Sunday, 31 December 2023

09-12-2023 (इन्सान को कुत्ता बनने की शुभकामनाएं)

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इन्सान को कुत्ता बनने की शुभकामनाएं

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दिनेश कुकरेती
कुछ दिन पहले मैं रात 11 बजे के आसपास आफिस से कमरे में लौट रहा था। जैसे ही मैं अपने मुहल्ले की लेन में दाख़िल हुआ, 50 मीटर की दूरी पर कुत्ते भोंकते नज़र आए। गौर से देखा तो एक व्यक्ति सड़क किनारे अपने कुत्ते के गले में पड़े पट्टे की रस्सी पकड़े खड़ा था। पास ही उसका कुत्ता अपने मल-मूत्र से सड़क को पवित्र कर रहा था। इसीलिए शायद वह कुत्ते को टहलाने के बहाने इतनी रात को सड़क पर निकला था। घर खराब होने का डर रहता है ना। यहां कौन है पूछने वाला। कुत्ते वालों का तो वैसे भी रुतबा होता है और फिर आस-पड़ोस वाले भी तो यही करते हैं। 

खैर! कुत्ते का व्यवहार बता रहा था कि वह खतरनाक नस्ल का है। जरा छूट गया तो दो-एक की टांगें चट कर जाएगा। यह कुत्ता टहलाने वाले के हाव-भाव से तो लग ही रहा था, कुत्ता भी निवृत्त होने के साथ लगातार हर आने-जाने वाले पर भोंक रहा था। नतीजा, सड़क पर आवारागर्दी कर रहे स्ट्रीट डॉग भी उस पर जमकर बरस रहे थे, लेकिन दूर-दूर से। मैंने महसूस किया कि कुत्ते वाले उस व्यक्ति का आचरण भी कुछ अलग ही तरह का है। सर्दी के इस मौसम में भी वह नेकर पहने हुए है। ऊपर जरूर मोटी स्वेट शर्ट है, लेकिन हाव-भाव से ऐसे प्रदर्शित कर रहा है, मानो ठंड का उस पर कोई असर ही नहीं होता। हो भी सकता है कि न हो रहा हो। चाल भी उसकी अकड़ वाली है, हालांकि कुत्ता उससे भी ज्यादा अकड़ वाला प्रतीत होता है। ऐसे में अंदाजा लगाना मुश्किल हो रहा है कि दोनों में कौन किसका मालिक है। वैसे रुतबा तो कुत्ते का ही है मालिक वाला। 
इस दृश्य को देखकर मुझे एक और वाकया याद हो आया है। चलिए! आपको भी सुनाता हूं- मेरे एक परिचित पत्रकार हैं। एक शाम किसी खबर के सिलसिले में उन्होंने एक महिला अधिकारी को फ़ोन लगाया। अधिकारी ने फ़ोन उठाया तो उनके इर्द-गिर्द कुत्ते के जोर-जोर से भोंकने की आवाज सुनाई दे रही थी। इससे मेरे परिचित स्वयं को असहज महसूस करने लगे और बोले, 'मैडम! कुत्ता जोर-जोर से भोंक रहा है ना, इसलिए साफ नहीं सुनाई दे रहा।' परिचित का इतना कहना था कि मैडम आगबबूला हो गई और लगभग चिल्लाने के अंदाज में बोलीं, 'तमीज से बात कीजिए...।' यह सुन बेचारे परिचित के सामने तो 'उगले बने न निगले' वाली स्थिति खड़ी हो गई। वह समझ नहीं पा रहे थे कि मैडम को अचानक यह क्या हो गया, जबकि उन्होंने तो कुछ भी नहीं कहा। 
फिर भी खबर के लिए तो बात करनी ही थी, सो बेहद सतर्क होकर बोले, 'मैडम कोई गलती हो गई क्या?' परिचित की इस बात से मैडम का पारा और चढ़ गया। बोलीं, 'गलती कह रहे हो, आपने मेरे बेबी को कुत्ता कैसे बोल दिया। नाराज़ कर दिया उसे। कुत्ता है क्या वह?' आप समझ सकते हैं कि मैडम की यह बात सुनकर परिचित का क्या हाल हुआ होगा। वह तो परिचित धीर-गंभीर स्वभाव वाले हैं, इसलिए चुपचाप खून का घूंट पीकर यह सब सहन कर गए। उनकी जगह मैं रहा होता तो परिणाम की चिंता किए बगैर न जाने क्या कह देता। हालांकि, अब लगता है कि परिचित ने ठीक ही किया। तर्क-वितर्क तभी ठीक लगते हैं, जब सामने वाले की फ़ितरत भी इन्सानी हो। 
बात चली ही है तो लगे हाथ एक वाकया और सुना दूं। दरअसल, पिछले दिनों मुझे किसी जरूरी काम से एक सज्जन के घर जाना पड़ा। उनके घर पर भी एक कुत्ता है विदेशी नस्ल का। कोई भी अनजान गेट के अंदर घुसने की हिमाकत नहीं कर सकता, उसकी अनुमति के बिना। हालांकि, मुझे कोई दिक्कत नहीं हुई, क्योंकि मुझे तो उन सज्जन ने ही बुलाया था और रिसीव करने गेट पर भी स्वयं ही खड़े थे। बावजूद इसके स्वभाव के अनुसार कुत्ता भोंकने लगा। ऐसे में डर तो लगता ही है। सज्जन भी मेरे हावभाव देख समझ गए कि मैं डर रहा हूं, सो कुत्ते को पुचकारते हुए बोले, 'ना-ना बेबी, देखो आपको मम्मा बुला रही हैं।' तभी भीतर से सज्जन की पत्नी की आवाज सुनाई दी, 'बेबी मम्मा इधर है।' यह सुन कुत्ता उसी ओर दौड़ा। 
सच कहूं, यह सब देख-सुन अपन का तो दिमाग भन्ना गया। यह विडंबना नहीं तो और क्या है। इन्सान की कोई औकात नहीं और कुत्ते से आप-आप। अब तो मुझे यकीन होने लगा है कि इन्सान कुत्ता और कुत्ता इन्सान बनने की ओर अग्रसर है। मैं रोज अपने मकान मालिक के परिवार को बड़े प्रेम से कुत्तों का मल-मूत्र साफ करते और आस-पड़ोस में कागज के टुकड़े बिखरे होने पर भी लोगों को खरी-खोटी सुनाते देखता हूं। तब लगता है कि इन्सान की इन्सान के प्रति संवेदनाएं किस तरह मरती जा रही हैं। अगर यही नियति है तो मेरी और से भी इन्सान को कुत्ता बनने की ढेरों शुभकामनाएं।
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Best wishes for a human being to become a dog
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Dinesh Kukreti
A few days ago, I was returning to my room from office around 11 pm.  As soon as I entered the lane of my locality, dogs were seen barking at a distance of 50 meters.  If I looked closely, I saw that a person was standing on the roadside holding the rope of the leash around his dog's neck.  Nearby his dog was purifying the road with its feces and urine.  That's probably why he went out on the road so late at night on the pretext of walking the dog.  There is a fear of damage to the house.  Who is here to ask?  People with dogs have a status anyway and the neighbors also do the same.

