Sunday, 28 February 2021

24-02-2021 (Doon returned after six days)

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छह दिन बाद दून लौटा

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दिनेश कुकरेती

ह दिन की छुट्टी बिताने के बाद आज मैं देहरादून पहुंच गया। सुबह साढे़ नौ बजे मैं घर से चल दिया था और दस बजे मुझे टैक्सी भी मिल गई। हरिद्वार तक तो मैं लगभग सोते हुए आया, लेकिन फिर देहरादून तक नींद नहीं आई। हाईवे पर अभी भी काम चल रहा है, लेकिन सड़क चौडी़ होने से जाम की समस्या से निजात जरूर मिल गई। समय की भी काफी बचत हो रही है। जिस दिन हाईवे पूरी तरह तैयार हो जाएगा और रेल अंडर पास व सभी फ्लाईओवर खुल जाएंगे, उस दिन से देहरादून से हरिद्वार के बीच की दूरी महज 45 मिनट की रह जाएगी। मुझे इससे काफी फायदा होने वाला है, क्योंकि हरिद्वार से नजीबाबाद के बीच भी सड़क फोर और सिक्स लेन की बन रही है। इससे देहरादून से कोटद्वार के बीच का फासला भी काफी घट जाएगा।

आज भी दोपहर एक बजे मैं रिस्पना पुल पर पहुंच गया था। वहां से रूम तक पहुंचने में लगभग 45 मिनट लगे। मैं घर से रोटी लेकर चला था, लेकिन खाने की इच्छा नहीं हुई। सो, चार केले खाए और चल पडा़ आफिस की ओर। इससे रात को आफिस से लौटने के बाद रोटी बनाने से भी निजात मिल गई। आफिस पहुंचा तो एक वरिष्ठ साथी उस वक्त भोजन कर रहे थे। उनके जबरदस्ती करने पर मुझे एक रोटी और थोडा़ सा चावल लेने पडे़। फिर नींबू की चाय पी और जुट गया काम में। वैसे भी घर से आने के तुरंत बाद ठीक से काम में मन कहां लग पाता है, फिर भी मेरी कोशिश यही रहती है कि काम से जी न चुराया जाए। खैर! ड्यूटी तो ड्यूटी है, उसे निभाना ही पड़ता है और सच कहूं तो निभाना भी चाहिए। मेरा तो यही नजरिया है।

हां! इतना जरूर हुआ कि आज आफिस का काम समय से निपट गया, सो मैं भी साढे़ दस बजे रूम में पहुंच गया। भोजन बनाने की चिंता नहीं थी। रोटियां पास में थी ही, बस! चाय बनानी थी। अचार भी मैं घर से लेकर आया था और घी पहले से ही मेरे पास था। बाकी सब्जी बनाने का विकल्प था ही। लेकिन, मैंने घी के साथ खाना ही बेहतर समझा। जायका बदलने के लिए फिलहाल आंवले का मुरब्बा भी मेरे पास है। लेकिन, इससे पहले पानी भरना जरूरी था, क्योंकि बर्तनों में एक हफ्ता पुराना पानी था, जो कोटद्वार जाने से पहले भरा गया था। बहरहाल! सारे काम हो चुके हैं। अब क्यों न कुछ देर यू-ट्यूब पर कुछ अच्छे प्रोग्राम देख लिए जाएं। यह वैसे भी मेरा रुटीन वर्क है। ...तो आप भी आराम कीजिए, शुभ रात्रि!

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Doon returned after six days

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Dinesh Kukreti

Today, after spending six days, I reached Dehradun.  At half past nine in the morning, I left the house and at ten o'clock I got a taxi.  I almost came to sleep till Haridwar, but then I could not sleep till Dehradun.  Work is still going on on the highway, but due to the widening of the road, the problem of jam was definitely overcome.  There is also considerable saving of time.  The day on which the highway will be fully ready and the rail under pass and all flyovers will open, from that day the distance between Dehradun to Haridwar will be just 45 minutes.  I am going to benefit greatly from this, because the road between Haridwar to Najibabad is also being made of four and six lanes.  This will also significantly reduce the distance between Dehradun to Kotdwar.

Even today at one o'clock in the afternoon I reached the Respna Bridge.  From there it took about 45 minutes to reach the room.  I walked away from home with bread, but did not want to eat.  So, eat four bananas and walk towards the office.  This also helped in making bread after returning from office at night.  At the office, a senior colleague was eating at that time.  After forcing them, I had to get a roti and a little rice.  Then drank lemon tea and got ready for work.  Anyway, soon after coming home from where the mind is able to work properly, still my effort is not to steal life from work. Well!  Duty is duty, it has to be fulfilled and to be honest, it must be done.  This is my view.

Yes!  It happened so much that today the office work was settled on time, so I too reached the room at half past ten.  There was no worry about making food.  The loaves were nearby, that's all!  Tea was to be made.  I also brought pickle from home and ghee was already with me.  The rest was an option to make vegetables.  But, I thought it better to eat with ghee.  I also have gooseberry jam to change the flavor.  But, it was necessary to fill the water before that, because the pots contained a week old water, which was filled before going to Kotdwar.  However!  All the work is done.  Now why not watch some good programs on YouTube for a while.  This is my routine work anyway.  ... then you too relax, good night!

