Besides being a writer and journalist, I am also a very simple person. I face new challenges every day. So, even though my daily routine is simple, it looks very extraordinary. I think you will like my routine too.
Wednesday, 14 August 2024
14-08-2024 (गढ़वालियों का यरुशलम बना देहरादून)
Tuesday, 16 July 2024
16-07-2024 (हिमालय में मक्खन-मट्ठा की अनूठी होली)
हिमालय में मक्खन-मट्ठा की अनूठी होली
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दिनेश कुकरेती
यूरोपीय देश स्पेन में खेली जाने वाली टमाटर की अनूठी होली 'ला टोमाटीना' फेस्टिवल के बारे में तो आपने अवश्य सुना होगा। ठीक इसी तर्ज पर उत्तराखंड हिमालय में भी मक्खन-मट्ठा की होली खेली जाती है, जिसे अढूंड़ी उत्सव (बटर फेस्टिवल) कहा जाता है। प्रकृति को समर्पित इस उत्सव का आयोजन समुद्रतल से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर उत्तरकाशी जिले के उपला टकनौर क्षेत्र में स्थित प्रसिद्ध दयारा बुग्याल (अल्पाइन घास का मैदान) में किया जाता है। इस खास उत्सव का आनंद उठाने देश-विदेश के पर्यटक भी बड़ी संख्या में दयारा पहुंचते हैं। यह उत्सव भाद्रपद संक्रांति को मनाया जाता है। इस बार यह संक्रांति 16 अगस्त को पड़ रही है। आइए! मक्खन-मट्ठा की फुहारों में भीगते हुए हम भी दयारा की खूबसूरती का दीदार करें।

मक्खन की हांडी टूटते ही शुरू होता है बटर फेस्टिवल का जश्न
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Monday, 15 July 2024
15-07-20465 (प्रकृति और संस्कृति के संरक्षण का पर्व हरेला)
सुख, समृद्धि और हरियाली का प्रतीक है लोकपर्व हरेला। यह पर्व जहां बारहमासा खेती को जीवंत बनाए रखने का प्रतीक है, वहीं नई ऋतु के शुरू होने की सूचना भी देता है, इसलिए इसे ऋतुपर्व भी कहा गया है। हरेला मनाने के पीछे समाज में एकजुटता, समरसता व सामंजस्य का संदेश छिपा हुआ है। जब संयुक्त परिवार बिखरते जा रहे हों, तब यह पर्व सभी को साथ रहने की शिक्षा देता है। संयुक्त परिवार कितना भी बड़ा हो, हरेला एक ही जगह यानी पैतृक घर में ही बोया जाता है। हरेला पहाड़ के लोक विज्ञान से भी जुड़ा है। इससे बीज की गुणवत्ता और अंकुरण प्रतिशत का अनुमान लग जाता है। इसलिए इसे बीज परीक्षण का पर्व भी कहा गया है। हरेला बुआई से ठीक पहले कर्क संक्रांति (श्रावण मास की प्रतिपदा तिथि) को मनाया जाता है। एक दौर में कुमाऊं व गढ़वाल मंडल के कुछ हिस्सों तक सीमित रहा यह पर्व आज अस्थायी राजधानी देहरादून समेत पूरे उत्तराखंड का लोकपर्व बन चुका है और समय के साथ राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित होता जा रहा है। ...तो आइए! हम भी इस पर्व का हिस्सा बनकर लोकजीवन की समृद्धि की कामना करें।