well!  The behavior of the dog indicated that it was a dangerous breed.  If you miss a bit, you will break someone's legs.  It was evident from the behavior of the dog walker that even after retiring, the dog was continuously barking at every passerby.  As a result, the street dogs roaming on the road were also attacking him fiercely, but from a distance.  I realized that the behavior of the person with the dog was also different.  Even in this winter season he is wearing neckerchief.  He is definitely wearing a thick sweat shirt on top, but through his body language he is showing as if the cold has no effect on him.  It may or may not be happening.  His gait is also swaggering, although the dog appears to be even more swaggering.  In such a situation, it is becoming difficult to guess who is the owner of whom.  Well, the status of the dog is that of its owner.

Seeing this scene, I remember another incident.  Let go!  Let me tell you also - I have an acquaintance who is a journalist.  One evening he called a lady officer regarding some news.  When the officer picked up the phone, the sound of dogs barking loudly could be heard all around him.  Due to this my acquaintance started feeling uncomfortable and said, 'Madam!  The dog is barking loudly, so it cannot be heard clearly.  The acquaintance said so much that madam became furious and said almost in a shouting manner, 'Talk politely...'  Hearing this, the poor acquaintance faced a situation of 'spitting out or swallowing'.  He was not able to understand what happened to madam suddenly, even though she did not say anything.

