Wednesday, 20 April 2022

20-04-2022 (अमीन की खटिया) (Part-2)

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किस्सागोई (सात)

अमीन की खटिया (भाग-2)

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दिनेश कुकरेती

ह हमारे बारात में जाने का दिन था। तारीख तो याद नहीं रही, लेकिन शायद उस दिन शनिवार था। हम बेसब्री से बारात के चलने का इंतजार कर रहे थे। बारात हमारे मोहल्ले से करीब डेढ़ किमी दूर मुख्य बाजार से लगे इलाके में ही जानी थी। रात दस बजे के आसपास बारात अपने गंतव्य स्थल पहुंची। भोजन करने में लगभग 11 बज गए। इसके बाद बाकायदा वीसीआर पर फिल्म चलने लगी, लेकिन अपुन का तो फिल्म देखने का मन ही नहीं था। मिशन पर जो जाना था। खैर! रात साढे़ बारह बजे तक हम जैसे-तैसे वहां डटे रहे और फिर निकल पडे़ मिशन को मंजिल तक पहुंचाने के लिए। ठीक एक बजे हम अमीन जी की खटिया के पास थे।

अमीन जी बेहोशी में खर्राटे ले रहे थे। हमने खटिया हिलाई, तो भी वह टस से मस तक नहीं हुए। सो, हम बेफिक्र हो गए कि अब कोई दिक्कत नहीं है। बस! प्रभु का स्मरण किया और खटिया कंधे पर उठाकर चल पडे़ सड़क की ओर। सड़क में पहुंचने पर हम बिना कुछ विचार किए तेजी से खोह नदी की दिशा में मुड़ गए। ताकि जल्द से जल्द आबादी वाले क्षेत्र से बाहर निकल सकें। तब सड़क नदी के छोर पर जाकर खत्म हो जाती थी। अब तो वहां से नदी पर शानदार आरसीसी पुल बन गया है। नदी में गर्मियों के दौरान सिद्धबली मंदिर से नीचे की ओर नाममात्र को ही पानी रहता है। इसलिए हम बेफिक्र हो लगभग एक किमी सिद्धबली मंदिर की ओर नदी के दूसरे छोर पर खटिया समेत अमीन जी को रखकर घर लौट आए। 

वहां से लौटते हुए हम तय कर चुके थे कि सुबह साढे़ सात बजे के आसपास फिर नदी की ओर जाएंगे, यह देखने कि अमीन जी उठे या नहीं और उठ चुके हैं तो उनकी क्या प्रतिक्रिया है। इसके बाद हम सोने के लिए चले गए, लेकिन नींद थी कि पास फटकने का नाम ही नहीं ले रही थी। दरअसल जोश में हम अमीन जी को खटिया समेत नदी में छोड़ तो जरूर आए थे, लेकिन अब डर यह लग रहा था कि कहीं कोई अनहोनी न घट जाए। पास ही उत्तर-पूर्व दिशा में घना जंगल होने के कारण रात के वक्त नदी में जंगली जानवरों की सक्रियता बढ़ जाती है। यहां तक कि बाघ-गुलदार की भी। ऐसे में किसी ने अमीन जी पर हमला कर दिया तो? नशे में टुन्न होने के कारण वह तो प्रतिरोध करने की स्थिति में भी नहीं थे।

पर, अब किया भी क्या जा सकता था। तीर तो तरकश से निकल चुका था और उसे वापस तरकश में रखना किसी भी सूरत में संभव नहीं था। अब तो एक ही विकल्प शेष था कि धैर्य से भोर होने का इंतजार किया जाए। खैर! जैसे-तैसे आंखों ही आंखों में करवट बदलते हुए रात गुजारी और भोर होते ही बहाना बनाकर निकल पडे़ अमीन जी की सुध लेने। अमीन जी के घर के पास पहुंचे तो उनके दोनों लड़के नजर आ गए। दोनों हैरान-परेशान थे कि आखिर बापू चारपाई समेत कहां लापता हो गया। दोनों भाई तरह-तरह के कयास लगा रहे थे। धीरे-धीरे उनकी बातें सुनकर वहां लोग इकट्ठा होने लगे तो हमने चुपचाप वहां से खिसक लेने में ही भलाई समझी।

