Sunday, 22 August 2021

22-08-2021 (रक्षाबंधन)

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क्षाबं
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दिनेश कुकरेती
त्योहार कोई भी हो, वह उल्लास का ही पूरक होता है। इस दौरान वातावरण भी स्वाभाविक रूप से उल्लासित हो जाता है और साकार हो उठती हैं परंपराएं। रक्षाबंधन पर्व होने के कारण आज ऐसा ही दिन है। हम सभी अपने-अपने स्तर से इसकी तैयारियों में जुटे हैं। रजनी सुबह से ही किचन में है। स्वयं के साथ मेहमानों के लिए भी खाना बनाना है। उस पर पकौड़ी बनाने की जिम्मेदारी अलग से है। प्रभा, मीनू व रीनू को घर के लिए तो देनी ही हैं, मेरे ससुराल भी ले जानी हैं। रजनी के हाथ की बनी पकौडी़ वहां भी सबको पसंद हैं। 
अन्य दिनों की अपेक्षा आज नाश्ता भी जल्दी हो गया। त्योहार होने के कारण बच्चों पर पढा़ई का दबाव भी नहीं है, इसलिए वे काफी खुश हैं। इसकी एक वजह यह भी है कि आज उनकी पसंदीदा डिश चाऊमीन भी बननी है। अपन को तो साधारण और हल्का भोजन ही पसंद है, पर बच्चों की पसंद का ध्यान तो रखना ही पड़ता है। खैर! इसी गहमा-गहमी के बीच प्रभा व दोनों बच्चे भी पहुंच गए और कुछ ही देर में मीनू व रीनू भी। भोजन भी तैयार हो चुका है, पर बच्चों की प्राथमिकता तो चाऊमीन है। इसके लिए वे कुछ देर के लिए भूख पर भी लगाम लगा सकते हैं और ऐसा ही उन्होंने किया भी।

रजनी ने मुझे भी चाऊमीन देनी चाही, लेकिन मैं दाल-भात की कीमत पर चाऊमीन नहीं खाना चाहता। बच्चों के साथ थोडा़-बहुत मिठाई पहले ही ले ली है, इसलिए पकौडी़ खाने का भी मन नहीं हो रहा। खैर! धीरे-धीरे सभी भोजन कर चुके हैं और अब चाय की चुस्कियां ली जा रही हैं। प्रभा, मीनू व रीनू को भी अब अपने-अपने घर लौटना है। इसके बाद ही रजनी अपने मायके जा पाएगी। वहां भी सभी इंतजार कर रहे होंगे। आज शाम का भोजन हमारा वहीं होना है। सामान्य दिनों में भी जब हम सपरिवार वहां जाते हैं तो रात को भोजन करके ही घर लौटते हैं।

मेरी ससुराल यानी रजनी का मायका मेरे घर से लगभग एक किमी के फासले पर खोह नदी के पार रतनपुर में है। वहां पहुंचने में हमें बामुश्किल 15 मिनट का समय लगता है। इसलिए वहां जाने के लिए हमें कोई विशेष प्लान नहीं बनाना पड़ता। रजनी का तो बीच-बीच में जाना होता रहता है। मेरे ससुराल में कोई भी काम हो, रजनी की सलाह जरूर ली जाती है। खैर! कामकाज से अब जाकर फुर्सत मिल पाई रजनी को। प्रभा, मीनू व रीनू भी जा चुकी हैं और अब हम भी रतनपुर जाने की तैयारी में हैं। 

इस समय अपराह्न के तीन बजे हैं। दस मिनट पहले भी हमारे कदम मेरे ससुराल में पडे़। छोटी साली का परिवार तो हमसे काफी पहले पहुंच गया था। हालांकि, वो बडी़ बिटिया को लेकर नहीं आई। पल्लवी भी घर पर ही है। भीड़ में बच्चे भी खुश हैं। चाय की चुस्कियों के साथ पकौडि़यों का भी आनंद लिया जा रहा है। हालांकि, मेरी इच्छा अब भी नहीं हो रही। औरों को देखकर ही पेट भर गया। चलिए, थोडा़ आराम ही कर लिया जाए। इसी बीच, ससुरजी ने रजनी से पूछा कि क्या त्योहार के दिन चिकन खाया जा सकता है। रजनी ने यही बात मुझसे पूछी तो मैंने कहा, इसमें कोई दिक्कत नहीं। अब तो सावन भी विदा हो चुका है।

मेरा जवाब सुनते ही ससुरजी बिना विलंब के चिकन लेने चले गए, मानो उन्हें मेरे मुंह से हां सुनने का ही इंतजार था। दरअसल, जब भी मैं ससुराल में होता हूं, चिकन या मटन आवश्य बनता है। कभी-कभार मछली भी बन जाती है। मेरे कोटद्वार पहुंचते ही ससुरजी निमंत्रण दे देते हैं कि फलां दिन भोजन ससुराल में ही होगा। छोटी बिटिया को चिकन, मटन, मछली खूब पसंद है, खासकर चिकन। उसे तो इंतजार ही रहता है कि नानाजी कब खाने के लिए बुलाएंगे। इसके विपरीत बडी़ बिटिया को नानवेज बिल्कुल पसंद नहीं। वह तो अंडे भी नहीं खाती। 

















