दिनेश कुकरेती
उत्तराखंड हिमालय के बदरिकाश्रम क्षेत्र में स्थित बदरीनाथ धाम से तो दुनियाभर में लोग परिचित हैं, लेकिन यह जानकारी गिनती के लोगों को ही होगी कि यहां भगवान बदरी विशाल एक नहीं, आठ स्वरूपों में प्रतिष्ठित हैं, जिसे अष्ट बदरी समूह कहा गया है। इन आठों पौराणिक तीर्थों का बदरीनाथ धाम जितना ही माहात्म्य है। बदरीनाथ धाम की तरह इन तीर्थों में भी विभिन्न नामों से भगवान नारायण वास करते हैं। अष्ट बदरी समूह के इन सभी मंदिरों का स्थापना काल भी कमोबेश वही है, जो बदरीनाथ धाम का माना जाता है। कहते हैं कि आठवीं सदी में बदरीनाथ मंदिर की मौजूदगी थी। इनमें कर्णप्रयाग के पास रानीखेत मार्ग पर आदि बदरी, बदरीनाथ हाईवे पर पांडुकेश्वर में योग-ध्यान बदरी, जोशीमठ-मलारी हाईवे पर सुभांई गांव में भविष्य बदरी, इसी हाईवे पर तपोवन के पास अर्द्ध बदरी, हेलंग के पास उर्गम घाटी में ध्यान बदरी, हेलंग के निकट अणिमठ गांव में वृद्ध बदरी, जोशीमठ में नृसिंह बदरी और बदरीशपुरी में विशाल बदरी यानी बदरीनाथ धाम स्थित हैं।
चमोली जिले में स्थित अष्ट बदरी समूह के कुछ मंदिर सालभर दर्शनार्थियों के लिए खुले रहते हैं, जबकि बाकी में चारधाम सरीखी ही कपाट खोलने और बंद करने की परंपरा है। कहते हैं कि प्राचीन काल में जब बदरीनाथ धाम की राह बेहद दुर्गम एवं दुश्वारियों भरी थी, तब अधिकांश भक्त आदि बदरी धाम में भगवान नारायण के दर्शनों का पुण्य प्राप्त करते थे। लेकिन, कालांतर में सड़क बनने से बदरीनाथ धाम की राह आसान हो गई। एक मान्यता यह भी है कि नृसिंह मंदिर जोशीमठ में भगवान नृसिंह के बायें हाथ की कलाई निरंतर कमजोर हो रही है। कलयुग की पराकाष्ठा पर जिस दिन यह कलाई टूटकर जमीन पर गिर जाएगी, उस दिन नर-नारायण (जय-विजय) पर्वत आपस में जुड़ जाएंगे। इसके बाद बदरीनाथ धाम की राह सदा के लिए अवरुद्ध हो जाएगी। तब भगवान बदरी नारायण सुभांई गांव स्थित भविष्य बदरी धाम में अपने भक्तों को दर्शन देंगे। अहम बात यह कि नृसिंह बदरी को छोड़कर बाकी अन्य सभी मंदिरों में भक्तों को भगवान नारायण के ही दर्शन होते हैं। जबकि, नृसिंह मंदिर में नारायण अपने चतुर्थ अवतार नृसिंह रूप में विराजमान हैं। हालांकि, अपने आसन पर वह भगवान बदरी नारायण की तरह ही देव पंचायत के साथ बैठते हैं।
आस्था के केंद्र ही नहीं, जीवन की धुरी भी
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अष्ट बदरी समूह के मंदिर महज आस्था के केंद्र ही नहीं, बल्कि पहाड़ के जीवन की धुरी भी हैं। इन मंदिरों से हजारों लोगों की आर्थिकी प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से जुड़ी हुई है। यात्राकाल के छह महीने वे यहां पूजा-पाठ समेत विभिन्न आर्थिक गतिविधियां संचालित कर सालभर के लिए जीविकोपार्जन के साधन जुटा लेते हैं। देखा जाए तो इन मंदिरों का पहाड़ से पलायन रोकने में भी बहुत बड़ा योगदान है। इसके अलावा पहाड़ की संस्कृति एवं परंपराओं के प्रचार-प्रसार में भी अष्ट बदरी और केदार समूह के 14 मंदिर पीढ़ियों से महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आए हैं।
विशाल बदरी धाम |
विशाल बदरी धाम