Thursday, 25 February 2021

23-02-2021 (Relaxing days at home)

घर में आराम के दिन

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दिनेश कुकरेती

लंबे समय से मेरा डेली रुटीन पूरी तरह गड़बडा़या हुआ था। इसलिए व्यवस्थित रूप से उसे लिख भी नहीं पाया। हालांकि, अब मैं अपने रुटीन को व्यवस्थित करने की कोशिश कर रहा हूं। असल में इस गड़बडी़ की मुख्य वजह आफिस का सिस्टम है, जिसमें मैं भी घिरा हुआ हूं। ऊपर से कोरोना काल ने इस सिस्टम को और भोंथरा बना दिया। इसलिए सोचा, क्यों न कुछ दिन की छुट्टी लेकर घर हो आऊं। गुरुवार सुबह साढे़ पांच बजे वाली उत्तराखंड परिवहन निगम की बस से मैं घर के लिए निकला। दरअसल, जब भी मुझे घर आना होता है, तो रात के चार घंटे जागकर ही गुजारता हूं, ताकि सुबह समय पर बस अड्डा पहुंचा जा सके। इस बार भी मैंने ऐसा ही किया।

रात ग्यारह बजे मैं आफिस से रूम में पहुंच गया था। भोजन करते-करते सवा बारह बज गए। इसके बाद मैं चादर ओढ़कर यू-ट्यूब में वीडियो देखने लगा। बीच- बीच में हल्की झपकियां भी आ रही थीं, लेकिन मैंने खुद पर नींद को हावी नहीं होने दिया। घडी़ ने जैसे ही सुबह के चार बजाए, मैंने बिस्तर त्याग दिया। नित्य क्रिया में 15-20 मिनट का समय लगा होगा। इसके बाद मैं तैयार होकर बैठ गया। जब पांच बजने में दस मिनट शेष थे, मैं बस अड्डे के लिए रवाना हुआ। मेरे रूम से मंडी तक की दूरी दो से सवा दो किमी के बीच होगी। इस दूरी को मैं हमेशा पैदल ही तय करता हूं। आराम से चलने में आधा घंटा लगता है।

जैसे ही मैं मंडी पहुंचा, वहां एक आटो सवारियों के इंतजार में खडा़ था। मैं सीधे उसमें जा बैठा और दस मिनट बाद मैं बस अड्डे में था। पांच बजकर 28 मिनट हुए थे कि कोटद्वार आने वाली बस अड्डे में पहुंच गई। सीट काफी खाली थीं, इसलिए पीछे नहीं बैठना पडा़। मेरी सबसे बडी़ मुश्किल यह है कि बस, टैक्सी या कार में बैठते ही नींद के झोंके आने लगते हैं। इस बार भी तीन-चार किमी के सफर के बाद मुझ पर नींद हावी हो गई। फिर हरिद्वार बस अड्डा पहुंचने के बाद ही चंद मिनट के लिए मेरी आंख खुली। इसके बाद बस कब कोटद्वार पहुंच गई, मुझे पता ही नहीं चला। बस अड्डे से घर पहुंचने में मुझे बामुश्किल 15 मिनट लगे होंगे। तब सुबह के साढे़ नौ बजे थे।

खैर! फिलहाल सुकून की नींद आ रही है। पांच-छह दिन आराम में कट जाएंगे। साथ ही थोडा़-बहुत घर के काम भी हो जाएंगे। फिर रुटीन में बदलाव से जीवन में ताजगी का एहसास तो होता ही है। इसके बाद तो रूम से आफिस और आफिस से रूम। पता ही नहीं चलता कि वक्त कब गुजर गया। पराये शहर में और कोई विकल्प भी तो नहीं है। शहर में खामखां घूमना भी मुझे रास नहीं आता। समय और पैसा, दोनों की ही बरबादी होती है और हाथ भी कुछ नहीं लगता। आज इतना ही...बाकी बातें देहरादून पहुंचकर...।

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Relaxing days at home

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Dinesh Kukreti

For a long time my daily routine was completely messed up.  Therefore, he could not even write it systematically.  However, now I am trying to organize my routine.  Actually, the main reason for this mess is the office system in which I am also surrounded.  The corona period from above made this system more imperceptible.  So thought why should I come home after taking a few days off.  On Thursday morning, I left for home by the bus of Uttarakhand Transport Corporation at half past five.  Actually, whenever I have to come home, I stay awake for four hours of the night so that the bus station can be reached in the morning.  I did the same this time.

I reached the room from the office at eleven o'clock.  It was a quarter past twelve while eating food.  After this, I started watching the video in YouTube by covering the sheet.  There were light naps in between, but I did not let myself dominate my sleep.  As the clock struck four in the morning, I left the bed.  The routine should have taken 15-20 minutes.  After this I got ready and sat down.  When ten minutes were past five, I left for the bus station.  The distance from my room to Mandi will be between two and a quarter to two km.  I always cover this distance on foot.  It takes half an hour to walk comfortably.

