Sunday, 28 November 2021

28-11-2021 (नेचर पार्क की सैर)



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नेचर पार्क की सैर
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दिनेश कुकरेती
म कई दिनों से सोच रहे थे कि इतवार को डोईवाला के पास लच्छीवाला नेचर पार्क की सैर करने जाएंगे। हालांकि, ठीक-ठीक कुछ तय नहीं हो पा रहा था। लेकिन, कल दिन में जब किरण भाई ने आज पूर्वाह्न 11 बजे तक आफिस पहुंचने के लिए कहा तो लच्छीवाला जाने का कार्यक्रम पक्का हो गया। उन्होंने यह भी कहा कि अगर एक प्रतिशत किसी कारणवश जाना न हो पाया तो यहीं आफिस में राजमा-चावल मंगवा लेंगे। वैसे दोपहर के भोजन को लेकर सतीजी की डोईवाला कोठारीजी से बात हो गई है। अब इतना सब तय हो जाए तो इन्कार का सवाल ही नहीं उठता, सो स्नान-ध्यान के बाद पूर्वाह्न ठीक 11 बजे मैं आफिस पहुंच गया।
आफिस में पता चला कि केदारजी नहीं आ रहे हैं, जबकि बड़थ्वालजी चलने को तैयार थे। हालांकि, जब सतीजी ने केदारजी को चलने के लिए कहा तो वे भी तैयार हो गए। तय हुआ कि सेमवालजी की कार में जाएंगे। सो, किरण भाई, सेमवालजी के साथ फ्रंट सीट में बैठे और मैं, सतीजी, केदारजी व बड़थ्वालजी पीछे वाली सीट में लद गए। थोडा़ दिक्कत तो हो रही थी, लेकिन बहुत दूर नहीं जाना था, इसलिए जैसे-तैसे एडजस्ट हो लिए। नेशनल हाइवे से जाने पर टोल टैक्स देना पड़ता है, इसलिए हमने दुधली वाला रास्ता पकडा़। यह रास्ता देहरादून वनप्रभाग के जंगल के बीच से होते हुए सीधे डोईवाला बाजार में खुलता है।
दोपहर साढे़ बारह बजे के आसपास हम लच्छीवाला नेचर पार्क के गेट पर थे। वहां रेंजर चंडीप्रसाद उनियाल जी से मिलने के बाद हमने पार्क में प्रवेश किया। अब तक कोठारीजी का कोई पता नहीं था और वे फोन भी नहीं उठा रहे थे। सो, हम सीधे म्यूजियम 'धरोहर' की तरफ बढ़ गए, जो कुछ समय पूर्व ही बना है। बहुत ही शानदार म्यूजियम है, अंदर जाते ही पर्यटकों को ठेठ उत्तराखंडी लोक में पहुंचा देता है। वह सभी वस्तुएं, जो हमारे पूर्वजों द्वारा उपयोग में लाई जाती रही होंगी और वर्तमान में लुप्त या चलन से बाहर हो चुकी हैं, यहां मौजूद हैं।
पारंपरिक कृषि बीज, हाथ चक्की (जंदरी), गंज्यली़ (धान कूटने वाला लकडी़ का उपकरण), ओखली (उरख्यली़), पर्या (दही बिलोने वाला लकडी़ का बर्तन ), डखुला़ (दही जमाने वाला चीनी मिट्टी का बर्तन ), राई (पर्या में दूध मथने वाली लकडी़ की छड़ यानी मथनी) नर्यलु़ (अनाज रखने वाला रिगांल से बना बर्तन), रिंगाल़ की कंडी, घीडा़, डलुण, भड्डू (कांसे का मोटी परत वाला बर्तन, जिसमें मोटी दाल पकाई जाती थी), तांबे व पीतल की तौल -तौली और गागर, पीतल का कस्यरा, कच्चे लोहे की कढा़ई, परात, लोक वाद्ययंत्र, अस्त्र-शस्त्र, लोक देवताओं की प्रतिमाएं, मुखौटे (ये मुख्य रूप से विश्व धरोहर रम्माण नृत्य में प्रयुक्त होते हैं) जैसी तमाम दुर्लभ वस्तुएं इस संग्रहालय में देखी जा सकती हैं।






















