Sunday, 8 December 2024

08-12-2024 (उर्गम घाटी में कभी बंद नहीं होते बदरी-केदार धाम के कपाट)



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उर्गम घाटी में कभी बंद नहीं होते बदरी-केदार के कपाट

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चमोली जिले की उर्गम घाटी में षष्ठम बदरी व पंचम केदार के रूप में होते हैं भगवान बदरी विशाल व बाबा केदार के दर्शन।नकल्प गंगा के तट पर महज दो-ढाई किमी के फासले पर स्थित हैं दोनों मंदिर, वर्षभर खुले रहते हैं इन दोनों धाम के कपाट।


दिनेश कुकरेती
शीतकाल के लिए कपाट बंद होने के बाद भी आप भगवान बदरी नारायण और बाबा केदार के दर्शन उनके मूल धाम में कर सकते हैं। लेकिन, प्रथम बदरी (बदरीनाथ) व प्रथम केदार (केदारनाथ) के रूप में नहीं, बल्कि षष्ठम बदरी व पंचम केदार के रूप में। वह भी एक ही जगह, महज दो-ढाई किमी के फासले पर। जी हां!चमोली जिले के जोशीमठ (ज्योतिर्मठ) की उर्गम घाटी में कल्प गंगा (हिरण्यवती) नदी के तट पर स्थित ध्यान बदरी और कल्पेश्वर धाम की ही बात हो रही है। अष्ट बदरी और पंच केदार समूह के इन मंदिरों में भगवान नारायण ध्यानावस्था और महादेव जटा रूप में दर्शन देते हैं। स्कंद पुराण के 'केदारखंड' में उल्लेख है कि इन दोनों ही धाम में दर्शन से बदरीनाथ व केदारनाथ धाम के दर्शन का पुण्य प्राप्त होता है। दोनों ही धाम के कपाट वर्षभर खुले रहते हैं।लेकिन, शीतकाल में यहां आने का आनंद ही कुछ और है। भीड़भाड़ न होने के कारण खाने-ठहरने की भी कोई दिक्कत नहीं होती। ...तो आइए! शीतकाल में एक ही स्थान पर भगवान बदरी-केदार के दर्शन करें।

ध्यान बदरी मंदिर
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चमोली जिले में समुद्रतल से 2,135 मीटर की ऊंचाई पर कल्पेश्वर धाम के पास स्थित इस मंदिर में शालिग्राम शिला से बनी भगवान नारायण की चतुर्भुज मूर्ति ध्यानावस्था में विराजमान है। भगवान नारायण हाथों में शंख व चक्र धारण किए हुए हैं। मंदिर में नर-नारायण, कुबेर और गरुड़ के विग्रह भी प्रतिष्ठित हैं। कहते हैं कि ध्यान बदरी मंदिर का निर्माण 12वीं सदी में आदि शंकराचार्य के मार्गदर्शन में हुआ। नक्काशीदार पत्थरों से कत्यूरी शैली बना यह मंदिर लगभग बदरीनाथ मंदिर के समान ही दिखता है। प्राचीन काल में जब प्राकृतिक चुनौतियों के कारण बदरीनाथ धाम की राह दुर्गम हो जाती थी, तब श्रद्धालु यहीं भगवान विष्णु की पूजा करते थे। ध्यान बदरी मंदिर की व्यवस्था डिमरी जाति के लोग संभालते हैं, जो बदरीनाथ धाम में श्रीलक्ष्मी मंदिर के मुख्य पुजारी भी हैं। कथा है कि जब देवराज इंद्र, महर्षि दुर्वासा के शाप से श्रीहीन हो गए तो उन्होंने भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए इसी स्थान पर कल्पवास किया। तब से यहां कल्पवास की परंपरा चली आ रही है। कल्पवास में साधक ध्यानलीन रहता है, इसलिए यहां पर भगवान का विग्रह भी आत्मलीन अवस्था में है। इस कारण विग्रह को ध्यान बदरी नाम से प्रतिष्ठित किया गया। ध्यान बदरी की कथा पांडव वंश के राजा पुरंजय के पुत्र उर्वर ऋषि से भी जुड़ी हुई है। कहते हैं कि उन्होंने उर्गम
क्षेत्र में ध्यान किया था और यहां भगवान विष्णु का मंदिर बनवाया। मंदिर के गर्भगृह की दीवारें मानव मुखौटों से सजी हैं, जिनका इस्तेमाल मेलों (विशेषकर रम्माण मेला) के दौरान मुखौटा नृत्य में होता है।