As soon as I reached Mandi, there was an auto waiting for the passengers.  I sat straight into it and ten minutes later I was in the bus station.  It was five past 28 minutes that the bus coming to Kotdwar reached the base.  The seats were quite empty, so no one had to sit back.  My biggest difficulty is that as soon as I sit in the bus, taxi or car, I start feeling sleepy.  This time too, after a journey of three to four km, sleep prevailed over me.  Then after reaching Haridwar bus stand my eyes opened for a few minutes.  After this, when the bus reached Kotdwar, I did not know.  It would have hardly taken me 15 minutes to reach home from the bus station.  It was half past nine in the morning.

Well!  At the moment, I am feeling sleepy.  Five-six days will be spent in rest.  Along with this, some household chores will also be done.  Then a change in routine makes one feel fresh in life.  After this, office to room and office to room.  I do not know when the time has passed.  There is no other option in a foreign city.  I do not like to visit Khamkhan in the city.  Both time and money are wasted and nothing is felt.  Today only this much ... other things reach Dehradun ...

Sunday, 14 February 2021

26-01-2021 (Then the banks of the Yamuna)

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फिर यमुना तीरे

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दिनेश कुकरेती

...लो गणतंत्र दिवस भी बीत गया। इस वक्त मैं अपने रूम में आराम फरमा रहा हूं। अभी रात के दस बजे हैं। नौ बजे के आसपास मैं रूम में पहुंच गया था। काफी लंबा सफर किया आज, हिमाचल प्रदेश के बार्डर तक। विश्रामगृह के आंगन में धूप सेंकते हुए सुबह (बल्कि दोपहर कहना ज्यादा प्रासंगिक होगा) अचानक प्लान बना कि विकासनगर की ओर चलते हैं। कहां तक जाना है, इसकी कोई रूपरेखा तक हमारे पास नहीं थी।

असल में रात को देर से सोने के कारण सुबह नींद भी देर से खुली। मैं खुद नौ बजे उठा। इसके बाद नहा-धोकर मैं, विजय और सुमन विश्रामगृह के आंगन में टहलने हुए धूप सेंकने लगे। तभी केयर टेकर की नजर हम पर पडी़ तो वह तीन चेयर ले आया। कुछ देर बाद वह चाय लेकर भी पहुंच गया। विजय ने बताया कि उसके साथ आए बाकी सभी लोग सुबह ही वापस लौट चुके हैं। इसलिए अब हम तीन ही लोग वहां थे। चाय की चुस्कियों के साथ मन में विचार आया कि क्यों न रात के बचे चावल व चिकन को मिलाकर नाश्ते के लिए बिरयानी तैयार की जाए।
















दस-पंद्रह मिनट में हम नाश्ते की टेबल पर थे। हालांकि, भरपेट नाश्ता नहीं हो पाया, लेकिन अब निश्चंतता थी। बारह बजे के आसपास हमने विश्रामगृह छोड़ दिया और चल पडे़ विकासनगर की ओर। सेलाकुई पहुंचने पर दो किलो कीनू लिए और आगे बढ़ गए। हरबर्टपुर चौराह से सीधे चलते के बजाय हमने डाकपत्थर की ओर जाना बेहतर समझा।तकरीबन पौन घंटे में हम डाकपत्थर में यमुना बैराज पर थे। ये भी संयोग ही था कि स्वतंत्रता दिवस का  दिन भी हमने यमुना के सानिध्य में बिताया था और आज भी यमुना का खूबसूरत किनारा हमारा इंतजार कर रहा था।
















बैराज पार कर हमने कार वहीं साइड में रोकी और कुछ देर हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले की हरियाली से लकदक पहाडि़यों को निहारते रहे। यमुना पर बनी झील में देशी-विदेशी परिंदों का कलरव मन को आल्हादित कर रहा था। कुछ देर टहलने के बाद हमने पास ही मौजूद एक दुकान से कुछ खाने की वस्तुएं खरीदी और चल पडे़ यमुना के तट की ओर। तकरीबन तीन घंटे हमने यमुना और यमुना के आसपास प्रकृति के सौंदर्य को निहारते हुए गुजारे। फिर बैराज के आसपास नमभूमि में डेरा डाले प्रवासी परिंदों की छवि उतारते हुए वापसी की राह पकड़ ली। मेरी बाइक  पटेलनगर आफिस में खडी़ थी, लेकिन सुमन कार को मेरे रूम के रास्ते से ले आया। इसलिए मैंने रूम के पास उतरना ही बेहतर समझा। कल पैदल ही आफिस चला जाऊंगा, इसी बहाने थोडा़ व्यायाम भी हो जाएगा।

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Then the banks of the Yamuna

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Dinesh Kukreti

Republic day also passed.  Right now I am resting in my room.  It is ten o'clock at night.  I reached the room around nine o'clock.  Today traveled a long way to the border of Himachal Pradesh.  Soaking in the sun in the courtyard of the rest house, in the morning (it would be more relevant to say afternoon), suddenly made a plan that we go towards Vikasnagar.  We did not even have any outline of where to go.

In fact, due to sleeping late at night, the morning sleep also opened late.  I got up at nine myself.  After this, after bathing, I, Vijay and Suman took a walk in the sun in the courtyard of the rest house.  Then the caretaker caught sight of us and he brought three chairs.  After some time he also reached for tea.  Vijay told that all the other people who had come with him had returned only in the morning.  So now only three of us were there.  With tea sips came the idea in mind why not mix the leftover rice and chicken of the night and prepare biryani for breakfast.

