Wednesday, 29 December 2021

29-12-2021 (प्रेस क्लब का चुनाव)

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प्रेस क्लब का चुनाव

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दिनेश कुकरेती

तदान किसी भी संस्था का क्यों न हो, लोकतंत्र में उसका अलग ही आकर्षण होता है। फिर यह तो उत्तरांचल प्रेस क्लब जैसी प्रदेश की प्रतिष्ठित समझी जाने वाली संस्था का चुनाव था। वर्ष 2015 में क्लब के दोबारा खुलने के बाद पहली बार नौ कार्यकारिणी सदस्यों के साथ तीन महत्वपूर्ण पदों (महामंत्री, कोषाध्यक्ष व संप्रेक्षक) पर चुनाव हो रहा था। बाकी अध्यक्ष, वरिष्ठ उपाध्यक्ष, कनिष्ठ उपाध्यक्ष व संयुक्त सचिव के दो पदों पर उम्मीदवारों के निर्विरोध चुन लिए जाने के कारण मतदान की नौबत नहीं आई। इनमें से संयुक्त मंत्री पद पर मैं भी प्रत्याशी था, जाहिर है चुनाव में मेरी भूमिका अहम होनी ही थी। साथ ही मुझे सुबह जल्दी क्लब भी पहुंचना था। मतदान का समय सुबह नौ से दोपहर दो बजे तक नियत था। इसके बाद तीन बजे से मतगणना की जानी थी। कहने का मतलब आज मेरी बेहद व्यस्त दिनचर्या रहने वाली थी। इसलिए मैंने आफिस से छुट्टी ली हुई थी।

सुबह जल्दी उठकर मैंने फटाफट स्नान-ध्यान किया और दो उबले अंडे व चार-छह बिस्कुट खाकर निकल पडा़ प्रेस क्लब की ओर। इस जल्दबाजी के चक्कर में ही मैं आज प्राणायाम व आसन भी नहीं कर पाया। सुबह साढे़ दस बजे के आसपास मैं क्लब पहुंचा हूंगा। धीरे-धीरे मतदाताओं के आने का क्रम शुरू हो गया था। अधिकांश पत्रकार देर रात तक ड्यूटी करते हैं, इसलिए जागते भी देर से ही हैं। सो, दोपहर बारह बजे के बाद ही मतदाताओं की भीड़ बढ़ने की उम्मीद थी। ऐसा ही हुआ भी। फिर भी 264 में से 241 सदस्यों ने ही अपने मताधिकार का प्रयोग किया। दोपहर के सवा दो बज चुके थे और भूख भी बढ़ रही थी, इसलिए अब धैर्य रख पाना संभव नहीं था। कैंटीन में काफी भीड़ थी और सब कूपन कटाकर भोजन के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। भोजन में चावल, राजमा-उड़द की दाल और आलू के गुटखे बने हुए थे।

मैंने भी एक प्लेट खाना लिया और कैंटीन में एक किनारे कुर्सी पर बैठकर खाने लगा। एक प्लेट और खाने की इच्छा हो रही थी, बावजूद इसके मैंनै दोबारा चावल-दाल लेना उचित नहीं समझा और हाथ धोकर बाहर आ गया। हालांकि, कुछ ही मिनट बाद इस फैसले को बदलते हुए मैं फिर कैंटीन में गया और एक प्लेट राजमा-चावल और ले लिया। पेट फुल हो चुका तो कुछ देर धूप में बैठकर सुस्ताने लगा। तभी चुनाव अधिकारी ने पुकार लगा दी कि मतों की गिनती शुरू की जा रही है, इसलिए सभी प्रत्याशी हाल में आ जाएं। श्रमजीवी पत्रकार यूनियन की ओर से मुझे काउंटिंग की जिम्मेदारी सौंपी गई। मुझे संगठन के प्रत्याशियों के मतों की गणना करनी थी। कालेज के दौर में छात्रसंघ चुनाव और फिर पंचायत चुनाव की मतगणना में कई बार हिस्सेदारी की है, इसलिए यह जिम्मेदारी मैंने सहर्ष स्वीकार ली।

मतपत्रों की गड्डियां बनाने के बाद मतगणना शुरू हुई। पहले कार्यकारिणी सदस्यों के मत गिने गए। संगठन ने आठ प्रत्याशी मैदान में उतारे थे, जबकि कुल 12 प्रत्याशी मैदान में थे। इसलिए मतगणना में साढे़ तीन घंटे का समय लग गया। आठ राउंड की मतगणना के बाद संगठन के सात प्रत्याशी निर्वाचित घोषित किए गए। एक प्रत्याशी को महज एक मत के अंतर से हार का मुंह देखना पडा़। इसके बाद महामंत्री, कोषाध्यक्ष व संप्रेक्षक के पदों पर एक साथ गणना हुई। इस बार 50-50 मतपत्रों की गड्डी बनाई गई और सिर्फ पांच राउंड ही रखे गए। तीनों पदों पर सीधा मुकाबला था। जैसे ही गणना शुरू हुई, कोषाध्यक्ष व संप्रेक्षक के पद पर तो संगठन के प्रत्याशी पहले ही राउंड से अच्छी-खासी लीड लेकर आगे हो गए। लेकिन, महामंत्री पद पर मुकाबला कांटे का हो गया। कभी संगठन का प्रत्याशी एक-दो मत से आगे होता तो कभी विपक्षी।















पहले राउंड में संगठन का प्रत्याशी महज दो मत की लीड ले पाया, जबकि दूसरे, तीसरे व चौथे राउंड विपक्षी ही आगे रहा। अलबत्ता चौथे राउंड में विपक्षी की लीड जरूर मामूली रह गई। तब वह महज तीन मतों से आगे थे। पांचवां राउंड निर्णायक रहा और संगठन का प्रत्याशी आठ मतों की लीड लेकर महामंत्री का पद कब्जाने में कामयाब रहा। इस तरह संगठन ने प्रेस क्लब के सारे पदों पर अधिकार कर लिया। इसके बाद सभी विजेता प्रत्याशियों को चुनाव अधिकारी की ओर निर्वाचन के प्रमाण पत्र जारी किए गए। अब मैं रूम में लौटने की तैयारी में था, लेकिन तभी कुछ साथियों ने यह कहकर मुझे रोक दिया कि हम सभी का भोजन यहीं रखा गया है। तब हम लगभग 30 लोग क्लब में रह गए थे। मैं निश्चिंत था, रात को भोजन बनाने के झंझट से जो निजात मिल गई थी।

