Wednesday, 29 September 2021

29-09-2021 (जन्मदिन का केक)










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जन्मदिन का केक
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दिनेश कुकरेती

जीवन की आधी सदी गुजर चुकी है, लेकिन आज तक जन्मदिन पर मैंने कभी केक नहीं काटा। सच कहूं तो कभी ऐसा अवसर नसीब ही नहीं हुआ। घर में भी कभी ऐसा माहौल नहीं रहा और आज भी नहीं है। यह सिर्फ मेरी ही कहानी नहीं है, रजनी को भी कभी ऐसा मौका नहीं मिल पाया। हां! बच्चे जब छोटे थे, तब जरूर उनके जन्मदिन पर केक कटा करता था, लेकिन घर के माहौल ने उनकी भी राह रोक दी।

अब तो जन्मदिन पर उनकी मनपसंद डिश व ड्रेस ले आते हैं बस। रही बात मेरे और रजनी के जन्मदिन की, तो इस मौके पर रजनी अगर पकौड़ी न बनाए तो मालूम ही न पडे़ कि हम कभी पैदा भी हुए थे। लेकिन, आज तो गज़ब हो गया। रजनी के जन्मदिन पर पकौडी़ भी बनीं और केक भी कटा, पर मुझे तो इस पर अभी भी यकीन नहीं हो पा रहा है।










इस केक की भी अपनी अलग ही कहानी है, जिसके बारे में शाम साढे़ सात बजे तक मुझे भी कोई जानकारी नहीं थी। रजनी ने कल शाम ही तय कर लिया था कि ससुरजी (उसके पिताजी) आज दोपहर का भोजन हमारे साथ ही करेंगे। घर का माहौल देख बाकी किसी को बुलाना उसने उचित नहीं समझा। क्योंकि, चार लोग आएंगे तो शोर-शराबा होना स्वाभाविक है और यह स्वाभाविकता मेरे घर वालों को पसंद नहीं। इसीलिए मुझे भी उनसे कभी अच्छे की उम्मीद नहीं रहती और न आज ही थी। पर, यहां तो ऐसा दर्शाया जा रहा था, जैसे किसी को रजनी के जन्मदिन की जानकारी ही नहीं। तब भी, जब देख लिया कि दोपहर में ससुरजी भी हमारे साथ भोजन कर रहे हैं। फिर दाल की पकौडी़ भी तो ऐसे ही मौकों पर बनती हैं, लेकिन छोडि़ए! जिसकी जैसी सोच। अब तो हम इन बातों की परवाह भी नहीं करते।

खैर! दोपहर का भोजन करने के बाद मैं टीवी देखने बैठ गया और रजनी आराम करने लगी। बच्चे भी अपने-अपने कार्य में व्यस्त हो गए। बल्कि, छोटी बिटिया तो कुछ देर बाद खर्राटे भरने लगी। इसी बीच रजनी ने मुझसे पूछा- "शाम को क्या बनाया जाए। दिन का राजमा-चावल भी बचा है, क्या उसे भी खा लोगे।"

मैंने कहा- "उसे ही खाऊंगा, मेरे लिए रोटी मत बनाना।"

इस पर रजनी बोली- "फिर ठीक है, बच्चों के लिए भी उनकी पसंद का कुछ हल्का-फुल्का बना लेंगे। मैं भी दूध के साथ एकाध रोटी खा लूंगी।"

थोडी़ देर में रजनी कुछ फ्रूट्स (सेब-केला आदि) भी ले आई, जो बीते दो दिन से फ्रिज में रखे हुए थे, लेकिन खाने का मौका नहीं मिल पा रहा था। हमें फ्रूट्स खिलाने के बाद रजनी मोहल्ले में ही अपनी किसी दोस्त से मिलने चली गई।.........

शाम साढे़ सात या पौने आठ बजे का वक्त रहा होगा, रजनी कमरे में मेरे पास आकर बोली- "आपके लिए दाल गरम कर दूं क्या?"

