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Monday, 21 October 2024

21-10-2024 (उत्तराखंड हिमालय में भगवान बदरी नारायण के आठ धाम)

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उत्तराखंड हिमालय में बदरी नारायण के आठ धाम
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दिनेश कुकरेती

त्तराखंड हिमालय के बदरिकाश्रम क्षेत्र में स्थित बदरीनाथ धाम से तो दुनियाभर में लोग परिचित हैं, लेकिन यह जानकारी गिनती के लोगों को ही होगी कि यहां भगवान बदरी विशाल एक नहीं, आठ स्वरूपों में प्रतिष्ठित हैं, जिसे अष्ट बदरी समूह कहा गया है। इन आठों पौराणिक तीर्थों का बदरीनाथ धाम जितना ही माहात्म्य है। बदरीनाथ धाम की तरह इन तीर्थों में भी विभिन्न नामों से भगवान नारायण वास करते हैं। अष्ट बदरी समूह के इन सभी मंदिरों का स्थापना काल भी कमोबेश वही है, जो बदरीनाथ धाम का माना जाता है। कहते हैं कि आठवीं सदी में बदरीनाथ मंदिर की मौजूदगी थी। इनमें कर्णप्रयाग के पास रानीखेत मार्ग पर आदि बदरी, बदरीनाथ हाईवे पर पांडुकेश्वर में योग-ध्यान बदरी, जोशीमठ-मलारी हाईवे पर सुभांई गांव में भविष्य बदरी, इसी हाईवे पर तपोवन के पास अर्द्ध बदरी, हेलंग के पास उर्गम घाटी में ध्यान बदरी, हेलंग के निकट अणिमठ गांव में वृद्ध बदरी, जोशीमठ में नृसिंह बदरी और बदरीशपुरी में विशाल बदरी यानी बदरीनाथ धाम स्थित हैं। 

चमोली जिले में स्थित अष्ट बदरी समूह के कुछ मंदिर सालभर दर्शनार्थियों के लिए खुले रहते हैं, जबकि बाकी में चारधाम सरीखी ही कपाट खोलने और बंद करने की परंपरा है। कहते हैं कि प्राचीन काल में जब बदरीनाथ धाम की राह बेहद दुर्गम एवं दुश्वारियों भरी थी, तब अधिकांश भक्त आदि बदरी धाम में भगवान नारायण के दर्शनों का पुण्य प्राप्त करते थे। लेकिन, कालांतर में सड़क बनने से बदरीनाथ धाम की राह आसान हो गई। एक मान्यता यह भी है कि नृसिंह मंदिर जोशीमठ में भगवान नृसिंह के बायें हाथ की कलाई निरंतर कमजोर हो रही है। कलयुग की पराकाष्ठा पर जिस दिन यह कलाई टूटकर जमीन पर गिर जाएगी, उस दिन नर-नारायण (जय-विजय) पर्वत आपस में जुड़ जाएंगे। इसके बाद बदरीनाथ धाम की राह सदा के लिए अवरुद्ध हो जाएगी। तब भगवान बदरी नारायण सुभांई गांव स्थित भविष्य बदरी धाम में अपने भक्तों को दर्शन देंगे। अहम बात यह कि नृसिंह बदरी को छोड़कर बाकी अन्य सभी मंदिरों में भक्तों को भगवान नारायण के ही दर्शन होते हैं। जबकि, नृसिंह मंदिर में नारायण अपने चतुर्थ अवतार नृसिंह रूप में विराजमान हैं। हालांकि, अपने आसन पर वह भगवान बदरी नारायण की तरह ही देव पंचायत के साथ बैठते हैं।


आस्था के केंद्र ही नहीं, जीवन की धुरी भी

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अष्ट बदरी समूह के मंदिर महज आस्था के केंद्र ही नहीं, बल्कि पहाड़ के जीवन की धुरी भी हैं। इन मंदिरों से हजारों लोगों की आर्थिकी प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से जुड़ी हुई है। यात्राकाल के छह महीने वे यहां पूजा-पाठ समेत विभिन्न आर्थिक गतिविधियां संचालित कर सालभर के लिए जीविकोपार्जन के साधन जुटा लेते हैं। देखा जाए तो इन मंदिरों का पहाड़ से पलायन रोकने में भी बहुत बड़ा योगदान है। इसके अलावा पहाड़ की संस्कृति एवं परंपराओं के प्रचार-प्रसार में भी अष्ट बदरी और केदार समूह के 14 मंदिर पीढ़ियों से महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आए हैं।

विशाल बदरी धाम
नाना रूप में नारायण

विशाल बदरी धाम

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नर-नारायण पर्वत और नीलकंठ पर्वत शृंखलाओं के आंचल में समुद्रतल से 3,133 मीटर की ऊंचाई पर अवस्थित भू-वैकुंठ बदरीनाथ धाम देश के चारों धाम में सर्वश्रेष्ठ तीर्थ है। तीन अन्य धाम हैं रामेश्वरम (तमिलनाडु), द्वारका (गुजरात) व जगन्नाथपुरी (ओडिशा)। शास्त्रों में कहा गया है कि 'बहूनि सन्ति तीर्थानि, दिवि भूमौ रसासु च। बदरी सदृशं तीर्थ, न भूतो न भविष्यति।' अर्थात पृथ्वी पर अनेक तीर्थ, अनेक धाम है लेकिन श्री बदरीनाथ जैसा तीर्थ ना कभी हुआ था और न भविष्य में कभी होगा। मान्यता है कि आदि शंकराचार्य ने आठवीं सदी में बदरीनाथ मंदिर का निर्माण कराया था। मंदिर के गर्भगृह में भगवान नारायण की चतुर्भुज मूर्ति बदरीश पंचायत में विराजमान है। शालिग्राम शिला से बनी बनी यह मूर्ति ध्यानावस्था में है। कथा है कि यह मूर्ति देवताओं ने नारदकुंड से निकालकर मंदिर के गर्भगृह में स्थापित की थी। जब बौद्धों का प्राबल्य हुआ तो उन्होंने इसे बुद्ध की मूर्ति मानकर पूजा आरंभ कर दी। शंकराचार्य की प्रचार-यात्रा के समय बौद्ध तिब्बत भागते हुए मूर्ति को अलकनंदा में फेंक गए। शंकराचार्य ने उसकी पुनर्स्थापना की। लेकिन, मूर्ति फिर स्थानांतरित हो गई, जिसे तीसरी बार तप्तकुंड से निकालकर रामानुजाचार्य ने स्थापित किया। मंदिर में नर-नारायण विग्रह की पूजा होती है और अखंड दीप प्रज्ज्वलित रहता है, जो अचल ज्ञान-ज्योति का प्रतीक है। मंदिर के पश्चिम में 27 किमी की दूरी पर बदरीनाथ शिखर के दर्शन होते हैं, जिसकी ऊंचाई 7,138 मीटर है।

योग-ध्यान बदरी धाम
योग-ध्यान बदरी धाम

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जोशीमठ से 18.5 किमी दूर पांडुकेश्वर नामक स्थान पर योग-ध्यान बदरी मंदिर में भगवान नारायण का ध्यानावस्थित तपस्वी स्वरूप का विग्रह विद्यमान है। अष्टधातु की यह मूर्ति बेहद चित्ताकर्षक और मनोहारी है। जनश्रुति है कि भगवान योग-ध्यान बदरी की मूर्ति इंद्रलोक से उस समय लाई गई थी, जब अर्जुन इंद्रलोक से गंधर्व विद्या प्राप्त कर लौटे थे। प्राचीन काल में रावल भी शीतकाल में इसी स्थान पर रहकर भगवान बदरी नारायण की पूजा किया करते थे। सो, यहां पर स्थापित भगवान नारायण का नाम योग-ध्यान बदरी हो गया। योग-ध्यान बदरी का पंच बदरी में तीसरा स्थान है। शीतकाल में जब नर-नारायण आश्रम में बदरीनाथ धाम के पट बंद हो जाते हैं, तब भगवान के उत्सव विग्रह की पूजा इसी स्थान पर होती है। इसलिए इसे 'शीत बदरी' भी कहा जाता है। विशेष यह कि भगवान नारायण के रूप में यहां शीतकाल के दौरान उनके बालसखा एवं प्रतिनिधि उद्धवजी व देवताओं के खजांची कुबेरजी की पूजा होती है।

वृद्ध बदरी धाम

वृद्ध बदरी धाम

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बदरीनाथ हाईवे पर जोशीमठ से सात किमी पहले हेलंग की ओर अणिमठ (अरण्यमठ) गांव में भगवान विष्णु का अत्यंत सुन्दर विग्रह विराजमान है, जिसकी नित्य-प्रति पूजा और अभिषेक होता है। यहां समुद्रतल से 1,380 मीटर की ऊंचाई पर भगवान बदरी नारायण का प्राचीन मंदिर है, जिसमें वे 'वृद्ध बदरी' के रूप में प्रतिष्ठित हैं। जनश्रुति है कि एक बार देवर्षि नारद मृत्युलोक में विचरण करते हुए बदरीधाम की ओर जाने लगे। मार्ग की विकटता देखकर थकान मिटाने को वे अणिमठ नाम स्थान पर रुके। यहां उन्होंने कुछ समय भगवान विष्णु की आराधना व ध्यान कर उनसे दर्शनों की अभिलाषा की। तब भगवान बदरी नारायण ने वृद्ध के रूप में नारदजी को दर्शन दिए, इसलिए भगवान को यहां 'वृद्ध बदरी' नाम मिला, जो भगवान बदरी विशाल के ही प्रतिरूप हैं।

भविष्य बदरी धाम
भविष्य बदरी धाम

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'स्कंद पुराण' के केदारखंड में कहा गया है कि कलयुग की पराकाष्ठा होने पर जोशीमठ के समीप जय-विजय नाम के दोनों पहाड़ आपस में जुड़ जाएंगे। तब राह अवरुद्ध होने से भगवान बदरी विशाल के दर्शन असंभव हो जाएंगे। ऐसे में भक्तगण समुद्रतल से 2,744 मीटर की ऊंचाई पर स्थित भविष्य बदरी धाम में ही भगवान के विग्रह का दर्शन-पूजन कर सकेंगे। भविष्य बदरी धाम जोशीमठ-मलारी मार्ग पर तपोवन से आगे सुभांई गांव के पास स्थित है। यहां पहुंचने के लिए जोशीमठ से तपोवन तक 15 किमी की दूरी सड़क मार्ग से तय करनी पड़ती है। यहां से रिंगी होते हुए भी भविष्य बदरी जा सकते हैं। वर्तमान में तपोवन मार्ग पर सलधार से भी भविष्य बदरी के लिए मार्ग जाता है। छह किमी के इस मार्ग पर सुभांई गांव से आगे तीन किमी की खड़ी चढ़ाई देवदार के घने जंगल के बीच से पैदल तय करनी पड़ती है। कहते हैं कि यहां पर महर्षि अगस्त्य ने तपस्या की थी। वर्तमान में यहां पर पत्थर में अपने-आप भगवान का विग्रह प्रकट हो रहा है। इस मंदिर के कपाट बदरीनाथ के साथ ही खोलने व बंद करने की परंपरा है।

