Wednesday, 9 November 2022

07-11-2022 (एक यादगार शाम, दोस्त के नाम)


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एक यादगार शाम, दोस्त के नाम
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दिनेश कुकरेती
मैं शाम को आफिस के कार्य में व्यस्त था कि तभी एक काल आई। नंबर सेव नहीं था, इसलिए मैंने फोन उठाया नहीं। लेकिन, फिर सोचा कि क्यों न नंबर को ट्रूकालर में सर्च कर देखा जाए कि किसका है। सर्च किया तो उसमें जेपी कोटनाला नाम आ रहा था। मैं समझ गया कि काल मेरे बहुत पुराने साहित्यकार मित्र डा. जगदंबा प्रसाद कोटनाला (कुटज भारती) कर रहे हैं। लिहाजा मैंने नंबर डायल किया तो दूसरी तरह मित्र ही थे। शायद कुछ ज्यादा ही चढा़ रखी थी, इसलिए आवाज में लड़खडा़हट थी। लेकिन, अर्से बाद बात हो रही थी, इसलिए मैं भी बातचीत का लोभ संवरण न कर पाया। लगभग पौन घंटे हमारी बातचीत हुई, जिसे ज्यों के त्यों प्रस्तुत कर रहा हूं-

अरे साब! कुकरेती जी नमस्कार।

नमस्कार साब! नमस्कार!

अरे साब! तुम त हमरु फोन भि नि उठंदओ?
(साहब! तुम तो हमारा फोन भी नहीं उठाते हो)

क्या बात कना छौ। नि उठांदु त तुम सणि फोन किलै करदु।
(क्या बात करते हो। नहीं उठाता तो सामने से फोन क्यों करता)

चला क्वी बात नीs। भौत दिनो बात बात होंणी तुमरा दगड़। मिन फोन यांकु कारs कि अजकाल हमरा बच्चा भि तुमरैs मौला मा अयां छन।
(चलो कोई बात नहीं। बहुत दिनों बाद बात हो रही है तुम्हारे साथ। मैंने फोन इसलिए किया कि आजकल हमारे बच्चे भी तुम्हारे ही मोहल्ले में रह रहे हैं)

बच्चाs? हमरा मौला मा? कख अर किलै अयां छन? 
(बच्चा...? हमारे मोहल्ले में? कहां और क्यों आए हुए हैं?)

अरे भई! हमरि स्कूलक बच्चा। अजकाल खेल हूंणा छन न जिलास्तरीय। तुमरा घौरै समणि स्कूल मा छ ऊंकि ठैरणे व्यवस्था। क्या नाम छ यार वै स्कूलाकु ...चिल्ड्रन एकेडमी सैद।
(अरे भाई! हमारी स्कूल के बच्चे। आजकाल जिलास्तरीय खेल हो रहे हैं ना। क्या नाम है यार...उस स्कूल का...चिल्ड्रन एकेडमी शायद)

अच्छा-अच्छा। जो सिद्धबली रोड पर है ना। जिधर कवटियाल जी का घर है। गुरुजी का। हैप्पी चिल्ड्रन एकेडमी है उसका नाम।

हां-हां। कुकरेती जी मैं फोन इसलिए कर रहा था कि बच्चों को वहां वहां थोडा़ दिक्कत हो रही है। इसलिए सोचा, स्कूल आपके मोहल्ले में है तो आपको भी बता दूं। वैसे उन्होंने व्यवस्था सब ठीक की हुई है। पर...क्या बोलु तब। तुमतै बताणु भि जरूरी छौ। (क्या कहूं तब। तुम्हें बताना भी जरूरी था )

फिर भी... बतावा त सही, क्या दिक्कत छ? 
(फिर भी...बताओ तो सही, क्या दिक्कत है?)