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नर-नारायण पर्वत और नीलकंठ पर्वत शृंखलाओं के आंचल में समुद्रतल से 3,133 मीटर की ऊंचाई पर अवस्थित भू-वैकुंठ बदरीनाथ धाम देश के चारों धाम में सर्वश्रेष्ठ तीर्थ है। तीन अन्य धाम हैं रामेश्वरम (तमिलनाडु), द्वारका (गुजरात) व जगन्नाथपुरी (ओडिशा)। शास्त्रों में कहा गया है कि 'बहूनि सन्ति तीर्थानि, दिवि भूमौ रसासु च। बदरी सदृशं तीर्थ, न भूतो न भविष्यति।' अर्थात पृथ्वी पर अनेक तीर्थ, अनेक धाम है लेकिन श्री बदरीनाथ जैसा तीर्थ ना कभी हुआ था और न भविष्य में कभी होगा। मान्यता है कि आदि शंकराचार्य ने आठवीं सदी में बदरीनाथ मंदिर का निर्माण कराया था। मंदिर के गर्भगृह में भगवान नारायण की चतुर्भुज मूर्ति बदरीश पंचायत में विराजमान है। शालिग्राम शिला से बनी बनी यह मूर्ति ध्यानावस्था में है। कथा है कि यह मूर्ति देवताओं ने नारदकुंड से निकालकर मंदिर के गर्भगृह में स्थापित की थी। जब बौद्धों का प्राबल्य हुआ तो उन्होंने इसे बुद्ध की मूर्ति मानकर पूजा आरंभ कर दी। शंकराचार्य की प्रचार-यात्रा के समय बौद्ध तिब्बत भागते हुए मूर्ति को अलकनंदा में फेंक गए। शंकराचार्य ने उसकी पुनर्स्थापना की। लेकिन, मूर्ति फिर स्थानांतरित हो गई, जिसे तीसरी बार तप्तकुंड से निकालकर रामानुजाचार्य ने स्थापित किया। मंदिर में नर-नारायण विग्रह की पूजा होती है और अखंड दीप प्रज्ज्वलित रहता है, जो अचल ज्ञान-ज्योति का प्रतीक है। मंदिर के पश्चिम में 27 किमी की दूरी पर बदरीनाथ शिखर के दर्शन होते हैं, जिसकी ऊंचाई 7,138 मीटर है।
योग-ध्यान बदरी धाम |
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जोशीमठ से 18.5 किमी दूर पांडुकेश्वर नामक स्थान पर योग-ध्यान बदरी मंदिर में भगवान नारायण का ध्यानावस्थित तपस्वी स्वरूप का विग्रह विद्यमान है। अष्टधातु की यह मूर्ति बेहद चित्ताकर्षक और मनोहारी है। जनश्रुति है कि भगवान योग-ध्यान बदरी की मूर्ति इंद्रलोक से उस समय लाई गई थी, जब अर्जुन इंद्रलोक से गंधर्व विद्या प्राप्त कर लौटे थे। प्राचीन काल में रावल भी शीतकाल में इसी स्थान पर रहकर भगवान बदरी नारायण की पूजा किया करते थे। सो, यहां पर स्थापित भगवान नारायण का नाम योग-ध्यान बदरी हो गया। योग-ध्यान बदरी का पंच बदरी में तीसरा स्थान है। शीतकाल में जब नर-नारायण आश्रम में बदरीनाथ धाम के पट बंद हो जाते हैं, तब भगवान के उत्सव विग्रह की पूजा इसी स्थान पर होती है। इसलिए इसे 'शीत बदरी' भी कहा जाता है। विशेष यह कि भगवान नारायण के रूप में यहां शीतकाल के दौरान उनके बालसखा एवं प्रतिनिधि उद्धवजी व देवताओं के खजांची कुबेरजी की पूजा होती है।
वृद्ध बदरी धाम |
वृद्ध बदरी धाम
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बदरीनाथ हाईवे पर जोशीमठ से सात किमी पहले हेलंग की ओर अणिमठ (अरण्यमठ) गांव में भगवान विष्णु का अत्यंत सुन्दर विग्रह विराजमान है, जिसकी नित्य-प्रति पूजा और अभिषेक होता है। यहां समुद्रतल से 1,380 मीटर की ऊंचाई पर भगवान बदरी नारायण का प्राचीन मंदिर है, जिसमें वे 'वृद्ध बदरी' के रूप में प्रतिष्ठित हैं। जनश्रुति है कि एक बार देवर्षि नारद मृत्युलोक में विचरण करते हुए बदरीधाम की ओर जाने लगे। मार्ग की विकटता देखकर थकान मिटाने को वे अणिमठ नाम स्थान पर रुके। यहां उन्होंने कुछ समय भगवान विष्णु की आराधना व ध्यान कर उनसे दर्शनों की अभिलाषा की। तब भगवान बदरी नारायण ने वृद्ध के रूप में नारदजी को दर्शन दिए, इसलिए भगवान को यहां 'वृद्ध बदरी' नाम मिला, जो भगवान बदरी विशाल के ही प्रतिरूप हैं।
भविष्य बदरी धाम |
