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दिनेश कुकरेती
आज पूर्वाह्न मैं पत्रकार मित्र अजय खंतवाल से मिलने उसके आफिस पहुंचा तो संयोग से वहां पत्रकारिता के शुरुआती दौर के साथी गणेश काला भी मौजूद थे। कालाजी से मैं लंबे अर्से बाद मिल रहा था। पहले कोरोना काल के आखिरी दौर में उनसे देहरादून में मुलाकात हुई थी। उसके बाद अब मिलना हो रहा था। कालाजी से मेरा परिचय संभवतः 1994-95 से है। बाद में कई साल हमने साथ-साथ एक ही अखबार में काम किया। अब भी बीते आठ-नौ साल से हम एक ही अखबार से जुडे़ हैं। बस! फर्क इतना है कि मैं पूर्णकालिक पत्रकार हूं और कालाजी पार्ट टाइम। वे बडे़ मिलनसार एवं आत्मीय व्यक्ति हैं। बनाव-दिखाव से हमेशा दूर रहने वाले, इसलिए सबसे सरलता एवं सहजतापूर्वक घुल-मिल जाते हैं।
मेरी दोस्ती भी कालाजी से उनकी इन्हीं खूबियों के कारण है। खुशकिस्मती से बहुत हद तक हममें वैचारिक समानता भी है, जिस कारण जनपक्ष से हमारा हमेशा जुडा़व रहा है। इसका एक फायदा यह भी है कि हमारी मुलाकात जब भी होती है, उत्साहवर्धक ही रहती है। आज भी यही उत्साह हमारे मनोभाव में था। खास बात यह कि कालाजी अब हीलर बन गए हैं। उन्होंने डिस्टेंस हीलिंग में विशेषज्ञता हासिल की है और बीते दो-तीन साल से इसके जरिये लोगों का उपचार कर रहे हैं। उपचार की यह आध्यात्मिक पद्धति है और इसके जरिये शरीर के सात चक्रों (ऊर्जा के सात केंद्रों) को सक्रिय किया जाता है। डिस्टेंस हीलिंग से दूर बैठकर ही बीमार व्यक्ति का उपचार किया जा सकता है। बस! इसमें बीमार व्यक्ति को हीलर और स्वयं पर अटूट विश्वास होना चाहिए। जापान में तो उपचार संबंधी यह चिकित्सा पद्धति खासी प्रचलित है। इसे वहां रेकी कहा जाता है।
कालाजी ने कांसखेत-पौडी़ मार्ग पर अदवाणी कस्बे में घने जंगल के किनारे अपना हीलिंग सेंटर भी बनाया हुआ है। वहां विदेशी लोग भी हीलिंग के लिए आते हैं। यह ऐसा मनमोहक एवं खूबसूरत स्थान है, जहां प्रकृति का सानिध्य पाकर छोटी-मोटी बीमारी तो वैसे ही कट जाती है। कालाजी ने बताया कि अब वे गढ़वाल के प्रवेशद्वार कोटद्वार में भी संपर्क केंद्र शुरू कर रहे हैं। फिलहाल वे अपने दुर्गापुर स्थित आवास पर भी हीलिंग करते हैं। वहां सुबह से ही लोगों का तांता लगा रहता है। उनका कहना था कि मैं भी हीलिंग सीख सकता हूं, क्योंकि मेरी अध्यात्म पर पकड़ भी है।
उन्होंने यह निष्कर्ष कैसे निकाला, यह तो मुझे नहीं मालूम, लेकिन इतना सच है कि अध्यात्म और दर्शन हमेशा ही मेरे प्रिय विषय रहे हैं। हालांकि, यह भी सच है कि मैं किसी भी कार्य को विज्ञान की कसौटी पर तौलकर ही करता हूं और दर्शन व अध्यात्म भी योग-प्राणायाम की तरह विज्ञान का ही एक रूप हैं। बहरहाल! मुझे कालाजी का सुझाव पसंद आया। मैं अभी दो-तीन दिन और कोटद्वार में ही हूं, इसलिए कालाजी ने कल-परसों पूर्वाह्न में एक-एक घंटा देने को कहा है। वे चाहते हैं कि मैं डिस्टेंस हीलिंग के मूल को समझ जाऊं, फिर आगे समझने में आसानी रहेगी।
फिलहाल तो सोने का वक्त हो गया है, लेकिन इतना तय है कि कल से कालाजी के सुझाव पर अमल अवश्य करूंगा। इस भौतिकवादी दुनिया में शांति से जीवन जीने का यही सबसे बेहतर तरीका है। भविष्य में मुझे स्वतंत्र रूप से लेखन कार्य करना है, तब निश्चित रूप से यह ज्ञान बहुत काम आएगा। सोच रहा हूं कि कालाजी कोटद्वार में केंद्र शुरू कर दें तो उनसे विधिवत हीलिंग सीखना शुरू कर दूंगा। ...तो चलिए! कल मिलते हैं, नई ऊर्जा के साथ, एक नई सुबह के स्वागत को।
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Dinesh Kukreti
This morning, when I reached the office of journalist friend Ajay Khantwal, incidentally Ganesh Kala, an early journalist friend, was also present there. I was meeting Kalaji after a long time. He first met him in Dehradun during the last phase of the Corona period. After that it was happening now. My acquaintance with Kalaji is probably from 1994-95. After many years we worked together in the same newspaper. Even now, for the last eight-nine years, we are associated with the same newspaper. Just! The difference is that I am a full time journalist and Kalaji part time. He is a very friendly and kind person. Those who are always away from the pretentiousness, therefore get along with the most easily and effortlessly.