(लड़खडा़ते स्वर में) यार...भई...क्या बतये जाव। मिन ऊंमा ब्वाल दिनेश कुकरेती जी अर ओमप्रकाश कवटियाल जी तैं जणदा छावा, त ऊंन मुंडु हलैकि ना बोलि द्ये। बृजमोहन कवटियाल जी को नौं ल्हे तो ब्वलण बैठिन, हां! ऊंतैं त जणदा छौं। बतावा तब, दिनेश कुकरेती तैं नि जणदना वु। य्या क्या बात ह्वे?
(यार...भाई...क्या बताया जाए। मैंने उनसे कहा, दिनेश कुकरेती जी और ओमप्रकाश कवटियाल जी को जानते हो, तो उन्होंने ना में सिर हिला दिया। बृजमोहन कवटियाल जी का नाम लेने पर बोले, हां! उन्हें तो जानते हैं। बताओ तब, दिनेश कुकरेती को नहीं जानते वो। ये क्या बात हुई)

क्वी बात नीs। मितैं त कई लोग नि जणदा। छ्वटा लोग छवां ना?
(कोई बात नहीं। मुझे कई लोग नहीं जानते। हम छोटे लोग हैं ना)












(विषय बदलते हुए) यारssss तुम त कम्युनिस्ट छा। क्या करे जा। हमसे त य्या लगीं छुटदी नीs। कतगा कोशिश कार छुडणा कि, पर और बढि़ ग्याई। तुमि बतावा, क्या उपाय छ यांकु। तुम कम्युनिस्ट ना, बिल्कुल अलग चलदौ, तुमुन अफु तैं बिल्कुल नि बदलू। कुछ नि कैरि साक तुम। दुनिया तैं द्याखा धौं, सौब अगनै चलि गैन अर तुम वखी छा। तुम पक्का कम्युनिस्ट छवा।
(यार...तुम तो कम्युनिस्ट हो। क्या करें, हमसे तो ये लगी हुई छूटती ही नहीं है। कितनी कोशिश की छोड़ने की, लेकिन और बढ़ती चली गई। तुम ही बताओ क्या उपाय है इसका? तुम कम्युनिस्ट तो बिल्कुल अलग चलते हो। तुमने अपने को बिल्कुल नहीं बदला। कुछ नहीं कर सके तुम, दुनिया को देखो ना, सब आगे चले गए और तुम वहीं के वहीं हो। तुम पक्के कम्युनिस्ट हो गए हो)

क्या करण फिर? हम भि बदल जवां क्या? हमरा बसाsक नी छन वु काम। हम जन छां, ठीक छां। मेहनत कना छां अर खुश छां।
(क्या करना है फिर? हम भी बदल जाएं क्या? हमारे बस का नहीं है वो काम। हम जैसे हैं, ठीक हैं। मेहनत कर रहे हैं और खुश हैं)

ना-ना। तुम कुछ नि छा। देवराणी जी तैं जणदा छवा? (ना-ना। तुम कुछ नहीं हो। देवराणी जी को जानते हो क्या?) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के पौडी़ जिले के सचिव रहे वो। मैं दस साल उनके सानिध्य में रहा। उन्होंने मुझे जीवन के कई रहस्यों से परिचिति कराया, मैंने बहुत कुछ सीखा उनसे। वह कहते थे, कभी गीता पढी़ है तुमने। गीता को पढो़, उसमें जीवन जीने के सारे रहस्य समाए हुए हैं। गीता कर्म करना सिखाती है। पर, तुम कुछ नहीं मानते। तु-म कु-छ न-हीं मा-न-ते। तुम नास्तिक हो गए हो। घोर नास्तिक। तुमने नहीं पढा़ कभी गीता को।

अरे दादा! मैंने गीता भी पढी़ है और गुरुजी पीतांबर डेवरानी को भी अच्छे से जानता हूं। लंबे अर्से गुरुजी के साथ रहा और साप्ताहिक 'सत्यपथ' में उनके साथ काम भी किया। भगवद् गीता ही क्या, मैं हर ज्ञानवर्द्धक पुस्तक को पढ़ता हूं।

छोडो़ यार! 'सत्यपथ' से पहले देवराणी जी ने 'कर्मभूमि' निकाला। वर्ष 1985 से मैं उनसे जुडा़ रहा। 'सत्यपथ' में मैं उनसे नहीं मिला, पर तुमसे बहुत पहले से उनके साथ रहा। जरा बताओ तो,
'जो अपने खू़न में जारी नहीं है, अदाकारी, अदाकारी नहीं है'- ये शेर किसका है।

हरजीत का। में हरजीत के साथ रहा हूं और उन्हें सुना और पढा़ भी। दुर्भाग्य से अल्पायु में नियति ने उन्हें हमसे छीन लिया।

