Saturday, 26 September 2020

26-09-2020 (A month of stress/ तनावभरा एक माह)

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तनावभरा एक माह

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दिनेश कुकरेती

पूरा एक महीना बीत गया, लेकिन मैं अपनी डायरी नहीं लिख पाया। हालांकि, इस अवधि में ऐसा कुछ भी महत्वपूर्ण घटनाक्रम नहीं हुआ, जिसे मैं डायरी में समाहित कर पाता, फिर भी अपराध बोध होना स्वाभाविक है। सो, पहले मैं उन सामान्य घटनाओं से आपको परिचित कराना अपनी जिम्मेदारी समझता हूं, जो इस दौरान घटीं। यह तो आपको भी मालूम है कि कोरोना संक्रमण के चलते किसी का भी दिमाग स्थिर नहीं है। चारों ओर एक भय का सा आवरण पसरा हुआ है। जिससे आमजन की जीवनचर्या पूरी तरह अस्थिर हो गई है। इस एक माह के कालखंड में मैं भी अस्थिरता के भंवर में फंसा रहा।

 इस सबके बीच रोजी-रोटी की चिंता अपनी जगह है। यही जीवन की प्रथम और अंतिम जरूरत भी है। लेकिन, अचानक 31 अगस्त को पता चला कि हमारे आफिस का ही एक साथी कोरोना संक्रमित हो गया है। इससे सबकी चिंता बढ़ गई। अब सबके लिए टेस्ट कराना जरूरी हो गया था। सो, अगले दिन कुछ साथियों ने एंटीजन टेस्ट कराया तो एक साथी और संक्रमित आ गया। उसके साथ आफिस के लगभग हर साथी का उठना-बैठना है, इसलिए चिंता और बढ़ गई। लिहाजा, तीन सितंबर को आफिस के 24 साथी कोरोना टेस्ट कराने कोविड सेंटर पहुंच गए। चार सितंबर को अपनी भी बारी थी।

सुबह कोविड सेंटर जाने की तैयारी थी कि तभी आफिस से फोन आया कि छह और साथी पाजिटिव मिले हैं। डर बढ़ना लाजिमी था। खैर! जैसे-तैसे हम 22 लोग सैंपल देने पहुंच गए। अब तो रह-रहकर यही चिंता सता रही थी कि न जाने कल किसे कोविड सेंटर में भर्ती होना पडे़। बाकी छह साथी वहां पहले ही भर्ती हो चुके थे, जबकि दो घर पर ही आइसोलेट थे। पांच सितंबर को रिपोर्ट नहीं आई, लेकिन पूरे दिन धुकधुकी लगी रही। खैर! छह सितंबर को दोपहर दो बजे के आसपास रिपोर्ट मिली तो खुशकिस्मती से सभी 22 साथी निगेटिव थे। सबने राहत की सांस ली। हालांकि, आफिस में आठ लोगों के कम होने से मुश्कलें तो बढ़नी ही थी।


 

अब भी स्थिति ऐसी ही है। संक्रमित साथियों में से दो ने काम पर आना शुरू कर दिया था, लेकिन उनमें से एक फिर बुखार की चपेट में है। एक अन्य साथी भी बीमार है। इससे फिर चिंताएं बढ़ने लगी हैं। इस सबके बीच प्रेस क्लब की पत्रिका "गुलदस्ता" तैयार हो चुकी है। बस! दो-एक दिन में छपने के लिए प्रेस चली जाएगी। मैं भी अमीश त्रिपाठी की शिवत्रयी (शिवा ट्रायोलॉजी) सीरीज का तीसरा भाग "वायु पुत्रों की शपथ" पढ़ रहा हूं। पहले दोनों भाग "मेलुहा के मृत्युंजय" और "नागाओं का रहस्य" पढ़ना बेहद आनंददायी रहा। कोरोना काल में आनंद की यह स्थिति काफी सुकून देने वाली है। इससे परिस्थितियों से लड़ने की ताकत मिलती है।

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A month of stress

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Dinesh Kukreti

A full month passed, but I could not write my diary.  Although nothing significant happened during this period, which I could include in the diary, it is natural to have guilt.  So, firstly I consider it my responsibility to introduce you to the common incidents which happened in the meantime.  You also know that nobody's mind is stable due to corona infection.  There is a fear cover all around.  Due to which the lifestyle of common people has become completely unstable.  During this period of one month, I was also caught in the whirlpool of instability.

