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उत्तराखंड में लोक के अनेक रंग हैं और हर रंग में प्रकृति के मनोहारी स्वरूप के दर्शन होते हैं। वह चाहे चंपावत जिले के देवीधुरा की प्रसिद्ध ‘पत्थरों की बग्वाल’ हो या उत्तरकाशी जिले के दयारा बुग्याल में मनाया जाने वाला उपला टकनौर क्षेत्र का ‘अंढूड़ी उत्सव’, जिसे अब ‘बटर फेस्टिवल’ के रूप में खास पहचान मिल चुकी है। यह ऐसा अनूठा उत्सव है, जिसमें एक-दूसरे पर मक्खन-मट्ठा की बरसात होती है। आइए! हम भी प्रकृति के इस उत्सव का हिस्सा बनें-
हिमालय में मक्खन-मट्ठा की अनूठी होली
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दिनेश कुकरेती
यूरोपीय देश स्पेन में खेली जाने वाली टमाटर की अनूठी होली 'ला टोमाटीना' फेस्टिवल के बारे में तो आपने अवश्य सुना होगा। ठीक इसी तर्ज पर उत्तराखंड हिमालय में भी मक्खन-मट्ठा की होली खेली जाती है, जिसे अढूंड़ी उत्सव (बटर फेस्टिवल) कहा जाता है। प्रकृति को समर्पित इस उत्सव का आयोजन समुद्रतल से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर उत्तरकाशी जिले के उपला टकनौर क्षेत्र में स्थित प्रसिद्ध दयारा बुग्याल (अल्पाइन घास का मैदान) में किया जाता है। इस खास उत्सव का आनंद उठाने देश-विदेश के पर्यटक भी बड़ी संख्या में दयारा पहुंचते हैं। यह उत्सव भाद्रपद संक्रांति को मनाया जाता है। इस बार यह संक्रांति 16 अगस्त को पड़ रही है। आइए! मक्खन-मट्ठा की फुहारों में भीगते हुए हम भी दयारा की खूबसूरती का दीदार करें।
प्रकृति की गोद में समृद्धि का उत्सव
----------------------------------------उत्तरकाशी शहर से 42 किमी की सड़क दूरी और भटवाड़ी ब्लाक के रैथल गांव से छह किमी की पैदल दूरी पर 28 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले दयारा बुग्याल में पीढ़ियों से अंढूड़ी उत्सव मनाने की परंपरा चली आ रही है। दरअसल गर्मी का मौसम शुरू होते ही रैथल समेत आसपास के गांवों के लोग अपने मवेशियों के साथ बुग्याली क्षेत्र में स्थित अपनी छानियों (मवेशियों के लिए बने कच्चे मकान) में चले जाते हैं और फिर गर्मी की विदाई पर अंढूड़ी उत्सव मनाकर ही गांव वापस लौटते हैं। इस अवधि में अल्पाइन घास के आहार से मवेशियों के दूध में अप्रत्याशित वृद्धि होने से ग्रामीणों के घरों में संपन्नता आ जाती है। इसलिए हर वर्ष मध्य अगस्त में वे प्रकृति का आभार जताने के लिए इस उत्सव को मनाते हैं। इस दौरान प्रकृति देवता की पूजा-अर्चना की जाती है। छाछ-मक्खन, दूध-दही की होली इस पूजा का ही हिस्सा है।
मक्खन की हांडी टूटते ही शुरू होता है बटर फेस्टिवल का जश्न
--------------------------------------------------------------अंढूड़ी उत्सव में शामिल होने के लिए गाजे-बाजों के साथ पंचगाई रैथल समेत नटीण, बंद्राणी, क्यार्क, भटवाड़ी के आराध्य समेश्वर देवता की डोली और पांचों पांडव के पश्वा दयारा बुग्याल पहुंचते हैं। लोक परंपरा के अनुसार इस दौरान समेश्वर देवता कफुवा डांगरियों (छोटी कुल्हाड़ी) पर चलकर मेलार्थियों को आशीर्वाद देते हैं। फिर वन देवता समेत स्थानीय देवी-देवताओं को छानियों से एकत्रित दूध, दही, मट्ठा व मक्खन का भोग लगाने के साथ राधा-कृष्ण बने युवा मक्खन की हांडी तोड़ते हैं और शुरू हो जाता है बटर फेस्टिवल का जश्न। ग्रामीण एक-दूसरे पर गुलाल की जगह दूध-मक्खन लगाकर होली खेलते हैं। इसके दीदार को यहां पर्यटकों की भारी भीड़ उमड़ती है।
पहले गोबर से खेली जाती थी होली
---------------------------------------अंढूड़ी उत्सव में पहले गाय के गोबर से होली खेली जाती थी। कालांतर में जब यह उत्सव पर्यटन से जुड़ गया तो ग्रामीणों ने मक्खन और मट्ठे की होली खेलना शुरू कर दिया। इससे अंढूड़ी उत्सव को ‘बटर फेस्टिवल’ के रूप में व्यापक पहचान मिली। स्थानीय लोग मानते हैं कि बुग्याल की घास की वजह से ही उनके मवेशी पलते हैं और उन्हें पौष्टिक दूध मिलता है। इस फेस्टिवल में राधा-कृष्ण की भी प्रतीकात्मक पूजा की जाती है।
बिखरती है रासों व तांदी की मनमोहक छटा
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बटर फेस्टिवल के दौरान पर्यटकों को मंडुवा और गेहूं के आटे की रोटी के साथ मक्खन, घी, दूध, दही और अन्य पारंपरिक व्यंजन परोसे जाते हैं। साथ ही बिखरती है पारंपरिक लोकनृत्य रासों व तांदी की मनमोहक छटा। ढोल-दमाऊ की मधुर लहरियों पर महिला व पुरुषों की टोली के थिरकते कदम समां बांध देते हैं। ऐसा प्रतीत होता है, जैसे पूरी प्रकृति झूम रही हो।
मखमली घास के अलावा भी बहुत-कुछ है यहां
---------------------------------------------------दयारा बुग्याल में रंग-विरंगे जंगली फूल, अल्पाइन जड़ी-बूटी, तितली व पशु-पक्षियों की समृद्ध विविधता देखने को मिलती है। इस ट्रेक पर हिमालयी नीले खसखस, आर्किड, रोडोडेंड्रोन, हिमालयी मोनाल, तीतर, चील, कस्तूरी मृग, हिमालयी काला भालू, लोमड़ी आदि का दीदार भी हो जाता है। इसके अलावा आप यहां से बंदरपूंछ, गंगोत्री पर्वतमाला, श्रीकांत श्रेणी, ब्लैक पीक, द्रौपदी का डांडा आदि चोटियों को भी निहार सकते हैं।
सौ किलो मक्खन, दो क्विंटल मट्ठा
---------------------------------------स्पेन के 'ला टोमाटीना' फेस्टिवल में हजारों की संख्या में लोग शामिल होते हैं। यह फेस्टिवल भी अगस्त में आयोजित होता है और इसमें लगभग 2,50,000 पाउंड टमाटर इस्तेमाल होते हैं। वहीं, उत्तरकाशी के बटर फेस्टिवल में तकरीबन दो क्विंटल मठ्ठा और सौ किलो मक्खन की होली खेली जाती है। इसके अलावा दूध-दही का भी खूब इस्तेमाल होता है।
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