Monday, 24 August 2020

17-08-2020 (Always been fond of reading and writing)

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हमेशा रहा पढ़ने-लिखने का शौक
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दिनेश कुकरेती
ता नहीं आपकी नजर में यह अच्छी आदत है या बुरी, पर मुझे पढ़ने-लिखने का शौक स्कूलिंग के दौर से ही रहा है। मेरे पास जब भी पैसे होते थे, उन्हें मैं किसी पत्र-पत्रिका को खरीदने पर ही खर्च करता था। जब खरीदने की हैसियत नहीं होती थी तो किराये पर ही उपन्यास ले आता था और फिर धीरे-धीरे पैसे चुकाता था। न जाने कितने उपन्यास, कहानी संग्रह और पत्रिकाएं मैंने किराये पर ही पढी़ं। यह आदत अब भी है। पत्नी ने एक बार शर्ट लाने के लिए आठ सौ रुपये दिए, तो मैं उनसे बैग भरकर अपनी पसंद की किताबें ले आया। पहले तो वो नाराज हुई, लेकिन फिर उसकी समझ में भी आ गया कि यह कोई बुरा शौक नहीं है। हां! इतना जरूर हुआ कि उसने फिर मुझे कुछ खरीदने की जिम्मेदारी नहीं सौंपी। आज जब मैं कोई किताब खरीदकर लाता हूं तो वह काफी खुश होती है।


पढ़ने के शौक का एक फायदा यह भी हुआ कि लिखने में भी मेरा हाथ खुल गया। मैं कालेज के जमाने से ही पत्र-पत्रिकाओं में लिखने लगा था। इससे पहचान बनी तो लेखन मेरा जुनून बन गया और मैं पत्रकार। इस लेखन की बदौलत ही कोरोना काल में भी मेरा धैर्य बरकरार रहा। इन दिनों मैं प्रेस क्लब की त्रैमासिक पत्रिका "गुलदस्ता" के संपादन में जुटा हुआ हूं। तीन-चार दिन पूर्व साथियों के साथ योजना बनी कि जब मैटर पूरा आ जाए तो मुझे प्रेस क्लब जाकर उसे पत्रिका में व्यवस्थित करना है। ताकि जल्द से जल्द उसे छपने के लिए प्रेस में भेजा जा सके। मैं इसके लिए खुशी-खुशी तैयार हो गया। मनपसंद कार्य में मैं कभी किंतु-परंतु नहीं करता। इसके अलावा मुझे भी पत्रिका के लिए लीड स्टोरी लिखने कि जिम्मेदारी सौंपी गई है। आफिस में काम से थोडा़ फुसर्त मिलने पर मैं यह कार्य पूरा भी कर चुका हूं।


इसके अलावा एक कहानी और कुछ कविताएं भी लिखी हैं, जिन्हें लोगों के बीच लाने का यह अच्छा मौका है। कोरोना काल होने के कारण पत्रिका की थीम भी कोरोना पर रखी गई है। इसलिए पत्रिका में छपने वाली हर रचना के केंद्र में कोरोना से उपजी परिस्थितियां ही होनी चाहिएं। हालांकि, आफिस की व्यस्तताओं के चलते पत्रिका के कार्य पर भी असर पड़ रहा है, लेकिन यही तो जीवन की असली परीक्षा है कि हम चुनौतियों का मुकाबला कैसे करते हैं। इसलिए आजकल न दिन का पता चल रहा है, न रात का ही। कुछ-न-कुछ लिखने या अन्य साथियों की ओर से भेजी गई सामग्री के संपादन में रात के तीन बज जा रहे हैं।

 

दिक्‍कत यह है कि जल्दी सोने पर अपराध बोध-सा होने लगता है। इसलिए सोने से पहले मैं कुछ लिखता-पढ़ता जरूर हूं। यू-ट्यूब पर कुछ प्रसिद्ध साहित्यकारों का इंटरव्यू देखना, उन्हें सुनना भी मुझे बहुत अच्छा लगता है। इन दिनों मैं प्रसिद्ध उपन्यासकार अमीश त्रिपाठी की शिवत्रयी (शिवा ट्रायोलॉजी) सीरीज का पहला उपन्यास "मेलुहा के मृत्युंजय" पढ़ रहा हूं। आगे दो उपन्यास और हैं। खैर! उपन्यास पर बाकी चर्चा आगे करूंगा। इस समय रात के पौने तीन बज रहे हैं और आंखें भी भारी होने लगी हैं। इसलिए आज इतना ही...।
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Always been fond of reading and writing
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Dinesh Kukreti
I don't know whether this is good or bad habit, but I have been fond of reading and writing since schooling. Whenever I had money, I used to spend it on buying a magazine. When there was no status to buy, he used to bring novels on rent and then slowly paid the money. I do not know how many novels, story collections and magazines I have read on rent. This habit is still there. Once the wife gave eight hundred rupees to bring the shirt, I filled the bag with them and brought books of my choice. At first she was angry, but then she also understood that it is not a bad hobby. Yes! It happened so much that he again did not entrust me with the responsibility of buying anything. Today when I buy a book and bring it, she is very happy.

One benefit of the hobby of reading was that my hand in writing also opened up. I started writing in magazines and magazines since college. Writing became my passion and I became a journalist. Due to this writing, my patience remained intact even during the Corona period. These days I am involved in editing Press Club's quarterly magazine "Guldasta". Three or four days ago, it was planned with my colleagues that when the matter is complete, I have to go to the Press Club and organize it in a magazine. So that he can be sent to the press for printing as soon as possible. I happily agreed to this. I never do anything in my favorite work. Apart from this, I have also been entrusted with the responsibility of writing the lead story for the magazine. I have also completed this work after getting a small amount of time from work in the office.


Apart from this, a story and some poems have also been written, which is a good chance to bring it to the public. The theme of the magazine has also been placed on the corona, being the Corona era. Therefore, there should be conditions arising from the corona at the center of every composition printed in the magazine. Although the work of the magazine is also being affected due to the busyness of the office, but this is the real test of life how we meet the challenges. That is why neither day nor night is known. It is three o'clock in the night to write something or to edit the material sent by other colleagues.

