Besides being a writer and journalist, I am also a very simple person. I face new challenges every day. So, even though my daily routine is simple, it looks very extraordinary. I think you will like my routine too.
Sunday, 28 November 2021
28-11-2021 (नेचर पार्क की सैर)
Sunday, 21 November 2021
21-11-2021 (प्रेस क्लब क्रिकेट टूर्नामेंट)
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Saturday, 20 November 2021
20-11-2021 (भगवान बदरी नारायण)
दिनेश कुकरेती
आज शाम वृष लग्न में छह बजकर 45 मिनट पर भू-वैकुंठ बदरीनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए। समुद्रतल से 3133 मीटर (10276 फीट) की ऊंचाई पर उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित बदरीनाथ धाम के कपाट बंद करने की प्रक्रिया सुबह भगवान बदरी नारायण का फूलों से श्रृंगार करने के साथ शुरू हो गई थी। इसके लिए मंदिर को 20 कुंतल रंग-बिरंगे फूलों से दुल्हन की तरह सजाया गया था। कपाटबंदी की यह प्रक्रिया अपने आप में बडी़ विलक्षण होती है। इसका वर्णन शब्दों की सीमा में नहीं किया जा सकता। इस दौरान बदरीशपुरी का वातावरण इस कदर मनोहारी होता है कि वहां मौजूद श्रद्धालु सम्मोहित से हो जाते हैं।
इस पूरे घटनाक्रम को आपसे शेयर की मुख्य वजह यह है कि हमेशा की तरह इस बार भी कपाटबंदी की खबर मेरे द्वारा ही लिखी गई। यह सिलसिला वर्षों से चला आ रहा है। मैं चाहता हूं कि पहाड़ की इन गौरवमयी परंपराओं से आप भी परिचित हों। ये परंपराएं सीधे-सीधे पहाड़ की रोजी-रोटी से जुडी़ हैं। इन्हीं की बदौलत पहाड़ के इस जाटिल भूगोल में भी जीवन है। इसलिए मेरी कोशिश रहती है कि जितना भी संभव हो सके आपनी संस्कृति को देश-दुनिया की नजरों में लाने का प्रयास किया जाए। खैर! नित्य पूजाओं के बाद भगवान नारायण को दोपहर का भोग लगाया गया। यह दोपहर भी खास है, क्योंकि इस दोपहर में भगवान भोग के बाद विश्राम नहीं करते। दरअसल, दोपहर के भोग के बाद दो घंटे मंदिर के कपाट बंद रखे जाते हैं, लेकिन कपाटबंदी वाले दिन ऐसा नहीं होता और पूरे दिन मंदिर के कपाट खुले रहते हैं।
शाम को भगवान नारायण के तन से फूलों का श्रृंगार हटाकर उन्हें घृत कंबल ओढा़या गया। इस कंबल को देश के अंतिम गांव माणा की कुंआरी कन्याओं द्वारा बुना जाता है और फिर इस पर गाय के घी का लेपन होता है। यह घी बामणी गांव से आता है। अगली बार कपट खुलने पर इसी घृत कंबल के छोटे-छोटे टुकडे़ श्रद्धालुओं को प्रसाद स्वरूप बांटे जाते हैं। भगवान को घृत कंबल ओढा़ने के बाद एक विलक्षण परंपरा का निर्वाह होता है। धाम के मुख्य पुजारी (रावल ) भगवान नारायण की सखी का वेश धारण कर मंदिर परिसर स्थित मां लक्ष्मी के मंदिर में पहुंचते हैं और फिर मां लक्ष्मी की प्रतिमा को मंदिर के गर्भगृह में लाकर उसे शीतकाल के लिए भगवान नारायण के वामांग में विराजमान कर देते हैं। कपाट खुलने पर मां लक्ष्मी वापस अपने मंदिर में चली जाती हैं।
इसी दौरान गर्भगृह में स्थित बदरीश पंचायत से भगवान नारायण के प्रतिनिधि एवं बालसखा उद्धवजी, देवताओं के खजांची कुबेरजी व भगवान के वाहन गरुड़जी की भोगमूर्ति और आदि शंकराचार्य की गद्दी को बाहर लाया जाता है। शीतकाल में यही प्रतीक पांडुकेश्वर स्थित योग-ध्यान बदरी मंदिर और जोशीमठ स्थित नृसिंह बदरी मंदिर में विराजमान होते हैं। इस परंपरा का निर्वाह करने के बाद रावल ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी ने मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए। इस दौरान संपूर्ण बदरीशपुरी सेना और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस के बैंड की सुमधुर लहरियों से गुंजायमान हो उठी। बैंड पर बज रही लोकधुन 'बेडू पाको बारामासा, नारैणा काफल पाको चैता' पर जब पारंपरिक वेश-भूषा में सजी बामणी व माणा गांव की जनजातीय महिलाओं ने नृत्य किया तो तन ही नहीं मन भी झूम उठे। आध्यात्मिक वातावारण में संस्कृति का यह मनोहारी रूप भावविभोर कर देने वाला था।
अब कल 21 नवंबर की सुबह भगवान बदरी नारायण के प्रतिनिधि उद्धवजी, देवताओं के खजांची कुबेरजी व भगवान के वाहन गरुड़जी की भोग मूर्ति उत्सव डोली में विराजमान होकर आदि शंकराचार्य की गद्दी के साथ पांडुकेश्वर के लिए प्रस्थान करेंगी। शीतकाल के दौरान उद्धवजी व कुबेरजी की पूजा योग-ध्यान बदरी मंदिर पांडुकेश्वर और गरुड़जी व शंकराचार्य गद्दी की पूजा-अर्चना नृसिंह बदरी मंदिर जोशीमठ में होती है। गरुड़जी व शंकराचार्य गद्दी रावल ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी की अगुआई में 22 नवंबर को नृसिंह बदरी मंदिर पहुंचेगी। इसके साथ ही विधिवत रूप से भगवान बदरी नारायण की शीतकालीन पूजाएं शुरू हो जाएंगी। ...तो आइए! प्रेम एवं श्रद्धा से बोलिए, जय बदरी विशाल।