मैंने कहा- "नहीं! मुझे दिन का बचा दाल-भात ठंडा ही अच्छा लगता है।"

रजनी ने फिर पूछा- "...तो अभी लगा दूं क्या?" मेरे "हां" में जवाब देने पर उसने खाना लगा दिया।

खाना खाते हुए मुझे दस मिनट ही हुए होंगे कि तभी छोटी बिटिया साक्षी ने कमरे में प्रवेश किया। उसके एक हाथ में बैग और दूसरे हाथ में फैंटा की दो लीटर वाली बोतल थी। यह देख हमारा आश्चर्यचकित होना स्वाभाविक था। हम कुछ पूछते कि तभी उसने बैग से एक गत्ते का बाक्स बाहर निकाला। उस बाक्स में केक था। इसके अलावा एक थैली में कबाब और दो छोटी-छोटी थैलियों में चटनी थी। कुल मिलाकर सब सामान छह सौ रुपये का तो रहा ही होगा।










रजनी ने बिटिया से इस बारे पूछा तो उसने यह कहकर उसका मुंह बंद करा दिया कि, "तुम्हें इससे क्या, कोई चोरी के पैसों का थोडे़ है। मैं अपने पैसों से लाई हूं।" काफी कुरेदने पर भी उसने कुछ नहीं बताया। हालांकि, मुझे मालूम था कि उसने मम्मी का जन्मदिन मनाने की पहले से तैयारी की हुई थी। लेकिन, ऐसे सरप्राइज की तो किसी को भी उम्मीद नहीं थी। खैर! बच्चों की खुशी में हिस्सेदार बनने का आनंद ही कुछ और है, फिर हम भला इस मौके को कैसे चूकते। सो, हमने स्टूल पर केक को सजा लिया। रजनी ने केक काटा और फिर हम चारों ने तसल्ली से उसका आनंद लिया। कबाब खाने के बाद तो और कुछ खाने की जरूरत ही नहीं रही। लेकिन, फैंटा भी तो पीना था और बचाना भी नहीं था।

अब बिटिया भी समझ गई थी कि हम उसके सरप्राइज से खुश हैं। उसे लगा कि अब बताने में कोई हर्ज नहीं है कि उसने कैसे यह सरप्राइज प्लान किया। कहने लगी, इस महीने की सारी पाकेट मनी उसने सरप्राइज के लिए बचाई थी। अब मेरी समझ में भी बिटिया की सुबह कही बात आ गई थी। हमारे बार-बार उकसाने पर उसने कहा था कि मैं मम्मी को जो भी गिफ्ट दूंगी, तुम्हें पता चल जाएगा। बस! देखते रहो। बडी़ बिटिया सृष्टि ने भी मम्मी के लिए आनलाइन कोई गिफ्ट आर्डर किया हुआ है, लेकिन छोटी बिटिया का सरप्राइज गिफ्ट उसे भी यह सोचने को मजबूर कर रहा था कि इसका कोई मुकाबला नहीं हो सकता।

खास बात यह कि केक, फैंटा व कबाब का पेमेंट उसने दिन में ही कर दिया था, ताकि दुकानदार भूलें ना। इस समय रात के बारह बज रहे हैं, लेकिन मेरी आंखों के आगे अब भी केक ही तैर रहा है। रजनी भी प्रफुल्लित है कि बच्चों ने उसके जन्मदिन को खास बना दिया। मैं सोच रहा हूं, काश! घर का माहौल ठीक होता तो इस खुशी के मौके को सब मिल-जुलकर सेलिब्रेट करते। पर, समय की बलिहारी है। जिसका मतिहरण हो चुका हो, उसका और उसके लिए कुछ नहीं किया जा सकता। बहरहाल! हमारी खुशियां तो हमारे हाथ में हैं और बच्चों को इन्हें बांटने से कोई नहीं रोक सकता।

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Birthday Cake

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Dinesh Kukreti

Half a century of my life has passed, but till date I have never cut a cake on my birthday.  To be honest, I have never had such an opportunity.  There has never been such an atmosphere in the house and it is not even today.  It is not only my story, Rajni also never got such an opportunity.  Yes!  When the children were young, they used to cut cakes on their birthdays, but the atmosphere of the house also stopped them.

