सीढ़ियों पर बसे नई टिहरी शहर का भव्य नजारा। |
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सीढ़ियों पर बसे नई टिहरी शहर का भव्य नजारा। |
दिनेश कुकरेती
नई टिहरी। हिमालयी राज्य उत्तराखंड का एक ऐसा खूबसूरत पहाड़ी शहर, जिसे चंडीगढ़ की तरह मास्टर प्लान से बसाया गया गया है। यह उत्तराखंड का एकमात्र शहर है, जो 21वीं सदी में देश के नक्शे में जुड़ा। भागीरथी और भिलंगना नदी के संगम पर बने देश के सबसे ऊंचे टिहरी बांध के पास की पहाड़ी पर बसा यह शहर सचमुच अनूठा है। पंक्तिबद्ध मकान, सरकारी दफ्तर और व्यावसायिक भवनों के साथ यहां के पर्यटक स्थलों में भी अजीब-सा आकर्षण है। समुद्र की सतह से 1,550 से लेकर 1,950 मीटर तक की ऊंचाई पर मखमली-अनछुई हरियाली के बीच बसे इस शहर की घुमावदार साफ-सुथरी सड़कें, जगह-जगह बनाए गए सीढ़ीदार रास्ते, दूर-दूर तक फैली पहाड़ियां और ऊंचे-नीचे घने जंगल यहां आने वाले पर्यटकों को सम्मोहित-सा कर देते हैं।
टिहरी झील में साहसिक खेलों का प्रदर्शन। |
नई टिहरी शहर टिहरी जिले का मुख्यालय होने के साथ एक आधुनिक एवं सुव्यवस्थित नगर है, जो चंबा कस्बे से 11 किमी की दूरी पर स्थित है। यहां घरों के आसपास बनी इन सीढ़ियों पर से गुजरते हुए लोग स्वयं को पहाड़ की सभ्यता एवं संस्कृति के बेहद करीब पाते हैं। नई टिहरी में जलवायु सालभर खुशनुमा रहती है। यहां आकर आप भागीरथीपुरम, डोबरा-चांठी पुल, रानीचौरी, बादशाही थौल, चंबा, बूढ़ा केदार मंदिर, धनोल्टी, कैम्पटी फाल, देवप्रयाग जैसे कई पर्यटन एवं तीर्थ स्थलों की आसानी से सैर कर सकते हैं। टिहरी बांध और उसकी मानव निर्मित विशालकाय झील का नजारा तो यहां से देखते ही बनता है। शहर की सबसे ऊंची पहाड़ी पर बनाया गया पिकनिक स्थल तो धीरे-धीरे देश-विदेश के पर्यटकों की मनपसंद सैरगाह बनता जा रहा है। यहां से पर्यटकों को हिमाच्छादित पर्वत शृंखलाओं का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है। इसलिए लोगों ने इस स्थान को ‘स्नो व्यू' नाम दिया है। शानदार प्राकृतिक स्थलों के साथ नई टिहरी एडवेंचर एक्टिविटी का भी प्रमुख केंद्र है। आप यहां आकर रिवर-राफ्टिंग, ट्रेकिंग, राक क्लाइंबिंग जैसी रोमांचक गतिविधियों का भी आनंद उठा सकते हैं।
झील की अतल गहराइयों में समाया ऐतिहासिक टिहरी शहर |
झील के समाया है ऐतिहासिक टिहरी नगर
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टिहरी बांध की झील में डूब चुका मूल टिहरी नगर भागीरथी और भिलंगना नदी के तट पर स्थित था। पहले यह एक छोटा-सा गांव हुआ करता था, लेकिन वर्ष 1815 में गढ़वाल के राजा सुदर्शन शाह ने इस नगर को अपनी राजधानी बना दिया। इसी के नाम पर राज्य का नाम टिहरी गढ़वाल रियासत पड़ा। इस नगर का विस्तार तीन चौथाई मील लंबाई और आधा मील की चौड़ाई में हुआ था। 21वीं सदी की शुरुआत में भागीरथी व भिलंगना नदी के संगम पर टिहरी बांध का निर्माण होने के कारण पूरा टिहरी नगर जलमग्न हो गया। इसी के मद्देनजर सरकार ने तीन गांवों के साथ थोड़ी वन भूमि का अधिग्रहण कर बांध प्रभावितों के लिए नई टिहरी नगर की स्थापना की। वर्ष 2004 तक पुरानी टिहरी को पूरी तरह खाली कराकर यहां के निवासियों को नई टिहरी स्थानांतरित कर दिया गया।
बूढ़ा केदार मंदिर में देश का सबसे बड़ा स्वयंभू शिवलिंग। |
देश का सबसे बड़ा शिवलिंग
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मध्य हिमालय के ऐतिहासिक-पौराणिक मंदिरों की श्रेणी में एक है बूढ़ा केदार धाम। समुद्रतल से 4,400 फीट की ऊंचाई और नई टिहरी से 59 किमी की दूरी पर स्थित इस मंदिर का भी पंचकेदार शृंखला के मंदिरों सरीखा ही महत्व है। बूढ़ा केदार का उल्लेख स्कंद पुराण के केदारखंड में सोमेश्वर महादेव के रूप में हुआ है। मान्यता है कि गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति को पांडव इसी रास्ते स्वर्गारोहणी की ओर गए थे। यहीं बालगंगा-धर्मगंगा के संगम पर भगवान शिव ने बूढ़े ब्राह्मण के रूप में पांडवों को दर्शन दिए और बूढ़ा केदारनाथ कहलाए। मंदिर के गर्भगृह में विशाल लिंगाकार फैलाव वाले पाषाण पर भगवान शिव की मूर्ति और लिंग विराजमान है। इतना बड़ा शिवलिंग शायद ही देश के किसी शिवालय में हो। बगल में ही भू-शक्ति, आकाश शक्ति और पाताल शक्ति के रूप में विशाल त्रिशूल विराजमान है। बूढ़ा केदार मंदिर के पुजारी नाथ जाति के राजपूत होते हैं। वह, जिनके कान छिदे हों।
