Thursday, 9 September 2021

09-09-2021 (महादेवी पर परिचर्चा में मितरों के साथ)


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महादेवी पर परिचर्चा में मितरों के साथ
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दिनेश कुकरेती
ज नींद अन्य दिनों की अपेक्षा आधा घंटा पहले खुल गई। इस समय का उपयोग मैंने प्रसिद्ध कवियत्री महादेवी वर्मा के साहित्य को जानने में किया। दोपहर साढे़ बारह बजे दूरदर्शन भी जाना है। आज नौ सितंबर है और दूरदर्शन के "साहित्यिकी" कार्यक्रम में महादेवी जी पर परिचर्चा की रिकार्डिंग होनी है। 11 सितंबर को उनकी पुण्यतिथि पर इसका प्रसारण होगा। लेकिन, मेरी चिंता यह कार्यक्रम न होकर बाइक है। दरअसल मेरी बाइक के पेट्रोल टैंक में फिर पानी आ गया है, जिससे उसे स्टार्ट करने में तो दिक्कत आ ही रही है, वह बार-बार रुक भी जा रही है। खासकर, लंबी दूरी तय करने पर। उस पर, लगातार हो रही बारिश ने बुरा हाल किया हुआ है। बावजूद इस सबके दूरदर्शन केंद्र मुझे हर हाल में पहुंचना है, अन्यथा मितरों की नजर में विश्वसनीयता संदिग्ध हो जाएगी।

जल्दी निकलने की उधेड़बुन में आज मैंने दोपहर का भोजन भी नहीं बनाया। सोचा दूरदर्शन की कैंटीन में कर लूंगा या फिर लाइब्रेरियन मित्र दिनेश खत्री से कह दूंगा कि आफिस के कैंटीन वाले से मेरे लिए भी भोजन रखवा देना। हालांकि, बिस्कुट, फल व दलिया का हल्का-फुल्का नाश्ता मैंने कर लिया है। इसी बीच साहित्यकार मित्र मुकेश नौटियाल का फोन आ गया कि रिकार्डिंग के कार्यक्रम में थोडा़ बदलाव किया गया है। हिमालय दिवस की रिकार्डिंग के कारण यह बदलाव हुआ। हमें इस रिकार्डिंग के बाद ही स्टूडियो मिल पाएगा। अब मेरे पास दोपहर एक बजे तक आराम करने के सिवा और कोई विकल्प नहीं है। ठीक एक बजे मैं दूरदर्शन केंद्र के लिए रवाना हुआ। जानता हूं कि बाइक ने बार-बार परेशान करना है, इसलिए पहुंचने में आधा घंटा लगना तय है। हुआ भी ऐसे ही। डेढ़ बज गए दूरदर्शन केंद्र पहुंचते-पहुंचते।















वहां पार्किंग में बाइक खडी़ कर मैं गेट पर रिशेप्सन में आ गया। यहां रजिस्टर में इंट्री करने के बाद मैंने मुकेश भाई को फोन लगाया तो वह बोले, "भाई साहब! 30 सेकेंड में गेट पर पहुंच जाऊगा।" मुकेश भाई के पहुंचने के बाद ही हमने केंद्र की देहरी पार की। अभी परिचर्चा के तीसरे प्रतिभागी सोमवारी लाल उनियाल "प्रदीप" जी नहीं पहुंचे हैं, इसलिए हम वीईपी कक्ष में बैठकर उनका इंतजार करने लगे। पौनै दो बजे के आसपास उनियाल जी दूरदर्शन केंद्र पहुंचे और ठीक दो बजे से रिकार्डिंग शुरू हुई। ढाई बजे जैसे ही हम रिकार्डिंग करके उठे, केंद्र के कार्यक्रम प्रमुख शिवराम सिंह रावत भी स्टूडियो में पहुंच गए। उनसे मेरी वर्ष 2005 के बाद मुलाकात हो रही है। तब वे आकाशवाणी नजीबाबाद में तैनात थे।