साथियों ने हमारे लिए इडली-डोसा मंगाया हुआ था, लेकिन मैं ठैरा ठेठ पहाडी़। ऐसे मौकों पर दाल-भात मिल जाए तो कहने ही क्या। दिन में बनी राजमा व उड़द की दाल बची हुई थी, इसलिए सिर्फ भात (चावल) ही बनाना पडा़। मैंने इडली-डोसा के साथ दाल-भात का आनंद उठाया और फिर चुपचाप रात 11 बजे के आसपास रूम में लौट आया। बाकी साथी इसके बाद भी पार्टी में मशगूल रहे। इस समय रात के एक बजे हैं। मैं काफी थका हुआ हूं। आंखें बोझिल हुई जा रही हैं, इसलिए आज की सभा यहीं समाप्त करने की इजाज़त चाहता हूं। शब-ब-खै़र!!

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Press club election

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Dinesh Kukreti

No matter the voting of any institution, it has a different attraction in a democracy.  Then it was the election of a prestigious organization of the state like Uttaranchal Press Club.  For the first time since the club's reopening in 2015, elections were being held for three important posts (General Secretary, Treasurer and Observer) with nine executive members.  Voting did not take place due to the uncontested election of candidates for the remaining two posts of President, Senior Vice President, Junior Vice President and Joint Secretary.  Out of these, I was also a candidate for the post of Joint Minister, obviously my role in the election had to be important.  Also I had to reach the club early in the morning.  The polling time was fixed from 9 am to 2 pm.  After this, the counting of votes was to be done from 3 o'clock.  I mean to say today I was going to have a very busy routine.  That's why I took leave from the office.

Waking up early in the morning, I took a quick bath-meditation and after having two boiled eggs and four or six biscuits, left for the Press Club.  Due to this hasty affair, I could not even do Pranayama and Asana today.  I will reach the club around 10:30 in the morning.  Slowly, the process of the arrival of voters started.  Most of the journalists work till late night, so they are awake late.  So, only after 12 noon the crowd of voters was expected to increase.  The same thing happened.  Yet, out of 264, only 241 members exercised their franchise.  It was half past two in the afternoon and hunger was also increasing, so it was not possible to be patient now.  There was a huge crowd in the canteen and everyone was waiting for their turn to cut the coupons and get the food.  The food was made of rice, rajma-urad dal and potato gutkha.

I also took a plate of food and started eating sitting on a side chair in the canteen.  There was a desire to eat one more plate, in spite of this I did not consider it appropriate to take rice and lentils again and came out after washing my hands.  However, changing this decision after a few minutes, I again went to the canteen and took one more plate of rajma-rice.  When the stomach was full, he sat in the sun for some time and started relaxing.  Then the election officer called out that the counting of votes was being started, so all the candidates should come in the hall.  On behalf of the working journalist union, I was entrusted with the responsibility of counting.  I had to count the votes of the candidates of the organization.  I have participated many times in the counting of votes for the student union elections and then the panchayat elections during the college period, so I gladly accepted this responsibility.

Counting of votes began after making the ballots.  First the votes of the executive members were counted.  The organization had fielded eight candidates, while a total of 12 candidates were in the fray.  So the counting of votes took three and a half hours.  After eight rounds of counting, seven candidates of the organization were declared elected.  One candidate had to face defeat by a margin of just one vote.  After this, the posts of General Secretary, Treasurer and Observer were counted simultaneously.  This time rounds of 50-50 ballots were made and only five rounds were kept.  There was direct competition for all three positions.  As soon as the counting started, for the post of Treasurer and Observer, the candidates of the organization went ahead with a significant lead from the first round.  But, the contest for the post of General Secretary turned thorny.  Sometimes the candidate of the organization was ahead by one or two votes and sometimes the opposition.

In the first round, the candidate of the organization was able to take the lead of only two votes, while in the second, third and fourth rounds only the opposition was ahead.  However, in the fourth round, the opposition's lead remained modest.  He was then leading by just three votes.  The fifth round was decisive and the candidate of the organization managed to capture the post of General Secretary by taking a lead of eight votes.  In this way the organization took over all the posts of the Press Club.  After this, the election certificates were issued to all the winning candidates by the election officer.  Now I was preparing to return to the room, but then some companions stopped me saying that the food of all of us has been kept here.  Then we were left with about 30 people in the club.  I was rest assured that I had got relief from the hassle of preparing dinner at night.

Colleagues had ordered idli-dosa for us, but I stayed in typical hills.  What to say if you get pulses and rice on such occasions?  Rajma and urad dal made during the day were left, so only rice (rice) had to be prepared.  I enjoyed dal-bhaat with idli-dosa and then quietly returned to the room around 11 pm.  The rest of the companions remained busy in the party even after this.  It is currently one o'clock in the night.  I'm quite tired.  My eyes are getting heavy, so I want to allow you to end today's meeting here.  Well done!!