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Lord Badri Narayan
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Dinesh Kukreti
The doors of Bhu-Vaikunth Badrinath Dham were closed for the winter season at 6.45 pm in the Taurus ascendant. The process of closing the doors of Badrinath Dham, located in Chamoli district of Uttarakhand at an altitude of 3133 meters (10276 ft) above sea level, had begun in the morning with the adornment of Lord Badri Narayan with flowers. For this the temple was decorated like a bride with 20 quintals of colorful flowers. This process of kapatbandi is very unique in itself. It cannot be described in the limit of words. During this, the atmosphere of Badrishpuri is so beautiful that the devotees present there are mesmerized.
The main reason to share this whole incident with you is that as always, this time also the news of anti-fraud was written by me. This has been going on for years. I want you to get acquainted with these glorious traditions of the mountain. These traditions are directly related to the livelihood of the mountain. Due to these, there is life in this complex geography of the mountain. Therefore, it is my endeavor that as much as possible, efforts should be made to bring your culture in the eyes of the country and the world. So! After the daily worship, Lord Narayan was offered afternoon bhog. This afternoon is also special, because in this afternoon the Lord does not rest after the enjoyment. Actually, the doors of the temple are kept closed for two hours after the afternoon bhog, but this does not happen on the day of kapatbandi and the doors of the temple remain open for the whole day.
In the evening, after removing the decoration of flowers from the body of Lord Narayan, he was covered with a blanket of ghee. This blanket is woven by the unmarried girls of Mana, the last village of the country and then coated with cow's ghee. This ghee comes from Bamni village. Next time when the fraud is uncovered, small pieces of this ghee blanket are distributed to the devotees as prasad. A unique tradition is followed after covering the Ghrita blanket to the deity. The chief priest (Raval) of the Dham, disguised as Lord Narayan's friend, reaches the temple of Goddess Lakshmi located in the temple premises and then brings the idol of Goddess Lakshmi to the sanctum sanctorum of the temple and makes it sit in the Vamang of Lord Narayana for the winter. . When the doors are opened, Goddess Lakshmi goes back to her temple.
In the meantime, Uddhavji, the representative of Lord Narayana, the treasurer of the gods, Kuberji, the treasurer of the gods, the Bhogmurti of Garudji, the vehicle of God, and the seat of Adi Shankaracharya are brought out from the Badrish Panchayat located in the sanctum sanctorum. In winter, this symbol is seated in the yoga-dhyana Badri temple located at Pandukeshwar and the Narsingh Badri temple located in Joshimath. After following this tradition, Rawal Ishwari Prasad Namboodiri closed the doors of the temple for the winter. During this, the entire Badrishpuri resonated with the melodious waves of the bands of the Army and the Indo-Tibetan Border Police. When the tribal women of Bamani and Mana villages, dressed in traditional costumes, danced on the folk tune 'Bedu Pako Baramasa, Naraina Kafal Pako Chaita' playing on the band, not only the body but the mind also jumped. This beautiful form of culture in the spiritual atmosphere was mesmerizing.