Still, he had to talk for the sake of news, so he said very cautiously, 'Madam, has there been any mistake?'  Madam's temper rose further due to this acquaintance.  She said, 'You are making a mistake, how did you call my baby a dog?  Made him angry.  Is that a dog?'  You can understand what would have been the condition of the acquaintance after hearing these words from madam.  He is known to have a patient and serious nature, hence he tolerated all this silently by drinking a sip of blood.  If I had been in his place, I don't know what I would have said without worrying about the consequences.  However, now it seems that the acquaintance did the right thing.  Arguments seem appropriate only when the other person's nature is also human.

Since the discussion is going on, let me tell you one more incident.  Actually, recently I had to go to a gentleman's house for some important work.  He also has a dog of a foreign breed at home.  No stranger can dare to enter the gate without his permission.  However, I did not face any problem, because the gentleman himself had called me and he himself was standing at the gate to receive me.  Despite this, the dog started barking as per its nature.  In such a situation one definitely feels scared.  Seeing my expressions, the gentleman also understood that I was scared, so while caressing the dog he said, 'No-no baby, look, mom is calling you.'  Just then the voice of the gentleman's wife was heard from inside, 'Baby mummy is here.'  Hearing this the dog ran in that direction.

To tell the truth, after seeing and hearing all this, my mind was blown.  If this is not irony then what is it?  A human being has no status and a dog has nothing to do with you.  Now I have started believing that man is moving towards becoming dog and dog is moving towards becoming human.  Every day I see my landlord's family lovingly cleaning the dog's urine and feces and scolding people even when there are pieces of paper scattered in the neighborhood.  Then it seems how man's feelings towards man are dying.  If this is the destiny, then I wish the human being all the best for becoming a dog.






 

Sunday, 10 December 2023

08-12-2023 (कुत्ते से ज्यादा खतरनाक है कुत्ता होना)


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कुत्ते से ज्यादा खतरनाक है कुत्ता होना

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दिनेश कुकरेती
ज (आठ नवंबर 2023) को रुड़की में पिटबुल नस्ल के कुत्ते ने एक बुजुर्ग महिला पर जानलेवा हमला कर उसे बुरी तरह नोंच  डाला। उसके शरीर पर जगह-जगह गहरे जख़्म आए हैं। वह तो शुक्र है आस-पड़ोस के उन लोगों का, जिनके शोर मचाने पर महिला की जान बच गई। आप इसे सामान्य घटना मान सकते हैं, लेकिन मेरी दृष्टि में यह स्थिति बेहद गंभीर एवं चिंताजनक है। दरअसल, पिटबुल पालने पर दुनिया के लगभग 40 देशों में प्रतिबंध है। कारण है इसकी हिंसक प्रवृत्ति। बावजूद इसके भारत में इसे लोगों ने स्टेटस सिंबल बना लिया लिया है, फिर चाहे यह किसी की जान ही क्यों न ले ले। देश में ऐसे कई मामले हो चुके हैं, लेकिन न कुत्ते पालने वालों पर इसका कुछ असर होता, न समाज की सुरक्षा के प्रति जिम्मेदार एजेंसियों पर ही।  


