Wednesday, 10 April 2024

10-04-2024 जीवन की राहें (भूमिका)


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जीवन की राहें (भूमिका)

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दिनेश कुकरेती
ब कभी मैं स्वयं का मूल्यांकन करने बैठता हूं, मशहूर शायर अब्दुल हमीद अदम का यह शे'र याद हो आता है। वह कहते हैं- 'सिर्फ़ इक क़दम उठा था ग़लत राह-ए-शौक़ में, मंज़िल तमाम उम्र मुझे ढूंढती रही।' हालांकि, अतीत को कभी कोसा नहीं जाता, बल्कि उससे सबक लिया जाता है, फिर भी यह शे'र मुझे न जाने क्यों अपना-सा लगता है। मानो अदम ने मेरे लिए ही इसे कहा हो। सच कहूं तो मैं आज जहां भी हूं, इस शौक के कारण ही हूं। कभी-कभी तो लगता है कि अगर उस दौर में सिर पर पत्रकार बनने का जुनून सवार न हुआ तो आज यह दिन भी न देखने पड़ते। लेकिन, यह भी सच है कि फिर जीवन में अनुभव का इतना बड़ा खजाना भी तो नहीं होता अपने पास। ...और सबसे बड़ा सवाल, जो मैं अक्सर खुद से ही पूछा करता हूं, कि क्या फिर मैं इस तरह औरों से हटकर हो पाता। निर्भीकता के साथ सच को सच और झूठ को झूठ कहने का साहस जुटा पाता। चीजों का इस तरह वैज्ञानिक ढंग से विश्लेषण कर पाता। इसका बेलाग-लपेट जवाब है, नहीं...कतई नहीं।

वैसे इस सब के पीछे बड़ा योगदान उन पुस्तकों का भी है, जिन्होंने मुझे जीवन की राहों पर चलना सिखाया, जिन्होंने मुझे जड़ताओं के खिलाफ खड़े होने की ताकत दी और जिन्होंने मुझे खुला आसमान दिया। लेकिन, इस सच को भी तो नजरंदाज नहीं किया जा सकता कि अच्छी पुस्तकें पढ़ने के शौक को भूख में बदलने वाली वह पत्रकार बनने की जिद ही थी। इस जिद ने ही मुझे वह दृष्टि प्रदान की, जिसकी वर्तमान में समाज एवं राष्ट्र को सबसे ज्यादा जरूरत है। इसी दृष्टि ने मुझे शिक्षा के वास्तविक महत्व से परिचित कराया और समझाया कि शिक्षा इंसान के मनो-मस्तिष्क को हमेशा तरो-ताजा बनाए रखती है। हां! यह जरूर है कि शिक्षा का दृष्टिकोण वैज्ञानिक होना चाहिए। इसी दृष्टि ने मुझे संवेदनशील इंसान बनाया। साथ ही इतनी हिम्मत भी दी कि मैं जीवन की हर परिस्थिति का डटकर मुकाबला कर सकूं। हालांकि, आज के दौर में इस राह पर चलना आसान नहीं रहा, लेकिन सम्मान से जीने की इससे बेहतर कोई अन्य राह भी तो नहीं है।
और शायद यही वजह है कि मुझे कभी अपने हालात पर अफसोस नहीं हुआ और पूरी उम्मीद है कि आगे भी नहीं होगा। यह राह मैंने स्वयं चुनी है और उस दौर में यह कोई गलत निर्णय भी नहीं था। लोग तब पत्रकारों को शिक्षाविद सरीखा सम्मान देते थे। माना जाता था कि पत्रकार जितना ज्ञान किसी अन्य को नहीं हो सकता। कारण तब पढ़ने-लिखने वाला ही पत्रकार बनने का साहस करता था और जो अपेक्षाकृत पढ़ा-लिखा नहीं होता था, उसे भी पढ़ने-लिखने वालों की संगत में रहना ही सुहाता था। फिर पत्रकार भी तो गिनती के ही होते थे। जो बड़े मीडिया हाउस से जुड़ जाता था, उसे वेतन भी अच्छा-खासा मिलता था। क्लास-टू राजपत्रित अधिकारी से भी अधिक। ऐसे में कौन जानता था कि आगे यह राह अंधेरे कुएं की ओर बढ़ रही है, जिस पर खुद को बचाते हुए आगे बढ़ पाना हर किसी के लिए संभव नहीं हो पाएगा। ...और जैसे-तैसे सुरक्षित निकल भी गए तो आपके हाथ बांध दिए जाएंगे। सच बोलने की हिमाक़त करोगे तो देशद्रोही ठहरा दिए जाओगे। आपको वही लिखना और बोलना होगा, जो लिखवाया और बुलवाया जाएगा। 
खैर! परिस्थितियों ने मुझे लड़ना सिखाया है, खुद से भी और हालात से भी। इसलिए मैं कभी कमजोर नहीं पड़ा। हां! कुछ समय के लिए रास्ता अवश्य बदल दिया है। बस! इंतजार है सही वक्त का और मुझे यकीन है कि वह वक़्त जरूर आएगा, क्योंकि रात कितनी भी घनी क्यों न हो, उसकी सुबह तो तय है। इसलिए जब-जब भी मैं स्वयं को कमजोर पाता हूं, साथी दुष्यंत कुमार का यह शे'र याद हो आता कि 'वक़्त की रेत मुझे एड़ियां रगड़ने दे, मुझे यकीन है पानी यहीं से निकलेगा।' मितरों! जीवन की राह से गुजरते हुए बीते कालखंड में जो तमाम खट्टी-मीठी और कड़वी अनुभूतियां मुझे हुई हैं और जो आने वाले वक्त में होंगी, उन्हें आपकी नज़र करना मैं अपना फर्ज़ समझता हूं। मुझे लगता है कि इससे आपको मीडिया के असल चरित्र को समझने में जरूर मदद मिलेगी। अनुभूतियों के इस दस्तावेज को लिखने के पीछे मेरी सोच भी यही है। ... और हां! निकट भविष्य में मैं इस दस्तावेज को पुस्तक के रूप में लाने का भी प्रयास करूंगा। ...तो इंतजार कीजिए-
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Life's paths
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Dinesh Kukreti
Whenever I sit to evaluate myself, I remember this verse of the famous poet Abdul Hameed Adam. He says- 'I had taken just one step on the wrong path of passion, the destination kept searching for me throughout my life.' Although, the past is never cursed, rather a lesson is learnt from it, yet I don't know why this verse feels like my own. As if Adam has said it for me. To tell the truth, wherever I am today, it is because of this passion. Sometimes I feel that if I had not been obsessed with becoming a journalist at that time, I would not have had to see this day. But, it is also true that then I would not have had such a huge treasure of experience in life. ...And the biggest question, which I often ask myself, is that would I have been able to be different from others in this way. Would I have been able to gather the courage to fearlessly call truth as truth and lie as lie.  Would I be able to analyse things in such a scientific way? The straight answer to this is, no...absolutely not.