Now tomorrow on the morning of November 21, Uddhavji, the representative of Lord Badri Narayan, Kuberji, the treasurer of the gods and the Bhog idol of Garudji, the vehicle of God, will be seated in the festival doli and will leave for Pandukeshwar with the throne of Adi Shankaracharya. During winter, worship of Uddhavji and Kuberji takes place in the Nrisingh Badri temple Joshimath, worship of Uddhavji and Kuberji, yoga-meditation, Badri temple, Pandukeshwar and Garudji and Shankaracharya Gaddi. Under the leadership of Garudji and Shankaracharya Gaddi Rawal Ishwari Prasad Namboodiri, Narsingh will reach Badri temple on November 22. With this, the winter pujas of Lord Badri Narayan will begin duly. ...then come on! Speak with love and reverence, Jai Badri Vishal.
20-11-2021 (तीसरी दुनिया के रहस्य)
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तीसरी दुनिया के रहस्य
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दिनेश कुकरेती
आज जाकर मैं कैप्टन कुणाल नारायण उनियाल के आध्यात्मिक उपन्यास अनंतरोहण (तीसरी दुनिया के रहस्य) को पूरा कर पाया। यह उनके अंग्रेजी उपन्यास का हिंदी अनुवाद है, बावजूद इसके इसका बेहतरीन भावानुवाद शुरू से आखिर तक बांधे रखने की क्षमता रखता है। उपन्यास की कथावस्तु बेहद खूबसूरती से बुनी गई है। इसमें कहीं भी झोल नहीं है। हर अध्याय के बाद रहस्य और गहराता चला जाता है। आदिकाल से स्वर्ग-नरक से जुड़े जो सवाल मनुष्य को कचोटते रहे हैं, कुणाल उन्हीं सवालों को तलाशते हुए जिस अद्भुत रहस्य से पाठकों को परिचित कराते हैं, वह अपने-आप में अनुपम है। इससे उनकी सनातन संस्कृति पर पकड़ स्पष्ट परिलक्षित होती है।
मैं कुणाल से कभी मिला नहीं, लेकिन पूर्व में उनके कविता संकलन 'मैं तुला हूं' की समीक्षा जरूर कर चुका हूं। उन कविताओं के आधार पर ही मेरे मन-मस्तिष्क में कुणाल के व्यक्तित्व की जो तस्वीर उभर कर कर सामने आई, उनके उपन्यास को पढ़कर वह प्रमाणित भी हो गई। कुणाल अनुभवी मास्टर मरीन (एक जहाज के कैप्टन) हैं और रहस्य के सागर से ही चौबीसों घंटे उनका वास्ता पड़ता है। जैसे सागर स्वयं में अनंत रहस्य समेटे हुए है, वैसे ही अनंत रहस्यों का सागर है सनातनी संस्कृति। अध्यात्म एवं दर्शन इसके मूल तत्व हैं। कुणाल ने अपने उपन्यास में संस्कृति के इसी तत्व रूप से पाठकों को परिचित कराने की कोशिश की है।
हां! इन तमाम खूबियों के बावजूद उपन्यास में व्याकरणीय त्रुटियों की भरमार बहुत अखरती है। आश्चर्य होता है कि इस ओर क्यों ध्यान देने की जरूरत नहीं समझी गई। जबकि, हर पैरे में पाठक एक-दो बार तो अवश्य अटक जाता है। कई जगह तो वाक्य को समझने के लिए दिमाग पर जोर डालना पड़ता है। हालांकि, गलतियों को पूरी तरह नजरंदाज कर दिया जाए तो यह ऊंचे दर्जे का उपन्यास है। मैं उम्मीद करता हूं कि द्वितीय संस्करण में इन त्रुटियों को पूरी तरह दूर कर लिया जाएगा। उपन्यास के स्तर को देखते हुए मेरी पाठकों से अपेक्षा रहेगी कि वे इसे पढ़ने को अवश्य वक्त निकालें। उपन्यास प्राप्त करने के लिए आप मोबाइल नंबर 9897911187 या मेल आईडी narayankunal@gmail.com पर कुणाल नारायण उनियाल से संपर्क कर सकते हैं।
उपन्यास पर चर्चा के बाद अब अपने रुटीन पर आता हूं, जिसमें फिलहाल कोई बदलाव नहीं हो पा रहा है। मैं चाहता हूं अन्य कार्यों के साथ पढ़ने के लिए भी समय मिले। जीवन में ताजगी बनाए रखने के लिए पढ़ना बेहद जरूरी है। पुस्तकें हम पर संकीर्णताओं को हावी नहीं होने देतीं और कुछ नया करने की प्रेरणा के साथ ही हमारी सोच का दायरा भी बढा़ती हैं। इसीलिए मेरी पुरजोर कोशिश रहती है कि रोजाना कुछ-न-कुछ अवश्य पढूं। कुछ-न-कुछ अवश्य लिखूं। निराशा कभी भी आपके पास फटकने की हिमाकत नहीं करेगी।
खैर! रात के बारह बज चुके हैं और मैं डिजिटल फार्मेट पर अध्ययन कर रहा हूं। आफिस से निकलते हुए सतीजी ने कहा है कि कल पुलिस लाइन ग्राउंड में प्रेस क्लब की टीमों के बीच खेली जा रही आजय गौतम मेमोरियल क्रिकेट प्रतियोगिता का फाइनल मुकाबला देखने जाना है। 12 बजे आफिस से साथ ही चलेंगे, भोजन भी वहीं है। मेरे लिए तो यह ठीक ही है। घूमना-फिरना भी हो जाएगा और दोपहर के भोजन की चिंता भी खत्म। कई लोगों से मेल-मिलाप होगा, सो अलग। लंबे समय से शहर में निकलना भी नहीं हुआ। ... तो ठीक है, कल पुलिस लाइन ग्राउंड में ही मुलाकात होती है।
