Thursday, 30 May 2024

30-05-2023 (हिमालय में शीत केदार दर्शन)

मक्‍कूमठ गांव
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हिमालय में शीत केदार दर्शन

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दिनेश कुकरेती
त्‍तराखंड हिमालय के चारधाम से तो सारी दुनिया परिचित है, ले‍क‍िन पंचकेदार समूह के मंदिरों के बारे में आज भी कम ही लोग जानते हैं। यहां तक कि उत्‍तराखंड में भी लोगों को ठीक से इनके बारे में जानकारी नहीं है। उस पर शीत केदार समूह के मंदिरों को जानने वाले तो शायद गिनती के ही होंगे। ये वही मंदिर हैं, जहां मुख्‍य मंदिरों के कपाट बंद होने के बाद शीतकाल में पंचकेदार विराजते हैं। आश्‍चर्य देखिए कि ये सभी मंदिर उसी कालखंड के हैं, जिस कालखंड में पंचकेदार समूह के मंदिरों का निर्माण हुआ और इनका माहात्‍म्‍य भी पंचकेदार जितना ही है। इसलिए यदि आप स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी या अन्‍य कारणों से पंच केदार समूह के मुख्‍य मंदिरों (केदारनाथ, द्वितीय केदार मध्‍यमेश्‍वर, तृतीय केदार तुंगनाथ, चतुर्थ केदार रुद्रनाथ व पंचम केदार कल्‍पेश्‍वर) में दर्शनों को नहीं पहुंच पाए तो निराश होने की जरूरत नहीं है। इन मंदिरों में आकर भी पंचकेदार दर्शन का पुण्‍य अर्जित कर सकते हैं। ये मंदिर हैं, ऊखीमठ स्थित ओंकारेश्‍वर मंदिर, मक्‍कूमठ स्थित मार्कंडेय (मर्कटेश्‍वर) मंदिर और गोपेश्‍वर स्थित गोपीनाथ मंदिर। पंचम केदार कल्‍पेश्‍वर मंदिर के कपाट बारहों महीने खुले रहते हैं, इसलिए भगवान कल्पेश्वर को कहीं प्रवास पर नहीं जाना पडता। विशेष यह कि शीत केदार समूह के सभी मंदिर मोटर मार्ग से जुडे हैं। ...तो आइए! शीत केदार समूह के इन मंदिरों के दर्शन करें-
ओंकारेश्‍वर मंदिर ऊखीमठ


ओंकारेश्वर धाम : यहां विराजते हैं पंचकेदार
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शीत केदार समूह के मंदिरों में पहला स्‍थान है ऊखीमठ स्थित ओंकारेश्‍वर मंदिर का। रुद्रप्रयाग जिले में समुद्रतल से 1311 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर 11वें ज्‍योतिर्लिंग भगवान केदारनाथ। ही नहीं, द्वितीय केदार भगवान मध्‍यमेश्‍वर भी का भी शीतकालीन गद्दीस्‍थल है। शीतकाल के छह माह बाबा केदार और बाबा मध्यमेश्वर की पूजाए यहीं संपन्न होती हैं। सबसे अहम यह कि यहां पांचों केदार पिंडी रूप में विराजमान हैं, इसलिए इस मंदिर की ख्‍याति पंचगद्दी स्‍थल के रूप में भी है। यहां आने पर आपको एक साथ पांचों केदार के दर्शन हो जाते हैं। आप जब इच्छा हो ओंकारेश्‍वर धाम आ सकते हैं, क्‍योंकि यह मंदिर बारहों महीने दर्शनों के लिए खुला रहता है। 600 परिवार और लगभग 3,000  की आबादी वाले ऊखीमठ नगर में प्राकृतिक सुंदरता सर्वत्र बिखरी हुई है। यहां की सुरम्य वादियां, ठीक सामने नजर आने वाली चौखंभा की हिमाच्छादित चोटियां और बांज-बुरांश के घने जंगल हर किसी का मन मोह लेते हैं। नगर के मध्य में ओंकारेश्वर मंदिर स्थापित है। देश-दुनिया में यही एकमात्र मंदिर बचा है, जिसका निर्माण अतिप्राचीन धारत्तुर परकोटा शैली में हुआ है। ओंकारेश्वर मंदिर का निर्माण द्वापर युग में हुआ माना जाता है। मान्यता है कि शिव भक्त बाणासुर की बेटी उषा व भगवान कृष्ण के पोते अनिरुद्ध की शादी इसी स्थान पर हुई थी। इसलिए इस तीर्थ को देवी उषा के नाम पर उषामठ कहा जाने लगा। कालांतर में उषामठ का अपभ्रंश होकर पहले इसका नाम उखामठ और फिर ऊखीमठ नाम पड़ा। देवी उषा के आगमन से पूर्व इस स्थान का नाम ‘आसमा’ था। राजा मान्धाता की तपस्थली होने के कारण इसे मान्धाता भी कहा जाता है। इसलिए केदारनाथ की बहियों का प्रारंभ ‘जय मान्धाता’ से ही होता है।ऊखीमठ के आसपास चोपता, दुगलबिट्टा, देवरियाताल जैसे प्रसिद्ध पर्यटन स्थल स्थित हैं। भक्त पंचकेदार दर्शनों के साथ ही इन पर्यटन स्थलों की भी सैर कर सकते हैं। इसके अलावा त्रियुगीनारायण व कालीमठ जैसे प्रमुख तीर्थ स्थलों के दर्शनों को भी आसानी से पहुंचा जा सकता है।
मार्कंडेय (मर्कटेश्वर) मंदिर मक्‍कूमठ