We were at the breakfast table in ten-fifteen minutes.  However, there was no breakfast, but now there was certainty.  Around twelve o'clock we left the rest house and walked towards Vikasnagar.  On reaching Selakui took two kilos of kinu and proceeded.  Instead of walking directly from Herbertpur intersection we thought it better to go towards Dakpathar. At about quarter of an hour we were at Yamuna barrage in Dakpathar.  It was also a coincidence that we had spent the day of Independence day in the vicinity of Yamuna and even today the beautiful bank of Yamuna was waiting for us.

After crossing the barrage, we stopped the car on the same side and for some time kept staring at the wooded hills from the greenery of Sirmour district of Himachal Pradesh.  The tweet of indigenous and foreign birds in the lake on Yamuna was pleasing to the mind.  After walking for a while, we bought some food items from a shop nearby and walked towards the bank of Yamuna.  We spent almost three hours around the Yamuna and Yamuna staring at the beauty of nature.  Then, taking the image of migrant birds camping in the Nambhoomi around the barrage, they took the path of return.  My bike was parked in the Patel Nagar office, but Suman brought the car from the path of my room.  So I thought it better to get near the room.  Tomorrow I will go to office on foot, I will be exercising a little on this pretext.

Saturday, 13 February 2021

25-01-2021 (Jhajra Rest House Party)

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झाझरा विश्रामगृह की दावत

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दिनेश कुकरेती

रात के बारह बज चुके हैं, लेकिन खाना अभी तैयार नहीं हुआ। होता भी कैसे, बनाना ही साढे़ ग्यारह बजे शुरू किया। हम (मैं और सुमन सेमवाल) इस समय देहरादून शहर से लगभग 12 किमी दूर वन विभाग के झाझरा स्थित विश्राम गृह में हैं। दस बजे के आसपास हम यहां पहुंचे। उम्मीद थी कि साथी विजय जोशी अपने ममेरे भाई के साथ हमसे पहले विश्रामगृह पहुंचकर भोजन बनाने की तैयारी में जुट गए होंगे, लेकिन वो तो तब तक रास्ते में ही थे। सुमन से पता चला कि मसूरी से डाकपत्थर होते हुए झाझरा पहुंच रहे हैं। वीकली आफ होने के कारण देहरादून से वो सुबह ही मसूरी की ओर निकल पडे़ थे।

रात नौ बजे के आसपास हम आफिस से झाझरा के लिए निकले। सोचा कल गणतंत्र दिवस का जश्न भीड़भाड़ से दूर एकांत में मनाएंगे, इसलिए रात को ही निकलना बेहतर समझा। अभी हमने सौ मीटर का फासला ही तय किया होगा कि विजय का फोन आ गया। बोला, "चिकन लेते हुए आना, यहां रास्ते में कहीं नहीं मिल रहा।" पटेल नगर में आफिस से थोडा़ दूर ही चिकन शाप है, सो हम कार खडी़ कर पैदल ही चिकन लेने पहुंचे। सुमन ने साढे़ तीन किलो चिकन पैक कराया और फिर पकड़ ली सीधे गंतव्य की राह। हमें लग रहा था कि विजय विश्रामगृह में पहुंच चुका है। यह भ्रम हमें तब हुआ, जब झाझरा फारेस्ट कैंपस में पहुंचकर हमने विजय से विश्रामगृह का रास्ता पूछा। वो जिस अंदाज में हमें गाइड कर रहा था, उससे कोई भी उसके विश्रामगृह में होने का अनुमान लगाता।

खैर! जब हम विश्रामगृह पहुंचे, तो वहां सन्नाटा पसरा हुआ था। केयर टेकर ने हमारे रूम दिखाए और फिर किचन का ताला खोला। साथ ही हमारे कुछ पूछने से पहले ही अपनी पट्टी बंधी अंगुली दिखाते हुए बोला, "सर! मैं खाना नहीं बना पाऊंगा।" हमने कहा, "कोई बात नहीं, आप सामान दिखा दो, हम खुद निकालकर बना लेंगे।" इस पर केयर टेकर का कहना था कि "सिवाय नमक, मिर्च व गर्म मसाले के यहां कुछ नहीं है।" वह तो गनीमत रही कि तब तक विजय झाझरा नहीं पहुंचा था, अन्यथा हम मुश्किल में पड़ गए होते। हमने फोन पर विजय को तेल, चावल, टमाटर, प्याज, लहसुन, आदरक, हरी मिर्च आदि भी ले आने को कह दिया। साथ ही खुद चिकन को साफ करने में जुट गए। तकरीबान आधा घंटे बाद विजय भी दल-बल के साथ विश्रामगृह पहुंच गया। कुल सात लोग उसके साथ थे।वातावरण में ठंड भी काफी बढ़ चुकी थी। 

खैर! अब सामान हमारे पास था, इसलिए पूरी तल्लीनता से भोजन बनाने में जुट गए। फटाफट एक चूल्हे में चिकन चढा़या और एक में चावल। इसके अलावा एक बडी़ प्लेट में सलाद भी काटे जा चुके थे। कुछ साथियों के लिए अलग से इंतजाम था, इसलिए सलाद के बगैर गुजर कहां होने वाली थी।

अब आगे का किस्सा...। खाना बनकर तैयार हो चुका है। लेकिन, भाई लोगों के अभी गिलास खाली नहीं हुए। मुझमें उन जैसा धैर्य नहीं है, इसलिए मैंने तो चुपचाप थाली लागाई और भोजन कर लिया। रात के तीन बज चुके हैं। सोना जरूरी है, तभी सुबह नौ-दस बजे तक नींद खुल पाएगी। भाई लोग तो सो लेंगे आराम से। मुझे तो जोरदार नींद आ रही है। अच्छा! सुबह मिलते हैं। शुभ रात्रि!!!