रावतजी आत्मीय व्यक्ति हैं, इसलिए अपने स्वभाव के अनुरूप उन्होंने हमसे चाय पीने का आग्रह किया और हम उनके आफिस की ओर चल पडे़। तीन बजने वाले हैं और मुझे आफिस भी पहुंचना है। मुकेश भाई को भी जाने की जल्दी है और चाय आने में अभी देर लगेगी। इसलिए हमने चाय न पी पाने के लिए क्षमा याचना करते हुए रावतजी से जाने की अनुमति मांगी। इस बीच मुकेश भाई ने आग्रह किया कि मैं उन्हें आंचल डेयरी तक छोड़ दूं। वह एलआईसी मुख्यालय में कार्यरत हैं, जो आंचल डेयरी के पास ही है। मैंने जैसे-तैसे बाइक स्टार्ट की और चल पडा़ उन्हें छोड़ने। वहां से मैं धर्मपुर होते हुए जाने के बजाय वापस रिस्पना पुल चौक होते हुए ही पटेल नगर पहुंचा। हालांकि, यह रास्ता बेहद खस्ताहाल है। खासकर कारगी चौक से पटेल नगर तक तो यह मालूम ही नहीं पड़ता कि सड़क पर गड्ढे हैं या गड्ढों में सड़क। 

अभी अपराह्न के सवा तीन बज रहे हैं और मैं आफिस पहुंच चुका हूं। अब मैंने ठान लिया है कि कल सुबह हर हाल में टंकी साफ कराने के लिए बाइक को मैकेनिक के पास ले जाऊंगा। लगे हाथ सर्विस भी हो जाएगी। लेकिन, यहां तो मुश्किलें शाम ढलने का इंतजार कर रही हैं। खैर! आज लंबे अर्से बाद चाय पीने का मन हो रहा है, इसलिए खत्रीजी और मैं आफिस की कैंटीन में आ गए। चाय खत्रीजी ने ही बनाई है, बाकायदा अदरक डालकर। लेकिन, कैंटीन संचालक समीर ने चाय के पैसे नहीं लिए, काफी आग्रह के बावजूद। अब मैं मीटिंग में हूं। इस समय शाम के साढे़ चार बज रहे हैं और बारिश शुरू हो चुकी है। मैं मन ही मन स्वयं को समझा रहा हूं, कोई बात नहीं। एकाध घंटे में तो थम ही जाएगी। मेरे कानों में आवाज गूंज रही है- आमीन!!


























नदी-सी सड़कें, लाचार-सा मैं
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अरे! यह क्या? जैसे-जैसे अंधेरा घिर रहा है बारिश तेज होती जा रही है। बादल सहमा देने वाली गर्जना कर रहे हैं। इतनी तेज बारिश मैंने इस पूरी बरसात नहीं देखी। सड़कें बरसाती नालों का रूप ले चुकी हैं, उस पर बिजली भी गुल है। हालांकि, उम्मीद है कि मेरे आफिस छोड़ने तक थम जाएगी। लेकिन, इस मूसलाधार बारिश ने तो आफिस छोड़ने का टाइम भी बढा़ दिया। रात ठीक सवा ग्यारह बजे मैं घर लौटने का साहस जुटा पाया। जैसे-तैसे बाइक स्टार्ट की और पकड़ ली बारिश में ही घर की राह। मंडी चौक में सड़क पर नदी-सी उफना रही है और मैं सहमा-सा आगे बढ़ रहा हूं। रिलांयस स्टोर के पास अचानक बाइक बंद हो गई। मैं बार-बार स्टार्ट कर रहा हूं और वह हर बार बंद हो जा रही है। अब उसे घर तक धकेल कर ले जाने के सिवा मेरे पास कोई चारा नहीं है। 

