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दिनेश कुकरेती
हिमालय में रहस्यों का खजाना बिखरा हुआ है। एक रहस्य से रू-ब-रू होने निकलिए, हजारों रहस्य सिर उठाए नज़र आएंगे। गंगोत्री यात्रा के प्रमुख पड़ाव धराली (श्याम प्रयाग) में समुद्रतल से 2,680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित प्राचीन कल्प केदार मंदिर भी स्वयं में ऐसे ही तमाम रहस्य समेटे हुए है। उत्तराखंड के उत्तरकाशी नगर से 75 किमी दूर भागीरथी और खीर गंगा के संगम पर केदारनाथ की ही तरह कत्यूर शिखर शैली में बने इस मंदिर की ख्याति जलमग्न शिवलिंग के रूप में है। मंदिर का गर्भगृह जल में आधा डूबा रहता है। मंदिर हाईवे से 60 मीटर की दूरी पर लगभग 12 फीट की गहराई में है। प्रवेश द्वार से गर्भगृह की गहराई लगभग 20 फीट है। माना जाता है कि आदि शंकराचार्य ने यहां 240 मंदिरों के समूह की स्थापना करवाई थी, लेकिन श्रीकंठ पर्वत से निकलने वाली खीर गंगा में आई बाढ़ के कारण वे सब मलबे में दब गए। हालांकि, अभी यह रहस्य अनसुलझा ही है।
अतीत की और लौटें तो कुछ आश्चर्यजनक तथ्य सामने आते हैं। वर्ष 1815 में एक स्काटिश यात्री और ईस्ट इंडिया कंपनी के अफसर फ्रेजर जेम्स बैली ने गंगा और यमुना के उद्गम स्थलों की यात्रा की थी। वह पहले यूरोपियन थे, जो हिमालय के इतना नजदीक पहुंचे। वर्ष 1820 में प्रकाशित अपनेे यात्रा वृतांत 'Journal of a tour through part of the snowy range of the Himala mountains' में उन्होंने धराली से मिलती-जुलती जगह का उल्लेख किया है। हालांकि, पुस्तक में धराली नाम का जिक्र नहीं है, लेकिन मंदिरों काेे वह हैरत से देखते रहे। वहीं, वर्ष 1869 खींची गई एक तस्वीर भी इस बात का प्रमाण है कि यहां एक से अधिक मंदिर थे। यह तस्वीर ब्रिटिश फोटोग्राफर सैमुअल बॉर्न ने ली थी। इस दुर्लभ तस्वीर में मौजूदा कल्प केदार मंदिर के साथ दो अन्य मंदिर भी दिखाई देते हैं।
दरसअल, सैमुअल बॉर्न ने वर्ष 1863 से 1870 के बीच भारत में फोटोग्राफी की थी। अमेरिका के लॉस एंजिल्स स्थित जे.पॉल गेटी म्यूजियम में 'स्मॉल टेंपल्स ऑन द गैंगेस एट डेराली' शीर्षक से एक फोटो मौजूद है, जो 1865 की है। माना जाता है कि शीर्षक में उल्लेखित डेराली का तात्पर्य धराली ही है। खास बात यह कि तस्वीर में उस समय भागीरथी नदी आज के बहाव से विपरीत दिशा में बहती दिखायी दे रही है, जहां अब गंगोत्री हाईवे है। यह तस्वीर आज भी पुरातत्व विभाग और स्थानीय घरों में संरक्षित है, जो इस मंदिर की ऐतिहासिकता को दर्शाती है।
17वीं सदी का है कल्प केदार मंदिर
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कल्प केदार मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव की सफेद स्फटिक की प्रतिमा विराजमान है। परिसर में शिवलिंग, नंदी और घड़े की आकृतियां भी हैं। दीवारों पर देवी-देवताओं की आकर्षक नक्काशी इसे और भी भव्य बनाती है। पुरातत्वविदों का मानना है कि यह मंदिर 17वीं सदी का है। बताया जाता है कि वर्ष 1945 में स्थानीय ग्रामीणों को इस स्थान पर रेत में दबा मंदिर का शिखर नजर आया। कौतुहलवश उन्होंने उसके आसपास सावधानीपूर्वक खुदाई शुरू की तो करीब 12 फ़ीट की गहराई पर एक पौराणिक मंदिर उभरकर सामने आया, जो पूरी तरह सुरक्षित था। इसके बाद मंदिर के प्रवेश द्वार तक पहुंचने का रास्ता तैयार किया गया।
खुदाई में मिल रहे तराशे हुए शिलाखंड
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मंदिर की प्रसिद्धि के साथ परिसर के विस्तार की ज़रूरत महसूस होने लगी तो इसके लिए 12 जुलाई 2025 से मंदिर समिति की ओर से वहां खुदाई शुरू कराई गई। इस दौरान यहां कई शिलाखंड मिले, जो प्राचीन होने के साथ तराशे हुए भी हैं। इससे संभावना जताई जा रही है कि आसपास और भी मंदिर दबे हो सकते हैं। विदित हो कि मंदिर के विस्तारीकरण को लेकर मंदिर समिति की ओर से स्वयं के संसाधनों से परिसर में आने वाली सीढ़ी के नीचे 20 से 25 फीट चौड़ाई और 15 से 20 फीट गहराई में खुदाई करवाई गई है।
अक्षय तृतीया के बाद खुलते हैं कपाट
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हर वर्ष गंगोत्री धाम के कपाट खुलने के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार को कल्प केदार मंदिर के कपाट खोले जाते हैं। गंगोत्री धाम के कपाट अक्षय तृतीया पर्व पर खोलने की परंपरा है।
धराली की खूबसूरती के क्या कहने
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गंगोत्री धाम और हर्षिल के बीच स्थित धराली देवदार के घने जंगल और सेब के बागीचों से घिरा गांव है। यहां प्रकृति ने उदारतापूर्वक नेमतें बिखेरी हैं। धराली के नजदीक ही सात तालों का समूह भी मौजूद है, जहां प्रकृति प्रेमी हिमालय के मनमोहक नजारों का आनंद लेने पहुंचते हैं। आपको भी गंगोत्री धाम आने का मौका मिले तो धराली में कुुुछ घंटे रुककर भगवान कल्प केदार के दर्शन अवश्य करें। यहां प्रकृति के खूबसूरत नज़ारे आपका दिन बना देंगे।