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'स्कंद पुराण' के केदारखंड में कहा गया है कि कलयुग की पराकाष्ठा होने पर जोशीमठ के समीप जय-विजय नाम के दोनों पहाड़ आपस में जुड़ जाएंगे। तब राह अवरुद्ध होने से भगवान बदरी विशाल के दर्शन असंभव हो जाएंगे। ऐसे में भक्तगण समुद्रतल से 2,744 मीटर की ऊंचाई पर स्थित भविष्य बदरी धाम में ही भगवान के विग्रह का दर्शन-पूजन कर सकेंगे। भविष्य बदरी धाम जोशीमठ-मलारी मार्ग पर तपोवन से आगे सुभांई गांव के पास स्थित है। यहां पहुंचने के लिए जोशीमठ से तपोवन तक 15 किमी की दूरी सड़क मार्ग से तय करनी पड़ती है। यहां से रिंगी होते हुए भी भविष्य बदरी जा सकते हैं। वर्तमान में तपोवन मार्ग पर सलधार से भी भविष्य बदरी के लिए मार्ग जाता है। छह किमी के इस मार्ग पर सुभांई गांव से आगे तीन किमी की खड़ी चढ़ाई देवदार के घने जंगल के बीच से पैदल तय करनी पड़ती है। कहते हैं कि यहां पर महर्षि अगस्त्य ने तपस्या की थी। वर्तमान में यहां पर पत्थर में अपने-आप भगवान का विग्रह प्रकट हो रहा है। इस मंदिर के कपाट बदरीनाथ के साथ ही खोलने व बंद करने की परंपरा है।
ध्यान बदरी धाम |
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ध्यान बदरी मंदिर पंचम केदार कल्पेश्वर धाम के पास कल्प गंगा नदी के तट पर चमोली जिले की उर्गम घाटी में समुद्रतल से 2135 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदिर उत्तराखंड के अष्ट बदरी मंदिरों में से एक है। मंदिर में काले पत्थर से बनी भगवान विष्णु चतुर्भुज मूर्ति ध्यान मुद्रा में अवस्थित है। भगवान ने अपने हाथ में चक्र व शंख धारण किया हुआ है। मंदिर में नर-नारायण, कुबेर और गरुड़ की प्रतिमाएं भी हैं। कहते हैं कि ध्यान बदरी मंदिर का निर्माण 12वीं सदी में आदि शंकराचार्य के मार्गदर्शन में किया गया था। बेहतरीन कलाकृति और पत्थर की नक्काशी से सजाया यह मंदिर लगभग बदरीनाथ मंदिर के समान ही दिखता है। कहते हैं कि प्राचीन काल में जब बदरीनाथ धाम पहुंचना सर्दियों में दुर्गम हो जाता था, तब भक्त ध्यान बदरी मंदिर में ही भगवान विष्णु की पूजा करते थे। ध्यान बदरी मंदिर चार दिशाओं में चार मंदिरों से घिरा हुआ है। इसके पश्चिम में काशी विश्वनाथ मंदिर, पूर्व में कुबेर धारा, उत्तर में घंटाकर्ण मंदिर और दक्षिण में चंडिका मंदिर अवस्थित है। ध्यान बदरी मंदिर की व्यवस्था डिमरी जाति के लोग संभालते हैं, जो बदरीनाथ धाम में श्रीलक्ष्मी मंदिर के मुख्य पुजारी भी हैं। पौराणिक आख्यानों के अनुसार इस स्थान पर इंद्र ने कल्पवास की शुरुआत की थी। कहते हैं कि जब देवराज इंद्र दुर्वासा के शाप से श्रीहीन हो गए, तब उन्होंने भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए इस स्थान पर कल्पवास किया। तब से यहां कल्पवास की परंपरा चल निकली। कल्पवास में चूंकि साधक भगवान के ध्यान में लीन रहता है, इसलिए यहां पर भगवान का विग्रह भी आत्मलीन अवस्था में है। इसी कारण नारायण के इस विग्रह को ध्यान बदरी नाम से संबोधित किया गया। ध्यान बदरी की कथा पांडव वंश के राजा पुरंजय के पुत्र उर्वर ऋषि से भी जुड़ी हुई है। कहते हैं कि उन्होंने उर्गम क्षेत्र में ध्यान किया था और यहां भगवान विष्णु का मंदिर बनवाया। इस मंदिर की एक और खासियत यह है कि गर्भगृह की दीवारें मानव मुखौटों से सजी हैं, जिनका इस्तेमाल मेलों के दौरान मुखौटा नृत्य में किया जाता है। भगवान विष्णु की मुख्य मूर्ति के पास कई शालिग्राम पत्थर भी देखे जा सकते हैं।