The problem is that early on, there is a feeling of guilt on sleeping. So before sleeping I must read and write something. I also love to see interviews of some famous litterateurs on YouTube. These days I am reading the first novel of the famous novelist Amish Tripathi's Shivatrayi (Shiva Triology) series, "Mrityunjaya of Meluha". There are two more novels ahead. Well! I will discuss the rest of the novel further. At this time, it is three o'clock at night and the eyes are also getting heavier. That is why today.

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Friday, 21 August 2020

16-08-2020 (Life is the name of being happy)

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खुश रहने का नाम ही जीवन है
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दिनेश कुकरेती
फर भले ही मन को सुकून पहुंचाने वाला हो, लेकिन तन को तो थकान दे ही जाता है। स्वतंत्रता दिवस पर किए गए सफर से मैं भी थकान महसूस कर रहा हूं। हालांकि, नींद फिर भी सही वक्त पर ही खुल गई। सिर में भारीपन-सा महसूस हो रहा है, जो स्नान करने के बाद भी पूरी तरह नहीं गया। इसकी वजह कल का भारी भोजन भी हो सकता है। मैं अममून दाल-चावल, रोटी-सब्जी, दलिया, सिंवई और झंगोरे की कम मीठी खीर ही खाता हूं। चिकन-मटन से एलर्जी नहीं है, लेकिन यह मेरी जरूरत भी नहीं हैं। महीने-दो महीने में मिल जाए तो खुशी-खुशी खा लेता हूं, पर हल्के मसाले वाला। बीते आठ-दस साल से मैंने तीखे नमक-मिर्च वाले भोजन का सेवन बिल्कुल बंद कर दिया है।

कल थोडा़ यही गलती हो गई कि साथियों को यह बात नहीं बताई, इसलिए चिकन में मसाले थोडे़ तेज हो गए। ऊपर से भारी अलग। खैर! जो बीत गया, उससे तो सबक ही लिया जा सकता है। आगे से इसका ध्यान रखूंगा। हां! एक गड़बड़ जरूर हो गई कि कल हम हरबर्टपुर में साहित्यकार एवं बडे़ भाई हेमचंद्र सकलानी जी से नहीं मिले। मेरे तो वो बहुत करीब हैं और अजीज़ भी। फेसबुक पर यमुना के किनारे की फोटो अपलोड की तो आज सुबह-सुबह उनका फोन आ गया। काफी नाराज थे। कहने लगे हरबर्टपुर से होकर गुजरे और मुझे सूचना तक नहीं दी। क्या बिगड़ जाता, जो दस मिनट के लिए घर पर आकर एक कप चाय पी लेते तो। 

उनके एक कप चाय में कितना अपनत्व है, यह बात मैं ही जानता हूं। इसलिए कोई तर्कपूर्ण जवाब नहीं दे पाया। जबकि, सच यही है कि हरबर्टपुर से गुजरते हुए यह बात मेरे मन में भी आई थी कि क्यों न सकलानीजी को फोन पर अपने आने की सूचना दे दूं। लेकिन, फिर सोचा कि इस तरह भीड़ के साथ जाना उचित नहीं है। खासकर कोरोना काल में तो कतई नहीं। पर, भावनाएं इन बंधनों को कहां मानती हैं। सोच रहा हूं, अगली बार ऐसी गलती नहीं दोहराऊंगा।

खैर! जीवन में यह सब उतार-चढा़व तो आते रहते हैं। आपका मन साफ है तो इनसे तनाव लेने की जरूरत नहीं। मैंने भी यही किया और दोपहर बाद आफिस चला आया। आफिस के अपने तनाव हैं और मजा भी। पर, जीवन के संचालन को दोनों ही जरूरी हैं। बस! इन्हें मन पर बोझ की तरह न लें। मैं तो यही करता हूं। उचित लगे तो आप भी ऐसा ही कीजिएगा।
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Life is the name of being happy
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Dinesh Kukreti
The journey may be relaxing the mind, but the body gets tired. I am also feeling tired from the journey done on Independence Day. However, sleep still opened at the right time. There is a feeling of heaviness in the head, which did not go completely even after taking bath. It may also be due to the heavy food of tomorrow. I only eat less sweet kheer of ammon dal-rice, roti-sabzi, oatmeal, sindai and jangore. I am not allergic to chicken-mutton, but these are not my needs either. If I get it in a month or two, then I eat it happily, but with mild spices. For the past eight-ten years, I have completely stopped eating spicy salt-chili food.

Yesterday, a little mistake was made that the colleagues did not tell this thing, so the spices in the chicken got a little faster. Heavily separated from above. Well! What has passed can only be learned from that. I will take care of it from now on. Yes! There was a mess that yesterday, we did not meet the writer and elder brother Hemachandra Saklani in Herbertpur. He is very close to me and Aziz too. Uploaded a photo of the banks of the Yamuna on Facebook, then this morning his phone arrived. Was quite angry. They started saying that she passed through Herbertpur and did not even inform me. What would have deteriorated, who would have come home for ten minutes and drank a cup of tea. I only know how much affinity there is in a cup of tea. 

Therefore, no one could give a logical answer. Whereas, the truth is that while passing through Herbertpur, it also came in my mind that why not inform Sakalaniji about my arrival on the phone. But, then thought that it is not appropriate to go with the crowd like this. Especially not in the Corona era. But, where do emotions follow these bonds? Thinking, I will not repeat such mistake next time.

