दिनेश कुकरेती
हमने कल शाम ही तय कर लिया था कि सुबह सात बजे हर हाल में देहरादून के लिए निकल पडे़ंगे, इसलिए आज नींद तड़के चार बजे ही खुल गई। इसकी एक वजह यह भी रही कि मैंने मोबाइल पर अलार्म लगाया हुआ था, जो हर पांच मिनट के अंतराल में बज रहा था। ऐसे में नींद भला कैसे अपने आगोश में लेने की गुस्ताखी करती। हालांकि, साथी चंदराम राजगुरु और सुमन सेमवाल पर अलार्म का कोई असर नहीं हुआ। मेरा तो नियम है कि सफर में समय का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। इससे दूसरों को भी दिक्कत नहीं होती।
सुबह उठकर मैं स्नान अवश्य करता हूं और वह भी ठंडे पानी से। फिर चाहे बर्फ वाले इलाके में ही क्यों न होऊं। कोरवा में भी आजकल सुबह-शाम तो काफी ठंड है, लेकिन मुझे इससे क्या फर्क पड़ना था। सो, बिना विलंब किए मैं नहा-धोकर फारिग हो गया। तब पांच बजे का वक्त रहा होगा। अन्य वरिष्ठ-कनिष्ठ साथी तो गर्म पानी से नहाते हैं और फिर वे अभी उठे भी नहीं थे। स्नान के बाद मैंने पैकिंग वगैरह की और फिर तैयार होकर काटेज के बाहर आ गया। बाहर काफी पाला गिरा हुआ था, इसलिए मैं पोर्च में लगी बेंच पर ही पद्मासन लगाकर बैठ गया।
तकरीबन पौन घंटे अनुलोम-विलोम और कपालभाति प्राणायाम करने के बाद तन में स्फूर्ति का एहसास होने लगा। तब तक अन्य साथी भी जाग चुके थे। साढे़ सात बजे नाश्ते के लिए बुलावा आ गया और सभी भोजनगृह की ओर चल पडे़। नाश्ते में पूरी और आलू का झोल़ (आलू उबालकर बनाई गई रसदार सब्जी) बना हुआ था। साथ में अचार की भी व्यवस्था थी। वैसे तय हुआ था कि दो-दो पूरी खाएंगे, लेकिन मुझे तो भूख लगी थी। फिर देहरादून लौटकर खाना बनाने की चिंता भी थी, क्योंकि तीन बजे ड्यूटी पर पहुंचना था। इसलिए मैंने पेट भरकर नाश्ता करना ही बेहतर समझा, ताकि खाना बनाने के झंझट से निजात मिल जाए। इसके बाद हमने कैंपस में ग्रुप फोटो खिंचवाई और फिर चल पडे़ अपनी कारों की ओर।
कोरवा से ठीक सामने वाली पहाडी़ की चोटी पर चकराता छावनी साफ नजर आती है। परिंदों के लिए तो यह महज एक किमी का फासला है। लेकिन, सड़क मार्ग से चकराता ठीक दस किमी दूर है। छावनी के दाहिने ओर की पहाडी़ पर फायरिंग की आवाज गूंज रही थी। साथी राजगुरु ने बताया कि यह टूटू बटालियन अभ्यास कर रही है। चारों ओर की ऊंची-ऊंची पहाडि़यों से धूप अब नीचे उतरने लगी थी, जो वातावरण में गर्माहट का एहसास करा रही थी। लोग अपने रोजमर्रा के कार्यों में जुट गए थे। हम भी अब कोरवा को अलविदा कहते हुए देहारादून की ओर प्रस्थान कर गए।
शीतल मंद पवन के झोकों के बीच कोरवा से नीचे उतरते हुए हम कलसी कब पहुंच गए मालूम ही नहीं पडा़। जबकि, कल ऊपर चढ़ते हुए ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो हम मीलों दूर आ चुके हैं। कालसी के बाद मौसम में गर्माहट आने लगी थी। खैर! मुझे इससे फर्क नहीं पड़ता। मौसम के हर रूप का अपना अलग आकर्षण है। नंदा की चौकी से कुछ पहले हाइवे के किनारे हमने अनानास का जूस पिया और फिर सीधे आफिस पहुंचकर ही रुके। वहां से मैंने बाइक उठाई और सीधे कमरे में आ गया। भोजन करने की इच्छा नहीं हो रही थी, इसलिए पानी भरने के बाद मैं कुछ देर आराम करने के लिए लेट लगा। इसी दौरान पंद्रह मिनट फोन पर रजनी से भी बात की। साथ ही दसेक मिनट झपकी भी ले ली।
आज रात का भोजन भी दलिया का हुआ। दलिया पौष्टिक, पाचक और बेहद सरलता से पक जाने वाला भोजन है। सफर से लौटने पर मैं आक्सर दलिया ही बनाता हूं। झाझरा और कोरवा में काफी भारी भोजन हुआ, इसलिए आज हल्का भोजन जरूरी था। फिलहाल मैं यू-ट्यूब पर अपने पसंद के धारावाहिक देख रहा हूं। लेकिन, आंखें भारी हो रही हैं, इसलिए ज्यादा देर जागा नहीं रहूंगा। ...तो ठीक है, बाकी बातें कल होती हैं। शुभरात्रि!