Wednesday, 22 December 2021

22-12-2021 (नामांकन का दिन)

























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नामांकन का दिन
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दिनेश कुकरेती
दिसंबर का दूसरा पखवाडा़ शुरू होते ही उत्तरांचल प्रेस क्लब की राजनीति गर्माने लगती है। इस बार भी ऐसा ही नजारा है। नई कार्यकारिणी के लिए चुनाव का कार्यक्रम घोषित हो चुका है। मतदान की तिथि 29 दिसंबर तय हुई है, जबकि आज नामांकन दाखिल करने का दिन है। रात को आफिस से घर लौटते समय सतीजी ने मुझसे आज क्लब पहुंचने के लिए कहा था, ताकि मैं उत्तराखंड पत्रकार यूनियन के पैनल से चुनाव लड़ने वाले साथियों का प्रस्तावक बन सकूं। हालांकि, सच कहूं तो मैं आज कतई क्लब जाने के पक्ष में नहीं था। खासकर, चुनाव से तो मैं पूरी तरह दूर ही रहना चाहता था। बस! सतीजी की बात रखने के लिए मैं क्लब चला गया।

सुबह 11 बजे के आसपास मैं क्लब पहुंचा। तब साथी लोग नामांकन के लिए फार्म भरने में जुटे हुए थे। कुछ साथियों ने प्रस्तावक बनने का आग्रह किया तो मैं सहर्ष तैयार हो गया। इस बीच अध्यक्ष पद के दावेदार जितेंद्र अंथवाल ने मुझसे भी नामांकन करने को कहा तो मैं इन्कार करते हुए चुपचाप किनारे खिसक गया। लेकिन, इतना आभास मुझे जरूर होने लगा था कि मैं फंस गया हूं, क्योंकि अंथवालजी बार-बार कह रहे थे कि अगर मैंने नामांकन नहीं किया तो वे भी नहीं करेंगे। फिर भी मैं सभी से नजरें चुरा रहा था। इसी बीच थलेडी़जी ने मुझे बुलवा लिया और नामांकन दाखिल करने को कहा। मेंने इन्कार किया तो बोले कि मेरा नाम रात ही पैनल में डाल दिया गया था, इसलिए मुझे लड़ना ही होगा।

मैंने उन्हें टालने की काफी कोशिश की, लेकिन वो भला कहां सुनने वाले थे। इसके अलावा बाकी साथी भी मुझ पर नामांकन कराने को दबाव बनाने लगे। अब तो एकमात्र विकल्प यही था कि चुपचाप संयुक्त मंत्री के पद पर नामांकन दाखिल कर दूं। सो, मैंने फार्म लिया और औपचारिकता पूरी करने के बाद बिना किसी तर्क-वितर्क के उसे जमा करा दिया। अंथवालजी ने मेरा नामांकन दाखिल होने के बाद ही अपना नामांकन भरा। संयोग से मेरे विरोध में किसी ने भी नामांकन नहीं भरा और मेरी जीत निर्विरोध तय हो गई। इस तरहा न चाहते हुए भी मैं प्रेस क्लब की नई कार्यकारिणी का हिस्सा बन चुका था।

दोपहर के दो बज चुके थे और भूख से पेट में कुलबुलाहट होने लगी थी। खाने में पुलाव बना हुआ था, सो मैंने पहले पेट पूजा करना ही बेहतर समझा। मैंने किचन में जाकर जगदीश भाई से भोजन लगाने के लिए कहा तो उन्होंने मुझे किचन में ही बुला लिया। बड़थ्वालजी, हिमांशु और मनमोहन भाई ने भी किचन में साथ ही भोजन किया। इसके उपरांत कुछ देर साथियों के बीच गुजारने के बाद मैं आफिस लौट आया। सभी शुभचिंतक और साथी मेरे चुनाव में उतरने से खुश हैं। पता नहीं उन्हें क्यों लगता है कि मैं क्लब में बदलाव का वाहक बनूंगा।

खैर! भले ही अपन के विरोध में कोई न हो, लेकिन महामंत्री, कोषाध्यक्ष व संप्रेक्षक के अलावा कार्यकारिणी सदस्य पदों के लिए मैदान में मौजूद साथियों के पक्ष में तो प्रचार करना ही होगा। इसी बिंदु पर रात को आफिस से घर लौटने तक साथियों से चर्चा भी होती रही। फिलहाल रात काफी हो चुकी है। भोजन में मैंने दलिया ही लिया। अब आधा-पौन घंटे यू-ट्यूब पर मनपसंद क्लिप देखूंगा और फिर निद्रा देवी के शरणागत हो जाऊंगा। कल फिर प्रेस क्लब जाना है। अब ओखली में सिर दे ही दिया है तो फिर मूसल से डर किस बात का। इसलिए, कल मिलते हैं नए अंदाज और नए मिजाज के साथ।

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Enrollment day

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Dinesh Kukreti

As soon as the second fortnight of December starts, the politics of Uttaranchal Press Club starts heating up.  This time also it is the same scene.  The election schedule for the new executive has been announced.  The date for voting has been fixed as December 29, while today is the day for filing nominations.  While returning home from office at night, Satiji had asked me to reach the club today so that I could become a proponent of the comrades contesting from the panel of Uttarakhand Journalists Union.  Although, to be honest, I was not in favor of going to the club today.  Especially, I wanted to stay away from elections altogether.  Bus!  I went to the club to talk about Satiji.

I reached the club around 11 am.  Then fellow people were busy filling the form for enrollment.  When some colleagues requested to become a proposer, I happily agreed.  Meanwhile, the candidate for the post of President Jitendra Anthwal asked me to do the nomination too, I refused and slipped silently to the side.  But, I was beginning to feel that I was trapped, because Anthwalji was repeatedly saying that if I didn't enroll, he wouldn't either.  Still I was stealing eyes from everyone.  Meanwhile, Thalediji called me and asked me to file my nomination.  I refused and said that my name was put on the panel at night, so I will have to fight.











I tried a lot to avoid him, but where was he going to listen?  Apart from this, other friends also started pressurizing me to enroll.  Now the only option was to quietly file nomination for the post of Joint Minister.  So, I took the form and after completing the formalities submitted it without any argument.  Anthwalji filed his nomination only after my nomination was filed.  Incidentally, no one filed nomination against me and my victory was decided unopposed.  I had become a part of the new executive of the Press Club, despite not wanting to do so.

It was two o'clock in the afternoon and there was a fidgeting in the stomach due to hunger.  Pulao was prepared in the food, so I thought it better to worship the stomach first.  When I went to the kitchen and asked Jagdish Bhai to prepare food, he called me in the kitchen itself.  Barthwalji, Himanshu and Manmohan Bhai also had food together in the kitchen.  After this, after spending some time among my friends, I returned to the office.  All the well wishers and friends are happy to contest my election.  Don't know why they think I will be the change agent in the club.