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Jhajra Rest House Party

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Dinesh Kukreti

It is twelve o'clock at night, but the food is not ready yet.  Whatever happens, the making started at half past eleven.  We (me and Suman Semwal) are currently in the rest house at Jhajhra, Forest Department, about 12 km from the city of Dehradun.  We arrived here around ten o'clock.  It was expected that fellow Vijay Joshi along with his cousin would reach the rest house before us and get ready to prepare food, but he was still on the way.  Suman came to know that he is reaching Jhajra via Mussoorie by post stone.  Due to the weekly off, he had left from Dehradun towards Mussoorie in the morning.

Around 9 o'clock in the night, we left the office for Jhajra.  Thought tomorrow would celebrate Republic Day in a secluded place away from the crowds, so it was better to leave at night.  Now we have decided the distance of hundred meters that Vijay's call has come.  Said, "Come with the chicken, I can't find it anywhere on the way."  There is a chicken shop just a short distance away from the office in Patel Nagar, so we drove to the car and came to pick up the chicken on foot.  Suman packed three and a half kilos of chicken and then caught the path of direct destination.  We felt that Vijay had reached the rest house.  This confusion occurred to us when we reached the Jhajhra Forest Campus and asked Vijay the way to the rest house.  The way he was guiding us, no one would have guessed that he was in his rest house.

Well!  When we reached the rest house, there was silence.  The caretaker showed us our rooms and then opened the kitchen lock.  Also, before we asked anything, showing his bandaged finger, he said, "Sir, I will not be able to cook."  We said, "Never mind, you show the stuff, we will make it out ourselves."  On this, Care Taker said that "There is nothing except salt, chilli and hot spices".  It was a privilege that Vijay had not reached Jhajhara by then, otherwise we would have been in trouble.  We told Vijay to bring oil, rice, tomatoes, onions, garlic, ginger, green chillies etc. on the phone as well.  Simultaneously started cleaning the chicken.  After about half an hour, Vijay too reached the rest house with a team force.  A total of seven people were with him. The cold had also increased significantly in the atmosphere.  

Well!  Now we had the goods, so we started making food with utmost vigor.  Instantly serve chicken in a stove and rice in one.  Apart from this, salads were also cut in a big plate.  There was a separate arrangement for some companions, so where was going to pass without salad.

Now the story ahead….  The food is ready.  However, the brothers have not emptied the glasses yet.  I do not have patience like them, so I quietly put a plate and ate it.  It's three o'clock in the night  It is necessary to sleep, then sleep will be open till 9-10 AM.  Brother people will sleep comfortably.  I am feeling very sleepy.  good!  See you in the morning  good night!!!

Wednesday, 10 February 2021

14-01-2021 (Memorable day of Makar Sankranti coverage)

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मकर संक्रांति कवरेज का यादगार दिन
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दिनेश कुकरेती

कर संक्रांति का स्नान संपन्न हो चुका है और हम भी (मैं और छायाकार साथी राजेश बड़थ्वाल) हरिद्वार से देहरादून वापस लौट चुके हैं। जबकि, अभी रात के दस भी नहीं बजे। भोजन हमने रायवाला में कर दिया था। वहां एक मित्र का होटल है। उसने लौटते हुए रायवाला में रुकने का कहा था। हालांकि, जब हम हरिद्वार से लौट रहे थे तो वो ऋषिकेश से हरिद्वार की ओर आ रहा था। हमने फोन कर उसे बताया कि शांतिकुंज के पास पहुंचने वाले हैं तो वह भी आधे रास्ते से रायवाला की ओर लौट पड़ा। तकरीबन एक घंटा हम रायवाला में रुके। 2010 के कुंभ में भी हम कई बार भोजन करने इसी मित्र के होटल में आ जाते थे।

खैर! मित्र के साथ दावत उडा़ने के बीते दौर के कई किस्से हैं, जिन पर आगे कभी चर्चा करूंगा। फिलहाल तो आज की बात की जाए। स्नानों की कवरेज का हमें लंबा अनुभव है, इसलिए आज भी हम तड़के चार बजे उठ गए थे। फ्रैश होकर सीधे ई-रिक्शा पकडा़ और चल पडे़ हरकी पैडी़ की ओर। जैसे-जैसे हम हरकी पैडी़ की ओर बढ़ रहे थे, ठंड बढ़ती जा रही थी। गंगा की लहरों से उठती शीतलहर तन में सिहरन दौडा़ रही थी। हम रिक्शे से उतरकर सीधे हरकी पैडी़ नहीं गए, बल्कि पहले एक छायाकार मित्र के घर जाने की ठानी। इस मित्र का घर हरकी पैडी़ से लगभग दो किमी पहले गंगनहर के पास एक गली में है। उसे भी हरकी पैडी़ जाना था, इसलिए बीती शाम उसने घर में आने को कह दिया था।