इसके अलावा पारंपरिक वेशभूषा, लोक नृत्य और लोक परंपराओं के दर्शन भी यह संग्रहालय कराता है। साथ ही विज्ञान, भूगोल व इतिहास भी यहां समाहित है। आप पहाड़ से जरा भी प्यार करते हैं तो यहां से लौटने का मन ही नहीं करेगा। पार्क के बीच से होकर खूबसूरत नहर भी गुजरती है और सौंग नदी भी। नदी में छोटे-छोटे बांध बनाकर पर्यटकों के लिए नहाने की व्यवस्था की जा रही है। आप यहां झील में बोटिंग का लुत्फ लेने के साथ ही बटरफ्लाई गार्डन, हर्बल गार्डन और बोनसाई गार्डन में भी वक्त गुजार सकते हैं। बाकी प्रकति के खूबसूरत नजारे तो चारों ओर बिखरे हुए हैं ही।
तकरीबन डेढ़ घंटे हम यहां रहे होंगे। इस बीच कोठारीजी भी आ गए थे, लेकिन उन्होंने भोजन की व्यवस्था नहीं की थी। इसलिए मूड आफ होना स्वाभाविक था, लेकिन हमने उनसे कुछ कहा नहीं। हां! उन्होंने चाय जरूर पिलाई। इसके बाद हम दुधली की ओर से ही देहरादून वापसी के लिए निकल पडे़। सुबह से कुछ खाया नहीं था, इसलिए भूख लगना स्वाभाविक था। कोठारीजी भी टांपा दे गए थे, लिहाजा हमारा प्लान बना कि रास्ते में किसी ढाबे में रुककर भोजन किया जाए। करीब पांच किमी चलने के बाद हमें सड़क किनारे एक ढाबा नजर आया। हमने वहीं कार पार्क की और चिकन-चावल और तवा रोटी बनाने का आर्डर कर दिया।
यही कोई आधा घंटा लगा होगा भोजन तैयार होने में। किरण भाई को छोड़कर बाकी सभी ने चिकन-भात का आनंद लिया। वे मांस-मछली नहीं खाते, इसलिए उन्होंने अपने लिया राजमा-चावल आर्डर किया। पेट भरने के बाद हम फिर निकले पडे़ मंजिल की ओर। पौन घंटा लगा होगा वहां से देहरादून पहुंचने में। कारगी चौक क्रास करने के बाद अचानक मन में विचार आया कि क्यों न चाय पीकर आफिस पहुंचा जाए, सो कारगी रोड पर आफिस से आधा-पौन किमी पहले हम एक होटल में रुके और चाय आर्डर कर दी। बाकी रुटीन तो हमेशा की तरह ही है।
इस समय रात के साढे़ बारह बजे हैं और मैं डायरी लिखने में निमग्न हूं। भोजन आज हल्का ही किया यानी दलिया। यही प्रकृति का नियम है। भोजन हमारे लिए है, हम भोजन के लिए नहीं। दिन में भारी भोजन किया था, इसलिए रात में हल्का जरूरी था। बाकी जरूरत गर्म पानी पूरी कर देता है। ठंडियों में मैं गर्म पानी ही पीता हूं। इससे सर्दी-खांसी-जुकाम परेशान नहीं करते। खैर! ये अपनी-अपनी सोच और अपना-अपना तरीका है कि किसे क्या लेना है। फिलहाल तो सोने का वक्त हो गया है और मुझे भी नींद आ रही है। ...तो ठीक है, कल फिर एक नए किस्से के साथ हाजिर होता हूं। नमस्कार!!












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Nature park tour
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Dinesh Kukreti
We were thinking for several days that on Sunday we would go for a visit to Lachhiwala Nature Park near Doiwala.  However, nothing could be decided exactly.  But, yesterday in the day when Kiran Bhai asked to reach the office by 11 am today, the program to go to Lachhiwala was confirmed.  He also said that if one percent is not able to go due to some reason, then he will get Rajma-rice in the office here.  By the way, Satiji has a talk with Doiwala Kothariji about lunch.  Now that all this is settled, then the question of refusal does not arise, so after bathing and meditating, I reached the office at exactly 11 in the morning.






















It was found in the office that Kedarji was not coming, while Barthwalji was ready to leave.  However, when Satiji asked Kedarji to go, he too agreed.  It was decided to go to Semwalji's car.  So, Kiran Bhai sat with Semwalji in the front seat and I, Satiji, Kedarji and Barthwalji got into the back seat.  There was a little problem, but did not have to go very far, so I adjusted somehow.  Toll tax has to be paid on going through the National Highway, so we took the two-way route.  This road passes through the forest of Dehradun Forest Division and opens directly to Doiwala Bazar.
We were at the gate of Lachhiwala Nature Park around 12.30 pm.  We entered the park after meeting Ranger Chandiprasad Uniyal ji there.  Till now there was no trace of Kothariji and he was not even picking up the phone.  So, we headed straight to the museum 'Dharhar', which has been built some time back.  It is a very wonderful museum, as soon as it goes inside, it takes tourists to the typical Uttarakhandi folk.  All those things, which would have been used by our ancestors and are currently extinct or out of use, are present here.