So!  Even if no one is against himself, but apart from the General Secretary, Treasurer and Observer, one will have to campaign in favor of the colleagues present in the field for the posts of executive member.  At this point, there was a discussion with the colleagues till he returned home from the office at night.  By now the night is long enough.  I took only porridge in the meal.  Now I will watch my favorite clip on YouTube for half an hour and then I will surrender to Nidra Devi.  Tomorrow I have to go to the press club again.  Now you have already given your head in the mortar, then what is there to be afraid of with a pestle.  So, see you tomorrow with new style and new mood.

Saturday, 18 December 2021

16-12-2021 (सकारात्मक ऊर्जा की ओर)



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सकारात्मक ऊर्जा की ओर
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दिनेश कुकरेती
रिवेश में नकारात्मकता का बोलबाला होने के कारण आज हर कोई परेशान है। किसी के भी समझ में नहीं आ रहा कि कैसे इन नकारात्मक विचारों से मुक्ति पाई जाए। इसी चिंता में हम शारीरिक एवं मानसिक रूप से बीमार पड़ते जा रहे हैं। हम भूल गए हैं कि बीमारी कोई भी और किसी भी तरह की क्यों न हो, पैदा नकारात्मकता से ही होती है। जबकि, सकारात्मक विचार हर बीमारी में संजीवनी का काम करते हैं और उसका जड़-मूल से निदान कर देते हैं। लेकिन, अब सवाल उठता है कि ऐसे तनावभरे माहौल में सकारात्मकता किस युक्ति से लाई जाए। मितरों! आज मैं इसी सवाल का जवाब देने की कोशिश करूंगा। कोशिश इसलिए कि मैं स्वयं में कोई विशेषज्ञ नहीं हूं और ऐसे में भाषा-शैली त्रुटिपूर्ण हो सकती है। ...तो आइए! चलते हैं सकारात्मकता की ओर।
तन-मन को शुद्ध करती है हीलिंग
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सकारात्मकता के लिए विचारों का शुद्ध होना जरूरी है और इसके लिए सबसे आसान उपाय मन एवं हृदय की निर्मलता बताया गया है। लेकिन, ऐसा तभी संभव है, जब हमारे भीतर नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह शून्य हो। इसके लिए हमें नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में बदलना होगा। आपका सवाल हो सकता है कि ऐसा कैसे होगा ? जवाब है हीलिंग से। हीलिंग एक ऐसी प्रक्रिया है, जो हमारे भीतर दिव्य चैतन्य शक्ति को बढा़कर नकारात्मक (नेगेटिव) ऊर्जा को सकारात्मक (पाजिटिव) ऊर्जा में परिवर्तित कर देती है। इससे जहां मन एवं हृदय निर्मल होते हैं, वहीं यादशक्ति व एकाग्रता बढ़ती है। सकारात्मक ऊर्जा तन-मन को शुद्ध एवं शक्तिशाली बनाती है।
प्रार्थना का ही तकनीकी रूप
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हीलिंग को हम आसान भाषा में ध्यान या आध्यात्मिक  चिकित्सा भी कह सकते हैं। एक तरह से हीलिंग प्रार्थना का ही तकनीकी रूप है। अथर्ववेद में ऋषि अंगिरस ने 'प्राणिक हीलिंग' के अंतर्गत इसका विस्तार से वर्णन किया है। अपनी एक पूर्व पोस्ट में मैंने उल्लेख किया था कि मेरे मित्र गणेश काला एक हीलिंग एक्सपर्ट के रूप में लोगों को सकारात्मकता की ओर ले जाने का कार्य कर रहे हैं। ऐसे कई लोगों के जीवन में वो उल्लास घोल चुके हैं, जिन्हें निराशा के स्थायी भाव में रहते-रहते तमाम व्याधियों ने घेर लिया था। उनका मृदुभाषी व्यक्तित्व हर किसी को अपनी ओर खींचता है।
जितनी साधना, उतनी ही अनुभूू‍तियां
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कालाजी ने स्वयं अरण्य प्रवास में रहने के साथ विश्व के नामी संस्थानों से ब्रह्मांड के गूढ़ रहस्यों को जानकर आत्म जागरण किया। अब तक वे रेकी ग्रेंड मास्टर (Reiki grand master), होलिस्टिक कोच (Holistic Coach), एनर्जी साइंस मास्टर (Energy Science Master), सबकान्शियस माइंड प्रोग्रामर (Subconscious Mind Programmer), पास्ट लाइफ हीलर (Past Life Healer), NLP (Neuro- lingustic Progrsmming), DMIT (Dermatoglyphics Multiple Intelligence Test), एनर्जी एस्ट्रोलाजर (Energy Astrologer), करिअर काउंसलर (Career Counfsellor) सहित छोटी-मोटी सौ से अधिक हीलिंग मोडेलिटी तक का सफर तय कर चुके हैं। जाहिर है उनके अनुभव भी इतने ही इतने ही गहरे हैं।
अदवाणी और कोटद्वार में हीलिंग एंड वैलनेस सेंटर
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वर्तमान में कालाजी गढ़वाल मंडल मुख्यालय पौडी़ के पास बांज-बुरांश के घने जंगल के बीच अदवाणी और गढ़वाल के प्रवेश द्वार कोटद्वार में हीलिंग एंड वैलनेस सेंटर स्थापित कर जनसेवा में तल्लीन हैं। ये सेंटर वो श्री सच्चिदानंद वैलनेस फाउंडेशन के तहत संचालित कर रहे हैं। इसके अलावा वे आनलाइन भी हीलिंग करते हैं। एक जो महत्वपूर्ण  बात मैं आपको बताना चाहता हूं, वह यह कि हीलिंग में दूरियां महत्व नहीं रखती। आप घर बैठे कितने भी दूर से हीलिंग का शत-प्रतिशत लाभ ले सकते हैं। स्वयं मुझे परिवार समेत कालाजी से हीलिंग का लाभ मिल रहा है और सीखने का सौभाग्य भी प्राप्त हो रहा है।
ऐसे करें कालाजी से संपर्क
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आप भी हीलिंग का लाभ लेना चाहते हैं तो कालाजी से फोन, वाट्सएप व टेलीग्राम पर संपर्क कर सकते हैं। उनका फोन, वाट्सएप वा टेलीग्राम नंबर है- 918057286132

