(भाग-दो)
दिनेश कुकरेती
आज सुबह से ही हम कोरवा भ्रमण की तैयारियों में जुटे थे। हमें आफिस से ही झाझरा के लिए निकलना था, इसलिए मैं भी एक छोटे से बैग में जरूरी सामान लेकर आफिस के लिए निकला। यह बैग मुझे वर्ष 2008 में मानवाधिकार संस्था 'एमनेस्टी इंटरनेशनल' की ओर से दिया गया था। मैं तब एमनेस्टी का सदस्य हुआ करता था। सामान के नाम पर मेरे पास खादी का एक गमछा, बनियान-अंडरवियर, एक शार्ट, एक टी-शर्ट, टूथपेस्ट-टूथब्रश, साबुन व मोबाइल चार्जर ही है। इतने सामान के लिए यह बैग पर्याप्त है। दो रात व एक दिन के लिए इससे ज्यादा और क्या चाहिए।
अपराह्न तीन बजे आफिस पहुंचने के बाद बड़थ्वालजी से पता चला कि अभी सामान नहीं खरीदा गया है, इसके लिए थोडी़ देर में मुझे और उन्हें (बड़थ्वालजी को ) जाना पडे़गा। साढे़ चार-पौने पांच बजे के बीच शाम की मीटिंग निपटाने के बाद हमने सब्जी मंडी की ओर रुख किया। मंडी में ही मसालों की दुकान भी लगती है, इसलिए हमें सामान खरीदने में कोई परेशानी पेश नहीं आई। दो किलो प्याज, 200 ग्राम लहसुन, थोडा़ अदरक, दो किलो खीरा, एक किलो आलू, डेढ़ किलो अरबी, एक किलो मूली, दो किलो टमाटर और जरूरी मसाले खरीदकर हमने सेमवालजी की कार में रख लिए। इसके बाद हम चिकन लेने पहुंचे। मुझे तो आइडिया था नहीं, लेकिन बड़थ्वालजी का कहना था कि चार किलो चिकन खप जाएगा और मजा देखिए कि पैक कराया साढे़ चार किलो।
इसके अलावा पास ही एक दुकान से हम रिफाइंड, आजवाइन, जीरा और डेढ़ किलो बासमती चावल भी खरीद लाए। एक किलो पनीर व दो किलो दही बड़थ्वालजी पहले ही खरीद चुके थे। जबकि, ब्रेड हमने जाते हुए रास्ते में खरीदी। शाम ठीक आठ बजे सेमवालजी की कार से मैं, किरण भाई, बड़थ्वाल व स्वयं सेमवालजी झाझरा वन विश्राम गृह के लिए रवाना हुए। कुछ साथियों के लिए जरूरी पेय भी कार में रखवा लिया था। विश्राम गृह का रास्ता आनंद वन के बीच से गुजरता है, जिस पर बारिश के कारण हल्का कीचड़ हो गया था। घंटेभर पहले ही बारिश होने के कारण। खैर! रात नौ बजे हम वन विश्राम गृह में थे। लेकिन, वहां जाकर पता चला कि गैस का चूल्हा तो खराब पडा़ है। ऐसे में सेमवालजी ने केयर टेकर के साथ सेटिंग कर उससे चूल्हे की व्यवस्था कराई।
इस विश्राम गृह में हम इसी वर्ष गणतंत्र दिवस के मौके पर भी आ चुके थे, इसलिए केयर टेकर हमें पहचानता था। सब्जी-चिकन धोने व खाना बनाने में हमने भी केयर टेकर की मदद की, सो दस बजे तक आलू व अरबी के गुटखे तैयार हो चुके थे, चिकन तैयार होने को था और चावल चूल्हे पर चढा़ए जा चुके थे। सवा दस बजे के आसपास गुलेरियाजी की कार से सतीजी, केदारजी व स्वयं गुलेरियाजी भी विश्राम गृह पहुंच गए। लगभग आधा घंटा सभी को फ्रैश होने में लगा होगा। इसके बाद हम सब विश्राम गृह के आगे आंगन में चबूतरे पर जा बैठे। वहीं कुछ साथी चुस्कियां भी ले रहे थे, जबकि बाकी साथी उनके साथ ड्राई चिकन, आलू-अरबी के गुटखे और सलाद का लुल्फ उठा रहे थे। साढे़ 11 बजे हमने केयर टेकर को भी उसके घर भेज दिया। हमें तो देर से भोजन करना था, इसलिए वो कहां हमारा इंतजार करते रहता। लेकिन, यहां तो गप्पों में कुछ ज्यादा ही देर हो गई। तकरीबन साढे़ 12 बजे हमने भोजन करना शुरू किया और डेढ़ बजे के आसपास हम इससे फारिग हुए।
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Memorable Party of Jhajhra Forest Rest House
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(Part-2)
Dinesh Kukreti
From this morning we were busy preparing for the Korwa tour. We had to leave for Jhajra from the office itself, so I also left for the office with essential items in a small bag. This bag was given to me in the year 2008 by the human rights organization 'Amnesty International'. I used to be a member of Amnesty then. In the name of goods, I have only a khadi gamchha, vest-underwear, a short, a T-shirt, toothpaste-toothbrush, soap and mobile charger. This bag is enough for so many things. What more is needed for two nights and one day.
After reaching the office at 3 pm, I came to know from Badthwalji that the goods have not been bought yet, for this I and he (Badthwalji) will have to go in a while. After finishing the evening meeting between 4.15 and 5.15, we headed towards the vegetable market. There is also a spice shop in the market itself, so we did not face any problem in buying the goods. After buying two kilos of onions, 200 grams of garlic, a little ginger, two kilos of cucumber, one kilo of potatoes, one and a half kilos of arbi, one kilo of radish, two kilos of tomatoes and essential spices, we kept them in Semwalji's car. After that we went to get the chicken. I had no idea, but Barthwalji said that four kilos of chicken will be consumed and see the fun that four and a half kilos are packed. Apart from this, we also bought refined, ajwain, cumin and 1.5 kg basmati rice from a nearby shop. Barthwalji had already bought one kg of paneer and two kg of curd. Whereas, we bought bread on the way.
Around 10.15 pm, Satiji, Kedarji and Guleriaji himself also reached the rest house from Guleriaji's car. It must have taken about half an hour for everyone to get fresh. After this we all sat on the platform in the courtyard in front of the rest house. At the same time, some companions were also taking sips, while the rest were enjoying dry chicken, potato-arabi gutkha and salad with them. At 11.30, we also sent the care taker to his house. We had to eat late, so where would he keep waiting for us? But, here it was too late to gossip. At around 12.30, we started having food and around 1.30 am we got away from it.
Now everyone is in the mood to sleep. Departure for Korwa in the morning. There is no hurry to go, but if you leave on time, you will also take a little stroll. However, it doesn't matter to me. I get up on time, but some friends are used to getting up late, so they have problems. Satiji is telling that Kedarji has to leave home in the morning. They are not going to Korwa with us. Perhaps some special guests are coming to the house. Along with them there is a program to visit Kedarji. At night, he came with us in favor. So! It's morning, we'll see. For now, he sleeps. So friends, tomorrow I am present with the new installment of the journey. Till then goodnight!!
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