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- अपनी बात
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- वो यमुना का किनारा
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- हमेशा रहा पढ़ने-लिखने का शौक
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- तनावभरा एक माह
- "गुलदस्ता" आपके हाथ में
- एक साहित्यकार मित्र से मुलाकात
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Secrets of the third world
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Dinesh Kukreti
Today I have completed the spiritual novel Anantrohan (Secrets of the Third World) by Captain Kunal Narayan Uniyal. This is the Hindi translation of his English novel, yet its excellent translation has the ability to keep it hooked from beginning to end. The plot of the novel is beautifully woven. There is no confusion in it anywhere. The mystery deepens after each chapter. The questions related to heaven and hell which have been troubling human beings since time immemorial, the wonderful mystery with which Kunal introduces the readers while searching for the same questions, is unique in itself. This clearly reflects their hold on Sanatan culture.
I have never met Kunal, but have reviewed his poetry collection 'Main Tula Hoon' in the past. It was on the basis of those poems that the picture of Kunal's personality emerged in my mind, it was proved after reading his novel. Kunal is an experienced master marine (captain of a ship) and has round-the-clock contact with the ocean of mystery. Just as the ocean itself contains infinite mysteries, in the same way Sanatani culture is the ocean of infinite mysteries. Spirituality and philosophy are its basic elements. Kunal has tried to acquaint the readers with this element of culture in his novel.
Yes! Despite all these merits, the novel is full of grammatical errors. One wonders why this was not considered necessary. Whereas, the reader gets stuck once or twice in every paragraph. In many places, the mind has to be stressed to understand the sentence. However, if the mistakes are completely ignored, it is a novel of a high order. I hope these errors will be completely removed in the second edition. Considering the scale of the novel, I would expect the readers to take the time to read it. To get the novel you can contact Kunal Narayan Uniyal on mobile number 9897911187 or mail id narayankunal@gmail.com.
After discussing the novel, now I come back to my routine, in which no change is happening at the moment. I want to have time to read along with other tasks. Reading is very important to maintain freshness in life. Books do not allow narrow-mindedness to dominate us and along with the inspiration to do something new, they also increase the scope of our thinking. That's why I try hard that I must read something or the other every day. I must write something. Despair will never dare to hit you.
So! It is twelve o'clock in the night and I am studying in digital format. While leaving the office, Satiji has said that tomorrow at Police Line Ground, I have to go to see the final match of the Ajay Gautam Memorial cricket competition being played between the teams of Press Club. We will walk together from the office at 12 o'clock, the food is also there. For me that's fine. Traveling will be done and the worry about lunch will also end. There will be reconciliation with many people, so different. Haven't even been out in the city for a long time. ... Well then, tomorrow there is a meeting at the Police Line Ground.
13-11-2024 (खुशनुमा जलवायु के बीच सीढ़ियों पर बसा एक खूबसूरत पहाड़ी शहर)
खुशनुमा जलवायु के बीच सीढ़ियों पर बसा पहाड़ी शहर ------------------------------------------------ ------------- भागीरथी व भिलंगना नदी के संग...