(जारी...)
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Towards positive energy
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Dinesh Kukreti
Today everyone is upset due to the negativity prevailing in the environment.  No one understands how to get rid of these negative thoughts.  Due to this worry, we are getting sick physically and mentally.  We have forgotten that whatever the disease may be, it is born out of negativity.  Whereas, positive thoughts work as a lifeline in every disease and diagnose it from the root.  But, now the question arises as to how to bring positivity in such a stressful environment.  Friends!  Today I will try to answer this question.  Trying because I'm not an expert myself and the language style may be flawed.  ...then come on!  Let's move towards positivity.
Healing purifies body and mind
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For positivity, it is necessary to purify thoughts and the easiest way for this is said to be purity of mind and heart.  But, this is possible only when there is zero flow of negative energy within us.  For this we have to convert negative energy into positive energy.  Your question may be that how will this happen?  The answer is healing.  Healing is a process that transforms negative energy into positive energy by increasing the divine consciousness within us.  Due to this, where the mind and heart are purified, there is an increase in memory and concentration.  Positive energy makes the body and mind pure and powerful.
Technical form of prayer
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Healing can also be called meditation or spiritual therapy in simple language.  In a way, healing is a technical form of prayer.  In Atharvaveda, sage Angiras has described it in detail under 'Pranik Healing'.  In one of my earlier posts I mentioned that my friend Ganesh Kala as a Healing Expert is working to lead people towards positivity.  He has engulfed the lives of many such people, who were surrounded by various diseases while living in a permanent sense of despair.  His soft spoken personality attracts everyone towards him.

More practice, more experience
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Kalaji himself, while living in aranya migration, awakened himself by knowing the esoteric secrets of the universe from reputed institutions of the world.  Till now he is Reiki Grand Master, Holistic Coach, Energy Science Master, Subconscious Mind Programmer, Past Life Healer, NLP (Neuro-  Have traveled to over a hundred healing modalities including lingustic Progrsmming), DMIT (Dermatoglyphics Multiple Intelligence Test), Energy Astrologer, Career Counselor.  Obviously their experiences are equally deep.

Healing and Wellness Center in Advani and Kotdwara
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At present, Kalaji is engrossed in public service by setting up Healing and Wellness Center at Kotdwar, the gateway of Advani and Garhwal, amidst the dense forest of Banj-Buransh near Pauri, the Garhwal divisional headquarters.  He is running these centers under the Shree Satchidananda Wellness Foundation.  Apart from this, they also do online healing.  One important thing I want to tell you is that distance is not important in healing.  You can take 100% benefit of healing from any distance from home.  I myself am getting the benefits of healing from Kalaji along with my family and I am also getting the privilege of learning.
How to contact Kalaji
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If you also want to take advantage of healing, then you can contact Kalaji on phone, WhatsApp and Telegram.  His phone, whatsapp or telegram number is - 918057286132

(Ongoing...)


Sunday, 28 November 2021

28-11-2021 (नेचर पार्क की सैर)



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नेचर पार्क की सैर
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दिनेश कुकरेती
म कई दिनों से सोच रहे थे कि इतवार को डोईवाला के पास लच्छीवाला नेचर पार्क की सैर करने जाएंगे। हालांकि, ठीक-ठीक कुछ तय नहीं हो पा रहा था। लेकिन, कल दिन में जब किरण भाई ने आज पूर्वाह्न 11 बजे तक आफिस पहुंचने के लिए कहा तो लच्छीवाला जाने का कार्यक्रम पक्का हो गया। उन्होंने यह भी कहा कि अगर एक प्रतिशत किसी कारणवश जाना न हो पाया तो यहीं आफिस में राजमा-चावल मंगवा लेंगे। वैसे दोपहर के भोजन को लेकर सतीजी की डोईवाला कोठारीजी से बात हो गई है। अब इतना सब तय हो जाए तो इन्कार का सवाल ही नहीं उठता, सो स्नान-ध्यान के बाद पूर्वाह्न ठीक 11 बजे मैं आफिस पहुंच गया।
आफिस में पता चला कि केदारजी नहीं आ रहे हैं, जबकि बड़थ्वालजी चलने को तैयार थे। हालांकि, जब सतीजी ने केदारजी को चलने के लिए कहा तो वे भी तैयार हो गए। तय हुआ कि सेमवालजी की कार में जाएंगे। सो, किरण भाई, सेमवालजी के साथ फ्रंट सीट में बैठे और मैं, सतीजी, केदारजी व बड़थ्वालजी पीछे वाली सीट में लद गए। थोडा़ दिक्कत तो हो रही थी, लेकिन बहुत दूर नहीं जाना था, इसलिए जैसे-तैसे एडजस्ट हो लिए। नेशनल हाइवे से जाने पर टोल टैक्स देना पड़ता है, इसलिए हमने दुधली वाला रास्ता पकडा़। यह रास्ता देहरादून वनप्रभाग के जंगल के बीच से होते हुए सीधे डोईवाला बाजार में खुलता है।
दोपहर साढे़ बारह बजे के आसपास हम लच्छीवाला नेचर पार्क के गेट पर थे। वहां रेंजर चंडीप्रसाद उनियाल जी से मिलने के बाद हमने पार्क में प्रवेश किया। अब तक कोठारीजी का कोई पता नहीं था और वे फोन भी नहीं उठा रहे थे। सो, हम सीधे म्यूजियम 'धरोहर' की तरफ बढ़ गए, जो कुछ समय पूर्व ही बना है। बहुत ही शानदार म्यूजियम है, अंदर जाते ही पर्यटकों को ठेठ उत्तराखंडी लोक में पहुंचा देता है। वह सभी वस्तुएं, जो हमारे पूर्वजों द्वारा उपयोग में लाई जाती रही होंगी और वर्तमान में लुप्त या चलन से बाहर हो चुकी हैं, यहां मौजूद हैं।
पारंपरिक कृषि बीज, हाथ चक्की (जंदरी), गंज्यली़ (धान कूटने वाला लकडी़ का उपकरण), ओखली (उरख्यली़), पर्या (दही बिलोने वाला लकडी़ का बर्तन ), डखुला़ (दही जमाने वाला चीनी मिट्टी का बर्तन ), राई (पर्या में दूध मथने वाली लकडी़ की छड़ यानी मथनी) नर्यलु़ (अनाज रखने वाला रिगांल से बना बर्तन), रिंगाल़ की कंडी, घीडा़, डलुण, भड्डू (कांसे का मोटी परत वाला बर्तन, जिसमें मोटी दाल पकाई जाती थी), तांबे व पीतल की तौल -तौली और गागर, पीतल का कस्यरा, कच्चे लोहे की कढा़ई, परात, लोक वाद्ययंत्र, अस्त्र-शस्त्र, लोक देवताओं की प्रतिमाएं, मुखौटे (ये मुख्य रूप से विश्व धरोहर रम्माण नृत्य में प्रयुक्त होते हैं) जैसी तमाम दुर्लभ वस्तुएं इस संग्रहालय में देखी जा सकती हैं।






















