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--------------------------------------------------------------Besides being a writer and journalist, I am also a very simple person. I face new challenges every day. So, even though my daily routine is simple, it looks very extraordinary. I think you will like my routine too.
Tuesday, 29 June 2021
21-06-2021 (आभासी दुनिया के दोस्त और जन्मदिन )
Monday, 28 June 2021
20-06-2021 (Today is my birthday and tomorrow is also)
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दिनेश कुकरेती
छह गते आषाढ़ को मेरा अवतरण हुआ था। इस तिथि को अंग्रेजी माह जून की 20 तारीख पड़ती है। हालांकि, मेरे जन्म के समय सुबह के साढे़ चार बजे रहे होंगे, इसलिए दस्तावेजों में मेरी जन्मतिथि 21 जून दर्ज है। दरअसल, अंग्रेजी तारीख मध्यरात्रि में बारह बजे बदल जाती है, जबकि भारतीय परंपरा में नए दिन की शुरुआत सूर्योदय से होती है। मेरा जन्म सूर्योदय से पहले का है। इस लिहाज से दोनों तिथियों को मेरा जन्मदिन मनाया मनाया जाता है। कहने का मतलब आज आषाढ़ की छह गते है और घर में मेरा जन्मदिन मनाया जा रहा है।
सुबह जैसे ही मेरी नींद खुली, आदतानुसार सीधे मोबाइल पर दृष्टिपात किया। देखा कि वाट्सएप में दो शुभकामना संदेश पडे़ हुए हैं। एक रजनी का है और दूसरा बडी़ बिटिया सृष्टि का। मैंने जवाब में धन्यवाद! लिखा और फिर दैनिक कार्यों में जुट गया। दोपहर 12 बजे के आसपास जब मैं भोजन बना रहा था, तभी रजनी का फोन आया। उस वक्त वह अपने मायके यानी मेरे ससुराल में थी। दरअसल गर्मियों की छुट्टियां होने के कारण इन दिनों दोनों सालियां भी मायके आई हुई हैं। दो-एक दिन में रजनी भी चली जाएगी। आज तो वह मेरे जन्मदिन की खुशी में पकौडि़यां लेकर गई थी।
फोन पर बधाई देने के साथ रजनी बोली- "मुझे तो ये जानकारी थी कि आपका जन्मदिन कल है। वह तो सासजी पकौडी़ बना रही थीं, तब मालूम पडा़ कि आज ही है। उनका कहना था कि हमारे महीने के हिसाब से आपका जन्मदिन 20 जून को ही पड़ता है। 21 जून तो स्कूल के हिसाब से होता है। मैंने तब बनाई पकौडि़यां।"
"छह गते आषाढ़ भी सही है और 21 जून भी। मेरा जन्म सूर्योदय से पहले ब्रह्ममुहूर्त में हुआ। तब छह गते ही थी, लेकिन अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से 21 तारीख शुरू हो चुकी थी। इसलिए जन्मदिन दोनों में से किसी भी दिन मनाओ, कोई फर्क नहीं पड़ता"- मैंने कहा।
अब बात रजनी की समझ में भी आ गई। खैर! मेरे सास-ससुर रजनी के पास ही बैठे थे, इसलिए उन्होंने भी मुझे जन्मदिन की शुभकामनाएं दीं। इसके बाद बारी थी मेरी बडी़ साली सुनीता की। वो लगभग हर साल ही विश करती है। संयोग से छोटी साली लक्ष्मी भी वहीं मौजूद थी, सो उसने भी विश किया। मेरे लिए यह भी एक सुखद एहसास था। मुझे याद नहीं कि आखिरी बार उसने कब मेरे जन्मदिन पर विश किया था। दस-बारह साल तो हो ही गए होंगे। पता नहीं आज सूरज किधर से निकला, मैं स्वयं चकित हूं।
इसके बाद फिर रजनी से ही कुछ देर बात हुई। पूछने लगी क्या खास पका रहे हो। मैंने कहा- "क्या खास पकाना है, मेरे लिए तो जो पक जाए, वही खास है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए आज लौकी की सब्जी और रोटी सेलिब्रेट करूंगा।" ऐसा ही मैंने किया भी।
पराये शहर में और वह भी अकेले, इससे बेहतर कुछ हो भी नहीं सकता। खैर! जन्मदिन अभी जारी रहेगा। पूरे 24 घंटे हैं अभी सेलिब्रेट करने के लिए। रात के एक बज चुके और फेसबुक पर शुभकामना संदेश आने लगे हैं। लेकिन, सच कहूं तो मुझे अब नींद आ रही है। डायरी लिखते-लिखते नींद के कई झोंके आ चुके हैं। इसलिए फिलहाल आपसे इजाज़त चाहता हूं। कल फिर मिलेंगे। शुभरात्रि!!
