Monday 28 March 2022

28-03-2022 (नानी)


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किस्सागोई (एक)

नानी

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दिनेश कुकरेती

मुझे किस्से-कहानियां सुनने में बडा़ आनंद आता है। बालपन में नानी की कहानियां जो सुनी हैं। इसी वजह से आज भी मैं बेहद उम्दा किस्म का श्रोता हूं, ठीक वैसा ही, जैसा कि उम्दा पाठक हूं। फिर भी न जाने क्यों, सुबह से ही रह-रहकर मन में विचार आ रहा है कि मैं भी किस्सागोई करूं। हल्की-फुल्की नहीं, सोलह आना स्तरीय। बोले तो...ठेठ लिटरेरी। अब, जबकि यह ख्याल आ ही गया है और मैं मन से लगभग तैयार भी हो गया हूं, तो क्यों न आपको अपने बचपन के उस दौर में ले चलूं, जब किस्सागोई आम हुआ करती थी। बल्कि, सच कहूं तो किस्सागोई तब जीवन के लिए आहार की तरह थी। 

आज मैं ये जो किस्सागो बनने का साहस जुटा पा रहा हूं, उसके पीछे भी कहीं न कहीं नानी की ही प्रेरणा है। एक पुस्तक प्रेमी होने के नाते मैंने देश-दुनिया का साहित्य खूब पढा़ है। इसमें भी रूसी साहित्य पहले नंबर पर होगा। लेकिन, नानी को दादी जैसी जगह रूसी साहित्य को छोड़कर शायद ही किसी और साहित्य में मिली हो। प्रेरणा के रूप में तो कतई नहीं। नानी को यह सम्मान सिर्फ महान रूसी उपन्यासकार मैक्सिम गोर्की ही दिला पाए। संयोग से मेरे जीवन में भी नानी की ही भूमिका अहम रही। दादी की भूमिका तो रस्मअदायगी तक ही सीमित थी।

असल में दादी मेरे परिवार को पसंद नहीं करती थी। इसलिए मेरा दादी से कभी भावनात्मक जुडा़व नहीं हो पाया। मेरे बचपन के शुरुआती सात साल गांव में बीते। तब दादी भी गांव में ही रहती थी, लेकिन अलग। मां कहती है कि दादी को मैं अतिप्रिय था, लेकिन मुझे नहीं लगता कि यह वास्तविकता है। कभी-कभी जो दिखता है, वो सच नहीं होता। दादी का ज्यादातर समय मेरी बुआ के पास कोटद्वार में गुजरता था। ताऊजी लोगों के परिवार भी दादी को प्रिय थे। सिर्फ मेरा परिवार ही दादी की आंखों की किरकिरी हुआ करता था। यहां तक कि मेरी नानी से भी दादी बैर रखती थी। जबकि नानी का मन निर्मल था और वो आंसू बहाकर सब भूल जाती थीं। 

तकनीकी रूप से नानी हमारे साथ ही रहती थीं, जबकि मेरा मानना है कि हम नानी के साथ रहते थे। नानी निपट अनपढ़ थीं, लेकिन दुनिया-जहान की समझ उन्हें हम से अधिक थी, शायद वक्त से मिली ठोकरों के कारण। जब मैं नवीं में था, तब नानी ने दुनिया से विदा ली। मेरी ही आंखों के सामने उन्होंने अंतिम सांस ली थी। तब उनकी उम्र 65 या 66 साल रही होगी। सबसे पहले मैंने ही नानी की पार्थिव देह को कंधा दिया।, हालांकि, उन्हें अंतिम विदाई देने मैं हरिद्वार नहीं गया, बल्कि जाने नहीं दिया गया। तब मैं सोलह साल का तो रहा ही हूंगा।