ध्यान बदरी धाम
ध्यान बदरी धाम

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ध्यान बदरी मंदिर पंचम केदार कल्पेश्वर धाम के पास कल्प गंगा नदी के तट पर चमोली जिले की उर्गम घाटी में समुद्रतल से 2135 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदिर उत्तराखंड के अष्ट बदरी मंदिरों में से एक है। मंदिर में काले पत्थर से बनी भगवान विष्णु चतुर्भुज मूर्ति ध्यान मुद्रा में अवस्थित है। भगवान ने अपने हाथ में चक्र व शंख धारण किया हुआ है। मंदिर में नर-नारायण, कुबेर और गरुड़ की प्रतिमाएं भी हैं। कहते हैं कि ध्यान बदरी मंदिर का निर्माण 12वीं सदी में आदि शंकराचार्य के मार्गदर्शन में किया गया था। बेहतरीन कलाकृति और पत्थर की नक्काशी से सजाया यह मंदिर लगभग बदरीनाथ मंदिर के समान ही दिखता है। कहते हैं कि  प्राचीन काल में जब बदरीनाथ धाम पहुंचना सर्दियों में दुर्गम हो जाता था, तब भक्त ध्यान बदरी मंदिर में ही  भगवान विष्णु की पूजा करते थे। ध्यान बदरी मंदिर चार दिशाओं में चार मंदिरों से घिरा हुआ है। इसके पश्चिम में काशी विश्वनाथ मंदिर, पूर्व में कुबेर धारा, उत्तर में घंटाकर्ण मंदिर और दक्षिण में चंडिका मंदिर अवस्थित है। ध्यान बदरी मंदिर की व्यवस्था डिमरी जाति के लोग संभालते हैं, जो बदरीनाथ धाम में श्रीलक्ष्मी मंदिर के मुख्य पुजारी भी हैं। पौराणिक आख्यानों के अनुसार इस स्थान पर इंद्र ने कल्पवास की शुरुआत की थी। कहते हैं कि जब देवराज इंद्र दुर्वासा के शाप से श्रीहीन हो गए, तब उन्होंने भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए इस स्थान पर कल्पवास किया। तब से यहां कल्पवास की परंपरा चल निकली। कल्पवास में चूंकि साधक भगवान के ध्यान में लीन रहता है, इसलिए यहां पर भगवान का विग्रह भी आत्मलीन अवस्था में है। इसी कारण नारायण के इस विग्रह को ध्यान बदरी नाम से संबोधित किया गया। ध्यान बदरी की कथा पांडव वंश के राजा पुरंजय के पुत्र उर्वर ऋषि से भी जुड़ी हुई है। कहते हैं कि उन्होंने उर्गम क्षेत्र में ध्यान किया था और यहां भगवान विष्णु का मंदिर बनवाया। इस मंदिर की एक और खासियत यह है कि गर्भगृह की दीवारें मानव मुखौटों से सजी हैं, जिनका इस्तेमाल मेलों के दौरान मुखौटा नृत्य में किया जाता है। भगवान विष्णु की मुख्य मूर्ति के पास कई शालिग्राम पत्थर भी देखे जा सकते हैं।

ऐसे पहुंचें: यहां पहुंचने के लिए ऋषिकेश से हेलंग चट्टी तक 243 किमी की दूरी सड़क मार्ग से तय करनी पड़ती है। यहां से आगे उर्गम, ल्यारी और देवग्राम तक नौ किमी सड़क मार्ग है। इसके बाद ध्यान बदरी मंदिर तक तीन किमी की यात्रा पैदल करनी पड़ती है।

आदि बदरी धाम
आदि बदरी धाम

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गढ़वाल राज्य की राजधानी रही चांदपुरगढ़ी से तीन किमी आगे रानीखेत मार्ग पर प्राचीन मंदिरों का समूह दिखाई देता है, जो सड़क के दायीं ओर स्थित है। यही है अष्ट बदरी में शामिल आदि बदरी धाम। कथा है कि इन मंदिरों का निर्माण स्वर्गारोहिणी यात्रा के दौरान पांडवों ने किया था। यह भी कहते हैं कि आठवीं सदी में शंकराचार्य ने यह मंदिर बनवाए थे। जबकि, एएसआइ (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) के अनुसार इनका निर्माण आठवीं से 11वीं सदी के बीच कत्यूरी राजाओं ने किया। कुछ वर्षों से एएसआइ ही इन मंदिरों की देखभाल कर रहा है। आदि बदरी मंदिर समूह कर्णप्रयाग से दूरी 11 किमी है। मूलरूप से इस समूह में 16 मंदिर थे, जिनमें अब 14 ही बचे हैं। प्रमुख मंदिर भगवान विष्णु का है, जिसकी पहचान इसका बड़ा आकार और एक ऊंचे चबूतरे पर निर्मित होना है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु एक मीटर ऊंची शालीग्राम की काली प्रतिमा विराजमान है। जो अपने चतुर्भुज रूप में खड़े हैं। इसके सम्मुख एक छोटा मंदिर गरुड़ महाराज का है। अन्य मंदिर सत्यनारायण, लक्ष्मी, अन्नपूर्णा, चकभान, कुबेर (मूर्तिविहीन), राम-लक्ष्मण-सीता, काली, शिव, गौरी व हनुमान को समर्पित हैं। इन प्रस्तर मंदिरों पर गहन एवं विस्तृत नक्काशी हुई है और हर मंदिर पर नक्काशी का भाव विशिष्ट एवं अन्य मंदिरों से अलग भी है। आदि बदरी धाम के पुजारी थापली गांव के थपलियाल होते हैं। इस मंदिर के कपाट साल में सिर्फ पौष मास में बंद रहते हैं और मकर संक्रांति पर्व पर श्रद्धालुओं दर्शनार्थ खोल दिए जाते हैं।

अर्द्ध बदरी धाम
अर्द्ध बदरी धाम

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अष्ट बदरी समूह के मंदिरों में जोशीमठ-मलारी हाईवे पर तपोवन क्षेत्र में स्थित अर्द्ध बदरी धाम का विशिष्ट माहात्म्य है। इस मंदिर में भगवान विष्णु में विराजमान भगवान विष्णु का विग्रह छोटा यानी अन्य बदरी मंदिरों की तुलना में आधे आकार का है। इसलिए यहां भगवान नारायण का 'अर्द्ध बदरी' नाम पड़ा। इसका अर्थ होता है आधा बदरी। कहते हैं कि इस मंदिर का निर्माण भी आदि शंकराचार्य ने ही करवाया था। यहां पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को खड़ी चढ़ाई नापनी पड़ती है। हालांकि, अर्द्ध बदरी धाम के बारे में जानकारी बहुत सीमित है, इसलिए बाहर से गिनती के श्रद्धालु ही यहां पहुंचते हैं। यह मंदिर वर्षभर श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खुला रहता है।

नृसिंह बदरी धाम
नृसिंह बदरी धाम

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चमोली जिले के ज्योतिर्मठ (जोशीमठ) में स्थित नृसिंह मंदिर भगवान विष्णु के 108 दिव्य तीर्थों में से एक माना गया है। अष्ट बदरी में से एक होने के कारण समुद्रतल से 6,150 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर को नृसिंह बदरी भी कहा जाता है। मान्यता है कि आदि शंकराचार्य ने स्वयं यहां भगवान नृसिंह के विग्रह की स्थापना की थी। मंदिर में भगवान नृसिंह की लगभग दस इंच ऊंची शालिग्राम शिला से स्व-निर्मित प्रतिमा स्थापित है। इसमें भगवान नृसिंह कमल पर विराजमान हैं। उनके साथ बदरी नारायण, उद्धव और कुबेर के विग्रह भी स्थापित हैं। भगवान के दायीं ओर श्रीराम, माता सीता, हनुमानजी व गरुड़ महाराज और बायीं तरफ मां चंडिका (काली) विराजमान हैं। मान्यता है कि भगवान नृसिंह के बायें हाथ की कलाई निरंतर कमजोर हो रही है। जिस दिन कलाई टूटकर जमीन पर गिर जाएगी, उसी दिन जोशीमठ के पास नर-नारायण (जय-विजय) पर्वत के आपस में मिलने से बदरीनाथ की राह सदा के लिए अवरुद्ध हो जाएगी। तब भगवान बदरी नारायण जोशीमठ-तपोवन हाईवे पर सुभांई गांव के पास भविष्य बदरी धाम में दर्शन देंगे। शीतकाल के लिए बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने पर आदि शंकराचार्य की गद्दी नृसिंह मंदिर में ही स्थापित होती है। इसलिए पांडुकेश्वर स्थित योग-ध्यान बदरी मंदिर के साथ ही नृसिंह मंदिर में भी भगवान बदरी विशाल की शीतकालीन पूजाएं संपन्न होती हैं। बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने से पूर्व हर साल मंदिर में एक विशेष अनुष्ठान संपन्न होता है, जिसे तिमुंड्या पूजा कहा जाता है। यह पूजा कपाट खुलने से एक या दो सप्ताह पूर्व पहले पड़ने वाले शनिवार या मंगलवार को आयोजित होती है।

बदरीशपुरी

बदरीशपुरी और आसपास के दर्शनीय स्थल

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विष्णुपदी (अलकनंदा) नदी के तट पर तप्त-कुंड, ब्रह्म कपाल, सर्प का जोड़ा, शेषनाग की छाप वाला शिलाखंड 'शेषनेत्र', शेषनेत्र झील, बर्फ से ढका नीलकंठ शिखर, माता मूर्ति मंदिर, देश का प्रथम गांव माणा, वेदव्यास गुफा, गणेश गुफा, भीम पुल, अष्ट वसुओं की तपोस्थली वसुधारा, लक्ष्मी वन, सतोपंथ (स्वर्गारोहिणी), अलकनंदा नदी का उद्गम एवं कुबेर का निवास अलकापुरी, सरस्वती नदी, बामणी गांव में भगवान विष्णु की जंघा से उत्पन्न उर्वशी का मंदिर व लीलाढूंगी में चरणपादुका।विशेषकर बदरीनाथ धाम में नारायण पर्वत की चोटी को निहारो तो लगता है कि मंदिर के ऊपर पर्वत की चोटी शेषनाग के रूप में अवस्थित है। शेषनाग के प्राकृतिक फन स्पष्ट देखे जा सकते हैं।

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Eight Dhams of Lord Badri Narayan in Uttarakhand Himalayas 

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Dinesh Kukreti 

People all over the world are familiar with Badrinath Dham located in Badrikashram area of ​​Uttarakhand Himalayas, but only a few people will know  that here Lord Badri Vishal is established in not one but eight forms, which is called Ashta Badri group.  These eight mythological pilgrimages have as much importance as Badrinath Dham.  Like Badrinath Dham, Lord Narayan resides in these pilgrimages with different names.  The establishment period of all these temples of Ashta Badri group is also more or less the same as that of Badrinath Dham.  It is said that Badrinath temple existed in the eighth century.   These include Adi Badri on the Ranikhet road near Karnaprayag, Yoga-Dhyan Badri in Pandukeshwar on the Badrinath Highway, Bhavishya Badri in Subhai village on the Joshimath-Malari Highway, Ardha Badri near Tapovan on the same highway, Dhyan Badri in Urgam Valley near Helang  , Vriddha Badri in Animath village near Helang, Nrusinha Badri in Joshimath and Vishal Badri in Badrishpuri, i.e. Badrinath Dham.