My friendship with Kalaji is also because of his qualities. Fortunately, we also have ideological similarity to a great extent, due to which we have always been associated with the people's side. One advantage of this is that whenever we meet, it remains encouraging. Even today the same enthusiasm was in our mood. The special thing is that Kalaji has now become a healer. He has specialized in Distance Healing and has been treating people through it for the last two-three years. This is a spiritual method of healing and through this the seven chakras (seven centers of energy) of the body are activated. A sick person can be treated only by sitting away from distance healing. Just! In this the sick person should have unwavering faith in the healer and himself. In Japan, this healing method is very popular. It's called Reiki there.
Kalaji has also built his own healing center on the edge of a dense forest in Advani town on the Kanskhet-Pauri road. Foreign people also come there for healing. This is such a charming and beautiful place, where minor diseases get cut just by getting the company of nature. Kalaji told that now they are starting a contact center at Kotdwar, the gateway of Garhwal. At present, he also does healing at his Durgapur residence. There is an influx of people since morning. He said that I can also learn healing, because I also have a hold on spirituality.
How he came to this conclusion, I do not know, but it is so true that spirituality and philosophy have always been my favorite subjects. However, it is also true that I do any work by weighing it on the basis of science and philosophy and spirituality are also a form of science like yoga-pranayama. However! I liked Kalaji's suggestion. I am only in Kotdwar for two-three days now, so Kalaji has asked to give one hour each tomorrow morning. They want me to understand the basics of distance healing, then it will be easier to understand further.
For the time being it is time to sleep, but it is certain that from tomorrow onwards, I will definitely implement Kalaji's suggestion. This is the best way to live peacefully in this materialistic world. In future I have to do writing work independently, then surely this knowledge will be very useful. I am thinking that if Kalaji starts a center in Kotdwar, then I will start learning healing from them. ...then let's go! See you tomorrow, with new energy, to welcome a new dawn.
प्रणाम सर एक मंझे और दूरदर्शी पत्रकार के तौर पर आप सदैव मेरे लिए मार्गदर्शक की भूमिका में रहे हैं। हमारे टूटे फ़ूटे शब्दों को आपकी ज्ञानशाला से गुजरकर कैसे राष्ट्रीय पटल पर प्रकाशित होकर हमें सदैव कृतज्ञ करता रहा है। मेरे नये अवतार की छोटी से मुलाकात में आपने किस तरह प्रस्तुत किया यह भी मेरे लिए अविस्मयकारी है।
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार।
Deleteआपकी ज्ञानशाला से गुजरकर हमारे विखरे शब्दों की माला कैसे राष्ट्रीय पटल पर प्रकाशित होकर हमारे मनोबल को ऊंचा करती रही है। एक छोटी मुलाकात को क ब्लाग में स्थान देकर आज फिर मुझे पुनर्जागरण की अनुभूति करा गया।
ReplyDelete👍👍👍
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