इन्हें भी पढ़ें :
- अपनी बात
- वो और मैं
- वो यमुना का किनारा
- खुश रहने का नाम ही जीवन है
- हमेशा रहा पढ़ने-लिखने का शौक
- जिम्मेदारी का दिन
- तनावभरा एक माह
- "गुलदस्ता" आपके हाथ में
- एक साहित्यकार मित्र से मुलाकात
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Today is my birthday and tomorrow is also
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Dinesh Kukreti
My incarnation took place on the 6th of Ashada. This date falls on the 20th of the English month of June. However, the time of my birth must have been 4:30 in the morning, so my date of birth is recorded as June 21 in the documents. Actually, the English date changes at 12 midnight, whereas in Indian tradition the new day begins at sunrise. I was born before sunrise. In this sense, my birthday is celebrated on both the dates. It means to say that today is the six days of Ashadh and my birthday is being celebrated in the house.
As soon as I woke up in the morning, I looked directly at my mobile as per the habit. Saw that there are two greeting messages lying in WhatsApp. One is of Rajni and the other is of elder daughter Srishti. Thanks in reply! Wrote and then got involved in daily work. Around 12 noon, while I was cooking, Rajni's call came. At that time she was in her maternal house i.e. my in-laws' house. Actually, due to the summer holidays, these days both the daughters-in-law have also come to their maternal home. Rajni will also be gone in a day or two. Today she took dumplings to celebrate my birthday.
With congratulatory on the phone, Rajni said - "I knew that your birthday is tomorrow. She was cooking pakodi, then she came to know that it is today. She said that according to our month, your birthday is June 20. It is only on June 21. It is according to the school. I made dumplings then."
"Six gates Ashadha is also correct and 21st June also. I was born in Brahmamuhurta before sunrise. Then there were six gates, but according to the English calendar, the 21st had started. So celebrate the birthday on either of the two days, Doesn't matter"- I said.
Now Rajni's point is also understood. Well! My father-in-law was sitting next to Rajni, so he also wished me a happy birthday. After this it was my elder sister-in-law Sunita's turn. She prays almost every year. Incidentally, the younger sister-in-law Lakshmi was also present there, so she also wished. It was also a pleasant feeling for me. I can't remember the last time he wished me on my birthday. Ten or twelve years must have passed. I don't know where the sun came out today, I myself am amazed.
After this again talked to Rajni for some time. Started asking what special you are cooking. I said- "What is special to cook, what is cooked for me is special. Today I will celebrate gourd vegetable and roti for good health." That's what I did too.
In a foreign city and that too alone, nothing can be better than this. Well! Birthday continues. There are 24 hours to celebrate now. It is past one o'clock in the night and wishes have started pouring in on Facebook. But, to be honest, I am sleeping now. While writing the diary, there have been many bouts of sleep. That's why I want your permission for now. We will meet tomorrow again. good night!!
