चुनौती पर चुनौती
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दिनेश कुकरेती
आसमान ने घटाओं की काली चादर ओढी़ हुई है। ऐसा प्रतीत होता है कि घंटे-दो घंटे में बदरा जमकर बरसेंगे। लेकिन, मुझे तो आज हर हाल में बाइक को सर्विस कराने के लिए मैकेनिक के पास ले जाना है। यह चिंता सुबह से ही मुझे खाये जा रही थी। इसलिए स्नान के बाद सबसे पहला काम मैंनै मैकेनिक को फोन करने का ही किया। तब शायद पौने दस बजे का वक्त रहा होगा। हालांकि, मन आशंकित था कि अगर बाइक स्टार्ट न हुई तो...? लेकिन, सुकून वाली बात यह रही कि जैसे-तैसे कर न सिर्फ बाइक स्टार्ट हो गई, बल्कि गैराज तक भी पहुंच गई।
मैं बाइक की टंकी में पानी आने की समस्या का स्थायी समाधान चाहता हूं। इसलिए इस मसले पर काफी देर मेरी मैकेनिक से चर्चा भी हुई। उसका कहना था कि टंकी के ढक्कन पर चमडे़ का कवर लगाने से बारिश का पानी उसमें नहीं घुसेगा। हां! अगर पंप से पेट्रोल के साथ ही पानी आ रहा होगा तो कुछ नहीं किया जा सकता।
"चलिए, कवर को भी आजमा लेते हैं, याद करके चढा़ देना। वैसे मैं आज से ही पेट्रोल पंप को बदल रहा हूं, हो सकता है फिर यह समस्या ही न आए"- मैंने कहा। इसके बाद जब मैंनै पूछा कि "क्या ढाई बजे तक बाइक ठीक हो जाएगी" तो मैकेनिक का सवाल था, "आप आफिस कितने बजे जाते हैं।"
मैंने कहा, "पौने तीन-तीन बजे।"
"भैया कोशिश करता हूं कि तब तक ठीक हो जाए। पहले आपकी गाडी़ ही लगा रहा हूं"- मैकेनिक बोला।
"ठीक है फिर, मैं ढाई बजे के आसपास आपसे फोन करके पूछ लूंगा। देख लेना, अगर नहीं हो पाएगी तो फिर कल ही आऊंगा"- मैंने कहा।
इसके बाद मैं घर लौट आया। हालांकि, मैं जानता था कि आज गाडी़ समय पर ठीक नहीं हो पाएगी और मुझे आफिस पैदल ही जाना पडे़गा। फिर भी मैकेनिक से पूछने में कोई बुराई नहीं है। हुआ भी ऐसा ही। मैकेनिक ढाई बजे तक बाइक को ठीक नही कर पाया और मुझे छतरी के साथ पैदल ही आफिस की राह पकड़नी पडी़। बारिश का कोई भरोसा नहीं है, इसलिए अपने पास वाहन न हो तो छतरी साथ में रखना बेहद जरूरी है। फिर कल रात बारिश ने क्या हाल किया, इसे कैसे भुलाया जा सकता है। तकरीबन आधा घंटा लगा होगा मुझे आफिस पहुंचने में।
पूर्व में भी कई बार ऐसी स्थिति आ चुकी है, जब में पैदल हुआ हूं। लेकिन, तब मनमोहन भाई मुझे घर तक छोड़ने आए हैं, मेरे इन्कार करने के बावजूद। अब मनमोहन भाई के पास भी टाइम नहीं है और मुझे खुद भी ऐसा अच्छा नहीं लगता।
इसी बात को ध्यान में रख आज मैंने ठान लिया था कि चाहे कल की ही तरह बारिश क्यों न हो रही हो, मैं घर आने के लिए किसी की मदद नहीं लूंगा। लाचार-बेबस बने रहना किसी भी हिसाब से उचित नहीं है। अच्छी बात यह कि आज मौसम की भी कृपा दृष्टि बनी रही। बारिश होने का माहौल तो रहा, लेकिन बारिश हुई नहीं। घर लौटने के लिए रात साढे़ दस बजे के आसपास सतीजी और मैं आफिस से साथ ही निकलते हैं। ग्राउंड फ्लोर पर आकर वे मुख्य द्वार से आफिस के बाहर खडी़ अपनी कार की ओर बढ़ जाते हैं और मैं बाइक लेने बेसमैंट में स्थित पार्किंग की ओर। आज मेरे पास बाइक नहीं थी, फिर भी मैं सीधे पार्किंग की ओर ही गया, ताकि सतीजी हकीकत न जान पाएं। वहां से जब मैं सड़क में आया तो सतीजी कार स्टार्ट ही कर रहे थे।
ऐसे में मैं गेट से बाहर निकलकर तेजी से मुख्य सड़क की ओर बढ़ गया। संयोग से स्ट्रीट लाइट बंद थी, इसलिए सतीजी की मुझ पर नजर भी नहीं पडी़। अन्यथा उन्होंने कहना था कि वह मुझे कार से छोड़ आएंगे, पर ऐसे तो मेरा संकल्प बेकार हो जाता। मुख्य सड़क से उन्हें कारगी की तरफ मुड़ना था और मुझे लालपुल की ओर, इसलिए वहां से मैं बेफिक्री से आगे बढा़। आगे से मैंने बिंदाल नदी के किनारे वाला रास्ता पकड़ लिया, जो अंदर ही अंदर जीएमएस रोड पर खुलता है। यह रास्ता मंडी चौक वाले मुख्य मार्ग से थोडा़ शार्टकट भी है।
...और इस तरह पूरा हुआ मेरा संकल्प। इस समय मैं लाइट आफ करके तकिया के सहारे बिस्तर पर लेटा हुआ हूं और डायरी लिखने में तल्लीन हूं। कल तो बाइक मिल ही जाएगी। लगता है कोई बडी़ खराबी नहीं थी, अन्यथा मैकेनिक का फोन आ चुका होता। ...तो फिर कल मिलते हैं। खुदा हाफिज!!
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Challenge upon challenge
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Dinesh Kukreti