Traditional agriculture seed, hand mill (jandri), ganjyli (wooden instrument for crushing paddy), okhali (urkhayli), parya (wooden utensil for making curd), dakhula (porcelain for curdling), rai (in parya)  Wooden stick for churning milk, i.e. churning),    Narylu (a utensil made of rigal containing grains), Ringal ki kandi, Gheeda, Dalun, Bhaddu (a thick bronze vessel in which thick pulses were cooked), Copper and Brass weights  All the rare items like Touli and Gagar, brass casserole, cast iron kadhai, parat, folk instruments, weapons, statues of folk deities, masks (these are mainly used in World Heritage Raman dance) in this museum  can be seen.

Apart from this, this museum also offers traditional costumes, folk dance and folk traditions.  Along with this, science, geography and history are also included here.  If you love the mountain at all, then you will not feel like returning from here.  The beautiful canal also passes through the middle of the park and also the Saung River.  Bathing arrangements are being made for the tourists by making small dams in the river.  Apart from enjoying boating in the lake here, you can also spend time in Butterfly Garden, Herbal Garden and Bonsai Garden.  The beautiful views of the rest of the nature are scattered all around.
We must have been here for about an hour and a half.  Meanwhile, Kothariji had also come, but he had not arranged for food.  So it was natural to be in an off mood, but we didn't say anything to them.  Yes!  He did drink tea.  After this we set out from Dudhli to return to Dehradun.  Had not eaten anything since morning, so it was natural to feel hungry.  Kothariji had also been given to Tampa, so our plan was made to stop at some dhaba on the way to have food.  After walking for about five km, we saw a dhaba on the side of the road.  We parked the car there and ordered for making chicken-rice and tawa roti.















It would have taken about half an hour for the food to be ready.  Except Kiran bhai, everyone else enjoyed the chicken-bhaat.  He does not eat meat and fish, so he ordered his own rajma-rice.  After filling our stomach, we again started towards the floor.  It would have taken half an hour to reach Dehradun from there.  After crossing Kargi Chowk, suddenly a thought came to mind that why should not we reach the office after drinking tea, so we stayed in a hotel half-and-half km before the office on Kargi Road and ordered tea.  Rest of the routine is the same as usual.






















It is now twelve.30 pm and I am busy writing my diary.  The food was light today i.e. porridge.  This is the law of nature.  Food is for us, we are not for food.  Had a heavy meal during the day, so it was necessary to have a light one at night.  The rest of the requirement is met by hot water.  In winter I drink hot water only.  Due to this, cold, cough and cold do not bother.  So!  It's their own way of thinking and their own way of who to take what.  Right now it's time to sleep and I'm feeling sleepy too.  ... well then, tomorrow I will come again with a new anecdote.  Hi!!

Sunday, 21 November 2021

21-11-2021 (प्रेस क्लब क्रिकेट टूर्नामेंट)























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प्रेस क्लब क्रिकेट टूर्नामेंट
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दिनेश कुकरेती
ज मैंने दोपहर का भोजन नहीं बनाया। बीती रात आफिस से घर लौटते हुए सतीजी ने आज दोपहर 12 बजे पुलिस लाइन स्टेडियम चलने को कहा था, इसलिए हल्का-फुल्का नाश्ता करके दोपहर ठीक बारह बजे मैं आफिस पहुंच गया। बाइक पार्किंग में खडी़ कर जैसे में आफिस में अपने फ्लोर के प्रवेश द्वार पर पहुंचा, सतीजी वहीं खडे़ मेरी राह देख रहे थे। कहने लगे, 'मैं तो कब से इंतजार कर रहा था। फोन भी किया, तुमने उठाया ही नहीं।' मैंने कहा, 'रास्ते में था, इसलिए नहीं उठा पाया।' खैर! इसके बाद हम सतीजी की कार से सीधे पुलिस लाइन स्टेडियम के लिए रवाना हो गए।
तकरीबन बीस मिनट लगे हमें वहां पहुंचने में। अजय गौतम मेमोरियल क्रिकेट प्रतियोगिता के फाइनल मुकाबले की पहली पारी संपन्न हो चुकी थी और अब दूसरी टीम के ओपनर बैट्समैन क्रीज पर उतरने की तैयारी कर रहे थे। कार स्टेडियम के बगल वाले मैदान में खडी़ कर हम सीधे स्टेडियम में पहुंचे और कमेंटरी बाक्स के पास मित्र मंडली के साथ मैच देखने बैठ गए। तकरीबन दो घंटे यह पारी चली होगी और लक्ष्य का पीछा करने उतरी टीम ने आठ विकेट से फाइनल मुकाबला जीत लिया। विजेता-उपविजेता टीमों को पुरस्कृत करने के लिए सैनिक कल्याण मंत्री गणेश जोशी भी स्टेडियम में पहुंच चुके थे।