Some temples of the Ashta Badri group located in Chamoli district remain open for visitors throughout the year, while the rest have a tradition of opening and closing the doors like the Char Dham. It is said that in ancient times when the path to Badrinath Dham was very difficult and full of difficulties, most devotees used to attain the virtue of darshan of Lord Narayana at Adi Badri Dham. But, with the passage of time, the road to Badrinath Dham became easier. There is also a belief that the wrist of the left hand of Lord Narasimha in Narasimha Temple Joshimath is continuously weakening. The day this wrist breaks and falls on the ground at the peak of Kalyug, the Nar-Narayan (Jai-Vijay) mountains will join together. After this, the path to Badrinath Dham will be blocked forever. Then Lord Badri Narayan will give darshan to his devotees at Bhavishya Badri Dham located in Subhai village. The important thing is that except for Narasimha Badri, devotees get darshan of Lord Narayana only in all other temples.  Whereas, in the Narasimha temple, Narayana is seated in his fourth incarnation as Narasimha. However, on his seat, he sits with the Dev Panchayat just like Lord Badri Narayan.

Not just the center of faith, but also the pivot of life

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The temples of the Ashta Badri group are not just the center of faith, but also the pivot of life in the mountains. The economy of thousands of people is directly and indirectly linked to these temples. During the six months of the pilgrimage period, they conduct various economic activities including worship and rituals here and gather means of livelihood for the whole year. If seen, these temples also have a huge contribution in stopping migration from the mountains. Apart from this, the 14 temples of the Ashta Badri and Kedar group have been playing an important role for generations in the promotion of mountain culture and traditions.

Narayan in various forms

The huge Badri Dham

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Situated at an altitude of 3,133 meters above sea level in the lap of Nar-Narayan mountain and Neelkanth mountain ranges, Bhu-Vaikunth Badrinath Dham is the best pilgrimage among the four Dhams of the country.  The three other holy places are Rameswaram (Tamil Nadu), Dwarka (Gujarat) and Jagannathpuri (Orissa). It is said in the scriptures that 'Bahuni santi tirthani, divi bhumau rasasu cha. Badri sadrisham tirtha, na bhooto na bhavishyati.' That is there are many holy places, many holy places on earth but a holy place like Shri Badrinath has never existed and will never exist in future. It is believed that Adi Shankaracharya built the Badrinath temple in the 8th century. In the sanctum sanctorum of the temple, the Chaturbhuj (four-armed) idol of Lord Narayana is seated in the Badrish Panchayat. This idol made of Shaligram stone is in a meditative state. There is a story that this idol was taken out from Narad Kund by the Gods and installed in the sanctum sanctorum of the temple. When the Buddhists became dominant, they started worshipping it considering it to be the idol of Buddha. During the preaching tour of Shankaracharya, the Buddhists while fleeing to Tibet threw the idol in the Alaknanda. Shankaracharya reestablished it.  However, the idol was again moved, which was taken out from Taptkund for the third time and installed by Ramanujacharya. The idol of Nar-Narayan is worshipped in the temple and an eternal lamp is lit, which is a symbol of the eternal light of knowledge. Badrinath peak can be seen at a distance of 27 km to the west of the temple, whose height is 7,138 meters.

Yoga-Dhyan Badri Dham

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The idol of Lord Narayana in a meditative ascetic form is present in the Yoga-Dhyan Badri temple at a place called Pandukeshwar, 18.5 km from Joshimath. This idol of Ashtadhatu is very attractive and beautiful. It is a popular belief that the idol of Lord Yoga-Dhyan Badri was brought from Indralok when Arjuna returned from Indralok after acquiring Gandharva Vidya. In ancient times, Rawal also used to worship Lord Badri Narayan by staying at this place during winters. So, the name of Lord Narayana installed here became Yoga-Dhyan Badri. Yoga-Dhyan Badri has the third place among the Panch Badri. During winters, when the doors of Badrinath Dham are closed in Nar-Narayan Ashram, then the Utsav idol of the Lord is worshipped at this place. Therefore, it is also called 'Sheet Badri'.  The special thing is that during winters, Lord Narayan is worshipped as his childhood friend and representative Uddhavji and the treasurer of the gods, Kuberji.



Vriddha Badri Dham

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On the Badrinath highway, seven km before Joshimath, towards Helang, in the village of Animath (Aranyamath), there is a very beautiful idol of Lord Vishnu, which is worshipped and anointed every day. Here, at a height of 1,380 meters above sea level, there is an ancient temple of Lord Badri Narayan, in which he is enshrined as 'Vriddha Badri'. There is a popular belief that once Devrishi Narad, while roaming in the mortal world, started going towards Badri Dham. Seeing the difficulty of the path, he stopped at a place called Animath to relieve his fatigue. Here, he worshipped and meditated Lord Vishnu for some time and wished to have his darshan.  Then Lord Badri Narayan appeared to Naradji in the form of an old man, hence the Lord got the name 'Vriddha Badri' here, who is the replica of Lord Badri Vishal.

Bhavishya Badri Dham

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It is said in the Kedarkhand of 'Skanda Purana' that when the peak of Kalyug is reached, both the mountains named Jai-Vijay will join together near Joshimath. Then the darshan of Lord Badri Vishal will become impossible due to the obstruction of the path. In such a situation, devotees will be able to worship the idol of the Lord only in Bhavishya Badri Dham, situated at an altitude of 2,744 meters above sea level. Bhavishya Badri Dham is located near Subhai village ahead of Tapovan on the Joshimath-Malari road. To reach here, a distance of 15 km from Joshimath to Tapovan has to be covered by road. From here one can also go to Bhavishya Badri via Ringi. Currently, on the Tapovan road, there is a road from Saldhar to Bhavishya Badri. On this six km route, a steep climb of three km has to be covered on foot through a dense forest of deodar after Subhai village. It is said that Maharishi Agastya had performed penance here.  At present, the idol of the Lord is appearing on its own in the stone. There is a tradition of opening and closing the doors of this temple along with Badrinath.

Dhyan Badri Dham

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Dhyan Badri Temple is located at an altitude of 2135 meters above sea level in Urgam Valley of Chamoli district on the banks of Kalp Ganga River near Pancham Kedar Kalpeshwar Dham. This temple is one of the Ashta Badri Temples of Uttarakhand. In the temple, Lord Vishnu Chaturbhuj idol made of black stone is situated in meditation posture. Lord is holding Chakra and Shankh in his hand. There are also statues of Nar-Narayan, Kuber and Garuda in the temple. It is said that Dhyan Badri Temple was built in the 12th century under the guidance of Adi Shankaracharya. Decorated with excellent artwork and stone carvings, this temple looks almost similar to Badrinath Temple. It is said that in ancient times when reaching Badrinath Dham became inaccessible in winters, then devotees used to worship Lord Vishnu in Dhyan Badri Temple itself. Dhyan Badri Temple is surrounded by four temples in four directions.  Kashi Vishwanath Temple is situated to its west, Kuber Dhara to the east, Ghantakarna Temple to the north and Chandika Temple to the south. The management of Dhyan Badri Temple is handled by people of Dimri caste, who are also the chief priests of Sri Lakshmi Temple in Badrinath Dham. According to mythological stories, Indra started Kalpavas at this place. It is said that when Devraj Indra became poor due to the curse of Durvasa, he did Kalpavas at this place to please Lord Vishnu. Since then, the tradition of Kalpavas started here. Since in Kalpavas, the devotee remains absorbed in the meditation of God, hence the idol of God here is also in a self-absorbed state. For this reason, this idol of Narayan was addressed as Dhyan Badri. The story of Dhyan Badri is also associated with Urvar Rishi, son of King Puranjay of the Pandava dynasty. It is said that he meditated in the Urgam area and built a temple of Lord Vishnu here.  Another special feature of this temple is that the walls of the sanctum sanctorum are adorned with human masks, which are used in mask dances during fairs. Many Shaligram stones can also be seen near the main idol of Lord Vishnu.

How to reach

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To reach here, one has to cover a distance of 243 km by road from Rishikesh to Helang Chatti. From here onwards, there is a 9 km road to Urgam, Lyari and Devgram. After this, one has to walk 3 km to reach Dhyan Badri temple.

Adi Badri Dham

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Three km ahead of Chandpurgarhi, the capital of Garhwal state, a group of ancient temples is visible on the Ranikhet road, which is located on the right side of the road. This is Adi Badri Dham, which is included in Ashta Badri. There is a story that these temples were built by the Pandavas during the Swargarohini Yatra. It is also said that Shankaracharya built these temples in the 8th century. Whereas, according to ASI (Archaeological Survey of India), these were built by Katyuri kings between the 8th and 11th centuries. For some years, ASI has been taking care of these temples. The Adi Badri temple group is 11 km away from Karnaprayag.  Originally there were 16 temples in this group, of which only 14 are left now. The main temple is of Lord Vishnu, which is identified by its large size and being built on a high platform. Lord Vishnu is seated in the sanctum sanctorum of the temple. He is standing in his Chaturbhuj form. In front of it is a small temple of Garuda Maharaj. Other temples are dedicated to Satyanarayan, Lakshmi, Annapurna, Chakbhan, Kuber (idolless), Ram-Lakshman-Sita, Kali, Shiva, Gauri and Hanuman. There is deep and detailed carving on these stone temples and the expression of carving on each temple is unique and different from other temples. The priests of Adi Badri Dham are Thapliyals of Thapali village. The doors of this temple remain closed only in the month of Paush in the year and are opened for devotees to visit on the festival of Makar Sankranti.


Ardha Badri Dham

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Among the temples of the Ashta Badri group, Ardha Badri Dham located in Tapovan area on Joshimath-Malari highway has a special significance. The idol of Lord Vishnu seated in this temple is small i.e. half the size of other Badri temples. Therefore, Lord Narayana was named 'Ardha Badri' here. It means half Badri. It is said that this temple was also built by Adi Shankaracharya. To reach here, devotees have to climb a steep slope. However, information about Ardha Badri Dham is very limited, so only a few devotees reach here from outside. This temple remains open for devotees throughout the year.