Sunday, 27 June 2021
13-06-2021 ( Engagement rasgullas and those two meetings)
इन्हें भी पढ़ें :
- अपनी बात
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- वो यमुना का किनारा
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- एक साहित्यकार मित्र से मुलाकात
Friday, 25 June 2021
12-06-2021 (Memorable engagement, memorable day)
(भाग - दो)
यादगार सगाई, यादगार दिन
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दिनेश कुकरेती
11 जून 2000। यह मेरे जीवन का अविस्मरणीय दिन तो है ही, अब लगता है मेरे जैसे लोगों के लिए प्रेरणा का दिन भी है। जब कभी अकेले में इस दिन को याद करता हूं तो अपने आप पर हंसी आ जाती है और गर्व भी होता है। किस्सा यूं है। दस जून 2000 शाम करीब साढ़े सात बजे को रजनी के घर से संदेश मिला कि उसके माता-पिता व दादी हमारी तुरंत सगाई करना चाहते हैं। इसके लिए कल 11 जून की तारीख तय हुई है। इन दिनों हल्द्वानी से रजनी के बडे़ मामाजी भी आए हुए हैं और आगे लंबे समय तक कोई शुभ मुहूर्त भी नहीं है। साथ ही वो भीड़ भी नहीं जुटाना चाहते थे। हमारी भी ऐसी ही राय थी, लेकिन थोडा़-बहुत तैयारी तो करनी ही थी।
संयोग से मेरे घर में तब लैंडलाइन फोन लग चुका था, इसलिए पंडितजी, मौसी व द्वारिका भाई को संदेश भेज दिया 11 तारीख को सुबह सगाई के लिए चलना है। आठ-दस दिन का समय मिला होता तो कुछ खरीदारी भी करते, लेकिन यहां तो महज कुछ घंटे का समय मिल रहा था। खैर! जाना तो था ही। हालांकि, मैंने घर में स्पष्ट कह दिया था कि मैं दोपहर दो बजे के बाद आफिस से सीधे वहां पहुंचूंगा। तब तक आप लोग सारी औपचारिकताएं निभा लेना। मेरा ऐसा कहने के पीछे दो कारण थे। एक तो मेरा इंचार्ज छुट्टी देने में रोता था, दूसरा मैं ढिंढोरा नहीं पीटना चाहता था।
11 जून को मैं तो सुबह साढे़ नौ बजे के आसपास आफिस के लिए निकल पडा़। विशेष सज-धजकर नहीं, बल्कि वही रुटीन के कपडो़ं में। नए जूतों में नहीं, बल्कि रुटीन में इस्तेमाल होने वाली सैंडिल में। हल्की दाढी़ में। हां! इतना जरूर था कि मैंने रुटीन के कपडो़ं को स्त्री करके चमका दिया था। दस-सवा दस बजे के आसपास घर से पिताजी, छोटी बहन, मंजू मौसी, द्वारिका भाई व पंडित जी भी मेरी होने वाली ससुराल के लिए निकल पडे़। ठीक से तो याद नहीं, लेकिन संभवत: सभी द्वारिका भाई की कार में या आटो बुक कर वहां गए थे। सामान्य आदमी के इंतजाम ऐसे ही होते हैं।
खैर! ठीक ढाई बजे मैं आफिस में अपने इंचार्ज को यह बताकर कि भोजन करने जा रहा हूं, ससुराल के लिए निकल पडा़। चिलचिलाती धूप आग बरसा रही थी। आफिस से महज 50 मीटर दूर झंडाचौक तक जाते-जाते मैं पसीने से तर-ब-तर हो गया। सो, मैं पैदल जाने का विचार त्यागा और रिक्शे में सवार हो गया। बता दूं कि उस दिन मैं पहली बार रिक्शे की सवारी कर रहा था। मेरे ससुराली तब जल निगम कालोनी में रहते थे। वहीं उनको सरकारी क्वार्टर मिला हुआ था। कालोनी के गेट पर पहुंचते ही मैं रिक्शे से उतर गया, ताकि मुझ पर किसी की नजर न पडे़ और कह सकूं कि आटो से आया हूं। थोडा़ स्टैंडर्ड तो मेन्टेन करना होता ही है।
गेट से रजनी के घर की दूरी भी 50-60 मीटर के आसपास रही होगी। मैं पसीने से पूरी तरह भीग चुका था। इसलिए जब मैं उनके घर में पहुंचा तो उनके मेहमान ऐसे देखने लगे, जैसे मैं कोई अजूबा होऊं। मैंने महसूस किया कि मेरी दयनीय स्थिति ने उन्हें सोचने के लिए मजबूर कर दिया था। कोई सजावट न बनावट। उस पर चप्पलों में। वो क्या सोच रहे होंगे, मुझे इसकी कतई परवाह नहीं थी। क्योंकि रजनी मुझे अच्छी तरह पहचान गई थी। बहरहाल! दसेक मिनट आराम करने के बाद अंगूठी पहनाने की रस्म पूरी हुई और फिर भोजन की तैयारी होने लगी।
