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दिनेश कुकरेती
आज मेरा वीकली आफ था। हालांकि, मैं इस दिन भी आफिस में ही होता हूं। अकेले-अकेले कमरे में पूरे दिन बैठे रहने से आफिस में काम करना कई गुणा फायदेमंद है। वर्तमान में तेजी से फैल रहे कोरोना के कारण पिछले लंबे समय से मैं घर नहीं जा पा रहा। अन्यथा, सामान्य दिनों में मैं वीकली आफ घर जाने पर एडजस्ट कर लेता हूं। इससे परिवार के साथ चार-दिन बिताने को मिल जाते हैं। अमूमन एक महीने के अंतराल में मैं घर चला जाता हूं। बहरहाल! आज आफिस जाना बहुत अच्छा रहा।
अच्छा इस मायने में कि अपराह्न आफिस पहुंचते ही एकाउंट सेक्शन से फोन आ गया। एकाउंट हमारे एक मित्र ही देखते हैं, इसलिए मेरे फोन उठाते ही बोले, 'अरे भाई! पैसों की जरूरत नहीं है क्या।' मैंने कहा, 'भला किसे पैसों की जरूरत न होगी।' इस पर वो बोले, 'मैं परसों भी इंतजार कर रहा था, पर तुम आए ही नहीं।' मैंने कहा, 'उस दिन आपने बजट उपलब्ध न होने की बात कही थी, इसलिए सोचा जब तक आप नहीं बुलाते, जाने का कोई फायदा नहीं। लेकिन, अब मैं आ रहा हूं तुरंत।'
मेरे एकाउंट सेक्शन में पहुंचते ही उन्होंने मुझे लगभग आठ हजार की राशि का वाउचर थमा दिया, जिसे देख मेरा खुश होना स्वाभाविक था। क्योंकि, मुझे सभी बिलों के पास होने की उम्मीद नहीं थी। आशंका थी कि पांच हजार के आसपास की राशि का ही बिल पास होगा। लेकिन, मेरी आशंका निर्मूल साबित हुई। ऐसा न होता तो मैंने तय कर लिया था कि भविष्य में आफिस की ओर से कहीं भेजे जाने की बात होगी तो साफ इन्कार कर दूंगा।
वैसे सच कहूं तो अब किसी संस्थान से जुड़कर पत्रकारिता करने की कतई इच्छा नहीं है। पत्रकारिता को लेकर जो सपने देखे थे, वो पूरी तरह बिखर गए हैं। आप अपनी इच्छा से कुछ कर ही नहीं सकते। इसलिए बीते सात साल से तो मैं सिर्फ नौकरी कर रहा हूं। इस विषय पर आने वाले दिनों में क्रमवार लिखूंगा। काफी इंट्रेस्टिंग रहा है अब तक का मेरा पत्रकारीय जीवन। तमाम खट्टे-मीठे अनुभव हैं। कैसे-कैसे लोगों के साथ काम करना पडा़। जिनको खुद सीखने की दरकार थी, उनसे भी सीखना पडा़।
खैर! यह पूरा ग्रंथ है, जिसे चंद लाइनों में नहीं समेटा जा सकता। इसलिए थोडा़ इंतजार कीजिए। अभी में कडि़यां जोड़ने में जुटा हुआ हूं। जैसे ही यह कार्य पूरा होगा, ग्रंथ के पन्ने आपके सामने खुलते चले जाएंगे। फिलहाल तो सोने का वक्त हो गया है। आंखें भी बोझिल हो रही हैं। ...तो अब आप भी निद्रालोक में विचरण कीजिए। कल एक नए किस्से के साथ आपके सामने हाजिर होऊंगा। तब तक के लिए नमस्कार! शुभरात्रि!!!
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Full payment done
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Dinesh Kukreti
Today was my weekly off. However, I am still in the office on this day. Working in the office is many times more beneficial than sitting alone in the room all day. Due to the rapidly spreading corona at present, I am unable to go home for a long time. Otherwise, on normal days, I adjust the weekly off when I go home. This gives four days to spend with the family. I usually go home after a month. However! It was great going to the office today.
Well in the sense that as soon as I reached the office in the afternoon, I got a call from the account section. Only a friend of ours sees the account, so as soon as I picked up my phone he said, 'Hey brother! Don't need money? I said, 'Well, who doesn't need money.' On this he said, 'I was waiting for the day before, but you did not come.' I said, 'That day you talked about the budget not being available, so I thought, unless you call, there is no use in going. But, now I am coming immediately.'
On reaching my account section, he handed me a voucher amounting to about eight thousand, which I was naturally happy to see. Because, I didn't expect all the bills to pass. There was an apprehension that the bill for an amount around five thousand would be passed. But, my apprehensions proved to be unfounded. If it was not so, I had decided that in future, if there is talk of sending it somewhere from the office, then I will refuse it outright.
Well, to be honest, now I have no desire to do journalism by joining any institute. The dreams that I had about journalism have been completely shattered. You cannot do anything on your own wish. That's why for the last seven years, I am doing only job. I will write on this subject sequentially in the coming days. My journalistic life so far has been quite interesting. There are many sweet and sour experiences. How did you get to work with people? Those who needed to learn themselves, also had to learn from them.
Well! This is a complete book, which cannot be summed up in a few lines. So wait a bit. Right now I am busy adding links. As soon as this task is completed, the pages of the book will open in front of you. For now, it is time to sleep. Eyes are getting heavy too. So now you too roam in the sleepless world. Tomorrow I will be present in front of you with a new story. Goodbye until then! good night!!!
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