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ऐसे हो रहा लॉकडाउन का असर
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दिनेश कुकरेती
कोरोना काल में सकारात्मक रहना बेहद जरूरी है। तभी इस महामारी से बचा रहा जा सकता है। जब से यह बीमारी आई थी, तभी से मैं इसी फार्मूले पर चल रहा हूं। बावजूद इसके, पहले लॉकडाउन और अब कोविड कर्फ्यू के चलते वातावरण में जो वीरानगी पसरी हुई है, उसका असर हर किसी पर होना स्वाभाविक है। ऐसे में भला मैं इससे कैसे अछूता रह सकता हूं। यह निष्कर्ष मैंने आज खुद के साथ घटी घटना के बाद निकाला।
मैं देहरादून के जिस मुहल्ले में रहता हूं, वहां गर्मियों के दिनों में पानी की खासा किल्लत रहती है। उस पर हर घर में टुल्लू पंप चलने से यह समस्या और गहरा जाती है। पानी आने का भी समय निश्चित है। मसलन, पूर्वाह्न ग्यारह बजे के बाद, दोपहर ढाई बजे, शाम सात बजे, रात ग्यारह बजे और फिर मध्यरात्रि बाद डेढ़ से दो बजे के बीच। लेकिन, इसमें गारंटी पूर्वाह्न ग्यारह और रात ग्यारह बजे आने की ही है। महीने में एक-दो दिन इन दोनों टाइम भी नहीं आता। जाहिर है इस स्थिति में जिस वक्त पानी आ रहा हो, उसी वक्त भर देना ही समझदारी है।
यही वजह है कि मैं पूर्वाह्न में पानी भरने को ज्यादा तवज्जो देता हूं, ताकि रात को बेफिक्री रहे। पूर्वाह्न में भी पहले मकान मालिक पानी भरते हैं। इसके बाद वो मेरे लिए कहते हैं। ऐसे में कभी-कभी मेरी बारी आने तक पानी बंद हो जाता है। हालांकि, आज ऐसा नहीं हुआ। नल में खूब पानी आ रहा था। एकाध छोटे बर्तन भरने के बाद मैंने नहाने के लिए बडी़ बाल्टी भरी और फिर उसे वहीं छोड़ नल बंद करने चला गया। रूम में आने के बाद मैंने भोजन किया और दोपहर ढाई बजे के आसपास आफिस के लिए निकल पडा़।
आफिस से रात पौने ग्यारह बजे के आसपास मैं रूम में लौटा। पानी आ रहा था, इसलिए ताला खोलते ही सबसे पहले मेरा ध्यान एक-दो बोतलों का पानी बदलने की ओर गया। इसी बीच बाल्टी को देखने के लिए मुडा़ तो वह कहीं नजर नहीं आई। मैं आश्चर्य में पड़ गया कि पूर्वाह्न तो मैंने बाल्टी भर दी थी, फिर कहां लापता हो गई। फिर मैंने बाहर जाकर देखा तो नल के पास दो बाल्टी भरकर रखी हुई थी। एक बाल्टी को पहचानते हुए मैंने वहां पानी भर रहे दूसरे किरायेदार से पूछा कि ये बाल्टी आपकी तो नहीं है। इसने इन्कार किया। इसके बाद मैं बाल्टी को रूम में ले आया।
हालांकि, इसके बाद मुझे भ्रम हो गया कि आखिर बाल्टी बाहर कैसे गई। फिर मन में विचार आया कि कहीं मकान मालिक के पास ऐसी कोई चाबी तो नहीं, जिससे मेरे दरवाजे का ताला खुल जाता हो। सोचा होगा कहीं मेरी बाल्टी खाली तो नहीं, इसलिए ताला खोलकर भरने के लिए बाहर ले गया होगा। लेकिन, ऐसा कैसे हो सकता था, बाल्टी तो भरी हुई थी। फिर उसे बाहर ले जाने की जरूरत ही क्या थी। खैर! जो भी हो, इसका पता तो कल ही चलेगा। अगर मकान मालिक ने ताला खोला होगा तो कल स्वयं बता देगा। हां! अगर नहीं खोला होगा तो तब सोचनीय बात है। फिलहाल तो रात काफी हो गई है, सो लिया जाए। शुभरात्रि!!
09-05-2021
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Effect of lockdown happening like this
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Dinesh Kukreti
Staying positive in the Corona period is very important. Only then can this pandemic be avoided. Ever since this disease came, I have been following this formula. Despite this, the desolation that has spread in the atmosphere due to the first lockdown and now the Kovid curfew, it is natural to have an effect on everyone. So how can I stay away from this? I came to this conclusion after the incident that happened with myself today.
In the locality of Dehradun where I live, there is a severe shortage of water during the summer. The problem gets further aggravated by running tullu pumps in every house on it. The time of arrival of water is also fixed. For example, after eleven o'clock in the morning, two o'clock in the afternoon, seven o'clock in the evening, eleven o'clock in the night and again between one and a half to two in the midnight. But, the guarantee in this is only to come at eleven in the morning and eleven in the night. One or two days in a month, both these times do not come. Obviously, in this situation, at the time when the water is coming, it is wise to fill it at the same time.
This is the reason why I give more attention to watering in the morning, so that the night remains carefree. Even in the morning, the first landlord fills water. After that he calls for me. In such a situation, sometimes the water stops till my turn comes. However, this did not happen today. There was a lot of water coming in the tap. After filling a few small pots, I filled a big bucket for taking a bath and then left it there and went to turn off the tap. After coming to the room, I had my lunch and left for the office around 2.30 pm.
I returned to the room from the office around eleven o'clock in the night. Water was coming, so as soon as I opened the lock, my attention first turned towards changing the water of one or two bottles. Meanwhile, when I turned to look at the bucket, she was nowhere to be seen. I was astonished that in the morning I had filled the bucket, then where did it disappear. Then I went outside and saw that two buckets were kept near the tap. Recognizing a bucket, I asked the other tenant who was filling water there, whether this bucket is not yours. It denied. After that I brought the bucket to the room.
However, after that I got confused as to how the bucket went out. Then a thought came to my mind that if the landlord does not have any such key, which can open the lock of my door. I must have thought that my bucket is not empty, so I must have taken it out to fill the lock. But, how could this happen, the bucket was full. Then what was the need to take him out? Well! Whatever it is, it will be known only tomorrow. If the landlord has opened the lock, he himself will tell tomorrow. Yes! If it is not opened then it is a matter of thought. For now, it is enough night, let's sleep. good night!!
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