मक्कूमठ के मर्कटेश्वर महादेव
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रुद्रप्रयाग जिले में समुद्रतल से 2100 मीटर की ऊंचाई पर मक्कूमठ गांव में स्थित मार्कंडेय (मर्कटेश्वर) मंदिर में तृतीय केदार भगवान तुंगनाथ शीतकाल के छह माह प्रवास करते हैं। रुद्रप्रयाग शहर से 44 किमी दूर स्थित पट्टी परकंडी और ऊखीमठ तहसील का मक्कूमठ गांव चारों ऒर से देवदार, बांज, बुरांश व थुनेर के घने जंगल से घिरा है। गांव का इतिहास प्रथम शताब्दी पूर्व से माना जाता है। मार्कंडेय ऋषि की तपोस्थली कहा जाने वाला यह क्षेत्र देवासुर संग्राम के साथ आर्य और अनार्य जातियों की संघर्ष गाथाएं अपने मे समेटे हुए है। प्राचीन आदिवासी जातियां ग्रीष्मकाल में अपने पशुओं के साथ बुग्यालों की प्राकृतिक सुषमा में और शीतकाल के दौरान मक्कू में रहकर जीवनयापन करती थीं। ये आदिवासी जातियां कालांतर में बौद्ध धर्म से प्रभावित हो गईं। बाद में सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए आए आदि शंकराचार्य ने यहां तुंगनाथ मठ की स्थापना की। लेकिन, वर्ष 1803 के भूकंप में प्राचीन सभ्यता का यह केंद्र तहस-नहस हो गया। उस दौर में गांव की परिधि चंद्रशिला शिखर तक फैली थी, जो कि समुद्रतल से 12,103 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इस क्षेत्र में भगवान तुंगनाथ के दो मंदिर हैं, एक मक्कूमठ में और दूसरा समुद्र सतह से 12,073 फीट की ऊंचाई पर मुख्य मंदिर। दोनों की आकृति व रूप समान हैं। अंतर सिर्फ इतना है एक छह महीने बर्फ से ढका रहता है तो दूसरा सालभर खुला रहता है। पांडुकेश्वर, गोपेश्वर, नारायणकोटि, त्रियुगीनारायण व तुंगनाथ की ही तरह मर्कटेश्वर मंदिर भी कत्यूरी शैली में बना हुआ है, जिसे गुप्तोत्तरकालीन मंदिर स्थापत्य कहा जाता है। भगवान तुंगनाथ का शीतकालीन आवास होने के चलते यहां वर्ष में दो बड़े उत्सव 'द्यवता औण' (देवता का आना) और 'द्यवता जौण' (देवता का जाना) आयोजित होते हैं। ऊखीमठ के रास्ते मक्कूमठ पहुंचने के लिए 32 किमी और भीरी के रास्ते 16 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। यहां के एक जंगली रास्ते से तुंगनाथ की दूरी केवल आठ किमी है। मक्कूमठ दुर्लभ हिमालयी पक्षी प्रजातियों का घर है और उन लोगों के लिए एक अद्भुत जगह है जो शहर की हलचल से दूर किसी शांतिपूर्ण जगह की तलाश में हैं। 
गोपीनाथ मं‍दिर गोपेश्‍वर


