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दिनेश कुकरेती
...लो गणतंत्र दिवस भी बीत गया। इस वक्त मैं अपने रूम में आराम फरमा रहा हूं। अभी रात के दस बजे हैं। नौ बजे के आसपास मैं रूम में पहुंच गया था। काफी लंबा सफर किया आज, हिमाचल प्रदेश के बार्डर तक। विश्रामगृह के आंगन में धूप सेंकते हुए सुबह (बल्कि दोपहर कहना ज्यादा प्रासंगिक होगा) अचानक प्लान बना कि विकासनगर की ओर चलते हैं। कहां तक जाना है, इसकी कोई रूपरेखा तक हमारे पास नहीं थी।
असल में रात को देर से सोने के कारण सुबह नींद भी देर से खुली। मैं खुद नौ बजे उठा। इसके बाद नहा-धोकर मैं, विजय और सुमन विश्रामगृह के आंगन में टहलने हुए धूप सेंकने लगे। तभी केयर टेकर की नजर हम पर पडी़ तो वह तीन चेयर ले आया। कुछ देर बाद वह चाय लेकर भी पहुंच गया। विजय ने बताया कि उसके साथ आए बाकी सभी लोग सुबह ही वापस लौट चुके हैं। इसलिए अब हम तीन ही लोग वहां थे। चाय की चुस्कियों के साथ मन में विचार आया कि क्यों न रात के बचे चावल व चिकन को मिलाकर नाश्ते के लिए बिरयानी तैयार की जाए।
दस-पंद्रह मिनट में हम नाश्ते की टेबल पर थे। हालांकि, भरपेट नाश्ता नहीं हो पाया, लेकिन अब निश्चंतता थी। बारह बजे के आसपास हमने विश्रामगृह छोड़ दिया और चल पडे़ विकासनगर की ओर। सेलाकुई पहुंचने पर दो किलो कीनू लिए और आगे बढ़ गए। हरबर्टपुर चौराह से सीधे चलते के बजाय हमने डाकपत्थर की ओर जाना बेहतर समझा।तकरीबन पौन घंटे में हम डाकपत्थर में यमुना बैराज पर थे। ये भी संयोग ही था कि स्वतंत्रता दिवस का दिन भी हमने यमुना के सानिध्य में बिताया था और आज भी यमुना का खूबसूरत किनारा हमारा इंतजार कर रहा था।
बैराज पार कर हमने कार वहीं साइड में रोकी और कुछ देर हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले की हरियाली से लकदक पहाडि़यों को निहारते रहे। यमुना पर बनी झील में देशी-विदेशी परिंदों का कलरव मन को आल्हादित कर रहा था। कुछ देर टहलने के बाद हमने पास ही मौजूद एक दुकान से कुछ खाने की वस्तुएं खरीदी और चल पडे़ यमुना के तट की ओर। तकरीबन तीन घंटे हमने यमुना और यमुना के आसपास प्रकृति के सौंदर्य को निहारते हुए गुजारे। फिर बैराज के आसपास नमभूमि में डेरा डाले प्रवासी परिंदों की छवि उतारते हुए वापसी की राह पकड़ ली। मेरी बाइक पटेलनगर आफिस में खडी़ थी, लेकिन सुमन कार को मेरे रूम के रास्ते से ले आया। इसलिए मैंने रूम के पास उतरना ही बेहतर समझा। कल पैदल ही आफिस चला जाऊंगा, इसी बहाने थोडा़ व्यायाम भी हो जाएगा।
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Then the banks of the Yamuna
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Dinesh Kukreti
Republic day also passed. Right now I am resting in my room. It is ten o'clock at night. I reached the room around nine o'clock. Today traveled a long way to the border of Himachal Pradesh. Soaking in the sun in the courtyard of the rest house, in the morning (it would be more relevant to say afternoon), suddenly made a plan that we go towards Vikasnagar. We did not even have any outline of where to go.
In fact, due to sleeping late at night, the morning sleep also opened late. I got up at nine myself. After this, after bathing, I, Vijay and Suman took a walk in the sun in the courtyard of the rest house. Then the caretaker caught sight of us and he brought three chairs. After some time he also reached for tea. Vijay told that all the other people who had come with him had returned only in the morning. So now only three of us were there. With tea sips came the idea in mind why not mix the leftover rice and chicken of the night and prepare biryani for breakfast.
We were at the breakfast table in ten-fifteen minutes. However, there was no breakfast, but now there was certainty. Around twelve o'clock we left the rest house and walked towards Vikasnagar. On reaching Selakui took two kilos of kinu and proceeded. Instead of walking directly from Herbertpur intersection we thought it better to go towards Dakpathar. At about quarter of an hour we were at Yamuna barrage in Dakpathar. It was also a coincidence that we had spent the day of Independence day in the vicinity of Yamuna and even today the beautiful bank of Yamuna was waiting for us.
After crossing the barrage, we stopped the car on the same side and for some time kept staring at the wooded hills from the greenery of Sirmour district of Himachal Pradesh. The tweet of indigenous and foreign birds in the lake on Yamuna was pleasing to the mind. After walking for a while, we bought some food items from a shop nearby and walked towards the bank of Yamuna. We spent almost three hours around the Yamuna and Yamuna staring at the beauty of nature. Then, taking the image of migrant birds camping in the Nambhoomi around the barrage, they took the path of return. My bike was parked in the Patel Nagar office, but Suman brought the car from the path of my room. So I thought it better to get near the room. Tomorrow I will go to office on foot, I will be exercising a little on this pretext.
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