सड़क पर घुटनों से ऊपर पानी बह रहा है। बिजली गुल होने के कारण कुछ दिखाई भी नहीं दे रहा। बस! मैं अंदाज से ही आगे बढ़ रहा हूं। बरसाती पहनी हुई है और हेलमेट भी सिर पर ही है, जिससे तन पसीना-पसीना हुआ जा रहा है। पानी में आधा डूबी बाइक को खींचते-खींचते सांसें उखड़-सी रही हैं, लेकिन कुछ किया भी नहीं जा सकता। मैं इजीनियरिंग एनक्लेव के मुहाने पर पहुंच चुका हूं। यहां सड़क का नजारा देख किसी की भी रूह कांप जाए। पानी इतनी फोर्स से बह रहा है कि जरा-सी चूक संकट में डाल सकती है। विपरीत दिशा से छतरी ओढे़ एक व्यक्ति आ रहा है, जो मेरी हालत देख पसीजते हुए बोला, आगे दूसरे मोड़ तक यही हाल है। मैंने "हां" कहा और आगे बढ़ गया। 

अब हर कदम बोझिल लगने लगा है। विपरीत दिशा से फोर्स के साथ आ रहा पानी कदमों को आगे बढ़ने से रोक रहा है। बारिश भी थमने का नाम नहीं ले रही। मैं थककर चूर हो चुका हूं। बस! घर पहुंच जाऊं तो समझूंगा जंग जीत ली। आखिरकार इस नदी को पार कर मैं उस स्थान पर आ पहुंचा हूं, जहां से उतराई शुरू होती है। सो, बाइक को धकेलने के बजाय मैंने उस पर सवार होकर उतरना ही बेहतर समझा। फिर जैसे-तैसे बाइक को घर के आंगन तक पहुंचाया। अब मुझे पानी भी भरना है। बारह बजने में दस मिनट बाकी हैं, इसलिए पानी अभी आ रहा है। 

अब भी दिमाग में बाइक ही घूम रही है। सोच रहा हूं कल अगर ठीक न हुई तो जेब पर अच्छी-खासी चपत लगना तय है। रोटी बनाने का अब वक्त नहीं है, इसलिए क्यों न शार्टकट राह चुनी जाए। भारतीय अंदाज में प्याज-टमाटर व हरी मिर्च के साथ मैगी ज्यादा बेहतर रहेगी। इस सब के बावजूद भोजन करते-करते रात के एक तो बज ही गए। लगता है थकान की वजह से आज नींद अच्छी आएगी। खैर! कल मिलते हैं। शुभ रात्रि!!
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With friends in discussion on Mahadevi
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Dinesh Kukreti
Today sleep woke up half an hour earlier than other days.  I used this time to know the literature of the famous poet Mahadevi Varma.  Doordarshan also has to go at 12.30 in the afternoon.  Today is September 9 and the discussion on Mahadevi ji is to be recorded in Doordarshan's "Sahityiki" program.  It will air on his death anniversary on September 11.  But, my concern is the bike, not the program.  Actually, water has come again in the petrol tank of my bike, due to which it is not only difficult to start it, it is also stopping again and again.  Especially, when traveling long distances.  On top of that, the incessant rain has made things worse.  Despite all this, I have to reach Doordarshan Kendra at any cost, otherwise my credibility will be doubtful in the eyes of my friends.

In the hustle and bustle of leaving early, I didn't even cook lunch today.  Thought I would do it in Doordarshan's canteen or I would ask librarian friend Dinesh Khatri to get food from the office canteen for me too.  However, I have had a light breakfast of biscuits, fruits and porridge.  Meanwhile, literary friend Mukesh Nautiyal got a call that a slight change has been made in the recording program.  This change happened due to the recording of Himalaya Day.  We will get the studio only after this recording.  Now I have no option but to take rest till one o'clock in the afternoon.  At exactly one o'clock I left for Doordarshan Kendra.  I know the bike has caused trouble again and again, so it is bound to take half an hour to reach.  The same thing happened.  It was half past one o'clock while reaching Doordarshan Kendra.

