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Monday, 14 March 2022

13-03-2022 (रंगोत्सव)

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रंगोत्स

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दिनेश कुकरेती

ज सुबह से ही व्यस्त कार्यक्रम रहा। इस बार मैं भी उत्तरांचल प्रेस क्लब की कार्यकारिणी का हिस्सा हूं, इसलिए व्यस्तता होना लाजिमी था। रात ही तय हो गया था कि सभी सदस्य व पदाधिकारियों को रंगोत्सव की व्यवस्थाएं बनाने के लिए समय से क्लब पहुंचना है। सो, मैं ठीक साढे़ नौ बजे ड्यूटी पर पहुंच गया। उस समय नवीन क्लब परिसर में टेंट लगवा रहा था। कुर्सियां लगवा ली गई थीं। कुछ कमियां रह गई थीं, जिन्हें नवीन व मैंने दुरुस्त करवा लिया। उधर, क्लब प्रभारी सुबोध भट्ट ने हमारे लिए नाश्ते का इंतजाम कर लिया था। नाश्ते में छोले-भटूरे बने थे। सभी ने आराम से बैठकर नाश्ता किया और फिर जुट गए जिम्मेदारियों के निर्वहन में। तब तक अध्यक्ष जितेंद्र अंथवाल व महामंत्री ओपी बेंजवाल समेत कुछ अन्य सदस्य भी क्लब पहुंच गए थे।












इस बार होली के मौके पर हम कुछ नया करना चाहते थे। इसके लिए हमने देहरादून के सबसे पुराने आर्केस्ट्रा अलेक्जेंडर एंड ग्रुप को कार्यक्रम में बुलाया था। 11 बजे के आसपास अपने ग्रुप के साथ अलेक्जेंडर क्लब पहुंचे और इंस्ट्रूमेंट सेट करने में जुट गए। पांडाल हमने खुला रखा था। दरअसल, हमें इस बात का इल्म ही नहीं था कि खुले में धूप इतनी तेज लगेगी, लेकिन अब किया भी क्या जा सकता था। सुकून इस बात का है कि रंगों के उल्लास में क्लब सदस्य एवं उनके परिवारों ने इस ओर विशेष ध्यान नहीं दिया। हालांकि, हमसे चूक तो हुई ही थी, जिसे बाद में पूरी कार्यकारिणी ने सार्वजनिक रूप से भी स्वीकार किया और भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति न होने देने का भरोसा दिलाया।

इस बीच अचानक मुझे याद आया कि ईनामी कूपन की बुक तो जल्दबाजी में मैं रूम में ही छोड़ आया हूं। जबकि लक्की ड्रा में ये कूपन भी शामिल किए जाने थे। पहले तो मैंने सोचा कि इस बात को यहीं भुला दूं, लेकिन जब पता चला कि कार्यकारिणी सदस्य सोबन सिंह भी अपनी बुक घर पर ही छोड़ आया है तो फिर योजना बनाई कि रूम से कूपन बुक लेकर आया जाया। सोबन का फ्लैट और मेरा रूम एक ही रूट पर पड़ता है, इसलिए साथी दिनेश खत्री से स्कूटी लेकर हम दोनों चल पडे़ कूपन बुक लेने अपने-अपने ठौर की ओर। लगभग 40 मिनट बाद हम फिर प्रेस क्लब में थे, तब तक रंगोत्सव का आगाज हो चुका था। वातावरण में अबीर-गुलाल की महक के बीच अलेक्जेंडर के गीत गूंज रहे थे।

मुख्य अतिथि के रूम में बडे़ भाई सुभाष शर्मा और अन्य अतिथि बडे़ भाई लोकेश नवानी, नवोदय टाइम्स (पंजाब केसरी) के संपादक निशीथ जोशी आदि अगली पांत में बैठे हुए थे। अतिथि सत्कार की प्रक्रिया पूर्ण हो चुकी थी। आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि सुभाष भाई समाजसेवी के साथ वरिष्ठ पत्रकार भी हैं। दो दशक पहले उन्होंने देहरादून से बडे़ स्तर पर दैनिक 'हिमालय दर्पण' का प्रकाशन शुरू किया था। तब यह पत्र खासा लोकप्रिय हुआ था और हम भी इससे जुडे़ रहे। यह प्रदेश की बदकिस्मती ही थी कि अल्पकाल में ही इस पत्र का प्रकाशन बंद हो गया। अब सुभाष भाई इसी नाम से पोर्टल चला रहे हैं। 