Nrusinha Badri Dham

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Nrusinha Temple located in Jyotirmath (Joshimath) of Chamoli district is considered one of the 108 divine pilgrimages of Lord Vishnu.  Being one of the Ashta Badris, this temple, located at a height of 6,150 feet above sea level, is also known as Narasimha Badri. It is believed that Adi Shankaracharya himself established the idol of Lord Narasimha here. A self-made idol of Lord Narasimha, about ten inches high, is installed in the temple from Shaligram stone. Lord Narasimha is seated on a lotus in it. Along with him, idols of Badri Narayan, Uddhav and Kuber are also installed. Shri Ram, Mata Sita, Hanumanji and Garuda Maharaj are seated on the right side of the Lord and Mother Chandika (Kali) is seated on the left side. It is believed that the wrist of Lord Narasimha's left hand is continuously getting weak. The day the wrist breaks and falls on the ground, the path to Badrinath will be blocked forever due to the joining of Nar-Narayan (Jai-Vijay) mountains near Joshimath.  Then Lord Badri Narayan will give darshan in Bhavishya Badri Dham near Subhai village on Joshimath-Tapovan highway. When the doors of Badrinath Dham are closed for the winter season, the throne of Adi Shankaracharya is established in the Nrusinha Temple itself. Therefore, along with the Yoga-Dhyan Badri Temple in Pandukeshwar, the winter pujas of Lord Badri Vishal are performed in the Nrusinha Temple as well. Before the opening of the doors of Badrinath Dham, a special ritual is performed in the temple every year, which is known as Timundya Puja. This puja is conducted on the Saturday or Tuesday falling one or two weeks before the opening of the doors.

Tourist Spots in Badrishpuri and Nearby

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Tapt-Kund on the bank of river Vishnupadi (Alaknanda), Brahma Kapal, pair of snakes, rock with imprint of Sheshnag 'Sheshnetra', Sheshnetra lake, snow-covered Neelkanth peak, Mata Murti Mandir, country's first village Mana, Vedvyas cave, Ganesh cave, Bhima bridge, Ashta Vasudhara, the place of penance of eight Vasus, Lakshmi forest, Satapath (Swargarohini), origin of Alaknanda river and residence of Kuber Alakapuri, Saraswati river, temple of Urvashi born from the thigh of Lord Vishnu in Bamni village and Charanpaduka in Liladhungi. Especially if you look at the peak of Narayan mountain in Badrinath Dham, it seems that the peak of the mountain above the temple is situated in the form of Sheshnag. Natural hood of Sheshnag can be clearly seen.





Wednesday, 16 October 2024

16-10-2024 (अनूठे हैं उर्गम घाटी के फ्यूंला नारायण)



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अनूठे हैं उर्गम घाटी के फ्यूंला नारायण
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दिनेश कुकरेती
त्तराखंड के चमोली जनपद में जोशीमठ विकासखंड की उर्गम घाटी का भर्की गांव। यहां से चार किमी की पैदल दूरी पर पश्चिम भाग में भगवान श्रीविष्णु का ऐसा मंदिर है, जहां उनके शृंगार का अधिकार सिर्फ महिलाओं को है। समुद्रतल से 10 हजार फीट की ऊंचाई पर पंचम केदार भगवान कल्पेश्वर और भगवान ध्यान बदरी के पावन क्षेत्र में स्थित इस मंदिर में भगवान विष्णु की ख्याति भगवान फ्यूंला नारायण के रूप में है। मंदिर के आसपास उगने वाले विशेष फूल फ्यूंला की वजह से भगवान को फ्यूंला नारायण नाम मिला है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु चतुर्भुज रूप में विराजमान हैं। दक्षिण शैली में बने इस मंदिर में भगवान विष्णु के अलावा मां लक्ष्मी और जय-विजय नामक द्वारपालों की मूर्तियां भी हैं। मंदिर के कपाट हर साल कर्क संक्रांति (श्रावण संक्रांति) के दिन 15 से 17 जुलाई के बीच धूमधाम से खोले जाते हैं और नंदा अष्टमी (भाद्रपद शुक्ल अष्टमी) पर 30 अगस्त से 25 सितंबर के मध्य बंद कर दिए जाते हैं। इसी दिन अगले वर्ष के लिए पुजारी का चयन भी किया जाता है। कपाट बंद होने के बाद शेष नौ महीने भगवान फ्यूंला नारायण की पूजा भर्की गांव में होती है।



सिर्फ महिला पुजारी करती हैं श्रीहरि का शृंगार
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फ्यूंला नारायण मंदिर में पुरुष के साथ महिला पुजारी का भी विधान है, लेकिन भगवान नारायण के शृंगार का अधिकार केवल महिलाओं को है। सात वर्ष से 12 वर्ष तक की कन्या या 50 वर्ष से अधिक आयु की महिला इस मंदिर की पुजारी हो सकती है। जिस महिला को शृंगार की जिम्मेदारी सौंपी जाती है, वह कपाट बंद होने तक गाय व उसके बछड़े के साथ मंदिर में ही रहती है। इस महिला को फ्यूंल्यांण कहा जाता है। भगवान को हर दिन तीनों पहर भोग लगाने की जिम्मेदारी भी इसी की महिला की होती है। इसके अलावा पुरुष पुजारी भी कपाट बंद होने तक मंदिर को नहीं छोड़ते। महिला व पुरुष पुजारी एक ही परिवार से होते हैं। अन्य ग्रामीण भी यात्राकाल में मंदिर के आसपास स्थित छानियों में अपने मवेशियों को रखते हैं, ताकि पूजा के लिए दूध-मक्खन की कमी न हो। खास बात यह कि मंदिर के पुजारी ब्राह्मण नहीं, बल्कि ठाकुर जाति के लोग होते हैं। भगवान को हर दिन तीनों पहर सत्तू, पिंजरी, घी, मक्खन, दूध व बाड़ी का भोग लगाया जाता है, जिसे गाडा कहते हैं। प्रातः भगवान को नित्य स्नान के बाद चंदन का तिलक कर बालभोग और राजभोग लगाया जाता है, जबकि संध्याकाल में भगवान को दूध का भोग लगता है। आरती के बाद भगवान नारायण योग निद्रा में चले जाते हैं।


चैतन्य और वैराग्य का प्रतीक घंटी-चिमटा
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कर्क संक्रांति के मौके पर मंदिर के कपाट खोलने के लिए भर्की स्थित पंचनाम देवता मंदिर से पुजारी और भूम्याळ देवता की अगुआई में भेंटा, भर्की, पिलखी, गवाणा व अरोशी सहित उर्गम घाटी के सभी 12 गांवों के लोग फ्यूंला नारायण धाम के लिए प्रस्थान करते हैं। ये सभी फ्यूंला नारायण मंदिर के हक-हकूकधारी हैं। इससे पहले भूम्याळ देवता के पश्वा मंदिर के पुजारी को घंटी व चिमटा प्रदान करते हैं, जो कि ध्यान, चिंतन और चेतन के प्रतीक हैं। इसका भाव यह है कि कपाट खुलने के दिन से कपाट बंद होने तक पुजारी को चेतन रहना पड़ेगा और वैराग्य का पालन करना होगा। इसी के साथ नारायण की यात्रा आगे बढ़ेगी।

कपाट बंद होने तक जलती रहती है अखंड धूनी
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फ्यूंला नारायण मंदिर में भगवान नारायण में अलावा माता लक्ष्मी, क्षेत्रपाल घंटाकर्ण देवता, भूम्याळ जाख देवता, नंदा-सुनंदा, वन देवी, वरुण देवता व पितरों की पूजा का विधान है। मंदिर के कपाट बंद होने तक अखंड धूनी जलती रहती है। प्रत्येक दिन भगवान को बाड़ी व सत्तू का भोग लगाया जाता है।



सबसे पहले अप्‍सरा उर्वशी ने किया था भगवान का शृंगार
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यहां महिला पुजारी के होने का संदर्भ स्वर्ग की अप्‍सरा उर्वशी से जुड़ा हुआ है। कहते हैं कि एक बार उर्वशी पुष्प चुनने के लिए उर्गम घाटी में पहुंचीं तो उन्होंने यहां भगवान विष्णु को विचरण करते हुए देखा। इस पर उर्वशी ने रंग-विरंगे फूलों की माला भगवान को भेंट की। साथ ही फूलों से उनका शृंगार करने लगीं। तब से फ्यूंला नारायण मंदिर में महिलाएं ही भगवान का शृंगार करती आ रही हैं। यह भी मान्यता है कि घाटी में ऋषि दुर्वासा ने भी कई सालों तक तपस्या की थी।



पहले उर्गम घाटी से होकर जाता था बदरीनाथ का रास्ता
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जनश्रुति है कि प्राचीनकाल में जब बदरी-केदार की पूजा एक साथ होती थी, तब एक शंकु मार्ग से तीर्थयात्री बदरीशपुरी पहुंचते थे। यह शंकु मार्ग फ्यूंला नारायण मंदिर से पंचम केदार कल्पेश्वर धाम और नीलकंठ होते हुए बदरीनाथ धाम पहुंचता था। उस दौर में बदरीनाथ धाम जाने वाले यात्री यहां भगवान फ्यूंला नारायण के दर्शन कर ही आगे बढ़ते थे। स्वयं बदरीनाथ धाम के रावल यहां पहुंचकर भगवान नारायण की पूजा करते थे। उसी कालखंड से यहां हर वर्ष श्रावण संक्रांति पर ठाकुर परिवारों द्वारा भगवान विष्णु की पूजा की जाती रही है।
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The unique Phyunla Narayan of Urgam Valley
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Dinesh Kukreti
Bharki village of Urgam Valley of Joshimath development block in Chamoli district of Uttarakhand. At a distance of four km from here, in the western part, there is a temple of Lord Shri Vishnu, where only women have the right to adorn him. Situated at an altitude of 10 thousand feet above sea level in the holy area of ​​Pancham Kedar Lord Kalpeshwar and Lord Dhyan Badri, in this temple, Lord Vishnu is famous as Lord Phyunla Narayan. The Lord has got the name Phyunla Narayan because of the special flower Phyunla that grows around the temple. Lord Vishnu is seated in the sanctum sanctorum of the temple in the form of Chaturbhuj. In this temple built in the southern style, apart from Lord Vishnu, there are also idols of Maa Lakshmi and gatekeepers named Jai-Vijay.  The doors of the temple are opened every year with great pomp on the day of Kark Sankranti (Shravan Sankranti) between 15 to 17 July and closed on Nanda Ashtami (Bhadrapada Shukla Ashtami) between 30 August to 25 September. On this day, the priest is also selected for the next year. After the doors are closed, Lord Phyunla Narayan is worshipped in Bharki village for the remaining nine months.