Well! All these ups and downs come in life. There is no need to take stress from them if your mind is clean. I did the same and came to the office in the afternoon. The office has its own stress and fun too. But, both are essential to the operation of life. Bus! Do not take them as a burden on the mind. This is what I do. If appropriate, you will also do the same.
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15-08-2020 (The bank of the Yamuna)

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वो यमुना का किनारा

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दिनेश कुकरेती
ज स्वतंत्रता दिवस है। प्रेस क्लब पहुंचने की जल्दी है, देर से जागने के बावजूद। जल्दी-जल्दी स्नान-ध्यान कर मैं तैयार हुआ और फिर बाइक से प्रेस क्लब की राह पकड़ ली। हालांकि अभी नौ बजने में पांच मिनट बाकी थे। अचानक कुछ दूर जाकर ख्याल आया कि क्यों न बाइक को आफिस की पार्किंग में खडा़ कर आटो से निकला जाए। लेकिन, जब आटो का हाल देखा तो बाइक आफिस के गेट तक ले जाकर फिर प्रेस क्लब की तरफ मोड़ दी। कोई फिजिकल डिस्टेंसिंग नहीं, ठूंस-ठूंस कर सवारियां बिठा रहे हैं आटो वाले और उस पर किराया भी दोगुना। खैर! बामुश्किल 15 मिनट में मैं प्रेस क्लब पहुंच गया। ठीक साढे़ नौ बजे झंडारोहण हुआ, फिर नाश्ता और कुछ देर साथियों के साथ गपशप।
साढे़ दस बजे हमने विकासनगर की तरफ रुख किया। मुझे अभी भी पता नहीं कि हम जा कहां तक रहे हैं। जानकर करना भी क्या था, इसलिए मैंने  पूछने की जरूरत भी नहीं समझी। खैर! रास्तेभर दूनघाटी का सौंदर्य निहारते-निहारते हम हरबर्टपुर चौराहा पार कर गए। कुछ देर में देश के पहले कंजर्वेशन रिजर्व आसन वेटलैंड का मनमोहक नजारा दृष्टिगोचर होने लगा और फिर यमुना का किनारा। वहीं पास में यमुना तट पर है वन विभाग का विश्राम गृह। कितना एकांत और रमणीक स्थल है। बरसात का मौसम होने के बावजूद यमुना काफी दूर बह रही है। तकरीबन दो सौ मीटर। यमुना पार ठीक सामने हिमाचल प्रदेश का पावंटा साहिब नगर का नजारा भी मनमोहक है। 
तय कार्यक्रम के अनुसार हमारे एक साथी पहले ही गेस्ट हाउस पहुंच चुके थे, जो अंदर भोजन की तैयारियों में जुटे हैं। साथ में दो साथी विकासनगर के भी हैं। कुल मिलाकर हम आठ लोग हैं। लाकडाउन के बाद सब एक साथ पहली बार बैठ रहे हैं। वह भी शहर से दूर इस एकांत में। खाने में कड़कनाथ मुर्गा, यमुना की मछली के पकौडे़, मछली की करी, पनीर और दाल का इंतजाम है। पीने में हमें कोई इंट्रेस्ट नहीं। हालांकि, साथियों ने व्हिस्की भी रखी हुई है। बता रहे हैं बेहतरीन क्वालिटी की है। किसी की इच्छा होगी तो ले लेगा।

सभी ने पहले मछली के पकौडे़ और फ्राई कड़कनाथ का मजा लिया और निकल पडे़ पेडो़ं के झुरमुटों के बीच टहलने। कुछ ही दूरी पर आसन बैराज है। वहीं पास में आसन नदी का यमुना के साथ संगम होता है। यमुना यहां पूरी तरह स्वच्छ है। पानी भी बहुत है।  देखकर लगता ही नहीं कि दिल्ली में भी यही यमुना बहती है। बरगद की छांव में यही तुलना करते-करते मेरे दिमाग में कविता की कुछ पंक्तियां कौंधने लगीं, जिन्हें मैं आपकी भी नजर कर रहा हूं- 
 
यमुना तुम यूं ही बहती रहना,
एक दिन फिर हम लौटेंगे,
और निहारेंगे इसी बरगद की छांव से
तुम्हारा लहराता, बलखाता सौंदर्य
तुम्हारे जल का लेंगे आचमन
और तुम किसी चट्टान से टकराकर
गुजर जाना हमें स्पर्श करते हुए
भिगो देना हमारा तन-मन
पर, यमुना तुम यूं ही बहती रहना!।
 
काफी देर हो चुकी थी, सो हम फिर गेस्ट हाउस की ओर चल पडे़। छककर भोजन किया और फिर कुछ देर आराम। अब शाम होने को है, इसलिए सोचा क्यों न आसन वेटलैंड (नमभूमि) को भी करीब से निहार लिया जाए। अक्टूबर से यहां विदेशी परिंदे डेरा डालने लगने हैं और फिर उनकी तादाद हजारों में पहुंच जाती है। तब यहां सैलानियों और पक्षी प्रेमियों की भीड़ उमड़ पड़ती है। इस दौरान वेटलैंड में बोटिंग का अलग ही मजा है। मन कर रहा था रात यहीं रुक लिया जाए। लेकिन, दो-तीन साथी ऐसी हिम्मत नहीं जुटा पाए। कहने लगे पत्नी ने इजाजत नहीं दी है। हालांकि, हम तीन साथी रात को रुकने के मूड से ही निकले थे। खैर! उन तीनों के चक्कर में हमें भी लौटना पडा़। रात नौ बजे हम प्रेस क्लब में थे। मैंने भी बाइक उठाई और निकल पडा़ रूम की ओर। 

इन्‍हें भी पढ़ें : 

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The bank of the Yamuna
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Dinesh Kukreti
Today is Independence Day.  The Press Club is quick to arrive, despite waking up late.  I quickly got ready after taking a bath and meditating and then took the bike to the press club.  However, it was five minutes to nine.  Suddenly something went away and thought why not park the bike in the parking of the office and get out of the auto.  But, when I saw the condition of the auto, the bike was taken to the gate of the office and then turned towards the press club.  There is no physical distancing, the occupants are driving the passengers and the fares are also double.  Well!  In barely 15 minutes I reached the Press Club.  At half past nine, the flag hoisting took place, then breakfast and some late chat with friends.