ऐसे पहुंचें: यहां पहुंचने के लिए ऋषिकेश से हेलंग चट्टी तक 243 किमी की दूरी सड़क मार्ग से तय करनी पड़ती है। यहां से आगे उर्गम, ल्यारी और देवग्राम तक नौ किमी सड़क मार्ग है। इसके बाद ध्यान बदरी मंदिर तक तीन किमी की यात्रा पैदल करनी पड़ती है।
आदि बदरी धाम |
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गढ़वाल राज्य की राजधानी रही चांदपुरगढ़ी से तीन किमी आगे रानीखेत मार्ग पर प्राचीन मंदिरों का समूह दिखाई देता है, जो सड़क के दायीं ओर स्थित है। यही है अष्ट बदरी में शामिल आदि बदरी धाम। कथा है कि इन मंदिरों का निर्माण स्वर्गारोहिणी यात्रा के दौरान पांडवों ने किया था। यह भी कहते हैं कि आठवीं सदी में शंकराचार्य ने यह मंदिर बनवाए थे। जबकि, एएसआइ (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) के अनुसार इनका निर्माण आठवीं से 11वीं सदी के बीच कत्यूरी राजाओं ने किया। कुछ वर्षों से एएसआइ ही इन मंदिरों की देखभाल कर रहा है। आदि बदरी मंदिर समूह कर्णप्रयाग से दूरी 11 किमी है। मूलरूप से इस समूह में 16 मंदिर थे, जिनमें अब 14 ही बचे हैं। प्रमुख मंदिर भगवान विष्णु का है, जिसकी पहचान इसका बड़ा आकार और एक ऊंचे चबूतरे पर निर्मित होना है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु एक मीटर ऊंची शालीग्राम की काली प्रतिमा विराजमान है। जो अपने चतुर्भुज रूप में खड़े हैं। इसके सम्मुख एक छोटा मंदिर गरुड़ महाराज का है। अन्य मंदिर सत्यनारायण, लक्ष्मी, अन्नपूर्णा, चकभान, कुबेर (मूर्तिविहीन), राम-लक्ष्मण-सीता, काली, शिव, गौरी व हनुमान को समर्पित हैं। इन प्रस्तर मंदिरों पर गहन एवं विस्तृत नक्काशी हुई है और हर मंदिर पर नक्काशी का भाव विशिष्ट एवं अन्य मंदिरों से अलग भी है। आदि बदरी धाम के पुजारी थापली गांव के थपलियाल होते हैं। इस मंदिर के कपाट साल में सिर्फ पौष मास में बंद रहते हैं और मकर संक्रांति पर्व पर श्रद्धालुओं दर्शनार्थ खोल दिए जाते हैं।
अर्द्ध बदरी धाम |
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अष्ट बदरी समूह के मंदिरों में जोशीमठ-मलारी हाईवे पर तपोवन क्षेत्र में स्थित अर्द्ध बदरी धाम का विशिष्ट माहात्म्य है। इस मंदिर में भगवान विष्णु में विराजमान भगवान विष्णु का विग्रह छोटा यानी अन्य बदरी मंदिरों की तुलना में आधे आकार का है। इसलिए यहां भगवान नारायण का 'अर्द्ध बदरी' नाम पड़ा। इसका अर्थ होता है आधा बदरी। कहते हैं कि इस मंदिर का निर्माण भी आदि शंकराचार्य ने ही करवाया था। यहां पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को खड़ी चढ़ाई नापनी पड़ती है। हालांकि, अर्द्ध बदरी धाम के बारे में जानकारी बहुत सीमित है, इसलिए बाहर से गिनती के श्रद्धालु ही यहां पहुंचते हैं। यह मंदिर वर्षभर श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खुला रहता है।
नृसिंह बदरी धाम |
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चमोली जिले के ज्योतिर्मठ (जोशीमठ) में स्थित नृसिंह मंदिर भगवान विष्णु के 108 दिव्य तीर्थों में से एक माना गया है। अष्ट बदरी में से एक होने के कारण समुद्रतल से 6,150 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर को नृसिंह बदरी भी कहा जाता है। मान्यता है कि आदि शंकराचार्य ने स्वयं यहां भगवान नृसिंह के विग्रह की स्थापना की थी। मंदिर में भगवान नृसिंह की लगभग दस इंच ऊंची शालिग्राम शिला से स्व-निर्मित प्रतिमा स्थापित है। इसमें भगवान नृसिंह कमल पर विराजमान हैं। उनके साथ बदरी नारायण, उद्धव