Only female priests decorate Shri Hari
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In the Phyunla Narayan temple, there is a provision for female priests along with men, but only women have the right to decorate Lord Narayan. A girl aged between 7 to 12 years or a woman above 50 years of age can be the priest of this temple. The woman who is entrusted with the responsibility of decoration stays in the temple with the cow and her calf until the doors are closed. This woman is called Phyunlyan. The responsibility of offering food to the Lord every day three times also lies with this woman. Apart from this, the male priests also do not leave the temple until the doors are closed. The male and female priests are from the same family. Other villagers also keep their cattle in the huts located around the temple during the pilgrimage period, so that there is no shortage of milk and butter for the puja. The special thing is that the priests of the temple are not Brahmins, but people of Thakur caste.  Every day, the Lord is offered Sattu, Pinjari, Ghee, Butter, Milk and Badi at all three times, which is called Gada. In the morning, after the Lord's daily bath, a sandalwood tilak is applied and Balbhog and Rajbhog are offered to him, while in the evening, milk is offered to the Lord. After the Aarti, Lord Narayana goes into Yog Nidra.


Bell and tongs symbol of consciousness and detachment
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On the occasion of Cancer Sankranti, to open the doors of the temple, people from all the 12 villages of Urgam valley including Bhenta, Bharki, Pilkhi, Gavana and Aroshi leave for Phyunla Narayan Dham from Panchnam Devta temple located in Bharki under the leadership of the priest and Bhumyal Devta. All of them are the right holders of Phyunla Narayan temple. Before this, the priest of Bhumyal Devta gives the bell and tongs to the priest of the temple, which are the symbols of meditation, contemplation and consciousness. Its meaning is that from the day of opening the doors till the closing of the doors, the priest will have to remain conscious and follow detachment. With this, Narayan's journey will move forward.


The eternal fire keeps burning till the doors are closed
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In the Phyunla Narayan temple, apart from Lord Narayan, there is a ritual of worshipping Goddess Lakshmi, Kshetrapal Ghantkarna Devta, Bhumyal Jakh Devta, Nanda-Sunanda, Van Devi, Varun Devta and ancestors. The eternal fire keeps burning till the doors of the temple are closed. Every day, Badi and Sattu are offered to the Lord.

Apsara Urvashi was the first to adorn the Lord
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The reference of the presence of a female priest here is connected to the Apsara Urvashi of heaven. It is said that once Urvashi reached Urgam Valley to pick flowers, she saw Lord Vishnu roaming here. On this, Urvashi presented a garland of colorful flowers to the Lord. She also started adorning him with flowers. Since then, women have been adorning the Lord in the Phyunla Narayan temple. It is also believed that sage Durvasa also did penance for many years in the valley.

Earlier the route to Badrinath used to go through Urgam Valley
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There is a popular belief that in ancient times when Badri-Kedar were worshipped together, then pilgrims used to reach Badrishpuri through a conch road.  This Shanku Marg used to reach Badrinath Dham from Phyunla Narayan Temple via Pancham Kedar Kalpeshwar Dham and Neelkanth. In those days, pilgrims going to Badrinath Dham used to proceed further only after having darshan of Lord Phyunla Narayan here. Rawal of Badrinath Dham himself used to worship Lord Narayan after reaching here. Since that time, Lord Vishnu has been worshipped here every year on Shravan Sankranti by Thakur families.



Wednesday, 9 October 2024

09-10-2024 (दो युग बाद भी नहीं किया हनुमान को माफ)

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दो युग बाद भी नहीं किया हनुमान को माफ
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दिनेश कुकरेती
प्रकृति के संरक्षण को लेकर दुनियाभर में बातें तो बहुत होती हैं, लेकिन प्रकृति के प्रति समर्पण का जैसा भाव द्रोणागिरी के निवासियों में है, वैसा व्यवहार में शायद ही कहीं और देखने को मिले। उत्तराखंड के चमोली जिले की नीती घाटी का चीन सीमा पर पड़ने वाला गांव है द्रोणागिरी। कहते हैं कि त्रेता युग में मेघनाद के शक्ति प्रहार से जब लक्ष्मण मूर्छित हो गए तो सुषेण वैद्य की सलाह पर उनका जीवन बचाने को संजीवनी बूटी लेने हनुमान इसी गांव से होकर द्रोणागिरी पर्वत पर पहुंचे थे। इस गांव के लोगों की नाराजगी इसी बात को लेकर है कि तब हनुमान संजीवनी के बजाय द्रोणागिरी पर्वत का एक हिस्सा उखाड़कर ही लंका ले गए। जबकि, द्रोणागिरी पर्वत उनके ईष्ट देव हैं और हनुमान ने इस पर्वत का एक हिस्सा उखाड़कर उनके ईष्ट का निरादर किया। इसी नाराजगी की वजह से दो युग बाद भी वे हनुमान को माफ नहीं कर पाए। तभी तो आज भी द्रोणागिरी गांव में हनुमान की पूजा ही नहीं होती। यही नहीं, हनुमान की पूजा करने वाले को बिरादरी तक से बाहर कर दिया जाता है।
समुद्रतल से 12 हजार फीट की ऊंचाई पर 150 परिवार और 750 की आबादी (वर्ष 2024 में) वाले द्रोणागिरी गांव तक पहुंचने के लिए जुमा से 12 किमी की चढ़ाई नापनी पड़ती है। हालांकि, अब गांव से दो किमी पहले छियाटा तोक तक सड़क पहुंच गई है। गांव में भोटिया जनजाति के लोग निवास करते हैं, जो चीन सीमा पर द्वितीय रक्षापंक्ति की भूमिका ही नहीं निभाते, बल्कि प्रकृति के भी सजग प्रहरी हैं। जल, जंगल, जमीन इनके जीवन का अभिन्न अंग हैं और तीनों को ही इनकी संस्कृति में देवता का स्थान हासिल है। कोई भी इनकी प्रकृति को नुकसान पहुंचाता है तो ये उसे अपनी संस्कृति पर आक्रमण मानते हैं। हनुमान को बैरी मानने के पीछे भी यही मुख्य वजह है। ग्रामीणों को लगता है कि हनुमान का नाम लेने पर पर्वत देवता रुष्ट हो जाएंगे और उनको दंड का भागी बनना पड़ेगा। इसलिए वे न तो सिंदूर और लाल पिठाई का प्रयोग करते हैं, न गांव में लाल ध्वज ही फहराया जाता है।



...फिर भी पहाड़ उखाड़कर ले गए हनुमान
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लोगों का कहना है कि हनुमान जब संजीवनी लेने आए, तब गांव की एक वृद्धा ने उन्हें पर्वत का वह हिस्सा दिखाया, जहां संजीवनी बूटी उगती थी। साथ ही यह भी बताया कि इस बूटी तक वह कैसे पहुंच सकते हैं। लेकिन, हनुमान फिर भी वह पूरा हिस्सा उखाड़कर ही ले गए। हालांकि, द्रोणागिरी के लोगों की राम से कोई नाराजगी नहीं है और वह श्रद्धापूर्वक राम की भक्ति करते हैं। लेकिन, रामलीला का आयोजन यहां सिर्फ तीन दिन के लिए होता है। श्रीराम जन्म व सीता स्वयंवर के बाद सीधे राम का राज्याभिषेक कर दिया जाता है। इस रामलीला में हनुमान लीला का मंचन नहीं किया जाता। लोगों की धारणा है कि गांव में संपूर्ण रामलीला का मंचन करने से कुछ-न-कुछ अशुभ अवश्य होता है। वह कहते हैं, वर्ष 1980 में द्रोणागिरी में रामलीला का मंचन किया गया। तब कुछ ऐसी विचित्र घटनाएं घटी कि मंचन बंद करना पड़ा। इसके बाद किसी ने ऐसा दुस्साहस नहीं किया।



दाह-संस्कार नहीं, दफनाया जाता है शव
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द्रोणागिरी देश का पहला ऐसा हिंदू गांव है, जहां किसी की मृत्यु होने पर पार्थिव देह को जलाया नहीं जाता, बल्कि दफनाया जाता है। इसके पीछे सोच यह है कि शव जलाने के लिए इस्तेमाल होने वाली लकड़ियों से उच्च हिमालयी क्षेत्र के इस गांव का पर्यावरण प्रदूषित न हो। शीतकाल के दौरान द्रोणागिरी के ग्रामीण माइग्रेट होकर चमोली, मैठाणा, छिनका समेत अन्य गांवों में आ जाते हैं। तब यहां किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर शव का बाकायदा दाह-संस्कार किया जाता है।



श्रीलंका में भी है संजीवनी पर्वत
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माना जाता है कि श्रीलंका के दक्षिणी तट गाले में मौजूद 'श्रीपद' नाम की जगह पर स्थित पहाड़ ही द्रोणागिरी पर्वत का वह हिस्सा है, जिसे संजीवनी की खातिर हनुमान हिमालय से उठाकर ले गए थे। इस पहाड़ को 'एडम्स पीक' भी कहते हैं, जबकि श्रीलंकाई लोग इसे 'रहुमशाला कांडा' कहते हैं। समुद्रतल से 2200 मीटर की ऊंचाई पर यह पहाड़ रतनपुर जिले में स्थित है और समनाला माउंटेन रेंज का हिस्सा है।



पर्वत देवता को मनाने द्रोणागिरी आए थे राम
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मान्यता है कि लंका विजय के बाद श्रीराम स्वयं पर्वत देवता को मनाने के लिए स्वयं द्रोणागिरी गांव आए थे। गांव में एक छोटे से पहाड़ पर जहां उनके चरण पड़े, उसे 'रामपातल' नाम से राम तीर्थ के रूप में पूजा जाता है। इस जंगल में भोजपत्र समेत दुर्लभ जड़ी-बूटी पाई जाती हैं। गांव के आसपास औषधीय जड़ी-बूटियों का भंडार बिखरा हुआ है। यहां कुछ फूल तो ऐसे हैं, जो फूलों की घाटी में भी देखने को नहीं मिलते।



महिलाएं नहीं बनतीं पूजन-प्रसाद का हिस्सा
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गांव की किसी भी महिला को पर्वत देवता के पूजन व प्रसाद बनाने में शामिल नहीं किया जाता। लोक मान्यता है कि जब हनुमान संजीवनी लेने द्रोणागिरी पहुंचे तो उन्हें पूरे क्षेत्र में जड़ी-बूटी चमकते हुए दिखी थीं। हनुमान को परेशान देख गांव की एक बुजुर्ग महिला ने उन पर संजीवनी का भेद खोल दिया था। इसके बाद हनुमान वहां से पर्वत ही उठाकर ले गए थे। ग्रामीणों का मानना है कि बुजुर्ग महिला भेद नहीं खोलती तो पर्वत देवता का अपमान नहीं होता।

ऐसे पहुंचें
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द्रोणागिरी के लिए ऋषिकेश से जोशीमठ तक 256 किमी और जोशीमठ से जुमा तक 45 किमी की दूरी वाहन से तय करनी होती है। यहां से द्रोणागिरी तक 12 किमी का पैदल ट्रेक है। हालांकि, छियाटा तोक तक सड़क बन जाने के कारण अब यह दूरी महज दो किमी रह गई है, लेकिन ट्रेकिंग के शौकीन पैदल चलने में ही आनंद महसूस करते हैं।
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Hanuman was not forgiven even after two eras
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Dinesh Kukreti
There is a lot of talk about the conservation of nature all over the world, but the kind of devotion towards nature that the residents of Dronagiri have, is rarely seen anywhere else in practice. Dronagiri is a village located on the China border in the Niti Valley of Chamoli district of Uttarakhand. It is said that in the Treta Yuga, when Lakshman became unconscious due to Meghnad's Shakti attack, on the advice of Sushen Vaidya, Hanuman reached Dronagiri mountain through this village to get Sanjivani herb to save his life. The people of this village are angry about the fact that then Hanuman uprooted a part of Dronagiri mountain and took it to Lanka instead of Sanjivani. Whereas, Dronagiri mountain is their Ishta Dev and Hanuman disrespected their Ishta Dev by uprooting a part of this mountain. Due to this anger, they could not forgive Hanuman even after two eras. That is why even today Hanuman is not worshipped in Dronagiri village.  Not only this, those who worship Hanuman are even expelled from the community.

