं, मैं आपको दे देता हूं।' मुझे तो जैसे मुहं मांगी मुराद मिल गई। उन्होंने मुझे तीन पुस्तकें भेंट की, इनमें रमाकांत बेंजवाल व बीना बेंजवाल द्वारा तैयार 'हिंदी-गढ़वाली-अंग्रेजी शब्दकोष', बीना बेंजवाल द्वारा अनुदित देश-दुनिया की स्त्री कविताओं का संकलन 'मिसेज रावत' और रमाकांत बेंजवाल की लिखी पुस्तक 'गढ़वाल हिमालय' (इतिहास, संस्कृति, भाषा, यात्रा एवं पर्यटन) शामिल हैं। हम गाडी़ के पास से क्लब की ओर आ ही रहे थे कि अचानक साहित्यकार शशिभूषण बडोनी से मुलाकात हो गई। वे भी कार्यक्रम में आमंत्रित थे। इसी बीच वहां लोक के सरोकारों को समर्पित 'धाद' संस्था से जुडी़ं कल्पना बहुगुणा व मंजू काला भी आ पहुंचीं। दोनों बहनें लोकचेतना की त्रैमासिक पत्रिका 'लोक गंगा' निकालती हैं, सो उन्होंने मुझे भी 'लोक गंगा' का बीते नवंबर में प्रकाशित अंक भेंट किया।
सकलानी जी ने भी मुझे अपनी पुस्तक भेंट करनी थी, लेकिन कार्यक्रम लंबा खिंचने के कारण मैं तीन बजे के बाद प्रेस क्लब में नहीं रुक पाया। आफिस जो पहुंचना था, इसलिए सकलानी जी से बगैर मिले ही वहां से रुखसत हो लिया। संयोग देखिए कि आफिस पहुंचते ही गेट पर सिक्योरिटी गार्ड ने भी मुझे एक लिफाफा थमा दिया, जिसमें 'धाद' पत्रिका के नवंबर व दिसंबर अंक थे। 'धाद' साहित्य व संस्कृति को समर्पित गढ़वाली भाषा की प्रसिद्ध पत्रिका है, जिसका संपादन साहित्यकार गणेश खुगशाल 'गणि' करते हैं। उनका स्नेह है कि पत्रिका का हर अंक मुझे जरूर भेजते हैं। इसके अलावा पत्रकार मित्र सतेंद्र डंडरियाल ने भी कुछ दिन पूर्व मुझे नीलेश मिश्रा का उपन्यास 'याद शहर-1' भेंट किया था। यह उपन्यास आफिस में ही रखा हुआ था, जिसे आज मैं अन्य पुस्तकों के साथ रूम में ले आया।
अब धीरे-धीरे इन पुस्तकों को पढ़ने का क्रम शुरू होगा। हालांकि, रोजमर्रा की व्यस्तताओं के चलते पुस्तक पढ़ने को समय नहीं निकल पाता, बावजूद इसके फिर भी मेरी कोशिश रहेगी कि इन्हें जल्द से जल्द पढ़ लिया जाए। आगे और भी पुस्तकें पढ़नी हैं और इन्हीं तमाम व्यस्तताओं के बीच वक्त निकालना है। आजकल 'रेकी हीलिंग' व 'क्वांटम हीलिंग' को भी समय देना पड़ रहा है। इसके लिए सुबह पांच बजे हर हाल में जागना पड़ता है। खैर! 'जहां चाह, वहां राह', सब-कुछ ठीक ही होगा।
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World of books
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Dinesh Kukreti
I have always had a curiosity to know about the world and books have always pacified it. I was ready to leave even a meal for the book. This habit is still there today. It is tempting to see new books. It is natural for this to happen. The vision that comes from books to know and understand the universe. Sometimes I think, Alas! If I could read all the languages of the world, then the world would have become so close to me and the world. One more thing, these books have made me united with the people. If I have great affection for the people, then the reason for this is also books to a large extent, especially the books written in the dialect of the people.
It is because of the love of this book that writers and literary lovers are my friends and well-wishers in large numbers. Many of them are eminent litterateurs of the country. Apart from this, there is also a large number of litterateurs of the local language (Garhwali-Kumaoni) among literary friends. So whenever there is a literary event in the city, they don't forget to invite me to it. Particularly, Kathakar Jiten Thakur, Subhash Pant, Hemchandra Saklani, Dr. Muniram Saklani, Lokesh Navani, Shanti Prasad 'Curious', Mukesh Nautiyal, Bina Benzwal, Sunita Chauhan, Ganesh Khughshal 'Gani', Narendra Kathait, Sandeep Rawat, Dr. Kutz Bharti, Madan Duklan etc. If any of his books are published, it definitely reaches me in some way or the other.
Today (27 February) the book of litterateur Hemchandra Saklani was released. The program was kept in the Uttaranchal Press Club auditorium from 12 noon. For this, Saklani ji was reminding me from a week ago that I must have reached. So I reached the Press Club at 11 am. After a long time, I got to meet all the literary friends at one place. It was time to start the program, so many litterateurs and literary lovers were busy in discussion by forming groups at different places in the club premises. Folk litterateur Ramakant Benzwal was sitting in a corner with some journalist colleagues and sunbathing. I met Saklani ji and went straight to him. However, I did not recognize him as he was wearing a mask. But, seeing me, he immediately stood up to greet and said, 'Kukreti ji, you may not recognize it.' I said, 'Oh brother! What do you talk about', because I had recognized him by the way he was standing.
For about 20 minutes, we kept talking on subjects like literature and culture. In the meantime, he suddenly got up and said, 'You had to give some books, but could not meet for a long time. Let go! I have kept it in the car, I will give it to you.' I got my wish just as I asked for. He presented me three books, in which 'Hindi-Garhwali-English dictionary' prepared by Ramakant Benzwal and Bina Benjwal, 'Mrs Rawat', a compilation of women's poems from the country and the world translated by Bina Benjwal and 'Garhwal Himalaya' by Ramakant Benjwal. (History, Culture, Language, Travel and Tourism). We were coming towards the club from near the car when suddenly we met litterateur Shashibhushan Badoni. He was also invited to the program. In the meantime, Kalpana Bahuguna and Manju Kala, associated with the 'Dhad' organization dedicated to the concerns of the people, also came there. Both the sisters bring out the quarterly magazine 'Lok Ganga' of Lok consciousness, so they also presented me the issue of 'Lok Ganga' published in November last.
Saklani ji also had to present his book to me, but I could not stay in the press club after 3 o'clock due to the lengthy program. The office which was to be reached, so left without meeting Saklani ji. Incidentally, on reaching the office, the security guard at the gate also handed me an envelope containing the November and December issues of 'Dhad' magazine. 'Dhad' is a famous Garhwali language magazine dedicated to literature and culture, edited by litterateur Ganesh Khughshal 'Gani'. It is his affection that he definitely sends me every issue of the magazine. Apart from this, journalist friend Satendra Dandriyal also presented me a few days back with Nilesh Mishra's novel 'Yaad Shahar-1'. This novel was kept in the office, which I brought to the room today along with other books.
Now gradually the sequence of reading these books will start. However, due to day-to-day busyness, I do not find time to read books, yet I will try to read them as soon as possible. More books have to be read ahead and time has to be taken in the midst of all these busyness. Nowadays 'Reiki Healing' and 'Quantum Healing' also have to be given time. For this, one has to wake up at five o'clock in the morning. So! 'Where there is a will, there is a way', everything will be fine.