Now, on his birthday, he just brings his favorite dish and dress.  As for me and Rajni's birthday, if Rajni had not made dumplings on this occasion, then it would not have been known that we were ever born.  But today it was amazing.  Dumplings were also made on Rajni's birthday and cake was also cut, but I still cannot believe it.

This cake also has its own story, about which I was not even aware till 7.30 pm.  Rajni had decided last evening itself that father-in-law (her father) would have lunch with us today.  Seeing the atmosphere of the house, he did not consider it appropriate to call anyone else.  Because, when four people come, it is natural to be noisy and my family members do not like this naturalness.  That's why I never expected anything good from him and neither was it today.  But, here it was being shown as if no one knew about Rajni's birthday.  Even then, when I saw that in the afternoon father-in-law is also having dinner with us.  Then dal dumplings are also made on similar occasions, but leave it!  Whose thinking  Now we don't even care about these things.







So!  After having lunch I sat down to watch TV and Rajni started taking rest.  The children also got busy with their work.  Rather, the little girl started snoring after some time.  Meanwhile, Rajni asked me- "What should be prepared in the evening. Rajma and rice are also left for the day, will you eat that too."

I said- "I will eat it only, don't make bread for me."

On this Rajni said- "Okay then, we will make something light for the children of their choice. I will also eat a couple of rotis with milk."

After a while Rajni also brought some fruits (apple-banana etc.), which were kept in the fridge for the last two days, but could not get a chance to eat.  After feeding us fruits, Rajni went to meet a friend in the locality itself.

It must have been seven o'clock in the evening or eight o'clock in the evening, Rajni came to me in the room and said - "Should I heat the lentils for you?"

I said - "No! I like only cold lentils and rice for the rest of the day."

Rajni again asked- "...then should I put it now? On answering my "yes" he started eating.

It must have been ten minutes for me while eating food that only then little daughter Sakshi entered the room.  He had a bag in one hand and a two-liter bottle of Fanta in the other.  It was natural for us to be surprised to see this.  We would ask something when he took out a cardboard box from the bag.  There was a cake in that box.  Apart from this, there was kebab in one bag and chutney in two small bags.  In all, all the goods must have been worth six hundred rupees.

When Rajni asked the daughter about this, she shut her mouth by saying, "What do you do with this, someone has a little bit of stolen money. I have brought it with my own money."  He didn't say anything even after scratching a lot.  However, I knew that he had already made preparations to celebrate Mom's birthday.  But, no one expected such a surprise.  So!  The joy of being a part of the happiness of children is something else, then how could we miss this opportunity.  So, we decorated the cake on the stool.  Rajni cut the cake and then the four of us enjoyed it calmly.  After eating kebabs, there was no need to eat anything else.  But, even Fanta was to be drunk and not even saved.

Now the daughter also understood that we are happy with her surprise.  He felt that now there is no harm in telling how he planned this surprise.  She started saying, she had saved all the pocket money of this month for the surprise.  Now my understanding had come in the morning of the daughter.  On our repeated provocation, she said that whatever gift I will give to mom, you will know.  Just!  Keep watching.  The elder daughter Srishti has also ordered a gift online for her mother, but the surprise gift of the younger daughter was forcing her to think that there can be no match for it.










The special thing is that he had paid for the cake, fanta and kebab in the day itself, so that the shopkeepers would not forget.  It is now twelve o'clock in the night, but the cake is still floating before my eyes.  Rajni is also elated that the kids made her birthday special.  I'm thinking, wish!  Had the atmosphere of the house been right, everyone would have celebrated this happy occasion together.  But, time is a waste.  Nothing can be done for the one who has died.  However!  Our happiness is in our hands and no one can stop the children from sharing them.

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