Wednesday, 16 October 2024

16-10-2024 (अनूठे हैं उर्गम घाटी के फ्यूंला नारायण)



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अनूठे हैं उर्गम घाटी के फ्यूंला नारायण
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दिनेश कुकरेती
त्तराखंड के चमोली जनपद में जोशीमठ विकासखंड की उर्गम घाटी का भर्की गांव। यहां से चार किमी की पैदल दूरी पर पश्चिम भाग में भगवान श्रीविष्णु का ऐसा मंदिर है, जहां उनके शृंगार का अधिकार सिर्फ महिलाओं को है। समुद्रतल से 10 हजार फीट की ऊंचाई पर पंचम केदार भगवान कल्पेश्वर और भगवान ध्यान बदरी के पावन क्षेत्र में स्थित इस मंदिर में भगवान विष्णु की ख्याति भगवान फ्यूंला नारायण के रूप में है। मंदिर के आसपास उगने वाले विशेष फूल फ्यूंला की वजह से भगवान को फ्यूंला नारायण नाम मिला है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु चतुर्भुज रूप में विराजमान हैं। दक्षिण शैली में बने इस मंदिर में भगवान विष्णु के अलावा मां लक्ष्मी और जय-विजय नामक द्वारपालों की मूर्तियां भी हैं। मंदिर के कपाट हर साल कर्क संक्रांति (श्रावण संक्रांति) के दिन 15 से 17 जुलाई के बीच धूमधाम से खोले जाते हैं और नंदा अष्टमी (भाद्रपद शुक्ल अष्टमी) पर 30 अगस्त से 25 सितंबर के मध्य बंद कर दिए जाते हैं। इसी दिन अगले वर्ष के लिए पुजारी का चयन भी किया जाता है। कपाट बंद होने के बाद शेष नौ महीने भगवान फ्यूंला नारायण की पूजा भर्की गांव में होती है।



सिर्फ महिला पुजारी करती हैं श्रीहरि का शृंगार
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फ्यूंला नारायण मंदिर में पुरुष के साथ महिला पुजारी का भी विधान है, लेकिन भगवान नारायण के शृंगार का अधिकार केवल महिलाओं को है। सात वर्ष से 12 वर्ष तक की कन्या या 50 वर्ष से अधिक आयु की महिला इस मंदिर की पुजारी हो सकती है। जिस महिला को शृंगार की जिम्मेदारी सौंपी जाती है, वह कपाट बंद होने तक गाय व उसके बछड़े के साथ मंदिर में ही रहती है। इस महिला को फ्यूंल्यांण कहा जाता है। भगवान को हर दिन तीनों पहर भोग लगाने की जिम्मेदारी भी इसी की महिला की होती है। इसके अलावा पुरुष पुजारी भी कपाट बंद होने तक मंदिर को नहीं छोड़ते। महिला व पुरुष पुजारी एक ही परिवार से होते हैं। अन्य ग्रामीण भी यात्राकाल में मंदिर के आसपास स्थित छानियों में अपने मवेशियों को रखते हैं, ताकि पूजा के लिए दूध-मक्खन की कमी न हो। खास बात यह कि मंदिर के पुजारी ब्राह्मण नहीं, बल्कि ठाकुर जाति के लोग होते हैं। भगवान को हर दिन तीनों पहर सत्तू, पिंजरी, घी, मक्खन, दूध व बाड़ी का भोग लगाया जाता है, जिसे गाडा कहते हैं। प्रातः भगवान को नित्य स्नान के बाद चंदन का तिलक कर बालभोग और राजभोग लगाया जाता है, जबकि संध्याकाल में भगवान को दूध का भोग लगता है। आरती के बाद भगवान नारायण योग निद्रा में चले जाते हैं।