कार्यक्रम में रंगत बिखर रही थी। अलेक्जेंडर की गायकी में वही ताजगी थी, जो आज से 40-45 साल पहले रही होगी। लग ही नहीं रहा था कि उनकी उम्र 75 साल की हो चुकी है। चेहरे पर वही चमक, अंदाज में वही लटक। पांडाल में मौजूद जिन लोगों ने भी अपने दौर में अलेक्जेंडर को सुना है, वह भावविभोर नजर आ रहे थे। अलेक्जेंडर ने भी अपने इन परिचितों  की फरमाइश पूरी करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। होरी गीत की उनकी आखिरी प्रस्तुति पर तो खूब अबीर- गुलाल उडा़ और पूरा पांडाल झूम उठा। कार्यक्रम के बीच में ही बच्चों ने भी अपनी प्रस्तुतियां दीं और लक्की ड्रा निकालने के साथ पुरस्कार भी वितरित किए गए। 

भोजन का वक्त हो चुका, सो सुभाष भाई, लोकेश भाई व अलेक्जेंडर के साथ हम सभी कार्यकारिणी सदस्यों ने कैंटीन में एक साथ बैठकर भोजन किया और फिर क्लब कार्यालय में चाय की चुस्कियां लीं। इसके बाद अतिथियों की विदाई के साथ ही शाम चार बजे के आसपास मैंने भी सतीजी के साथ आफिस की राह पकड़ ली। इस समय रात के बारह बजे हैं और सोने की तैयारी हो रही है। थकान काफी हो रही थी, इसलिए आफिस से मैं दस बजे के आसपास रूम में लौट आया था। फिलहाल नींद से आंखें बोझिल हुई जा रही हैं, इसलिए शेष बातें कल होंगी। तब तक के लिए नमस्कार।

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Festival of colors
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Dinesh Kukreti

It's been a busy schedule since this morning.  This time I am also a part of the executive committee of Uttaranchal Press Club, so it was bound to be busy.  It was decided in the night itself that all the members and office bearers have to reach the club on time to make arrangements for the festival.  So, I reached duty exactly at 9.30.  At that time Naveen was getting tents set up in the club premises.  Chairs were installed.  There were some shortcomings, which Naveen and I got them rectified.  On the other hand, club in-charge Subodh Bhatt had arranged breakfast for us.  Chole-bhature was made for breakfast.  Everyone sat comfortably and had breakfast and then got involved in discharging the responsibilities.  By then President Jitendra Anthwal and General Secretary OP Benzwal and some other members had also reached the club.

This time on the occasion of Holi, we wanted to do something new.  For this, we had invited the oldest orchestra of Dehradun, Alexander & Group, to the program.  Around 11 o'clock Alexander with his group reached the club and started setting up the instrument.  We had kept the pandal open.  Actually, we had no idea that the sun would be so strong in the open, but what could have been done now.  It is a matter of comfort that the club members and their families did not pay special attention to this in the joy of colors.  However, we had made a mistake, which was later publicly acknowledged by the entire executive committee and assured that it would not be repeated in future.

Meanwhile, suddenly I remembered that I had left the prize coupon book in the room in a hurry.  Whereas these coupons were also to be included in the lucky draw.  At first I thought that I should forget this thing here, but when it came to know that the executive member Soban Singh had also left his book at home, then planned to bring a coupon book from the room.  Soban's flat and my room fall on the same route, so taking scooty from fellow Dinesh Khatri, we both started towards our respective places to get the coupon book.  After about 40 minutes we were again in the Press Club, by then the Rangotsav had begun.  Alexander's songs were resonating amidst the fragrance of Abir-Gulal in the atmosphere.

In the chief guest's room, elder brother Subhash Sharma and other guest elder brother Lokesh Navani, Navodaya Times (Punjab Kesari) editor Nishith Joshi were sitting in the front row.  The hospitality process was completed.  For your information, let me tell you that Subhash Bhai is a social worker as well as a senior journalist.  Two decades ago, he started publishing the daily 'Himalaya Darpan' on a large scale from Dehradun.  Then this letter became very popular and we also remained associated with it.  It was the bad luck of the state that the publication of this letter was stopped in a short span of time.  Now Subhash Bhai is running the portal with the same name.

The tone in the program was disintegrating.  Alexander's singing had the same freshness as it would have been 40-45 years ago.  It did not seem that he was 75 years old.  The same glow on the face, the same hanging in the style.  All the people present in the pandal who had heard Alexander in their time were in awe.  Alexander also left no stone unturned in fulfilling the requests of these acquaintances.  On his last rendition of the song 'Hori', there was a lot of abir-gulal uda and the whole pandal shuddered.  In the middle of the program, children also gave their performances and prizes were also distributed along with the lucky draw.

 It was time for lunch, so all the executive members of us, along with Subhash Bhai, Lokesh Bhai and Alexander, sat together in the canteen and had a sip of tea in the club office.  After this, along with the farewell of the guests, around four o'clock in the evening, I also took the path of the office with Satiji.  It is now twelve o'clock in the night and getting ready to sleep.  I was getting tired, so I returned from the office to the room around ten o'clock.  Right now the eyes are getting heavy due to sleep, so the rest of the things will happen tomorrow.  Goodbye until then.


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