आधा घंटे में पुरस्कार वितरण की प्रक्रिया संपन्न हुई और इसके बाद सभी चल पडे़ भोजन के लिए। भोजन में चावल, मटन व पनीर बना हुआ था। हमने तो मटन-चावल का ही आनंद उठाया। इसके बाद हमने एक-दो डली गुड़ खाकर मुंह मीठा किया और पकड़ ली आफिस की राह।मटन काफी गला हुआ था और मसाले भी तीखे नहीं थे, इसलिए अन्य दिनों की अपेक्षा भोजन कुछ ज्यादा ही हो गया। सो, ऐसे में पेट भारी होना स्वाभाविक था। अन्य दिनों में शाम के वक्त कुछ-न-कुछ खाना हो जाता है, लेकिन आज बिल्कुल इच्छा नहीं थी।
सोच रहा था कि रात कमरे में दलिया बनाऊंगा, लेकिन अब लग रहा था कि दलिया की भी जरूरत नहीं पड़ने वाली। ऐसा ही हुआ भी। कमरे में पहुंचकर सबसे पहले मैंने रुटीन के कार्य निपटाए और फिर सोचा कि क्यों न दूध पीकर ही गुजर कर ली जाए। इच्छा न होने पर जबर्दस्ती भोजन करना समझदारी का काम भी नहीं है। सो, मैंने दूध गर्म किया और गुड़ की कटिंग के साथ उसका लुत्फ लेने लगा। सुबह के लिए काले चने भिगो लिए हैं और हाथ-मुंह धोकर अब आराम करने बैठा हुआ हुआ हूं।

मेरे लिए आराम का मतलब चित्त लेट जाना नहीं, बल्कि कोई पुस्तक पढ़ लेना या यू-ट्यूब पर कोई तर्कपूर्ण ज्ञानवर्द्धक वीडियो क्लिप देख लेना होता है। खासकर रवीश कुमार, अभिसार शर्मा, पुण्य प्रसून वाजपेयी, संदीप चौधरी, अजीत अंजुम, प्रज्ञा मिश्रा, साक्षी जोशी, आरफा खानम शेरवानी की न्यूज क्लिप, इंटरव्यू, चर्चा-परिचर्चा मैं जरूर देखता व सुनता हूं। इसके अलावा जौन एलिया, राहत इंदौरी, जा़वेद अख़्तर, वसीम बरेलवी, बशीर बद्र, अदम गोंडवी, दुष्यंत कुमार, साहिर लुधियानवी, फै़ज अहमद फै़ज, परवीन शाकिर, कुंवर जावेद, विष्णु सक्सेना आदि कवि, गीतकार व शायरों को सुनना व पढ़ना मुझे बेहद पसंद है।
























इस समय मैं गीतकार विष्णु सक्सेना को सुन रहा है। सममुच श्रृंगार के अद्भुत गीतकार हैं। एक बार सुनने लगो तो गीतों में डूब जाने का मन करता है। इससे पहले मैंने शायरा राना तबस्सुम को सुना। क्या कमाल की शायरी करती हैं। इन कवि व शायरों को सुन-सुनकर तो मैंने भी कविता, गीत व गज़ल लिखना सीखा। मेरा मानना है समाज को लोकतांत्रिक दिशा और वैज्ञानिक दृष्टि देने वालों को पढ़ते व सुनते रहना चाहिए। इससे ज्ञान तो मिलता ही है, सोच का दायरा भी बढ़ता है। आज के दौर में तो यह बेहद जरूरी है।

इन्‍हें भी पढ़ें : 

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Press Club Cricket Tournament
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Dinesh Kukreti
I didn't cook lunch today.  While returning home from office last night, Satiji had asked me to walk to Police Line Stadium at 12 noon, so after having a light breakfast, I reached the office at exactly 12 noon.  Standing in the bike parking lot, as I reached the entrance of my floor in the office, Satiji was standing there watching my way.  He said, 'How long have I been waiting?  Called too, you didn't even pick up.  I said, 'Was on the way, so couldn't lift it.'  So!  After this we left for the Police Line Stadium directly from Satiji's car.















It took us about twenty minutes to reach there.  The first innings of the final match of the Ajay Gautam Memorial Cricket Competition was over and now the opener batsmen of the other team were preparing to enter the crease.  Parked the car in the ground next to the stadium, we went straight to the stadium and sat down near the commentary box to watch the match with the group of friends.  This innings would have lasted almost two hours and the team chasing the target won the final match by eight wickets.  Sainik Welfare Minister Ganesh Joshi had also reached the stadium to reward the winning-runner-up teams.

The prize distribution process was over in half an hour and after that everyone went on to the food.  Rice, mutton and paneer were made in the food.  We only enjoyed mutton-rice.  After this, we sweetened our mouth after eating a couple of nuggets of jaggery and took our way to the office.  So, it was natural for the stomach to be heavy.  On other days some food is done in the evening, but today there was no desire at all.