गोपेश्वर के गोपीनाथ
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चमोली जिला मुख्‍यालय गोपेश्वर में समुद्रतल से 1,308 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गोपीनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। केदारनाथ मंदिर के बाद 71 फीट ऊंचा गोपीनाथ मंदिर उत्तराखंड के सबसे प्राचीन मंदिरों की श्रेणी में आता है। इस मंदिर में अन्य शिव मंदिरों की तरह भगवान शिव को दूध और जल अर्पित नहीं किया जाता, बल्कि यहां भगवान शिव का अभिषेक सिर्फ बिल्‍वपत्र से होता है। शीतकाल के लिए कपाट बंद होने पर पंचकेदार में चतुर्थ भगवान रुद्रनाथ यहीं अपने भक्‍तों को दर्शन देते हैं। इसलिए गोपीनाथ मंदिर की ख्‍याति रुद्रनाथ मंदिर के रूप में भी है। चारधाम यात्रा मार्ग में पड़ने के कारण यहां पहुंचने के लिए अतिरि‍क्‍त समय व धन की जरूरत नहीं पड़ती। गोपीनाथ मंदिर का इतिहास नवीं से 11वीं सदी के मध्य कत्यूरी शासन काल का माना जाता है। मंदिर में एक अद्भुत गुंबद और 24 दरवाजों से सुशोभित 30 वर्गफीट का एक गर्भगृह है। गर्भगृह में मौजूद स्वयंभू शिवलिंग को भगवान गोपीनाथ के रूप में पूजा जाता है। मुख्य मंदिर वास्तुकला की नागर शैली का अनुसरण कराता है, जो उसके विशाल शिखर और जटिल नक्काशी की विशेषता है। यह शैली उत्तर भारत में प्रचलित है और उस युग के कारीगरों के कुशल शिल्प कौशल को दर्शाती है। मंदिर की दीवारें भगवान भैरवनाथ और भगवान नारायण की छवियों से सुशोभित हैं। जबकि मंदिर प्रांगण में कई शिवलिंग और एक कल्पवृक्ष मौजूद है। मंदिर प्रांगण में 12वीं सदी का अष्‍टधातु न‍िर्मित पांच मीटर लंबा त्रिशूल स्‍थापित है, जिसके मध्य में एक परशु भी है। त्रिशूल को उसके आकार, बनावट व उसमें उत्कीर्ण लेखों के आधार पर तीन हिस्सों- ऊपरी फलक, मध्य फलक व आधार फलक में विभक्त किया जा सकता है। ऊपरी फलक त्रिशूल का मुख भाग है। मध्य फलक, जिस पर नाग वंश के शासक गणपति नाग का प्रशस्ति लेख अंकित है और आधार फलक, जिस पर नेपाल के मल्ल राजा अशोक चल्ल का 1191 ईस्वी का प्रशस्ति लेख अंकित है। गणपति नाग के दक्षिणी ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण अभिलेख में गणपति नाग के अतिरिक्त तीन अन्य नाग राजाओं स्कंद नाग, विभु नाग व अंशु नाग के नामों का भी उल्लेख है। अभिलेख से ही यह जानकारी भी मिलती है कि गणपति नाग ने अपने द्वितीय राजवर्ष में रुद्रमहालय के समक्ष शक्ति (त्रिशूल) की स्थापना की। इतिहासकारों ने उक्त अभिलेख के अंकन का काल छठी सदी बताया है। इसी आधार पर कहा जा सकता है कि गोपीनाथ मंदिर के प्रांगण में त्रिशूल की स्थापना छठी से सातवीं सदी के दौरान नागवंशीय शासक गणपति नाग ने की होगी।
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गोपीनाथ मं‍दिर गोपेश्‍वर