इसके अलावा पारंपरिक वेशभूषा, लोक नृत्य और लोक परंपराओं के दर्शन भी यह संग्रहालय कराता है। साथ ही विज्ञान, भूगोल व इतिहास भी यहां समाहित है। आप पहाड़ से जरा भी प्यार करते हैं तो यहां से लौटने का मन ही नहीं करेगा। पार्क के बीच से होकर खूबसूरत नहर भी गुजरती है और सौंग नदी भी। नदी में छोटे-छोटे बांध बनाकर पर्यटकों के लिए नहाने की व्यवस्था की जा रही है। आप यहां झील में बोटिंग का लुत्फ लेने के साथ ही बटरफ्लाई गार्डन, हर्बल गार्डन और बोनसाई गार्डन में भी वक्त गुजार सकते हैं। बाकी प्रकति के खूबसूरत नजारे तो चारों ओर बिखरे हुए हैं ही।
तकरीबन डेढ़ घंटे हम यहां रहे होंगे। इस बीच कोठारीजी भी आ गए थे, लेकिन उन्होंने भोजन की व्यवस्था नहीं की थी। इसलिए मूड आफ होना स्वाभाविक था, लेकिन हमने उनसे कुछ कहा नहीं। हां! उन्होंने चाय जरूर पिलाई। इसके बाद हम दुधली की ओर से ही देहरादून वापसी के लिए निकल पडे़। सुबह से कुछ खाया नहीं था, इसलिए भूख लगना स्वाभाविक था। कोठारीजी भी टांपा दे गए थे, लिहाजा हमारा प्लान बना कि रास्ते में किसी ढाबे में रुककर भोजन किया जाए। करीब पांच किमी चलने के बाद हमें सड़क किनारे एक ढाबा नजर आया। हमने वहीं कार पार्क की और चिकन-चावल और तवा रोटी बनाने का आर्डर कर दिया।
यही कोई आधा घंटा लगा होगा भोजन तैयार होने में। किरण भाई को छोड़कर बाकी सभी ने चिकन-भात का आनंद लिया। वे मांस-मछली नहीं खाते, इसलिए उन्होंने अपने लिया राजमा-चावल आर्डर किया। पेट भरने के बाद हम फिर निकले पडे़ मंजिल की ओर। पौन घंटा लगा होगा वहां से देहरादून पहुंचने में। कारगी चौक क्रास करने के बाद अचानक मन में विचार आया कि क्यों न चाय पीकर आफिस पहुंचा जाए, सो कारगी रोड पर आफिस से आधा-पौन किमी पहले हम एक होटल में रुके और चाय आर्डर कर दी। बाकी रुटीन तो हमेशा की तरह ही है।
इस समय रात के साढे़ बारह बजे हैं और मैं डायरी लिखने में निमग्न हूं। भोजन आज हल्का ही किया यानी दलिया। यही प्रकृति का नियम है। भोजन हमारे लिए है, हम भोजन के लिए नहीं। दिन में भारी भोजन किया था, इसलिए रात में हल्का जरूरी था। बाकी जरूरत गर्म पानी पूरी कर देता है। ठंडियों में मैं गर्म पानी ही पीता हूं। इससे सर्दी-खांसी-जुकाम परेशान नहीं करते। खैर! ये अपनी-अपनी सोच और अपना-अपना तरीका है कि किसे क्या लेना है। फिलहाल तो सोने का वक्त हो गया है और मुझे भी नींद आ रही है। ...तो ठीक है, कल फिर एक नए किस्से के साथ हाजिर होता हूं। नमस्कार!!












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Nature park tour
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Dinesh Kukreti
We were thinking for several days that on Sunday we would go for a visit to Lachhiwala Nature Park near Doiwala.  However, nothing could be decided exactly.  But, yesterday in the day when Kiran Bhai asked to reach the office by 11 am today, the program to go to Lachhiwala was confirmed.  He also said that if one percent is not able to go due to some reason, then he will get Rajma-rice in the office here.  By the way, Satiji has a talk with Doiwala Kothariji about lunch.  Now that all this is settled, then the question of refusal does not arise, so after bathing and meditating, I reached the office at exactly 11 in the morning.






















It was found in the office that Kedarji was not coming, while Barthwalji was ready to leave.  However, when Satiji asked Kedarji to go, he too agreed.  It was decided to go to Semwalji's car.  So, Kiran Bhai sat with Semwalji in the front seat and I, Satiji, Kedarji and Barthwalji got into the back seat.  There was a little problem, but did not have to go very far, so I adjusted somehow.  Toll tax has to be paid on going through the National Highway, so we took the two-way route.  This road passes through the forest of Dehradun Forest Division and opens directly to Doiwala Bazar.
We were at the gate of Lachhiwala Nature Park around 12.30 pm.  We entered the park after meeting Ranger Chandiprasad Uniyal ji there.  Till now there was no trace of Kothariji and he was not even picking up the phone.  So, we headed straight to the museum 'Dharhar', which has been built some time back.  It is a very wonderful museum, as soon as it goes inside, it takes tourists to the typical Uttarakhandi folk.  All those things, which would have been used by our ancestors and are currently extinct or out of use, are present here.