बूढ़ा केदार मंदिर |
चंबा के क्या कहने
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नई टिहरी से 11 किमी दूर समुद्रतल से 1,676 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हिल स्टेशन चंबा सेब व खुबानी के बाग और बुरांश के फूलों के लिए जाना जाता है। टिहरी बांध, सुरकंडा देवी मंदिर और ऋषिकेश की ओर बढ़ रहे पर्यटकों के लिए चंबा एक आदर्श ठहराव स्थल है। यहां गबर सिंह नेगी मेमोरियल व बागेश्वर महादेव मंदिर जैसे लोकप्रिय स्थल पर्यटकों को अपनी ओर खींचते हैं। चंबा बर्ड वाचिंग के शौकीनों के लिए भी आदर्श स्थल है। छुटियां बिताने के लिए चंबा उन आरामदायक स्थलों में से एक है, जहां आप असीम शांति की अनुभूति कर सकते हैं। यहां देवदार, बांज व बुरांश के वृक्षों की शीतल हवा पर्यटकों का मन मोह लेती है। चंबा की विशेषता यह है कि मसूरी और नई टिहरी जैसे हिल स्टेशनों के बहुत करीब होते हुए भी इस छोटे-से शांत कस्बे ने अपने ग्रामीण परिवेश को आज भी संजोकर रखा है।
टिहरी झील में बोटिंग का आकर्षक नजारा। |
भागीरथीपुरम और टाप टेरेस
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टिहरी बांध की ओर से जाने वाले रास्ते में भागीरथीपुरम पड़ता है। इसी के पास टाप टेरेस नामक पर्यटन स्थल है। यहां से एक रास्ता बाबा विश्वनाथ की नगरी उत्तरकाशी की ओर चला जाता है। इन स्थानों पर आप पिकनिक मना सकते हैं, मंदिरों के दर्शन कर सकते हैं और टिहरी झील में होने वाले साहसिक खेलों का मजा भी ले सकते हैं।
सिद्धपीठ कुंजापुरी धाम। |
सूर्योदय व सूर्यास्त का मनमोहक नजारा
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आप प्रकृति प्रेमी हैं तो कुंजापुरी चले आइए! पौराणिक सिद्धपीठ के रूप में विख्यात यह स्थल देवी-देवताओं से जुड़ी लोकोक्तियों के कारण ही नहीं, यहां से नजर आने वाले हिमालय के नयनाभिराम दृश्यों के लिए भी प्रसिद्ध है। ऋषिकेश-चंबा मार्ग पर हिंडोलाखाल नामक स्थान से हरे-भरे जंगलों के बीच पांच किमी का सफर तय कर यहां पहुंचा जा सकता है। यहां से हिमालय में सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा देखते ही बनता है।
विद्युत प्रकाश में जगमग डोबरा-चांठी पुल का मनमोहक नजारा। |
डोबरा-चांठी पुल
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टिहरी झील के ऊपर डोबरा-चांठी में बना देश का सबसे लंबा सस्पेंशन ब्रिज अब पर्यटकों का नया ठिकाना बन गया है। इस पुल पर आधुनिक तकनीकी से युक्त मल्टीकलर लाइटिंग की गई है, जिससे शाम ढलने के बाद इसकी आभा देखते ही बनती है। पुल की कुल 725 मीटर है, जिसमें 440 मीटर लंबा सस्पेंशन ब्रिज है।
टिहरी की प्रसिद्ध मिठाई सिंगोरी। |
सिंगोरी का कभी न भूलने वाला स्वाद
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आप टिहरी आए और यहां की प्रसिद्ध मिठाई सिंगोरी का स्वाद नहीं लिया तो समझिए असीम आनंद से चूक गए। शुद्ध खोया (मावा) से बनने वाली कलाकंद जैसी यह मिठाई मालू के पत्ते में पान की तरह लपेटकर परोसी जाती है। खोया के अलावा इसमें बारीक सफेद चीनी, नारियल व सूखे गुलाब के फूल के पाउडर मिलाया जाता है।
टिहरी झील में बने फ्लोटिंग हट्स। |
खाने-ठहरने की उचित व्यवस्था
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नई टिहरी में खाने-ठहरने की कोई समस्या नहीं है। अच्छे होटल और गेस्ट हाउस यहां बने हुए हैं। गढ़वाल मंडल विकास निगम का विश्रामगृह भी ठहरने के लिए अच्छा स्थान है। नई टिहरी की देहरादून से दूरी 95 किमी और ऋषिकेश से 76 किमी है।
सीढ़ियों पर बसे नई टिहरी शहर का भव्य नजारा। |
कब आएं
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वैसे तो आप नई टिहरी कभी भी आ सकते हैं, लेकिन मार्च से जून और फिर अक्टूबर से दिसंबर तक का समय यहां घूमने के लिए सबसे अनुकूल है। जनवरी-फरवरी में यहां कड़ाके की ठंड पड़ती है, जबकि जून से सितंबर के बीच वर्षाकाल के चलते अक्सर मार्ग अवरुद्ध रहते हैं।
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