At half past ten we turned towards Vikasnagar.  I still don't know where we have been.  Knowing what to do, so I did not even think to ask.  Well!  On the way, we crossed the Herbertpur intersection while staring at the beauty of Doon Ghati.  After some time, the country's first Conservation Reserve, Asan Wetland, has a fascinating view and then the bank of Yamuna.  There is a rest house of the forest department on the Yamuna coast nearby.  What a secluded and beautiful place.  Despite the rainy season, the Yamuna is flowing far away.  About 200 meters.  The view of Pavanta Sahib Nagar in Himachal Pradesh, right in front of Yamuna, is also beautiful.


As per the schedule, one of our companions had already reached the guest house, which is busy preparing food inside.  Together the two companions are also from Vikasnagar.  In total we are eight people.  Everyone is sitting together for the first time after the lockdown.  That too in this privacy away from the city.  Kadaknath cock, Yamuna fish dumplings, fish curry, paneer and lentils are available in the food.  We have no interest in drinking.  However, colleagues also keep whiskey.  They are saying that it is of excellent quality.  If someone wishes, he will take it.

Everyone first enjoyed the fish dumplings and fry kadaknath and strolled among the clumps of trees.  The posture barrage is just a short distance away.  At the same time, there is a confluence of the Asan River with the Yamuna nearby.  Yamuna is completely clean here.  There is also a lot of water.  It does not seem to see that this Yamuna flows in Delhi as well.  While doing this comparison in the shade of the banyan, some lines of poetry started flaring in my mind, which I am also looking at you.

Yamuna keep flowing like this,
One day we will return again
And will stare from this banyan shade
Your waving, blushing beauty
Will take your water away
And you hit a rock
Passing us by touch
Soaking our body
But, Yamuna you keep flowing like this!
 




























It was quite late, so we again walked towards the guest house.  Had a meal and then rested for a while.  It is now evening, so why not think that the wetland (Nambhoomi) can also be seen closely.  From October, foreign birds start camping here and then their number reaches thousands.  Then there is a crowd of tourists and bird lovers.  During this time, boating in Wetland is very different.  Wanted to stay here at night.  But, two or three companions could not muster such courage.  The wife started saying that she has not given permission.  However, the three of us fell out of the mood to stay the night.  Well!  We also had to return in the affair of those three.  We were in the press club at nine o'clock at night.  I also picked up the bike and walked towards the room.
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Friday, 14 August 2020

14-08-2020 (Planning of such a picnic)

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ऐसे बनी सैर-सपाटे की प्लानिंग
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दिनेश कुकरेती
होली-दीवाली के अलावा स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के पर्व मीडिया से जुडे़ लोगों के लिए खास मायने रखते हैं। खासकर 14 अगस्त और 25 जनवरी तो उनके लिए उल्लेखनीय दिन होते हैं। यह दोनों ही दिन उनके लिए अगले दिन की प्लानिंग करने के होते हैं। अपने-अपने ग्रुप तैयार करने के होते हैं। आज भी 14 अगस्त का दिन है। हम कुछ साथी पिछले कई दिनों से प्लानिंग कर रहे हैं कि 15 अगस्त का उल्लास शहर से दूर किसी एकांत स्थान पर मनाएंगे। कोरोना संक्रमण के चलते हममें से कोई भी पिछले पांच महीनों से कहीं बाहर नहीं गया है। आफिस से घर और घर से आफिस, यही हमारी दिनचर्या हो रखी है। जाहिर है ऐसे में आउटिंग पर जाने का मौका मिल जाए तो कहने ही क्या।

इन्‍हें भी पढ़ें : 

पहले हमारी प्लानिंग थी कि 14 अगस्त की रात ही निकल लेंगे। लेकिन, कुछ साथी इसके लिए तैयार नहीं थे। उनका कहना था कि 15 की सुबह निकलना ही बेहतर होगा।  इसलिए हमने भी रात निकलने का इरादा बदल दिया। तय हुआ कि 15 की सुबह साढे़ नौ बजे प्रेस क्लब मे झंडारोहण के बाद निकला जाएगा। लेकिन, जाएंगे सिर्फ पांच लोग। जबकि, छठा साथी अपने घर से सीधे आसन बैराज स्थित फारेस्ट गेस्ट हाउस पहुंच जाएगा। वहीं हमारे ठहरने की व्यवस्था है। विकासनगर के दो साथी वहां पहले से ही मौजूद रहेंगे। हालांकि, यह सब जानकारी सिर्फ दो ही लोगों को थी।


यह सब कार्यक्रम तय कर मैं रात पौने ग्यारह बजे जैसे ही आफिस से रूम की तरफ निकलने लगा, तभी एक साथी तेजी से मेरी तरह आया और बोला, "यार! वहां रात को रुकने का समर्थन मत करना। तू भी यही कहना कि रात को घर लौटना है।" उसकी बात रखने के लिए मैंने हां में हां मिलाई और आफिस से निकल लिया। हालांकि, मन में यही था कि जो भी हो रात को वापस नहीं लौटना। रूम में पहुंचते ही मैंने रात रुकने के लिए एक बैग में जरूरी सामान भी पैक कर दिया। आउटिंग का मजा ही तभी आता है, जब रात की दावत भी साथियों के साथ उडा़ई जाए। खैर! कल की कल है, देख जाएगा क्या होता है। फिलहाल तो सो जाता हूं, सुबह जल्दी उठकर झंडारोहण करने भी जाना है।
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Planning of such a picnic
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Dinesh Kukreti
Apart from Holi and Diwali, the festivals of Independence Day and Republic Day have special significance for the people associated with the media. Especially 14 August and 25 January are notable days for them. Both
these days are for them to plan for the next day. Consists of preparing their respective groups. Today is also the day of 14 August. We have been planning some companions for the past several days that the celebration of August 15 will be celebrated in a secluded place away from the city. None of us have gone out of the last five months due to corona infection. This is our daily routine from home to office and home to office. Obviously, if you get a chance to go outing then what to say.
Earlier our planning was that we will leave on the night of 14 August. But, some companions were not ready for this. He said that it would be better to leave in the morning of 15. So we also changed our intention to get out at night. It was decided that at 15:30 on the morning of 15, the press club would be released after the flag hoisting. But, only five people will go. Whereas, the sixth partner will directly reach the Forest Guest House at Asan Barrage from his house. There is a system of our stay. Two of Vikasnagar's companions will already be present there.
However, only two people had this information.Setting all this schedule, as soon as I got out of the office at eleven o'clock at night, a fellow came like me fast and said, "Dude! Don't support to stay there at night. You should also say that at night Return home. " In order to keep that point, I said yes and got out of the office.
However, the only thing in mind was not to return at night. On reaching the room, I also packed the essentials in a bag to stay the night. The joy of outing comes only when the night party is also flown with the companions. Well! Tomorrow is tomorrow, we will see what happens. For the moment, I go to sleep, have to get up early in the morning to go for flag hoisting.
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Thursday, 13 August 2020