जब हम छायाकर मित्र के घर पहुंचे, तब वह तैयार हो रहा था। उसने हमें नसीहत दी कि कुछ खाकर ही हरकी पैडी़ जाना चाहिए और कुछ बादाम व काले किशमिश खाने को दिए। फिर हम उसी कि बाइक पर चल पडे़ हरकी पैडी़ की ओर। गंगा मैया की जै-जैकार से वातावरण गूंज रहा था। ठंड इतनी ज्यादा थी कि कहीं पर ठहरते ही पैर खुद-ब-खुद कीर्तन करने लगते। धुंध के कारण दो मीटर के फासले पर आदमी पहचान में नहीं आ रहा था। खैर! हमें तो कुछ घंटे यहीं गुजारने थे। इसलिए एक छोर से दूसरे छोर की परिक्रमा करने लगे। बीच में एक छोटी-सी दुकान पर बिस्कुट के साथ चाय की चुस्कियां भी ली और फिर मालवीय द्वीप की ओर चल पडे़।

तकरीबन सवा दस बजे तक हम हरकी पैडी़ पर रहे और फिर छायाकार मित्र हमें अपनी बाइक पर डामकोठी पुल के पास छोड़ आए। वहां भी किसी कार्यक्रम की कवरेज करनी थी। पौने ग्यारह बजे हम होटल वापस पहुंचे और तकरीबन आधे घंटे बाद हमने होटल छोड़ दिया। इतना वक्त स्नान आदि में लगना ही था। यहां से हम सीधे नाश्ता करने पहुंचे और फिर आफिस पहुंचकृर जुट गए खबर लिखने-फोटो बनाने में। इसके चलते दोपहर का भोजन चार बजे के आसपास हो पाया। एकाध घंटे बाद मोमो का भी जायका लिया। सचमुच हरिद्वार के इन मोमो का जवाब नहीं। संभवतः ये सिर्फ हरिद्वार में ही बनते हैं। बहरहाल! छह बज चुके थे। काम भी पूरा हो गया था। सो, अब देहरादून की राह पकड़ने में ही बेहतरी थी...।

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Memorable day of Makar Sankranti coverage

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Dinesh Kukreti

The shower of Makar Sankranti is over and we too (myself and cinematographer partner Rajesh Bartwal) have returned from Haridwar to Dehradun.  Whereas, it is not even ten o'clock at night.  We had food in Raiwala.  There is a friend's hotel.  He asked to stay back at Raiwala.  However, when we were returning from Haridwar, it was coming from Rishikesh towards Haridwar.  We called him and told him that he was about to reach Shantikunj, so he also returned halfway to Raiwala.  We stayed in Raiwala for about an hour.  Even in 2010 Kumbh, we used to come to this friend's hotel to have food many times.

Well!  There are many stories from the last round of partying with friends, which I will discuss further.  At present, it is to be talked about today.  We have a long experience of bathing coverage, so today we were up at four in the morning.  Freshened and caught the e-rickshaw directly and walked towards his paddy.  As we were moving towards her paddy, the cold was increasing.  The cold wave rising from the waves of the Ganges was shuddering in the body.  We did not get straight from the rickshaw to the harkie padi, but decided to go to a cinematographer's house first.  This friend's house is in a street near Gangnahar, about two km before Harki Paddy.  He too had to go to his office, so last evening he asked to come into the house.

When we arrived at Shahadra Mitra's house, he was getting ready.  He advised us that every meal should be eaten and given some almonds and black raisins.  Then we started walking on the bike on the same side.  The atmosphere was resonating with Ganga Maiya's Jai-Jaikar.  The cold was so much that the feet started doing kirtan on their own.  The man was not recognized at the distance of two meters due to the haze.  Well!  We had to spend a few hours here.  So they started circling from one end to the other.  In a small shop in the middle, we also took tea sips with biscuits and then walked towards Malviya Island.

We stayed at his paddi till about ten and a quarter past ten and then the cinematographer friend left us on his bike near the Damkothi bridge.  Coverage of an event was also there.  We arrived back at the hotel at quarter to eleven and after about half an hour we left the hotel.  This much time had to be spent in bathing etc.  From here, we went straight to breakfast and then reached the office to write news and make photos.  This led to lunch around 4 o'clock.  After a few hours I also took a taste of Momo.  Not really the answer to these momos from Haridwar.  Probably they are made only in Haridwar.  However!  It was six o'clock.  The work was also completed.  So, it was better to catch the path of Dehradun now….