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-------------------हरेला पर्व सीधे तौर पर प्रकृति के साथ सामंजस्य बैठाने की भूमिका में नजर आता है। यह पर्व लोक विज्ञान और जैव विविधता से भी जुड़ा हुआ है। हरेला बोने और नौ-दस दिनों में उसके उगने की प्रक्रिया को एक तरह से बीजांकुरण परीक्षण के तौर पर देखा जा सकता है। इससे यह सहज पूर्वानुमान लग जाता है आगामी फसल कैसी होगी। हरेले में मिश्रित बीजों के बोने की जो परंपरा है वह बारहनाजा अथवा मिश्रित खेती (मिक्स्ड क्रापिंग) को बढ़ावा देती है। मिश्रित फसल टिकाऊ कृषि (सस्टेनेबल एग्रीकल्चर) के लिए बहुत ज़रूरी है, जो वर्तमान के साथ भविष्य की भी मांग है। आबादी बढ़ने, कृषि योग्य भूमि के कम होने और गिरते भूजल स्तर से छुटकारा पाने के लिए मिश्रित खेती एक बेहतर विकल्प है।
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रोप कर प्रकृति के इस देवता का स्वागत करते हैं। इस दौरान शुद्ध मिट्टी व प्राकृतिक रंगों से शिव-पार्वती व शिव परिवार की प्रतिमाएं गढ़ी जाती हैं और उन्हें हरेला के साथ स्वाले व उड़द की दाल की पकौड़ियां अर्पित की जाती हैं।
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भारतीय काल गणना और मानसून विज्ञान की दृष्टि से भी श्रावण संक्रांति को बोये जाने वाले हरेले का विशेष महत्व है। इसी दिन सूर्यदेव दक्षिणायन यानी कर्क से मकर रेखा में प्रवेश करते हैं और धीरे-धीरे रातें बड़ी होने लगती हैं। आध्यात्मिक दृष्टि से इस पर्व को शिव विवाह से जोड़ा जाता है। इस दिन शिव परिवार की पूजा कर उसे हरेला अर्पित किया जाता है। वहीं, प्रकृति के संरक्षण की दृष्टि से देखें तो हरेला सूखे चाल-खाल व तालाबों को भरने और नए जलाशयों के निर्माण का पर्व भी है।
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हरेला ऐसा पर्व है, जो साल में एक नहीं, तीन बार आता है। उत्तराखंड के लोग इस पर्व को चैत्र, सावन व आश्विन (क्वार) शुरू होने पर मनाते हैं। इनमें सबसे अधिक महत्व सावन के पहले दिन पड़ने वाले हरेला पर्व को दिया गया है, क्योंकि यह सावन की हरियाली का प्रतीक है।
Sunday, 14 July 2024
14-07-2024 (पिंडालू के पत्यूड़ का जवाब नहीं)
एक पड़ोसी के किचन गार्डन में इन दिनों पिंडालू (पिनालू) के पत्तों की हरियाली सम्मोहन बेखर रही है, लेकिन पड़ोसी को नहीं मालूम कि पिंडालू के ये पत्ते कितनी काम की चीज हैं। शायद उसने और उसके परिवार ने कभी पिनालू के पत्यूड़ (पतोड़) नहीं खाए। अन्यथा ये पत्ते इस तरह मुंह न चिढ़ा रहे होते। बरसात के यही दिन तो हैं पत्यूड़ के जायके का आनंद उठाने के। पहाड़ की इस स्पेशल डिस को बनाने के लिए धैर्य की जरूरत होती है और मेहनत भी खूब लगती है। लेकिन, खाने में जो मजा आता है, उसके कहने ही क्या। ...तो चलिए आज किस्से-कहानी को छोड़ पिंडालू के पत्तों की ही बात करते हैं। जीवन के हर क्षेत्र में एकरसता जड़ बना देती है, सो इस तरह का बदलाव नितांत जरूरी है। हम भी उस बदलाव की शुरुआत पड़ोसी से पिंडालू के कुछ पत्ते मांगकर करते हैं, ताकि आपको पिंडालू के पत्यूड़ बनाना सिखा सकें-
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सबसे पहले पिंडालू या पिनालू के पत्तों के रेसे अलग कर उन्हें अच्छी तरह धो लें और पानी सूखने दें। एक चौड़े बर्तन या डोंगे में बेसन का गाढ़ा घोल तैयार कर लें। इसमें आवश्यकता के अनुसार हरा धनिया, अदरक-लहसुन का पेस्ट, भुना जीरा, आजवाइन, भांग के बीज, सोडा, चुटकीभर हींग, दो बड़े चम्मच नींबू रस और स्वादानुसार नमक व मिर्च मिला मिला दें। अब पिंडालू के पत्तों को बेसन के घोल में डुबोकर अलग-अलग या एक के ऊपर एक रखकर बेलनाकार आकृति में रोल कर लें। यह रोल खुलने न पाए, इसके लिए उसे धागे से अच्छी तरह बांध लें और कढ़ाई में तेल गरम कर पत्यूड़ों को धीमी आंच में गोल्डन ब्राउन होने तक फ्राई करते रहें। अच्छी तरह फ्राई होन पर इन्हें चूल्हे से उतार दें और हल्का ठंडा होने के बाद सोयाबीन, भट, तिल या हरी चटनी के साथ परिवार के सदस्य व मित्र-परिचितों को परोसें। गर्मागर्म चाय के साथ भी आप पत्यूड़ का जायका ले सकते हैं।

चाहो तो पत्यूड़ को भाप पर भी पका सकते हो। इसके लिए ऐसे बर्तन की जरूरत पड़ती है, जो जाली के सहारे ऊपर-नीचे दो हिस्सों में बंटा हो। इसके निचले हिस्से में पानी भरा जाता है और ऊपरी हिस्से में उपरोक्त विधि से ही पत्यूड़ तैयार कर उन्हें रखा जाता है। पानी जब गरम होता है तो उसकी भाप इन पत्यूड़ को पकाती है। तकरीबन 20 मिनट में पत्यूड़ पककर तैयार हो जाएंगे। फिर उन्हें बर्तन से निकालकर गोल-गोल टुकड़ों में काट लें और पैन या कढ़ाई में दो बड़े चम्मच तेल डालकर उसमें जखिया का छौंक लगाएं और इन टुकड़ों को कुरकुरे होने तक भूनें। लो जी, तैयार हैं गर्मागर्म पत्यूड़। आइए! मिल-जुलकर इनका आनंद लें।

पत्यूड़ बनाने के लिए जरूरी सामग्री
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पिंडालू के पत्ते, बेसन, हल्दी, तेल, अजवाइन, भुना जीरा, भांग के बीज, खाने का सोडा, चार-पांच कटी हुई हरी मिर्च, लाल मिर्च पाउडर, नमक, हरा धनिया, अदरक-लहसुन का पेस्ट और हींग।
(नोट : सामग्री की मात्रा कितनी रहेगी, यह इस बात पर निर्भर है कि कितने लोगों के लिए पत्यूड़ तैयार किए जा रहे हैं। इसी हिसाब से मात्रा घट-बढ़ सकती है।)
Thursday, 20 June 2024
20-06-2024 जीवन की राहें-5 (अतीत पर गर्व की अनुभूति)
अतीत पर गर्व की अनुभूति
Tuesday, 18 June 2024
18-06-2024 जीवन की राहें-4 (कार्य अनेक, ध्येय एक)
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Saturday, 15 June 2024
15-06-2024 जीवन की राहें-3 (बढ़ने लगा अखबारों के प्रति आकर्षण)

03-09-2025 (आइये! फूलों की इस गुमनाम धरोहर से दुनिया को परिचित करायें)
यह निःसंदेह अच्छी खबर है कि चमोली जनपद में जोशीमठ (ज्योतिर्मठ) विकासखंड के चीन सीमा से लगे क्षेत्र में स्थित चेनाप (चिनाप) फूलों की घाटी को ...