13-08-2020 (Now he has also been recognized)

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अब तो उससे जान-पहचान भी हो गई है

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दिनेश कुकरेती

रात से ही बारिश हो रही है। कभी हल्की, कभी तेज। पर, मुझे तो आफिस जाने की चिंता है। इसलिए बारिश से बेखबर दैनिक कार्यों को तेजी से निपटा रहा हूं। हमेशा की तरह। कुछ दिनों से लगातार एक युवती का फोन आ रहा है। पता नहीं क्यों मेरा क्रेडिट कार्ड बनाने पर आमादा है। गलती मेरी ही है। पहले दिन ही इन्कार कर देता तो उसे की क्या पडी़ थी रोज-रोज फोन करने की। पर, आदत के अनुसार मैंनै कह दिया कि आज तो बिजी हूं, इसलिए डिटेल में बात नहीं हो पाएगी। एक-दिन बाद फोन करना। बस! वो दिन है और आज का दिन, वह लगातार फोन कर रही है।

मजा देखिए कि उससे अब अच्छी पहचान भी हो गई है। इसलिए फोन करती है तो सीधे प्वाइंट पर नहीं आती। इधर-उधर की बात करने लगती है। अपने बारे में बताती है और मेरे बारे में भी पूछती है। फिर जिद करके कहती है कि आपका क्रेडिट कार्ड तो मुझे हर हाल में बनाना है। जबकि, मैं घुमा-फिराकर उससे कई बार कह चुका हूं कि फिलहाल मुझे क्रेडिट कार्ड की जरूरत नहीं। पर, मुझे लगता है कि वह मुझे साफ्ट टारगेट मान चुकी है और उम्मीद करती है कि लपेट में ले ही लेगी। तभी तो जोर देकर कहती है कि मैं खुद ही आऊंगी आपके पास। देखिए! वो जीतती है कि मैं।

हां! इतना जरूर है कि उसके चक्कर में मैं आज अपनी उस खास दोस्त को जन्मदिन की बधाई देना भी भूल गया, जिससे 20 साल बाद कल ही बात हुई थी। वह तो भला हो फेसबुक का, जिसने समय रहते चेता दिया कि उसे विश भी करना है। सो, विलंब से ही सही, पर सबसे पहला काम मैंने यही किया। नहीं करता तो वो नाराज हो जाती। यह उसका अधिकार भी है। सच कहूं तो इस तरह के अधिकार का प्रयोग करने वाला जीवन में कोई तो होना ही चाहिए। अन्यथा जीवन नीरस-सा लगने लगता है।

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Now he has also been recognized

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Dinesh kukreti

It has been raining since night.  Sometimes light, sometimes fast.  But, I worry about going to office.  Therefore, I am increasingly dealing with daily tasks, oblivious to rain.  like always.  For some days, a young girl's phone has been coming continuously.  Don't know why I intend to make my credit card.  The mistake is mine.  If he refused on the first day, what did he have to do every day?  But, according to habit, I have said that I am busy today, so I will not be able to talk in detail.  Calling after one day.  Bus!  It is that day and today is the day, she is calling constantly.

Look at the fun that now he is also well recognized.  Therefore, if she calls, she does not come directly to the point.  Starts talking here and there.  Tells about herself and also asks about me.  Then stubbornly says that I have to make your credit card.  Whereas, I have repeatedly told him that I do not need a credit card at the moment.  But, I think she has accepted me as a soft target and hopes to wrap it up.  That's why she insists that I myself will come to you.  Look!  She wins that me.

Yes!  It is so important that I forgot to congratulate my special friend on his birthday today, which was talked about yesterday after 20 years.  That is good of Facebook, who warned in time that he has to wish.  So, right late, but this is the first thing I did.  If she does not, she would get angry.  It is also his right.  To be fair, there must be someone in the life who exercises such authority.  Otherwise life starts to look dull.

Wednesday, 12 August 2020

12-08-2020 (The mind gets lighter)

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मन हल्का हो गया

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दिनेश कुकरेती

ज मेरी नींद ठीक पौने दस बजे खुली। बीते दस सालों में ऐसा दूसरी बार हुआ, जब मैं इतनी देर तक सोया रहा। इससे दो बजे से पहले का पूरा शेड्यूल गड़बडा़ गया। यहां तक कि योग-प्राणायाम के एक घंटे में से भी मुझे कुछ कटौती करनी पडी़। मोबाइल चेक किया तो दस मिस कॉल लगी हुई थी। इनमें से दो-तीन को तो जवाब देना बेहद जरूरी था, अन्यथा वो नाराज हो जाते। इसी बीच एक कॉल और आ गई। अननोन कॉल थी, इसलिए पहले तो मन किया न उठाऊं, लेकिन फिर रिसीव कर ही ली।

मेरा फैसला बिल्कुल सही था। यह कॉल मेरी उस दोस्त की थी, जिससे पिछले 20 साल से न तो कभी बात हुई, न मुलाकात ही। हालांकि, भूला मैं उसे कभी नहीं और इतने लंबे अर्से के बाद फोन आने का मतलब तो यही हुआ कि वह भी मुझे नहीं भुला पाई। आपको मालूम ही है, किसी इतने करीबी का लंबे अर्से बाद फोन आए तो सबसे पहले शिकवे-शिकायतें ही होती हैं। सो, यहां भी मन को तसल्ली मिलने के बाद ही बातों का क्रम सामान्य हुआ।

