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Wednesday, 9 October 2024

09-10-2024 (दो युग बाद भी नहीं किया हनुमान को माफ)

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दो युग बाद भी नहीं किया हनुमान को माफ
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दिनेश कुकरेती
प्रकृति के संरक्षण को लेकर दुनियाभर में बातें तो बहुत होती हैं, लेकिन प्रकृति के प्रति समर्पण का जैसा भाव द्रोणागिरी के निवासियों में है, वैसा व्यवहार में शायद ही कहीं और देखने को मिले। उत्तराखंड के चमोली जिले की नीती घाटी का चीन सीमा पर पड़ने वाला गांव है द्रोणागिरी। कहते हैं कि त्रेता युग में मेघनाद के शक्ति प्रहार से जब लक्ष्मण मूर्छित हो गए तो सुषेण वैद्य की सलाह पर उनका जीवन बचाने को संजीवनी बूटी लेने हनुमान इसी गांव से होकर द्रोणागिरी पर्वत पर पहुंचे थे। इस गांव के लोगों की नाराजगी इसी बात को लेकर है कि तब हनुमान संजीवनी के बजाय द्रोणागिरी पर्वत का एक हिस्सा उखाड़कर ही लंका ले गए। जबकि, द्रोणागिरी पर्वत उनके ईष्ट देव हैं और हनुमान ने इस पर्वत का एक हिस्सा उखाड़कर उनके ईष्ट का निरादर किया। इसी नाराजगी की वजह से दो युग बाद भी वे हनुमान को माफ नहीं कर पाए। तभी तो आज भी द्रोणागिरी गांव में हनुमान की पूजा ही नहीं होती। यही नहीं, हनुमान की पूजा करने वाले को बिरादरी तक से बाहर कर दिया जाता है।
समुद्रतल से 12 हजार फीट की ऊंचाई पर 150 परिवार और 750 की आबादी (वर्ष 2024 में) वाले द्रोणागिरी गांव तक पहुंचने के लिए जुमा से 12 किमी की चढ़ाई नापनी पड़ती है। हालांकि, अब गांव से दो किमी पहले छियाटा तोक तक सड़क पहुंच गई है। गांव में भोटिया जनजाति के लोग निवास करते हैं, जो चीन सीमा पर द्वितीय रक्षापंक्ति की भूमिका ही नहीं निभाते, बल्कि प्रकृति के भी सजग प्रहरी हैं। जल, जंगल, जमीन इनके जीवन का अभिन्न अंग हैं और तीनों को ही इनकी संस्कृति में देवता का स्थान हासिल है। कोई भी इनकी प्रकृति को नुकसान पहुंचाता है तो ये उसे अपनी संस्कृति पर आक्रमण मानते हैं। हनुमान को बैरी मानने के पीछे भी यही मुख्य वजह है। ग्रामीणों को लगता है कि हनुमान का नाम लेने पर पर्वत देवता रुष्ट हो जाएंगे और उनको दंड का भागी बनना पड़ेगा। इसलिए वे न तो सिंदूर और लाल पिठाई का प्रयोग करते हैं, न गांव में लाल ध्वज ही फहराया जाता है।



...फिर भी पहाड़ उखाड़कर ले गए हनुमान
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लोगों का कहना है कि हनुमान जब संजीवनी लेने आए, तब गांव की एक वृद्धा ने उन्हें पर्वत का वह हिस्सा दिखाया, जहां संजीवनी बूटी उगती थी। साथ ही यह भी बताया कि इस बूटी तक वह कैसे पहुंच सकते हैं। लेकिन, हनुमान फिर भी वह पूरा हिस्सा उखाड़कर ही ले गए। हालांकि, द्रोणागिरी के लोगों की राम से कोई नाराजगी नहीं है और वह श्रद्धापूर्वक राम की भक्ति करते हैं। लेकिन, रामलीला का आयोजन यहां सिर्फ तीन दिन के लिए होता है। श्रीराम जन्म व सीता स्वयंवर के बाद सीधे राम का राज्याभिषेक कर दिया जाता है। इस रामलीला में हनुमान लीला का मंचन नहीं किया जाता। लोगों की धारणा है कि गांव में संपूर्ण रामलीला का मंचन करने से कुछ-न-कुछ अशुभ अवश्य होता है। वह कहते हैं, वर्ष 1980 में द्रोणागिरी में रामलीला का मंचन किया गया। तब कुछ ऐसी विचित्र घटनाएं घटी कि मंचन बंद करना पड़ा। इसके बाद किसी ने ऐसा दुस्साहस नहीं किया।