Friday, 5 February 2021

13-01-2021 (For reporting in Haridwar)


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रिपोर्टिंग के लिए हरिद्वार में

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दिनेश कुकरेती

ज 13 जनवरी है और कल होने वाले मकर संक्रांति स्नान की रिपोर्टिंग के लिए मैं छायाकार साथी राजेश बड़थ्वाल के साथ हरिद्वार पहुंच चुका हूं। रात के ग्यारह बज चुके हैं। कुछ ही देर पहले हम भोजन करके होटल में लौटे हैं। भोजन करने हम दूसरे होटल में गए थे। असली  में सुबह दस बजे के आसपास हम यहां पहुंच गए थे। पौन घंटा लगा देहरादून से हरिद्वार पहुंचने में। वहां से ठीक नौ बजे चले थे। मैंनै राजेश से पटेल नगर आफिस में मिलने को कहा था। आफिस तक मैं अपनी बाइक से आया, जबकि वहां से हरिद्वार बड़थ्वाल जी की कार में।

हरिद्वार पहुंचने के बाद सबसे पहले हमने जमुना पैलेस स्थित एक होटल में चाय पी। हमारा आफिस इसी होटल के पास है। मैं देहरादून से भूखा ही चला था, इसलिए चाय के साथ एक ब्रेड पकोडा़ लेना बेहतर समझा। फिर कुछ देर आफिस में बैठकर मकर संक्रांति स्नान पर चर्चा की। दरअसल, परंपरा के अनुसार यह हरिद्वार कुंभ का पहला पर्व स्नान है, लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते सरकार इसे महज पर्व स्नान मानकर चल रही है। जबकि, पूर्व में सरकार ने मकर संक्रांति स्नान को भी कुंभ स्नान ही घोषित किया था।

बहरहाल! मेरे लिए यह स्नान पर्व खास मायने रखता है, क्योंकि इससे आगे की झलक भी दिख जाएगी और यह भी मालूम पड़ जाएगा कि कोरोनाकाल में कुंभ के आयोजन को लेकर सरकार किस हद तक गंभीर है। कहने का मतलब यह स्नान कुंभ की रिहर्सल भी है। हालांकि, अभी तक लग नहीं रहा है कि स्नान के लिए कल श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ने वाला है। होटल पूरी तरह खाली पडे़ हुए हैं। जबकि, वर्ष 2010 के कुंभ में अब तक हरिद्वार पूरी तरह कुंभनगर में तब्दील हो चुका था और मकर संक्रांति की पूर्व संध्या पर कहीं पांव रखने तक को जगह नहीं बची थी।

फिलहाल आज की किस्सागोई यहीं पर खत्म करने की इजाजत चाहता हूं। सुबह चार बजे हरकी पैडी़ पहुंचना है, ताकि स्नान की वस्तुस्थिति मालूम पड़ सके। यहां ठंड भी बहुत ज्यादा है, पर शायद ही ठीक से सोना हो पाए, क्योंकि सुबह जल्द उठने की हड़बडी़ लगी रहेगी। खैर! कोशिश तो करनी ही है। वैसे सच कहूं तो मुझे ठीक से नींद अपनी कुटिया में ही आती है, लेकिन ऐसा हमेशा संभव कहां हो पाता है।

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For reporting in Haridwar

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Dinesh Kukreti

Today is 13th January and I have reached Haridwar with cinematographer partner Rajesh Baratwal for reporting the Makar Sankranti bath to be held tomorrow.  It is eleven in the night.  We returned to the hotel shortly after having lunch.  We went to another hotel to have lunch.  We reached here in Asli around ten in the morning.  It took a quarter to reach Haridwar from Dehradun.  Went there at exactly nine o'clock.  I had asked Rajesh to meet him at the Patel Nagar office.  I came by my bike to the office, while from there in Haridwar Barthalwal ji's car.

After reaching Haridwar, we were the first to have tea at a hotel in Jamuna Palace.  Our office is near this hotel.  I had gone hungry from Dehradun, so it was better to have a bread pakoda with tea.  Then, while sitting in the office for some time, discussed the Makar Sankranti bath.  Actually, according to tradition, this is the first festival bath of Haridwar Kumbh, but due to Corona infection, the government is considering it as a mere festival bath.  Whereas, in the past the government also declared Makar Sankranti Snan as Kumbh Snan.

However!  For me, this bath festival is important because it will give a glimpse of the future and it will also show to what extent the government is serious about the holding of Kumbh in the coronary period.  Saying this bath is also the rehearsal of Kumbh.  However, it is not yet known that there will be an influx of devotees for bathing tomorrow.  The hotels are completely empty.  Whereas, by the year 2010 Kumbh, Haridwar was completely transformed into Kumbhnagar and there was no space left on foot on the eve of Makar Sankranti.

At present, I want permission to finish today's story here.  Harki padi has to reach at four in the morning, so that the condition of the bath can be known.  It is also very cold here, but one can hardly sleep properly, because there will be a rush to get up early in the morning.  Well!  Have to try  By the way, I sleep properly in my hut, but where is it always possible.