 

गलती दोनों ने ही स्वीकारी कि इतने लंबे अर्से तक  हमने एक-दूसरे की सुध क्यों नहीं ली। लेकिन, लेते कैसे। एक-दूसरे के शहर में जाना नहीं हुआ और फोन नंबर न उसका मेरे पास था, न मेरा उसके पास। यहां तक तो ठीक था, पर जब उसने कहा कि वह मुझे बहुत चाहती थी, तो मेरे मन का गुबार भी फूटकर बाहर आ गया। मैं भी तो उससे बहुत प्यार करता था। अफसोस कि न वह मुझसे कह पाई, न मैं उससे ही। उसे तो इस बात का अब भी बहुत मलाल है और इसके लिए वह मुझे ही दोषी मानती है। 

कहने लगी, "तू अगर इशारा भी कर देता तो मैं तेरी हो जाती।" अब उसे कैसे समझाता कि इशारा तो कई बार किया, मगर वो ही समझ नहीं पाई। खैर! गिले-शिकवों के साथ उससे बहुत-सी बातें हुईं। खट्टी-मीठी यादें ताजा हुईं। भविष्य में एक-दूसरे से लगातार बातें करने का वादा हुआ। उसने मेरा नंबर सेव किया और मैंने उसका। 

सबसे खुशी की बात तो यह है कि मेरा मन हल्का हो गया। तन में ताजगी का अहसास होने लगा। जाहिर है दिन अच्छा गुजरना ही था। यकीन जानिए,  इस अच्छे दिन की यादें मेरे मन में गहरे तक समा गई हैं। किसी दिन इसी बहाने उसके साथ बिताए सुनहरे पलों को साझा करूंगा। फिलहाल आज इतना ही। वह ऑनलाइन है, क्यों न कुछ देर चैटिंग ही कर ली जाए।

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The mind gets lighter

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Dinesh Kukreti

Today I woke up at quarter to ten.  This was the second time in the last ten years, when I slept for so long.  This upset the entire schedule before 2 o'clock.  Even within an hour of yoga-pranayama, I had to cut something.  When I checked my mobile, there were ten missed calls.  It was very important to answer two-three of them, otherwise they would get angry.  Meanwhile, another call came.  There was an unknown call, so at first I should not make up my mind, but then I received it.

My decision was absolutely correct.  This call was from a friend of mine, from whom for the last 20 years there was neither talk nor meeting.  However, I never forgot her and after such a long time, the meaning of getting a call means that she too could not forget me.  You know, when phone calls from such a close are for a long time, first of all there are complaints and complaints.  So, here too, the order of things became normal only after the mind was satisfied.

Both of them accepted the mistake as to why we did not take care of each other for such a long time.  But, how do we take it.  I did not go to each other's city and I did not have his phone number with him, nor did he own me.  Even it was fine, but when she said that she loved me a lot, my heart was also burst out.  I loved him too.  Sadly neither she could say it to me nor I to her.  She is still very sorry about this and she blames me for this.

 

She started saying, "If you had made a gesture, I would have been yours."  Now how could she explain that she made the gesture many times, but she could not understand.  Well!  Many things happened to him with grievances.  Sour-sweet memories are refreshed.  The future promised to talk to each other constantly.  He saved my number and I took it.

The happiest thing is that my mind became lighter.  There was a feeling of freshness in the body.  Obviously the day had to pass well.  Trust me, the memories of this good day are deeply ingrained in my mind.  Someday I will share the golden moments spent with him on this excuse.  Right now, that's it.  It is online, why not get chatting for a while.

Tuesday, 11 August 2020

11-08-2020 (जल्दी उठो तो पढ़ने का वक्त मिल जाता है)

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जल्दी उठो तो पढ़ने का वक्त मिल जाता है

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दिनेश कुकरेती 
ज आंखें जल्दी खुल गईं, रात को देर से सोने के बाद भी। इसका एक नुकसान यह हुआ कि मेरी खिड़की के ठीक सामने वाले घर की बालकनी खाली नजर आई। क्योंकि, उसे भी बालकनी में देर से आने की आदत है और मुझे भी देर से उठने की। खैर! ये तो टाइमिंग का खेल है। कल थोडा़ देर से उठूंगा तो यकीनन नजर आ ही जाएगी। हालांकि, मैं देर से उठूं या जल्दी, रुटीन में कोई खास अंतर नहीं आता। इतना जरूर है कि जल्दी उठने पर थोडा़ वक्त पढ़ने के लिए मिल जाता है।

सो, थोडी़ देर पढ़ने के बाद स्नान-ध्यान का कार्यक्रम चला और फिर एक घंटे योग-प्राणायाम का। यह मेरी दिनचर्या का महत्वपूर्ण हिस्सा है और सच कहूं तो योग ही मुझे स्वस्थ रखता है। अब नाश्ते की बारी है। नाश्ता मेरा काफी हल्का होता है। दो-तीन रोटी का। कभी भुने हुए या कच्चे चनों से भी काम चल जाता है। इस बीच एक महिला मित्र का मैसेज आ गया। उसकी शिकायत है कि मैं कभी उसे मैसेज नहीं करता। उसकी खैर-खबर नहीं लेता। अब उसे कौन समझाए कि इसके लिए मैं नहीं, बल्कि जीवन के झमेले जिम्मेदार हैं। कहते हैं न, और भी गम हैं तेरे गम के सिवा दुनिया में। बहरहाल! थोडा़ हल्की-फुल्की मजाक के बाद वह इस शर्त पर मान गई कि मैं रोज मैसेज किया करूंगा।
दो बजे के आसपास मैं आफिस के लिए निकल जाता हूं, आज भी निकल गया। आपका सवाल हो सकता कि ये भला कौन-सा टाइम हुआ आफिस जाने का। क्या किया जाए मीडिया की नौकरी ही ऐसी है। हां! वर्तमान में कोरोना काल के चलते झमेले जरूर बढ़ गए। जाहिर है तनाव भी बढे़गा ही। छंटनी की तलवार जो लटकी हुई है। कब किसके नाम का फरमान जारी हो जाए, कहा नही जा सकता। रात को घर निकलने के बाद ही थोडा़ सुकून मिलता है कि चलो आज का दिन सकुशल बीत गया। 