I was thinking that I would make porridge in the room at night, but now it seemed that even porridge would not be needed.  The same thing happened.  After reaching the room, I first dealt with the routine tasks and then thought that why not pass it by drinking milk.  It is not a wise thing to eat forcibly when there is no desire.  So, I heated the milk and started enjoying it with jaggery cuttings.  I have soaked black gram for the morning and after washing my hands and face, now I am sitting to rest.
For me, rest doesn't mean lying down, but reading a book or watching a logically informative video clip on YouTube.  Especially Ravish Kumar, Sandeep Chaudhary, Ajit Anjum, Pragya Mishra, Sakshi Joshi, Arfa Khanum Sherwani's news clips, interviews, discussions and discussions, I definitely watch and listen.  Apart from this, listening and reading poets, lyricists and poets like Jaun Elia, Rahat Indori, Javed Akhtar, Wasim Barelvi, Bashir Badr, Adam Gondvi, Dushyant Kumar, Sahir Ludhianvi, Faiz Ahmed Faiz, Parveen Shakir, Kunwar Javed, Vishnu Saxena etc.  like.

Currently I am listening to lyricist Vishnu Saxena.  Sammukh Shringar is a wonderful lyricist.  Once you start listening, you feel like getting immersed in the songs.  Earlier I listened to Shayra Rana Tabassum.  What a wonderful poetry.  After listening to these poets and poets, I also learned to write poetry, songs and ghazals.  I believe that the society should keep reading and listening to those who give democratic direction and scientific vision.  This not only gives knowledge, but also increases the scope of thinking.  In today's era it is very important.

Saturday, 20 November 2021

20-11-2021 (भगवान बदरी नारायण)

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भगवान बदरी नारायण
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दिनेश कुकरेती

ज शाम वृष लग्न में छह बजकर 45 मिनट पर भू-वैकुंठ बदरीनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए। समुद्रतल से 3133 मीटर (10276 फीट) की ऊंचाई पर उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित बदरीनाथ धाम के कपाट बंद करने की प्रक्रिया सुबह भगवान बदरी नारायण का फूलों से श्रृंगार करने के साथ शुरू हो गई थी। इसके लिए मंदिर को 20 कुंतल रंग-बिरंगे फूलों से दुल्हन की तरह सजाया गया था। कपाटबंदी की यह प्रक्रिया अपने आप में बडी़ विलक्षण होती है। इसका वर्णन शब्दों की सीमा में नहीं किया जा सकता। इस दौरान बदरीशपुरी का वातावरण इस कदर मनोहारी होता है कि वहां मौजूद श्रद्धालु सम्मोहित से हो जाते हैं।

इस पूरे घटनाक्रम को आपसे शेयर की मुख्य वजह यह है कि हमेशा की तरह इस बार भी कपाटबंदी की खबर मेरे द्वारा ही लिखी गई। यह सिलसिला वर्षों से चला आ रहा है। मैं चाहता हूं कि पहाड़ की इन गौरवमयी परंपराओं से आप भी परिचित हों। ये परंपराएं सीधे-सीधे पहाड़ की रोजी-रोटी से जुडी़ हैं। इन्हीं की बदौलत पहाड़ के इस जाटिल भूगोल में भी जीवन है। इसलिए मेरी कोशिश रहती है कि जितना भी संभव हो सके आपनी संस्कृति को देश-दुनिया की नजरों में लाने का प्रयास किया जाए। खैर! नित्य पूजाओं के बाद भगवान नारायण को दोपहर का भोग लगाया गया। यह दोपहर भी खास है, क्योंकि  इस दोपहर में भगवान भोग के बाद विश्राम नहीं करते। दरअसल, दोपहर के भोग के बाद दो घंटे मंदिर के कपाट बंद रखे जाते हैं, लेकिन कपाटबंदी वाले दिन ऐसा नहीं होता और पूरे दिन मंदिर के कपाट खुले रहते हैं।


शाम को भगवान नारायण के तन से फूलों का श्रृंगार हटाकर उन्हें घृत कंबल ओढा़या गया। इस कंबल को देश के अंतिम गांव माणा की कुंआरी कन्याओं द्वारा बुना जाता है और फिर इस पर गाय के घी का लेपन होता है। यह घी बामणी गांव से आता है। अगली बार कपट खुलने पर इसी घृत कंबल के छोटे-छोटे टुकडे़ श्रद्धालुओं को प्रसाद स्वरूप बांटे जाते हैं। भगवान को घृत कंबल ओढा़ने के बाद एक विलक्षण परंपरा का निर्वाह होता है। धाम के मुख्य पुजारी (रावल ) भगवान नारायण की सखी का वेश धारण कर मंदिर परिसर स्थित मां लक्ष्मी के मंदिर में पहुंचते हैं और फिर मां लक्ष्मी की प्रतिमा को मंदिर के गर्भगृह में लाकर उसे शीतकाल के लिए भगवान नारायण के वामांग में विराजमान कर देते हैं। कपाट खुलने पर मां लक्ष्मी वापस अपने मंदिर में चली जाती हैं। 