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(Part-4)
Korwa to Doon
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Dinesh Kukreti
We had decided only yesterday evening that we would leave for Dehradun at 7 in the morning, so today we woke up at four in the morning. One reason for this was also that I had set an alarm on my mobile, which was ringing every five minutes. In such a situation, how would sleep have been fooled to take it in its lap. However, the alarm went to no effect on accomplices Chandram Rajguru and Suman Semwal. My rule is that special care should be taken of time in the journey. It doesn't bother others either.
Waking up in the morning, I must take a bath and that too with cold water. Even if I am in a snowy area. Even in Korwa, it is very cold in the morning and evening, but what difference did I have to make. So, without delay, I took a bath and left. It must have been five o'clock then. The other senior-junior mates take a hot bath and then they didn't even get up. After the bath I did the packing etc. and then got ready and came out of the cottage. There was a lot of frost outside, so I sat on the bench in the porch with Padmasana.
After doing anulom-vilom and kapalbhati pranayama for about half an hour, there was a feeling of energy in the body. By then the other companions had also woken up. At 7:30, the call came for breakfast and everyone started walking towards the dining hall. Poori and aloo ka jhol (juicy vegetable cooked by boiling potatoes) were made for breakfast. Along with this there was also a system of pickles. Although it was decided that I would eat two puris, but I was hungry. Then there was also the worry of returning to Dehradun to prepare food, because he had to reach duty at three o'clock. That's why I thought it better to have breakfast full of stomach, so that I can get rid of the hassle of cooking. After this we posed for a group photo on the campus and then headed towards our cars.
The Chakrata Cantonment is clearly visible on the top of the hill just opposite Korwa. For birds, it is only a distance of one kilometer. But, Chakrata is exactly ten km away by road. The sound of firing was echoing on the hill on the right side of the camp. Fellow Rajguru told that this Tutu battalion is doing exercises. The sun was starting to come down from the high hills all around, which was giving a feeling of warmth in the atmosphere. People were busy with their daily activities. We also left for Dehradun now saying goodbye to Korwa.
It was not known when we reached Kalsi while descending from Korwa amidst gusts of cool, gentle wind. Whereas, as we climbed up yesterday, it seemed as if we had come miles away. After Kalsi, the weather started getting hot. So! It doesn't matter to me. Each form of the season has its own charm. Before Nanda's post, we drank pineapple juice on the side of the highway and then stopped straight after reaching the office. From there I picked up the bike and went straight to the room. There was no desire to eat, so after filling the water, I lay down to rest for some time. During this, he also spoke to Rajni on the phone for fifteen minutes. Also took a ten minute nap.
Tonight's meal was also of porridge. Dalia is nutritious, digestible and very easy to cook food. I usually make porridge when I return from the journey. Very heavy meals took place in Jhajhra and Korwa, so a light meal was necessary today. Currently I am watching my favorite serials on YouTube. But, my eyes are getting heavy, so I will not stay awake for long. ... well then, the rest of the things happen tomorrow. good night!
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