Friday, 21 August 2020

16-08-2020 (Life is the name of being happy)

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खुश रहने का नाम ही जीवन है
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दिनेश कुकरेती
फर भले ही मन को सुकून पहुंचाने वाला हो, लेकिन तन को तो थकान दे ही जाता है। स्वतंत्रता दिवस पर किए गए सफर से मैं भी थकान महसूस कर रहा हूं। हालांकि, नींद फिर भी सही वक्त पर ही खुल गई। सिर में भारीपन-सा महसूस हो रहा है, जो स्नान करने के बाद भी पूरी तरह नहीं गया। इसकी वजह कल का भारी भोजन भी हो सकता है। मैं अममून दाल-चावल, रोटी-सब्जी, दलिया, सिंवई और झंगोरे की कम मीठी खीर ही खाता हूं। चिकन-मटन से एलर्जी नहीं है, लेकिन यह मेरी जरूरत भी नहीं हैं। महीने-दो महीने में मिल जाए तो खुशी-खुशी खा लेता हूं, पर हल्के मसाले वाला। बीते आठ-दस साल से मैंने तीखे नमक-मिर्च वाले भोजन का सेवन बिल्कुल बंद कर दिया है।

कल थोडा़ यही गलती हो गई कि साथियों को यह बात नहीं बताई, इसलिए चिकन में मसाले थोडे़ तेज हो गए। ऊपर से भारी अलग। खैर! जो बीत गया, उससे तो सबक ही लिया जा सकता है। आगे से इसका ध्यान रखूंगा। हां! एक गड़बड़ जरूर हो गई कि कल हम हरबर्टपुर में साहित्यकार एवं बडे़ भाई हेमचंद्र सकलानी जी से नहीं मिले। मेरे तो वो बहुत करीब हैं और अजीज़ भी। फेसबुक पर यमुना के किनारे की फोटो अपलोड की तो आज सुबह-सुबह उनका फोन आ गया। काफी नाराज थे। कहने लगे हरबर्टपुर से होकर गुजरे और मुझे सूचना तक नहीं दी। क्या बिगड़ जाता, जो दस मिनट के लिए घर पर आकर एक कप चाय पी लेते तो। 

उनके एक कप चाय में कितना अपनत्व है, यह बात मैं ही जानता हूं। इसलिए कोई तर्कपूर्ण जवाब नहीं दे पाया। जबकि, सच यही है कि हरबर्टपुर से गुजरते हुए यह बात मेरे मन में भी आई थी कि क्यों न सकलानीजी को फोन पर अपने आने की सूचना दे दूं। लेकिन, फिर सोचा कि इस तरह भीड़ के साथ जाना उचित नहीं है। खासकर कोरोना काल में तो कतई नहीं। पर, भावनाएं इन बंधनों को कहां मानती हैं। सोच रहा हूं, अगली बार ऐसी गलती नहीं दोहराऊंगा।

खैर! जीवन में यह सब उतार-चढा़व तो आते रहते हैं। आपका मन साफ है तो इनसे तनाव लेने की जरूरत नहीं। मैंने भी यही किया और दोपहर बाद आफिस चला आया। आफिस के अपने तनाव हैं और मजा भी। पर, जीवन के संचालन को दोनों ही जरूरी हैं। बस! इन्हें मन पर बोझ की तरह न लें। मैं तो यही करता हूं। उचित लगे तो आप भी ऐसा ही कीजिएगा।
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Life is the name of being happy
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Dinesh Kukreti
The journey may be relaxing the mind, but the body gets tired. I am also feeling tired from the journey done on Independence Day. However, sleep still opened at the right time. There is a feeling of heaviness in the head, which did not go completely even after taking bath. It may also be due to the heavy food of tomorrow. I only eat less sweet kheer of ammon dal-rice, roti-sabzi, oatmeal, sindai and jangore. I am not allergic to chicken-mutton, but these are not my needs either. If I get it in a month or two, then I eat it happily, but with mild spices. For the past eight-ten years, I have completely stopped eating spicy salt-chili food.

Yesterday, a little mistake was made that the colleagues did not tell this thing, so the spices in the chicken got a little faster. Heavily separated from above. Well! What has passed can only be learned from that. I will take care of it from now on. Yes! There was a mess that yesterday, we did not meet the writer and elder brother Hemachandra Saklani in Herbertpur. He is very close to me and Aziz too. Uploaded a photo of the banks of the Yamuna on Facebook, then this morning his phone arrived. Was quite angry. They started saying that she passed through Herbertpur and did not even inform me. What would have deteriorated, who would have come home for ten minutes and drank a cup of tea. I only know how much affinity there is in a cup of tea. 

Therefore, no one could give a logical answer. Whereas, the truth is that while passing through Herbertpur, it also came in my mind that why not inform Sakalaniji about my arrival on the phone. But, then thought that it is not appropriate to go with the crowd like this. Especially not in the Corona era. But, where do emotions follow these bonds? Thinking, I will not repeat such mistake next time.

Well! All these ups and downs come in life. There is no need to take stress from them if your mind is clean. I did the same and came to the office in the afternoon. The office has its own stress and fun too. But, both are essential to the operation of life. Bus! Do not take them as a burden on the mind. This is what I do. If appropriate, you will also do the same.
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