मेरी तो समझ में नहीं आता कि हम जा किस दिशा में रहे हैं। दुहाई देते हैं मानवता की और चिंता आस-पड़ोस वालों तक की नहीं करते। जिस देश में 80 करोड़ लोग गर्दिश में जीने को मजबूर हों, वहां पिटबुल जैसे हिंसक जानवर पालने वाले उन पर लाखों रुपये पानी की तरह बहा दे रहे हैं। चलो घर की चहारदीवारी में तो वे जो करें-सो करें, लेकिन यहां तो वे आस-पड़ोस वालों के जीवन को भी खतरे में डाल रहे हैं। आखिर समाज के प्रति भी तो हमारी कोई जिम्मेदारी होती है। मैंने वर्षों पूर्व 'अंदर कुत्ता रहता है' शीर्षक से एक लेख लिखा था, जो वर्तमान में पूरी तरह चरितार्थ हो रहा है। कुत्तों के कुत्तेपने में तो आज भी कोई बदलाव नहीं आया, लेकिन इंसान में इंसानियत का भाव कहीं नज़र नहीं आता। 
मुझे तो आश्चर्य तब होता है, जब देखता हूं कि गाय पालने वाले की समाज में कोई इज्ज़त नहीं और कुत्ता पालने वाला रसूखदार माना जाता है। जबकि, दूध सबको गाय का ही पीना है, कुत्ते का नहीं। विडंबना देखिए, आज गाय पालना उसे भी मंजूर नहीं, जिसके पास पर्याप्त जगह है और वह उसके लिए चारे की व्यवस्था भी आसानी से कर सकता है। हां! चार-चार कुत्ते पालने में उसे कोई दिक्कत नहीं, भले ही इसके लिए बच्चों का हक क्यों न मारना पड़े। उनका मलमूत्र क्यों न साफ करना पड़े। मैंने ऐसे कई लोग देखे हैं, जो अपना मुंह भले ही न धोते हों, लेकिन सुबह उठकर कुत्तों को रगड़-रगड़कर नहलाना नहीं भूलते। बच्चों के बीमार पड़ने पर मेडिकल स्टोर से दवाई ले आते हैं, लेकिन कुत्ता बीमार पड़ जाए तो उसे हर हाल में डॉक्टर के पास ले जाना है।
मितरों! आप मुझे 'ओल्ड माइंडेड' कह सकते हो, मुझे इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ने वाला। जानवरों से प्रेम कीजिए, बहुत अच्छी बात है। लेकिन, इस बात को हमेशा याद रखिए कि जानवर इंसान से ऊपर नहीं है और कभी हो भी नहीं सकता। अगर आपकी नज़र में इंसान की जानवर, खासकर कुत्ते के सामने कोई इज्जत नहीं है तो यकीन जानिए कि आपने इंसान होने का ओहदा खो दिया है। लाखों वर्ष पहले आप जहां थे, फिर वहीं जाने की ओर अग्रसर हो। याद रखिए, यह बदलाव आपके बाहरी स्वरूप में नहीं होने वाला, बल्कि इससे आपका अंतर्मन कलुषित हो उठेगा। यदि ऐसा होता है तो यह मानव सभ्यता के लिए गंभीर खतरा है, जिसे हम शायद भांप नहीं पा रहे या फिर भांपना ही नहीं चाहते। 
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Being a dog is more dangerous than being a dog
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Dinesh Kukreti
Today (November 8, 2023) in Roorkee, a dog of the Pitbull breed fatally attacked an elderly woman and scratched her badly.  There are deep wounds at many places on his body.  It is thanks to the people in the neighborhood whose noise saved the woman's life.  You may consider this a normal incident, but in my view this situation is very serious and worrying.  Actually, there is a ban on raising pitbulls in about 40 countries of the world.  The reason is its violent tendencies.  Despite this, people in India have made it a status symbol, even if it takes someone's life.  There have been many such cases in the country, but it has had no impact on dog owners or on the agencies responsible for the safety of the society.



 
I don't understand in which direction we are going.  They cry out for humanity and don't even care about their neighbours.  In a country where 80 crore people are forced to live in poverty, those who keep violent animals like pit bulls are spending lakhs of rupees on them like water.  Let them do whatever they want within the boundary walls of the house, but here they are putting the lives of the neighbors in danger.  After all, we have some responsibility towards the society also.  I had written an article years ago titled 'The dog lives inside', which is currently being fully implemented.  Even today, there is no change in the dog-ness of dogs, but there is no sense of humanity in humans.

I am surprised when I see that the one who keeps cows has no respect in the society and the one who keeps dogs is considered influential.  Whereas, everyone has to drink milk of cow only, not of dog.  See the irony, today rearing a cow is not acceptable even to those who have enough space and can easily arrange fodder for it.  Yes!  He has no problem in keeping four dogs, even if it means sacrificing the rights of his children.  Why don't we have to clean their excreta?  I have seen many people who, even if they do not wash their faces, do not forget to rub and bathe their dogs after getting up in the morning.  When children fall ill, medicines are bought from the medical store, but if a dog falls ill, it must be taken to the doctor.

 Friends!  You can call me 'old minded', it won't make any difference to me.  Love animals, it is a very good thing.  But, always remember that animals are not and can never be above humans.  If in your view, humans have no respect for animals, especially dogs, then rest assured that you have lost your status as a human being.  You are on your way to getting back to where you were millions of years ago.  Remember, this change will not happen in your external appearance, rather it will pollute your inner self.  If this happens then it is a serious threat to human civilization, which we perhaps are not able to realize or do not want to realize.

