Wednesday, 13 April 2022

31-03-2022 (शरारती बचपन)


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किस्सागोई (चार)
शरारती बचपन

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दिनेश कुकरेती

किशोरवय के दिन भी क्या होते हैं, खासकर जब वह शरारतों से भरा पडा़ हो। ऐसे दिन जब याद आते हैं तो अजीब-सी गुदगुदी होने लगती है। कभी-कभी तो जोर-जोर से हंसने का मन करता है। ये उसी दौर की बात है, जब नानी से कहानी सुने बिना नींद ही नहीं आती थी। आती भी कैसे, मन में कोई-न-कोई खुरापात जो चलती रहती थी। एक रात अचानक मन में आया कि क्यों न मोहल्ले वालों को परेशान किया जाए। पर, किया कैसे जाए, यह समझ नहीं आ रहा था। दरअसल, मैं किसी हल्के-फुल्के आइडिया को अमल में नहीं लाना चाहता था, क्योंकि इससे पकडे़ जाने का डर था। इसी उधेड़बुन में नींद ने मुझे कब अपने आगोश में ले लिया, पता ही नहीं चला। 

खैर! अगले दिन मोहल्ले वालों को परेशान करने का आइडिया भी सूझ गया। आइडिया ये था कि रात बारह बजे के बाद पड़ोस के चुनिंदा दो घरों पर पत्थर फेंकने हैं। लेकिन, खुद के सिवा किसी अन्य को इसकी भनक तक नहीं लगनी चाहिए। जो दो घर पत्थर फेंकने के चिह्नित किए गए, उनमें से एक के आधे हिस्से में छत लोहे की चादर की थी। यह भी तय हुआ कि पत्थर बहुत छोटे होंगे, कंचे (कांच की गोली) से भी छोटे। यानी उनके चादर की छत में गिरने पर आवाज तो होगी, लेकिन कोई नुकसान नहीं होगा। भय का माहौल बन जाए बस! और...हां, जिस छत पर पत्थर फेंकने थे, वह मेरे घर के इतने करीब था कि लेटकर भी वहां तक पहुंच बनाना बेहद आसान था।

अब चिंता इस बात की थी कि पत्थर कहां रखे जाएं? खुरापाती दिमाग ने कुछ देर माथापच्ची करने के बाद इसका भी फुलप्रूफ हल निकाल लिया। दरअसल उस जमाने में मैं नाड़े वाला पायजामा पहनता था और नाड़े वाली जगह छोटे-छोटे 10-12 पत्थर आसानी से रखे जा सकते थे। किसी को शक होने का तो सवाल ही नहीं उठता था। सो, उस दिन सांझ ढलते ही सबसे पहला कार्य मैंने छोटे-छोटे पत्थर इकट्ठा करने का ही किया। रात्रि का भोजन करने के बाद अब सोने की तैयारी होने लगी। उस दिन रात्रिचर्या में मैंने थोडा़ बदलाव यह कर दिया कि नानी से कहानी सुनाने कि जिद नहीं की। खुद कहानी का पात्र जो बनने जा रहा था। चूंकि मध्यरात्रि से अभियान शुरू करना था, इसलिए आंखों में दूर-दूर तक नींद नहीं थी। 

योजना के अनुसार मैंने नानी से कहानी सुनाने की जिद नहीं की, इसलिए कुछ ही देर में नानी को नींद ने आ घेरा। जैसे ही रात के बारह बजे, मैंने पायजामा की नाड़े वाली जगह से एक पत्थर निकाला और निशाना साधकर दे मारा पड़ोसी की चादर की छत पर। टनss की तेज आवाज गूंजी, लेकिन उस घर के लोगों ने इसे संयोग मानकर खास तवज्जो नहीं दी। मैं कुछ देर चुप रहा और फिर निशाना साधकर एक और पत्थर फेंका। इस बार उनका ही नहीं आसपास वालों का भी माथा ठनका और घरों से बाहर आ गए। इसी दौरान तीसरा पत्थर फेंकने के बाद तो हो-हल्ला मचने लगा।

