Tuesday, 16 January 2024

17-01-2024 (शीतकाल में भी रुकती नहीं चारधाम यात्रा)

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शीतकाल में भी रुकती नहीं चारधाम यात्रा
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दिनेश कुकरेती
त्तराखंड हिमालय की चारधाम यात्रा कभी रुकती नहीं है, बल्कि बारहों महीने जारी रहती है। शीतकाल के लिए कपाट बंद होने के बाद भी। लेकिन, इस संबंध में न तो लोगों को जानकारी है, न सरकार के स्तर से आज तक शीतकालीन यात्रा के प्रचार-प्रसार को कोई सतही पहल की गई। इस सबके बावजूद देश-दुनिया से जो यात्री शीतकाल में चारधाम दर्शन को आते हैं, उन्हें भी ग्रीष्मकालीन यात्रा के जैसी सुविधाएं नही मिल पातीं। सरकार की इस बेरुखी के कारण ही उत्तराखंड में भी लोगों को चारधाम के शीतकालीन पड़ावों की ठीक ढंग से जानकारी नहीं है। जबकि, स्कंद पुराण के केदारखंड में उल्लेख है कि इन स्थानों की यात्रा का भी चारधाम सरीखा ही माहात्म्य है। इसलिए जो यात्री किन्हीं कारणों से चारधाम नहीं पहुंच पाते, उन्हें शीतकालीन में गद्दी स्थलों पर दर्शन करने चाहिएं। अच्छी बात यह है कि गद्दीस्थलों तक पहुंचना चारधाम पहुंचने से ज्यादा आसान है और यहां स्वास्थ्य संबंधी किसी तरह दिक्कत भी नहीं होती। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि शीतकाल के छह महीने भगवान बदरी विशाल की पूजा चमोली जिले में स्थित योग-ध्यान बदरी मंदिर पांडुकेश्वर व नृसिंह मंदिर जोशीमठ, भगवान केदारनाथ की पूजा रुद्रप्रयाग जिले में स्थित ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ, मां गंगा की पूजा उत्तरकाशी जिले में स्थित गंगा मंदिर मुखवा (मुखीमठ) और देवी यमुना की पूजा यमुना मंदिर खरसाली (खुशीमठ) में होती है। विशेष यह कि शीतकालीन यात्रा के दौरान आप प्रकृति की सुंदरता को निहारने के साथ आसपास स्थित खूबसूरत पर्यटन व तीर्थस्थलों का दीदार भी कर सकते हैं। ...तो आइए! शीतकालीन यात्रा पर चलें-

योग-ध्यान बदरी पांडुकेश्वर
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चीन सीमा को जोड़ने वाले जोशीमठ-बदरीनाथ हाइवे पर बदरीनाथ धाम से 18 किमी पहले और जोशीमठ से 24 किमी आगे पांडुकेश्वर स्थित योग-ध्यान बदरी मंदिर में शीतकाल के दौरान भगवान बदरी विशाल के प्रतिनिधि के रूप में उनके बालसाख उद्धवजी और देवताओं के खजांची कुबेरजी की पूजा होती है। ग्रीष्मकाल के लिए बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने पर उद्धवजी और कुबेरजी भगवान बदरी विशाल के साथ उनकी पंचायत में विराजमान हो जाते हैं। चमोली जिले में समुद्रतल से 1920 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर सप्त बदरी मंदिरों में से एक है, जिसकी स्थापना पांडवों के पिता राजा पांडु द्वारा की गई बताई जाती है।




नृसिंह मंदिर जोशीमठ
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चमोली जिले में समुद्रतल से 6150 फीट की ऊंचाई पर स्थित जोशीमठ नगर में भगवान बदरी विशाल नृसिंह बदरी के रूप निवास करते हैं। यहां भगवान नृसिंह का भव्य पौराणिक मंदिर भी है, जहां शीतकाल के दौरान आदि शंकराचार्य की गद्दी और श्रीहरि के वाहन गरुड़जी की पूजा होती है। मान्यता है कि पांडवों ने अपनी स्वर्गारोहिणी यात्रा के दौरान जोशीमठ में नृसिंह मंदिर की स्थापना करवाई थी, जबकि आदि शंकराचार्य ने यहां भगवान नृसिंह का विग्रह स्थापित किया। ऐसा भी कहते हैं कि आठवीं शताब्दी में राजा ललितादित्य ने अपनी दिग्विजय यात्रा के दौरान नृसिंह मंदिर का निर्माण किया। कुछ वर्ष पूर्व श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति ने पुराने नृसिंह मंदिर का जीर्णोद्धार किया है, जो उत्तराखंड का तीसरा सबसे ऊंचा मंदिर है।


ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ
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रुद्रप्रयाग जिले के ऊखीमठ में समुद्रतल से 1311 मीटर की ऊंचाई पर स्थित ओंकारेश्वर मंदिर अतिप्राचीन धारत्तुर परकोटा शैली में बना निर्मित विश्व का एकमात्र मंदिर है। जिला मुख्यालय रुद्रप्रयाग से यहां पहुंचने के लिए 41 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। यह न केवल भगवान केदारनाथ, बल्कि द्वितीय केदार बाबा मध्यमेश्वर का शीतकालीन गद्दीस्थल भी है। पंचकेदार की दिव्य मूर्तियां एवं शिवलिंग स्थापित होने के कारण इसे पंचगद्दी स्थल भी कहा गया है। ओंकारेश्वर अकेला मंदिर न होकर मंदिरों का समूह है, जिसमें वाराही देवी मंदिर, पंचकेदार लिंग दर्शन मंदिर, पंचकेदार गद्दीस्थल, भैरवनाथ मंदिर, चंडिका मंदिर, हिमवंत केदार वैराग्य पीठ, विवाह वेदिका व अन्य मंदिरों समेत समेत संपूर्ण कोठा भवन शामिल हैं। उत्तराखंड के मंदिरों में क्षेत्रफल और विशालता के लिहाज से यह सर्वाधिक विशाल मंदिर समूह है। पुरातात्विक सर्वेक्षणों के अनुसार प्राचीनकाल में ओंकारेश्वर मंदिर के अलावा सिर्फ काशी विश्वनाथ (वाराणसी) और सोमनाथ मंदिर में ही धारत्तुर परकोटा शैली उपस्थित थी। हालांकि, बाद में आक्रमणकारियों ने इन मंदिरों को नष्ट कर दिया। उत्तराखंड में भी अधिकांश प्रसिद्ध मंदिर या तो कत्यूरी शैली में निर्मित हैं या फिर नागर शैली में।

गंगा मंदिर मुखवा
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उत्तरकाशी जिले में भागीरथी नदी के किनारे और हिमालय की गगनचुंबी सुदर्शन, बंदरपूंछ, सुमेरू और श्रीकंठ चोटियों की गोद में समुद्रतल से 8000 फीट की ऊंचाई पर स्थित मुखवा (मुखीमठ) गांव को शीतकालीन प्रवास स्थल होने के कारण गंगा का मायका भी कहा जाता है। यहां की खूबसूरत वादियां, देवदार के घने जंगल, चारों ओर बिखरा सौंदर्य, हिमाच्छादित चोटियां, पहाड़ों पर पसरे हिमनद और मुखवा की तलहटी में शांत भाव से कल-कल बहती भागीरथी का सम्मोहन हर किसी को अपनी ओर खींच लेता है। मुखवा गंगोत्री धाम के तीर्थ पुरोहितों का गांव भी है। इस गांव में 450 परिवार निवास करते हैं, जिनमें से अधिकांश शीतकाल के दौरान उत्तरकाशी के आसपास स्थित गांवों में प्रवास पर आ जाते हैं। मुखवा गांव के परंपरागत शिल्प से तैयार लकड़ी के मकान अपनी खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध हैं। 19वीं शताब्दी में ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारी फ्रेडरिक विल्सन के बनाए हुए मकान यहां आज भी विद्यमान हैं।

