Monday, 18 April 2022

18-04-2022 (पत्थरों की बारिश)


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किस्सागोई (पांच)

पत्थरों की बारिश

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दिनेश कुकरेती

हले दिन मिली सफलता ने मेरे हौसले बुलंद कर दिए थे। अब तैयारी अभियान को और गति देने की थी। इसलिए दूसरे दिन मैं दोगुने उत्साह के साथ लोगों के घरों पर पत्थर बरसाने की तैयारी में जुट गया। इधर, रात की घटना को लेकर मोहल्ले में तरह-तरह की चर्चाएं होने लगी थीं। कोई कहता कि जरूर मोहल्ले का ही कोई व्यक्ति इस कारस्तानी को अंजाम दे रहा है, तो कुछ घटना को भूत-प्रेत से जोड़ने लगे। इनमें बुजुर्ग लोग ज्यादा थे। मेरी मित्र चौकुडी़ भी अपनी सोच के हिसाब से कयास लगा रही थी। लेकिन, मुझे इस सब की कोई परवाह नहीं थी। इसलिए सांझ ढलने ही मैंने खुराफात की माला गूंथनी शुरू कर दी।

शाम का भोजन हो चुका तो सभी ने कुछ देर टहलने के बाद सोने की तैयारी शुरू कर दी। इस दौरान सभी पिछली रात की घटना पर ही चर्चा कर रहे थे। घटना की पुनरावृत्ति को लेकर मेरे घर वाले भी डरे हुए से थे, लेकिन कह कुछ नहीं रहे थे। मेरे भी अपने तर्क थे, जिनका उनके पास कोई जवाब नहीं था। फिर उनकी संतुष्टि के लिए हनुमान चालीस तो मैंने सिरहाने रखी हुई थी ही। लेकिन, अभियान को आगे बढा़ने के लिए उस दिन मुझे थोडा़ इंतजार करना पडा़, क्योंकि हर कोई अतिरिक्त सतर्कता बरत रहा था। खैर! जब साढे़ बारह बजे तक सब-कुछ सामान्य रहा तो सभी सोने के लिए चले गए। अब जागने की बारी मेरी थी, सो एक बजते ही मैंने पांच-पांच मिनट के अंतराल में पडो़स की चादर की छत पर निशाना साधना शुरू कर दिया।

फिर क्या, सब घरों से बाहर निकल पडे़। कुछ के हाथों में डंडे थे। यानी उस वक्त सचमुच पत्थर फेंकने वाला उनके हाथ आ जाता तो उसका कचूमर बना डालते। दोस्त की दादी के श्रीमुख से पुष्प वर्षा की तरह गालियां बरस रही थी। कुछ नई गालियां और कुछ परंपरा में चली आ रही यानी ट्रेडिशनल। मोहल्लेभर में पत्थरबाज की ढूंढ-खोज होने लगी थी, लेकिन किसी के हाथ कोई सुराग नहीं लगा। इससे कई पडो़सियों में यह धारणा भी पुख्ता होने लगी कि यह भूत-प्रेत का ही चक्कर है। मैंने हालांकि, भूत-प्रेत का अस्तित्व कभी नहीं माना, लेकिन थोडा़ भय इस बात को लेकर होने लगा कि कहीं ये लोग किसी पुछेरे (गणना कर वास्तविकता का पता लगाने वाला ) के पास न चले जाएं और मेरा भेद न खुल जाए। क्योंकि, दो-एक पडो़सी आपस में खुसर-पुसर कर रहे थे कि अब इस समस्या का हल कोई पुछेरा ही निकाल सकता है।

वैसे एक मन यह भी कह रहा था कि ये भले ही किसी के पास भी चले जाएं, कुछ हाथ लगने वाला नहीं। इसी उधेड़बुन में न जाने कब मुझे नींद ने आपने आगोश में ले लिया, पता ही नहीं चला। अगले दिन इस मुद्दे ने और व्यापकता ले ली। दिनभर बस! यही विषय लोगों की जुबान पर रहने लगा। जिनकी छत पर पत्थर बरस रहे थे, उनसे तो न उगले बन रहा था, न निगले ही। उनका बडा़ बेटा मेरे साथ ही रहता था। वह भी काफी डरा हुआ था। अगले कुछ दिनों में तो स्थिति यह हो गई कि जिन पडो़सियों के घरों में लाइसेंसी बंदूक थी, उसे उन्होंने बाहर निकाल लिया। पुलिस में जाने की बातें भी होने लगीं।

अभियान को दस दिन हो चुके थे। मुझ पर भी बाहर न सोने के लिए घर वालों का दबाव बढ़ता जा रहा था। मेरे लिए यही सबसे बडा़ चिंता का विषय था। कारण, अगर मैं बाहर नहीं सोता तो पत्थर भी नहीं बरसते और इससे शक की सुई सीधे मेरी ओर घूम जाती। इसलिए नवें दिन मैंने खुद ही युद्ध विराम की घोषणा कर दी। साथ ही घर वालों को भी मना लिया कि पत्थर बरसने पर मैं बिना किसी किंतु-परंतु के बाहर सोना बंद कर दूंगा। 