यह भी देखेंhttps://youtu.be/iuNyp04_rik?si=SKzKmPoFb1MMgzj5

Friday, 8 December 2023

22-11-2023 (दूरदर्शन में मंगलेश दा पर चर्चा)

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दिनेश कुकरेती
मझ नहीं आ रहा कि कहां से शुरू करूं। मेरे जैसे अदने व्यक्ति के लिए संभव भी नहीं है मंगलेश डबराल जैसे विराट व्यक्तित्व को किसी खांचे में फिट कर परिभाषित करना। सच कहूं तो ऐसा किया भी नहीं जाना चाहिए। मैंने मंगलेश दा को करीब से देखा और समझा भी है। पहली नज़र में वे बेहद कठोर नज़र आए थे, ठेठ अकड़ू टाइप। लेकिन, धीरे-धीरे जब उन्हें जान-समझ गया, तब महसूस हुआ कि वह तो बेहद सहृदय इन्सान हैं। एक व्यक्ति के रूप में भी और एक कवि एवं साहित्यकार के रूप में भी। उनमें पहाड़ समय हुआ था और पहाड़ में वो। यह दीगर बात है कि गांव छोड़ने के बाद वे कभी वापस नहीं लौटे, बावजूद उनके अंदर पहाड़ हमेशा उसी रूप में जिंदा रहा, जैसा कि वह छोड़कर गए थे। 


मंगलेश की लेखनी कभी भी स्वयं को पहाड़ से विरत नहीं कर पाई। वह उत्तराखंड के पहले कवि हैं, जिन्होंने पहाड़ को अपनी कविता और गद्य में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। इसलिए जब उनकी चेतना और संवेदना पर परिचर्चा की बात आई तो मैं इसमें हिस्सा लेने से इन्कार नहीं कर पाया और निर्धारित समय से पूर्व दूरदर्शन पहुंच गया। साथी मुकेश नौटियाल लगभग 20 मिनट बाद पहुंचे। तब तक मैं गेट पर ही उनका इंतजार करता रहा। एक बजे के आसपास हम अतिथिगृह में पहुंचे। वहां राणाजी (कार्यक्रम अधिकारी) ने हमसे मेकअप रूम में चलने का आग्रह किया। वहां पहुंचे तो देखा कि कवियत्री बीना बेंजवाल का मेकअप किया रहा है। मैंने सोचा शायद महिलाओं के लिए जरूरी होता होगा, लेकिन बीना जी के उठने के बाद जब मेकअप कर रही महिला ने मुझसे भी दर्पण के सामने बैठने के लिए कहा तो तब जाकर सारा माजरा मेरी समझ मे आया।
मेरे लिए यह बिल्कुल नया अनुभव था, क्योंकि पहले कभी इस तरह चेहरे की सजावट नही की गई थी। फिर सोचा हो सकता है उम्र के प्रभाव को दबाने के लिए ऐसा किया जाना जरूरी हो। खैर! मेकअप रूम से सज-धजकर हमने स्टूडियो में प्रवेश किया, उसका हासिल यह परिचर्चा है। मैं अच्छा वक्ता नहीं हूं, लेकिन विषयों की थोड़ा-बहुत समझ होने के कारण साहित्यिक बिरादरी के लोग मेरे साथ बैठना पसंद करते हैं। मेरी हमेशा यही कोशिश रहती है कि दिमाग को वैचारिक स्तर पर तरोताजा रखूं। अच्छे एवं वैज्ञानिक सोच वाले लेखकों को पढूं। संस्कृति एवं संस्कारों से ख़ुद को जोड़े रखूं। मंगलेश डबराल भी इसी पांत के कवि एवं साहित्यकार हैं। समकालीनों में सबसे ज्यादा तैयार, मंझी हुई और तहदार ज़बान लिखने वाले। इससे भी बड़ी बात यह कि वह उत्तराखंड से हैं और उनकी कविताओं ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत पहचान कायम की।
मुझे अच्छा लगा कि कवियत्री बीना बेंजवाल के पास मंगलेश डबराल की सभी पुस्तकें मौजूद हैं और उन्होंने इनका गहन अध्ययन भी किया है। भाई मुकेश नौटियाल भी मंगलेश दा के काफी करीबी रहे हैं और उन्होंने मंगलेश को पढ़ा भी खूब है। यही पढ़ने-लिखने की परंपरा हमें एक-दूसरे के करीब लाती है। हमारा मंगलेश से अपनापा भी इसी विशेषता के कारण है। मैं दूरदर्शन जाते हुए उत्तरांचल प्रेस क्लब की पत्रिका 'गुलदस्ता' की दो प्रति भी साथ ले गया था। इसमें तमाम साथियों के उत्तराखंड आंदोलन के संस्मरणों को समाहित किया गया है। इसे मैं अपना सौभाग्य मानता हूं कि पत्रिका के संपादन की जिम्मेदारी मुझे मिली और मैंने भी इसे निभाने में अपनी ओर से कोई कसर बाकी नहीं रखी। लिहाज़ा ऐसे दस्तावेज को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाना मैं जरूरी समझता हूं। अच्छा यह लगा कि बीना जी और मुकेश भाई पत्रिका की प्रति पाकर काफी खुश हुए। इसके बाद मैंने मुकेश भाई को उनके आफिस तक छोड़ा और खुद भी आफिस की राह चल पड़ा।

