google.com, pub-1212002365839162, DIRECT, f08c47fec0942fa0
लघु कथा
-----------
रिश्तेदार
----------
दिनेश कुकरेती
बात उन दिनों की है, जब मैं दिल्ली में रहता था। वहां कुछ लोगों से अच्छी दोस्ती ही नहीं, पारिवारिक घनिष्ठता भी हो गई थी। एक दिन रात के भोजन के लिए एक परिवार से न्योता मिला। बडा़ आग्रह था, इसलिए ना कहना संभव नहीं था, सो मैं पहुंच गया उन सज्जन के घर। उस समय रात के आठ बजे रहे होंगे, लेकिन ठंडियों का मौसम होने के कारण मेरे पहुंचते ही थाली में भोजन सज गया। दिल्ली की अपनी व्यस्तताएं हैं, इसलिए लोग समय का काफी हद तक ध्यान रखते हैं। उन्होंने भी रखा। अब हम बैठक में बातों में मशगूल थे। तभी उनके किचन में बर्तनों की खड़खडा़हट सुनाई दी। इस पर मैंने उन सज्जन का ध्यान उधर खींचा तो वो बोले,
'अरे! कुछ नहीं कुत्ता है।'
मैं चुप हो गया। लेकिन, यह क्या? कुछ ही पल में एक युवक दनदनाते हुए बैठक में घुसा और 1500 रुपये उन सज्जन के सामने पटकते हुए बोला, 'मामाजी आपका खाना आपको मुबारक। लीजिए अपना हिसाब। आज के बाद मैं कभी इस घर में पांव भी नहीं रहूंगा। मैं जा रहा हूं।'
फिर मैंने देखा कि उस युवक ने अपने कपडे़ समेटे और बैग कंधे पर टांगकर सीधे निकल गया। उस घर में यह सब देखकर मेरा मन खराब हो चुका था। खुद पर क्रोध आ रहा था कि क्यों मैंने यहां आने की हामी भरी। क्यों नहीं कोई बहाना बनाकर मना कर दिया। अब मेरे लिए वहां एक पल बैठना भी संभव नहीं हो पा रहा था, इसलिए विनम्रतापूर्वक उनसे इजाज़त ली और चला आया अपनी खोली में। इस संकल्प के साथ कि भले ही भूखा क्यों न रहना पडे़, लेकिन कभी किसी रिश्ते-नाते वाले के घर नहीं जाऊंगा।'
-------------------------------------------------------------------------
Short story
------------------
Relative
-------------
Dinesh Kukreti
It is about those days, when I used to live in Delhi. There not only good friendship with some people, there was also family intimacy. One day a family was invited for dinner. There was a great urge, so it was not possible to say no, so I reached that gentleman's house. At that time it must have been eight o'clock in the night, but due to the cold weather, the food was ready in the plate as soon as I reached. Delhi has its own busy schedules, so people keep track of time to a great extent. He also kept Now we were busy talking in the meeting. Then the rattle of utensils was heard in his kitchen. When I drew the attention of that gentleman there, he said,
'Hey! Nothing is a dog.'
I fell silent. But what is this? In a few moments, a young man entered the meeting shouting and throwing 1500 rupees in front of that gentleman, said, 'Mamaji, congratulations on your food. Take your account. After today, I will never step foot in this house. I am going.'
Then I saw that the young man gathered his clothes and left straight after hanging the bag on his shoulder. Seeing all this in that house, my heart was broken. I was getting angry with myself as to why I agreed to come here. Why didn't he refuse by making an excuse. Now it was not possible for me to sit there even for a moment, so humbly took permission from him and went to my room. With this resolution that even if I have to starve, I will never go to the house of any relative.
No comments:
Post a Comment
Thanks for feedback.