उमस भरी रातें
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दिनेश कुकरेती
अब तो आप जान ही गए होंगे कि नानी की कहानियों की मेरे जीवन में क्या अहमियत है। तब में छठी में पढ़ता था, जब नानी गांव छोड़कर स्थायी रूप से हमारे साथ रहने लगी थी। हम ऐसा ही चाहते भी थे। उस दौर में हम किराये के मकान में रहते थे। एक अदद कमरा व किचन हुआ करता था हमारे पास। महज 50 रुपया किराया था उस कमरे का। तब 50 रुपये की पांच हजार रुपये जितनी अहमियत हुआ करती थी। कोटद्वार बेहद गर्म शहर है और हम तब जोशीमठ जैसे ठंडे इलाके से आए थे। लिहाजा, ऐसी गर्मी को झेलना हमारे लिए आसान नहीं था।
वैसे तो गहरे में होने के कारण मेरे गांव भलगांव में भी काफी गर्मी पड़ती है। लेकिन, सुबह-शाम और रात के वक्त आसपास के जंगल से चलती ठंडी हवाएं वातावरण में सुकून घोल देती हैं। जबकि, कोटद्वार भाबर का हिस्सा है और यहां मैदानी क्षेत्र से आने वाली वाली गर्म हवाएं तन को झुलसा देती हैं। जेठ की तपती दुपहरी में चलने वाली लू के तो कहने ही क्या। उस पर घंटों बिजली का गुल रहना और मच्छरों का आतंक अलग से। उस दौर में रात-रातभर बिजली के कट लगना सामान्य बात हुआ करता था। कई बार तो दिन के वक्त भी बिजली घंटों नदारद रहती थी। सबसे बडी़ बात यह कि तब हमारे पास पंखा भी नहीं था।
तकरीबन दो-तीन साल की गर्मियां हमने बिना पंखे के ही काटीं। उस दौर में हम रात को आंगन में या छत पर सोया करते थे। हमारे पास सण की तीन चारपाई हुआ करती थी, जिनमें से एक स्थायी रूप से घर के बाहर रखी रहती थी। गर्मियों के दौरान चौक (आंगन) में हम इसी चारपाई को बिछाते थे। यह चारपाई मेरी व नानी की थी। मैं नानी के साथ ही सोता था। उमसभरी गर्मी में नींद तो घंटों आती ही नहीं थी, इसलिए मैं रोज नानी से कहानी सुनाने को कहता। नानी के पास कहानियों का कभी न खत्म होने वाला कोटा था, सो हर रात वो नई-नई कहानी सुनाती। ज्यादातर कहानियां राजा-रानी की हुआ करती थी।
किसी कहानी में वजीर भी मुख्य किरदार होता। इसके अलावा तरह-तरह के अन्य पात्र भी हुआ करते। कुछ कहानियां तो उसी क्रम में मुझे आज भी याद हैं। सबसे अच्छी मुझे संत-बसंत, रग-ठग व लिंडर्या छ्वारा की कहानी लगती थी। कई कहानियां प्रेरणाप्रद होती तो कई जागरुकता लाने वाली। कई ठेठ मनोरंजक। आगे कोशिश करूंगा कि ये कहानियां एक-एक कर आपको भी सुना सकूं। खैर! कहानी सुनाने से पहले नानी हमेशा मुझे टहलाने की कोशिश करती, लेकिन मैं भला कहां मानने वाला था। आखिरकार मेरी जिद के आगे नानी को हार माननी पड़ती।
कहानी सुनाने से पहले नानी की शर्त हुआ करती थी कि मैं उनके हर वाक्य के बाद हुंगरा जरूर दूं यानी हूं-हां जरूर करता रहूं। ताकि लगे कि मैं कहानी गंभीरता से सुन रहा हूं। हालांकि, कभी कहानी कहते-कहते नानी को नींद आ जाती तो कभी मुझे। नानी को नींद आती तो मैं उन्हें जगा देता, जबकि मुझे नींद आने पर नानी ने कभी मुझे जगाया नहीं। बल्कि, वह तो थपकी देकर मेरी नींद को और मजबूत कर देतीं। अगली रात मैं नानी से उस अधूरी छूट गई कहानी को पूरी करने की हठ करता। कई कहानियां तो ऐसी होती, जिन्हें बार-बार सुनने का मन करना। शायद ये नानी के कहानी कहने के अंदाज का जादू ही था, जो एक कहानी को बार-बार सुनकर भी जी नहीं भरता था।
कई दफा तो नानी बेहद सफाई से अपनी ही कहानी सुनाने लगती। लेकिन, जैसे ही मुझे लगता कि ये तो नानी की ही कहानी है, तुरंत दूसरी सुनाने के लिए कहता और नानी को मेरी बात माननी पड़ती। पूरी गर्मी कहानियों का यह सिलसिला चलता रहता। सचमुच! कैसा दौर था वो। जब भी उस दौर को याद करता हूं, अदृश्य रूप में तन-मन झूम उठता है। स्मृतियों का बडा़ भारी खजाना है, उस दौर का मेरे पास, जो कडी़ जोड़ने पर बढ़ता ही जा रहा है। लगता है कहानियों की एक नहीं, कई किताब तैयार हो जाएंगी। चलिए! देखते हैं क्या होता है।
(जारी...)