चैतन्य और वैराग्य का प्रतीक घंटी-चिमटा
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कर्क संक्रांति के मौके पर मंदिर के कपाट खोलने के लिए भर्की स्थित पंचनाम देवता मंदिर से पुजारी और भूम्याळ देवता की अगुआई में भेंटा, भर्की, पिलखी, गवाणा व अरोशी सहित उर्गम घाटी के सभी 12 गांवों के लोग फ्यूंला नारायण धाम के लिए प्रस्थान करते हैं। ये सभी फ्यूंला नारायण मंदिर के हक-हकूकधारी हैं। इससे पहले भूम्याळ देवता के पश्वा मंदिर के पुजारी को घंटी व चिमटा प्रदान करते हैं, जो कि ध्यान, चिंतन और चेतन के प्रतीक हैं। इसका भाव यह है कि कपाट खुलने के दिन से कपाट बंद होने तक पुजारी को चेतन रहना पड़ेगा और वैराग्य का पालन करना होगा। इसी के साथ नारायण की यात्रा आगे बढ़ेगी।

कपाट बंद होने तक जलती रहती है अखंड धूनी
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फ्यूंला नारायण मंदिर में भगवान नारायण में अलावा माता लक्ष्मी, क्षेत्रपाल घंटाकर्ण देवता, भूम्याळ जाख देवता, नंदा-सुनंदा, वन देवी, वरुण देवता व पितरों की पूजा का विधान है। मंदिर के कपाट बंद होने तक अखंड धूनी जलती रहती है। प्रत्येक दिन भगवान को बाड़ी व सत्तू का भोग लगाया जाता है।



सबसे पहले अप्‍सरा उर्वशी ने किया था भगवान का शृंगार
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यहां महिला पुजारी के होने का संदर्भ स्वर्ग की अप्‍सरा उर्वशी से जुड़ा हुआ है। कहते हैं कि एक बार उर्वशी पुष्प चुनने के लिए उर्गम घाटी में पहुंचीं तो उन्होंने यहां भगवान विष्णु को विचरण करते हुए देखा। इस पर उर्वशी ने रंग-विरंगे फूलों की माला भगवान को भेंट की। साथ ही फूलों से उनका शृंगार करने लगीं। तब से फ्यूंला नारायण मंदिर में महिलाएं ही भगवान का शृंगार करती आ रही हैं। यह भी मान्यता है कि घाटी में ऋषि दुर्वासा ने भी कई सालों तक तपस्या की थी।



पहले उर्गम घाटी से होकर जाता था बदरीनाथ का रास्ता
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जनश्रुति है कि प्राचीनकाल में जब बदरी-केदार की पूजा एक साथ होती थी, तब एक शंकु मार्ग से तीर्थयात्री बदरीशपुरी पहुंचते थे। यह शंकु मार्ग फ्यूंला नारायण मंदिर से पंचम केदार कल्पेश्वर धाम और नीलकंठ होते हुए बदरीनाथ धाम पहुंचता था। उस दौर में बदरीनाथ धाम जाने वाले यात्री यहां भगवान फ्यूंला नारायण के दर्शन कर ही आगे बढ़ते थे। स्वयं बदरीनाथ धाम के रावल यहां पहुंचकर भगवान नारायण की पूजा करते थे। उसी कालखंड से यहां हर वर्ष श्रावण संक्रांति पर ठाकुर परिवारों द्वारा भगवान विष्णु की पूजा की जाती रही है।
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The unique Phyunla Narayan of Urgam Valley
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Dinesh Kukreti
Bharki village of Urgam Valley of Joshimath development block in Chamoli district of Uttarakhand. At a distance of four km from here, in the western part, there is a temple of Lord Shri Vishnu, where only women have the right to adorn him. Situated at an altitude of 10 thousand feet above sea level in the holy area of ​​Pancham Kedar Lord Kalpeshwar and Lord Dhyan Badri, in this temple, Lord Vishnu is famous as Lord Phyunla Narayan. The Lord has got the name Phyunla Narayan because of the special flower Phyunla that grows around the temple. Lord Vishnu is seated in the sanctum sanctorum of the temple in the form of Chaturbhuj. In this temple built in the southern style, apart from Lord Vishnu, there are also idols of Maa Lakshmi and gatekeepers named Jai-Vijay.  The doors of the temple are opened every year with great pomp on the day of Kark Sankranti (Shravan Sankranti) between 15 to 17 July and closed on Nanda Ashtami (Bhadrapada Shukla Ashtami) between 30 August to 25 September. On this day, the priest is also selected for the next year. After the doors are closed, Lord Phyunla Narayan is worshipped in Bharki village for the remaining nine months.