हां!
'जो अपने...खू़न...में...जारी...नहीं...है, अदाकारी... अदाकारी...नहीं...है।' क्या बात कही है हरजीत ने। तुम्हें पता है, ये शेर हरजीत ने कहां कहा था। कोटद्वार आए थे वो। उनके साथ गिरीश तिवारी गिर्दा भी थे। जब हरजीत गिर्दा से मिले तो गिर्दा ने हरजीत को आत्मीयता से गले लगाया था। हरजीत तब बीमार थे और कुछ ही महीने बाद चले गए। और...वो कार्यक्रम कमल जोशी जी ने कराया था। अब तो जोशी भी चले गए, पर मैः कभी नहीं भूलता कि, 'जो अपने...खू़न...में...जारी...नहीं...है, अदाकारी... अदाकारी... नहीं...है।'

हां! मैं वहीं तो था। नगर पालिका के सभागार में पूर्वाह्न के वक्त हुआ था वो कार्यक्रम। मैंने खबर भी लिखी थी। तब गिर्दा ने अपनी प्रसिद्ध ग़ज़ल सुनाई थी, ' सावनी सांझ आकाश खुला है, ओ हो रे ओ दिगौ लाली। छानी-खरीकों में धुंआ लगा है, ओ हो रे ओ दिगौ लाली।' मैं अपना बडा़ सौभाग्य मानता हूं कि इन लोगों के साथ रहा।


पर...तुम कम्युनिस्ट ना, कभी नहीं बदलोगे। तुमने बुद्ध को पढा़ है, जरथुस्त्र को पढा़, सुकरात को पढा़ है, वो क्या कहते हैं... कार्ल मार्क्स को पढा़ है? हरजीत ने यही तो कहा, 'जो अपने... खू़न... में... जारी...नहीं...है, अदाकारी... अदाकारी...नहीं...है।' तुमने खबर लिखी होगी। खबर लिखना अलग बात है। मैंने उन्हें साहित्य के नजरिये से समझा। तुम नहीं जानते मुझे। तुम बस! इतना जानते हो कि जगदंबा कोटनाला साहित्यकार है, पर मैं उससे और गहरा हूं। देवरानी जी के सानिध्य में रहा दस साल। अच्छा बताओ तो... 'जो... अपने... खू़न... में... जारी...नहीं...है', इसके आगे क्या है। नहीं मालूम ना। इससे आगे है, 'अदाकारी... अदाकारी...नहीं...है।' तुम्हें एक दिन पता चलेगा। मुझे भी पता चल गया। मैं भी नास्तिक था।

दादा...मैंने सब पढा़ है। आज भी पढ़ता हूं। वेद-उपनिषद भी पढे़ हैं। मैं चीजों को विज्ञान की दृष्टि से देखता हूं। मुझे अपने प्रति कोई गलतफहमी नहीं है।

याद है तुम्हें, हमारा एक अखबार निकलता था, साप्ताहिक 'वक्तव्य'। मैंने बहुत मेहनत की इस अखबार के लिए। तुम्हारे एक मित्र की मैंने कई बार मदद की। तीन महीने तक उसे पैसे दिए। पर, उसने मुझे धोखा दे दिया। तब मुझे दस हजार रुपये तनख्वाह मिलती थी अब तो एक लाख रुपये मिल रही है। प्रभु कि दया से कोई कमी नहीं है।फिर भी उसने धोखा दिया। हालांकि, आज भी वो मेरा बहुत अच्छा दोस्त है।

दादा। मैं सब जानता हूं, लेकिन सच में मुझे ऐसी कोई जानकारी नहीं है। मुझे तो यह बात आप से ही मालूम पडी़ है। मैंने तो 'वक्तव्य' के नाम पर अपने लिए कभी फूटी कौडी़ भी नहीं ली। खैर! जिसने जो किया, उसे मुबारक। मैं जैसा था और जैसा हूं, खुश हूं।

तुम तो नास्तिक हो गए हो, लेकिन एक दिन तुम्हें भी मेरे जैसे हकीकत मालूम पडे़गी।

हां-हां बिल्कुल पडे़गी। तब की तब देखी जाएगी।

चलो! मैंने तुम्हारा बहुत वक्त ले लिया। याद आ जाती है कभी दोस्तों की। मैं तो तुम्हें याद करते ही रहता हूं, पर बात करने का मौका कभी-कभी मिलता है। पर याद रखना 'जो अपने... खू़न... में... जारी...नहीं...है, अदाकारी... अदाकारी... नहीं...है।' मुझे बताओ 'सत्यमेव... जयते...' और 'जो अपने...खू़न... में...जारी...नहीं...है, अदाकारी... अदाकारी...नहीं...है', दोनों में क्या अंतर है?