यमुना मंदिर खरसाली
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उत्तरकाशी जिले में समुद्रतल से 2500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित खरसाली गांव यमुना नदी के किनारे प्रकृति की सुरम्य वादियों में बसा हुआ है। शीतकालीन प्रवास स्थल होने के कारण खरसाली गांव को यमुना का मायका भी कहा जाता है। यहां यमुना मंदिर भव्य स्वरूप में है। गांव के बीच में यमुना के भाई शनिदेव का भी पौराणिक मंदिर भी है, जिसे पुरातत्व विभाग ने 800 वर्ष से अधिक पुराना बताया है। खरसाली से बंदरपूंछ, सप्तऋषि, कालिंदी, माला व भीम थाच जैसी चोटियों के दर्शन भी होते हैं। शीतकाल के दौरान आसपास की पहाड़ियां बर्फ की धवल चादर ओढ़े रहती हैं। शीतकाल के दौरान खरसाली में भी जमकर बर्फबारी होती है, जिसका आनंद उठाने के लिए पर्यटक और यमुना घाटी के ग्रामीण बड़ी संख्या में यहां पहुंचते हैं। यमुनोत्री धाम के तीर्थ पुरोहित भी इसी गांव के निवासी हैं। खरसाली से यमुनोत्री धाम की दूरी छह किमी है, जबकि जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से खरसाली की दूरी 134 किमी है।


ले सकते हैं पहाड़ी खानपान का जायका
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चारों धाम के शीतकालीन पड़ावों पर होटल, धर्मशाला व होम स्टे की कमी नहीं है। शीतकाल में यहां कमरे आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। श्रद्धालु होम स्टे में ठहरकर स्थानीय भोजन का भी जायका ले सकते हैं। इसमें स्थानीय स्तर पर उत्पादित होने वाले आलू के गुटखे, मंडुवा, फाफरा व चौलाई की रोटी, चौलाई का हलुवा, झंगोरे का भात व खीर, गहत की दाल व फाणू, चैंसू, राजमा की दाल, राई व पहाड़ी पालक की सब्जी प्रमुख हैं। चारों गद्दीस्थल पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा जौलीग्रांट (देहरादून) और निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश में पड़ता है। सभी पड़ाव सीधे मोटर मार्ग से जुड़े हुए हैं, इसलिए ऋषिकेश से सार्वजनिक व निजी वाहनों के जरिये आसानी से यहां पहुंचा जा सकता है।
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Chardham Yatra does not stop even in winter
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Dinesh Kukreti
The Chardham Yatra of Uttarakhand Himalaya never stops, but continues throughout the year.  Even after the doors are closed for winter.  But, neither are people aware in this regard, nor has any superficial initiative been taken till date from the government level to promote winter travel.  Despite all this, the travelers from across the country and the world who come to visit Chardham in winter do not get the same facilities as during summer travel.  Due to this indifference of the government, even in Uttarakhand, people do not have proper information about the winter halts of Chardham.  Whereas, it is mentioned in Kedarkhand of Skanda Purana that the visit to these places also has the same importance as Chardham.  Therefore, those travelers who are unable to reach Chardham due to some reasons, should visit Gaddi places in winter.  The good thing is that reaching Gaddisthal is easier than reaching Chardham and there is no health related problem here.  For your information, let us tell you that in the six months of winter, worship of Lord Badri Vishal, Yoga-Meditation Badri Temple located in Chamoli district, Pandukeshwar and Narsingh Temple Joshimath, worship of Lord Kedarnath Omkareshwar Temple located in Rudraprayag district, Ukhimath, worship of Mother Ganga in Uttarkashi district.  Ganga temple is situated at Mukhwa (Mukhimath) and Goddess Yamuna is worshiped at Yamuna temple Kharsali (Khushimath).  The special thing is that during the winter trip, along with admiring the beauty of nature, you can also visit the beautiful tourist and pilgrimage places located nearby.  ...so come!  Go on a winter trip-

Yoga-Meditation Badri Pandukeshwar
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Yoga-Meditation Badri Temple located at Pandukeshwar, 18 km before Badrinath Dham on the Joshimath-Badrinath highway connecting the China border and 24 km ahead of Joshimath, has the presence of his Balsakh Uddhavji as the representative of Lord Badri Vishal and Kuberji, the treasurer of the gods, during the winter season.  Pooja takes place.  When the doors of Badrinath Dham open for summer, Uddhavji and Kuberji sit in their panchayat along with Lord Badri Vishal.  Situated at an altitude of 1920 meters above sea level in Chamoli district, this temple is one of the Sapta Badri temples, which is said to be founded by King Pandu, the father of Pandavas.