दाह-संस्कार नहीं, दफनाया जाता है शव
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द्रोणागिरी देश का पहला ऐसा हिंदू गांव है, जहां किसी की मृत्यु होने पर पार्थिव देह को जलाया नहीं जाता, बल्कि दफनाया जाता है। इसके पीछे सोच यह है कि शव जलाने के लिए इस्तेमाल होने वाली लकड़ियों से उच्च हिमालयी क्षेत्र के इस गांव का पर्यावरण प्रदूषित न हो। शीतकाल के दौरान द्रोणागिरी के ग्रामीण माइग्रेट होकर चमोली, मैठाणा, छिनका समेत अन्य गांवों में आ जाते हैं। तब यहां किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर शव का बाकायदा दाह-संस्कार किया जाता है।



श्रीलंका में भी है संजीवनी पर्वत
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माना जाता है कि श्रीलंका के दक्षिणी तट गाले में मौजूद 'श्रीपद' नाम की जगह पर स्थित पहाड़ ही द्रोणागिरी पर्वत का वह हिस्सा है, जिसे संजीवनी की खातिर हनुमान हिमालय से उठाकर ले गए थे। इस पहाड़ को 'एडम्स पीक' भी कहते हैं, जबकि श्रीलंकाई लोग इसे 'रहुमशाला कांडा' कहते हैं। समुद्रतल से 2200 मीटर की ऊंचाई पर यह पहाड़ रतनपुर जिले में स्थित है और समनाला माउंटेन रेंज का हिस्सा है।



पर्वत देवता को मनाने द्रोणागिरी आए थे राम
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मान्यता है कि लंका विजय के बाद श्रीराम स्वयं पर्वत देवता को मनाने के लिए स्वयं द्रोणागिरी गांव आए थे। गांव में एक छोटे से पहाड़ पर जहां उनके चरण पड़े, उसे 'रामपातल' नाम से राम तीर्थ के रूप में पूजा जाता है। इस जंगल में भोजपत्र समेत दुर्लभ जड़ी-बूटी पाई जाती हैं। गांव के आसपास औषधीय जड़ी-बूटियों का भंडार बिखरा हुआ है। यहां कुछ फूल तो ऐसे हैं, जो फूलों की घाटी में भी देखने को नहीं मिलते।



महिलाएं नहीं बनतीं पूजन-प्रसाद का हिस्सा
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गांव की किसी भी महिला को पर्वत देवता के पूजन व प्रसाद बनाने में शामिल नहीं किया जाता। लोक मान्यता है कि जब हनुमान संजीवनी लेने द्रोणागिरी पहुंचे तो उन्हें पूरे क्षेत्र में जड़ी-बूटी चमकते हुए दिखी थीं। हनुमान को परेशान देख गांव की एक बुजुर्ग महिला ने उन पर संजीवनी का भेद खोल दिया था। इसके बाद हनुमान वहां से पर्वत ही उठाकर ले गए थे। ग्रामीणों का मानना है कि बुजुर्ग महिला भेद नहीं खोलती तो पर्वत देवता का अपमान नहीं होता।

ऐसे पहुंचें
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द्रोणागिरी के लिए ऋषिकेश से जोशीमठ तक 256 किमी और जोशीमठ से जुमा तक 45 किमी की दूरी वाहन से तय करनी होती है। यहां से द्रोणागिरी तक 12 किमी का पैदल ट्रेक है। हालांकि, छियाटा तोक तक सड़क बन जाने के कारण अब यह दूरी महज दो किमी रह गई है, लेकिन ट्रेकिंग के शौकीन पैदल चलने में ही आनंद महसूस करते हैं।
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Hanuman was not forgiven even after two eras
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Dinesh Kukreti
There is a lot of talk about the conservation of nature all over the world, but the kind of devotion towards nature that the residents of Dronagiri have, is rarely seen anywhere else in practice. Dronagiri is a village located on the China border in the Niti Valley of Chamoli district of Uttarakhand. It is said that in the Treta Yuga, when Lakshman became unconscious due to Meghnad's Shakti attack, on the advice of Sushen Vaidya, Hanuman reached Dronagiri mountain through this village to get Sanjivani herb to save his life. The people of this village are angry about the fact that then Hanuman uprooted a part of Dronagiri mountain and took it to Lanka instead of Sanjivani. Whereas, Dronagiri mountain is their Ishta Dev and Hanuman disrespected their Ishta Dev by uprooting a part of this mountain. Due to this anger, they could not forgive Hanuman even after two eras. That is why even today Hanuman is not worshipped in Dronagiri village.  Not only this, those who worship Hanuman are even expelled from the community.

