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दिनेश कुकरेती
नेगीदा से मिलना अपने आप में अविस्मरणीय अनुभूति है। ऐसी अनुभूति, जिसे लोक से वास्ता रखने वाला हर व्यक्ति धरोहर के रूप में संजोकर रखना चाहेगा। फिर यह तो ऐसा मौका था, जिसने नेगीदा के साथ लोक के उन प्रहरियों से भी मिलने का अवसर उपलब्ध करा दिया, जिनसे मिलने की उत्कंठा के बाद भी मुलाकात नहीं हो पाती। कवि एवं गीतकार मदन डुकलान, साहित्यकार एवं कवि नंद किशोर हटवाल, गढ़कवि संदीप रावत ऐसे ही कुछ नाम हैं, जिनसे नेगीदा के बहाने आज अनायास ही मुलाकात हो गई। नेगीदा यानी उत्तराखंड की शान प्रसिद्ध लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी को हाल ही में वर्ष 2018 के प्रतिष्ठित संगीत नाटक अकादमी से नवाजा गया है। इसी खुशी को साझा करने के लिए उत्तरांचल प्रेस क्लब की ओर से आज क्लब सभागार में नेगीदा से संवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया था।
क्लब कार्यकारिणी में होने के नाते मैं पूर्वाह्न 11 बजे ही क्लब पहुंच गया था। हालांकि, नेगीदा से संवाद पौने बारह बजे से तय था। हमारे कहने पर नेगीदा अपने पुत्र कविलास के साथ ठीक बारह बजे क्लब पहुंचे, क्योंकि इससे पूर्व क्लब सभागार में अन्य कार्यक्रम चल रहा था। क्लब परिसर में मैंने और बडे़ भाई मदन डुकलान ने नेगीदा की आगवानी की। दसेक मिनट क्लब कार्यालय में विश्राम के बाद नेगीदा से संवाद शुरू हुआ और ताजा हो उठीं गुजरे दौर की सुनहरी यादें। लोक की समृद्धि को लेकर कई बातें हुईं। इनमें वर्तमान की चिंता भी थी और भविष्य को लेकर उम्मीदें भी। नेगीदा की यही सबसे बडी़ खूबी है कि उनके सानिध्य में हमेशा उम्मीद बलवती रहती है। उनके गीत और बातें संघर्ष के लिए प्रेरित करते हैं।
सत्तर साल की उम्र में भी उनके अंदर लोक की समृद्धि को लेकर जो छटपटाहट है, उससे मुझ जैसों को तो हमेशा ही प्रेरणा मिलती रही है। इसलिए मन करता है कि उनसे बातें करते ही रहें। मेरी पीढी़ के लोग नेगीदा के गीत सुनते-सुनते ही बडे़ हुए हैं। उनके कई गीत तो हमें कंठस्थ हुआ करते थे। घर से बाहर यानी परदेस में होने पर उनके गीतों को गुनगुनाने से बडा़ सहारा मिलता था। उनका शायद ही ऐसा कोई गीत होगा, जो मुझे पसंद न रहा हो। खासकर "लायूं छौ भाग छांटी की, देयूं छौ वैकु अंज्वल़्यों ना, सलाह बिरणी, सगोर आपणू नि खै जाणी क्य कन तब" और "दादू मेरी उल्यारू जिकुडी़, दादू मी पर्वतों को वासी, झम, झमले" जैसे गीत तो जब भी सुनो, जब भी गुनगुनाओ आंखों में आंसू छलछला उठते हैं।
जाहिर है इस सुनहरे अवसर को हम कैसे जाया होने देते। हमने अनुरोध किया और नेगीदा गा उठे, "धरती हमरा गढ़वालै़ की, कतगा रौंतेली़ स्वाणी चा, कथगा रौंतेली़ स्वाणी चा।" अब बारी थी परंपरानुसार मुंह कुछ मीठा-नमकीन करने की। सो, कार्यक्रम संपन्न होने के बाद नेगीदा और तमाम साहित्यकार मितरों के साथ क्लब कार्यालय में हमारी बैठकी सजी। बैठकी इसलिए, क्योंकि इस मौके को हमारे अनुरोध पर भाई मदन डुकलान ने अपनी भावपूर्ण कविताओं से रसमय बना डाला। खासकर उनकी कविता "जख द्यवतौं का ठौ छन भैजी, वखि त हमारा गौं छन भैजी" और "ब्यालि़ उरडी़ आई, फ्योंलि सौब झैडि़ गैन, किनगोडा़ छन आज बि हंसणा" ने तो हम सबको भावविभोर कर दिया।
और...हां! एक अहम बात तो मैं भूल ही गया, वह कि मदन भाई ने इस मौके पर मुझे गढ़वाली पत्रिका "चिट्ठी-पत्री" के वर्ष 2020 और 2021 का चिट्ठा भी भेंट किया। ये दोनों ही दस्तावेज गढ़वाली साहित्य, समाज और संस्कृति की धरोहर हैं। मदन भाई वर्षों से "चिट्ठी-पत्री" के माध्यम से हमारी दुधबोली गढ़वाली की सेवा करते आ रहे हैं और अक्सर मुझसे भी इसमें लिखने के लिए कहते हैं। आज भी उन्होंने मिलते ही सबसे पहले यही कहा कि "चिट्ठी-पत्री" के नए अंक के लिए मैं अपनी कविताएं अवश्य भेजूं। मैंने भी शाम को आफिस पहुंचते ही सबसे पहला काम यही किया और मदन भाई को वाट्सएप से चार कविताएं प्रेषित कर दीं।
...तो ये था आज दिनभर का चिट्ठा। अंत में एक विशेष आग्रह। इन दिनों मैं इस ब्लाग पर रोजनामचा के साथ ही नानी की कहानियां और उस दौर से जुडे़ प्रसंग किस्सागोई के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूं। हो सके तो अवश्य पढि़एगा। ...तो ठीक है, कल फिर नई अनुभूति के साथ उपस्थित होऊंगा। तब तक के लिए नमस्कार।
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A day with negi da