हमारे मकान मालिक व पडो़सी भी जाग चुके थे। मकान मालिक हमारे रिश्ते में थे। उनका एक बेटा मेरा बालसखा हुआ करता था, लेकिन यह योजना मैंने उसे भी नहीं बताई थी। उसकी दादी बेहद खतरनाक महिला थीं। गालियां तो उनकी जुबान पर आशीर्वचन के रूप में चढी़ रहती थीं। लोक में व्याप्त बडे़-बुजुर्गों की हर गाली उन्हें कंठस्थ थी। सो, ऐसी स्थिति में वो भला कैसे चुप रह सकती थीं। अब मुझे भी लगने लगा था कि प्रयास रंग लाने लगा है। लेकिन, इसके बाद मैंने कोई पत्थर नहीं फेंका। अभियान लंबा चलना था, इसलिए उस रात के लिए इतना ही काफी था। 














इस घटना से मेरे घर के सदस्य भी डर गए थे, लिहाजा कहने लगे कि मैं बाहर न सोऊं। मैंने उन्हें जैसे-तैसे मनाया। दरअसल पत्थर फेंकने वाले का कुछ पता न था, इसलिए सभी के मन में यह आशंका भी घर करने लगी थी कि कहीं कोई भूत-प्रेत का चक्कर तो नहीं है। मुझे उन्हें भयभीत देखकर आनंद आ रहा था, लेकिन उनका कहा मानना भी जरूरी था। अन्यथा शक की सुई मेरी ओर भी घूम सकती थी। सो, नानी के कहने पर मैंने सिरहाने हनुमान चालीसा रख ली और इसके बाद घोडे़ बेचकर चैन की नींद सो गया।

(जारी...)

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Anecdote (4)

Naughty childhood

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Dinesh Kukreti

What are the days of adolescence, especially when it is full of mischief.  When I remember such days, I feel strange tickling.  Sometimes I want to laugh out loud.  This is about the same period, when I could not sleep without listening to the story from Nani.  No matter how, there was some misery in the mind that used to go on.  One night suddenly it came to mind that why should not the people of the locality be harassed.  But, I could not understand how to do it.  Actually, I did not want to implement any light-hearted idea, because of the fear of getting caught.  It was not known when sleep took me in its lap in this chaos.
















So!  The next day the idea of ​​troubling the local people was also realized.  The idea was to throw stones at selected two houses in the neighborhood after 12 o'clock.  But, no one other than himself should even be aware of it.  Of the two houses marked with stone throwing, one half had a sheet of iron roof.  It was also decided that the stones would be very small, smaller than a kancha (glass bullet).  That is, there will be a sound if their sheet falls in the roof, but there will be no harm.  Just create an atmosphere of fear!  And... yes, the terrace on which the stones were to be thrown was so close to my house that it was very easy to reach there even by lying down.

Now the concern was about where to keep the stones? After a while, the crazy mind figured out a foolproof solution for this too.  Actually, in those days I used to wear pajama with nada and 10-12 small stones could be easily kept in place of nada.  There was no question of anyone having any doubts.  So, the first thing I did was to collect small stones as soon as evening fell on that day.  After having dinner, preparations were on to sleep.  That day I made a slight change in the night routine that I did not insist on telling the story to the grandmother.  Who was going to be the character of the story himself.  Since the campaign was to start from midnight, there was no sleep in his eyes.

According to the plan, I did not insist on telling the story to Nani, so soon Nani fell asleep.  As soon as twelve o'clock in the night, I took out a stone from the place of Nada and aimed it at the roof of the neighbor's sheet.  The loud sound of tons resonated, but the people of that house did not give special attention to it as a coincidence.  I remained silent for a while and then threw another stone aiming at me.  This time not only their heads but also the people around them bowed their heads and came out of the houses.  Meanwhile, after throwing the third stone, there was an uproar.

Our landlord and neighbors had also woken up.  The landlord was in our relationship.  One of his sons used to be my balsakha, but I didn't even tell him this plan.  His grandmother was a very dangerous woman.  The abuses kept rising on his tongue in the form of blessings.  He was memorized by every abuse of elders prevalent in the world.  So, how could she remain silent in such a situation?  Now I too felt that the effort was starting to pay off.  But, after that I didn't throw any stone.  The campaign was a long one, so that was enough for that night.

My family members were also scared by this incident, so they started saying that I should not sleep outside.  That's how I celebrated them.  In fact, the stone thrower had no idea, so there was a fear in everyone's mind that there was no ghost or ghost.  I was glad to see them frightened, but it was also necessary to obey them.  Otherwise the needle of doubt could have turned towards me as well.  So, at the behest of the grandmother, I kept the Hanuman Chalisa at the head and after that, after selling the horse, I slept peacefully.

(Ongoing...)

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