In the midst of all this, concern for livelihood is in its place.  This is also the first and last need of life.  But, suddenly on August 31, it was discovered that a corona of our office partner has been infected.  This increased everyone's concern.  It was now necessary to conduct tests for everyone.  So, the next day, some of the comrades underwent antigen test and one of the comrades came infected.  Almost every office partner has to sit with him, so the anxiety increased.  Therefore, on September 3, 24 of the office's colleagues reached the Kovid Center to conduct the Corona Test.  It was also his turn on September 4.

It was ready to go to the Kovid Center in the morning when a call was received from the office that six more fellow positives had been found.  Fear increased.  Well!  Somehow, 22 of us reached to give samples.  Now, I was constantly worrying about who had to be admitted to the Kovid Center tomorrow.  The remaining six companions were already admitted there, while two were isolated at home.  On September 5, the report did not come, but it remained full day.  Well!  On September 6, the report was received around 2 pm, luckily all 22 companions were negative.  Everyone breathed a sigh of relief.  However, due to the decrease of eight people in the office, the odds were to increase.


 

Even now the situation is similar.  Two of the infected comrades started working, but one of them is again in the grip of fever.  Another partner is also ill.  This has again increased concerns.  Amidst all this, the Press Club magazine "Bouquet" is ready.  Bus!  The press will go to print in a day or two.  I too am reading the third part of Amish Tripathi's Shivatrayi (Shiva Triology) series "Oath of the Vayu sons".  The first two sections were very enjoyable to read "Mrityunjaya of Meluha" and "Mystery of Nagas".  This state of bliss in the Corona period is quite relaxing.  This gives the strength to fight the circumstances.

Sunday, 13 September 2020

18-08-2020 (Day of responsibility)

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जिम्मेदारी का दिन

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दिनेश कुकरेती

कोरोना काल में मेरी यह तीसरी छुट्टी है। पहली दो छुट्टियां तो रूम में सोकर ही बिताई, लेकिन आज प्रेस क्लब जाना है। पत्रिका के संपादन से लेकर लेआउट डिजाइन करने तक की जिम्मेदारी निभानी है। इसलिए स्नान-ध्यान कर दस बजे ही रूम से निकल गया। 15 मिनट लगे होंगे पहुंचने में। क्लब की लाइब्रेरी को हमने संपादन कक्ष बनाया हुआ है। सिर्फ तीन लोग हैं इस कक्ष में हम। मैं, सुबोध और हिमांशु। लेखकगणों ने कई दुर्लभ एवं कालजयी रचनाएं भेजी हैं, अब इन्हें सरल एवं सुबोध बनाना है। एक दिन में यह सब होने वाला नहीं। लेकिन, इससे घबराना क्या, जिम्मेदारी तो फिर भी अपने सिर पर ही आनी है। सो, बिना किंतु-परंतु के जुट गए हम इन रचनाओं को संवारने और पेज पर सजाने में।

दोपहर का भोजन भी तैयार हो चुका है। दाल-चावल और चटनी, बिल्कुल  मेरा पसंदीदा, हल्का एवं सुपाच्य भोजन। सुस्ताने के लिए कोई वक्त नहीं है, इसलिए भोजन करते ही काम में जुट गए। वैसे भी मन के मुताबिक काम हो तो थकान कहां लगती है। अगर भोजन के लिए बुलावा नहीं आता तो कहां पता लगने वाला था कि रात के साढे़ नौ बज चुके हैं। खैर! हमने भोजन किया और कल मिलने की बात कहकर अपने-अपने घर की राह पकड़ ली। करीब आधा घंटा लगा होगा मुझे कमरे तक पहुंचने मैं।

