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दिनेश कुकरेती
बचपन में अगर शरारतें न हों तो कैसा बचपन। यह ठीक है कि मैंने सुविधा-संपन्न बचपन नहीं देखा, लेकिन कमोबेश एक बेफिक्र बचपन जरूर जिया। मिट्टी, पानी व पेड़-पौधों से तो मेरा हमेशा ही गहरा वास्ता रहा। खेल भी जो आम बच्चों के होते हैं (थे), उन्हें खूब खेला। हां! अन्य बच्चों से थोडा़ अंतर मुझमें यह रहा कि मुझे तब तरह-तरह के कामिक्स पढ़ने का चस्का लग चुका था और ज्यादातर वक्त कामिक्स की तलाश व उन्हें पढ़ने में गुजरता था। दरअसल तब पैसे तो होते थे नहीं, इसलिए कामिक्स के लिए इधर-उधर से जोड़-तोड़ करना पड़ती थी। खैर! ये एक लंबी कहानी है, जिसे किसी दिन फुर्सत में सुनाऊंगा। फिलहाल तो कुछ मनोरंजन हो जाए।
वर्ष 1984 की बात होगी। तब मैं नवीं में पढ़ता था, बल्कि नवीं कर चुका था, क्योंकि तब वार्षिक परीक्षाएं हो चुकी थीं। उस दौर में वीसीआर और वीसीपी पर पिक्चर देखने का खासा क्रेज हुआ करता था। उसके लिए बाकायदा पैसे इकट्ठा किए जाते थे। लेकिन, किसी की शादी हो तो पूरी रात फ्री में पिक्चर देखने को मिल जाया करती थीं। तब हम दो-तीन दोस्त भी अगर किसी शादी में शामिल हो गए तो फिर दो या तीन फिल्म देखने के बाद ही घर लौटते थे। मेरे लिए तो ये खास मौका हुआ करते थे, क्योंकि तब मेरे घर में टीवी नहीं था। यह किस्सा ऐसी ही एक शादी का है।
उन दिनों जिस मकान में हम किराये पर रहते थे, वह मेरे मोहल्ले का सबसे आखिरी मकान था। लेकिन, जिस मकान का मैं जिक्र करने वाला हूं, वह सड़क से मेरे मोहल्ले का पहला और मेरे घर से आखिरी मकान था। उस मकान के मालिक से पूरे मोहल्ले की नहीं बनती थी यानी अनबन रहती थी। मकान मालिक पति-पत्नी बुजुर्ग होने के बावजूद बेहद झगडा़लु थे। बस! अवसर की तलाश में रहते कि कब मोहल्ले के किसी व्यक्ति से कोई चूक हो और उससे झगडा़ शुरू किया जाए। मोहल्ले वाले भी उनसे विशेष सावधान रहते थे, लेकिन वह दोनों जान-बूझकर उन्हें उकसाने की कोशिश करते। इसलिए महीने में एक बार तो झगडा़ देखने को मिल ही जाता था।
इस झगडा़लु दंपती के मकान में दो बेटों के साथ एक सज्जन किराये पर रहते थे। 55-56 साल तो तब उम्र रही ही होगी उनकी। बेहद आला दर्जे के शराबी। शाम छह-सात बजे के बाद तो होश में रहना उन्हें गवारा ही नहीं था। तहसील में अमीन (जमीन की नाप-जोख करने वाला कर्मचारी) होने के कारण ऊपरी कमाई ठीक-ठाक हो जाया करती थी, इसलिए दिल खोलकर शराब पीते। कई बार तो बेहोशी की हालत में रात को लोग उन्हें घर पर छोड़ जाया करते थे। उनके छोटे लड़के से हमारी यानी मेरी और मेरे दोस्तों की अच्छी छनती थी। अमीन गर्मियों के दिनों में रात को कभी कमरे में नहीं सोते थे। खुले बरामदे में ही उसकी खटिया लगती थी और बरामदा बिल्कुल मोहल्ले के रास्ते से लगा हुआ था।
तब मेरे मनो-मस्तिष्क में तो कोई न कोई खुरापात चलती ही रहती थी। एक दिन मन में आया कि क्यों न रात में अमीन जी को खटिया समते उठाकर कहीं दूर छोड़ दिया जाए। मैंने मन की बात अपने दोस्त से साझा की, जो मेरी ही उम्र का था। छह-साथ दिन तक हम अपने इस मिशन को कार्यरूप देने में जुटे रहे। तमाम किंतु-परंतु से निकलने का रास्ता तलाशा गया। मिशन को बेहद सतर्कता से अंजाम तक पहुंचाना था, इसलिए ऐसे दिन का चयन किया गया, जिस दिन हम किसी बारात में मेहमान हों। तय हुआ कि हम दोनों के सिवा किसी तीसरे को मिशन के बारे में कानोंकान भी खबर नहीं लगने दी जाएगी।
(...आगे क्या हुआ, जानने के लिए कल तक का इंतजार कीजिए।)
(जारी...)
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Anecdote (6)
Amin's cot
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Dinesh Kukreti
If there are no mischief in childhood, then what kind of childhood? It is true that I did not see a prosperous childhood, but I did live more or less a carefree childhood. I have always had a deep relationship with soil, water and plants. Even the games which belong to ordinary children (were), played them a lot. Yes! The slight difference in me from other children was that I was addicted to reading different types of comics then and spent most of the time looking for comics and reading them. Actually, there was no money then, so for the comics, manipulations had to be done from here and there. So! This is a long story, which I will tell someday at leisure. For now, let's have some fun.
It will be about the year 1984. Then I used to study in ninth, rather I had done ninth, because then the annual examinations were over. At that time, there used to be a lot of craze to see pictures on VCR and VCP. Money was collected for that. But, if someone is married, then the whole night used to get to see the picture for free. Then, if two or three friends also attended a wedding, then we would return home only after watching two or three films. It used to be a special occasion for me, because then there was no TV in my house. This story is about one such marriage.
In those days the house where we lived on rent was the last house in my locality. But, the house I am about to mention was the first one in my neighborhood across the road and the last one from my house. The entire locality was not formed with the owner of that house, that is, there was a rift. Landlord husband and wife, despite being elderly, were very quarrelsome. bus! While looking for the opportunity when there is a mistake with any person of the locality and start a fight with him. The local people were also very careful with them, but both of them would deliberately try to provoke them. That's why fights used to be seen once in a month.
A gentleman with two sons lived on rent in the house of this quarrelsome couple. His age must have been 55-56 years then. Very high class alcoholic. After six to seven o'clock in the evening, he could not bear to remain conscious. Being an Amin (a land measuring employee) in the tehsil, the upper income used to be decent, so he used to drink alcohol openly. Many times people used to leave them at home in the state of unconsciousness at night. We used to have a good filtering with his little boy i.e. me and my friends. Amin never slept in the room at night during the summer days. His cot was used in the open verandah and the verandah was directly adjacent to the road of the locality.
At that time, there was always some misery going on in my mind. One day it came to mind that why should not Amin ji be left somewhere far away after picking up a cot in the night. I shared Mann ki Baat with my friend, who was my age. For six days at a time, we were busy in making this mission work. Finding a way out of all the buts. The mission had to be carried out very carefully, so such a day was chosen, on which day we are guests in a procession. It was decided that except the two of us, no third person would be allowed to hear about the mission.
(...Wait till tomorrow to know what happened next.)
(Ongoing...)
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