इसी दौरान गर्भगृह में स्थित बदरीश पंचायत से भगवान नारायण के प्रतिनिधि एवं बालसखा उद्धवजी, देवताओं के खजांची कुबेरजी व भगवान के वाहन गरुड़जी की भोगमूर्ति और आदि शंकराचार्य की गद्दी को बाहर लाया जाता है। शीतकाल में यही प्रतीक पांडुकेश्वर स्थित योग-ध्यान बदरी मंदिर और जोशीमठ स्थित नृसिंह बदरी मंदिर में विराजमान होते हैं। इस परंपरा का निर्वाह करने के बाद रावल ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी ने मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए। इस दौरान संपूर्ण बदरीशपुरी सेना और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस के बैंड की सुमधुर लहरियों से गुंजायमान हो उठी।  बैंड पर बज रही लोकधुन 'बेडू पाको बारामासा, नारैणा काफल पाको चैता' पर जब पारंपरिक वेश-भूषा में सजी बामणी व माणा गांव की जनजातीय महिलाओं ने नृत्य किया तो तन ही नहीं मन भी झूम उठे। आध्यात्मिक वातावारण में संस्कृति का यह मनोहारी रूप भावविभोर कर देने वाला था। 















अब कल 21 नवंबर की सुबह भगवान बदरी नारायण के प्रतिनिधि उद्धवजी, देवताओं के खजांची कुबेरजी व भगवान के वाहन गरुड़जी की भोग मूर्ति उत्सव डोली में विराजमान होकर आदि शंकराचार्य की गद्दी के साथ पांडुकेश्वर के लिए प्रस्थान करेंगी। शीतकाल के दौरान उद्धवजी व कुबेरजी की पूजा योग-ध्यान बदरी मंदिर पांडुकेश्वर और गरुड़जी व शंकराचार्य गद्दी की पूजा-अर्चना नृसिंह बदरी मंदिर जोशीमठ में होती है। गरुड़जी व शंकराचार्य गद्दी रावल ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी की अगुआई में 22 नवंबर को नृसिंह बदरी मंदिर पहुंचेगी। इसके साथ ही विधिवत रूप से भगवान बदरी नारायण की शीतकालीन पूजाएं शुरू हो जाएंगी। ...तो आइए! प्रेम एवं श्रद्धा से बोलिए, जय बदरी विशाल।

इन्‍हें भी पढ़ें : 

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Lord Badri Narayan

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Dinesh Kukreti

The doors of Bhu-Vaikunth Badrinath Dham were closed for the winter season at 6.45 pm in the Taurus ascendant.  The process of closing the doors of Badrinath Dham, located in Chamoli district of Uttarakhand at an altitude of 3133 meters (10276 ft) above sea level, had begun in the morning with the adornment of Lord Badri Narayan with flowers.  For this the temple was decorated like a bride with 20 quintals of colorful flowers.  This process of kapatbandi is very unique in itself.  It cannot be described in the limit of words.  During this, the atmosphere of Badrishpuri is so beautiful that the devotees present there are mesmerized.

The main reason to share this whole incident with you is that as always, this time also the news of anti-fraud was written by me.  This has been going on for years.  I want you to get acquainted with these glorious traditions of the mountain.  These traditions are directly related to the livelihood of the mountain.  Due to these, there is life in this complex geography of the mountain.  Therefore, it is my endeavor that as much as possible, efforts should be made to bring your culture in the eyes of the country and the world.  So!  After the daily worship, Lord Narayan was offered afternoon bhog.  This afternoon is also special, because in this afternoon the Lord does not rest after the enjoyment.  Actually, the doors of the temple are kept closed for two hours after the afternoon bhog, but this does not happen on the day of kapatbandi and the doors of the temple remain open for the whole day.













In the evening, after removing the decoration of flowers from the body of Lord Narayan, he was covered with a blanket of ghee.  This blanket is woven by the unmarried girls of Mana, the last village of the country and then coated with cow's ghee.  This ghee comes from Bamni village.  Next time when the fraud is uncovered, small pieces of this ghee blanket are distributed to the devotees as prasad.  A unique tradition is followed after covering the Ghrita blanket to the deity.  The chief priest (Raval) of the Dham, disguised as Lord Narayan's friend, reaches the temple of Goddess Lakshmi located in the temple premises and then brings the idol of Goddess Lakshmi to the sanctum sanctorum of the temple and makes it sit in the Vamang of Lord Narayana for the winter.  .  When the doors are opened, Goddess Lakshmi goes back to her temple.












