Thursday, 26 January 2023

26-01-2023 (जोशीमठ और उदास वसंत)















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जोशीमठ और उदास वसंत

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दिनेश कुकरेती
ज स्वप्न में अनायास वसंत से मुलाकात हो गई। मैंने  स्वभाव के अनुरूप उसका प्रफुल्लित भाव से स्वागत किया। ऋतुराज जो ठैरा। कौन होगा जो स्वयं को उसका स्वागत करने से रोक सके। वैसे भी वसंत मुझे अति प्रिय है, वो चाहे लता, गुल्म व शाखाओं में आए या बुरांश के सुर्ख फूलों में या फिर सरसों के पीले फूलों से लकदक हरे-भरे खेतों में। उसका थिरकना, कनखियों से झांकना, मंद-मंद मुस्कान बिखेरते हुए लजा जाना मुझे भाव-विभोर कर देता है। ऐसा प्रतीत होता है, मानो बागों में बहती मंद-मंद सुगंधित बयार प्रकृति से आठखेलियां कर रही है। 


संत प्रकृति के हर रूप में समाया हुआ है। तभी तो 'ऋतुसंहार' में महाकवि कालीदास उसे 'सर्वप्रिये चारुतर वासंते' कहकर अलंकृत करते हैं। गीता में योगेश्वर श्रीकृष्ण वसंत को अपना स्वरूप बताते हुए कहते हैं- 'ऋतूनां कुसुमाकर:' अर्थात् 'ऋतुओं में मैं वसंत हूं।' जबकि पौराणिक कथाएं वसंत को कामदेव के पुत्र की संज्ञा देकर प्रतिष्ठित करती हैं। कवि देव, वसंत ऋतु का कुछ इस तरह वर्णन करते हैं- 'रूप एवं सौंदर्य के देवता कामदेव के घर पुत्र के जन्म होने का समाचार सुनते ही प्रकृति झूम उठी है। पेड़ उसके लिए नव पल्लव का पालना डाल चुके हैं, फूल वस्त्र पहना रहे हैं, पवन उसे झुला रही है और कोयल उसे गीत सुनाकर बहलाने का जतन कर रही है।'















'कालिका पुराण' में वसंत का व्यक्तीकरण करते हुए उसे सुदर्शन, अति आकर्षक, संतुलित शरीर वाला, तीखे नयन-नक्श वाला, नाना प्रकार के फूलों से सजा, आम्र मंजरियों को हाथ में पकडे़ रहने वाला, मतवाले हाथी जैसी चाल वाला जैसे तमाम गुणों से भरपूर बताया गया है। वहीं प्रकृति के चितेरे कवि चंद्रकुंवर बर्त्वाल कहते हैं- 
'अब छाया में गुंजन होगा वन में फूल खिलेंगे,
दिशा-दिशा में अब सौरभ के धूमिल मेघ उठेंगे,
जीवित होंगे वन निद्रा से निद्रित शैल जगेंगे,
अब तरुओं में मधु से भीगे कोमल पंख उगेंगे।'
लेकिन, मेरे मुख से अपनी इतनी तारीफ सुनने के बाद भी वसंत के चेहरे पर उभरी विषाद की लकीरों ने मुझे संशय में डाल दिया। मेरी उत्कंठा मुझे उद्वेलित करने लगी। मैं सोचने लगा आखिर वह कौन-सी वजह है, जिसने जीवन में कभी निराश नहीं होना चाहिए और निराशा, नीरसता व निष्क्रियता को त्यागकर सदैव प्रसन्न रहना चाहिए का भाव जगाने वाने वाले वसंत के चेहरे पर भी निराशा के भाव ला दिए।


मैंने सकुचाते हुए वसंत से पूछा, 'हे! प्रिय, आखिर कौन-सा दुख तुम्हें साल रहा है। मुझसे तुम्हारी यह उदासी देखी नहीं जाती।' यह सुनकर वसंत के मुखमंडल पर उदासी  और गहरा गई। कुछ पल खामोशी से मेरे चेहरे को ताकने के बाद वह कातर स्वर में बोला, 'तु भी तो उदास हो मित्र, हंसते-खेलते जोशीमठ को उजड़ते देखकर।' मैंने कहा, 'हां! एक फूलती -फलती सभ्यता को उजड़ते देख भला कौन खुश होगा।' यह सुन वसंत बोला, 'फिर मैं तुमसे अलग कैसे हो सकता हूं भला। मैं भी तो तुम्हारे मन का ही भाव हूं।' मुझे मेरे सवाल का जवाब मिल चुका था, इसलिए मैंने भाव-विह्वल हो वसंत को कसकर सीने से लगा लिया। तभी वसंत मेरे कान में धीरे से बोला- 'क्या तुम व्यक्त कर पाओगे मेरे हृदय की पीडा़ को?' मैंने 'हां' में जवाब दिया तो वसंत आहिस्ता-आहिस्ता अपने मन के भाव व्यक्त करने लगा। ...और मैं उन्हें कविता की शक्ल में कागज पर उकेरता चला गया, कुछ इस तरह-