कल्पेश्वर धाम
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समुद्रतल से 2,134 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर में वृषभ रूपी महादेव के जटा दर्शन होते हैं, इसलिए उन्हें जटाधर या जटेश्वर भी कहा गया है। कथा है कि यहां ऋषि दुर्वासा ने कल्प वृक्ष के नीचे घोर तप किया था, जिससे यहbस्थान कल्पेश्वर या कल्पनाथ नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह भी कथा है कि महाभारत युद्ध में संबंधियों की हत्या के दोष से मुक्ति के लिए पांडव जब महादेव के दर्शन को काशी से उनका पीछा करते हुए गुप्तकाशी पहुंचे तो महादेव वहां से भी ओझल हो गए। कुछ दूर जाकर उन्होंने बैल का रूप धारण किया और अन्य पशुओं के साथ जाकर मिल गए। इस रूप में भी पांडवों ने उन्हें पहचान गए और फिर भीम ने विशाल रूप धरकर दो पहाड़ों पर पैर फैला दिए, जिनके नीचे से अन्य पशु तो निकल गए, लेकिन वृषभ रूपी शिव आगे जाने को तैयार नही हुए। यह देख भीम बैल पर झपटे तो वह दलदली भूमि में समाने लगा। तब भीम ने बैल की पीठ को पकड़ लिया। पिंड रूप में मौजूद इसी हिस्से की केदारनाथ धाम में पूजा होती है। कहते हैं कि वृषभ के धड़ का ऊपरी भाग काठमांडू (नेपाल) में प्रकट हुआ और 'पशुपतिनाथ' कहलाया। भुजाएं तृतीय केदार 'तुंगनाथ', नाभि द्वितीय केदार 'मध्यमेश्वर', मुख चतुर्थ केदार 'रुद्रनाथ' और जटा पंचम 'कल्पेश्वर' धाम में प्रकट हुईं। यह पांच स्थल पंचकेदार के नाम से विख्यात हैं। कल्पेश्वर मंदिर के गर्भगृह का रास्ता एक गुफा से होकर जाता है। पहले हेलंग से उर्गम गांव होते हुए कल्पेश्वर की दूरी 12.7 किमी थी। अब हेलंग से देवग्राम तक जीप योग्य सड़क बन जाने के बाद कल्पेश्वर तक का पैदल ट्रेक महज 500 मीटर रह गया है।

यहां भी कर सकते हैं दर्शन और सैर
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उर्गम घाटी में प्रकृति के मनमोहक नजारे देखने को मिलते हैं। बर्फ से ढके ऊंचे-ऊंचे पहाड़, घने जंगल, घास के मैदान और झील-झरने इस घाटी की सुंदरता में चार चांद लगाते हैं। इसलिए इसे उत्तराखंड का छिपा हुआ खजाना भी बोला जाता है। प्रसिद्ध बंसी नारायण और फ्यूंला नारायण ट्रेक भी इसी घाटी से शुरू होते हैं। हालांकि, शीतकाल में इन दोनों मंदिरों के कपाट बंद रहते हैं। इस दौरान जोशीमठ-हेलंग के बीच अणिमठ नामक स्थान पर भगवान वृद्ध बदरी के दर्शन भी किए जा सकते हैं। वृद्ध बदरी धाम का अष्ट बदरी समूह में तीसरा स्थान है। इसके अलावा आप जोशीमठ स्थित नृसिंह मंदिर में भगवान बदरी विशाल के शीतकालीन दर्शन के साथ विश्व प्रसिद्ध स्कीइंग स्थल औली की सैर भी कर सकते हैं। जोशीमठ की दूरी हेलंग से 13.2 किमी है। जोशीमठ से 15 किमी आगे तपोवन के पास अर्द्ध बदरी धाम भी है।

ऐसे पहुंचें
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उर्गम घाटी पहुंचने के लिए बदरीनाथ हाईवे पर ऋषिकेश से हेलंग चट्टी तक 243 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। यहां कल्पेश्वर धाम जाने के लिए देवग्राम तक 12.7 किमी और ध्यान बदरी धाम जाने के लिए बड़गिंडा तक 10 किमी सड़क मार्ग है। उर्गम घाटी में खाने-ठहरने की पर्याप्त सुविधाएं हैं। होटल, लाज व होम स्टे पूरी घाटी में आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं, जहां आप मनपसंद खाना बनवा सकते हैं। चाहें तो उत्तराखंडी खानपान का भी आनंद उठा सकते हैं।

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The doors of Badri-Kedar Dham are never closed in Urgam Valley
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Lord Badri Vishal and Baba Kedar can be seen in the form of Shasht Badri and Pancham Kedar in Urgam Valley of Chamoli district. Both the temples are situated at a distance of just two-two and a half km on the banks of Nakalp Ganga, the doors of both these Dhams remain open throughout the year.
Dinesh Kukreti
Even after the doors are closed for winter, you can see Lord Badri Narayan and Baba Kedar in their original Dham. But, not as Pratham Badri (Badrinath) and Pratham Kedar (Kedarnath), but as Shasht Badri and Pancham Kedar. That too at the same place, at a distance of just two-two and a half km.  Yes! We are talking about Dhyan Badri and Kalpeshwar Dham situated on the banks of Kalp Ganga (Hiranyawati) river in the Urgam valley of Joshimath (Jyotirmath) of Chamoli district. In these temples of Ashta Badri and Panch Kedar group, Lord Narayana appears in a meditative state and Mahadev appears in the form of Jata. It is mentioned in the 'Kedarkhand' of Skanda Purana that by visiting both these Dhams, one gets the virtue of visiting Badrinath and Kedarnath Dham. The doors of both the Dhams remain open throughout the year. But, the joy of coming here in winter is something else. Due to no crowd, there is no problem of food and accommodation. ...So come! Visit Lord Badri-Kedar at one place in winter.