भोजन हो चुका था और अब मैं आफिस लौटने के लिए तैयार था। सो मैंने सबसे विदा ली और निकल पडा़ आफिस की राह। गेट पर पहुंचते ही मैंने अंगूठी निकालकर जेब में रखी और माथे पर से पिठाई (तिलक) को रुमाल से साफ कर दिया। मैं नहीं चाहता था कि आफिस में किसी को सगाई के बारे में पता चले। आफिस पहुंचते-पहुंचते मैं फिर पसीने से भीग चुका था। लेकिन, खुशी थी जीवन की एक महत्वपूर्ण सीढी़ चढ़ चुका हूं। खैर! फिर में काम में जुट गया।
मितरों, कहानी अभी काफी लंबी है और रोमांच से भी भरपूर। क्लाइमेक्स पर पहुंचते-पहुंचते आपको आनंद आ जाएगा। पर, इस सबके लिए आपको कल तक का इंतजार करना पडे़गा। फिलहाल तो मेरी यही गुजारिश है कि आप भी नींद के आगोश में चले जाएगा। मेरी भी आंखें बोझिल हुई जा रही हैं। और... फिर सपना भी तो देखना है, पहले मिलन की उन मधुर यादों का।...तो कल फिर मिलते हैं इसी समय, इसी अंदाज में। खुदा हाफिज!!
(जारी......)
12-06-2021
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(Part - Two)
Memorable engagement, memorable day
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Dinesh Kukreti
11 June 2000. Not only is it an unforgettable day in my life, it seems that it is also a day of inspiration for people like me. Whenever I remember this day alone, I laugh at myself and feel proud. The story is like this. On June 9, 2000, a message was received from Rajni's house that her parents and grandmother wanted us to get engaged immediately. For this, the date of June 11 has been fixed after two days. These days Rajni's elder maternal uncle has also come from Haldwani and there is no auspicious time for a long time. At the same time, he did not want to mobilize the crowd. We had the same opinion, but a little preparation had to be done.
Incidentally, a landline phone was installed in my house at that time, so sent a message to Panditji, Aunt and Dwarka Bhai to go for engagement on 11th morning. If I had got eight-ten days' time, I would have done some shopping too, but here I was getting only one day's time. Well! Had to go. However, I had clearly stated at home that I would reach there directly from the office after 2 pm. Till then you guys should complete all the formalities. I had two reasons for saying this. One, my in-charge used to cry while giving leave, secondly, I did not want to bang the drums.
On June 11, I left for the office around 9.30 in the morning. Not in special decorations, but in the clothes of the same routine. Not in new shoes, but in sandals used in routine. Light beard. Yes! It was so necessary that I had brightened the routine clothes by making them feminine. Around 10.15 am, my father, younger sister, aunt, Dwarka Bhai and Pandit ji also left for my future in-laws' house. Can't remember exactly, but probably everyone went there in Dwarka Bhai's car or booked an auto. Such are the arrangements for the common man.