Narasimha Temple Joshimath
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Lord Badri resides in the form of Vishal Nrisimha Badri in Joshimath city situated at an altitude of 6150 feet above sea level in Chamoli district.  There is also a grand mythological temple of Lord Narasimha, where the throne of Adi Shankaracharya and Garudji, the vehicle of Sri Hari, are worshiped during the winter season.  It is believed that the Pandavas had established the Narasimha temple in Joshimath during their ascension journey, while Adi Shankaracharya installed the idol of Lord Narasimha here.  It is also said that in the eighth century, King Lalitaditya built the Narasimha temple during his Digvijay Yatra.  A few years ago, Shri Badrinath-Kedarnath Temple Committee has renovated the old Narasimha temple, which is the third highest temple in Uttarakhand.

Omkareshwar Temple Ukhimath
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Omkareshwar Temple, situated at an altitude of 1311 meters above sea level in Ukhimath in Rudraprayag district, is the only temple in the world built in the ancient Dharattur wall style.  To reach here from the district headquarters Rudraprayag, one has to cover a distance of 41 km.  It is not only the winter seat of Lord Kedarnath but also of the second Kedar Baba Madhyameshwar.  Due to the installation of divine idols of Panchkedar and Shivling, it is also called Panchgaddi place.  Omkareshwar is not a single temple but a group of temples, which includes the entire Kotha Bhawan along with Varahi Devi Temple, Panchkedar Linga Darshan Temple, Panchkedar Gaddisthal, Bhairavnath Temple, Chandika Temple, Himwant Kedar Vairagya Peeth, Vivah Vedika and other temples.  This is the largest group of temples in terms of area and vastness among the temples of Uttarakhand.  According to archaeological surveys, apart from Omkareshwar Temple, in ancient times, Dharattur Parkota style was present only in Kashi Vishwanath (Varanasi) and Somnath Temple.  However, later invaders destroyed these temples.  Even in Uttarakhand, most of the famous temples are built either in Katyuri style or in Nagara style.
Ganga Temple Mukhwa
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Mukhwa (Mukhimath) village, situated at an altitude of 8000 feet above sea level, on the banks of Bhagirathi river in Uttarkashi district and in the lap of Himalaya's skyscraper Sudarshan, Bandarpoonch, Sumeru and Srikanth peaks, is also called the motherland of Ganga as it is a winter migration place.  The beautiful valleys here, the dense pine forests, the scattered beauty all around, the snow covered peaks, the glaciers spread on the mountains and the hypnotism of the Bhagirathi flowing peacefully in the foothills of Mukhwa attracts everyone towards itself.  Mukhwa is also the village of the pilgrim priests of Gangotri Dham.  450 families live in this village, most of which migrate to villages located around Uttarkashi during winter.  The wooden houses made with traditional crafts of Mukhwa village are famous for their beauty.  The houses built by Frederick Wilson, an employee of the East India Company in the 19th century, still exist here.

Yamuna Temple Kharsali
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Kharsali village, situated at an altitude of 2500 meters above sea level in Uttarkashi district, is situated in the picturesque valleys of nature on the banks of river Yamuna.  Being a winter migration destination, Kharsali village is also called the birthplace of Yamuna.  The Yamuna temple here is in a grand form.  There is also a mythological temple of Yamuna's brother Shanidev in the middle of the village, which the Archeology Department has said to be more than 800 years old.  From Kharsali, peaks like Bandarpoonch, Saptarishi, Kalindi, Mala and Bhim Thatch can also be seen.  During winter the surrounding hills are covered with white blanket of snow.  Kharsali also receives heavy snowfall during winter, to enjoy which tourists and villagers of Yamuna valley come here in large numbers.  The pilgrim priests of Yamunotri Dham are also residents of this village.  The distance from Kharsali to Yamunotri Dham is six km, while the distance from district headquarters Uttarkashi to Kharsali is 134 km.

You can enjoy the taste of mountain food
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There is no dearth of hotels, dharamshalas and home stays at the winter halts of Char Dham.  Rooms are easily available here during winter.  Devotees can also taste local food by staying in home stays.  In this, locally produced potato gutkha, manduwa, fafra and amaranth roti, amaranth halwa, jhangore bhaat and kheer, ghat dal and fanu, chainsu, rajma dal, mustard and mountain spinach vegetables are prominent.  To reach all four Gadisthals, the nearest airport is Jolly Grant (Dehradun) and the nearest railway station is Rishikesh.  All the stops are directly connected by motor road, hence one can easily reach here from Rishikesh by public and private vehicles.



















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