Dhyan Badri Temple
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In Chamoli district, located near Kalpeshwar Dham at an altitude of 2,135 meters above sea level, this temple has a Chaturbhuj (four-armed) idol of Lord Narayana made of Shaligram stone sitting in a meditative state. Lord Narayana is holding a conch and a chakra in his hands. The idols of Nar-Narayan, Kubera and Garuda are also installed in the temple. It is said that Dhyan Badri temple was built in the 12th century under the guidance of Adi Shankaracharya. This temple made in Katyuri style with carved stones looks almost similar to Badrinath temple. In ancient times, when the road to Badrinath Dham became inaccessible due to natural challenges, devotees used to worship Lord Vishnu here. The management of Dhyan Badri temple is handled by people of Dimri caste, who are also the chief priests of Sri Lakshmi temple in Badrinath Dham.  The story is that when Devraj Indra became poor due to the curse of Maharishi Durvasa, he performed Kalpavas at this place to please Lord Vishnu. Since then the tradition of Kalpavas has been going on here. In Kalpavas, the devotee remains absorbed in meditation, so the idol of the Lord here is also absorbed in self. For this reason the idol was named Dhyan Badri. The story of Dhyan Badri is also associated with Urvar Rishi, son of King Puranjay of the Pandava dynasty. It is said that he meditated in the Urgam area and built a temple of Lord Vishnu here. The walls of the sanctum sanctorum of the temple are decorated with human masks, which are used in mask dances during fairs (especially Ramman Mela).


Kalpeshwar Dham
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Situated at a height of 2,134 meters above sea level, this temple has the darshan of Mahadev in the form of a bull, hence he is also called Jatadhar or Jateshwar. There is a story that Rishi Durvasa had performed severe penance under the Kalpa tree here, due to which this place became famous by the name of Kalpeshwar or Kalpnath. There is also a story that when the Pandavas followed Mahadev from Kashi to Guptakashi to get salvation from the sin of killing their relatives in the Mahabharata war, Mahadev disappeared from there as well. After going some distance, he took the form of a bull and joined the other animals. The Pandavas recognized him even in this form and then Bhima took a huge form and spread his legs on two mountains, under which other animals passed, but Shiva in the form of a bull was not ready to go further. Seeing this, Bhima pounced on the bull and it started sinking in the marshy land. Then Bhima caught hold of the bull's back.  This part present in the form of a body is worshipped in Kedarnath Dham. It is said that the upper part of the torso of Taurus appeared in Kathmandu (Nepal) and was called 'Pashupatinath'. The arms appeared in the third Kedar 'Tungnath', the navel in the second Kedar 'Madhyameshwar', the face in the fourth Kedar 'Rudranath' and the Jata in the fifth 'Kalpeshwar' Dham. These five places are famous as Panchkedar. The way to the sanctum sanctorum of Kalpeshwar temple goes through a cave. Earlier the distance from Helang to Kalpeshwar via Urgam village was 12.7 km. Now after the construction of a jeepable road from Helang to Devgram, the walking trek to Kalpeshwar is reduced to just 500 meters.
You can also visit and tour here
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The Urgam valley offers enchanting views of nature. The snow-clad high mountains, dense forests, grasslands and lakes and waterfalls add to the beauty of this valley. That is why it is also called the hidden treasure of Uttarakhand. The famous Bansi Narayan and Phyunla Narayan treks also start from this valley. However, the doors of both these temples remain closed during winter. During this time, one can also visit Lord Vridha Badri at a place called Animath between Joshimath and Helang. Vridha Badri Dham is the third in the Ashta Badri group. Apart from this, you can also visit the world famous skiing destination Auli along with the winter darshan of Lord Badri Vishal at the Narasimha temple in Joshimath. The distance of Joshimath from Helang is 13.2 km. There is also Ardha Badri Dham near Tapovan, 15 km ahead of Joshimath.  
How to reach
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To reach Urgam Valley, one has to cover a distance of 243 km from Rishikesh to Helang Chatti on the Badrinath Highway. There is a 12.7 km road to Devgram to reach Kalpeshwar Dham and a 10 km road to Badginda to reach Dhyan Badri Dham. There are ample food and accommodation facilities in Urgam Valley. Hotels, lodges and homestays are easily available in the entire valley, where you can get your favourite food cooked. If you want, you can also enjoy Uttarakhandi food.

08-12-2024 (उर्गम घाटी में कभी बंद नहीं होते बदरी-केदार धाम के कपाट)

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