भोजन किया हुआ है, इसलिए पूरी तरह फुर्सत में हूं। भोजन बनाने की फिक्र न बर्तन धोने की चिंता। बस! पानी भरना है, उसके लिए अभी वक्त है। दरअसल, जिस मकान में मैं किरायेदार हूं, उसमें चार और परिवार भी किराये पर रहते हैं। मैं थोडा़ रिजर्व प्रवृत्ति का हूं, इसलिए किसी से घुल-मिल नहीं पाता। बस अपने काम से काम रखना मेरी आदत है। यहां तक कि मकान मालिक से भी मेरी कई-कई दिनों तक बात  नहीं होती। वह मेरे स्वभाव से परिचित हैं, इसलिए इसे अन्यथा नहीं लेते। पर, इससे मुझे दिक्कतें भी काफी होती हैं। मसलन, मैं समय से पानी नहीं भर पाता। जब चारों परिवार तसल्ली से पानी भर लेते हैं, तभी मैं नल की ओर रुख करता हूं। लेकिन, तब तक पानी बंद हो चुका होता है। ऐसे में मुझे डेढ़ घंटे और इंतजार करना पड़ता है यानी रात के डेढ़ बजने का। इसके बाद ही मैं फुर्सत से पानी भरता हूं।

यही वजह है कि रात का भोजन प्रेस क्लब से करने के बाद भी मेरे सोने के समय में कोई अंतर नहीं आया। हालांकि, मैं सकारात्मक सोच रखने वाला इन्सान हूं, सो इस खाली समय का सदुपयोग कुछ लिखने या पुस्तकें पढ़ने में करता हूं। इन दिनों मैं अमीश त्रिपाठी की शिवत्रयी (शिवा ट्रायोलॉजी) सीरीज का दूसरा भाग नागाओं का रहस्य" पढ़ रहा हूं। पहला भाग "मेलुहा के मृत्युंजय" पढ़ना बेहद खूबसूरत अनुभव रहा। कभी-कभी तो पढ़ते-पढ़ते रात के तीन बज जाते हैं। मन नहीं करता छोड़ने का, लेकिन नींद भी जरूरी है। खैर! अब डेढ़ बजने को हैं, इसलिए बाकी बातें कल...

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Day of responsibility

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Dinesh Kukreti

This is my third holiday in the Corona era.  The first two holidays were spent sleeping in the room, but today we have to go to the press club.  From editing the magazine to designing the layout.  So, after bathing and meditating, he left the room at ten o'clock.  It will take 15 minutes to reach.  We have made the club's library an editing room.  There are only three people in this room.  I, Subodh and Himanshu.  Writers have sent many rare and classical works, now they have to be made simple and comprehensible.  This is not going to happen in a day.  But, what is to worry about this, the responsibility still has to come on its head. So, without any effort, we got together to decorate these creations and decorate them on the page.

Lunch is also ready.  Lentil rice and chutney, my favorite, light and digestible food.  There is no time to relax, so got engaged in work as soon as it was done.  Anyway, if there is work according to the mind then where does fatigue occur.  If there was no call for food, then it was going to be known that it was half past nine in the night.  Well!  We had our food and told to meet tomorrow and took our way home.  It must have taken me about half an hour to reach the room.

Food is served, so I am completely relaxed.  Don't worry about making food, worry about washing dishes.  Bus!  There is still time for water to be filled.  Actually, in the house where I am a tenant, four more families also live on rent.  I am of a slight reserve tendency, so do not get along with anyone.  It is my habit to just keep doing my own business.  Even I do not talk to the landlord for many days.  He is familiar with my nature, so don't take it otherwise.  But, it also causes problems for me.  For example, I cannot fill water in time.  When all four families are satisfied with water, then I turn to the tap.  But, by then the water has stopped.  In such a situation, I have to wait for one and a half hours, that is, one and a half hours at night.  Only then do I fill the water with leisure.

This is the reason why even after having dinner with the press club, there was no difference in my bedtime.  However, I am a positive thinking person, so I use this free time to write something or read books.  These days I am reading the second part of Amish Tripathi's Sivatrayi (Shiva Triology) series "The Secret of the Nagas". The first part, reading "Meluha Ke Mritunjay" was a beautiful experience. Sometimes it is three o'clock at night.  The mind does not want to quit, but sleep is also necessary. Well, now it is half past one, so tomorrow the rest of the things…

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13-11-2024 (खुशनुमा जलवायु के बीच सीढ़ियों पर बसा एक खूबसूरत पहाड़ी शहर)

खुशनुमा जलवायु के बीच सीढ़ियों पर बसा पहाड़ी शहर ------------------------------------------------ ------------- भागीरथी व भिलंगना नदी के संग...