Well! At exactly two o'clock, I left for my in-laws' house after telling my in-charge in the office that I was going to have food. The scorching sun was raining fire. I was drenched with sweat on my way to Jhanda Chowk, just 50 meters away from the office. So, I dropped the idea of going on foot and got into the rickshaw. Let me tell you that that day I was riding a rickshaw for the first time. My in-laws then lived in Jal Nigam Colony. There they got the government quarters. As soon as I reached the gate of the colony, I got down from the rickshaw, so that no one could see me and say that I have come by auto. Some standards have to be maintained.
The distance of Rajni's house from the gate would also have been around 50-60 meters. I was completely drenched in sweat. So when I reached his house, his guests started looking at me as if I were a wonder. I realized that my pathetic condition had made them think. No decorations or textures. In slippers on it. I didn't care what they were thinking. Because Rajni knew me well. However! After resting for ten minutes, the ritual of wearing the ring was completed and then the food preparation started.
The meal was done and now I was ready to return to the office. So I bid farewell to everyone and set out on the road to the office. As soon as I reached the gate, I took out the ring and kept it in the pocket and cleaned the pithai (tilak) from the forehead with a handkerchief. I didn't want anyone in the office to know about the engagement. By the time I reached the office, I was again drenched with sweat. But, there was happiness that I have climbed an important ladder of life. Well! Then I got to work.
Friends, the story is still very long and full of adventure. You will be delighted by the time you reach the climax. But, for all this you will have to wait till tomorrow. For the time being, my only request is that you too will go into the lap of sleep. My eyes are getting heavy too. And... then you have to dream too, of those sweet memories of the first meeting. ... So see you again tomorrow at the same time, in the same style. Khuda Hafiz!!
(To be continued......)
12-06-2021
Thursday, 24 June 2021
11-06-2021 (Historic day of happiness)
Wednesday, 23 June 2021
08-06-2021 (वो पहली मुलाकात)
आठ जून सुबह दस बजे के आसपास हम रजनी के घर पहुंचे। मेरी बहन तो उसे देखते ही बोली- "तू ही मेरी भाभी बनेगी"। लेकिन, मैं बिना उसकी इच्छा के कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं था। सो, मैंने रजनी से बात करने की इच्छा जाहिर की। हमारी पांच-सात मिनट बात हुई। मैंने उससे स्पष्ट कह दिया कि मुझे बस! गुजर लायक ही पैसा मिलता है। हां! आने वाले समय में स्थिति सुधरना तय है। वह कुछ नहीं बोली। इसके बाद हम वापस लौट गए। उस दिन बारिश हो रही थी, इसलिए मेरे पास छाता भी था। सो, मैं सीधे आफिस चला गया।
यह वह दौर है, जब सप्ताह में सातों दिन की नौकरी होती थी। इस बीच मैं हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के बिड़ला परिसर से बीजेएमसी (बैचुलर आफ जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन) की डिग्री ले चुका था। अब यह तय था कि मुझे पत्रकारिता में ही करियर बनाना है। इसलिए कम पैसे भी मुझे संतुष्टि प्रदान करते थे। खुशकिस्मती से तब मैं खबरें लिखने और खबरों के संपादन में महारथ हासिल कर चुका था। बस! अब विचार था कि दिल्ली, मेरठ या देहरादून की राह पकडी़ जाए। कोटद्वार से नजदीक होने के कारण देहरादून मेरी प्राथमिकता में था। लेकिन फिलहाल तो शादी करनी थी और यह रजनी की "हां" पर निर्भर था।
आज इस किस्से को मैं यहीं पर विराम दे रहा हूं। आगे क्या हुआ, रजनी ने "हां" कही या "ना", इसकी जानकारी मैं अगली किश्तों में दूंगा। हां! एक बात जो मुझे आपको बतानी है, वह यह कि उस दिन रजनी के घर मेरे साथ, छोटी बहन के अलावा पिताजी, मौसी व द्वारिका भाई भी गए थे। द्वारिका भाई मेरी बुआ के सबसे बडे़ लड़के हैं। बहरहाल! हमेशा की तरह रात काफी हो चुकी है और मेरे सोने का वक्त भी हो गया है। मैं जानता हूं कि इस समय आप भी मुझे झेल रहे हैं। इसलिए, माफी के साथ शुभरात्रि!!