To reach Dronagiri village, which has 150 families and a population of 750 (in the year 2024) at an altitude of 12 thousand feet above sea level, one has to climb 12 km from Juma. However, now the road has reached Chhiyata Tok, two km before the village. People of Bhotiya tribe live in the village, who not only play the role of second line of defense on the China border, but are also vigilant guards of nature. Water, forest, land are an integral part of their life and all three have the status of deity in their culture. If anyone harms their nature, then they consider it an attack on their culture. This is also the main reason behind considering Hanuman as an enemy. The villagers feel that if they take the name of Hanuman, the mountain god will get angry and they will have to face punishment. Therefore, they neither use vermilion and red pithai, nor is the red flag hoisted in the village.

... Still Hanuman uprooted the mountain and took it away
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People say that when Hanuman came to take Sanjivani, an old woman of the village showed him the part of the mountain where Sanjivani herb grew. She also told him how he could reach this herb. But Hanuman still uprooted that entire part and took it away. However, the people of Dronagiri have no resentment towards Ram and they worship him with devotion. But, Ramleela is organized here only for three days. After Shri Ram's birth and Sita's swayamvar, Ram is directly coronated. Hanuman leela is not staged in this Ramleela. People believe that staging the entire Ramleela in the village definitely leads to some inauspicious thing. They say, Ramleela was staged in Dronagiri in the year 1980. Then some strange incidents happened that the staging had to be stopped. After this, no one dared to do such a thing.

The dead body is buried, not cremated
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Dronagiri is the first Hindu village in the country where the body is not cremated, but buried when someone dies. The idea behind this is that the wood used for cremating the dead body should not pollute the environment of this village in the high Himalayan region. During winters, the villagers of Dronagiri migrate to Chamoli, Maithana, Chhinka and other villages. Then, when a person dies here, the dead body is properly cremated.

Sanjeevani mountain is also in Sri Lanka
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It is believed that the mountain located at a place called 'Sripad' in Galle on the southern coast of Sri Lanka is that part of Dronagiri mountain which Hanuman had taken from the Himalayas for Sanjeevani. This mountain is also called 'Adam's Peak', while Sri Lankans call it 'Rahumshala Kanda'.  At an altitude of 2200 m above sea level, this hill is located in Ratanpur district and is part of the Samanala Mountain Range.

Ram came to Dronagiri to convince the mountain god
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It is believed that after conquering Lanka, Shri Ram himself came to Dronagiri village to convince the mountain god. A small mountain in the village where his feet fell is worshipped as Ram Teerth by the name 'Rampatal'. Rare herbs including Bhojpatra are found in this forest. There is a store of medicinal herbs scattered around the village. There are some flowers here which are not seen even in the Valley of Flowers.

Women do not become a part of worship and Prasad
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No woman of the village is included in the worship of the mountain god and making Prasad. There is a popular belief that when Hanuman reached Dronagiri to take Sanjivani, he saw herbs shining in the entire area. Seeing Hanuman upset, an old woman of the village revealed the secret of Sanjivani to him. After this, Hanuman took away the mountain from there. The villagers believe that if the old woman had not revealed the secret, the mountain god would not have been insulted.

How to reach
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For Dronagiri, one has to cover a distance of 256 km from Rishikesh to Joshimath and 45 km from Joshimath to Juma by vehicle. From here, there is a 12 km walking trek to Dronagiri. However, due to the construction of a road till Chhayaata Tok, this distance has now become just two km, but trekking enthusiasts enjoy walking.









Wednesday, 2 October 2024

01-10-2024 (कहानी : हम जरूर मिलेंगे)


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कहानी

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हम जरूर मिलेंगे
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दिनेश कुकरेती
ज जब मैं अपने कमरे में नितांत अकेला हूं तो बरबस अंजलि का स्मरण हो आया है। ऐसा लग रहा है, मानो अंजलि मेरे समक्ष खड़ी हो। कुछ ही दिन पूर्व की बात है, जब लगभग सत्रह बरस बाद अचानक अप्रत्याशित ढंग से उससे मुलाकात हो गई थी। मैं कुछ समय पूर्व उन दिनों देहरादून अपने मित्र नरेंद्र के यहां गया हुआ था। कुछ परिस्थितियां ऐसी बनीं कि मुझे वहां पंद्रह दिन ठहरना पड़ा। मेरे मित्र के पिता ‘सीमा सड़क सगठन’ में सीनियर इंजीनियर हैं। वह सोमवार का दिन था। तारीख तो ठीक-ठीक याद नहीं, शायद अप्रैल की बीस-बाईस तारीख रही होगी। उस दिन नरेंद्र के पिता ने अपने घर पर एक पार्टी का आयोजन किया था। पार्टी नरेंद्र के जन्मदिन के उपलक्ष्य में रखी गई थी। इस परिवार को देहरादून में बसे अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है, इसलिए जान-पहचान सीमित ही है, जिस वजह से पार्टी में कुछ विशेष लोगों को ही आमंत्रित किया गया था। नरेंद्र के परिवार में, मेरा भी, परिवार के सदस्य-जैसा स्थान है। इस कारण मैं वहां पर पार्टी को अंजाम देने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रहा था। मेहमानों का आगमन शुरू हो चुका था, जिनमें कुछ नरेंद्र के मित्र व बाकी उसके पिता के मित्र और सगे-संबंधी थे। मेहमानों में एक युवा दम्पती भी था। बड़ा सुंदर जोड़ा था। युवती की गोद में एक खूबसूरत सलोना-सा, फूल जैसा बालक भी था।

मैंने उस जोड़े को देखा तो कुछ पल के लिए मेरी नजर उस युवती पर स्थिर हो गई। मस्तिष्क में हल्की बिजली-सी कौंधी। ऐसा लगा, मानो मैं उससे पूर्व परिचित हूं, लेकिन कब, कैसे और कहां उससे परिचय हुआ, कुछ भी याद न था। मैंने दिमाग पर जोर डालकर कुछ याद करने की कोशिश की, लेकिन सब व्यर्थ रहा। कुछ क्षण मैं यूं ही सोचता रहा, फिर झटके से मन में उमड़-घुमड़ रहे विचारों की शृंखला भंग की। सोचा, कभी-कभी ऐसा हो जाया करता है कि कोई व्यक्ति पहली बार मुलाकात होने पर भी कुछ जाना-पहचाना सा लगता है। फिर मैं अपने कार्य में तल्लीन हो गया।



उस युवा जोड़े के आगमन से घर के सभी सदस्य बहुत खुश थे। वह युवती स्वयं भी अतिथि थी और अन्य अतिथियों के स्वागत-सत्कार में व्यस्त थी। इससे मैंने अंदाजा लगा लिया कि हो-न-हो यह जोड़ा अन्य अतिथियों में विशेष है। नरेंद्र भी जीजाजी-जीजाजी कहकर उनके कुछ ज्यादा ही चक्कर काटे जा रहा था। तभी उसके पिता ने उस युवती से मुखातिब होते हुए कहा- "बेटी अंजलि! तुम व्यर्थ परेशान क्यों हो रही हो, काम करने के लिए हम हैं ना।"

मैंने जब उनकी जुबान से "अंजलि" शब्द सुना, तो मेरी स्मृति में सत्रह बरस पहले का वह चित्र सजीव हो उठा, जब में तीसरी कक्षा में पढ़ता था। अब मुझसे नहीं रहा जा रहा था। मन में कौतुहल मचा हुआ था कि क्या यह सचमुच सत्रह बरस पहले की, वही अंजलि है? 

मैंने नरेंद्र से पूछ ही लिया- "नरेंद्र ! यह अंजलि जी कौन हैं?"

"यह मेरे पिता के दोस्त की बेटी और मेरी मुंहबोली बहन हैं।" - नरेंद्र बोला

"कहीं ये अंजलि जी सूबेदार मेजर कपूर साहब की बेटी तो नहीं?" मेरे मुंह से अनायास निकला।

"हां! क्या तुम उन्हें जानते हो" - नरेंद्र बोला। 

लेकिन... मैंने उसके शब्दों को सुना ही नहीं। मैं तो सत्रह बरस पूर्व की स्मृतियों में खो गया था, जो अनायास ही सजीव हो उठी थीं। सारी घटनाएं मेरे मस्तिष्क में चलचित्र की भांति तैर रही थीं।
तब मैं जोशीमठ में तीसरे दर्जे में पढ़ता था। उम्र यही कोई आठ-नौ साल के बीच रही होगी। मेरे पिता तब सेना में सेवारत थे और उनकी पोस्टिंग जोशीमठ हुई थी। हम लोग सपरिवार जोशीमठ से दो किमी नीचे मारवाड़ी गांव में रहते थे। मारवाड़ी के ही एक स्थानीय प्राइमरी स्कूल में  पिताजी ने मुझे तीसरी कक्षा में दाखिल करवा दिया था।
हमारी कक्षा में कुल 36 विद्यार्थी थे, जिनमें 35 लड़के और मात्र एक लड़की थी। अंजलि नाम था उसका। गोल-मटोल, औसत कद, इकहरा बदन और मनमोहक आंखों वाली लड़की थी अंजलि। उम्र नौ बरस से ज्यादा न थी। वह जब हंसती तो प्रतीत होता मानो अलकनंदा की लहरें हिलौरें ले रही हैं। पढ़ने में अंजलि काफी होशियार थी। उसका परिवार भी कुछ दिन पहले हो जोशीमठ आया था।