वसंत आया
चुपके-चुपके
और लौट गया
दुखी और- 
उदास मन से
उजड़ते-बिखरते
जोशीमठ को देख।
 
खंडहर होते घर
मिट्टी में मिलती 
उम्मीदें
चकनाचूर होते 
सपने
वसंत से 
देखे नहीं गए।

जानता था
कि दुख 
रोक देते हैं 
उल्लास की राह
मुरझा जाता है यौवन
फिर कौन करेगा
उसका स्वागत।

वसंत ने देखे हैं
इस शहर में 
उम्मीदों के अंकुर
फूटते हुए
खिलखिलाते हुए
सुर्ख बुरांश
उदासी से पहले।

फिर भी
वसंत की कामना है
लौट आएं 
वो सुनदरे दिन
और वह उन्मुक्त होकर
थिरक सके
हर घर-आंगन।

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Joshimath and the sad spring

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Dinesh Kukreti

Today, I met Vasant spontaneously in my dream.  I welcomed him cheerfully according to nature.  Rituraj who stayed.  Who would be able to stop himself from welcoming him.  Anyway, I love spring very much, whether it comes in the form of creepers, flowers and branches or in the red flowers of Buransh or in the green fields covered with yellow mustard flowers.  Her dancing, peeping through her eyes, being shy while spreading a slow smile makes me emotional.  It appears as if the scented breeze flowing slowly in the gardens is playing tricks with nature.

Spring is contained in every form of nature.  That's why in 'Ritusanhar' Mahakavi Kalidas embellishes him by calling him 'Sarvpriya Charutar Vasante'.  In the Gita, Yogeshwar Shri Krishna describes Vasant as his form and says- 'Ritunaam Kusumakar:' which means 'I am the spring among the seasons'.  While the mythological stories give prestige to Vasant as the son of Cupid.  Poet Dev, describes the spring season in this way- 'The nature got excited on hearing the news of the birth of a son in the house of Kamadeva, the god of form and beauty.  The trees have put the cradle of Nav Pallava for him, flowers are dressing him, the wind is swinging him and the cuckoo is trying to amuse him by singing songs.'

While personifying Vasant in 'Kalika Purana', he is said to be beautiful, very attractive, having a balanced body, having sharp eyes, decorated with different types of flowers, holding mango manjaris in his hand, having a gait like a drunk elephant.  Said to be full of  On the other hand, poet Chandrakunwar Bartwal, the poet of nature, says-

Now there will be hum in the shade, flowers will bloom in the forest,

Saurabh's foggy clouds will now rise in every direction,

Forests will come alive, sleepy rocks will wake up,

Now soft wings soaked with honey will grow in the trees.

But, even after hearing so much praise from my mouth, the lines of sadness that emerged on Vasant's face put me in doubt.  My curiosity began to excite me.  I started thinking that what is the reason that one should never be disappointed in life and should always be happy by leaving pessimism, dullness and passivity, but the one who wakes up Vasant also brought expressions of despair on his face.

Hesitatingly I asked Vasant, 'Hey!  Dear, after all, what sorrow has been going on for you.  I cannot see your sadness.'  Hearing this, the sadness on Vasant's face deepened.  After staring at my face silently for a few moments, he said in a bitter voice, 'You are also sad, friend, seeing Joshimath being destroyed while playing.'  I said, 'Yes!  Who would be happy to see a flourishing civilization getting destroyed.'  Hearing this, Vasant said, 'Then how can I be separated from you?  I am also a feeling of your mind.'  I had got the answer to my question, so I hugged Vasanth tightly to my chest.  That's why Vasant spoke softly in my ear - 'Will you be able to express the pain of my heart?'  When I replied in 'yes', Vasant slowly started expressing his feelings.  ...and I went on scribbling them on paper in the form of poetry, something like this-

spring came
silently
and returned
sad and-
with a sad heart
falling apart
Look at Joshimath.

dilapidated house
mixed in the soil
expectations
Shattered
Dreams
since spring
Not seen

knew
that sadness
let's stop
road to glee
youth withers
then who will
Welcome him

spring has seen
in this city
seeds of hope
exploding
smilingly
surkh buransh
Before sadness

Even then
wish spring
come back
those beautiful days
and he is free
can get tired
Every house-courtyard.


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