 
अब रूम में लौटनै की तैयारी है, सब्जी वगैरह के साथ। सवा ग्यारह के आसपास मैं रूम में पहुंचा। इसके बाद एक घंटा खाना बनाने में बीत गया और आधा घंटा खाने में। जाहिर है दो बजे से पहले तो सोने का मतलब ही नहीं बनता। आधा-पौन घंटा किताब पढ़ने की भी आदत है। न पढूं तो अपराधबोध सा होने लगता है। एक बात और। रात भले कितनी ही देर क्यों न हो जाए, मैं खाना बनाने में आलस नहीं करता। भई, मीडिया में मैं अपनी खुशी से आया हूं, किसी का जोर-दबाव थोडे़ था। चलिए! आज इतना ही। कल से नए-नए किस्से पढ़ने के लिए तैयार रहिए। सबसे पहले तो मैसेज वाली का किस्सा ही सुनाऊंगा।
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Get up early you get time to read
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Dinesh Kukreti
Today the eyes opened quickly, even after sleeping late at night.  One disadvantage of this is that the balcony of the house just opposite my window looked empty.  Because, he too has a habit of coming late to the balcony and I also have to get up late.  Well!  This is a game of timing.  If I wake up a little late tomorrow, I will definitely see it.  However, whether I wake up late or early, there is no significant difference in routine.  It is so sure that after getting up early one gets some time to read.

So, after reading for a while, there was a bath-meditation program and then for an hour of yoga-pranayama.  This is an important part of my routine and to be honest, yoga keeps me healthy.  Now it's breakfast.  My breakfast is very light.  Of two to three rotis.  Sometimes roasted or raw grams also work.  Meanwhile a message from a female friend arrived.  He complains that I never message him.  Does not take his news well  Now who should explain to him that it is not me but the ruins of life that are responsible for this?  It is said that there is more sorrow in the world than your sorrow.  However!  After some light jokes, she agreed on the condition that I would message everyday.

Around two o'clock I leave for office, still left today.  Your question may be that what is the time to go to office.  What to do is the job of media.  Yes!  In the present day, due to the Corona period, the messes definitely increased.  Obviously, tension will also increase.  Trimmed sword that hangs.  When the order of whose name is issued, it cannot be said.  It is only after leaving home at night that you get a little relaxed that today has passed safely.

Now there is a preparation of lottanai in the room, along with vegetable etc.  I reached the room around quarter past eleven.  After this, one hour was spent cooking and half an hour was spent in cooking.  Obviously before 2 o'clock, sleep does not make sense.  There is also a habit of reading a half-a-hour book.  If I do not read, then I feel a bit guilty.  One more thing.  No matter how late the night is, I do not feel lazy in cooking.  Brother, I have come to the media with my pleasure, there was some pressure on someone.  Let go!  Today only this much.  Be ready to read new stories from tomorrow.  First of all, I will tell the story of the message.

Monday, 10 August 2020

10-08-2020 (शायद यही प्यार है)

शायद यही प्यार है  

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दिनेश कुकरेती 

ससे मैं आज तक मिला तो नहीं हूं, पर मिलने की चाह हमेशा रही है। ये नहीं जानता कि क्यों, पर चाहता हूं कि किसी दिन जब भी मेरी उससे मुलाकात हो तो, हम एक-दूसरे जी-भरकर मन की बातें करें। वैसे फेसबुक पर अक्सर मैं उससे बातें कर लेता हूं, लेकिन शुरुआत हमेशा वही करती है। मैं कुछ लिखता हूं तो वो कमेंट भी करती है। मेरे शेयर किए और अपलोड किए फोटो पर भी। अपनत्व से भरे हुए कमेंट। मैं भी यही करता हूं। अधिकार पूर्वक। बावजूद इसके, वो मेरे बारे में मुझसे ज्यादा जानकारी रखती है। कैसे? मुझे नहीं मालूम। 

हमारी मुलाकात भी करीब दस साल पहले फेसबुक के माध्यम से ही हुई थी, लेकिन शुरुआत में शायद हम दोनों एक-दूरे में इतना इंट्रेस्ट नहीं लेते थे। बाद में धीरे-धीरे कब इतने करीब आ गए, पता ही नहीं चला। अब लगता है कि यह ठीक ही हुआ। हो सकता है, उसे भी ऐसा ही लगता हो। ऐसा कहने की एक वजह यह भी है कि समाज के प्रति हम दोनों की सोच लगभग एक जैसी है। हम दोनों के ही मन में एक-दूसरे के प्रति चाहत भी है। हालांकि, इसकी अभिव्यक्ति न कभी मैंने की, न उसने। 

हम रहते भी अलग-अलग स्थानों पर हैं। 60-65 किमी तो होगा ही, दोनों के बीच का फासला। वैसे अक्सर उसका श्रीनगर आना होता रहता है, लेकिन मुलाकात उससे कभी नहीं हुई। फिर भी न जाने क्यों, मुझे लगता है कि वो यहीं-कहीं मेरे आसपास ही है। उसका स्वभाव, उसका व्यक्तित्व, उसका पहनावा- सभी इतने आकर्षक हैं कि मैं उसे खुद से दूर कर ही नहीं पाता। या यूं कह लें कि वह कभी मुझसे दूर होती ही नहीं है। दूर रहकर भी। शायद यही प्यार है। 

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Maybe this is love

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Dinesh Kukreti 

I have not met him till date, but there has always been a desire to meet him. He does not know why, but I wish that whenever I meet him someday, we should talk to each other wholeheartedly. By the way, I often talk to him on Facebook, but the beginning always does the same. When I write something, she also comments.Also on my shared and uploaded photos. Comments filled with affinity. I do the same thing. Rightfully Despite this, she is more knowledgeable about me. how? I do not know. 