बचपन में लड़कियों से बात करने के मामले में मैं संकोची स्वभाव का रहा हूं। इसलिए पहले-पहल तो मैं उससे बिल्कुल बात नहीं करता था। एक ही कक्षा में पढ़ने के कारण वह स्वयं ही कभी कुछ बोलती तो मैं "हूं-हां" में जवाब दे देता। लेकिन, धीरे-धीरे उससे बात करने में मेरा संकोच दूर होता चला गया। अब मैं उससे खूब बातें करने लगा था। वह सामने वाली लाइन में ठीक मेरी सीध में बैठती थी, इसलिए किसी भी चीज की जरूरत होने पर मुझसे ही पहले बोलती। गणित में अंजलि कक्षा में अव्वल आती थी, सो मेरी परेशानी को भी वही हल करती थी।
अब तो मैं उससे इतना घुल-मिल गया था कि अगर वह एक भी दिन अनुपस्थित रहती तो मन बिल्कुल नहीं लगता। कक्षा में उस दिन जो कुछ पढ़ाया जाता, वह भी समझ नहीं आता था। हम दोनों एक-दूसरे की सूरत देखे बिना नहीं रह सकते थे। अगर स्कूल में मैं अंजलि को नहीं दिखता तो वह नाराज हो जाती। फिर मैं उसे इधर-उधर के किस्से सुनाता तो वह खिलखिला पड़ती। मध्यांतर में दोनों एक साथ खेलते थे। "बाघ-बकरी" का खेल अंजलि को बहुत पसंद था, सो रोज वह मेरे साथ "बाघ-बकरी" खेलती। हम दोनों की स्थिति ऐसे हो गई थी कि इतवार को भी घर पर चैन से नहीं रह पाते थे।

हमारे बीच अपनत्व का एक ऐसा रिश्ता था, जिसे कोई नाम नहीं दिया जा सकता। इस नादान उम्र में हमारा यह बालसुलभ प्यार अनोखा था। हमें तो यह भी नहीं मालूम था कि प्यार होता क्या है। हमारा प्यार तो अलकनंदा और धौली के संगम की तरह निश्च्छल था, जिसमें असीम बालसुलभ पवित्रता थी।

खेल-खेल में मैं कभी उसके बाल खींच लेता, तो कभी वह मेरे कान उमेठ देती। कभी हमारे बीच झगड़ा हो जाता तो दोनों एक-दूसरे से बात नहीं करते थे। लेकिन, यह सब ज्यादा देर नहीं चलता था। वह कुछ देर बाद ही कहती- "अनुज! तू मुझसे नाराज है?"

मैं कुछ जवाब न देता तो वह झट से मेरे गाल चूम लेती। मैं मुस्करा देता और फिर दोनों खेलने में व्यस्त हो जाते। कक्षा के अन्य बच्चे हमें देखकर खिलखिला कर हंस देते। इस तरह स्कूल जाते वक्त भी वह मेरा इंतजार करती रहती। घर भी दोनों साथ ही लौटते थे।



जोशीमठ में शीत ऋतु में अत्याधिक ठंड पड़ने के कारण डेढ़ महीने के लिए स्कूल बंद हो जाया करते हैं। बर्फ में घर से बाहर निकलना भी दुश्वार रहता है। उस साल भी सर्दियों की छुट्टियां पड़ने वाली थीं। हम दोनों अब चौथी कक्षा में आ गए थे। इसी दौरान पिताजी की पोस्टिंग अरुणाचल प्रदेश हो गई, सो हमें भी अब जोशीमठ छोड़ना पड़ रहा था। जोशीमठ छोड़ने की कल्पना मात्र से ही मेरा मन उदास रहने लगा था, लेकिन छोड़ना विवशता थी।

अगले दिन जब मैं विद्यालय गया तो खोया-खोया-सा था। किसी से बात करने को भी मन नहीं कर रहा था। अंजलि मेरी यह स्थिति देखकर परेशान थी, आखिर उसने पूछ ही लिया- "अनुज, आज तू उदास क्यों है?" मैं चुपचाप एकटक उसे देखता रहा। 

"तू मुझसे नाराज है अनुज? ‘’ - अंजलि बोली

"नहीं"। मैंने सपाट-सा जवाब दिया। 

"फिर तू बताता क्यों नहीं है कि तुझे क्या हुआ है?" - अंजलि बोली

अंजलि अब में चला जाऊंगा।" मैंने धीरे से कहा। 

’’कहां?’’

"तुमसे बहुत दूर अपने घर।"

क्यों? अंजलि में कंहा।

पिताजी अरुणाचल प्रदेश जा रहे हैं। कल कह रहे थे, अब तुम्हें घर भेज दूंगा। 

"क्या तू यहां नहीं पढ़ेगा?" - अंजलि ने प्रश्न किया।

"नहीं अंजू। मैं अकेला किसके साथ रहूंगा।" - मैंने उससे कहा।

मेरी बात सुनकर अंजलि का चेहरा उतर गया। वह खामोश हो गई और मुझे एकटक निहारने लगी। कुछ देर खामोश रहने के उपरांत वह फिर बोली- "अनुज क्या तू मुझे भूल जाएगा?"

"नहीं रे! मैं तुझे कैसे भुला सकता हूं?"

"क्या तू मुझे रोज याद करेगा?"

"हां अंजू! मैं तुझे रोज याद करूंगा। क्या तू भी मुझे याद करेगी?"

"हां अनुज! अब मैं तेरे बगैर किसके साथ खेलूंगी बाघ-बकरी का खेल?" - अंजलि ने मासूमियत से कहा।

मैं खामोश रहा। उसने मेरी तंद्रा भंग करते हुए कहा, "अनुज तुम लोग घर कब जाओगे?"

"पिताजी बता रहे थे कि आज में दसवें दिन हम चले जाएंगे।"

अंजलि ने मेरे कंधे पर सिर टिका दिया था, उसकी आंखें डबडबा आई थीं। हौले से उसके सिर को हटाते हुए मैंने कहा था- "अब हम शायद ही कभी मिल पाएंगे अंजू।"

"अनुज, ऐसे मत बोल। हम जरूर मिलेंगे। अच्छा ऐसा कर, तेरी अंगुली में जो ये अंगूठी है, इसे मुझे दे दे।" - अंजलि बोली थी।

मेरे हाथ में सचमुच एक अंगूठी थी, जिसे पिताजी बदरीनाथ से लाए थे। उसका नग न जाने कहां खो गया था। मैंने कहा- "अंजू यह तो बेकार अंगूठी है, इसका नग भी न जाने कहां खो गया है।"

"नहीं अनुज! यह बहुत अच्छी अंगूठी है। तू इसे मुझे दे दे ना।"

"तू इसका क्या करेगी?"

"मैं रोज इसे देखूंगी और तुझे याद करूंगी।"

मैंने अपनी अंगुली से अंगूठी निकालकर उसकी अंगुली में पहना दी। उस दिन हम दोनों खामोश घर लौटे। बस! रास्तेभर एक-दूसरे को देखते रहे। 

इसके बाद के सात-आठ दिन भी उसी तरह उदासी में कट गए। आते वक्त मैं उसे देख भी न पाया। कुछ दिन तो मैं बहुत उदास रहा। खाते-सोते अंजलि की मासूम प्रतिमूर्ति सामने आ जाती थी। रात को मैं चुपके-चुपके रोया भी करता था।

समयचक्र निर्बाध गति से चलता रहा। धीरे-धीरे मैं उसे भूल गया। बचपन में घटी घटनाएं इतनी उम्र तक याद भी कहां रह पाती हैं। फिर नए-नए दोस्तों का साथ, नई जगह का नया माहौल और जीवन के तमाम उतार- चढ़ाव। लेकिन... आज सत्रह साल पहले की गुड़िया-सी अंजलि एक खूबसूरत युवती के रूप में मेरे सामने खड़ी थी। तभी नरेंद्र ने अचानक मुझे झकझोरा तो पुरानी स्मृतियों के तार अचानक टूट गए। मैं कुछ अनमने भाव से नरेंद्र को देखने लगा।

"अनुज! तुझे अचानक यह क्या हो गया था?" - नरेंद्र बोला।

"कुछ नहीं" - मैंने प्रत्युत्तर में कहा।

"फिर कहां खो गया था, तूने तो मेरी एक भी बात नहीं सुनी।" - नरेंद्र बोला।

"नरेंद्र! मैं सत्रह साल पहले चला गया था, अंजलि के साथ।"

"क्या कह रहा है? पगला गया है क्या?" - नरेंद्र बोला

"नहीं नरेंद्र!, मैं पागल नहीं हुआ। यह अंजलि मेरी बचपन की दोस्त है।"

"क्या तू दीदी को जानता है?" - नरेंद्र ने प्रश्न किया।

"सिर्फ जानता ही नहीं। इसके साथ जीवन के महत्वपूर्ण डेढ़ वर्ष बिताए हैं मैंने।"

यह सुन नरेंद्र आश्वर्य से मेरे चेहरे को एकटक देखता रह गया। 

शाम तक मुझे और अंजलि को छोड़कर सभी मेहमान विदा हो गये थे। नरेंद्र ने बताया कि दीदी एक-दो दिन यहीं रहेगी। जीजाजी को दो दिनों के लिए कहीं बाहर जाना था, इसलिए वे वापस चले गए हैं। हम दोनों बातों में मशगूल थे, तभी अंजलि चाय लेकर बैठक में आई। जब वह चाय रखकर लौटने लगी, तो नरेंद्र ने उसे रोक लिया। वह बगल वाली कुर्सी पर बैठ गई।

नरेंद्र ने अंजलि से मेरा परिचय कराया, "दीदी, यह मेरा दोस्त अनुज है। अभी कुछ दिन यहीं रहेगा।" लेकिन, अंजलि को तो कुछ भी याद नहीं था। नरेंद्र ही आगे बोला - "दीदी! क्या तुमने अनुज को नहीं पहचाना? उसने तो तुम्हें आते ही पहचान लिया था।"

अंजलि आश्चर्य मिश्रित शब्दों में बोली - "क्या आप मुझे जानते हैं ? लेकिन में तो आपको पहली बार देख रही हूं।"

"हां अंजलि! आज से सत्रह वर्ष पूर्व तुम और मैं जोशीमठ में एक साथ पढ़ते थे। तुम सिर्फ मेरे साथ खेलती थी। मेरे वापस आते वक्त हम दोनों ही कितने उदास थे। तब तुमने कहा था, अनुज! तुम मुझे अपनी अंगूठी दे दो, मैं उसे देखकर तुम्हें रोज याद करती रहूंगी। लेकिन... लेकिन... तुम तो..।" यह कहते-कहते मैं भावुक हो गया था।

"अनुज...! अनुज... क्या तुम? तुमने मुझे पहचान लिया अनुज? लेकिन मैं... नहीं...। मेरे पास तुम्हारी अंगूठी आज तक है। मैंने बहुत संजो कर रखी है। लेकिन...पिछले कुछ वर्षों में मैंने उसे देखा नहीं। अनुज! मैंने कहा था न, कि हम अवश्य मिलेंगे, कहा था न मैंने...और हम सचमुच मिल गए।" अंजलि की आंखों में खुशी के आंसू छलछला आए थे।
"हां अंजलि! तुमने सच कहा था। अंजलि तुम अब कितनी सुंदर हो गई हो। पहले से भी सुंदर। और... बच्चा!  कितना प्यारा बच्चा है... बिल्कुल तुम पर गया है।" 

अंजलि खामोश रही। वह आंसुओं को रोकने का असफल प्रयास कर रही थी। माहौल काफी बोझिल हो गया था। मैं अंजलि को उदास नहीं देख सकता था, इसलिए मैंने उसके आंसुओं को पोंछते हुए कहा- "अंजलि। सत्रह बरस बीत गए, तब से आज तक मैंने 'बाघ-बकरी' का खेल नहीं खेला। तुम तो बहुत अच्छा खेलती थीं। क्या आज मेरे साथ नहीं खेलोगी?"