दोनों का अर्थ एक ही है।

ये हुई न बात। पर कम्युनिस्टों के सामने 'सत्यमेव जयते' बोलूंगा तो सारे मुझे घेर लेंगे। और...'जो अपने... खू़न... में...जारी...नहीं...है, अदाकारी...अदाकारी...नहीं...है', बोलूंगा तो तालियां बजाएंगे।

ऐसा कुछ नहीं है। सत्य हर रूप में सत्य ही है और झूठ, झूठ ही।

अच्छाsss। कख छा इबरि? देरादूणs?
(अच्छा! कहां हो इस समय? देहरादून?)

हां! देरादूणीs छौं। आफिस मा।
(हां! देहरादून ही हूं। आफिस में)

चलो! अच्छी बात तब। नमस्कार!

नमस्कार! नमस्कार!








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A memorable evening, friend's name
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Dinesh Kukreti
I was busy with office work in the evening that a call came. The number was not saved, so I did not pick up the phone. But, then thought why not search the number in Truecaller and see whose it is. When I searched, the name JP Kotnala was coming in it. I understood that Kaal is doing my very old literary friend Dr. Jagdamba Prasad Kotnala (Kutaj Bharati). So when I dialed the number, there were other friends only. Maybe it was too high, so there was a rumbling in the voice. But, after a long time the talk was going on, so I too could not explain the greed of the conversation. We had a conversation for about half an hour, which I am presenting as it is-
Hey sab! Hello Kukreti.

Hello Saab! Hi!

Hey sab! Tum ta humru phone bhi ni uthandao?

(Sir! You don't even pick up our phone)

What's the matter? Ni uthandu ta tum sani phone kilay kardu.
(What are you talking about. If you don't pick up, why would you call from the front)

Let's talk nees. You will talk about your future. Min phone yanku kar ki ajkaal hamara bachcha bhi tumrais maula ma ayan chan.
(Come on it doesn't matter. After a long time talking with you. I called because nowadays our children are also living in your locality)

kids? Our Maula Ma? What is it like? 
(Child...? In our locality? Where and why are you coming?)

Hey, Brother! We are school children. Ajkal Khel Huna Chan Na district level. Tumra Ghorai Samani School mach oonki thairane system. Kya naam chha yaar vai schoolaku ... Children's Academy Said.
(Hey brother! Children of our school. District level sports are being held these days, isn't it. What is the name of the school?

Good good. Which is on Siddhbali road. Where is the house of Kavatiyal ji. Why Guruji? Its name is Happy Children Academy.

Yes, yes. Kukreti ji, I was calling because the children are facing some problem there. So thought, if the school is in your locality, then let me tell you too. By the way, he has arranged everything right. But... what shall I say then? You need to talk. (What should I say then. I had to tell you too)

Still... tell me right, what's the problem? 
(Still... tell me right, what's the problem?)

(in a stuttering voice) Dude... Bhai... what to say. Min umma bwal dinesh kukreti ji ar omprakash kavatiyal ji tain janada chhawa, ta un mundu halaiki na boli deye. If Brijmohan Kavatiyal ji is happy, then sit down, yes! Came to live forever. Tell me then, Dinesh Kukreti tai ni janadana vu. What's the matter?
(Dude…brother…what to be told. I told him, if you know Dinesh Kukreti ji and Omprakash Kavatiyal ji, he nodded his head in no. Brijmohan said on taking the name of Kavatiyal ji, yes! Tell me then, he doesn't know Dinesh Kukreti. What happened)

Qui thing nis. Friends, many people die. Sixth people, right?
(Never mind. I don't know many people. We are little people, right)

(changing subject) Man ssss you are a communist student. What to do It was like a holiday from us. He tried hard to get rid of the car, but it got better. Tell me, what is the solution? You are not a communist, go completely different, you must change completely. Some ni cari sak you. Duniya tain diyakha dhon, saub agnai chali gain aar tum wakhi chha. You are a sure communist image.
(Man... you are a communist. What to do, it is not possible for us to leave it. How much effort has been made to quit, but it keeps on increasing. You tell me what is the solution? You communist walk completely differently. You haven't changed yourself at all. You can't do anything, look at the world, everyone has gone ahead and you are right there. You have become a staunch communist)