परिचर्चा का वीडियो देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कीजिए ;

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Discussion on Manglesh Da in Doordarshan
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Dinesh Kukreti
Don't know where to start.  It is not even possible for an ordinary person like me to fit a huge personality like Manglesh Dabral into any box and define him.  To be honest, this should not even be done.  I have seen and understood Manglesh da closely.  At first glance he appeared very rigid, a typical stubborn type.  But, when I gradually got to know him better, I realized that he was a very kind-hearted person.  Both as a person and also as a poet and litterateur.  There was a mountain of time in them and he in the mountain.  It is a different matter that after leaving the village he never returned, yet the mountain always remained alive within him in the same form in which he had left it.

Manglesh's writing could never distance itself from the mountain.  He is the first poet from Uttarakhand, who gave international recognition to the mountain in his poetry and prose.  Therefore, when it came to the discussion on his consciousness and sensitivity, I could not refuse to participate in it and reached Doordarshan before the scheduled time.  Partner Mukesh Nautiyal arrived after about 20 minutes.  Till then I kept waiting for him at the gate.  We reached the guest house around 1 o'clock.  There Ranaji (programme officer) requested us to go to the make-up room.  When we reached there, we saw that poetess Beena Benjwal was doing her makeup.  I thought maybe it would be necessary for women, but after Beena ji got up, when the woman doing make-up asked me to sit in front of the mirror, then I understood the whole matter.

This was a completely new experience for me, because face decoration had never been done like this before.  Then it was thought that it might be necessary to do this to suppress the effects of age.  well!  After getting dressed up from the make-up room, we entered the studio, what we achieved is this discussion.  I am not a good speaker, but because of my slight understanding of the subjects, people from the literary fraternity like to sit with me.  I always try to keep my mind fresh at the ideological level.  Read good and scientifically minded writers.  Keep myself connected to culture and traditions.  Manglesh Dabral is also a poet and litterateur of this line.  The most prepared, fluent and well-spoken writer among his contemporaries.  What's more, he is from Uttarakhand and his poems have gained strong recognition at the international level.

I liked that poetess Beena Benjwal has all the books of Manglesh Dabral and has studied them thoroughly.  Brother Mukesh Nautiyal has also been very close to Manglesh da and he has also studied Manglesh a lot.  This tradition of reading and writing brings us closer to each other.  Our affinity with Manglesh is also due to this specialty.  While going to Doordarshan, I had also taken with me two copies of Uttaranchal Press Club's magazine 'Guldasta'.  It contains the memoirs of many comrades about the Uttarakhand movement.  I consider it my good fortune that I got the responsibility of editing the magazine and I left no stone unturned in fulfilling it.  Therefore, I consider it necessary to make such documents available to as many people as possible.  It was good that Bina ji and Mukesh Bhai were very happy after receiving the copy of the magazine.  After this, I dropped Mukesh Bhai to his office and I myself started on my way to the office.

13-11-2024 (खुशनुमा जलवायु के बीच सीढ़ियों पर बसा एक खूबसूरत पहाड़ी शहर)

खुशनुमा जलवायु के बीच सीढ़ियों पर बसा पहाड़ी शहर ------------------------------------------------ ------------- भागीरथी व भिलंगना नदी के संग...