दादी भी अंतिम समय में कोटद्वार आ गई थीं, लेकिन हमारे घर आना उन्हें तब भी गवारा नहीं हुआ। वो ताऊजी के घर में रहती थीं। ताऊजी के घर से मेरे घर की दूरी बामुश्किल 200 मीटर रही होगी, लेकिन दादी को मीलों दूर लगती थी। तब तीन-चार बार मैं दादी से मिलने भी गया, लेकिन उनका व्यवहार किसी दूर के रिश्तेदार जैसा ही रहा। ताऊजी के घर में ही दादी ने अंतिम सांस ली। तब संभवतः मैं 18 साल का हो गया था। सच कहूं तो दादी के होने-न होने का मुझे कभी कोई मलाल नहीं रहा। आज भी नहीं है। दादी के साथ जुडी़ ऐसी कोई स्मृतियां भी तो नहीं हैं, जिन्हें याद रखा जाए।

इधर, दुनिया छोड़ने के बाद भी नानी वर्षों तक मेरी यादों में रहीं, लेकिन वक्त के साथ धीरे-धीरे उनका स्थान जीवन के झंझावतों ने ले लिया। बावजूद इसके नानी के साथ बिताए खूबसूरत पलों को मैं कभी नहीं भुला सकता। फुर्सत के क्षणों में ही सही, वो पल किस्सा-कहानियों के रूप में मुझे हमेशा बचपन की याद दिलाते हैं और दिलाते रहेंगे। लेखन के लिए मेरी प्रेरणा बने रहेंगे। मैं स्वयं को जहां खडा़ पाता हूं, इन पलों का भी उसमें अहम योगदान है।

(जारी...)

इन्‍हें भी पढ़ें : 

--------------------------------------------------------------Anecdote ( one)

Maternal Grandmother

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Dinesh Kukreti

I take great pleasure in hearing stories.  The stories of nanny that have been heard in childhood.  That is why even today I am a very good listener, just as I am a good reader.  Still don't know why, since morning the thought is coming in my mind that I should also tell a story.  Not light-hearted, sixteen annas level.  So... typical literary.  Now that this thought has come and I am almost ready in my mind, why not take you back to the times of my childhood when storytelling used to be common.  Rather, to be honest, storytelling was like food for life then.

Today I am able to muster the courage to become this story, behind it too, somewhere the inspiration of my grandmother is there.  Being a book lover, I have read a lot of literature of the country and the world.  In this too, Russian literature will be at number one.  But, the place of grandmother as grandmother is hardly found in any other literature except Russian literature.  Absolutely not as an inspiration.  Only the great Russian novelist Maxim Gorky could bring this honor to Nani.  Incidentally, in my life too, the role of Nani was important.  The role of grandmother was limited to the rituals.

Actually Grandma didn't like my family.  That's why I never had an emotional connection with my grandmother.  The first seven years of my childhood were spent in the village.  Then grandmother also lived in the village, but separately.  Maa says I loved Dadi, but I don't think it is a reality.  Sometimes what you see is not true.  Most of my grandmother's time was spent near my aunt in Kotdwar.  The families of Tauji people were also dear to Dadi.  Only my family used to be the grit of grandma's eyes.  Even my grandmother hated my grandmother.  While Nani's mind was pure and she used to forget everything by shedding tears.

Technically Nani lived with us, whereas I believe we lived with Nani.  Nani was completely illiterate, but she had a better understanding of the world than us, probably because of the stumbling blocks from time.  When I was in ninth, Nani left the world.  He breathed his last before my very eyes.  Then his age would have been 65 or 66 years.  First of all, I shouldered the body of Nani's body. However, I did not go to Haridwar to give her the last farewell, but was not allowed to go.  I must have been sixteen years old then.

Dadi had also come to Kotdwar at the last minute, but she did not mind coming to our house even then.  She used to live in Tauji's house.  The distance from Tauji's house to my house would have been hardly 200 meters, but Dadi seemed to be miles away.  Then three or four times I also went to meet Dadi, but her behavior remained like that of a distant relative.  Grandmother breathed her last in Tauji's house.  I was probably 18 then.  To be honest, I have never had any regrets about my grandmother's existence or not.  It's not today as well.  There are no such memories associated with grandmother, which should be remembered.

Here, even after leaving the world, Nani remained in my memories for years, but gradually with time, the storms of life took their place.  Despite this, I can never forget the beautiful moments spent with my grandmother.  In the moments of leisure, those moments always remind me of childhood in the form of anecdotes and will always remind me.  Will continue to be my inspiration for writing.  Where I find myself standing, these moments also play an important role in that.

(Ongoing...)


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