Well, the books that taught me how to walk on the path of life, that gave me the strength to stand up against rigidities and that gave me the open sky have also contributed a lot to all this. But, this truth cannot be ignored that it was the stubbornness to become a journalist that turned the hobby of reading good books into a hunger. This stubbornness gave me the vision that is most needed by the society and the nation at present. This vision introduced me to the real importance of education and explained that education always keeps the mind and brain of a person fresh. Yes! It is definitely true that the approach of education should be scientific. This vision made me a sensitive person. Along with this, it also gave me so much courage that I could face every situation of life firmly. Although, walking on this path has not been easy in today's era, but there is no better way than this to live with respect.

And perhaps this is the reason why I have never regretted my circumstances and I am sure I will not regret it in the future. I have chosen this path myself and it was not a wrong decision in those times. People then respected journalists like an academician. It was believed that no one else could have as much knowledge as a journalist. The reason was that only those who were educated dared to become journalists and those who were not as educated liked to stay in the company of educated people. Then journalists were also very few in number. Those who joined a big media house got a good salary. Even more than a class-two gazetted officer. In such a situation, who knew that this path ahead was leading towards a dark well, on which it would not be possible for everyone to move forward while protecting themselves. ...And even if you somehow get out safely, your hands will be tied. If you dare to speak the truth, you will be declared a traitor. You will have to write and speak only what you are asked to write and say.

Well! Circumstances have taught me to fight, with myself as well as with the circumstances. That is why I have never become weak. Yes! The path has definitely changed for some time. That is all! I am waiting for the right time and I am sure that that time will definitely come, because no matter how dark the night is, its morning is certain. That is why whenever I find myself weak, I remember this verse of my friend Dushyant Kumar that 'Let the sand of time rub my heels, I am sure that water will come out from here.' Friends! I consider it my duty to share with you all the sour, sweet and bitter experiences that I have had in the past while passing through the path of life and those that I will have in the future. I think that this will definitely help you in understanding the real character of the media. This is also my thinking behind writing this document of experiences. ... And yes! In the near future, I will also try to bring this document in the form of a book. ... So wait-




 

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