Wednesday, 3 February 2021

01-01-2021 (Year of new expectations)

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 नई उम्मीदों का साल

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दिनेश कुकरेती

कोविड-19 की काली छाया के बीच हम नूतन वर्ष (2021) में प्रवेश कर चुके हैं। आज नए साल की पहली तारीख है। हालांकि, व्यवहार में सब-कुछ बीते वर्ष जैसा ही है, लेकिन उम्मीदें नई हैं। यह उम्मीदें ही इस वर्ष को बीते वर्ष से अलग बनाएंगी। आज उत्तरांचल प्रेस क्लब की नई कार्यकारिणी ने भी कार्यभार ग्रहण किया। क्लब की पत्रिका "गुलदस्ता" का संपादक होने के नाते मुझे भी इस संक्षिप्त आयोजन में शामिल होने का न्यौता मिला था। सो, मैं नियत समय पर क्लब पहुंच गया। नई के साथ निवर्तमान कार्यकारिणी भी लगभग पूरी मौजूद थी। नई की ओर से पुरानी और पुरानी की ओर से नई कार्यकारिणी के सभी सदस्य एवं पदाधिकारियों को स्मृति चिह्न व यादगार के तौर पर पहाड़ के जैविक उत्पादों की किट भेंट की गई। फिर सभी ने सहभोज में हिस्सा लिया।

कोरोना काल के बावजूद उत्तरांचल प्रेस क्लब के 26-27 साल के इतिहास में निवर्तमान कार्यकारिणी का कार्यकाल सबसे शानदार रहा। ऐसा मेरा ही नहीं, लगभग सभी सदस्यों का मानना है। संसाधनों के घोर अभाव और तमाम चुनौतियों के बीच इस कार्यकारिणी द्वारा अर्जित उपलब्धियों की बराबरी करना नई कार्यकारिणी के लिए पहाड़ लांघने जैसा होगा। क्योंकि, ऐसा दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर ही किया जा सकता है और दृढ़ इच्छाशक्ति छोटे-छोटे स्वार्थों को दरकिनार करने पर ही आती है। सच कहूं तो मैं भी सालभर क्लब की गतिविधियों में इसीलिए सक्रिय रह पाया। उम्मीद करता हूं कि नई कार्यकारिणी भी स्थापित आदर्शों को कायम रखेगी।

बहरहाल! दोपहर ढाई बजे के आसपास क्लब से आफिस लौटना हुआ। अब मैं बिल्कुल निश्चिन्त हूं।क्लब के कार्यों को लेकर कोई तनाव नहीं है। पर, इसका मतलब यह कतई नहीं कि जिम्मेदारियों से पार पा लिया है। यह तो जीवन है, जिसमें जिम्मेदारियां भी साथ-साथ चलती हैं। हां! उन्हें निभाने के तौर-तरीके जरूर बदल जाते हैं। जैसे अब हरिद्वार कुंभ की रिपोर्टिंग के लिए जाना है। परंपरा के अनुसार हरिद्वार कुंभ वैसे तो मकर संक्रांति के पर्व स्नान से ही शुरू हो जाता है, लेकिन कोरोना के चलते इस बार सरकार ने इस बारे में कोई अधिकृत घोषणा नहीं की है।

सरकार 27 फरवरी को होने वाले माघी पूर्णिमा के स्नान से कुंभ की शुरुआत मान रही है। ऐसे में 14 जनवरी का मकर संक्रांति स्नान सामान्य ही रहने वाला है। फिर भी मेरी ड्यूटी तो 14 जनवरी से ही शुरू हो जाएगी। हालांकि, स्नान संपन्न होने के बाद वापस लौट जाना होगा। खैर! ये सब बाद की बातें हैं। फिलहाल तो इतना ही...।-

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Year of new expectations

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Dinesh Kukreti

We have entered the new year (2021) amidst the specter of Kovid-19.  Today is the first date of the new year.  Although in practice everything is the same as in the past year, but expectations are new.  These expectations will make this year different from the previous year.  Today, the new executive of Uttaranchal Press Club also took charge.  As the editor of the club's magazine "Guldasta", I was also invited to attend this brief event.  So, I reached the club on time.  The outgoing executive was also almost completely present with the new.  On behalf of Nai, old and old members of the new executive were presented with kits of organic products of the mountain as souvenirs and memorabilia.  Then everyone participated in the banquet.

Despite the Corona period, the term of the outgoing executive was the most spectacular in the 26–27-year history of the Uttaranchal Press Club.  Not only me, almost all members believe this.  Amidst the acute scarcity of resources and all the challenges, it would be like leaping the mountain for the new executive to match the achievements made by this executive.  Because, it can be done only on the strength of strong will and strong will comes only by ignoring small interests.  To be honest, I was able to remain active in the club's activities throughout the year.  I hope that the new executive will also uphold the established ideals.

However!  Returning from the club to the office around 2:30 pm.  Now I am absolutely certain. There is no tension about the work of the club.  However, this does not mean overcoming responsibilities.  This is life, in which responsibilities also go hand in hand.  Yes!  The ways of fulfilling them definitely change.  Like now Haridwar Kumbh has to go for reporting.  According to tradition, Haridwar Kumbh starts from the festival of Makar Sankranti, but due to Corona, this time the government has not made any official announcement about it.

The government is assuming the beginning of Kumbh with the bathing of Maghi Purnima on 27 February.  In such a situation, the bathing of Makar Sankranti on January 14 is going to be normal.  Even then my duty will start from 14th January itself.  However, one must return after the bath is over.  Well!  These are all later things.  Right now this is so….

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13-11-2024 (खुशनुमा जलवायु के बीच सीढ़ियों पर बसा एक खूबसूरत पहाड़ी शहर)

खुशनुमा जलवायु के बीच सीढ़ियों पर बसा पहाड़ी शहर ------------------------------------------------ ------------- भागीरथी व भिलंगना नदी के संग...