In the meantime, Uddhavji, the representative of Lord Narayana, the treasurer of the gods, Kuberji, the treasurer of the gods, the Bhogmurti of Garudji, the vehicle of God, and the seat of Adi Shankaracharya are brought out from the Badrish Panchayat located in the sanctum sanctorum.  In winter, this symbol is seated in the yoga-dhyana Badri temple located at Pandukeshwar and the Narsingh Badri temple located in Joshimath.  After following this tradition, Rawal Ishwari Prasad Namboodiri closed the doors of the temple for the winter.  During this, the entire Badrishpuri resonated with the melodious waves of the bands of the Army and the Indo-Tibetan Border Police.  When the tribal women of Bamani and Mana villages, dressed in traditional costumes, danced on the folk tune 'Bedu Pako Baramasa, Naraina Kafal Pako Chaita' playing on the band, not only the body but the mind also jumped.  This beautiful form of culture in the spiritual atmosphere was mesmerizing.

Now tomorrow on the morning of November 21, Uddhavji, the representative of Lord Badri Narayan, Kuberji, the treasurer of the gods and the Bhog idol of Garudji, the vehicle of God, will be seated in the festival doli and will leave for Pandukeshwar with the throne of Adi Shankaracharya.  During winter, worship of Uddhavji and Kuberji takes place in the Nrisingh Badri temple Joshimath, worship of Uddhavji and Kuberji, yoga-meditation, Badri temple, Pandukeshwar and Garudji and Shankaracharya Gaddi.  Under the leadership of Garudji and Shankaracharya Gaddi Rawal Ishwari Prasad Namboodiri, Narsingh will reach Badri temple on November 22.  With this, the winter pujas of Lord Badri Narayan will begin duly.  ...then come on!  Speak with love and reverence, Jai Badri Vishal.


20-11-2021 (तीसरी दुनिया के रहस्य)

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तीसरी दुनिया के रहस्य

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दिनेश कुकरेती

ज जाकर मैं कैप्टन कुणाल नारायण उनियाल के आध्यात्मिक उपन्यास अनंतरोहण (तीसरी दुनिया के रहस्य) को पूरा कर पाया। यह उनके अंग्रेजी उपन्यास का हिंदी अनुवाद है, बावजूद इसके इसका बेहतरीन भावानुवाद शुरू से आखिर तक बांधे रखने की क्षमता रखता है। उपन्यास की कथावस्तु बेहद खूबसूरती से बुनी गई है। इसमें कहीं भी झोल नहीं है। हर अध्याय के बाद रहस्य और गहराता चला जाता है। आदिकाल से स्वर्ग-नरक से जुड़े जो सवाल मनुष्य को कचोटते रहे हैं, कुणाल उन्हीं सवालों को तलाशते हुए जिस अद्भुत रहस्य से पाठकों को परिचित कराते हैं, वह अपने-आप में अनुपम है। इससे उनकी सनातन संस्कृति पर पकड़ स्पष्ट परिलक्षित होती है।

 मैं कुणाल से कभी मिला नहीं, लेकिन पूर्व में उनके कविता संकलन 'मैं तुला हूं' की समीक्षा जरूर कर चुका हूं। उन कविताओं के आधार पर ही मेरे मन-मस्तिष्क में कुणाल के व्यक्तित्व की जो तस्वीर उभर कर कर सामने आई, उनके उपन्यास को पढ़कर वह प्रमाणित भी हो गई। कुणाल अनुभवी मास्टर मरीन (एक जहाज के कैप्टन) हैं और रहस्य के सागर से ही चौबीसों घंटे उनका वास्ता पड़ता है। जैसे सागर स्वयं में अनंत रहस्य समेटे हुए है, वैसे ही अनंत रहस्यों का सागर है सनातनी संस्कृति। अध्यात्म एवं दर्शन इसके मूल तत्व हैं। कुणाल ने अपने उपन्यास में संस्कृति के इसी तत्व रूप से पाठकों को परिचित कराने की कोशिश की है।

हां! इन तमाम खूबियों के बावजूद उपन्यास में व्याकरणीय त्रुटियों की भरमार बहुत अखरती है। आश्चर्य होता है कि इस ओर क्यों ध्यान देने की जरूरत नहीं समझी गई। जबकि, हर पैरे में पाठक एक-दो बार तो अवश्य अटक जाता है। कई जगह तो वाक्य को समझने के लिए दिमाग पर जोर डालना पड़ता है। हालांकि, गलतियों को पूरी तरह नजरंदाज कर दिया जाए तो यह ऊंचे दर्जे का उपन्यास है। मैं उम्मीद करता हूं कि द्वितीय संस्करण में इन त्रुटियों को पूरी तरह दूर कर लिया जाएगा। उपन्यास के स्तर को देखते हुए मेरी पाठकों से अपेक्षा रहेगी कि वे इसे पढ़ने को अवश्य वक्त निकालें। उपन्यास प्राप्त करने के लिए आप मोबाइल नंबर 9897911187 या मेल आईडी narayankunal@gmail.com पर कुणाल नारायण उनियाल से संपर्क कर सकते हैं।