To reach Dronagiri village, which has 150 families and a population of 750 (in the year 2024) at an altitude of 12 thousand feet above sea level, one has to climb 12 km from Juma. However, now the road has reached Chhiyata Tok, two km before the village. People of Bhotiya tribe live in the village, who not only play the role of second line of defense on the China border, but are also vigilant guards of nature. Water, forest, land are an integral part of their life and all three have the status of deity in their culture. If anyone harms their nature, then they consider it an attack on their culture. This is also the main reason behind considering Hanuman as an enemy. The villagers feel that if they take the name of Hanuman, the mountain god will get angry and they will have to face punishment. Therefore, they neither use vermilion and red pithai, nor is the red flag hoisted in the village.

... Still Hanuman uprooted the mountain and took it away
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People say that when Hanuman came to take Sanjivani, an old woman of the village showed him the part of the mountain where Sanjivani herb grew. She also told him how he could reach this herb. But Hanuman still uprooted that entire part and took it away. However, the people of Dronagiri have no resentment towards Ram and they worship him with devotion. But, Ramleela is organized here only for three days. After Shri Ram's birth and Sita's swayamvar, Ram is directly coronated. Hanuman leela is not staged in this Ramleela. People believe that staging the entire Ramleela in the village definitely leads to some inauspicious thing. They say, Ramleela was staged in Dronagiri in the year 1980. Then some strange incidents happened that the staging had to be stopped. After this, no one dared to do such a thing.

The dead body is buried, not cremated
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Dronagiri is the first Hindu village in the country where the body is not cremated, but buried when someone dies. The idea behind this is that the wood used for cremating the dead body should not pollute the environment of this village in the high Himalayan region. During winters, the villagers of Dronagiri migrate to Chamoli, Maithana, Chhinka and other villages. Then, when a person dies here, the dead body is properly cremated.

Sanjeevani mountain is also in Sri Lanka
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It is believed that the mountain located at a place called 'Sripad' in Galle on the southern coast of Sri Lanka is that part of Dronagiri mountain which Hanuman had taken from the Himalayas for Sanjeevani. This mountain is also called 'Adam's Peak', while Sri Lankans call it 'Rahumshala Kanda'.  At an altitude of 2200 m above sea level, this hill is located in Ratanpur district and is part of the Samanala Mountain Range.

Ram came to Dronagiri to convince the mountain god
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It is believed that after conquering Lanka, Shri Ram himself came to Dronagiri village to convince the mountain god. A small mountain in the village where his feet fell is worshipped as Ram Teerth by the name 'Rampatal'. Rare herbs including Bhojpatra are found in this forest. There is a store of medicinal herbs scattered around the village. There are some flowers here which are not seen even in the Valley of Flowers.

Women do not become a part of worship and Prasad
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No woman of the village is included in the worship of the mountain god and making Prasad. There is a popular belief that when Hanuman reached Dronagiri to take Sanjivani, he saw herbs shining in the entire area. Seeing Hanuman upset, an old woman of the village revealed the secret of Sanjivani to him. After this, Hanuman took away the mountain from there. The villagers believe that if the old woman had not revealed the secret, the mountain god would not have been insulted.

How to reach
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For Dronagiri, one has to cover a distance of 256 km from Rishikesh to Joshimath and 45 km from Joshimath to Juma by vehicle. From here, there is a 12 km walking trek to Dronagiri. However, due to the construction of a road till Chhayaata Tok, this distance has now become just two km, but trekking enthusiasts enjoy walking.









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