और हां! सोने से पहले मैंने अपनी डायरी में दर्ज किया- आठ जून 2000। आज पहली बार मैं किसी लड़की को देखने गया, विवाह के उद्देश्य से। साथ ही गंभीर होकर भी। मुझे लड़की पसंद है। हालांकि, अभी मैं उसके परिवार के बारे में कुछ भी नहीं जानता। अलबत्ता मैंने उसे देखा कई बार है, कॉलेज जाते हुए। कॉलेज से लौटते हुए। इतना जरूर पता है कि वह एमए अंग्रेजी अंतिम वर्ष में पढ़ रही है। लेकिन, अभी यह स्पष्ट नहीं है कि वह मुझसे शादी करेगी भी या नहीं। उसने कहा है कि शीघ्र जवाब दे दूंगी। खैर! बाकी खुदा की मर्जी...।
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- "गुलदस्ता" आपके हाथ में
- एक साहित्यकार मित्र से मुलाकात
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That first meeting
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Dinesh Kukreti
It was 21 years ago, on the 8th of June, when I met Rajni for the first time. Then I used to be a reporter in Amar Ujala. According to the family members, the age was passing, so they did not want to delay my marriage any more. I had also decided that now I will not argue with the family members in this matter. Aunty had found this relationship for me. Incidentally, I had already seen Rajni. But, the family members decided that on June 8, they had to go to see the girl. For this the morning was fixed.
We reached Rajni's house on June 8 around 10 am. My sister said on seeing her - "You will become my sister-in-law". But, I was not in a position to say anything without his wish. So, I expressed my desire to talk to Rajni. We talked for five to seven minutes. I told him clearly that I just The money is worth passing. Yes! The situation is sure to improve in the coming times. She did not say anything. After that we went back. It was raining that day, so I had an umbrella. So, I went straight to the office.This is the time when there was a job seven days a week. Meanwhile, I had completed my BJMC (Bachelor of Journalism and Mass Communication) degree from Birla Campus of Hemvati Nandan Bahuguna Garhwal University. Now it was decided that I had to make a career in journalism. So even less money used to give me satisfaction. Luckily then I had mastered the news writing and news editing. Bus! Now the idea was to find the way to Delhi, Meerut or Dehradun. Due to its proximity to Kotdwar, Dehradun was my priority. But for the time being it was to be married and it was up to Rajni's "yes".
Today I am stopping this story right here. What happened next, whether Rajni said "yes" or "no", I will give information about it in the next installments. Yes! One thing that I want to tell you is that that day, apart from my younger sister, my father, aunt and Dwarka brother had gone to Rajni's house with me. Dwarka Bhai is the eldest son of my aunt. However! As always, it's night enough and it's time for me to sleep. I know that you are also bearing me right now. So, goodnight with apologies!!
And yes! Before sleeping I wrote in my diary – 8th June 2000. Today for the first time I went to see a girl, for the purpose of marriage. And also being serious. I like the girl. However, right now I don't know anything about his family. Although I have seen him many times, while going to college. Returning from college. What is definitely known is that she is studying in the final year of MA English. But, it is not clear yet whether she will marry me or not. She has said that she will reply soon. well! The rest is God's will.
13-11-2024 (खुशनुमा जलवायु के बीच सीढ़ियों पर बसा एक खूबसूरत पहाड़ी शहर)
खुशनुमा जलवायु के बीच सीढ़ियों पर बसा पहाड़ी शहर ------------------------------------------------ ------------- भागीरथी व भिलंगना नदी के संग...