We also met about ten years ago through Facebook, but in the beginning perhaps we both did not take so much interest in each other. Later, when slowly came so close, it was not known. Now it seems that it happened right.Maybe, he feels the same. One reason for saying so is that both of us have almost the same thinking towards society. We both also have a desire for each other in our minds. However, I never expressed it, nor did he. 

 

We live in different places. There will be 60-65 km distance between the two. Although he often comes to Srinagar, but never met him. Still not knowing why, I think he is around me somewhere. Her temperament, her personality, her dress - all are so attractive that I just can't take her away from myself. Or just say that she never goes away from me. Even while staying away. Maybe this is love.

Sunday, 9 August 2020

09-08-2020 (मेडिकल स्टोर और वो)

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मेडिकल स्टोर और वो 

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दिनेश कुकरेती

ला मेडिकल स्टोर भी किसी को प्रिय होता है, सिवाय उसके मालिक के। पर, मुझे है और वह भी अपने मुहल्ले के पास वाला। मेरे कमरे से ज्यादा से ज्यादा दो सौ मीटर के फासले पर होगा। अक्सर मेरा उधर से गुजरना होता रहता है, इसलिए एक निगाह मेडिकल स्टोर के काउंटर पर जरूर डाल लेता हूं। दवा की एक गोली भी लेनी हो तो कदम खुद-ब-खुद उधर का रुख कर लेते हैं। अगर वहां दवा न हो तो मैं यह पूछना नहीं भूलता कि कब तक आएगी। साथ ही खुद उत्तर भी दे देता हूं, "कल-परसों तो आ ही जाएगी।"

पता है क्यों? दरअसल मेडिकल स्टोर की मालिक एक खूबसूरत महिला है। हालांकि, ज्यादा समय उसका पति ही वहां बैठता है, लेकिन दुकान का लाइसेंस पत्नी के नाम से ही है। इसलिए रोजाना दो-तीन घंटे वो दुकान पर अवश्य गुजारती है। वैसे आती तो वो पति के लिए खाना लेकर है, लेकिन लौटने की कोई जल्दी नहीं रहती। उसका बात करने का लहजा भी गजब का है। खासकर दवा देते वक्त उसका कहा एक-एक शब्द तन-मन को सुकून का अहसास करा देता है। ऐसा लगता है, मानो दवा के साथ दुआ भी दे रही हो।

निश्चित रूप से आपको भी उसके बारे में जानने की उत्सुकता होगी।...तो चलिए बता ही देता हूं, मेरा भी मन का बोझ कुछ हल्का हो जाएगा। हालांकि, मुझे उसका पता ठिकाना कुछ मालूम नहीं है। मैंने जानने की कभी कोशिश भी नहीं की। हां, पर वह मुझे पसंद बहुत है। 43-44 साल से कम उम्र की नहीं होगी। भरा-भरा शरीर, लेकिन किसी सांचे में ढला हुआ सा। सम्मोहन बिखेरती आंखें, मुस्कराते होंठ, घने-लंबे बाल, दायें हाथ में गोल्डन कलर की खूबसूरत घडी़ और कानों में गाल का स्पर्श करते कुंडल उसे और भी आकर्षक बनाते हैं।
गाहे-बगाहे मेडिकल स्टोर पर जाने के कारण मेरी अब दोनों पति-पत्नी से अच्छी जान-पहचान हो गई है। इस बहाने थोडा़ इधर-उधर की बातें भी हो जाती हैं। शहर से बाहर होने के कारण जब मैं काफी दिनों बाद दुकान पर जाता हूं तो वो सवाल जरूर करती है, "कहां चले गए थे आप, दिखे नहीं इतने दिनों।" अब आप ही बताइए, आखिर ऐसा अपनापन कौन दिखाता है। कुछ तो ऐसा है, जो हम एक-दूसरे को देखना चाहते हैं। महसूस करना चाहते हैं।

इन्‍हें भी पढ़ें : 

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Medical Store and them
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Dinesh Kukreti
A good medical store is also dear to anyone, except its owner. But, I have and that too near my neighborhood. It will be more than two hundred meters away from my room. Often I have to go through there, so I definitely take a look at the counter of the medical store. If you want to take even a pill of medicine, then you automatically move there. If there is no medicine there, I do not forget to ask how long it will come. At the same time, I answer myself, "Tomorrow will come tomorrow."
know why? Actually the owner of the medical store is a beautiful woman. Although her husband sits there for a long time, the license of the shop is in the wife's name only. So she must spend two or three hours every day at the shop. By the way, she has brought food for her husband, but there is no hurry to return. The tone of his talk is also wonderful. Especially while giving the medicine, every single word he says makes the body feel relaxed. It is as if you are praying with medicine.
Surely you too will be anxious to know about him… so let me tell you, my mind will also be lightened. However, I do not know his whereabouts. I never even tried to know. Yes, but he likes me very much. Will not be less than 43-44 years old. Full body, but a bit molded in a mold. Fascinating eyes, smiling lips, thick long hair, beautiful golden colored watches in the right hand and the coil touching the cheeks in the ears make it even more attractive.
Due to going to the medical store, I have got acquainted with both the husband and wife. On this pretext, things also happen here and there. Being out of town, when I go to the shop after a long time, she definitely asks, "Where did you go, did not see so many days." Now you tell me, who shows such familiarity? There is something that we want to see each other. Want to feel.

13-11-2024 (खुशनुमा जलवायु के बीच सीढ़ियों पर बसा एक खूबसूरत पहाड़ी शहर)

खुशनुमा जलवायु के बीच सीढ़ियों पर बसा पहाड़ी शहर ------------------------------------------------ ------------- भागीरथी व भिलंगना नदी के संग...