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Meeting Negida is an unforgettable experience in itself. Such a feeling, which every person concerned with the public would like to keep it as a heritage. Then it was such an opportunity which, along with Negida, provided an opportunity to meet those guards of the Lok, whom even after the yearning to meet, they could not meet. Poet and lyricist Madan Duklan, litterateur and poet Nand Kishore Hatwal, Gadkavi Sandeep Rawat are some such names, whom I met unintentionally today on the pretext of Negida. Negida i.e. the pride of Uttarakhand, famous folk singer Narendra Singh Negi has recently been awarded the prestigious Sangeet Natak Akademi of the year 2018. To share this happiness, a dialogue program with Negida was organized on behalf of Uttaranchal Press Club in the club auditorium today.
Being in the club executive, I had reached the club at 11 am. However, the communication with Negida was scheduled from quarter to twelve. On our request, Negida along with his son Kavilas reached the club at exactly twelve o'clock, because before that other programs were going on in the club auditorium. Negida was received by my elder brother Madan Duklan in the club premises. After ten minutes of rest in the club office, conversation with Negida started and golden memories of the bygone era were refreshed. Many things happened about the prosperity of the people. There was also concern about the present and expectations about the future. This is the biggest quality of Negida that there is always hope in her company. His songs and sayings inspire struggle.
Even at the age of seventy, the irritability that he has about the prosperity of the people, has always inspired people like me. That's why I like to keep talking to them. People of my generation have grown up listening to Negida's songs. We used to memorize many of his songs. Humming his songs used to get a lot of support when he was out of the house i.e. in foreign countries. There is hardly any song of his which I do not like. Especially when you listen to songs like "Laun Chhau Bhaag Chanti Ki, Deyun Chhau Vaiku Anjwalyon Na, Salah Birni, Sagor Apanu Ni Khai Jaani Kya Kan Tab" and "Dadu Meri Uliyaru Jikudi, Dadu Me Parvat Ko Vasi, Jham, Jhamle", Whenever you hum, tears come out in your eyes.
Obviously how do we let this golden opportunity pass. We requested and Negida sang, "Dharti hamara garhwalai ki, kataga rauteli swani cha, kathaga rauteli swani cha." Now it was the turn to do something sweet and salty according to the tradition. So, after the program was over, our meeting with Negida and all the literary friends was decorated in the club office. Because on our request, brother Madan Duklan made this occasion beautiful with his soulful poems. Especially his poems "Jakh dywataun ka tho chan bhaiji, wakhit hamara gaun chhan bhaiji" and "Byali urdi aai, phiyli saub jhadi gain, kingoda chan aaj bi hansana" made us all emotional.
And yes! I forgot one important thing, that on this occasion, Madan Bhai also presented me the letter of the year 2020 and 2021 of the Garhwali magazine "Chit-Patri". Both these documents are the heritage of Garhwali literature, society and culture. Madan Bhai has been serving our Doodhboli Garhwali through "Chit-Patri" since years and often asks me to write in it too. Even today, as soon as he met, he first said that I must send my poems for the new issue of "Chit-Patri". The very first thing I did as soon as I reached the office in the evening and sent four poems to Madan Bhai through WhatsApp. So this was the letter of the day today. Finally a special request. These days, I am presenting the stories of Nani and the stories related to that period in the form of anecdote along with daily on this blog. If possible, definitely read it. ... well then, tomorrow I will be present again with a new feeling. Goodbye until then.
बहुत सराहनीय, आपने बचपन को खूब जीया है, आगे संस्मरण का इंतजार रहेगा
ReplyDeleteधन्याद और बहुत-बहुत आभार भगवन।
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