Traditional agriculture seed, hand mill (jandri), ganjyli (wooden instrument for crushing paddy), okhali (urkhayli), parya (wooden utensil for making curd), dakhula (porcelain for curdling), rai (in parya)  Wooden stick for churning milk, i.e. churning),    Narylu (a utensil made of rigal containing grains), Ringal ki kandi, Gheeda, Dalun, Bhaddu (a thick bronze vessel in which thick pulses were cooked), Copper and Brass weights  All the rare items like Touli and Gagar, brass casserole, cast iron kadhai, parat, folk instruments, weapons, statues of folk deities, masks (these are mainly used in World Heritage Raman dance) in this museum  can be seen.

Apart from this, this museum also offers traditional costumes, folk dance and folk traditions.  Along with this, science, geography and history are also included here.  If you love the mountain at all, then you will not feel like returning from here.  The beautiful canal also passes through the middle of the park and also the Saung River.  Bathing arrangements are being made for the tourists by making small dams in the river.  Apart from enjoying boating in the lake here, you can also spend time in Butterfly Garden, Herbal Garden and Bonsai Garden.  The beautiful views of the rest of the nature are scattered all around.
We must have been here for about an hour and a half.  Meanwhile, Kothariji had also come, but he had not arranged for food.  So it was natural to be in an off mood, but we didn't say anything to them.  Yes!  He did drink tea.  After this we set out from Dudhli to return to Dehradun.  Had not eaten anything since morning, so it was natural to feel hungry.  Kothariji had also been given to Tampa, so our plan was made to stop at some dhaba on the way to have food.  After walking for about five km, we saw a dhaba on the side of the road.  We parked the car there and ordered for making chicken-rice and tawa roti.















It would have taken about half an hour for the food to be ready.  Except Kiran bhai, everyone else enjoyed the chicken-bhaat.  He does not eat meat and fish, so he ordered his own rajma-rice.  After filling our stomach, we again started towards the floor.  It would have taken half an hour to reach Dehradun from there.  After crossing Kargi Chowk, suddenly a thought came to mind that why should not we reach the office after drinking tea, so we stayed in a hotel half-and-half km before the office on Kargi Road and ordered tea.  Rest of the routine is the same as usual.






















It is now twelve.30 pm and I am busy writing my diary.  The food was light today i.e. porridge.  This is the law of nature.  Food is for us, we are not for food.  Had a heavy meal during the day, so it was necessary to have a light one at night.  The rest of the requirement is met by hot water.  In winter I drink hot water only.  Due to this, cold, cough and cold do not bother.  So!  It's their own way of thinking and their own way of who to take what.  Right now it's time to sleep and I'm feeling sleepy too.  ... well then, tomorrow I will come again with a new anecdote.  Hi!!

Sunday, 21 November 2021

21-11-2021 (प्रेस क्लब क्रिकेट टूर्नामेंट)























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प्रेस क्लब क्रिकेट टूर्नामेंट
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दिनेश कुकरेती
ज मैंने दोपहर का भोजन नहीं बनाया। बीती रात आफिस से घर लौटते हुए सतीजी ने आज दोपहर 12 बजे पुलिस लाइन स्टेडियम चलने को कहा था, इसलिए हल्का-फुल्का नाश्ता करके दोपहर ठीक बारह बजे मैं आफिस पहुंच गया। बाइक पार्किंग में खडी़ कर जैसे में आफिस में अपने फ्लोर के प्रवेश द्वार पर पहुंचा, सतीजी वहीं खडे़ मेरी राह देख रहे थे। कहने लगे, 'मैं तो कब से इंतजार कर रहा था। फोन भी किया, तुमने उठाया ही नहीं।' मैंने कहा, 'रास्ते में था, इसलिए नहीं उठा पाया।' खैर! इसके बाद हम सतीजी की कार से सीधे पुलिस लाइन स्टेडियम के लिए रवाना हो गए।
तकरीबन बीस मिनट लगे हमें वहां पहुंचने में। अजय गौतम मेमोरियल क्रिकेट प्रतियोगिता के फाइनल मुकाबले की पहली पारी संपन्न हो चुकी थी और अब दूसरी टीम के ओपनर बैट्समैन क्रीज पर उतरने की तैयारी कर रहे थे। कार स्टेडियम के बगल वाले मैदान में खडी़ कर हम सीधे स्टेडियम में पहुंचे और कमेंटरी बाक्स के पास मित्र मंडली के साथ मैच देखने बैठ गए। तकरीबन दो घंटे यह पारी चली होगी और लक्ष्य का पीछा करने उतरी टीम ने आठ विकेट से फाइनल मुकाबला जीत लिया। विजेता-उपविजेता टीमों को पुरस्कृत करने के लिए सैनिक कल्याण मंत्री गणेश जोशी भी स्टेडियम में पहुंच चुके थे।