अगले दो-तीन दिन पत्थर बरसने की कोई घटना नहीं हुई। सब सुकून में थे, लेकिन साथ ही सबने एक मत से यह भी स्वीकार लिया था कि घटना के पीछे भूत-प्रेत ही था। मेरे हित में तो यही था कि सबकी सुनूं और अपनी जुबान को बंद रखूं। मितरों! लगभग दस साल तक मैं अपने इस संकल्प पर अडिग रहा और एक दिन जब उस दौर के कुछ दोस्तों व नाते-रिश्ते वालों के सामने मैंने सच्चाई बयां की तो सबकी आंखें खुली की खुली रह गईं। मेरे दोस्त की वह खतरनाक दादी, जिनकी जुबान से फूलों की तरह नाना प्रकार गालियां झरती थीं, मेरे मुंह से यह सब सुन अपनी उन गालियों के लिए स्वयं को कोसने लगीं। 

फिर उन्होंने स्नेह पूर्वक मुझे चाय पिलायी और साथ में आदतानुसार अपने नाती यानी मेरे दोस्त को दो गालियां भी सुनाई कि वह तो घटना के बारे में जानता रहा होगा। तब उन्हें बता देता तो वह क्यों मुझे इतनी गालियां सुनातीं। मैंने कहा, उसे भी कुछ मालूम नहीं था, क्योंकि मैंने उससे भी यह राज छिपा कर रखा था। अगर बता देता तो ऐसा यादगार किस्सा कैसे बन पाता। ऐसी ही न जाने कितनी यादें हैं, जिन्हें सुनाते हुए अब आनंद की अनुभूति हो रही है। ...तो कल फिर मिलते हैं, एक नए यादगार किस्से के साथ...।

(जारी...)

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Anecdote (5)


Rain of stones
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Dinesh Kukreti

The success I got on the first day raised my spirits.  Now preparations were on to give further impetus to the campaign.  So the next day, with double enthusiasm, I started preparing to throw stones at people's homes.  Here, various discussions started taking place in the locality regarding the incident of the night.  Some would say that definitely some person from the locality is doing this act, then some started connecting the incident with ghosts and ghosts.  Elderly people were more among them.  My friend Chaukudi was also speculating according to his thinking.  But, I didn't care about all this.  So as soon as evening fell, I started kneading the garland of Khurafat.

After the evening meal was over, everyone started preparing to sleep after a short walk.  During this, everyone was discussing the incident of last night itself.  My family members were also scared about the recurrence of the incident, but were not saying anything.  I also had my own arguments, to which they had no answer.  Then for their satisfaction, I had kept Hanuman Chali by my head.  But, I had to wait a while that day to go ahead with the campaign, as everyone was taking extra precautions.  So!  When everything was normal till 12.30 o'clock everyone went to sleep.  Now it was my turn to wake up, so as soon as one o'clock I started aiming at the roof of the neighboring sheet in an interval of five minutes.

Then what, everyone came out of the house.  Some had sticks in their hands.  That is, if the stone thrower had really come in his hands at that time, he would have made his Kachumar.  Abusing was pouring down like flower rain from the friend's grandmother's head.  Some new abuses and some are going on in the tradition i.e. traditional.  The stone pelter was being searched all over the locality, but no one could find any clue.  This also strengthened the belief among many neighbors that this is the affair of ghosts.  Although I never believed in the existence of ghosts, but there was a little fear that these people might not go to any questioner (the one who finds out the reality by calculation) and my secret might not be revealed.  Because, one or two neighbors were chirping amongst themselves that now the solution to this problem can only be found by someone.
By the way, a mind was also saying that even if they go to anyone, nothing is going to be done.  Don't know in this turmoil, when you took me in the lap of sleep, I did not even know.  The next day the issue took on more prominence.  All day long!  This topic started living on the tongue of the people.  Those on whose roof the stones were raining, neither could it be swallowed nor swallowed.  His eldest son lived with me.  He was also very scared.  In the next few days, the situation became such that the neighbors who had licensed guns in their homes, they took it out.  There were also talks of going to the police.

It had been ten days since the campaign.  The pressure of the family members was increasing on me not to sleep outside.  This was the biggest concern for me.  Cause, if I didn't sleep outside, even the stones wouldn't rain and that would have turned the needle of doubt straight towards me.  So on the ninth day I myself declared a ceasefire.  At the same time, I also convinced the family members that I would stop sleeping outside without any buts if the stones rained.

There was no incident of stone pelting for the next two-three days.  Everyone was in peace, but at the same time everyone had accepted with one vote that ghosts were behind the incident.  It was in my best interest to listen to everyone and keep my tongue shut.  Friends!  For almost ten years, I stood firm on this resolution and one day when I told the truth in front of some friends and relatives of that era, everyone's eyes were wide open.  That dangerous grandmother of my friend, from whose tongue various types of abuses flowed like flowers, hearing all this from my mouth, started cursing herself for those abuses.

Then he kindly offered me tea and along with it he also uttered two abuses to his grandson i.e. my friend according to the habit that he must have been aware of the incident.  If I would have told them then why would she have abused me so much.  I said, he also did not know anything, because I had kept this secret hidden from him too.  If I had told, how could such a memorable story be made.  There are so many such memories, which are now being narrated with a feeling of joy.  ...so see you again tomorrow, with a new memorable story....

 (Ongoing...)

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