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वो और मैं********
दिनेश कुकरेती
अक्सर मैं बिस्तर देर से छोड़ता हूं। आलस के कारण नहीं, बल्कि रात को देर से सोने के कारण। असल में सोने से पहले मुझे कुछ न कुछ पढ़ने की आदत है। इसके बिना अधूरेपन का सा अहसास होता है, इसलिए सोने में देर हो जाना लाजिमी है। जाहिर है नींद भी देर से ही खुलेगी। बिस्तर छोड़कर खिड़की से बाहर झांकना मेरी आदत में शुमार हो चुका है। इससे बाहर के परिदृश्य का भी अवलोकन हो जाता है। आप सोच रहे होंगे कि आखिर ऐसा क्या है, जिसका अवलोकन किए बिना मैं कमरे का दरवाजा नहीं खोलता।
चलिए! पहले खिड़की से ही बाहर के परिदृश्य पर ही नजर डाल लेते हैं। दरअसल, मेरे कमरे की इस खिड़की पर जाली लगी हुई है, जिससे बाहर का दृश्य तो साफ नजर आ जाता है, लेकिन बाहर से किसी को इसका इल्म तक नहीं हो पाता कि मेरी निगाह उस पर है। मेरे कमरे की खिड़की के ठीक सामने सड़क के उस पार एक डिब्बेनुमा मकान है, जिसमें एक ही परिवार रह सकता है। मकान दुमंजिला है, लेकिन ले-देकर कमरे उसमें सिर्फ दो ही हैं। पिछले तीन-चार साल से इस मकान में एक महिला रहती है। उम्र 27-28 साल से ज्यादा नहीं होगी। शादीशुदा है, मगर है बेहद खूबसूरत। बिल्कुल लटके-झटके वाली। मेरी कभी उससे बात तो नहीं हुई, लेकिन ईमानदारी से कहूं तो बात करने का मन करता है। हालांकि, सामाजिक मर्यादाएं मुझे ऐसा नहीं करने देती। शायद, उसे भी नहीं।
अब आपका सवाल हो सकता है कि उसे भला क्या जरूरत है मुझसे बात करने की। असल में ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं कि जब मैं सुबह उठकर कमरे से बाहर निकलता हूं तो वह अपनी बालकनी में खडी़ रहती है और चाहे-अनचाहे उसकी निगाह मुझ पर जरूर पड़ती है। निगाह पड़ते ही वह नजरें झुका लेती है, जैसे कोई चोरी पकडी़ गई हो। फिर वह और मैं, दोनों ही कनखियों (आंखों के कोरों) से एक-दूसरे को जरूर देखते हैं। हो सकता है वो भी मेरे बारे में कुछ ऐसा ही सोचती हो, जैसा कि मैं सोचता हूं। इसीलिए दरवाजा खोलने से पहले मैं खिड़की से उसे जी-भरकर निहार लिया करता हूं। यह सिलसिला तकरीबन 15 मिनट चलता है। कभी दो-चार मिनट ऊपर-नीचे भी हो जाते हैं और फिर मैं अपने रोजमर्रा के कार्यों में जुट जाता हूं।
हालांकि, आज तक मैंने अपने परिवार के किसी भी सदस्य को इसकी भनक तक नहीं लगने दी। न जाने क्या-क्या सोचने लगेंगे, मेरे बारे में, उसके बारे में। ये भी हो सकता है कि दोनों को कहीं किसी कहानी में फिट न कर दें। जबकि, हकीकत मैं जानता हूं या वो। वैसे देखा जाए तो किसी को देखने, उसकी सुंदरता में खो जाने और मन ही मन उसे चाहने में कोई बुराई भी नहीं। यह तो मानवीय स्वभाव है। कुछ लोग इसे उम्र का तकाजा भी कह देते हैं। खैर! मैं इन सब बातों की परवाह नहीं करता और न किसी को कुछ सोचने से रोक ही सकता हूं।
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He and I
Dinesh Kukreti
Often I leave bed late. Not because of laziness, but because of sleeping late at night. Actually, I have a habit of reading something before sleeping. Without it, there is a feeling of incompleteness, so it is necessary to delay sleeping. Obviously sleep will open late. Leaving the bed and peeking out of the window have become my habit. This also gives an overview of the landscape outside. You might be wondering what is it like that without observing that I would not open the door of the room.
Let go! First, let's look at the landscape outside the window itself. Actually, this window of my room is forged, which gives a clear view of the outside, but no one from outside can even notice that I am eyeing it. Across the street, right in front of the window of my room, is a compartment house in which only one family can live. The house is double-storey, but there are only two rooms in it. For the last three-four years a woman has lived in this house. Age will not exceed 27-28 years. Married, but very beautiful. Absolutely hanging.
I have never spoken to him, but to be honest I like to talk. However, social limitations do not allow me to do so. Probably, not even him. Now your question may be that what does he need to talk to me. Actually, I am saying this because when I wake up in the morning and come out of the room, she is standing in her balcony and her attention is definitely on me. She glances at the sight as if a theft has been caught. Then both he and I definitely see each other through Kanchi (eye core). Maybe she also thinks of me the same way as I think. That is why before opening the door, I stare at it through the window. This cycle lasts for about 15 minutes. Sometimes even two to four minutes are up and down and then I get involved in my everyday work.
However, till date I have not allowed any member of my family to get a glimpse of it. Don't know what to think, about me, about him. It could also be that the two do not fit into a story somewhere. Whereas, I know the reality or that. By the way, there is nothing wrong in seeing someone, getting lost in his beauty and wanting him in his heart. This is human nature. Some people also call it age-wise. Well! I do not care for all these things and cannot stop anyone from thinking about anything.
मेरे ब्लाक में आपका स्वागत है। अच्छा लगे तो फालो कीजिएगा।
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