Winter Kedar Darshan in Himalayas
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Dinesh Kukreti
The whole world is familiar with the Char Dhams of Uttarakhand Himalayas, but even today very few people know about the temples of the Panch Kedar group. Even in Uttarakhand, people do not have proper information about them. On top of that, those who know about the temples of the Winter Kedar group are probably very few. These are the same temples where Panch Kedar resides in winter after the doors of the main temples are closed. Surprisingly, all these temples belong to the same period in which the temples of the Panch Kedar group were built and their importance is also as much as Panch Kedar. Therefore, if you are unable to visit the main temples of the Panch Kedar group (Kedarnath, second Kedar Madhyameshwar, third Kedar Tungnath, fourth Kedar Rudranath and fifth Kedar Kalpeshwar) due to health or other reasons, then there is no need to be disappointed.  You can also earn the merit of visiting Panch Kedar by visiting these temples. These temples are Omkareshwar temple located in Ukhimath, Markandeya (Markateshwar) temple located in Makkumath and Gopinath temple located in Gopeshwar. The doors of the Pancham Kedar Kalpeshwar temple remain open all the year round, so Lord Kalpeshwar does not have to travel anywhere. The special thing is that all the temples of Sheet Kedar group are connected by motor road. ...So come! Visit these temples of Sheet Kedar group-
ऊखीमठ नगर





Omkareshwar Dham: Panch Kedar reside here
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The first place among the temples of Shit Kedar group is Omkareshwar temple situated in Ukhimath. Situated at an altitude of 1311 meters above sea level in Rudraprayag district, this temple is not only the winter seat of the 11th Jyotirling Lord Kedarnath, but also of the second Kedar Lord Madhyameshwar. During the six months of winter, the worship of Baba Kedar and Baba Madhyameshwar is performed here. The most important thing is that all the five Kedars are seated here in the form of Pindi, hence this temple is also famous as Panch Gaddi Sthal. When you come here, you get to see all the five Kedars together. You can come to Omkareshwar Dham whenever you wish, because this temple is open for darshan all the year round. Natural beauty is scattered everywhere in Ukhimath town with 600 families and a population of about 3,000.  The picturesque valleys here, the snow-clad peaks of Chaukhambha visible right in front and the dense forests of Banj-Buransh captivate everyone. Omkareshwar temple is situated in the middle of the city. This is the only temple left in the country and the world, which is built in the ancient Dhartur Parkota style. Omkareshwar temple is believed to have been built in the Dwapar era. It is believed that the marriage of Usha, daughter of Shiva devotee Banasura and Aniruddha, grandson of Lord Krishna, took place at this place. Therefore, this pilgrimage came to be called Ushamath in the name of Goddess Usha. Over time, Ushamath was corrupted and first its name became Ukhamath and then Ukhimath. Before the arrival of Goddess Usha, the name of this place was 'Aasma'. Being the place of penance of King Mandhata, it is also called Mandhata.  That is why the stories of Kedarnath start from 'Jai Mandhata'. Famous tourist places like Chopta, Dugalbitta, Devariyatal are located around Ukhimath. Devotees can visit these tourist places along with Panchkedar Darshan. Apart from this, darshan of major pilgrimage places like Triyuginarayan and Kalimath can also be easily reached.
मक्‍कूमठ गांव



