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Tuesday, 29 March 2022

29-03-2022 (ऐसी थी मेरी नानी)


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किस्सागोई (दो)

ऐसी थी मेरी नानी

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दिनेश कुकरेती

नानी की कहानियों की बात चली है तो सबसे पहले क्यों न नानी के व्यक्तित्व से भी परिचित हो लिया जाए। मैं पहले भी कह चुका हूं कि नानी निपट अनपढ़ महिला थी, लेकिन सरोकारों की समझ के मामले में उनका शायद ही कोई सानी रहा हो। नानी का नाम पीतांबरी देवी था और कद पांच फीट। वैसे नानी अक्सर बीमार रहती थी, लेकिन उनकी जीवटता ने कभी यह महसूस नहीं होने दिया। हालांकि, दो-तीन महीने में उन्हें ठंड लगकर हाड़तोड़ बुखार आ जाता था। इस दौरान वह बिस्तर से भी नहीं उठ पाती थी। नानी स्वयं बताती थी कि उनका पीलिया बिगडा़ हुआ है। 

बीमारी के कारण ही बाद के वर्षों में नानी के एक आंख की रोशनी भी चली गई थी। उस आंख से उन्हें धुंधला दिखाई देता था। डाक्टरों का कहना था कि उस आंख में काला मोतिया आ गया है, इसलिए रोशनी का लौट पाना संभव नहीं है। नाते-रिश्तों के प्रति नानी इस कदर संवेदनशील थी कि जीवनभर रिश्ते में अपने से बडो़ं का कभी नाम नहीं लिया। कुटुंब में उनके किसी ससुर का नाम बदरी था, इसलिए बदरीनाथ को वो बडा़ देवता बोलती थीं। इसी तरह जेठ के महीने को घामुक मैना (धूप वाला महीना) और सावन को छालुक मैना (बारिश का महीना) कहती थी। ईश्वर के प्रति उनकी अगाध श्रद्धा थी। कहती थी, सब-कुछ ईश्वर की कृपा से ही हो रहा है। 

कभी-कभी इसी बात पर नानी के साथ मेरी बहस हो जाया करती थी। तब नानी कहती ईश्वर की महिमा तेरी समझ में नहीं आएगी। वह तो हमारे पूर्वजन्मों का फल प्रदान करते हैं। खैर! ये सब उनकी व्यक्तिगत आस्था के विषय थे, जिन पर उनकी धारणा बदलना कम से कम मेरे बूते में तो नहीं था। बावजूद इस सबके नानी हमारे लिए उस वृक्ष की तरह थी, जिसकी छांव में शीतलता ही मिलती है। नानी को उनके मायके की तरफ के सारे  रिश्तेदार अगाध स्नेह करते थे, इसलिए बीच-बीच में कुछ वक्त नानी उनके पास भी गुजारा करती थी। मसलन नानी की एक छोटी और एक बडी़ बहन थी। दोनों के बच्चे (मेरे मामा-मौसी) उन्हें छोटी (कान्सी) मां व बडी़ (जेठी) मां कहते थे। 

नानी बडी़ नानी की बेटी (मेरी मौसी) के पास ऋषिकेश व छोटी नानी की बेटी (मेरी जेठी) के पास रुड़की अक्सर जाया करती थी। उनके बच्चे भी बडी़ नानी-छोटी नानी कहकर उन्हें अगाध स्नेह करते थे। अफसोस कि जीवन की आपाधापी में स्नेह के इन रिश्तों को मैं कायम नहीं रख पाया। रुड़की वाली जेठी तो अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन ऋषिकेश वाली मौसी से भी पिछले बीस बरस से मिलना नहीं हो पाया। जबकि, वो देहरादून में ही कहीं रहती हैं। मौसी-जेठी के बच्चों से तो कभी मेलमिलाप रहा ही नहीं, इसलिए एक-दूसरे को पहचानने का सवाल ही नहीं उठता। इसके लिए कौन दोषी है, इस पर चर्चा से कुछ हासिल नहीं होने वाला।

(जारी...)

इन्‍हें भी पढ़ें : 

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Anecdote ( 2)

Such was my meternal grandmother

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Dinesh Kukreti

Talking about the stories of Nani, then why not first get acquainted with the personality of Nani.  I have said in the past that Nani was a completely illiterate woman, but she could hardly have matched her in terms of understanding of her concerns.  Her maternal grandmother's name was Pitambari Devi and her height was five feet.  Although Nani was often ill, her vitality never allowed her to feel that way.  However, within two-three months, he used to develop fever with chills.  During this she could not even get out of bed.  The grandmother herself used to tell that her jaundice had worsened.

Due to illness, in later years, Nani had lost sight in one eye.  He could see blurred with that eye.  The doctors said that black cataract has come in that eye, so it is not possible to get the light back.  Nani was so sensitive towards relationships that she never took the names of elders in her life-long relationship.  Some of her father-in-law's name in the family was Badri, so she used to call Badrinath as a big deity.  Similarly, the month of Jeth was called Ghamuk Maina (sunny month) and Sawan was called Chhaluk Maina (rainy month).  He had great faith in God.  She used to say that everything is happening only by the grace of God.

Sometimes I used to argue with my grandmother on this issue.  Then the grandmother would say that you will not understand the glory of God.  He gives the fruits of our previous births.  So!  These were all matters of his personal beliefs, on which it was not possible for me to change his perception, at least.  Despite all this, our grandmother was like a tree in whose shade we find coolness.  Nani was loved by all the relatives on his maternal side, so Nani used to spend some time with him in between.  For example, the grandmother had a younger sister and an elder sister.  The children of both of them (my maternal uncle) called her small (Kansi) mother and bad (jethi) mother.

Nani used to visit Rishikesh to elder maternal grandmother's daughter (my aunt) and Roorkee to younger grandmother's daughter (meri Jethi).  His children also used to love him very much by calling him big grandmother and small grandmother.  Regrettably, in the hustle and bustle of life, I could not maintain these relationships of affection.  The Jethi of Roorkee is no longer in this world, but even the aunt from Rishikesh could not be met for the last twenty years.  Whereas, she lives somewhere in Dehradun.  There has never been any reconciliation with the children of aunt and daughter-in-law, so the question of recognizing each other does not arise.  There is nothing to be gained by discussing who is to blame for this.

(Ongoing...)


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