रही मेरी बात, तो मेरा किसी चीज से परहेज नहीं है और न मैं किसी व्यंजन विशेष के लिए लालायित रहता। जो मिल जाए, उसी में खुश। बहरहाल! खाना लग चुका है, लेकिन मुझे आज भूख नहीं है। फिर भी भोजन का निरादर नहीं किया जाना चाहिए। खासकर तब, जब कोई प्रेम से खिला रहा हो। बावजूद इसके मैं तीन रोटी से ज्यादा नहीं खा पाया। चिकन भी थोडा़ बच गया। खाने में जबर्दस्ती करना स्वास्थ्य के लिए लाभकारी नहीं है, इसलिए मैंने छोड़ देने में ही भलाई समझी।

भोजन करने के दसेक मिनट बैठने के बाद हम भी घर के लिए निकल पडे़। साली साहिबा तो परिवार सहित पहले ही चली गई थी, बिना भोजन किए। उसके घर में किसी के जन्मदिन की पार्टी थी। अन्यथा उन्होंने भी भोजन करके ही जाना था। खैर! टहलते-टहलते बीस-पच्चीस मिनट में हम भी घर पहुंच गए। सच कहूं तो यादगार रही आज की शाम। इस दौरान सभी ने फोटो भी खिंचवाए। हंसी-ठिठोली भी होती रही। मेरी तो कामना है कि सबके जीवन में हमेशा ऐसे ही हंसी-खुशी का माहौल रहे। आमीन!
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Raksha Bandhan
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Dinesh Kukreti
Whatever be the festival, it complements the gaiety.  During this, the atmosphere also naturally becomes cheerful and traditions come true.  Today is such a day as it is the festival of Rakshabandhan.  We are all busy preparing for it from our own level.  Rajni has been in the kitchen since morning.  Have to cook food for yourself as well as for the guests.  The responsibility of making dumplings is on him separately.  Prabha, Meenu and Reenu have to be given for the house, they have to be taken to my in-laws' house too.  Everyone likes Rajni's hand made dumplings there too.
Breakfast was also early today as compared to other days.  Due to the festival, there is no pressure of studies on the children, so they are very happy.  One of the reasons for this is that today his favorite dish Chowmein also has to be made.  I like simple and light food, but one has to take care of the children's preferences.  So!  In the midst of this hustle and bustle, Prabha and both the children also reached and in no time Meenu and Reenu too.  Food has also been prepared, but the children's priority is chowmein.  For this they can also control hunger for some time and so did they.

Rajni also wanted to give me chowmein, but I do not want to eat chowmein at the cost of dal and rice.  I have already taken some sweets with the children, so I do not even feel like eating dumplings.  So!  Slowly everyone has had their food and now sips of tea are being taken.  Prabha, Meenu and Reenu also have to return to their respective homes.  Only then will Rajni be able to go to her maternal home.  Everyone will be waiting there too.  We have to have our dinner there tonight.  Even on normal days, when we go there with family, we return home after having dinner at night.

My Sasuraal i.e. Rajni's mayka is in Ratanpur, across the Khoh river, at a distance of about one kilometer from my house.  It hardly takes us 15 minutes to reach there.  So we don't have to make any special plan to go there.  Rajni keeps on visiting every now and then.  Whatever work is done in my in-laws' house, Rajni's advice is definitely taken.  So!  Rajni was able to get free time after going from work.  Prabha, Meenu and Reenu have also gone and now we are also preparing to go to Ratanpur.
It is currently three o'clock in the afternoon.  Even ten minutes ago our feet fell at my in-laws' house.  The younger sister-in-law's family had arrived long before us.  However, she did not bring the elder daughter.  Pallavi is also at home.  Children are also happy in the crowd.  Dumplings are also being enjoyed with sips of tea.  However, my wish is still not happening.  Seeing others, my stomach was full.  Come on, let's just get some rest.  Meanwhile, the father-in-law asks Rajni if ​​chicken can be eaten on the festival day.  When Rajni asked me the same thing, I said, there is no problem in it.  Now Savan has also gone.

On hearing my answer, father-in-law went to get the chicken without delay.  Actually, whenever I am at in-laws' house, chicken or mutton is a must.  Sometimes it turns into a fish.  As soon as I reach Kotdwar, my father-in-law gives an invitation that the food will be served in the in-laws' house for such a day.  The little girl loves chicken, mutton, fish, especially chicken.  He just waits that when Nanaji will call for dinner.  On the contrary, the elder daughter does not like non-veg at all.  She doesn't even eat eggs.

My point is, I am not averse to anything nor do I crave for any particular dish.  He is happy with whatever he gets.  However!  Food has been served, but I am not hungry today.  Yet food should not be disrespected.  Especially when one is feeding with love.  Despite this, I could not eat more than three rotis.  The chicken also survived a little.  Forcing me to eat is not good for my health, so I thought it better to give up.
After sitting for ten minutes after eating, we also left for home.  Sister-in-law Sahiba had already left with the family, without taking food.  Someone had a birthday party at his house.  Otherwise he too had to go after eating.  So!  We also reached home in twenty-five minutes while walking.  To be honest, it was a memorable evening.  During this, everyone also took photos.  There was laughter and laughter too.  I wish that there should always be such an atmosphere of laughter and happiness in life.  Amen!

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