आधा घंटे में पुरस्कार वितरण की प्रक्रिया संपन्न हुई और इसके बाद सभी चल पडे़ भोजन के लिए। भोजन में चावल, मटन व पनीर बना हुआ था। हमने तो मटन-चावल का ही आनंद उठाया। इसके बाद हमने एक-दो डली गुड़ खाकर मुंह मीठा किया और पकड़ ली आफिस की राह।मटन काफी गला हुआ था और मसाले भी तीखे नहीं थे, इसलिए अन्य दिनों की अपेक्षा भोजन कुछ ज्यादा ही हो गया। सो, ऐसे में पेट भारी होना स्वाभाविक था। अन्य दिनों में शाम के वक्त कुछ-न-कुछ खाना हो जाता है, लेकिन आज बिल्कुल इच्छा नहीं थी।
सोच रहा था कि रात कमरे में दलिया बनाऊंगा, लेकिन अब लग रहा था कि दलिया की भी जरूरत नहीं पड़ने वाली। ऐसा ही हुआ भी। कमरे में पहुंचकर सबसे पहले मैंने रुटीन के कार्य निपटाए और फिर सोचा कि क्यों न दूध पीकर ही गुजर कर ली जाए। इच्छा न होने पर जबर्दस्ती भोजन करना समझदारी का काम भी नहीं है। सो, मैंने दूध गर्म किया और गुड़ की कटिंग के साथ उसका लुत्फ लेने लगा। सुबह के लिए काले चने भिगो लिए हैं और हाथ-मुंह धोकर अब आराम करने बैठा हुआ हुआ हूं।

मेरे लिए आराम का मतलब चित्त लेट जाना नहीं, बल्कि कोई पुस्तक पढ़ लेना या यू-ट्यूब पर कोई तर्कपूर्ण ज्ञानवर्द्धक वीडियो क्लिप देख लेना होता है। खासकर रवीश कुमार, अभिसार शर्मा, पुण्य प्रसून वाजपेयी, संदीप चौधरी, अजीत अंजुम, प्रज्ञा मिश्रा, साक्षी जोशी, आरफा खानम शेरवानी की न्यूज क्लिप, इंटरव्यू, चर्चा-परिचर्चा मैं जरूर देखता व सुनता हूं। इसके अलावा जौन एलिया, राहत इंदौरी, जा़वेद अख़्तर, वसीम बरेलवी, बशीर बद्र, अदम गोंडवी, दुष्यंत कुमार, साहिर लुधियानवी, फै़ज अहमद फै़ज, परवीन शाकिर, कुंवर जावेद, विष्णु सक्सेना आदि कवि, गीतकार व शायरों को सुनना व पढ़ना मुझे बेहद पसंद है।
























इस समय मैं गीतकार विष्णु सक्सेना को सुन रहा है। सममुच श्रृंगार के अद्भुत गीतकार हैं। एक बार सुनने लगो तो गीतों में डूब जाने का मन करता है। इससे पहले मैंने शायरा राना तबस्सुम को सुना। क्या कमाल की शायरी करती हैं। इन कवि व शायरों को सुन-सुनकर तो मैंने भी कविता, गीत व गज़ल लिखना सीखा। मेरा मानना है समाज को लोकतांत्रिक दिशा और वैज्ञानिक दृष्टि देने वालों को पढ़ते व सुनते रहना चाहिए। इससे ज्ञान तो मिलता ही है, सोच का दायरा भी बढ़ता है। आज के दौर में तो यह बेहद जरूरी है।

इन्‍हें भी पढ़ें : 

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Press Club Cricket Tournament
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Dinesh Kukreti
I didn't cook lunch today.  While returning home from office last night, Satiji had asked me to walk to Police Line Stadium at 12 noon, so after having a light breakfast, I reached the office at exactly 12 noon.  Standing in the bike parking lot, as I reached the entrance of my floor in the office, Satiji was standing there watching my way.  He said, 'How long have I been waiting?  Called too, you didn't even pick up.  I said, 'Was on the way, so couldn't lift it.'  So!  After this we left for the Police Line Stadium directly from Satiji's car.















It took us about twenty minutes to reach there.  The first innings of the final match of the Ajay Gautam Memorial Cricket Competition was over and now the opener batsmen of the other team were preparing to enter the crease.  Parked the car in the ground next to the stadium, we went straight to the stadium and sat down near the commentary box to watch the match with the group of friends.  This innings would have lasted almost two hours and the team chasing the target won the final match by eight wickets.  Sainik Welfare Minister Ganesh Joshi had also reached the stadium to reward the winning-runner-up teams.

The prize distribution process was over in half an hour and after that everyone went on to the food.  Rice, mutton and paneer were made in the food.  We only enjoyed mutton-rice.  After this, we sweetened our mouth after eating a couple of nuggets of jaggery and took our way to the office.  So, it was natural for the stomach to be heavy.  On other days some food is done in the evening, but today there was no desire at all.

I was thinking that I would make porridge in the room at night, but now it seemed that even porridge would not be needed.  The same thing happened.  After reaching the room, I first dealt with the routine tasks and then thought that why not pass it by drinking milk.  It is not a wise thing to eat forcibly when there is no desire.  So, I heated the milk and started enjoying it with jaggery cuttings.  I have soaked black gram for the morning and after washing my hands and face, now I am sitting to rest.
For me, rest doesn't mean lying down, but reading a book or watching a logically informative video clip on YouTube.  Especially Ravish Kumar, Sandeep Chaudhary, Ajit Anjum, Pragya Mishra, Sakshi Joshi, Arfa Khanum Sherwani's news clips, interviews, discussions and discussions, I definitely watch and listen.  Apart from this, listening and reading poets, lyricists and poets like Jaun Elia, Rahat Indori, Javed Akhtar, Wasim Barelvi, Bashir Badr, Adam Gondvi, Dushyant Kumar, Sahir Ludhianvi, Faiz Ahmed Faiz, Parveen Shakir, Kunwar Javed, Vishnu Saxena etc.  like.

Currently I am listening to lyricist Vishnu Saxena.  Sammukh Shringar is a wonderful lyricist.  Once you start listening, you feel like getting immersed in the songs.  Earlier I listened to Shayra Rana Tabassum.  What a wonderful poetry.  After listening to these poets and poets, I also learned to write poetry, songs and ghazals.  I believe that the society should keep reading and listening to those who give democratic direction and scientific vision.  This not only gives knowledge, but also increases the scope of thinking.  In today's era it is very important.

13-11-2024 (खुशनुमा जलवायु के बीच सीढ़ियों पर बसा एक खूबसूरत पहाड़ी शहर)

खुशनुमा जलवायु के बीच सीढ़ियों पर बसा पहाड़ी शहर ------------------------------------------------ ------------- भागीरथी व भिलंगना नदी के संग...