और कुबेर के विग्रह भी स्थापित हैं। भगवान के दायीं ओर श्रीराम, माता सीता, हनुमानजी व गरुड़ महाराज और बायीं तरफ मां चंडिका (काली) विराजमान हैं। मान्यता है कि भगवान नृसिंह के बायें हाथ की कलाई निरंतर कमजोर हो रही है। जिस दिन कलाई टूटकर जमीन पर गिर जाएगी, उसी दिन जोशीमठ के पास नर-नारायण (जय-विजय) पर्वत के आपस में मिलने से बदरीनाथ की राह सदा के लिए अवरुद्ध हो जाएगी। तब भगवान बदरी नारायण जोशीमठ-तपोवन हाईवे पर सुभांई गांव के पास भविष्य बदरी धाम में दर्शन देंगे। शीतकाल के लिए बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने पर आदि शंकराचार्य की गद्दी नृसिंह मंदिर में ही स्थापित होती है। इसलिए पांडुकेश्वर स्थित योग-ध्यान बदरी मंदिर के साथ ही नृसिंह मंदिर में भी भगवान बदरी विशाल की शीतकालीन पूजाएं संपन्न होती हैं। बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने से पूर्व हर साल मंदिर में एक विशेष अनुष्ठान संपन्न होता है, जिसे तिमुंड्या पूजा कहा जाता है। यह पूजा कपाट खुलने से एक या दो सप्ताह पूर्व पहले पड़ने वाले शनिवार या मंगलवार को आयोजित होती है।
बदरीशपुरी |
बदरीशपुरी और आसपास के दर्शनीय स्थल
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विष्णुपदी (अलकनंदा) नदी के तट पर तप्त-कुंड, ब्रह्म कपाल, सर्प का जोड़ा, शेषनाग की छाप वाला शिलाखंड 'शेषनेत्र', शेषनेत्र झील, बर्फ से ढका नीलकंठ शिखर, माता मूर्ति मंदिर, देश का प्रथम गांव माणा, वेदव्यास गुफा, गणेश गुफा, भीम पुल, अष्ट वसुओं की तपोस्थली वसुधारा, लक्ष्मी वन, सतोपंथ (स्वर्गारोहिणी), अलकनंदा नदी का उद्गम एवं कुबेर का निवास अलकापुरी, सरस्वती नदी, बामणी गांव में भगवान विष्णु की जंघा से उत्पन्न उर्वशी का मंदिर व लीलाढूंगी में चरणपादुका।विशेषकर बदरीनाथ धाम में नारायण पर्वत की चोटी को निहारो तो लगता है कि मंदिर के ऊपर पर्वत की चोटी शेषनाग के रूप में अवस्थित है। शेषनाग के प्राकृतिक फन स्पष्ट देखे जा सकते हैं।
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Eight Dhams of Lord Badri Narayan in Uttarakhand Himalayas
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Dinesh Kukreti
People all over the world are familiar with Badrinath Dham located in Badrikashram area of Uttarakhand Himalayas, but only a few people will know that here Lord Badri Vishal is established in not one but eight forms, which is called Ashta Badri group. These eight mythological pilgrimages have as much importance as Badrinath Dham. Like Badrinath Dham, Lord Narayan resides in these pilgrimages with different names. The establishment period of all these temples of Ashta Badri group is also more or less the same as that of Badrinath Dham. It is said that Badrinath temple existed in the eighth century. These include Adi Badri on the Ranikhet road near Karnaprayag, Yoga-Dhyan Badri in Pandukeshwar on the Badrinath Highway, Bhavishya Badri in Subhai village on the Joshimath-Malari Highway, Ardha Badri near Tapovan on the same highway, Dhyan Badri in Urgam Valley near Helang , Vriddha Badri in Animath village near Helang, Nrusinha Badri in Joshimath and Vishal Badri in Badrishpuri, i.e. Badrinath Dham.