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Anecdote (3)
Sultry nights
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Dinesh Kukreti
Now you must have come to know that what is the importance of Nani's stories in my life. Then I was studying in the sixth grade, when Nani left the village and started living with us permanently. That's what we wanted too. At that time we used to live in a rented house. We used to have a lot of room and kitchen. The rent for that room was only 50 rupees. Then 50 rupees used to be as important as five thousand rupees. Kotdwar is a very hot city and we had come from a cooler area like Joshimath then. So, it was not easy for us to bear such heat.
By the way, due to being in the deep, it is very hot in my village Bhalgaon too. But, in the morning and evening and at night, the cold winds blowing from the surrounding forest add to the atmosphere. Whereas, Kotdwar is a part of Bhabar and the hot winds coming from the plains here scorch the body. What to say about the heat wave that runs in the scorching afternoon of the brother-in-law. There is a power failure on it for hours and the terror of mosquitoes separately. In those days, power cuts throughout the night used to be common. At times, even during the day, electricity was absent for hours. The biggest thing is that we didn't even have a fan at that time.
We spent almost two-three years of summer without a fan. At that time we used to sleep in the courtyard or on the terrace at night. We used to have three sun beds, one of which was permanently kept outside the house. We used to lay this charpai in the chowk (courtyard) during summers. This cot was mine and grandmother's. I slept with my grandmother. In the sweltering heat, I could not sleep for hours, so I would ask my grandmother to tell the story every day. Nani had a never-ending quota of stories, so every night she would tell a new story. Most of the stories were of kings and queens.
The wazir would also be the main character in a story. Apart from this, there would have been different types of other characters as well. I still remember some stories in the same sequence. Best of all, I liked the stories of Sant-Basant, Rag-Thag and Lindarya Chhavara. Many stories were inspirational and many would bring awareness. Lots of fun. I will try to narrate these stories to you one by one. So! Nani would always try to walk me before narrating the story, but where was I supposed to believe? Eventually, in front of my insistence, Nani had to give up.
Before narrating the story, it used to be the condition of the grandmother that I must give Hungra after every sentence, that is, I must keep doing it. So that it seems that I am listening to the story seriously. However, sometimes while telling the story, Nani would fall asleep and sometimes I would. If Nani felt sleepy, I would wake her up, whereas Nani never woke me up when I fell asleep. Rather, she would have strengthened my sleep by giving me a pat. The next night I would insist on Nani to complete that unfinished story. There are many stories that you want to hear again and again. Perhaps it was the magic of Nani's storytelling style, which could not live up to hearing a story over and over again.
At times, the grandmother would start telling her own story very clearly. But, as soon as I felt that this is the story of Nani, I would immediately ask for another narration and Nani would have to obey me. This series of stories continued throughout the summer. Really! What was that period? Whenever I remember that period, my body and mind shudder in an invisible form. There is a huge treasure trove of memories, of that era with me, which is increasing with every link. It seems that not one book of stories, but many books will be ready. Let go! Let's see what happens.
(Ongoing...)