वहां से जैसे ही हम मोहल्ले को पार कर सड़क में पहुंचे,  तो देखा कि दूर नदी की ओर से कांधे पर खटिया व बिस्तर रखे एक व्यक्ति इधर ही चला आ रहा है। हम समझ गए कि वाह अमीन जी ही हैं। साथ ही देखकर सुकून भी हुआ कि सकुशल हैं। हम धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे। अमीन जी एक मकान के पास पहुंच चुके थे। चलते-चलते वह तेज-तेज बड़बडा़ भी रहे थे। हालांकि, हम तक उनकी स्पष्ट आवाज नहीं पहुंच पा रही थी, लेकिन भाव-भंगिमायें चीख-चीखकर बयां कर रही थी कि वे हमें ही गालियां दे रहे हैं। आसपास के सभी लोग उन्हें जानते थे, इसलिए उस मकान के बाहर खडी़ प्रौढ़ महिला तो उनसे पूछ ही बैठी, "भैजी! कख बटि आणा छौ, स्ये खटुला ल्हेकि। अर गालि़ कै तैं दीणा छौ" (भाई जी! कहां से आ रहे हो इस खटिया को लेकर और गाली किसे दे रहे हो )।

(जारी...)

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Anecdote (7)

Amin's Cot (Part-2)

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Dinesh Kukreti

It was the day we went to the procession.  Can't remember the date, but maybe that day was Saturday.  We were eagerly waiting for the procession to start.  The procession was to be known only in the area adjacent to the main market, about one and a half km from our locality.  Around ten o'clock in the night the procession reached its destination.  It was almost 11 o'clock for dinner.  After this the film started playing on VCR, but Apun did not feel like watching the film.  Who had to go on the mission.  So!  We stayed there somehow till twelve o'clock in the night and then set out to take the mission to the destination.  At exactly one o'clock we were near Aminji's cot.

Amin ji was snoring unconsciously.  We shook the cot, even then it didn't budge.  So, we rest assured that there is no problem anymore.  bus!  He remembered the Lord and took the cot on his shoulder and walked towards the road.  On reaching the road, we took a quick turn in the direction of Khoh river without hesitation.  In order to get out of the populated area as soon as possible.  Then the road ended at the end of the river.  Now from there a magnificent RCC bridge has been built over the river.  During the summer, the river receives only nominal water from the Siddhabali temple downstream.  So we were carefree and returned home after keeping Amin ji along with the cot on the other end of the river towards Siddhabali temple, about one kilometer away.

Returning from there, we had decided to go back to the river around 7.30 in the morning to see if Amin had risen or not and if he had got up, what was his reaction.  After that we went to sleep, but there was sleep that the pass was not taking its name.  In fact, in enthusiasm, we had definitely come to leave Amin ji in the river along with the cot, but now there was a fear that something untoward might happen.  Due to the dense forest nearby in the north-east direction, the activity of wild animals increases in the river during the night.  Even the tiger-guldar.  In such a situation, if someone attacked Amin ji?  Being intoxicated, he was not even in a position to resist.

But what could have been done now?  The arrow had gone out of the quiver and it was not possible to put it back in the quiver.  Now the only option left was to patiently wait for the dawn.  So!  As soon as he spent the night changing his eyes in his eyes and as soon as the morning dawned, he went out to take care of Amin ji.  When he reached near Amin ji's house, both his boys were seen.  Both were puzzled as to where Bapu had gone missing with the cot.  Both the brothers were speculating.  Slowly people started gathering there after listening to his words, so we thought it better to move away from there silently.

From there, as soon as we crossed the locality and reached the road, we saw that a person with a cot and bed on his shoulder was walking from the far side of the river.  We understood that it is Wah Amin ji.  Also, it was a relief to see that he is safe.  We slowly started moving forward.  Amin ji had reached near a house.  He was murmuring loudly as he went on.  Although his clear voice could not reach us, but his expressions were screaming that he was abusing us.  Everyone around knew him, so the mature lady standing outside that house sat asking him, "Bhaiji! Kakh bati aana chau, sye khatula lheki. Ar gali kai tain deena chau" (Brother! Where are you coming from?  Who else are you abusing about this cot).

 (Ongoing...)



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