Some temples of the Ashta Badri group located in Chamoli district remain open for visitors throughout the year, while the rest have a tradition of opening and closing the doors like the Char Dham. It is said that in ancient times when the path to Badrinath Dham was very difficult and full of difficulties, most devotees used to attain the virtue of darshan of Lord Narayana at Adi Badri Dham. But, with the passage of time, the road to Badrinath Dham became easier. There is also a belief that the wrist of the left hand of Lord Narasimha in Narasimha Temple Joshimath is continuously weakening. The day this wrist breaks and falls on the ground at the peak of Kalyug, the Nar-Narayan (Jai-Vijay) mountains will join together. After this, the path to Badrinath Dham will be blocked forever. Then Lord Badri Narayan will give darshan to his devotees at Bhavishya Badri Dham located in Subhai village. The important thing is that except for Narasimha Badri, devotees get darshan of Lord Narayana only in all other temples. Whereas, in the Narasimha temple, Narayana is seated in his fourth incarnation as Narasimha. However, on his seat, he sits with the Dev Panchayat just like Lord Badri Narayan.
Not just the center of faith, but also the pivot of life
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The temples of the Ashta Badri group are not just the center of faith, but also the pivot of life in the mountains. The economy of thousands of people is directly and indirectly linked to these temples. During the six months of the pilgrimage period, they conduct various economic activities including worship and rituals here and gather means of livelihood for the whole year. If seen, these temples also have a huge contribution in stopping migration from the mountains. Apart from this, the 14 temples of the Ashta Badri and Kedar group have been playing an important role for generations in the promotion of mountain culture and traditions.
Narayan in various forms
The huge Badri Dham
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Situated at an altitude of 3,133 meters above sea level in the lap of Nar-Narayan mountain and Neelkanth mountain ranges, Bhu-Vaikunth Badrinath Dham is the best pilgrimage among the four Dhams of the country. The three other holy places are Rameswaram (Tamil Nadu), Dwarka (Gujarat) and Jagannathpuri (Orissa). It is said in the scriptures that 'Bahuni santi tirthani, divi bhumau rasasu cha. Badri sadrisham tirtha, na bhooto na bhavishyati.' That is there are many holy places, many holy places on earth but a holy place like Shri Badrinath has never existed and will never exist in future. It is believed that Adi Shankaracharya built the Badrinath temple in the 8th century. In the sanctum sanctorum of the temple, the Chaturbhuj (four-armed) idol of Lord Narayana is seated in the Badrish Panchayat. This idol made of Shaligram stone is in a meditative state. There is a story that this idol was taken out from Narad Kund by the Gods and installed in the sanctum sanctorum of the temple. When the Buddhists became dominant, they started worshipping it considering it to be the idol of Buddha. During the preaching tour of Shankaracharya, the Buddhists while fleeing to Tibet threw the idol in the Alaknanda. Shankaracharya reestablished it. However, the idol was again moved, which was taken out from Taptkund for the third time and installed by Ramanujacharya. The idol of Nar-Narayan is worshipped in the temple and an eternal lamp is lit, which is a symbol of the eternal light of knowledge. Badrinath peak can be seen at a distance of 27 km to the west of the temple, whose height is 7,138 meters.
Yoga-Dhyan Badri Dham
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The idol of Lord Narayana in a meditative ascetic form is present in the Yoga-Dhyan Badri temple at a place called Pandukeshwar, 18.5 km from Joshimath. This idol of Ashtadhatu is very attractive and beautiful. It is a popular belief that the idol of Lord Yoga-Dhyan Badri was brought from Indralok when Arjuna returned from Indralok after acquiring Gandharva Vidya. In ancient times, Rawal also used to worship Lord Badri Narayan by staying at this place during winters. So, the name of Lord Narayana installed here became Yoga-Dhyan Badri. Yoga-Dhyan Badri has the third place among the Panch Badri. During winters, when the doors of Badrinath Dham are closed in Nar-Narayan Ashram, then the Utsav idol of the Lord is worshipped at this place. Therefore, it is also called 'Sheet Badri'. The special thing is that during winters, Lord Narayan is worshipped as his childhood friend and representative Uddhavji and the treasurer of the gods, Kuberji.