The sky has covered the black sheet of clouds. It seems that Badra will rain heavily in an hour or two. But, today I have to take the bike to a mechanic for service. This worry was eating me since morning. So the first thing I did after bath was to call the mechanic. Then it must have been half past ten o'clock. However, the mind was apprehensive that if the bike does not start then...? But, the comforting thing was that not only did the bike start, but it also reached the garage.
I want a permanent solution to the problem of getting water in the bike tank. So this issue was discussed with my mechanic for a long time. He said that by putting a leather cover on the lid of the tank, rain water would not enter it. Yes! If water is coming from the pump along with petrol, then nothing can be done.
"Come on, let's try the cover also, remember to put it on. Well, I am changing the petrol pump from today itself, maybe this problem will not come again" - I said. After this, when I asked "Will the bike be fixed by 2:30" the mechanic's question was, "What time do you go to the office."
I said, "At half past three."
"Brother, I will try to get well by then. I am putting your car first" - said the mechanic.
"Okay then, I'll call you around 2:30 and ask. Let's see, if I can't, I'll come again tomorrow" - I said.
After that I returned home. However, I knew that today the train would not be able to recover on time and I would have to walk to the office. Still there's no harm in asking a mechanic. It happened exactly the same. The mechanic could not fix the bike till 2.30 pm and I had to walk to the office with an umbrella. There is no hope of rain, so if you do not have a vehicle, it is very important to have an umbrella with you. Then how can one forget what the rain did last night. It would have taken about half an hour for me to reach the office.
There have been many such situations in the past, when I have walked on foot. But then Manmohan bhai has come to drop me even at home, despite my refusal. Now Manmohan bhai also does not have time and I myself do not like it.
Keeping this in mind, today I was determined that even if it is raining like yesterday, I will not take anyone's help to come home. Being helpless and helpless is not right in any way. The good thing is that today the weather remained kind. It was raining, but it did not rain. Satiji and I leave the office together around 10.30 pm to return home. Coming to the ground floor, he proceeds from the main gate towards his car parked outside the office and towards the parking lot in the basement to pick up my bike. Today I did not have a bike, yet I went straight to the parking lot, so that Satiji would not know the reality. When I came on the road from there, Satiji was just starting the car.
In such a situation, I got out of the gate and moved quickly towards the main road. Incidentally, the street lights were off, so Satiji did not even notice me. Otherwise he had said that he would drop me by car, but my resolve would have been in vain. From the main road they had to turn towards Kargi and me towards Lalpul, so from there I proceeded without any hesitation. From the front, I took the road on the banks of the river Bindal, which opens inside to GMS Road. This road is also a little short cut from the main road of Mandi Chowk.
...And thus fulfilled my resolution. At this time I am lying on the bed with the help of pillow with the lights off and am engrossed in writing my diary. Will get the bike tomorrow. Looks like there wasn't a major problem, otherwise the mechanic's call would have come. ...then see you tomorrow. Khuda Hafiz!!
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