What's up again? Have we changed too young? Hamara basasak ni chan vu work. We are fine, we are fine. Good to work hard and be happy.
(What to do then? Shall we also change? We just don't have that work. We are fine as we are. Working hard and happy)

Grandfather. You missed something Devrani ji are you alive? (Na-na. You are nothing. Do you know Devrani ji?) He was the secretary of the Pauri district of the Communist Party of India. I lived with him for ten years. He introduced me to many secrets of life, I learned a lot from him. He used to say, have you ever read the Gita? Read the Gita, all the secrets of living life are contained in it. The Gita teaches to act. But, you don't believe anything. Tu-me-no-no-ma-na-te. You have become an atheist. Extreme atheist. You have never read the Gita.

Oh grandpa! I have also read Gita and know Guruji Pitamber Devrani very well. Stayed with Guruji for a long time and also worked with him in weekly 'Satyapath'. Bhagvad Gita Hi Kya, I read every enlightening book.

Leave it man! Before 'Satyapath', Devrani ji took out 'Karmabhoomi'. I have been associated with him since 1985. I did not meet him in 'Satyapath', but stayed with him long before you. Just tell me, 'The one who does not continue in his blood, is not acting, is not acting' - whose lion is this.

Why Harjit? I have stayed with Harjeet and listened and studied him. Unfortunately, at a young age, destiny took him away from us.

Yes! 'Who is in his...blood...continue...not...is, acting... acting...not...is.' What has Harjeet said? You know, where did Harjeet say this lion? He had come to Kotdwar. Girish Tiwari was also with him. When Harjit met Girda, Girda hugged Harjeet intimately. Harjit was ill then and passed away a few months later. And... that program was done by Kamal Joshi ji. Now Joshi is also gone, but I never forget that, 'who in his... blood... continues... not...', acting... acting... no... Is.'

Yes! I was there. That program was held in the auditorium of the municipality in the forenoon. I also wrote the news. Then Girda recited his famous ghazal, 'Sawni saanjh sky open hai, o ho re o Digou lali. There is smoke in the filters, O ho re o Digou Lali.' I consider it my great fortune to be with these people.

But... you communist nah, will never change. You have read Buddha, you have read Zarathustra, you have read Socrates, what do they say... have you read Karl Marx? This is what Harjeet said, 'Who is... in his... blood... continues... not... is, acting... acting... is not...'. You must have written the news. Writing news is a different matter. I understood them from the point of view of literature. you don't know me you're just! You know this much that Jagdamba Kotnala is a litterateur, but I am deeper than him. He lived in the company of Devrani ji for ten years. Well then tell... 'Joe... in your... blood... in... Continued... No... what's next. Don't know. Beyond this, 'Acting... Acting... No...'. You'll know one day. I got to know too. I was an atheist too.

Dada... I have studied everything. I still read today. Have also read Vedas and Upanishads. I look at things from the point of view of science. I have no misunderstanding towards myself.

Do you remember, we used to have a newspaper, the weekly 'Statement'. I worked very hard for this newspaper. I helped a friend of yours many times. Gave him money for three months. But, he cheated on me. Then I used to get ten thousand rupees as salary, now I am getting one lakh rupees. There is no shortage of the mercy of the Lord. Still he cheated. However, he is still a very good friend of mine.

Grandpa. I know everything, but really I have no such information. I have come to know about this from you only. I have never even taken a single penny for myself in the name of 'Statement'. So! Congratulations to whoever did it. I am happy as I was and as I am.

You have become an atheist, but one day you will also come to know the reality like me.

Yes - yes absolutely it will. Then it will be seen.

Let us go! I took a lot of your time. Sometimes I miss friends. I keep on remembering you, but sometimes I get a chance to talk. But remember 'Whoever...is in his...blood...continue...not...is, acting... acting...not...'. Tell me 'Satyamev... Jayate...' and 'Who is... in his... blood... continues... not... is, acting... acting... no... is 'What's the difference between the two?

The meaning of both is same.

that's the way. But if I say 'Satyamev Jayate' in front of communists, everyone will surround me. And... 'Who in his... blood... continues... not... is, acting... acting... not...

There is nothing like that. Truth is truth in every form and lies are lies.

good sss. What is it Ibri? Deadoons?
(Okay! Where are you at this time? Dehradun?)

Yes! Late afternoon. Office ma.
(Yes! I am Dehradun. In the office)

Let us go! Good thing then Hi!

Hi! Hi!

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