Vriddha Badri Dham
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On the Badrinath highway, seven km before Joshimath, towards Helang, in the village of Animath (Aranyamath), there is a very beautiful idol of Lord Vishnu, which is worshipped and anointed every day. Here, at a height of 1,380 meters above sea level, there is an ancient temple of Lord Badri Narayan, in which he is enshrined as 'Vriddha Badri'. There is a popular belief that once Devrishi Narad, while roaming in the mortal world, started going towards Badri Dham. Seeing the difficulty of the path, he stopped at a place called Animath to relieve his fatigue. Here, he worshipped and meditated Lord Vishnu for some time and wished to have his darshan. Then Lord Badri Narayan appeared to Naradji in the form of an old man, hence the Lord got the name 'Vriddha Badri' here, who is the replica of Lord Badri Vishal.
Bhavishya Badri Dham
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It is said in the Kedarkhand of 'Skanda Purana' that when the peak of Kalyug is reached, both the mountains named Jai-Vijay will join together near Joshimath. Then the darshan of Lord Badri Vishal will become impossible due to the obstruction of the path. In such a situation, devotees will be able to worship the idol of the Lord only in Bhavishya Badri Dham, situated at an altitude of 2,744 meters above sea level. Bhavishya Badri Dham is located near Subhai village ahead of Tapovan on the Joshimath-Malari road. To reach here, a distance of 15 km from Joshimath to Tapovan has to be covered by road. From here one can also go to Bhavishya Badri via Ringi. Currently, on the Tapovan road, there is a road from Saldhar to Bhavishya Badri. On this six km route, a steep climb of three km has to be covered on foot through a dense forest of deodar after Subhai village. It is said that Maharishi Agastya had performed penance here. At present, the idol of the Lord is appearing on its own in the stone. There is a tradition of opening and closing the doors of this temple along with Badrinath.
Dhyan Badri Dham
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Dhyan Badri Temple is located at an altitude of 2135 meters above sea level in Urgam Valley of Chamoli district on the banks of Kalp Ganga River near Pancham Kedar Kalpeshwar Dham. This temple is one of the Ashta Badri Temples of Uttarakhand. In the temple, Lord Vishnu Chaturbhuj idol made of black stone is situated in meditation posture. Lord is holding Chakra and Shankh in his hand. There are also statues of Nar-Narayan, Kuber and Garuda in the temple. It is said that Dhyan Badri Temple was built in the 12th century under the guidance of Adi Shankaracharya. Decorated with excellent artwork and stone carvings, this temple looks almost similar to Badrinath Temple. It is said that in ancient times when reaching Badrinath Dham became inaccessible in winters, then devotees used to worship Lord Vishnu in Dhyan Badri Temple itself. Dhyan Badri Temple is surrounded by four temples in four directions. Kashi Vishwanath Temple is situated to its west, Kuber Dhara to the east, Ghantakarna Temple to the north and Chandika Temple to the south. The management of Dhyan Badri Temple is handled by people of Dimri caste, who are also the chief priests of Sri Lakshmi Temple in Badrinath Dham. According to mythological stories, Indra started Kalpavas at this place. It is said that when Devraj Indra became poor due to the curse of Durvasa, he did Kalpavas at this place to please Lord Vishnu. Since then, the tradition of Kalpavas started here. Since in Kalpavas, the devotee remains absorbed in the meditation of God, hence the idol of God here is also in a self-absorbed state. For this reason, this idol of Narayan was addressed as Dhyan Badri. The story of Dhyan Badri is also associated with Urvar Rishi, son of King Puranjay of the Pandava dynasty. It is said that he meditated in the Urgam area and built a temple of Lord Vishnu here. Another special feature of this temple is that the walls of the sanctum sanctorum are adorned with human masks, which are used in mask dances during fairs. Many Shaligram stones can also be seen near the main idol of Lord Vishnu.
How to reach
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To reach here, one has to cover a distance of 243 km by road from Rishikesh to Helang Chatti. From here onwards, there is a 9 km road to Urgam, Lyari and Devgram. After this, one has to walk 3 km to reach Dhyan Badri temple.