उपन्यास पर चर्चा के बाद अब अपने रुटीन पर आता हूं, जिसमें फिलहाल कोई बदलाव नहीं हो पा रहा है। मैं चाहता हूं अन्य कार्यों के साथ पढ़ने के लिए भी समय मिले। जीवन में ताजगी बनाए रखने के लिए पढ़ना बेहद जरूरी है। पुस्तकें हम पर संकीर्णताओं को हावी नहीं होने देतीं और कुछ नया करने की प्रेरणा के साथ ही हमारी सोच का दायरा भी बढा़ती हैं। इसीलिए मेरी पुरजोर कोशिश रहती है कि रोजाना कुछ-न-कुछ अवश्य पढूं। कुछ-न-कुछ अवश्य लिखूं। निराशा कभी भी आपके पास फटकने की हिमाकत नहीं करेगी।

 खैर! रात के बारह बज चुके हैं और मैं डिजिटल फार्मेट पर अध्ययन कर रहा हूं। आफिस से निकलते हुए सतीजी ने कहा है कि कल पुलिस लाइन ग्राउंड में प्रेस क्लब की टीमों के बीच खेली जा रही आजय गौतम मेमोरियल  क्रिकेट प्रतियोगिता का फाइनल मुकाबला देखने जाना है। 12 बजे आफिस से साथ ही चलेंगे, भोजन भी वहीं है। मेरे लिए तो यह ठीक ही है। घूमना-फिरना भी हो जाएगा और दोपहर के भोजन की चिंता भी खत्म। कई लोगों से मेल-मिलाप होगा, सो अलग। लंबे समय से शहर में निकलना भी नहीं हुआ। ... तो ठीक है, कल पुलिस लाइन ग्राउंड में ही मुलाकात होती है।

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Secrets of the third world

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Dinesh Kukreti

Today I have completed the spiritual novel Anantrohan (Secrets of the Third World) by Captain Kunal Narayan Uniyal.  This is the Hindi translation of his English novel, yet its excellent translation has the ability to keep it hooked from beginning to end.  The plot of the novel is beautifully woven.  There is no confusion in it anywhere.  The mystery deepens after each chapter.  The questions related to heaven and hell which have been troubling human beings since time immemorial, the wonderful mystery with which Kunal introduces the readers while searching for the same questions, is unique in itself.  This clearly reflects their hold on Sanatan culture.

I have never met Kunal, but have reviewed his poetry collection 'Main Tula Hoon' in the past.  It was on the basis of those poems that the picture of Kunal's personality emerged in my mind, it was proved after reading his novel.  Kunal is an experienced master marine (captain of a ship) and has round-the-clock contact with the ocean of mystery.  Just as the ocean itself contains infinite mysteries, in the same way Sanatani culture is the ocean of infinite mysteries.  Spirituality and philosophy are its basic elements.  Kunal has tried to acquaint the readers with this element of culture in his novel.

Yes!  Despite all these merits, the novel is full of grammatical errors.  One wonders why this was not considered necessary.  Whereas, the reader gets stuck once or twice in every paragraph.  In many places, the mind has to be stressed to understand the sentence.  However, if the mistakes are completely ignored, it is a novel of a high order.  I hope these errors will be completely removed in the second edition.  Considering the scale of the novel, I would expect the readers to take the time to read it.  To get the novel you can contact Kunal Narayan Uniyal on mobile number 9897911187 or mail id narayankunal@gmail.com.

After discussing the novel, now I come back to my routine, in which no change is happening at the moment.  I want to have time to read along with other tasks.  Reading is very important to maintain freshness in life.  Books do not allow narrow-mindedness to dominate us and along with the inspiration to do something new, they also increase the scope of our thinking.  That's why I try hard that I must read something or the other every day.  I must write something.  Despair will never dare to hit you.

So!  It is twelve o'clock in the night and I am studying in digital format.  While leaving the office, Satiji has said that tomorrow at Police Line Ground, I have to go to see the final match of the Ajay Gautam Memorial cricket competition being played between the teams of Press Club.  We will walk together from the office at 12 o'clock, the food is also there.  For me that's fine.  Traveling will be done and the worry about lunch will also end.  There will be reconciliation with many people, so different.  Haven't even been out in the city for a long time.  ... Well then, tomorrow there is a meeting at the Police Line Ground.

13-11-2024 (खुशनुमा जलवायु के बीच सीढ़ियों पर बसा एक खूबसूरत पहाड़ी शहर)

खुशनुमा जलवायु के बीच सीढ़ियों पर बसा पहाड़ी शहर ------------------------------------------------ ------------- भागीरथी व भिलंगना नदी के संग...