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दिनेश कुकरेती
आज पूरा दिन आराम करते हुए बीता। अब भी मैं आराम ही कर रहा हूं। होटल में नाश्ता करने के बाद सुबह आठ बजे हम हरिद्वार से देहरादून के लिए चले। बामुश्किल एक घंटा लगा होगा देहरादून पहुंचने में। छायाकार साथी राजेश बड़थ्वाल ने मुझे आफिस के बाहर छोड़ दिया। मेरी बाइक आफिस की पार्किंग में ही खडी़ थी, इसलिए उसे लेने मुझे आफिस आना पडा़। एक बात बताना तो मैं भूल ही गया, वो ये कि मुझे अब तीन दिन तक आफिस नहीं जाना।
दरअसल, सुबह जब नींद खुली तो छायाकार साथी राजेश बड़थ्वाल ने बताया कि वाट्सएप में आफिस से मैसेज आया है। कहा गया है कि हम तीन दिन आइसोलेट रहें। मैंने अपने फोन में देखा तो ऐसा कोई मैसेज नहीं था। हो सकता है, इसके पीछे कोई वजह रही हो। बहरहाल! फरमान तो सुना दिया ही गया था। गुस्सा भी आया, पर मानने के सिवा कोई विकल्प नहीं था। इससे पहले दो दिन पहले मुख्यालय से भी मुझसे किसी विषय पर स्टोरी मांगी गई थी। लेकिन, भागादौडी़ के चलते मैं कर नहीं पाया। सोचा, 15 अप्रैल को सीधे आफिस पहुंचकर कर दूंगा, लेकिन अब ऐसा संभव नहीं था।
अब मैं सोच में पड़ गया कि क्या किया जाए। फिर मैंने स्वयं को टेंशन फ्री किया और जुट गया मोबाइल पर ही स्टोरी लिखने में। हालांकि, चौदह-पंद्रह सौ शब्द मोबाइल पर कंपोज करना आसान नहीं होता, लेकिन मैं भला कहां हार मानने वाला था। मेरी परेशानी को समझते हुए आफिस से लैपटाप देने की बात भी कही गई, लेकिन मैंने लेने से इन्कार कर दिया। आखिरकार दिन के ढाई बजे तक मैंने स्टोरी कम्पलीट कर ली। ये स्टोरी नागा संन्यासियों पर केंद्रित थी, जिसे अखबार की मैग्जीन में आल एडिशन छपना था।
इसके बाद मैंने आफिस मेल कर दी, ताकि वहां से इसे दिल्ली मुख्यालय को भेजा जा सके। स्टोरी निपटाने के बाद मेरे पास आराम करने के सिवा कोई विकल्प नहीं था। खाने की इच्छा हुई नहीं, इसलिए खाना भी नहीं बनाया। सात बजे तक मैं सोया रहा और फिर रात का भोजन बनाने में जुट गया। साढे़ आठ बजे भोजन करने के बाद कुछ देर मैंने घर पर बात की, फिर यू-ट्यूब पर वीडियो देखने लगा। दस बजे के आसपास पानी आ गया, सो मैंनै भी जल्दी-जल्दी पानी भरा और फिर लाइट बंद करके लेट गया।
हालांकि, नींद कहां आनी थी। जबरन छुट्टी बोझ सी लग रही थी। दरअसल, लाकडाउन में कहीं आना-जाना भी नहीं हो सकता, न किसी से मेल-मुलाकात करना ही संभव है। सोच रहा हूं कल कुछ घर के काम ही निपटा लूंगा। मसलन, कपडे़ धो लूंगा, रूम की साफ-सफाई कर लूंगा। किताबों को करीने से लगा लूंगा। थोडा़-बहुत राशन-पानी ले आऊंगा वगैरह-वगैरह।
वैसे सच कहूं, ये सब खुद को समझाने वाली बातें हैं। टेंशन तो इस बात का है कि आफिस से कहीं ये फरमान न जाए कि हफ्तेभर घर में रहो। कोरोना का दौर है, लगातार घर में रहने पर आस-पडो़स वाले भी शक करने लगते हैं। खैर! कल की कल देखी जाएगी। इसी उधेड़बुन में रात के एक बजे चुके हैं, क्यों न अब नींद का आनंद लिया जाए। अच्छा! शुभरात्रि।
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Now imprisoned in the house for three days
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Dinesh Kukreti
Today spent the whole day resting. Even now I am resting. After breakfast at the hotel, we left Haridwar for Dehradun at eight in the morning. It must have taken hardly an hour to reach Dehradun. Cinematographer fellow Rajesh Baratwal left me outside the office. My bike was parked in the office parking lot, so I had to come to the office to pick it up. I forgot to tell you one thing, that I do not go to office for three days now.
In fact, when I woke up in the morning, cinematographer fellow Rajesh Baratwal told that the message has come from the office in WhatsApp. It has been said that we should remain isolated for three days. When I looked in my phone, there was no such message. Maybe, there has been a reason behind this. However! The decree was already heard. He got angry too, but there was no option but to accept. Two days before this, I was also asked for a story on some subject from the headquarters. But, I could not do it due to Bhagadoudi. Thought I would do it directly on April 15, but now it was not possible.
Now I started thinking what to do. Then I tensioned myself and got ready to write the story on mobile. Although it is not easy to compose fourteen-fifteen hundred words on mobile, but where was I going to give up? Realizing my problem, I was asked to give a laptop from the office, but I refused to take it. Finally by half past two in the day, I finished the story. This story was focused on Naga ascetics, who were to appear in the newspaper magazine All Editions.
After this I mailed the office, so that from there it could be sent to Delhi Headquarters. After settling the story I had no option but to rest. There was no desire to eat, therefore did not even cook. I slept till seven o'clock and then started making dinner. After eating at half past eight, I talked at home for a while, then started watching videos on YouTube. Water came up around ten o'clock, so I too filled up the water quickly and then switched off the light and lay down.
However, where was sleep to come. Forced leave seemed like a burden. Actually, there cannot be any movement in the lockdown, nor is it possible to meet or meet anyone. Thinking I will do some household work tomorrow. For example, I will wash clothes, I will clean the room. I will put the books neatly. I will bring a lot of ration-water, etc.
Well, to tell the truth, these are all things to explain themselves. Tension is such that this decree should not go anywhere from the office to stay at home for a week. It is a time of corona, when living in the house continuously, neighbors also start to doubt it. Well! Tomorrow will be seen tomorrow. It has been one o'clock in the night, why not enjoy sleep now. good! good night.
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