Adi Badri Dham
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Three km ahead of Chandpurgarhi, the capital of Garhwal state, a group of ancient temples is visible on the Ranikhet road, which is located on the right side of the road. This is Adi Badri Dham, which is included in Ashta Badri. There is a story that these temples were built by the Pandavas during the Swargarohini Yatra. It is also said that Shankaracharya built these temples in the 8th century. Whereas, according to ASI (Archaeological Survey of India), these were built by Katyuri kings between the 8th and 11th centuries. For some years, ASI has been taking care of these temples. The Adi Badri temple group is 11 km away from Karnaprayag. Originally there were 16 temples in this group, of which only 14 are left now. The main temple is of Lord Vishnu, which is identified by its large size and being built on a high platform. Lord Vishnu is seated in the sanctum sanctorum of the temple. He is standing in his Chaturbhuj form. In front of it is a small temple of Garuda Maharaj. Other temples are dedicated to Satyanarayan, Lakshmi, Annapurna, Chakbhan, Kuber (idolless), Ram-Lakshman-Sita, Kali, Shiva, Gauri and Hanuman. There is deep and detailed carving on these stone temples and the expression of carving on each temple is unique and different from other temples. The priests of Adi Badri Dham are Thapliyals of Thapali village. The doors of this temple remain closed only in the month of Paush in the year and are opened for devotees to visit on the festival of Makar Sankranti.
Ardha Badri Dham
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Among the temples of the Ashta Badri group, Ardha Badri Dham located in Tapovan area on Joshimath-Malari highway has a special significance. The idol of Lord Vishnu seated in this temple is small i.e. half the size of other Badri temples. Therefore, Lord Narayana was named 'Ardha Badri' here. It means half Badri. It is said that this temple was also built by Adi Shankaracharya. To reach here, devotees have to climb a steep slope. However, information about Ardha Badri Dham is very limited, so only a few devotees reach here from outside. This temple remains open for devotees throughout the year.
Nrusinha Badri Dham
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Nrusinha Temple located in Jyotirmath (Joshimath) of Chamoli district is considered one of the 108 divine pilgrimages of Lord Vishnu. Being one of the Ashta Badris, this temple, located at a height of 6,150 feet above sea level, is also known as Narasimha Badri. It is believed that Adi Shankaracharya himself established the idol of Lord Narasimha here. A self-made idol of Lord Narasimha, about ten inches high, is installed in the temple from Shaligram stone. Lord Narasimha is seated on a lotus in it. Along with him, idols of Badri Narayan, Uddhav and Kuber are also installed. Shri Ram, Mata Sita, Hanumanji and Garuda Maharaj are seated on the right side of the Lord and Mother Chandika (Kali) is seated on the left side. It is believed that the wrist of Lord Narasimha's left hand is continuously getting weak. The day the wrist breaks and falls on the ground, the path to Badrinath will be blocked forever due to the joining of Nar-Narayan (Jai-Vijay) mountains near Joshimath. Then Lord Badri Narayan will give darshan in Bhavishya Badri Dham near Subhai village on Joshimath-Tapovan highway. When the doors of Badrinath Dham are closed for the winter season, the throne of Adi Shankaracharya is established in the Nrusinha Temple itself. Therefore, along with the Yoga-Dhyan Badri Temple in Pandukeshwar, the winter pujas of Lord Badri Vishal are performed in the Nrusinha Temple as well. Before the opening of the doors of Badrinath Dham, a special ritual is performed in the temple every year, which is known as Timundya Puja. This puja is conducted on the Saturday or Tuesday falling one or two weeks before the opening of the doors.
Tourist Spots in Badrishpuri and Nearby
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Tapt-Kund on the bank of river Vishnupadi (Alaknanda), Brahma Kapal, pair of snakes, rock with imprint of Sheshnag 'Sheshnetra', Sheshnetra lake, snow-covered Neelkanth peak, Mata Murti Mandir, country's first village Mana, Vedvyas cave, Ganesh cave, Bhima bridge, Ashta Vasudhara, the place of penance of eight Vasus, Lakshmi forest, Satapath (Swargarohini), origin of Alaknanda river and residence of Kuber Alakapuri, Saraswati river, temple of Urvashi born from the thigh of Lord Vishnu in Bamni village and Charanpaduka in Liladhungi. Especially if you look at the peak of Narayan mountain in Badrinath Dham, it seems that the peak of the mountain above the temple is situated in the form of Sheshnag. Natural hood of Sheshnag can be clearly seen.
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