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दोस्तों के साथ पार्टी का मजा
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दिनेश कुकरेती
कल दोपहर जब मैं आफिस पहुंचा तो आदतानुसार पहले सीधे लाइब्रेरी में गया। वहां रिपोर्टिंग टीम का एक साथी पहले से ही मौजूद था। मुझे देखते ही बोला, कल आपकी पार्टी है, काम जल्दी निपटा देना। मैंने पूछा, किस उपलक्ष्य में, तो वह बोला, कुछ खास है। फिर बात आई-गई हो गई। हालांकि, आफिस से घर जाते हुए वह एक बार फिर मेरे पास आया और पार्टी में चलने की याद दिला गया। मैंने उसे आश्वस्त किया कि हर हाल में तय समय पर पहुंच जाऊंगा। वैन्यू आफिस के पास ही है, यह भी उसने मुझे बताया। फिर मैं भी रूम में लौट गया।
आज, सुबह उठा तो मन में यह बात थी कि पार्टी में जाना है। हालांकि, मैंने रोटियां रात के लिए भी बना ली थीं। सोचा, कहीं प्रोग्राम कैंसल हो गया तो...। दोपहर ढाई बजे के आसपास मैं आफिस पहुंचा तो वही साथी फिर बोला, काम जल्दी निपटा लेना। जो सीनियर साथी पार्टी के आयोजक थे, कुछ देर बाद उन्होंने भी पार्टी में पहुंचने को कहा। अब तो मुझे हर हाल में जाना ही था। सो, काम भी जल्दी-जल्दी निपटा लिया और रात ठीक साढे़ नौ बजे मैं अन्य साथियों के साथ आयोजन स्थल पर था।
आफिस से सौ मीटर के फासले पर किसी परिचित का एक गेस्ट हाउस है, जिसकी छत पर पार्टी चल रही थी। कुछ साथी गिलास खाली करने में मशगूल थे। अलग-अलग प्लेट में मिक्स सलाद, रोस्टेड चिकन व पनीर सजे हुए थे। साथ ही चल रही थी नेशनल-इंटरनेशनल लेवल की चर्चा। जिन साथियों का गिलास से कोई सरोकार नहीं, वो श्रोता की भूमिका में थे। मैं भी उनके साथ बैठकर रोस्टेड चिकन का जायका लेने लगा। भूख भी लग रही थी, लेकिन अभी तक चावल नहीं पके थे। चिकन व पनीर भी अभी चूल्हे पर ही चढे़ थे। लिहाजा, भोजन के लिए लगभग आधा घंटा और इंतजार करना पडा़।
तमाम कोशिशों के बावजूद मैं समय से रूम में नहीं पहुंच पाया। रात बारह बजकर पांच मिनट पर मैं रूम के लिए निकला और एक-एक किलो से अधिक मूली-गाजर, आधा किलो से थोडा़ कम कागजी नींबू, थोडी़ हरी मिर्च भी साथ ले आया। दरअसल, भाई लोग जरूरत से ज्यादा सब्जियां ले आए थे, जिन्हें गेस्ट हाउस में छोड़ने का न तो मन कर रहा था और कोई औचित्य ही था। कुछ सब्जी एक अन्य साथी भी ले गया। बहरहाल! इस समय रात के साढे़ बारह बज चुके हैं। पानी बंद हो गया है और अब दोबारा डेढ़ बजे के आसपास आएगा। फिलहाल मेरे पास पीने के लिए एक बाल्टी पानी है। सुबह स्नान के लिए एक बाल्टी टंकी से भर लेता हूं, बाकी कल की कल देखी जाएगी। चलिए! आज इतना है। शुभ रात्रि! खुदा हाफिज़!
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Dinesh Kukreti
Yesterday afternoon, when I reached the office, I went straight to the library as per habit. A fellow of the reporting team was already there. On seeing me, he said, tomorrow is your party, to finish the work soon. I asked, on what occasion, then he said, something special. Then the matter came and went. However, on his way home from the office, he once again came to me and was reminded to walk to the party. I assured him that I will reach at any point in time. He told me that the venue is near the office. Then I also returned to the room.
Today, when I woke up in the morning, there was a thought in my mind that I had to go to the party. However, I had also made the rotis for the night. Thought, if the program was canceled somewhere…. When I reached the office around two and a half hours, the same fellow again said, get the work done quickly. The senior fellow who was the organizer of the party, after some time he also asked to come to the party. Now I had to go all the way. So, I also got the work done quickly and I was at the venue with other colleagues at exactly nine thirty in the night.
At a distance of 100 meters from the office, there is a guest house of an acquaintance, on whose roof the party was going on. Some companions were busy emptying the glass. Mixed lettuce, roasted chicken and cheese were adorned in separate plates. Discussion of national-international level was going on simultaneously. The companions, who had nothing to do with the glass, were in the role of the listener. I also sat with him to taste the roasted chicken. Hunger was also felt, but the rice was not ripe yet. Chicken and cheese were also climbed on the stove. So, we had to wait for about half an hour for food.
Despite all the efforts, I could not reach the room on time. At twelve o'clock at night, I left for the room and brought more than a kilo of radish-carrots, a little less than half a kilo of paper lemon and a little green chilli. Actually, the brothers had brought more vegetables than needed, which neither felt like leaving in the guest house and there was no justification. Another vegetable took some other companions as well. However! It is half past twelve at this time. The water has stopped and now it will come back around one and a half o'clock. I currently have a bucket of water to drink. I fill a bucket with a tank for morning bath, the rest will be seen tomorrow. Let go! Today it is so. Good night! Khuda hafiz!
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