Only female priests decorate Shri Hari
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In the Phyunla Narayan temple, there is a provision for female priests along with men, but only women have the right to decorate Lord Narayan. A girl aged between 7 to 12 years or a woman above 50 years of age can be the priest of this temple. The woman who is entrusted with the responsibility of decoration stays in the temple with the cow and her calf until the doors are closed. This woman is called Phyunlyan. The responsibility of offering food to the Lord every day three times also lies with this woman. Apart from this, the male priests also do not leave the temple until the doors are closed. The male and female priests are from the same family. Other villagers also keep their cattle in the huts located around the temple during the pilgrimage period, so that there is no shortage of milk and butter for the puja. The special thing is that the priests of the temple are not Brahmins, but people of Thakur caste.  Every day, the Lord is offered Sattu, Pinjari, Ghee, Butter, Milk and Badi at all three times, which is called Gada. In the morning, after the Lord's daily bath, a sandalwood tilak is applied and Balbhog and Rajbhog are offered to him, while in the evening, milk is offered to the Lord. After the Aarti, Lord Narayana goes into Yog Nidra.


Bell and tongs symbol of consciousness and detachment
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On the occasion of Cancer Sankranti, to open the doors of the temple, people from all the 12 villages of Urgam valley including Bhenta, Bharki, Pilkhi, Gavana and Aroshi leave for Phyunla Narayan Dham from Panchnam Devta temple located in Bharki under the leadership of the priest and Bhumyal Devta. All of them are the right holders of Phyunla Narayan temple. Before this, the priest of Bhumyal Devta gives the bell and tongs to the priest of the temple, which are the symbols of meditation, contemplation and consciousness. Its meaning is that from the day of opening the doors till the closing of the doors, the priest will have to remain conscious and follow detachment. With this, Narayan's journey will move forward.


The eternal fire keeps burning till the doors are closed
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In the Phyunla Narayan temple, apart from Lord Narayan, there is a ritual of worshipping Goddess Lakshmi, Kshetrapal Ghantkarna Devta, Bhumyal Jakh Devta, Nanda-Sunanda, Van Devi, Varun Devta and ancestors. The eternal fire keeps burning till the doors of the temple are closed. Every day, Badi and Sattu are offered to the Lord.

Apsara Urvashi was the first to adorn the Lord
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The reference of the presence of a female priest here is connected to the Apsara Urvashi of heaven. It is said that once Urvashi reached Urgam Valley to pick flowers, she saw Lord Vishnu roaming here. On this, Urvashi presented a garland of colorful flowers to the Lord. She also started adorning him with flowers. Since then, women have been adorning the Lord in the Phyunla Narayan temple. It is also believed that sage Durvasa also did penance for many years in the valley.

Earlier the route to Badrinath used to go through Urgam Valley
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There is a popular belief that in ancient times when Badri-Kedar were worshipped together, then pilgrims used to reach Badrishpuri through a conch road.  This Shanku Marg used to reach Badrinath Dham from Phyunla Narayan Temple via Pancham Kedar Kalpeshwar Dham and Neelkanth. In those days, pilgrims going to Badrinath Dham used to proceed further only after having darshan of Lord Phyunla Narayan here. Rawal of Badrinath Dham himself used to worship Lord Narayan after reaching here. Since that time, Lord Vishnu has been worshipped here every year on Shravan Sankranti by Thakur families.



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