दिनेश कुकरेती
सुबह जब मैंने बिस्तर छोडा़ तो सिर में भारीपन-सा महसूस हो रहा था, लेकिन स्नान के बाद काफी राहत मिली। फिर मैं हमेशा की तरह योगाभ्यास करने बैठ गया। हालांकि, बाइक को लेकर मन अब भी बोझिल था। स्वयं बाइक लेकर आटो पार्ट्स की दुकान पर जाऊं या बाइक को मैकेनिक के सुपुर्द कर दूं, इसे लेकर असमंजस बना हुआ था। काफी सोच-विचार के बाद मैंने तय किया कि लाक मैकेनिक के माध्यम से ही लगवाऊंगा। इसमें विश्वसनीयता की लगभग गारंटी रहती है।
अगर मैं लैंसडौन चौक आटो पार्ट्स वाले के पास गया और उसके पास लाक न मिला तो फिर बैरंग वापस लौटना पडे़गा। खामखां का पेट्रोल फुंकेगा, सो अलग। उस पर मुश्किल यह है कि लाक के खुलने की गारंटी नहीं। ऐसे में बीच रास्ते पेट्रोल खत्म हो गया तो धक्का परेड तय मानिए। इसलिए बेहतर यही है शांत रहा जाए, क्योंकि मैकेनिक भी सोमवार को साप्ताहिक अवकाश पर रहता है। मंगलवार सुबह पहला काम बाइक को मैकेनिक के हवाले करने का ही करूंगा।
योगाभ्यास के बाद मैंने सीधे दुकान का रुख किया। आटा, चीनी, साबुन आदि जरूरी सामान खरीदना था। बीते दो-तीन दिन से मैं रोज लापरवाही कर जा रहा था, लेकिन आज सामान लाना बेहद जरूरी था। खैर! सामान लाने के बाद मैं भोजन बनाने में जुट गया। आज आफिस पैदल ही जाना था, इसलिए भोजन करने के बाद मैंने ठीक ढाई बजे आफिस की राह पकड़ ली। तकरीबन बीस मिनट लगे होंगे मुझे आफिस पहुंचने में। इस बीच रास्ते में किरण भाई का फोन भी आ गया था कि बाइक ठीक हुई या नहीं। मैंने उन्हें बताया कि कल मैकेनिक ही ठीक करेगा।
आफिस में साथियों के साथ बातचीत कर मैंने तय किया कि रात बाइक लेकर ही कमरे में जाऊंगा। थोडा़ पेट्रोल उसमें है ही और इत्तेफाक से कमरे में पहुंचने तक खत्म हो भी गया तो गैराज तक धकेलकर ले जाने में कोई दिक्कत नहीं है। इसके बाद मैं खबरों की चीर-फाड़ में जुट गया। हालांकि, जब तक बाइक के पेट्रोल टैंक का लाक नहीं लग जाता, तब तक मन में शंका-आशंका तो बनी ही रहनी है। खैर! शाम की चाय पीने के बाद मैं सब्जी मंडी पहुंचा और 250 ग्राम टमाटर ले आया। टमाटर इन दिनों आम आदमी की पहुंच से बाहर हो रखा है। 80 रुपये किलो से नीचे ही नहीं उतर रहा। इसलिए एक बार में 250 ग्राम से ज्यादा खरीदने की हिम्मत ही नहीं हो पा रही।
बाकी कोई सब्जी मुझे पसंद नहीं आई। मटर लेने का मन हुआ, लेकिन वह 130 रुपये किलो है। मशरूम आज मंडी में था नहीं। अगर होता तो मुझे मशरूम ही लेना था। वह अन्य सब्जियों की अपेक्षा सही पड़ जाता है। रात 10.40 बजे के आसपास मैंने कमरे की राह पकडी़। डर था कि कहीं रास्ते में बाइक का तेल खत्म न हो जाए, लेकिन खुशकिस्मती से ऐसा हुआ नहीं। टैंक के लाक पर मैंने अच्छी तरह पालीथिन लपेटी हुई थी। यही वजह रखी कि तेल उडा़ नहीं।
कमरे में लौटने के बाद का रुटीन तो आपको मालूम है ही। पानी भरने, बर्तन व कपडे़ धोने, भोजन तैयार करने, खाने और फिर बर्तन धोने में बारह-सवा बारह तो अमूमन बज ही जाते हैं। आज भी बज गए। फिलहाल जनता से जुडे़ कुछ खबरिया चैनलों की क्लिप देखने के बाद अभी हिप्नोसिस की प्रैक्टिस करके उठा हूं। अब सोने की तैयारी है। आप भी रजाई में दुबककर नींद का आनंद लीजिए। खुदा हाफिज!!
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Confusion
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Dinesh Kukreti
When I got out of bed in the morning, I felt a heaviness in my head, but after taking a bath, there was a lot of relief. Then I sat down to practice yoga as usual. However, the mind was still heavy about the bike. There was confusion about whether to take the bike myself to the auto parts shop or hand over the bike to the mechanic. After much deliberation, I decided that I will get the lock installed only through a mechanic. It has almost guarantee of reliability.
If I went to the Lansdowne Chowk auto parts dealer and didn't get the lock from him, then I would have to go back to Barang. Khamkhan's petrol will blow, so different. The problem with that is that the lock is not guaranteed to open. In such a situation, if the petrol runs out midway, then consider the push parade fixed. So it is better to remain calm, as the mechanic is also on weekly off on Mondays. On Tuesday morning, the first thing I will do is to hand over the bike to the mechanic.
After yoga practice, I went straight to the shop. Had to buy essential items like flour, sugar, soap etc. For the last two-three days, I was going carelessly every day, but today it was very important to bring the goods. So! After getting the goods, I started preparing the food. Today, I had to go to the office on foot, so after having my meal, I took my way to the office at exactly 2.30 pm. It would have taken about twenty minutes for me to reach the office. Meanwhile, Kiran Bhai's call also came on the way to see whether the bike was fixed or not. I told them that tomorrow the mechanic will fix it.
After talking to my colleagues in the office, I decided that I would go to the room at night with a bike. There is little petrol in it and if it runs out by the time you reach the room by chance, there is no problem in pushing it to the garage. After that I got involved in tearing up the news. However, until the bike's petrol tank is locked, doubts and apprehensions are bound to remain in the mind. So! After drinking evening tea, I reached the vegetable market and brought 250 grams of tomatoes. Tomato is out of reach of common man these days. Not getting down below Rs 80 a kg. That's why I don't dare to buy more than 250 grams at a time.
I did not like any other vegetable. I felt like taking peas, but it is 130 rupees a kg. Mushroom was not in the market today. If I had, I would have had mushrooms. It falls right in comparison to other vegetables. Around 10.40 pm I made my way to the room. There was a fear that the bike might run out of oil on the way, but fortunately it did not happen. I had wrapped polythene well on the lock of the tank. This is the reason why the oil did not blow up.
You already know the routine after returning to the room. In filling water, washing utensils and clothes, preparing food, eating and then washing the dishes, it usually takes twelve to twelve. It rang today. At present, after watching clips of some news channels related to the public, I have just woken up by practicing hypnosis. Now ready to sleep. You too enjoy sleep by lurking in the quilt. Khuda Hafiz!!
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