"अनुज... तुम तो बिल्कुल नहीं बदले।" फिर वह खिलखिलाकर हंस पड़ी थी, बिल्कुल वैसे ही, जैसे सत्रह बरस पहले हंसती थी।  
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Story
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We will definitely meet
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Dinesh Kukreti
Today when I am completely alone in my room, I suddenly remember Anjali. It seems as if Anjali is standing in front of me. It was just a few days ago when I met her unexpectedly after almost seventeen years. Some time back I had gone to my friend Narendra's place in Dehradun. Some circumstances arose that I had to stay there for fifteen days. My friend's father is a senior engineer in the 'Border Roads Organisation'. It was a Monday. I don't remember the exact date, it must have been 20th or 22nd of April. That day Narendra's father had organized a party at his house. The party was organized to celebrate Narendra's birthday. It has not been long since this family settled in Dehradun, so the acquaintances are limited, due to which only a few special people were invited to the party. In Narendra's family, I too have a place like a family member.  For this reason, I was playing an important role in organising the party there. Guests had started arriving, some of whom were Narendra's friends and the rest were his father's friends and relatives. Among the guests was a young couple. It was a very beautiful couple. The young woman was also holding a beautiful, flower-like child in her lap.

When I saw the couple, my eyes were fixed on the young woman for a few moments. A slight flash of light flashed in my mind. It felt as if I knew her before, but I did not remember when, how and where I met her. I tried to remember something by putting pressure on my mind, but it was all in vain. I kept thinking like this for a few moments, then suddenly broke the chain of thoughts surging in my mind. I thought, sometimes it happens that even when we meet someone for the first time, a person seems somewhat familiar. Then I got engrossed in my work.
All the members of the house were very happy with the arrival of that young couple. That young lady was also a guest and was busy welcoming the other guests. From this I guessed that this couple was special among the other guests. Narendra was also circling them a bit too much calling them brother-in-law. Just then his father addressed that young lady and said- "Daughter Anjali! Why are you getting worried unnecessarily, we are there to do the work."

When I heard the word "Anjali" from his mouth, that picture of seventeen years back came alive in my memory, when I was studying in the third class. Now I could not control myself. I was curious whether this was really the same Anjali of seventeen years back?

I asked Narendra- "Narendra! Who is this Anjali ji?"

"She is the daughter of my father's friend and my adopted sister." - Narendra said

"Is this Anjali ji the daughter of Subedar Major Kapoor sahab?"  It came out of my mouth involuntarily.

"Yes! Do you know him?" - Narendra said.

But... I did not hear his words. I was lost in the memories of seventeen years ago, which had suddenly come alive. All the incidents were floating in my mind like a movie.

At that time I was studying in third class in Joshimath. I must have been around eight-nine years old. My father was then serving in the army and was posted in Joshimath. We lived with our family in a Marwari village two kilometers below Joshimath. Father had enrolled me in third class in a local primary school in Marwari.

There were a total of 36 students in our class, out of which 35 were boys and only one girl. Her name was Anjali. Anjali was a chubby girl with average height, lean body and charming eyes. She was not more than nine years old. When she laughed, it seemed as if the waves of Alaknanda were rippling.  Anjali was very intelligent in studies. Her family had also come to Joshimath a few days ago.

In my childhood, I was shy about talking to girls. So initially, I did not talk to her at all. Being in the same class, if she herself said something, I would reply in "yes". But, gradually my shyness in talking to her went away. Now I started talking to her a lot. She used to sit in the front row, right in front of me, so whenever she needed anything, she would talk to me first. Anjali was the topper in the class in Mathematics, so she used to solve my problems too.

Now I had become so close to her that if she remained absent for even a single day, I would not feel like talking at all. Whatever was taught in the class that day, I would not even understand it. Both of us could not live without seeing each other's face. If Anjali did not see me in school, she would get angry. Then I would tell her random stories and she would burst out laughing. Both of us used to play together during the break.  Anjali loved the game of "Tiger-Goat", so she used to play "Tiger-Goat" with me everyday. The condition of both of us had become such that we could not stay peacefully at home even on Sundays.

There was a bond of intimacy between us which cannot be given any name. At this innocent age, our childlike love was unique. We did not even know what love is. Our love was as pure as the confluence of Alaknanda and Dhauli, which had infinite childlike purity.

While playing, sometimes I would pull her hair, and sometimes she would twist my ears. Sometimes we would have a fight and both of us would not talk to each other. But, all this did not last long. After some time she would say- "Anuj! Are you angry with me?"

If I did not reply, she would kiss my cheeks immediately. I would smile and then both of us would get busy playing. Other children in the class would laugh seeing us. In this way, she would wait for me even while going to school. Both of us would return home together.

In Joshimath, schools remain closed for one and a half months due to extreme cold during winters. It is difficult to even step out of the house in the snow. That year too, winter holidays were about to start. We both had now reached the fourth class. During this time, father got posted in Arunachal Pradesh, so we too had to leave Joshimath. Just the thought of leaving Joshimath made me sad, but leaving was a compulsion.

The next day when I went to school, I was lost. I did not feel like talking to anyone. Anjali was upset seeing my condition, finally she asked - "Anuj, why are you sad today?" I kept staring at her silently.

 "Are you angry with me Anuj?" - Anjali said

"No". I replied flatly.

"Then why don't you tell me what has happened to you?" - Anjali said

Anjali, I will leave now." I said softly.

"Where?"

"To my home, very far from you."

Why? Where did Anjali say.

Father is going to Arunachal Pradesh. Yesterday he was saying that he will send you home now.

"Will you not study here?" - Anjali asked.

"No Anju. With whom will I stay alone?" - I told her.

On hearing my words, Anjali's face turned pale. She became silent and started staring at me. After being silent for some time, she again said- "Anuj, will you forget me?"

"No! How can I forget you?"

"Will you remember me every day?"

"Yes Anju! I will remember you every day. Will you also remember me?"

 "Yes Anuj! Now with whom will I play the game of tiger-goat without you?" - Anjali said innocently.

I remained silent. She broke my trance and said, "Anuj when will you all go home?"

"Father was telling me that we will leave on the tenth day today."

Anjali rested her head on my shoulder, her eyes were filled with tears. Gently removing her head, I said- "Now we will hardly be able to meet Anju."

"Anuj, don't talk like this. We will definitely meet. Well, do this, give me this ring which is on your finger." - Anjali said.

I actually had a ring in my hand, which father had brought from Badrinath. God knows where its stone had got lost. I said- "Anju, this is a useless ring, God knows where its stone has also got lost."

"No Anuj! This is a very nice ring. You give it to me."

"What will you do with it?"

"I will see it every day and remember you."

I took the ring off my finger and put it on her finger. That day, both of us returned home silently. That's it! We kept looking at each other all the way.

The next seven-eight days also passed in the same sadness. While coming, I could not even see her. For some days, I was very sad.  While eating or sleeping, Anjali's innocent image used to come in front of me. I used to cry silently at night.

The wheel of time kept moving at a steady pace. Slowly I forgot her. The incidents that happened in childhood are not remembered till this age. Then the company of new friends, new environment of a new place and all the ups and downs of life. But… today the doll-like Anjali of seventeen years ago was standing in front of me as a beautiful young woman. Then suddenly Narendra shook me and the strings of old memories suddenly broke. I started looking at Narendra with some reluctant expression.


"Anuj! What happened to you suddenly?" - Narendra said.

"Nothing" - I replied.

"Where were you lost then? You didn't listen to a single word of mine." - Narendra said.

"Narendra! I had gone seventeen years ago with Anjali."

"What are you saying? Have you gone mad?" - Narendra said.

"No Narendra! I have not gone mad. This Anjali is my childhood friend."

"Do you know Didi?" - Narendra asked.

"I don't just know. I have spent the important one and a half years of my life with her."

On hearing this, Narendra kept staring at my face in surprise.

By evening, all the guests had left except me and Anjali. Narendra told me that Didi will stay here for a day or two. Jijaji had to go out somewhere for two days, so he has gone back. We both were busy talking, when Anjali came to the drawing room with tea.  When she started to return after serving tea, Narendra stopped her. She sat on the chair next to him.

Narendra introduced me to Anjali, "Didi, this is my friend Anuj. He will stay here for a few days." But Anjali did not remember anything. Narendra said further - "Didi! Did you not recognize Anuj? He recognized you as soon as you arrived."

Anjali said in surprised words - "Do you know me? But I am seeing you for the first time."

"Yes Anjali! Seventeen years ago, you and I used to study together in Joshimath. You used to play only with me. When I came back, we both were so sad. Then you said, Anuj! Give me your ring, I will remember you every day by looking at it. But... but... you..." I became emotional while saying this.

 "Anuj...! Anuj... is it you? Did you recognize me Anuj? But I... no... I still have your ring. I have kept it very carefully. But... I have not seen it in the last few years. Anuj! I told you that we will surely meet, didn't I... and we really met." Anjali's eyes were welling up with tears of joy.

"Yes Anjali! You said it right. Anjali you have become so beautiful now. Even more beautiful than before. And... the child! What a cute child he is... he looks exactly like you."

Anjali remained silent. She was trying unsuccessfully to stop her tears. The atmosphere had become quite heavy. I could not see Anjali sad, so I wiped her tears and said - "Anjali. Seventeen years have passed, since then I have not played the game of 'tiger-goat'. You used to play very well. Won't you play with me today?"

"Anuj... you have not changed at all." Then she burst out laughing, just like she used to laugh seventeen years ago.