After parking the bike in the parking lot, I came to the reception at the gate.  After entering the register here, I called up Mukesh Bhai and he said, "Brother! I will reach the gate in 30 seconds."  We crossed the threshold of the center only after Mukesh Bhai arrived.  Right now the third participant of the discussion, Somwari Lal Uniyal "Pradeep" ji has not arrived, so we sat in the VEP room and waited for him.  Uniyal ji reached Doordarshan Kendra around 2 o'clock and the recording started at 2 o'clock.  As soon as we got up after recording at 2.30 pm, the program head of the center Shivram Singh Rawat also reached the studio.  I have been meeting him since 2005.  Then he was posted in Akashvani Najibabad.

Rawatji is a kind person, so according to his nature he requested us to have tea and we headed towards his office.  It's three o'clock and I have to reach the office too.  Mukesh bhai is also in a hurry to leave and it will take a while for the tea to arrive.  So we apologized for not being able to drink tea and asked Rawatji for permission to go.  Meanwhile Mukesh Bhai requested that I leave him till Aanchal Dairy.  He is working in LIC Headquarters, which is near Aanchal Dairy.  As soon as I started the bike and started leaving them.  From there, instead of going via Dharampur, I went back to Patel Nagar via Rispana Pul Chowk.  However, this road is very rough.  Especially from Kargi Chowk to Patel Nagar, it is not known whether there are potholes on the road or the road in the potholes.

It is now three o'clock in the afternoon and I have reached the office.  Now I have decided that tomorrow morning I will take the bike to the mechanic to get the tank cleaned.  Service will also be done with your hands.  But, here the difficulties await for the evening.  So!  Today, after a long time, I feel like drinking tea, so Khatriji and I came to the office canteen.  Khatriji has made the tea, by adding ginger properly.  But, the canteen operator Sameer did not take the money for the tea, despite many requests.  Now I am in the meeting.  It is now half past four in the evening and it has started raining.  I am explaining myself in my mind, it doesn't matter.  It will be over in an hour or so.  A voice is ringing in my ears - Amen!!

River-like roads, helpless me
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Hey!  What is this?  As darkness falls, the rain is getting stronger.  The clouds are making a rumbling roar.  I have never seen such heavy rain in this entire rain.  The roads have taken the form of rain drains, there is no electricity on it.  However, hopefully it will be over by the time I leave the office.  But, this torrential rain also extended the time to leave the office.  I was able to muster up the courage to return home at exactly eleven o'clock in the night.  As soon as I started the bike and caught my way home in the rain.  In Mandi Chowk, the road is overflowing like a river and I am moving forward in shock.  The bike suddenly stopped near the Reliance store.  I am starting again and again and it is stopping every time.  Now I have no choice but to push him home.
Water is flowing above the knees on the road.  Can't see anything because of power outage.  Just!  I'm just moving ahead.  The raincoat is worn and the helmet is also on the head, due to which the body is sweating.  While dragging the bike half submerged in the water, the breath is out of breath, but nothing can be done.  I have reached the edge of the engineering enclave.  Seeing the view of the road here, one's soul should tremble.  The water is flowing with such force that the slightest mistake can put you in trouble.  A person wearing an umbrella is coming from the opposite direction, who exasperated seeing my condition and said, This is the situation till the second turn.  I said "yes" and moved on.

Now every step seems to be cumbersome.  The water coming with force from opposite direction is stopping the steps from moving forward.  Even the rain is not taking its name to stop.  I am tired and exhausted.  Just!  When I reach home, I will understand that the battle has been won.  Finally after crossing this river I have come to the place from where the descent begins.  So, instead of pushing the bike, I thought it better to land on it.  Then somehow the bike was taken to the courtyard of the house.  Now I have to fill water too.  There are ten minutes left until twelve o'clock, so the water is coming now.

Even now the bike is spinning in the mind.  I am thinking that if tomorrow does not go well, then there is bound to be a big hit on the pocket.  Now is not the time to make roti, so why not choose the shortcut path.  In Indian style, Maggi will be better with onion-tomato and green chillies.  Despite all this, while having food, it was only one o'clock in the night.  It seems that due to fatigue, sleep will be good today.  So!  See you tomorrow  Good night!!

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