Markateshwar Mahadev of Makkumath
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The third Kedar Lord Tungnath resides in the Markandeya (Markateshwar) temple located in Makkumath village at an altitude of 2100 meters above sea level in Rudraprayag district for six months during winter. Makkumath village of Patti Parkandi and Ukhimath tehsil, located 44 km from Rudraprayag city, is surrounded by dense forests of deodar, oak, rhododendron and thuner on all sides. The history of the village is believed to be from the first century BCE. This area, which is said to be the place of penance of sage Markandeya, contains the stories of the struggle between the Aryan and non-Aryan castes along with the Devasur war. The ancient tribal castes used to live with their animals in the natural beauty of the Bugyals in summers and in Makku during winters. These tribal castes were influenced by Buddhism over time.  Later, Adi Shankaracharya, who came to propagate Sanatan Dharma, established Tunganath Math here. But, this centre of ancient civilization was destroyed in the earthquake of 1803. At that time, the perimeter of the village extended up to Chandrashila Peak, which is located at a height of 12,103 feet above sea level. There are two temples of Lord Tunganath in this area, one in Makkumath and the other is the main temple at a height of 12,073 feet above sea level. Both have similar shapes and forms. The only difference is that one remains covered with snow for six months while the other remains open throughout the year. Like Pandukeshwar, Gopeshwar, Narayankoti, Triyuginarayan and Tunganath, Markateshwar temple is also built in Katyuri style, which is called post-Gupta temple architecture. Being the winter residence of Lord Tunganath, two big festivals 'Dyavata Aun' (arrival of the deity) and 'Dyavata Jaun' (departure of the deity) are organized here in a year.  It takes 32 km to reach Makkumath via Ukhimath and 16 km via Bhiri. The distance to Tungnath is just 8 km via a forest path. Makkumath is home to rare Himalayan bird species and is a wonderful place for those who are looking for a peaceful place away from the hustle and bustle of the city.
गोपेश्‍वर नगर



Gopinath of Gopeshwar
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The Gopinath temple located at an altitude of 1,308 meters above sea level in Gopeshwar, the Chamoli district headquarters, is dedicated to Lord Shiva. After the Kedarnath temple, the 71 feet high Gopinath temple is one of the oldest temples of Uttarakhand. In this temple, unlike other Shiva temples, milk and water are not offered to Lord Shiva, rather Lord Shiva is anointed with Bilvapatra only. When the doors are closed for winter, the fourth Lord Rudranath in Panchkedar gives darshan to his devotees here. Therefore, the Gopinath temple is also famous as Rudranath temple. As it falls on the Chardham Yatra route, one does not need extra time and money to reach here. The history of the Gopinath temple is believed to be from the Katyuri rule period between the 9th and 11th centuries. The temple has a wonderful dome and a sanctum sanctorum of 30 square feet decorated with 24 doors.The self-manifested Shivlinga present in the sanctum sanctorum is worshipped as Lord Gopinath. The main temple follows the Nagara style of architecture, which is characterised by its huge spire and intricate carvings. This style is prevalent in North India and reflects the skilled craftsmanship of the artisans of that era. The walls of the temple are adorned with images of Lord Bhairavnath and Lord Narayana. While the temple courtyard has several Shivlingas and a Kalpavriksha. A five-metre long trident made of ashtadhatu of the 12th century is installed in the temple courtyard, which also has a parashu in the middle. The trident can be divided into three parts based on its shape, structure and inscriptions engraved on it - the upper face, the middle face and the base face. The upper face is the mouth of the trident. The middle face, on which the eulogy of Ganapati Nag, the ruler of the Naga dynasty is inscribed and the base face, on which the eulogy of Malla king Ashok Chala of Nepal of 1191 AD is inscribed.  In the inscription of Ganapati Nag, engraved in the southern Brahmi script, apart from Ganapati Nag, the names of three other Naga kings Skanda Nag, Vibhu Nag and Anshu Nag are also mentioned. The inscription itself also gives the information that Ganapati Nag established Shakti (Trishul) in front of Rudramahalaya in his second reign. Historians have stated the period of the inscription to be the sixth century. On this basis, it can be said that the trident in the courtyard of the Gopinath temple must have been established by the Naga dynasty ruler Ganapati Nag during the sixth to seventh century.







13-11-2024 (खुशनुमा जलवायु के बीच सीढ़ियों पर बसा एक खूबसूरत पहाड़ी शहर)

खुशनुमा जलवायु के बीच सीढ़ियों पर बसा पहाड़ी शहर ------------------------------------------------ ------------- भागीरथी व भिलंगना नदी के संग...